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जैव विविधता और पर्यावरण

पश्चिमी तट पर मैक्रो तथा माइक्रोप्लास्टिक से संबंधित अध्ययन

  • 23 Dec 2019
  • 5 min read

प्रीलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान द्वारा पश्चिमी तट पर किया गया प्लास्टिक प्रदूषण संबंधी अध्ययन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान (National Institute of Oceanography-NIO) द्वारा पश्चिमी तट पर मैक्रोप्लास्टिक (Macroplastic) तथा माइक्रोप्लस्टिक (Microplastic) के प्रदूषण से संबंधित अध्ययन किया गया है।

मुख्य बिंदु:

  • NIO द्वारा किये इस अध्ययन की रिपोर्ट का शीर्षक ‘भारत के पश्चिमी तट पर मैक्रो और माइक्रोप्लास्टिक का आकलन: आधिक्य, वितरण, बहुलक के प्रकार, विषाक्तता’ (Assessment of Macro and Micro Plastics along the West Coast of India: Abundance, Distribution, Polymer type and Toxicity) है।
  • शोधकर्त्ताओं ने भारत के पश्चिमी तट पर स्थित 10 समुद्र तटों (Beaches) पर दो वर्षों तक मैक्रो और माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण तथा समुद्री जीवों पर उनके विषाक्त प्रभाव का अध्ययन किया।

अध्ययन से संबंधित मुख्य बिंदु:

  • कर्नाटक और गोवा की तुलना में महाराष्ट्र में उच्च ज्वार रेखा (High Tide Line) पर स्थित समुद्र तटों पर मैक्रो तथा माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषकों की अधिक मात्रा पाई गई।
  • महाराष्ट्र में मैक्रो और माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषकों की सबसे अधिक मात्रा पाए जाने का कारण भूमि-आधारित है, जिसमें तट के समीप स्थित प्लास्टिक उद्योग, बंदरगाह क्षेत्र, पेट्रोलियम उद्योग एवं पर्यटन गतिविधियाँ में वृद्धि शामिल है।
  • इन समुद्र तटों पर प्लास्टिक के प्रदूषित पदार्थ सफेद, हल्के पीले, गहरे भूरे, हरे, नीले और लाल जैसे विभिन्न रंगों में पाए गए।
  • प्लास्टिक के संदूषित पदार्थों से समुद्री पर्यावरण को बचाने के लिये शोधकर्त्ताओं ने सरकारों को एकल-उपयोग प्लास्टिक (Single Use Plastic) के उपयोग को हतोत्साहित करने तथा प्लास्टिक का पुनर्चक्रण (Recycling) बढ़ाने से संबंधित नीतियों के निर्माण की सलाह दी है।
  • शोधकर्त्ताओं ने सरकारों को लोगों में प्लास्टिक के उपयोग को हतोत्साहित करने के संबंध में सामुदायिक जागरूकता कार्यक्रमों के आयोजन की भी सलाह दी है।

मैक्रोप्लास्टिक तथा माइक्रोप्लास्टिक:

पाँच मिलीमीटर से कम लंबाई वाले प्लास्टिक के टुकड़े को माइक्रोप्लास्टिक तथा पाँच मिलीमीटर से अधिक लंबाई वाले टुकड़े को मैक्रोप्लास्टिक कहते हैं।

राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान:

  • यह एक बहु-विषयक महासागरीय अनुसंधान संस्थान है एवं ‘वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद’ (Council of Scientific and Industrial Research-CSIR) की घटक प्रयोगशालाओं में से एक है।
  • इसका मुख्यालय ‘डोना पाउला’ (गोवा) में स्थित है, इसके तीन क्षेत्रीय कार्यालय कोच्चि (केरल), मुंबई (महाराष्ट्र) और विशाखापत्तनम (आंध्र प्रदेश) में स्थित हैं।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1960 के अंतर्राष्ट्रीय हिंद महासागर अभियान के तहत 1 जनवरी 1966 को हुई थी।
  • इस संस्थान का मुख्य कार्य हिंद महासागर की महासागरीय विशेषताओं का परीक्षण करना तथा उन्हें समझना है।
  • इस संस्थान द्वारा समुद्र विज्ञान की जैविक, रासायनिक, भू-गर्भीय और भौतिक विशेषताओं से संबंधित शाखाओं में शोध किया जाता है, साथ ही समुद्र इंजीनियरिंग, समुद्री उपकरण तथा समुद्री पुरातत्व विषयों में भी शोध किया जाता है।

स्रोत- बिज़नेस स्टैण्डर्ड

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