अंग प्रत्यारोपण में सुधार
प्रिलिम्स के लिये:मानव अंग और ऊतक प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994, राष्ट्रीय अंग प्रत्यारोपण दिशानिर्देश, राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (NOTTO) मेन्स के लिये:अंग दान और प्रत्यारोपण - संबंधित नैतिक चिंताएँ, अंग प्रत्यारोपण में उभरते मुद्दे। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने जीवित दाताओं से जुड़े अंग प्रत्यारोपण प्रक्रियाओं को पूरा करने के लिये 6 से 8 सप्ताह की समय सीमा का प्रस्ताव दिया है।
- उच्च न्यायालय ने सरकार को मानव अंग और ऊतक प्रत्यारोपण अधिनियम {The Transplantation of Human Organs and Tissues (THOT ) Act },1994 और मानव अंग और ऊतक प्रत्यारोपण नियम (THOT नियम), 2014 के अनुसार अंग दान आवेदनों के सभी चरणों के लिये विशिष्ट समय-सीमा स्थापित करने का निर्देश दिया।
मानव अंग और ऊतक प्रत्यारोपण अधिनियम,1994 क्या है?
- परिचय:
- यह कानून भारत में मानव अंगों और ऊतकों के प्रत्यारोपण को नियंत्रित करता है, जिसमें मृत्यु के बाद अंगों का दान भी शामिल है।
- यह स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं और अस्पतालों को नियंत्रित करने वाले नियम बनाता है तथा उल्लंघन के लिये दंड निर्धारित करता है।
- अंग दाता और प्राप्तकर्त्ता:
- प्रत्यारोपण या तो मृत व्यक्तियों के अंगों से हो सकता है जो उनके रिश्तेदारों द्वारा दान किया गया हो या किसी जीवित व्यक्ति से हो सकता है जो प्राप्तकर्त्ता को पता हो।
- अधिकतर मामलों में, अधिनियम माता-पिता, भाई-बहन, बच्चों, पति-पत्नी, दादा-दादी और पोते-पोतियों जैसे करीबी रिश्तेदारों से जीवनयापन के लिये दान की अनुमति देता है।
- दूर के रिश्तेदारों और विदेशियों से दान:
- दूर के रिश्तेदारों, ससुराल वालों या लंबे समय के दोस्तों से परोपकारी दान को अतिरिक्त जाँच के बाद अनुमति दी जाती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई वित्तीय विनिमय न हो।
- भारतीयों या विदेशियों से जुड़े करीबी रिश्तेदारों से जीवित दान के साथ उनकी पहचान स्थापित करने वाले दस्तावेज़, परिवार और दाता-प्राप्तकर्त्ता संबंध साबित करने फोटोग्राफिक साक्ष्य की शामिल होने चाहिये।
- दानकर्त्ताओं और प्राप्तकर्त्ताओं का भी साक्षात्कार लिया जाता है।
- असंबद्ध व्यक्तियों से दान:
- असंबद्ध व्यक्तियों से दान के लिये प्राप्तकर्त्ता के साथ उनके दीर्घकालिक संबंध या मित्रता को साबित करने के लिये दस्तावेज़ों और फोटोग्राफिक साक्ष्य की आवश्यकता होती है।
- अवैध लेन-देन को रोकने के लिये एक बाहरी समिति द्वारा इनकी जाँच की जाती है।
- ज़ुर्माना एवं दण्ड:
- अंगों के लिये भुगतान की पेशकश करना या भुगतान के लिये उनकी आपूर्ति करना, ऐसी व्यवस्था शुरू करना, बातचीत करना या विज्ञापन करना, अंगों की आपूर्ति के लिये व्यक्तियों की तलाश करना और झूठे दस्तावेज़ तैयार करने में सहयोग करने पर 10 साल तक की जेल तथा 1 करोड़ रुपए तक का ज़ुर्माना हो सकता है।
- NOTTO का गठन:
- राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (National Organ and Tissue Transplant Organization- NOTTO) स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय, स्वास्थ्य तथा परिवार मंत्रालय के तहत स्थापित एक राष्ट्रीय स्तर का संगठन है।
- इसे मानव अंग प्रत्यारोपण (संशोधन) अधिनियम, 2011 के अनुसार अनिवार्य किया गया है।
- NOTTO का राष्ट्रीय नेटवर्क प्रभाग देश में अंगों और ऊतकों की खरीद तथा वितरण एवं अंगों व ऊतकों के दान और प्रत्यारोपण की रजिस्ट्री के लिये समन्वय तथा नेटवर्किंग की अखिल भारतीय गतिविधियों के लिये शीर्ष केंद्र के रूप में कार्य करेगा।
- राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (National Organ and Tissue Transplant Organization- NOTTO) स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय, स्वास्थ्य तथा परिवार मंत्रालय के तहत स्थापित एक राष्ट्रीय स्तर का संगठन है।
THOT नियम, 2014 क्या हैं?
- प्राधिकरण समिति:
- वर्ष 2014 के नियमों का नियम 7 प्राधिकरण समिति के गठन और उसके द्वारा की जाने वाली जाँच तथा मूल्यांकन की प्रकृति का प्रावधान करता है।
- नियम 7(3) में कहा गया है कि समिति को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि ऐसे मामलों में कोई वाणिज्यिक लेन-देन शामिल नहीं है जहाँ दाता और प्राप्तकर्त्ता करीबी संबंधी नहीं हैं।
- नियम 7(5) कहता है कि यदि प्राप्तकर्त्ता गंभीर स्थिति में है और एक सप्ताह के भीतर प्रत्यारोपण की आवश्यकता है, तो शीघ्र मूल्यांकन के लिये अस्पताल से संपर्क किया जा सकता है।
- जीवित दाता प्रत्यारोपण:
- जीवित दाता प्रत्यारोपण के लिये नियम 10 आवेदन प्रक्रिया का वर्णन करता है, जिसके लिये दाता और प्राप्तकर्त्ता द्वारा संयुक्त आवेदन की आवश्यकता होती है।
- नियम 21 के अनुसार समिति को आवेदकों का व्यक्तिगत रूप से साक्षात्कार करना होगा और दान देने के लिये उनकी पात्रता निर्धारित करनी होगी।
प्राधिकरण समिति क्या है?
- परिचय:
- प्राधिकरण समिति अंग प्रत्यारोपण प्रक्रियाओं की देखरेख और अनुमोदन करती है जिसमें दाताओं तथा प्राप्तकर्त्ताओं को शामिल किया जाता है जो करीबी संबंधी नहीं हैं।
- यह अनुमोदन महत्त्वपूर्ण है, खासकर उन मामलों में जहाँ स्नेह, लगाव या अन्य विशेष परिस्थितियों के कारण अंगों का दान किया जाता है, ताकि नैतिक अनुपालन सुनिश्चित किया जा सके और अवैध प्रथाओं को रोका जा सके।
- संघटन:
- अधिनियम, 1994 की धारा 9(4) कहती है, "प्राधिकरण समिति की संरचना ऐसी होगी जो केंद्र सरकार द्वारा समय-समय पर निर्धारित की जा सकती है"।
- राज्य सरकार और केंद्रशासित प्रदेश "एक या अधिक प्राधिकरण समिति का गठन करेंगे जिसमें ऐसे सदस्य होंगे जिन्हें राज्य सरकार तथा केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा नामित किया जा सकता है।"
- शक्तियाँ:
- धारा 9(5) के तहत, समिति से अपेक्षा की जाती है कि वह प्रत्यारोपण अनुमोदन के लिये आवेदनों की समीक्षा करते समय गहन जाँच करेगी।
- जाँच का एक महत्त्वपूर्ण पहलू दाता और प्राप्तकर्त्ता की प्रामाणिकता को सत्यापित करना है तथा यह सुनिश्चित करना है कि दान व्यावसायिक उद्देश्यों से प्रेरित नहीं है।
- संसद की भूमिका:
- अधिनियम की धारा 24 केंद्र को अधिनियम के विभिन्न उद्देश्यों को पूरा करने के लिये संसदीय अनुमोदन के अधीन नियम बनाने की अनुमति देती है।
- ये वे तरीके तथा शर्तों से संबंधित हो सकते हैं जिसके तहत कोई दाता मृत्यु पूर्व अपने अंगों को प्रतिरोपित करने की अनुमति दे सकता है।
- इसके अतिरिक्त इसमें मस्तिष्क को मृत घोषित करने की पुष्टि कैसे की जानी चाहिये अथवा दाता के शरीर से निकाले गए अंगों को संरक्षित करने के लिये क्या कदम उठाए जाने चाहिये इत्यादि जैसे विषय शामिल हो सकते हैं।
- अधिनियम की धारा 24 केंद्र को अधिनियम के विभिन्न उद्देश्यों को पूरा करने के लिये संसदीय अनुमोदन के अधीन नियम बनाने की अनुमति देती है।
उच्च न्यायालय ने क्या निर्णय लिया?
- प्राधिकरण समितियों का गठन:
- उक्त अधिनियम राज्य सरकारों/केंद्रशासित प्रदेशों को नामांकित सदस्यों से युक्त एक अथवा अधिक प्राधिकरण समितियाँ गठित करने का आदेश देता है।
- उच्च न्यायालय ने अंग प्रतिरोपण प्रोटोकॉल की अखंडता तथा प्रभावशीलता को बनाए रखने की आवश्यकता पर बल दिया।
- जीवित दाता प्रतिरोपण आवेदन हेतु समय-सीमा:
- उच्च न्यायालय के अनुसार जीवित दाता प्रतिरोपण आवेदनों को संसाधित करने की समय-सीमा आवेदन की तिधि से 10 दिनों से अधिक नहीं होनी चाहिये।
- अधिकतम 14 दिनों के भीतर न्यायालय द्वारा ग्राही/प्राप्तकर्त्ता तथा दाता की अधिवास स्थिति से संबंधित दस्तावेज़ों के सत्यापन का आदेश दिया जाता है।
- आवश्यक दस्तावेज़ पूरा करने के लिये दाता अथवा ग्राही को दिये गए किसी भी अवसर को नियमों के तहत निर्धारित समय-सीमा के भीतर सूचित किया जाना चाहिये।
- निर्धारित साक्षात्कार तथा पारिवारिक बैठकें:
- आवेदन प्राप्त होने के चार से छह सप्ताह के बाद साक्षात्कार दो सप्ताह के भीतर निर्धारित किया जाना चाहिये।
- साक्षात्कार तथा पारिवारिक बैठक का आयोजन समिति द्वारा किया जाएगा और साथ ही इस समय-सीमा के भीतर लिये गए निर्णय से अवगत कराना चाहिये।
- न्यायालय इस बात पर ज़ोर देती है कि पूरी प्रक्रिया की अवधि, आवेदन करने से लेकर निर्णय तक, आदर्श रूप से छह से आठ सप्ताह से अधिक नहीं होनी चाहिये।
- सरकार को अनुशंसाएँ:
- उच्च न्यायालय ने प्रासंगिक हितधारकों से परामर्श करने के बाद अंगदान आवेदनों पर विचार करने के सभी चरणों के लिये समय-सीमा निर्धारित करने को सुनिश्चित करते हुए स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के सचिव को निर्णय प्रस्तुत करने को कहा है।
विधिक दृष्टिकोण
भारत में मसूर उत्पादन
प्रिलिम्स के लिये:दलहन के बारे में, मसूर उत्पादक क्षेत्र, भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन महासंघ (NAFED), लघु कृषक कृषि व्यापार संघ (SFAC), राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM)-दालें, अनुसंधान और विविधता विकास में ICAR की भूमिका, प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (PM-AASHA) योजना। मेन्स के लिये:भारत में दलहन उत्पादन की स्थिति, भारत में दलहन उत्पादन को बढ़ावा देने हेतु सरकार द्वारा की गई पहल |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के अनुसार, अधिक क्षेत्रफल के कारण भारत वर्ष 2023-24 फसल वर्ष के दौरान मसूर (Lentil) का विश्व का सबसे बड़ा उत्पादक बनने के लिये तैयार है।
- अधिक क्षेत्रफल के कारण वर्ष 2023-24 रबी सीज़न में देश का मसूर उत्पादन 1.6 मिलियन टन के सर्वकालिक उच्च स्तर तक पहुँचने का अनुमान है।
- आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, फसल वर्ष 2022-23 में देश का मसूर उत्पादन 1.56 मिलियन टन रहा।
दलहन क्या हैं?
- परिचय:
- मसूर ‘फली (Legume) परिवार’ का एक झाड़ीदार वार्षिक शाकाहारी पौधा है।
- ये खाने योग्य फलियाँ हैं, जो अपने लेंस के आकार के, चपटे टुकड़ों वाले बीजों के लिये जानी जाती हैं।
- मसूर के पौधे आम तौर पर छोटे होते हैं और उनमें स्व-परागण वाले फूल लगते हैं।
- मसूर की दाल ऊर्जा, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, फाइबर, फास्फोरस, लौह, जस्ता, कैरोटीन, विटामिन और एंटीऑक्सीडेंट के उत्कृष्ट स्रोत हैं।
- जलवायु संबंधी स्थिति:
- मसूर मुख्यतः वर्षा आधारित फसल के रूप में उगाई जाती है।
- इसकी वानस्पतिक वृद्धि के समय ठंडे तापमान और परिपक्वता के समय गर्म तापमान की आवश्यकता होती है।
- मसूर की खेती रबी मौसम में की जाती है।
- मृदा प्रकार:
- मसूर की दलहन का उत्पादन विभिन्न प्रकार की मृदा में किया जा सकता है जिसमें रेत से लेकर चिकनी दुमट इत्यादि जैसी मृदाएँ शामिल हैं किंतु इसका सबसे अच्छा उत्पादन मध्यम उर्वरता वाली गहरी बलुई दुमट मृदा में होता है।
- 7 pH मान के आसपास की मृदा इसके लिये सबसे उपयुक्त मानी जाती है। बाढ़ अथवा जलभराव की स्थिति मसूर की फसल को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है।
- मसूर उत्पादक क्षेत्र:
- इसकी कृषि मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ तथा झारखंड में की जाती है।
- उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश का बुंदेलखंड क्षेत्र मसूर का कटोरा माना जाता है जो देश के कुल मसूर उत्पादन में लगभग 25% का योगदान देता है।
- खाद्य और कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization- FAO) के अनुसार वर्ष 2022 में विश्व के शीर्ष मसूर उत्पादक कनाडा, भारत, ऑस्ट्रेलिया, तुर्की तथा रूस थे।
- मसूर का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक होने के बावजूद भारत वर्तमान में भी अपनी घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये आयात, मुख्य रूप से ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, रूस, सिंगापुर और तुर्की पर निर्भर रहता है।
- इसकी कृषि मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ तथा झारखंड में की जाती है।
भारत में दलहन उत्पादन की स्थिति क्या है?
- भारत विश्व में दलहन का सबसे बड़ा उत्पादक (वैश्विक उत्पादन का 25%), उपभोक्ता (विश्व खपत का 27%) तथा आयातक (14%) है।
- खाद्यान्न के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र में दलहन की हिस्सेदारी लगभग 20% है तथा देश में कुल खाद्यान्न उत्पादन में इसका योगदान लगभग 7-10% है।
- चना सबसे प्रमुख दलहन है जिसकी कुल उत्पादन में हिस्सेदारी लगभग 40% है, इसके बाद तुअर/अरहर की हिस्सेदारी 15 से 20% तथा उड़द/ब्लैक मेटपे एवं मूंग दलहन की हिस्सेदारी लगभग 8-10% है।
- हालाँकि दलहन का उत्पादन खरीफ तथा रबी दोनों सीज़न में किया जाता है, रबी सीज़न में उत्पादित दलहन का कुल उत्पादन में 60% से अधिक का योगदान है।
- मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक शीर्ष पाँच दलहन उत्पादक राज्य हैं।
भारत में दलहन उत्पादन को बढ़ावा देने हेतु सरकार द्वारा कौन-सी पहलें की गई हैं?
- नीतिगत समर्थन: किसानों के लिये उचित मूल्य सुनिश्चित करने की नीति मुख्य रूप से राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन महासंघ (National Agricultural Cooperative Marketing Federation of India - NAFED) और हाल ही में लघु कृषि कृषक व्यापार संघ (Small Farmers Agri Consortium - SFAC) के माध्यम से किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Prices - MSP) प्रदान करके दालों की खरीद पर केंद्रित है।
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (National Food Security Mission -NFSM) - दलहनदालें।
- अनुसंधान और विविधता विकास में ICAR की भूमिका
- प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (PM-AASHA) योजना
UPSC,सिविल सेवा परीक्षा ,विगत वर्ष प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत में दालों के उत्पादन के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. दालों की कृषि के लाभों का उल्लेख कीजिये जिनके कारण संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 2016 को अंतर्राष्ट्रीय दलहन वर्ष घोषित किया गया था।(2017) |
शिमला विकास योजना 2041
प्रिलिम्स के लिये:नगर निगम, शिमला विकास योजना 2041, सतत् विकास, अमृत (कायाकल्प एवं शहरी परिवर्तन के लिये अटल मिशन), राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (NGT)। मेन्स के लिये:शिमला विकास योजना 2041, विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये सरकारी नीतियाँ तथा हस्तक्षेप एवं उनके डिज़ाइन और कार्यान्वयन से उत्पन्न मुद्दे। |
स्रोत:डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा शिमला विकास योजना 2041 को मंज़ूरी दी गई है, जिसका उद्देश्य हिमाचल प्रदेश के राजधानी शहर में निर्माण गतिविधियों को टिकाऊ बनाने के साथ विनियमित करना है।
शिमला विकास योजना 2041 क्या है?
- परिचय:
- शिमला योजना क्षेत्र 2041 के लिये विकास योजना का मसौदा फरवरी 2022 में प्रकाशित किया गया था।
- विकास योजना भारत सरकार की अमृत (कायाकल्प एवं शहरी परिवर्तन के लिये अटल मिशन),उप-योजना के अंर्तगत हिमाचल प्रदेश के नगर एवं ग्राम नियोजन विभाग द्वारा तैयार की गई है।
- योजना GIS (भौगोलिक सूचना प्रणाली) आधारित है। यह हिमाचल प्रदेश नगर एवं ग्राम नियोजन अधिनियम, 1977 के प्रावधानों के अंर्तगत शिमला नगर निगम तथा इसके आसपास के क्षेत्रों को कवर करता है।
- योजना में कहा गया है कि "नगर नियोजन NGT के दायरे में नहीं आता है"।
- विधिक लड़ाई की पृष्ठभूमि:
- योजना की प्रारंभिक मंज़ूरी पिछली राज्य सरकार द्वारा फरवरी 2022 में दी गई थी।
- राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (NGT) के अनुसार, योजना को असंवैधानिक घोषित करने के साथ वर्ष 2017 में लगाए गए पहले के निर्णयों का उल्लंघन माना गया था, जिसने हस्तक्षेप किया और मई 2022 में स्थगन आदेश जारी किये।
- NGT के वर्ष 2017 के निर्णय ने शिमला योजना क्षेत्र में दो मंज़िला तथा दो मंजिल से ऊपर की इमारतों के निर्माण पर रोक लगा दी थी।
- NGT ने पाया कि योजना ने प्रतिबंधित क्षेत्रों में अधिक मंज़िलों के साथ नए निर्माण की अनुमति देकर प्रतिबंध का उल्लंघन किया है। NGT ने राज्य में जारी रहने पर कानून, पर्यावरण तथा सार्वजनिक सुरक्षा में हानि की चेतावनी दी।
- NGT के वर्ष 2017 के निर्णय ने शिमला योजना क्षेत्र में दो मंज़िला तथा दो मंजिल से ऊपर की इमारतों के निर्माण पर रोक लगा दी थी।
- राज्य सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील की तथा मई 2023 में सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार को विकास योजना के मसौदे पर आपत्तियों का समाधान करने के साथ छह सप्ताह के भीतर अंतिम योजना जारी करने का निर्देश दिया।
क्या है सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय?
- शिमला विकास योजना 2041 को जनवरी 2024 में सर्वोच्च न्यायालय ने NGT के पहले के निर्णयों को पलटते हुए मंज़ूरी दे दी थी। न्यायालय ने तर्क दिया कि राज्य सरकार को विकास योजना का मसौदा तैयार करने के बारे में निर्देश देना उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है।
- न्यायालय ने उल्लेख किया कि NGT राज्य सरकार को योजना तैयार करने का आदेश नहीं दे सकती है, लेकिन योजना की गुणवत्ता के आधार पर जाँच कर सकती है।
- न्यायालय ने माना कि वर्ष 2041 की विकास योजना संतुलित एवं सतत् प्रतीत होती है, लेकिन इस बात पर ज़ोर दिया कि पक्ष अभी भी योजना के विशिष्ट पहलुओं को उनकी योग्यता के आधार पर चुनौती देने के लिये तैयार हैं।
राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (NGT) क्या है?
- यह पर्यावरण संरक्षण एवं वनों तथा अन्य प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से संबंधित मामलों के प्रभावी और शीघ्र निपटान के लिये राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण अधिनियम (2010) के अंर्तगत स्थापित एक विशेष निकाय है।
- NGT की स्थापना के साथ भारत, ऑस्ट्रेलिया तथा न्यूज़ीलैंड के बाद एक विशेष पर्यावरण न्यायाधिकरण स्थापित करने वाला दुनिया का तीसरा देश बन गया, साथ ही ऐसा करने वाला पहला विकासशील देश बन गया।
- सात निर्धारित कानून (अधिनियम की अनुसूची-I में सूचीबद्ध) जल अधिनियम 1974, जल उपकर अधिनियम 1977, वन संरक्षण अधिनियम 1980, वायु अधिनियम 1981, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986, सार्वजनिक दायित्व बीमा अधिनियम 1991 तथा जैवविविधता अधिनियम 2002 हैं। जिन्होंने विवाद के साथ NGT अधिनियम की विशेष भूमिका को जन्म दिया।
- NGT को आवेदन या अपील दायर करने के 6 महीने के भीतर अंतिम रूप से उसका निपटान करना अनिवार्य है।
- NGT की बैठक के पाँच स्थान हैं, नई दिल्ली बैठक का प्रमुख स्थान है और साथ ही भोपाल, पुणे, कोलकाता एवं चेन्नई अन्य चार स्थान हैं।
- न्यायाधिकरण का अध्यक्ष, जो प्रधान पीठ की अध्यक्षता करते हैं, के साथ ही न्यूनतम 10 न्यायिक सदस्य तथा अधिकतम 20 विशेषज्ञ सदस्य शामिल होते हैं।
- न्यायाधिकरण के निर्णय बाध्यकारी होते हैं। न्यायाधिकरण के पास अपने निर्णयों की समीक्षा करने की शक्तियाँ हैं। यदि ऐसा नहीं होता है तब 90 दिनों के भीतर निर्णय को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।
कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिये अटल मिशन (AMRUT) क्या है?
- प्रारंभ: जून 2015
- संबंधित मंत्रालय: आवास और शहरी मामलों का मंत्रालय (Ministry of Housing and Urban Affairs-MoHUA)
- उद्धेश्य:
- हर घर में पानी की सुनिश्चित आपूर्ति और सीवरेज कनेक्शन के साथ सभी की नल तक पहुँच को सुनिश्चित करना।
- मिशन का प्राथमिकता क्षेत्र सीवरेज के बाद जल आपूर्ति है।
- हरियाली और अच्छी तरह से बनाए हुए खुले स्थानों (जैसे– पार्क) का विकास करके शहरों की सुविधा का मूल्य बढ़ाना।
- सार्वजनिक परिवहन का कम उपयोग कर उसके बदले या गैर-मोटर चालित परिवहन (जैसे– पैदल और साइकिल चलाना) के लिये सुविधाओं का निर्माण करके प्रदूषण को कम करना।
- हर घर में पानी की सुनिश्चित आपूर्ति और सीवरेज कनेक्शन के साथ सभी की नल तक पहुँच को सुनिश्चित करना।
- घटक:
- क्षमता निर्माण, सुधार कार्यान्वयन, जल आपूर्ति, सीवरेज और सेप्टेज प्रबंधन, बरसाती पानी की निकासी, शहरी परिवहन तथा हरित स्थानों एवं पार्कों का विकास।
- सुधारों का उद्देश्य नागरिक सेवाओं की डिलीवरी में सुधार करना, डिलीवरी की लागत को कम करना, वित्तीय स्वास्थ्य में सुधार करना, संसाधनों को बढ़ाना और पारदर्शिता बढ़ाना है। इसमें स्ट्रीट लाइट के स्थान पर एलईडी लाइट लगाना भी शामिल है।
- क्षमता निर्माण, सुधार कार्यान्वयन, जल आपूर्ति, सीवरेज और सेप्टेज प्रबंधन, बरसाती पानी की निकासी, शहरी परिवहन तथा हरित स्थानों एवं पार्कों का विकास।
- राज्य वार्षिक कार्य योजना (SAAP):
- AMRUT ने MoHUA द्वारा वर्ष में एक बार SAAP की मंज़ूरी देकर परियोजनाओं की योजना और कार्यान्वयन में राज्यों को समान भागीदार बनाया है तथा राज्यों को अपने अंत में परियोजना मंज़ूरी देनी होती है, इसलिये सहकारी संघवाद का एहसास होता है।
- निरीक्षण:
- एक शीर्ष समिति (Apex Committee - AC), जिसकी अध्यक्षता सचिव, MoHUA करता है और जिसमें संबंधित मंत्रालयों तथा संगठनों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं, मिशन की निगरानी करती है।
UPSC,सिविल सेवा परीक्षा ,विगत वर्ष प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एन.जी.टी) किस प्रकार केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सी.पी.सी.बी) से भिन्न है? (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) |
वैश्विक आर्थिक संभावना रिपोर्ट: विश्व बैंक
प्रिलिम्स के लिये:विश्व बैंक (WB), सकल घरेलू उत्पाद (GDP), वैश्विक व्यापार, महामारी, ऋण मेन्स के लिये:विश्व बैंक की वैश्विक आर्थिक संभावना रिपोर्ट, भारतीय अर्थव्यवस्था और योजना, संसाधन जुटाने, संवृद्धि, विकास और रोज़गार से संबंधित मुद्दे |
स्रोत; डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व बैंक (World Bank- WB) ने अपनी वैश्विक आर्थिक संभावना रिपोर्ट (Global Economic Prospects Report) जारी की है जिसके अनुसार वर्ष 2024 के अंत तक वैश्विक अर्थव्यवस्था प्रभावित हो सकती है जो 30 वर्षों में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की सबसे धीमी गति से वृद्धि करने वाला अर्द्ध दशक सिद्ध हो सकता है।
रिपोर्ट से संबंधित प्रमुख बिंदु क्या हैं?
- 30 वर्षों में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि का सबसे धीमा अर्द्ध दशक:
- वर्ष 2024 में 2.4% की वृद्धि दर के साथ वैश्विक अर्थव्यवस्था में तीन दशकों में सबसे धीमी GDP वृद्धि का अनुभव होने का अनुमान है।
- विगत वर्ष की तुलना में बेहतर प्रदर्शन:
- अमेरिकी अर्थव्यवस्था के मज़बूत होने से वैश्विक मंदी का जोखिम कम हो गया है जिसके परिणामस्वरूप विगत वर्ष की तुलना में वैश्विक आर्थिक स्थिति बेहतर हुई है।
- किंतु बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव विश्व अर्थव्यवस्था के लिये आगामी भविष्य में चिंताएँ उत्पन्न कर सकते हैं।
- विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के मध्यम अवधि प्रदर्शन में गिरावट:
- वैश्विक अर्थव्यवस्था एक वर्ष पूर्व की तुलना में बेहतर स्थिति में है जबकि कई विकासशील अर्थव्यवस्थाओं का मध्यम अवधि का प्रदर्शन प्रभावित हुआ है। इसके कारकों में धीमी वृद्धि, वैश्विक व्यापार में कमी तथा प्रतिकूल वित्तीय स्थितियाँ शामिल हैं।
- वैश्विक व्यापार तथा उधार ग्रहण करने की लागत में चुनौतियाँ:
- वर्ष 2024 में वैश्विक व्यापार की वृद्धि महामारी से पूर्व दशक की औसत वृद्धि से लगभग आधी रहने का अनुमान है।
- विकासशील अर्थव्यवस्थाओं, विशेषकर कम क्रेडिट रेटिंग वाली अर्थव्यवस्थाओं के लिये उधार लेने की लागत अधिक रहने का अनुमान है।
- वैश्विक विकास:
- वैश्विक वृद्धि लगातार तीसरे वर्ष धीमी रहने का अनुमान है जिसके अनुसार वर्ष 2023 में 2.6% की तुलना में वर्ष 2024 में यह घटकर 2.4% हो जाएगी।
- विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में यह स्तर केवल 3.9% बढ़ने का अनुमान है इसमें विगत दशक के औसत से लगभग एक प्रतिशत से अधिक की कमी हुई है।
- निम्न आय वाले देशों में 5.5% की वृद्धि होने का अनुमान है जो शुरुआती पूर्वानुमान से कम है।
- सन्निकट विकास का अभाव तथा उच्च ऋण स्तर:
- विशेष रूप से विकासशील देशों में निकट अवधि में अल्प वृद्धि होने का अनुमान है जिससे ऋण का स्तर ऊँचा हो जाएगा तथा खाद्यान्न तक पहुँच सीमित हो जाएगी। इससे अनेक वैश्विक लक्ष्यों की प्रगति में बाधा उत्पन्न होगी।।
- सिफारिशें:
- मौजूदा दशक में अवसर व्यर्थ होने से बचने के लिये निवेश में तेज़ी लाने और राजकोषीय नीति ढाँचे को मज़बूत करने हेतु तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है।
- रिपोर्ट जलवायु परिवर्तन को संबोधित करने और 2030 तक अन्य प्रमुख वैश्विक विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये विकासशील देशों द्वारा प्रति वर्ष लगभग 2.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश में 'ज़बरदस्त' वृद्धि की सिफारिश करती है।
- विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को व्यापक नीति पैकेज लागू करने की आवश्यकता है, जिसमें राजकोषीय और मौद्रिक ढाँचे में सुधार, सीमा पार व्यापार तथा वित्तीय प्रवाह का विस्तार, निवेश माहौल में सुधार एवं संस्थागत गुणवत्ता को मज़बूत करना शामिल है।
विश्व बैंक क्या है?
- परिचय:
- इसे वर्ष 1944 में IMF के साथ मिलकर पुनर्निर्माण और विकास के लिये अंतर्राष्ट्रीय बैंक (IBRD) के रूप में स्थापित किया गया था। बाद में IBRD विश्व बैंक बन गया।
- विश्व बैंक समूह पाँच संस्थानों की एक अनूठी वैश्विक साझेदारी है जो विकासशील देशों में गरीबी को कम करने और साझा समृद्धि का निर्माण करने वाले स्थायी समाधानों के लिये कार्य कर रहा है।
- विश्व बैंक संयुक्त राष्ट्र की विशिष्ट एजेंसियों में से एक है।
- सदस्य:
- विशव के 189 देश इसके सदस्य हैं।
- भारत भी इसका सदस्य है।
- प्रमुख रिपोर्ट:
- पाँच विकास संस्थान:
- अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण एवं विकास बैंक (IBRD)
- अंतर्राष्ट्रीय विकास संघ (IDA)
- अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (IFC)
- बहुपक्षीय गारंटी एजेंसी (MIGA)
- निवेश विवादों के निपटान के लिये अंतर्राष्ट्रीय केंद्र (ICSID)
- भारत ICSID का सदस्य नहीं है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. कभी-कभी समाचारों में दिखने वाले 'आई.एफ.सी. मसाला बाॅण्ड (IFC Masala Bonds)' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2016)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c) प्रश्न : 'व्यापार करने की सुविधा के सूचकांक' में भारत की रैंकिंग समाचारों में कभी-कभी दिखती है। निम्नलिखित में से किसने इस रैंकिंग की घोषणा की है? (2016) (a) आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) उत्तर: (c) |
भारत मालदीव संबंध
प्रिलिम्स के लिये:भारत मालदीव संबंध, वज्रयान बौद्ध धर्म, नेबरहुड फर्स्ट, ऑपरेशन कैक्टस मेन्स के लिये:भारत और मालदीव के बीच पर्यटन से संबंधित वर्तमान चिंताएँ, भारत और मालदीव संबंधों के प्रमुख पहलू |
चर्चा में क्यों?
मालदीव ने हाल ही में खुद को राजनयिक उथल-पुथल के बीच पाया है, जिससे गैर-राजनयिक टिप्पणियों, सैन्य स्थिति और महत्त्वपूर्ण समझौतों को रद्द करने के माध्यम से भारत के साथ अपने संबंधों को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं।
- मालदीव ने भी चीन के साथ नए समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं, जिससे भू-राजनीतिक परिदृश्य और जटिल हो गया है।
भारत और मालदीव संबंधों से संबंधित प्रमुख बिंदु क्या हैं?
- ऐतिहासिक संबंध: जब अंग्रेजों ने द्वीपों का नियंत्रण छोड़ दिया था तब से भारत और मालदीव के बीच राजनयिक और राजनीतिक संबंध वर्ष 1965 से रहे हैं।
- वर्ष 2008 में लोकतांत्रिक परिवर्तन के बाद से, भारत ने मालदीव में राजनीतिक, सैन्य, व्यापार और नागरिक समाज के लोगों सहित विभिन्न हितधारकों के साथ गहरे संबंध बनाने में वर्षों का निवेश किया है।
- भारत के लिये मालदीव का महत्त्व:
- सामरिक स्थान: भारत के दक्षिण में स्थित, मालदीव हिंद महासागर में अत्यधिक रणनीतिक महत्त्व रखता है, जो अरब सागर और उससे आगे के प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है।
- इससे भारत को समुद्री यातायात की निगरानी करने और क्षेत्रीय सुरक्षा बढ़ाने की अनुमति मिलती है।
- सांस्कृतिक संबंध: भारत और मालदीव के बीच सदियों पुराना गहरा सांस्कृतिक तथा ऐतिहासिक संबंध है।
- 12वीं शताब्दी के पूर्वार्ध तक, बौद्ध धर्म मालदीव में प्रमुख धर्म था।
- वज्रयान बौद्ध धर्म का एक शिलालेख है, जो प्राचीन काल में मालदीव में मौजूद था।
- 12वीं शताब्दी के पूर्वार्ध तक, बौद्ध धर्म मालदीव में प्रमुख धर्म था।
- क्षेत्रीय स्थायित्व: एक स्थिर और समृद्ध मालदीव हिंद महासागर क्षेत्र में शांति तथा सुरक्षा को बढ़ावा देने वाली भारत की "नेबरहुड फर्स्ट" नीति के अनुरूप है।
- सामरिक स्थान: भारत के दक्षिण में स्थित, मालदीव हिंद महासागर में अत्यधिक रणनीतिक महत्त्व रखता है, जो अरब सागर और उससे आगे के प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है।
- मालदीव के लिए भारत का महत्त्व:
- आवश्यक आपूर्ति: भारत चावल, मसालों, फलों, सब्ज़ियों और दवाओं सहित रोज़मर्रा की आवश्यक वस्तुओं का एक महत्त्वपूर्ण आपूर्तिकर्त्ता है।
- भारत सीमेंट और रॉक बोल्डर जैसी सामग्री प्रदान करके मालदीव के बुनियादी ढाँचे के निर्माण में भी सहायता करता है।
- शिक्षा: भारत मालदीव के उन छात्रों के लिये प्राथमिक शिक्षा प्रदाता के रूप में कार्य करता है जो भारतीय संस्थानों में उच्च शिक्षा प्राप्त करते हैं, जिसमें योग्य छात्रों के लिये छात्रवृत्ति भी शामिल है।
- आपदा सहायता: जब भी कोई संकट आया, जैसे– सुनामी या पेयजल की कमी, भारत ने लगातार सहायता प्रदान की है।
- कोविड-19 महामारी के दौरान आवश्यक वस्तुओं एवं समर्थन का प्रावधान एक विश्वसनीय भागीदार के रूप में भारत की भूमिका को प्रदर्शित करता है।
- सुरक्षा प्रदाता: भारत का सुरक्षा सहायता प्रदान करने में ऑपरेशन कैक्टस के माध्यम से वर्ष 1988 में तख्तापलट के प्रयास के दौरान हस्तक्षेप करने तथा मालदीव की सुरक्षा के लिये संयुक्त नौसैनिक अभ्यास आयोजित करने का इतिहास रहा है।
- संयुक्त अभ्यासों में शामिल हैं- "एकुवेरिन", "दोस्ती" एवं "एकथा"।
- मालदीव में पर्यटन: कोविड-19 महामारी के बाद से, भारतीय यात्रियों ने मालदीव के मुख्य स्रोत बाज़ार में अग्रणी भूमिका निभाई है। वर्ष 2023 में कुल 18.42 लाख यात्राओं के साथ, उन्होंने सभी पर्यटकों का उल्लेखनीय 11.2% प्रतिनिधित्व किया।
- आवश्यक आपूर्ति: भारत चावल, मसालों, फलों, सब्ज़ियों और दवाओं सहित रोज़मर्रा की आवश्यक वस्तुओं का एक महत्त्वपूर्ण आपूर्तिकर्त्ता है।
नोट: 8 डिग्री चैनल भारतीय मिनिकॉय (लक्षद्वीप द्वीप समूह का हिस्सा) को मालदीव से अलग करता है।
भारत मालदीव संबंधों से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- इंडिया-आउट अभियान: हाल के वर्षों में मालदीव की राजनीति में "इंडिया आउट" मंच पर केंद्रित एक अभियान देखा गया है, जिसमें भारतीय उपस्थिति को मालदीव की संप्रभुता के लिये खतरा बताया गया है।
- अभियान के प्रमुख बिंदुओं में भारतीय सैन्य कर्मियों की वापसी की मांग शामिल है।
- मालदीव के वर्तमान राष्ट्रपति ने भारतीय सैनिकों की वापसी के लिये 15 मार्च, 2024 की समय-सीमा निर्धारित की है।
- पर्यटन दबाव: लक्षद्वीप द्वीप की प्रचार यात्रा के बाद भारत के प्रधानमंत्री पर की गई अपमानजनक टिप्पणियों से उत्पन्न राजनयिक विवाद के कारण लक्षद्वीप का पर्यटन उद्योग गहन जाँच के दायरे में आ गया है।
- परिणामस्वरूप, विवाद की प्रतिक्रिया के रूप में सोशल मीडिया पर मालदीव के बहिष्कार का चलन चल रहा है।
- मालदीव में चीन का बढ़ता प्रभाव: मालदीव में चीनी लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। मालदीव के रणनीतिक महत्त्व, भारत से निकटता एवं महत्त्वपूर्ण समुद्री मार्गों के कारण चीन मालदीव के साथ अग्रगामी जुड़ाव में अधिक रुचि ले सकता है।
- भारत इसे लेकर असहज है और साथ ही इससे क्षेत्र में भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्द्धा छिड़ सकती है।
चीन-मालदीव के बीच हुए हालिया समझौतों के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?
- द्विपक्षीय संबंधों में बेहतरी:
- चीन और मालदीव ने अपने देशों के संबंधों को व्यापक रणनीतिक सहकारी साझेदारी तक विस्तारित करने की घोषणा की जो उनके संबंधों में बढ़ती भागीदारी को प्रदर्शित करता है।
- प्रमुख समझौते:
- बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव: इसका उद्देश्य राष्ट्रों द्वारा संयुक्त रूप से बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव पर सहयोग योजना के निर्माण में तेज़ी लाने हेतु प्रेरित करना है जिससे कनेक्टिविटी तथा बुनियादी ढाँचे के विकास को बढ़ावा मिलेगा।
- पर्यटन सहयोग: दोनों देशों ने मालदीव की अर्थव्यवस्था के लिये इसके महत्त्व को पहचानते हुए पर्यटन क्षेत्र में सहयोग को बढ़ावा देने का संकल्प लिया।
- आपदा जोखिम न्यूनीकरण: इस समझौतों के तहत आपदा जोखिम न्यूनीकरण में सहयोग करना शामिल है जिसमें प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव को कम करने के लिये संयुक्त प्रयासों पर ज़ोर दिया गया है।
- नीली अर्थव्यवस्था: दोनों देशों ने समुद्री संसाधनों के सतत् उपयोग पर ध्यान केंद्रित करते हुए नीली अर्थव्यवस्था में सहयोग को आगे बढ़ाने के लिये अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की।
- डिजिटल अर्थव्यवस्था: इसके तहत डिजिटल अर्थव्यवस्था में निवेश को सुदृढ़ करने के प्रयासों को रेखांकित किया गया।
- आर्थिक सहायता:
- चीन ने अनुदान सहायता प्रदान करके मालदीव की सहायता की, हालाँकि प्रदान की गई विशिष्ट निधि का खुलासा नहीं किया गया।
- ये समझौते चीन-मालदीव व्यापार के महत्त्व पर भी प्रकाश डालते हैं। वर्ष 2022 में द्विपक्षीय व्यापार कुल 451.29 मिलियन अमेरिकी डॉलर था।
- चीन ने अनुदान सहायता प्रदान करके मालदीव की सहायता की, हालाँकि प्रदान की गई विशिष्ट निधि का खुलासा नहीं किया गया।
निष्कर्ष
मालदीव सरकार द्वारा संबद्ध मंत्रियों को निलंबित करके त्वरित कार्रवाई करना संकट का समाधान करने के प्रयास को दर्शाता है। अतः दोनों देशों को विश्वास बहाल करने हेतु नियमित राजनयिक वार्ता करनी चाहिये। साझा मुद्दों पर सहयोग करना, शिकायतों का समाधान करना एवं लंबे समय से चले आ रहे संबंधों पर बल देना जिससे दोनों देश लाभान्वित हुए हैं जो राजनयिक समाधान का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्नमेन्स: प्रश्न. पिछले दो वर्षों में मालदीव में राजनीतिक विकास पर चर्चा कीजिये। क्या वे भारत के लिये चिंता का कोई कारण हो सकते हैं? (2013) |