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सामाजिक न्याय

भारत में अंगदान

  • 09 Aug 2023
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये:

मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम-1994, राष्ट्रीय अंग प्रत्यारोपण दिशा-निर्देशों, अंगदान

मेन्स के लिये:

अंगदान को बढ़ावा देने की आवश्यकता

चर्चा में क्यों?

  • भारत में वर्तमान में अंग दाताओं विशेष रूप से मृत दाताओं की भारी कमी के कारण गंभीर स्थिति है, जहाँ हज़ारों रोगी प्रत्यारोपण के इंतज़ार में हैं, वहीं इनमें से काफी लोगों की प्रतिदिन मृत्यु हो जाती है।
    • स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने पहले राष्ट्रीय अंग प्रत्यारोपण दिशा-निर्देशों को संशोधित किया है, जिससे 65 वर्ष से अधिक आयु के लोगों को मृत दाताओं से प्रत्यारोपण के लिये अंग प्राप्त करने की अनुमति मिल गई है।
    • भारत में मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994 मानव अंगों को हटाने एवं उनके भंडारण के लिये विभिन्न नियम प्रदान करता है। यह चिकित्सीय प्रयोजनों के साथ ही मानव अंगों के व्यावसायिक लेन-देन की रोकथाम के लिये मानव अंगों के प्रत्यारोपण को भी नियंत्रित करता है।

भारत में अंगदान की स्थिति:

  • बढ़ती मांग के साथ निरंतर कमी:
    • भारत में 300,000 से अधिक रोगी अंगदान की प्रतीक्षा सूची में हैं।
    • अंग दाताओं की संख्या अंगदान की बढ़ती मांग के अनुरूप नहीं है।
    • इस कमी के कारण अंग प्रत्यारोपण की प्रतीक्षा में प्रतिदिन लगभग 20 व्यक्तियों की मृत्यु हो जाती है।
  • अंग दाताओं की संख्या में धीमी वृद्धि:
    • पिछले कुछ वर्षों में जीवित तथा मृत दोनों दाताओं की संख्या में धीमी वृद्धि देखी गई है।
    • दाताओं की संख्या वर्ष 2014 के 6,916 से बढ़कर वर्ष 2022 में लगभग 16,041 हो गई, जो मामूली वृद्धि का संकेत प्रदर्शित करती है।
    • भारत में मृतक अंगदान की दर एक दशक से लगातार प्रति दस लाख आबादी पर एक दाता से नीचे बनी हुई है।
  • मृतक अंगदान दर:
    • इस कमी को दूर करने के लिये मृतक अंगदान दर को बढ़ाने हेतु तत्काल प्रयास किये जाने की आवश्यकता है।
    • स्पेन और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों ने प्रति दस लाख आबादी पर 30 से 50 अंगदान दाताओं तक की उच्च अंगदान दर हासिल की है।
  • जीवित दाताओं की व्यापकता:
    • भारत में सभी अंगदान दाताओं में से 85% जीवित अंगदान दाताओं का बहुमत है।
      • हालाँकि मृतकों के अंग दान, विशेषकर किडनी, लीवर और हृदय के लिये अंगदान दाता काफी कम हैं।
  • क्षेत्रीय असमानताएँ:
    • भारत के विभिन्न राज्यों में अंगदान दरों में असमानताएँ मौजूद हैं।
      • तेलंगाना, तमिलनाडु, कर्नाटक, गुजरात और महाराष्ट्र में मृत अंग दाताओं की संख्या सबसे अधिक है।
      • दिल्ली-NCR, तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल ऐसे प्रमुख क्षेत्र हैं जहाँ बड़ी संख्या में जीवित अंगदान दाता हैं।
  • किडनी प्रत्यारोपण:
    • भारत में किडनी प्रत्यारोपण के मामले में मांग और आपूर्ति के बीच अत्यधिक असमानता है।
    • किडनी प्रत्यारोपण की वार्षिक 200,000 की मांग की तुलना में प्रतिवर्ष केवल 10,000 किडनी प्रत्यारोपण किया जाता है जो कि एक बड़ा अंतर है।

अंगदान के संबंध में चुनौतियाँ:

  • जागरूकता और शिक्षा का अभाव:
    • अंगदान और इसके प्रभाव के बारे में आम जनता के बीच कम जागरूकता।
    • संभावित दाताओं की पहचान करने और परिवारों को प्रभावी ढंग से परामर्श देने के लिये चिकित्सा पेशेवरों के बीच अपर्याप्त शिक्षा।
  • पारिवारिक सहमति और निर्णय लेना:
    • परिवार अंगदान के लिये सहमति देने के अनिच्छुक होते हैं, भले ही मृत व्यक्ति ने अंगदान करने की इच्छा व्यक्त की हो।
    • अंगदान के बारे में निर्णय लेते समय परिवारों को भावनात्मक और नैतिक दुविधाओं का सामना करना पड़ता है।
  • अंगों की तस्करी और कालाबाज़री:
    • अवैध अंग तस्करी और अंगों की कालाबाज़ारी।
    • अंगों की मांग का शोषण करने वाली आपराधिक गतिविधियाँ वैध अंगदान प्रक्रियाओं को कमज़ोर करती हैं।
  • चिकित्सा पात्रता एवं अनुकूलता:
    • चिकित्सा अनुकूलता और अंग उपलब्धता के आधार पर उपयुक्त दाताओं और प्राप्तकर्त्ताओं को सुमेलित करना।
    • संगत अंगों की सीमित उपलब्धता, जिससे रोगियों को दीर्घावधि तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है।
  • दाता प्रोत्साहन और मुआवज़ा:
    • अंग दाताओं को वित्तीय प्रोत्साहन या मुआवज़ा देने के नैतिक निहितार्थ पर बहस।
    • नैतिक प्रथाओं को सुनिश्चित करने के साथ अंगदान दरों में वृद्धि की आवश्यकता को संतुलित करना।
  • अवसंरचना और संचालन:
    • अंग पुनर्प्राप्ति, संरक्षण और प्रत्यारोपण के लिये अपर्याप्त अवसंरचना और संसाधन।
    • दाताओं से प्राप्तकर्त्ताओं तक विशेषकर विभिन्न क्षेत्रों में अंगों के समय पर परिवहन में चुनौतियाँ।

नए राष्ट्रीय अंग प्रत्यारोपण दिशा-निर्देशों की मुख्य विशेषताएँ:

  • आयु सीमा समाप्त करना:
    • जीवन प्रत्याशा में सुधार के कारण अंग प्राप्तकर्त्ताओं के लिये आयु सीमा समाप्त कर दी गई।
    • राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (National Organ and Tissue Transplant Organization- NOTTO) के दिशा-निर्देशों ने पहले 65 वर्ष से अधिक आयु वाले रोगियों को अंग प्रत्यारोपण के लिये पंजीकरण करने से रोक दिया था।
  • अधिवास की आवश्यकता न होना:
    • अंग प्राप्तकर्त्ता पंजीकरण के लिये अधिवास की आवश्यकता को समाप्त कर दिया गया।
    • 'एक राष्ट्र, एक नीति (One Nation, One Policy)' दृष्टिकोण रोगियों को किसी भी राज्य में अंग प्रत्यारोपण के लिये पंजीकरण करने की अनुमति देता है।
  • कोई पंजीकरण शुल्क न होना:
    • अंग प्राप्तकर्त्ता के पंजीकरण के लिये पंजीकरण शुल्क समाप्त कर दिया।
    • गुजरात, तेलंगाना, महाराष्ट्र और केरल राज्य अब रोगी पंजीकरण के लिये शुल्क नहीं लेते हैं।

नोट:

  • NOTTO की स्थापना नई दिल्ली में स्थित स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (Ministry of Health and Family Welfare) के स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय (Directorate General of Health Services) के तहत की गई है।
  • NOTTO का राष्ट्रीय नेटवर्क प्रभाग भारत में अंगों और ऊतकों के दान तथा प्रत्यारोपण हेतु खरीद, वितरण एवं रजिस्ट्री आदि गतिविधियों के लिये शीर्ष केंद्र के रूप में कार्य करता है।

आगे की राह

  • अंगदान के महत्त्व को उजागर करने वाले प्रभावशाली अभियानों के लिये कलाकारों, प्रभावशाली लोगों और मशहूर हस्तियों के साथ साझेदारी करना।
  • चिकित्सा पेशेवरों के लिये सेमिनार आयोजित करना, दाता की पहचान और परिवार परामर्श के लिये इंटरैक्टिव सिमुलेशन एवं केस स्टडीज़ का उपयोग करना।
  • कार्यशालाओं और वार्ताओं के माध्यम से अंगदान के बारे में छात्रों के बीच जागरूकता बढ़ाने के लिये शैक्षणिक संस्थानों के साथ सहयोग करना।
  • समुदाय-संचालित उन कार्यक्रमों (Community-Driven Events) की मेज़बानी करना जो अंग प्राप्तकर्त्ताओं और दाताओं की सफलता की कहानियों को प्रदर्शित करते हैं।
  • अंगदान के बारे में मिथकों और गलत धारणाओं को दूर करने तथा इसके सकारात्मक पक्ष पर ज़ोर देने के लिये धार्मिक नेताओं को शामिल करना।
  • पट्टिकाओं और प्रमाणपत्रों के माध्यम से उनके निस्वार्थ योगदान को मान्यता देते हुए अंगदान दाताओं तथा उनके परिवारों को सम्मानित करने के लिये कार्यक्रम शुरू करना।
  • कुशल परिणामों के लिये अंग प्रत्यारोपण प्रक्रियाओं को अनुकूलित करने हेतु स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना।
  • करुणा और सहानुभूति के साथ निस्वार्थ कार्य के रूप में अंगदान के विचार को बढ़ावा देना।स्रोत:

स्रोत: द हिंदू

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