डेली न्यूज़ (14 Dec, 2021)



बुक्सा टाइगर रिज़र्व: पश्चिम बंगाल

प्रिलिम्स के लिये:

बुक्सा टाइगर रिज़र्व, टाइगर कॉरिडोर, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA), राष्ट्रीय उद्यान, पश्चिम बंगाल के अन्य संरक्षित क्षेत्र

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA), बाघ संरक्षण परियोजनाएँ, बाघ संरक्षण से संबंधित प्रमुख संवैधानिक प्रावधान


चर्चा में क्यों?

हाल ही में बुक्सा टाइगर रिज़र्व में 23 वर्षों में पहली बार एक रॉयल बंगाल टाइगर देखा गया।

  • ऐतिहासिक रूप से बाघ बुक्सा टाइगर रिज़र्व की दक्षिणतम सीमा सहित पूरे रिज़र्व में पाए जाते हैं। हालाँकि वर्तमान में बुक्सा टाइगर रिज़र्व में बाघों का घनत्त्व कम है।

प्रमुख बिंदु:

  • बुक्सा टाइगर रिज़र्व:

    • बुक्सा टाइगर रिज़र्व पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी ज़िले के अलीपुरद्वार उप-मंडल में स्थित है। इसे वर्ष 1983 में भारत के 15वें टाइगर रिज़र्व के रूप में स्थापित किया गया था।
      • इसे जनवरी 1992 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था।
    • बुक्सा टाइगर रिज़र्व की उत्तरी सीमा भूटान की अंतर्राष्ट्रीय सीमा के साथ लगती है। सिंचुला पहाड़ी शृंखला बुक्सा राष्ट्रीय उद्यान के उत्तरी किनारे पर स्थित है तथा पूर्वी सीमा असम राज्य को स्पर्श करती है।
    • टाइगर रिज़र्व में बहने वाली मुख्य नदियाँ- संकोश, रैदक, जयंती, चुर्निया, तुरतुरी, फशखवा, दीमा और नोनानी हैं।
  • टाइगर कॉरिडोर:

    • बुक्सा टाइगर रिज़र्व की कॉरिडोर कनेक्टिविटी की सीमाएँ उत्तर में भूटान के जंगलों को, पूर्व में कोचुगाँव के जंगलों और मानस टाइगर रिज़र्व तथा पश्चिम में जलदापारा राष्ट्रीय उद्यान को स्पर्श करती है। महत्त्वपूर्ण कॉरिडोर लिंक निम्नलिखित हैं:
      • बुक्सा-टीटी (टोरसा के माध्यम से): यह बुक्सा टाइगर रिज़र्व के रंगमती रिज़र्व वन क्षेत्र को टिटी रिज़र्व फॉरेस्ट से जोड़ता है।
      • बुक्सा-टिटी (बीच और भरनाबाड़ी टी एस्टेट के माध्यम से): यह भरनाबाड़ी टी एस्टेट और ‘बीच टी एस्टेट’ से गुजरते हुए ‘दलसिंगपारा टी एस्टेट’ के दक्षिण में स्थित बुक्सा-टाइगर रिज़र्व के भरनाबाड़ी रिज़र्व फॉरेस्ट और टिटी रिज़र्व फॉरेस्ट को जोड़ता है।
      • निमाती-चिलपटा (बुक्सा-चिलपटा): यह बुक्सा टाइगर रिज़र्व की निमाती रेंज और चिलपटा रिज़र्व फॉरेस्ट के बीच हाथियों की आवाजाही को सुगम बनाता है, जिससे बुक्सा टाइगर रिज़र्व और जलदापारा वन्यजीव अभयारण्य (पश्चिम बंगाल) के बीच हाथियों की आवाजाही सुलभ हो सके।
      • संकोश (संकोश) में बुक्सा-रिपू: यह गलियारा एक सन्निहित जंगल है जो पश्चिम बंगाल के बुक्सा टाइगर रिज़र्व को कोचुगाँव वन प्रभाग, असम के रिपु रिज़र्व फॉरेस्ट से जोड़ता है।
    • उल्लिखित गलियारे उत्तर-पूर्व और ब्रह्मपुत्र घाटी बाघ परिदृश्य का हिस्सा हैं, जो विभिन्न संरक्षित क्षेत्रों जैसे बुक्सा, मानस टाइगर रिज़र्व (असम), भूटान में फिप्सू वन्यजीव अभयारण्य और जलदापारा राष्ट्रीय उद्यान में बाघों की उपस्थिति से संबंधित महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं।
  • वनस्पति:

    • मोटे तौर पर रिज़र्व के वनों को 'आर्द्र उष्णकटिबंधीय वन' के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।
  • जंतु वर्ग:

    • रिज़र्व में पाई जाने वाली कुछ महत्त्वपूर्ण प्रजातियाँ हैं- इंडियन टाइगर (पैंथेरा टाइग्रिस टाइग्रिस), लेपर्ड (पैंथेरा पार्डस), क्लाउडेड लेपर्ड (नियोफेलिस नेबुलोसा), हॉग बेजर (आर्कटोनिक्स कोलारिस), जंगल कैट (फेलिस चौस) आदि।
  • पश्चिम बंगाल में अन्य संरक्षित क्षेत्र:

    • गोरुमारा राष्ट्रीय उद्यान
    • सुंदरवन राष्ट्रीय उद्यान
    • नेओरा वैली राष्ट्रीय उद्यान
    • सिंगलीला राष्ट्रीय उद्यान
    • जलदापारा राष्ट्रीय उद्यान

बाघ

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


व्यक्तियों की तस्करी (रोकथाम, देखभाल और पुनर्वास) विधेयक, 2021

प्रिलिम्स के लिये:

संसद, संयुक्त राष्ट्र

मेन्स के लिये:

व्यक्तियों की तस्करी (रोकथाम, देखभाल और पुनर्वास) विधेयक, 2021 के प्रमुख प्रावधान एवं इसका महत्त्व

चर्चा में क्यों?

इंडियन लीडरशिप फोरम अगेंस्ट ट्रैफिकिंग' (ILFAT) ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को व्यक्तियों की तस्करी (रोकथाम, देखभाल और पुनर्वास) मसौदा विधेयक 2021 की कमियों की पहचान संबंधी पत्र लिखा है, जिसे संसद के शीतकालीन सत्र में प्रस्तावित किये जानेकी उम्मीद है।

प्रमुख बिंदु

  • विधेयक से संबंधित मुद्दें:

    • विधेयक पीड़ितों को पुनर्वास की सुविधा प्रदान करता है, जबकि यह आश्रय गृहों (Shelter Homes) से परे राहत का विस्तार नहीं करता है।
      • एक समुदाय आधारित पुनर्वास मॉडल की मांग है जो स्वास्थ्य सेवाएंँ, कानूनी सहायता, कल्याणकारी योजनाओं तक पहुंँच और आय के अवसर प्रदान करता है जो "पीड़ितों का उनके समुदाय तथा परिवार में फिर से एकीकरण" सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण है।
    • संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञों के अनुसार, यह विधेयक अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों के अनुरूप नहीं था।
    • यह विधेयक सेक्स वर्क और प्रवासन को तस्करी की तरह ही उल्लिखित करता है लेकिन इनकी स्थितियाँ कुछ अलग होती है।
    • अवैध व्यापार को मानव अधिकार के पूरक के बजाय आपराधिक कानून के नजरिए से संबोधित करने तथा पीड़ित केंद्रित दृष्टिकोण के लिये विधेयक की आलोचना की गई थी।
    • पुलिस द्वारा "बचाव के नाम पर छापे मारने को बढ़ावा देने के साथ-साथ पुनर्वास के नाम पर पीड़ितों के संस्थागतकरण के लिये भी इसकी आलोचना की गई थी।
    • विधेयक में बताया गया था कि कुछ अस्पष्ट प्रावधानों से उन गतिविधियों का व्यापक अपराधीकरण हो जाएगा जो अनिवार्य रूप से तस्करी से संबंधित नहीं हैं।
  • नए विधेयक में प्रावधान:

    • इसका विस्तार देश के भीतर और साथ ही भारत के बाहर निवास करने वाले सभी नागरिकों तक है।
      • भारत में पंजीकृत किसी भी जहाज़ या विमान पर व्यक्ति, चाहे वह कहीं भी हो या भारतीय नागरिकों को कहीं भी ले जा रहा हो,
      • एक विदेशी नागरिक या एक राज्य विहीन व्यक्ति जिसका इस अधिनियम के तहत अपराध किये जाने के समय भारत में उसका निवास स्थान हो और
      • यह कानून सीमा-पार प्रभाव वाले व्यक्तियों की तस्करी के प्रत्येक अपराध पर लागू होगा।
      • यह विधेयक सीमा पार प्रभाव के साथ व्यक्तियों की तस्करी के प्रत्येक अपराध पर कानून लागू होगा।
    • विधेयक में शामिल पीड़ित:
      • यह पीड़ितों के रूप में महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा से आगे बढ़कर अब ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को भी शामिल करता है जो तस्करी का शिकार हो सकते हैं।
      • यह पीड़ित के रूप में परिभाषित करने के लिये पीड़ित को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने की आवश्यकता जैसे प्रावधान को भी समाप्त करता है।
    • 'शोषण' को परिभाषित करता है:
      • वेश्यावृत्ति शोषण या अश्लील साहित्य सहित यौन शोषण के अन्य रूप, शारीरिक शोषण से संबंधित कोई भी कार्य, जबरन श्रम या सेवाएँ, दासता या दासता के समान व्यवहार, जबरन अंग प्रत्यावर्तन, अवैध नैदानिक ​​​​दवा परीक्षण या अवैध जैव-चिकित्सा अनुसंधान आदि को भी शामिल करता है।
    • अपराधी के रूप में सरकारी अधिकारी:
      • अपराधी के रूप में सरकारी अपराधियों में रक्षाकर्मी, सरकारी कर्मचारी, डॉक्टर और पैरामेडिकल स्टाफ या प्राधिकार की स्थिति में कोई भी शामिल होगा।
    • दंड/जुर्माना:
      • तस्करी के अधिकतर मामलों में कम-से-कम सात वर्ष की सज़ा का प्रावधान है जिसे 10 वर्षों तक की कैद और 5 लाख रुपए के जुर्माने तक बढ़ाया जा सकता है।
      • एक से अधिक बच्चों की तस्करी के मामले में वर्तमान में आजीवन कारावास की सज़ा का प्रावधान है।
    • धन शोधन अधिनियम से समानता:
      • इस तरह की आय के माध्यम से खरीदी गई संपत्ति के साथ-साथ तस्करी के लिये उपयोग की जाने वाली संपत्ति को अब धन शोधन अधिनियम के समान प्रावधानों के साथ ज़ब्त किया जा सकता है।
    • जाँच एजेंसी:
      • राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (National Investigation Agency- NIA) मानव तस्करी की रोकथाम और उससे निपटने हेतु उत्तरदायी राष्ट्रीय जाँच तथा समन्वय एजेंसी के रूप में कार्य करेगी।
    • राष्ट्रीय मानव तस्करी विरोधी समिति:
      • एक बार कानून बन जाने के बाद केंद्र इस कानून के प्रावधानों के समग्र प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये एक राष्ट्रीय मानव तस्करी विरोधी समिति को अधिसूचित और स्थापित करेगा।
      • इस समिति में विभिन्न मंत्रालयों का प्रतिनिधित्त्व होगा, जिसमें गृह सचिव अध्यक्ष और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के सचिव सह-अध्यक्ष के रूप में होंगे।
      • राज्य एवं ज़िला स्तर पर मानव तस्करी-रोधी समितियों का भी गठन किया जाएगा।
  • महत्त्व:

    • विधेयक ट्रांसजेंडर समुदाय (Transgender Community) और किसी भी अन्य व्यक्ति को शामिल करता है जो स्वचालित रूप से अंगों की अवैध विक्री जैसी गतिविधियों को अपने दायरे में लाएगा।
    • साथ ही ज़बरन मज़दूरी जैसे मामले, जिसमें लोग नौकरी के लालच में दूसरे देशों में चले जाते हैं, जहांँ उनके पासपोर्ट और दस्तावेज़ छीनकर उन्हें काम पर लगाया जाता है, भी इस नए कानून के दायरे में आएँगे।

भारत में मानव तस्करी की स्थिति

  • डेटा विश्लेषण:

    • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2019 में देश में कुल 6,616, वर्ष 2018 में 5,788 और वर्ष 2017 में 5,900 मामले दर्ज किये गए।
    • दुनिया भर में मानव तस्करी के शिकार लोगों में लगभग एक-तिहाई बच्चे हैं, भारत में बच्चों के लिये यह स्थिति अधिक चिंताजनक है।
      • NCRB 2018 के आँकड़ों के अनुसार, सभी तस्करी पीड़ितों में से 51% बच्चे थे, जिनमें से 80% से अधिक लड़कियाँ थीं।
      • हाल ही में भारत में कोविड-19 महामारी के कारण अनाथ बच्चों को गोद लेने, रोज़गार या आजीविका और आश्रय की आड़ में तस्करी के बढ़ते जोखिम के मामले प्रकाश में आये हैं।
  • भारत में मानव तस्करी को प्रतिबंधित करने वाले कानून:

    • भारत के संविधान में अनुच्छेद 23 (1) मानव तस्करी और जबरन श्रम पर रोक लगाता है।
    • अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम, 1956 (ITPA) व्यावसायिक यौन शोषण के लिये तस्करी को दंडित करता है।
    • भारत बंधुआ श्रम प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम 1976, बाल श्रम (निषेध और उन्मूलन) अधिनियम 1986 और किशोर न्याय अधिनियम के माध्यम से बंधुआ तथा जबरन श्रम पर भी प्रतिबंध लगाता है।
    • भारतीय दंड संहिता की धारा 366 (A) और 372, क्रमशः नाबालिगों के अपहरण तथा वेश्यावृत्ति पर रोक लगाती है।
    • इसके अलावा कारखाना अधिनियम, 1948 ने श्रमिकों के अधिकारों की सुरक्षा की गारंटी दी।
  • अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय, प्रोटोकॉल और अभियान:

आगे की राह

  • प्रवर्तन एजेंसियों के लिये दोहरेपन या भ्रम से बचने हेतु विधेयक को किशोर न्याय अधिनियम और अन्य प्रासंगिक अधिनियमों के मौजूदा प्रावधानों के साथ बेहतर ढंग से लागू किया जाना चाहिये।
  • चूँकि अधिनियम का प्रभावी कार्यान्वयन स्पष्ट और सुसंगत नियमों पर निर्भर है, इसलिये केंद्र सरकार के लिये राज्यों द्वारा उपयोग हेतु मॉडल नियम तैयार करना उपयोगी होगा।

स्रोत-इंडियन एक्सप्रेस


विश्वविद्यालयों में राज्यपाल की भूमिका

प्रिलिम्स के लिये:

राज्यपाल, अनुच्छेद 153, पुंछी आयोग, सरकारिया आयोग

मेन्स के लिये:

राज्यपाल एवं संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में गोपीनाथ रवींद्रन को कन्नूर विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में फिर से नियुक्त करने को लेकर केरल में विवाद छिड़ गया है।

  • यह नियुक्ति राज्य के विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के रूप में राज्यपाल के निर्णय के खिलाफ थी।
  • जबकि कुलाधिपति के रूप में राज्यपाल की शक्तियाँ और कार्य एक विशेष राज्य सरकार के तहत विश्वविद्यालयों को संचालित करने वाली विधियों में निर्धारित किये गए हैं, कुलपतियों की नियुक्ति में उनकी भूमिका ने अक्सर राजनीतिक कार्यपालिका के साथ विवाद को जन्म दिया है।

प्रमुख बिंदु

  • राज्य विश्वविद्यालयों में राज्यपालों की भूमिका:

    • ज़्यादातर मामलों में, राज्य के राज्यपाल उस राज्य के विश्वविद्यालयों के पदेन कुलाधिपति होते हैं।
    • राज्यपाल के रूप में वह मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से कार्य करता है, कुलाधिपति के रूप में वह स्वतंत्र रूप से मंत्रिपरिषद से कार्य करता है तथा विश्वविद्यालय के सभी मामलों पर निर्णय लेता है।
  • केंद्रीय विश्वविद्यालयों का मामला:

    • केंद्रीय विश्वविद्यालय अधिनियम, 2009 और अन्य विधियों के तहत, भारत के राष्ट्रपति एक केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलाध्यक्ष होंगे।
    • दीक्षांत समारोह की अध्यक्षता करने तक सीमित उनकी भूमिका के साथ, केंद्रीय विश्वविद्यालयों में कुलाधिपति नाममात्र के प्रमुख होते हैं, जिन्हें राष्ट्रपति द्वारा आगंतुक के रूप में नियुक्त किया जाता है।
    • कुलपति को भी केंद्र सरकार द्वारा गठित खोज और चयन समितियों द्वारा चुने गए नामों के पैनल से विज़िटर द्वारा नियुक्त किया जाता है।
    • अधिनियम में यह भी कहा गया है कि राष्ट्रपति को कुलाध्यक्ष के रूप में विश्वविद्यालयों के शैक्षणिक और गैर-शैक्षणिक पहलुओं के निरीक्षण को अधिकृत करने और पूछताछ करने का अधिकार होगा।
  • राज्यपाल से संबंधित संवैधानिक प्रावधान:

    • संविधान के मुताबिक, राज्य का राज्यपाल दोहरी भूमिका अदा करता है:
      • वह राज्य के मंत्रिपरिषद (CoM) की सलाह मानने को बाध्य राज्य का संवैधानिक प्रमुख होता है।
      • वह केंद्र सरकार और राज्य सरकार के बीच एक महत्त्वपूर्ण कड़ी के रूप में कार्य करता है।
    • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 153 के तहत प्रत्येक राज्य के लिये एक राज्यपाल का प्रावधान किया गया है। एक व्यक्ति को दो या दो से अधिक राज्यों के राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया जा सकता है।
      • राज्यपाल केंद्र सरकार का एक नामित व्यक्ति होता है, जिसे राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है।
    • अनुच्छेद 163: कुछ विवेकाधीन शक्तियों के अतिरिक्त राज्यपाल को उसके अन्य सभी कार्यों में सहायता करने और सलाह देने के लिये मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में एक मंत्रिपरिषद का गठन किये जाने का प्रावधान है।
    • अनुच्छेद 200: राज्यपाल, राज्य की विधानसभा द्वारा पारित विधेयक को अनुमति देता है, अनुमति रोकता है अथवा राष्ट्रपति के विचार के लिये विधेयक को सुरक्षित रखता है।
    • अनुच्छेद 213: राज्यपाल कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में अध्यादेशों को प्रख्यापित कर सकता है।
  • राज्यपाल की भूमिका संबंधित विवाद

    • केंद्र सरकार द्वारा सत्ता का दुरुपयोग: प्रायः केंद्र में सत्ताधारी दल के निर्देश पर राज्यपाल के पद के दुरुपयोग के कई उदाहरण देखने को मिलते हैं।
      • राज्यपाल की नियुक्ति की प्रकिया को इसमें एक प्रमुख कारण माना जाता है।
    • पक्षपाती विचारधारा: कई मामलों में एक विशेष राजनीतिक विचारधारा वाले राजनेताओं और पूर्व नौकरशाहों को केंद्र सरकार द्वारा राज्यपालों के रूप में नियुक्त किया जाता है।
      • यह संवैधानिक रूप से अनिवार्य तटस्थ पद के पूर्ण विरुद्ध है और यह पक्षपात को जन्म देता है, जैसा कि कर्नाटक तथा गोवा के मामलों में देखा गया।
    • कठपुतली शासक: हाल ही में राजस्थान के राज्यपाल पर आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन का आरोप लगाया गया है।
      • केंद्रीय सत्ताधारी दल के प्रति उनका समर्थन गैर-पक्षपात की भावना के विरुद्ध है जिसकी अपेक्षा संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति से की जाती है।
      • ऐसी घटनाओं के कारण ही राज्य के राज्यपाल के लिये केंद्र के एजेंट, कठपुतली और रबर स्टैम्प जैसे नकारात्मक शब्दों का उपयोग किया जाता है।
    • एक विशेष राजनीतिक दल का पक्ष लेना: चुनाव के बाद सबसे बड़ी पार्टी/गठबंधन के नेता को सरकार बनाने के लिये आमंत्रित करने की राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियों का प्रायः किसी विशेष राजनीतिक दल के पक्ष में दुरुपयोग किया जाता है।
    • शक्ति का अनुचित उपयोग: प्रायः यह देखा गया है कि किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद 356) के लिये राज्यपाल की सिफारिश सदैव 'तथ्यों' पर आधारित न होकर राजनीतिक भावना और पूर्वाग्रह पर आधारित होती है।
  • राज्यपाल के पद से संबंधित सिफारिशें:

    • राज्यपाल की नियुक्ति और निष्कासन के संबंध में
      • ‘पुंछी आयोग’ (2010) ने सिफारिश की थी कि राज्य विधायिका द्वारा राज्यपाल पर महाभियोग चलाने का प्रावधान संविधान में शामिल किया जाना चाहिये।
      • राज्यपाल की नियुक्ति में राज्य के मुख्यमंत्री की राय भी ली जानी चाहिये।
    • अनुच्छेद 356 के संबंध में
      • ‘पुंछी आयोग’ ने अनुच्छेद 355 और 356 में संशोधन करने की सिफारिश की थी।
      • ‘सरकारिया आयोग’ (1988) ने सिफारिश की थी कि अनुच्छेद 356 का उपयोग बहुत ही दुर्लभ मामलों में विवेकपूर्ण तरीके से ऐसी स्थिति में किया जाना चाहिये जब राज्य में संवैधानिक तंत्र को बहाल करना अपरिहार्य हो गया हो।
      • इसके अलावा प्रशासनिक सुधार आयोग (1968), राजमन्नार समिति (1971) और न्यायमूर्ति वी. चेलैया आयोग (2002) आदि ने भी इस संबंध में सिफारिशें की हैं।
    • अनुच्छेद 356 के तहत राज्य सरकार की बर्खास्तगी के संबंध में
      • एस.आर. बोम्मई मामला (1994): इस मामले के तहत केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकारों की मनमानी बर्खास्तगी को समाप्त कर दिया गया।
      • निर्णय के मुताबिक, विधानसभा ही एकमात्र ऐसा मंच है, जहाँ तत्कालीन सरकार के बहुमत का परीक्षण करना चाहिये, न कि राज्यपाल की व्यक्तिपरक राय के आधार पर।
    • विवेकाधीन शक्तियों के संबंध में
      • नबाम रेबिया मामले (2016) में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा था कि अनुच्छेद 163 के तहत राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियों का प्रयोग सीमित है और राज्यपाल की कार्रवाई मनमानी या काल्पनिक तथ्यों के आधार पर नहीं होनी चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जलवायु परिवर्तन और संक्रामक रोग

प्रिलिम्स के लिये:

संक्रामक रोग, संक्रामक रोग लिंकेज

मेन्स के लिये:

रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएंँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘साइंस ऑफ द टोटल एनवायरनमेंट' (Science of the Total Environment) जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के विभिन्न कारक कुल संक्रामक रोगों के 9-18% मामलों के लिये ज़िम्मेदार है।

  • मानवजनित गतिविधियों से प्रेरित जलवायु परिवर्तन पिछले कई वर्षों में सार्वजनिक स्वास्थ्य लाभ को चुनौती दे सकता है, विशेष रूप से भारत जैसे देश में जो विश्व में जलवायु-संवेदनशील देशों की सूची में उच्च स्थान पर है।

प्रमुख बिंदु

  • रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएंँ:
    • बच्चों में भेद्यता: विश्व स्तर पर यह अनुमान लगाया गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण सबसे अधिक बीमारी का भार बच्चों को उठाना पड़ता है, जिसमें सबसे गरीब लोग अनुपातहीन रूप से प्रभावित होते हैं।
    • बच्चों से जुड़ा उच्च ज़ोखिम शारीरिक भेद्यता के संयोजन से संबंधित के होता है।
    • प्रभावित करने वाले कारक: तापमान, आर्द्रता, वर्षा, सौर विकिरण और हवा की गति जैसे जलवायु पैरामीटर महत्त्वपूर्ण रूप से संक्रामक, पेट और आँत से जुड़ी बीमारियाँ (गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल), श्वसन रोगों, वेक्टर जनित रोगों और त्वचा रोगों से जुड़े हुए है।
    • प्रभाव: सामाजिक-आर्थिक स्थिति और चाइल्ड एंथ्रोपोमेट्री (मानव शरीर के माप और अनुपात का अध्ययन) ने स्टंटिंग, वेस्टिंग तथा कम वज़न की स्थिति से पीड़ित बच्चों के उच्च अनुपात के साथ जलवायु-रोग संबंध को संशोधित किया है।
  • जलवायु परिवर्तन और संक्रामक रोग लिंकेज का उदाहरण:

    • मलेरिया सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिये बड़ी चिंता का विषय है और लंबे समय तक जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील वेक्टर जनित रोग होने की संभावना है।
      • अत्यधिक स्थानिक क्षेत्रों में मलेरिया मौसमी रूप से भिन्न होता है उदाहरण के लिये भारत में मलेरिया और जलवायु घटनाओं के बीच की कड़ी का अध्ययन लंबे समय से किया जा रहा है।
      • पिछली शताब्दी की शुरुआत में नहर से सिंचित पंजाब क्षेत्र समय-समय पर मलेरिया महामारी से प्रभावित हुआ।
      • अत्यधिक मानसून वर्षा और उच्च आर्द्रता वाले क्षेत्रों की पहचान एक प्रमुख प्रभाव के रूप में की गई थी, जो मच्छरों के प्रज़नन और अस्तित्त्व को बढ़ाती है।
      • हाल के विश्लेषणों से पता चला है कि अल नीनो घटना के बाद वर्ष में मलेरिया महामारी का जोखिम लगभग पाँच गुना बढ़ जाता है।

आगे की राह

  • संक्रामक रोग संचरण पैटर्न में परिवर्तन जलवायु परिवर्तन का एक प्रमुख संभावित परिणाम है। इस प्रकार अंतर्निहित जटिल कारण संबंधों के बारे में अधिक जानने की आवश्यकता है और इस जानकारी को अधिक पूर्ण, बेहतर मान्य, एकीकृत, मॉडल का उपयोग करके भविष्य के प्रभावों की भविष्यवाणी पर लागू करने की आवश्यकता है।
  • सरकार और नीति निर्माताओं को बाल स्वास्थ्य के लिये प्रभावी उपायों को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है क्योंकि वर्तमान समस्याएँ भविष्य में जलवायु परिवर्तन परिदृश्यों के तहत पहले से ही कुपोषित बाल चिकित्सा आबादी में कई माध्यमों से बीमारी का बोझ बढ़ा सकती है।

स्रोत-पी.आई.बी


बैंक-NBFC सह-उधार

प्रिलिम्स के लिये:

सह-उधार मॉडल, NBFC, प्राथमिक क्षेत्र,

मेन्स के लिये:

सह-उधार मॉडल के उद्देश्य,सह-उधार में ज़ोखिम

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कई बैंकों ने पंजीकृत गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) के साथ सह-उधार 'मास्टर समझौते' किये हैं। वर्ष 2020 में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने एक पूर्व समझौते के आधार पर सह-उधार मॉडल की अनुमति दी थी।

  • हालाँकि सह-उधार से जुड़ी कुछ आलोचनाएँ भी हैं।

प्रमुख बिंदु:

  • सह-उधार मॉडल:

    • पृष्ठभूमि: सितंबर 2018 में आरबीआई ने बैंकों और NBFC द्वारा प्राथमिकता क्षेत्रकों को ऋण देने के लिये ऋण की सह-उधार की घोषणा की थी।
      • इस व्यवस्था में क्रेडिट का संयुक्त योगदान और ज़ोखिमों तथा पुरस्कारों को साझा करना शामिल था। सह-उधार या सह-उत्पत्ति एक ऐसी व्यवस्था है जहाँ बैंक और गैर-बैंक प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को ऋण देने के लिये ऋण के संयुक्त योगदान की व्यवस्था करते हैं।
      • इन दिशानिर्देशों को वर्ष 2020 में संशोधित किया गया और हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों तथा मॉडल में कुछ बदलावों को शामिल करके सह-उधार मॉडल (CLM) के रूप में फिर से नाम दिया गया।
      • प्राथमिकता क्षेत्रकों के मानदंडों के तहत बैंकों को अपने फंड का एक विशेष हिस्सा समाज के कमज़ोर वर्गों, कृषि, एमएसएमई और सामाजिक बुनियादी ढाँचे जैसे निर्दिष्ट क्षेत्रों को उधार देना अनिवार्य है।
    • उद्देश्य: 'सह-उधार मॉडल' (CLM) का प्राथमिक उद्देश्य अर्थव्यवस्था के असेवित और कम सेवा वाले क्षेत्र को ऋण के प्रवाह में सुधार करना है।
      • इसमें अंतिम लाभार्थी को वहनीय लागत पर धन उपलब्ध कराने की भी परिकल्पना की गई है।
    • अंतर्निहित/आधारभूत विचार: CLM एक सहयोगी प्रयास में बैंकों और NBFCs के संबंधित तुलनात्मक लाभों का बेहतर लाभ उठाने का प्रयास करता है।
      • बैंकों से धन की कम लागत।
      • NBFCs की अधिक पहुंँच।
      • उदाहरण के लिये, CLM अंत तक वित्तीय संवर्द्धन के माध्यम से MSMEs के लिये वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देगा।
    • CML का उदाहरण: देश के सबसे बड़े ऋणदाता SBI ने किसानों को ट्रैक्टर और कृषि उपकरण खरीदने में मदद करने हेतु सह-उधार देने के लिये एक बड़े कॉर्पोरेट घराने की एक छोटी NBFC अदानी कैपिटल के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किये।
  • सह-उधार में ज़ोखिम:

    • अधिकांश ज़िम्मेदारी बैंकों के पास: CLM के तहत, NBFCs को अपने खातों में व्यक्तिगत ऋण का कम से कम 20% हिस्सा रखना आवश्यक है।
      • इसका मतलब है कि 80% ज़ोखिम बैंकों को होगा जो डिफाॅल्ट के मामलों के लिये सर्वाधिक ज़िम्मेदार होगा।
      • वास्तव में जहांँ बेंकों द्वारा ऋण का बड़ा हिस्सा वितरित किया जाता है, वहीं NBFC द्वारा उधारकर्त्ता का निर्णय किया जाता है।
    • बैंकिंग में कार्पोरेट्स: आरबीआई ने आधिकारिक तौर पर बड़े कार्पोरेट घरानों को बैंकिंग क्षेत्र में प्रवेश की अनुमति नहीं दी है, लेकिन NBFC ज़्यादातर कॉरपोरेट घरानों द्वारा नियंत्रित की जाती हैं।
      • यह जोखिम भरा है, खासकर जब चार बड़ी निजी वित्त कंपनियाँ- IL&FS, DHFL, SREI और रिलायंस कैपिटा आरबीआई द्वारा कड़ी निगरानी के बावजूद पिछले तीन वर्षों में ध्वस्त हो गई हैं।
    • NBFC की सीमित पहुँच: जबकि आरबीआई ने "NBFC की अधिक पहुँच" का उल्लेख किया है, 100-शाखा नेटवर्क वाले छोटे NBFCs कम सेवा प्राप्त और असेवित क्षेत्रों में सेवा देने में कम हो जाएँगे।

आगे की राह

  • निर्णय लेने की प्रक्रिया के संचालन, समीक्षा करने और निरीक्षण करने के लिये बैंक के बोर्ड को अधिक अधिकार देने की आवश्यकता है तथा इसके लिये योग्य व्यक्तियों की भर्ती की जानी चाहिये।
    • साथ ही एक अधिक मज़बूत जोखिम प्रबंधन तंत्र की आवश्यकता है।
  • अब विदेशी बाजारों को देखने की और उपयुक्त व्यावसायिक नीतियाँ (वैश्विक स्थान और इन बैंकों द्वारा लक्षित उत्पाद के संदर्भ में) स्थापित करने की ज़रूरत है, जो इन बैंकों की दक्षता तथा उनके वैश्विक समकक्षों के साथ प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ाने में मदद करेगी।
  • निम्नलिखित के संबंध में निरंतर सुधार किये जाने चाहिये,
    • उत्पाद नवीनता,
    • प्रौद्योगिकियों में निवेश,
    • बेहतर बैक-एंड प्रक्रियाएँ,
    • टर्नअराउंड समय में कमी

स्रोत-इंडियन एक्सप्रेस


ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (GIB)

प्रिलिम्स के लिये:

ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (GIB), प्रोजेक्ट ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, IUCN की रेड लिस्ट

मेन्स के लिये:

ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (GIB), GIB की सुरक्षा के लिये किये गए पर्यावरण अनुकूल उपाय,


चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार ने अपने आदेश में संशोधन की मांग करते हुए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है, जिसमें निर्देश दिया गया है कि ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (GIB) के आवास में सभी ट्रांसमिशन केबल को भूमिगत रखा जाए।

प्रमुख बिंदु:

  • भूमिका:

    • इस वर्ष 2021 की शुरुआत में लुप्तप्राय ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (Great Indian Bustard) और लेसर फ्लोरिकन (Lesser Florican) की घटती संख्या की जाँच करने के लिये, सर्वोच्च न्यायालय की एक बेंच ने निर्देश दिया कि राजस्थान तथा गुजरात में पक्षियों के आवास के साथ-साथ जहाँ भी संभव हो, ओवरहेड विद्युत लाइनों को भूमिगत रखा जाए।
  • उठाई गई चिंताएँ:

    • भारत में विद्युत क्षेत्र के लिये निहितार्थ:
      • राजस्थान और गुजरात का क्षेत्र देश की कुल सौर और पवन ऊर्जा क्षमता का एक बड़ा हिस्सा है।
      • विद्युत लाइनों को भूमिगत करने से अक्षय ऊर्जा उत्पादन की लागत बढ़ जाएगी और भारत के नवीकरणीय ऊर्जा के कारण को नुकसान होगा।
        • उत्सर्जन को कम करने और जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने के लिये ऊर्जा संक्रमण आवश्यक है तथा भारत ने गैर-जीवाश्म ईंधन में संक्रमण एवं उत्सर्जन में कमी के लिये संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (UNFCCC) के तहत वर्ष 2015 में पेरिस मेंहस्ताक्षरित समझौते सहित अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताएँ व्यक्त की हैं।
        • भारत ने वर्ष 2022 तक 175 GW और वर्ष 2030 तक 450 GW की स्थापित अक्षय ऊर्जा क्षमता (बड़े हाइड्रो को छोड़कर) प्राप्त करने का लक्ष्य रखा है।
    • अक्षय ऊर्जा के अप्रयुक्त रहने की संभावना:
      • अब तक इस क्षेत्र में लगभग 263 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा की अनुमानित क्षमता का केवल 3% का ही दोहन किया गया है।
      • यदि शेष क्षमता का उपयोग नहीं किया जाता है तो भविष्य में अप्रयुक्त अक्षय ऊर्जा के विकल्प के रूप में 93,000 मेगावाट अतिरिक्त कोयला आधारित क्षमता की आवश्यकता होगी, जिससे पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (GIB)

परिचय:

  • ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (GIB), राजस्थान का राज्य पक्षी है और भारत का सबसे गंभीर रूप से लुप्तप्राय पक्षी माना जाता है।
  • यह घास के मैदान की प्रमुख प्रजाति मानी जाती है, जो चरागाह पारिस्थितिकी का प्रतिनिधित्त्व करती है।
  • इसकी अधिकतम आबादी राजस्थान और गुजरात तक ही सीमित है। महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में यह प्रजाति कम संख्या में पाई जाती है।
  • विद्युत लाइनों से टकराव/इलेक्ट्रोक्यूशन, शिकार (अभी भी पाकिस्तान में प्रचलित), आवास का नुकसान और व्यापक कृषि विस्तार आदि के परिणामस्वरूप यह पक्षी खतरे में है।

सुरक्षा की स्थिति:

GIB की सुरक्षा के लिये किये गए उपाय:

  • प्रजाति पुनर्प्राप्ति कार्यक्रम:
    • इसे पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) के वन्यजीव आवास का एकीकृत विकास (IDWH) के तहत प्रजाति पुनर्प्राप्ति कार्यक्रम के तहत रखा गया है।
  • नेशनल बस्टर्ड रिकवरी प्लान:
    • वर्तमान में इसे संरक्षण एजेंसियों (Conservation Agencies) द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
  • संरक्षण प्रजनन सुविधा:
    • जून 2019 में MoEFCC, राजस्थान सरकार और भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) द्वार जैसलमेर में डेजर्ट नेशनल पार्क में एक संरक्षण प्रजनन सुविधा स्थापित की है।
    • कार्यक्रम का उद्देश्य ग्रेट इंडियन बस्टर्ड्स की एक आबादी में वृद्धि करना है जिसके लिये चूजों को जंगल में छोड़ा जाना है।
  • प्रोजेक्ट ग्रेट इंडियन बस्टर्ड:
    • राजस्थान सरकार ने इस प्रजाति के प्रजनन बाड़ों के निर्माण और उनके आवासों पर मानव दबाव को कम करने के लिये एवं बुनियादी ढाँचे के विकास के उद्देश्य से ‘प्रोजेक्ट ग्रेट इंडियन बस्टर्ड ’लॉन्च किया है।
  • पर्यावरण अनुकूल उपाय:
    • ग्रेट इंडियन बस्टर्ड सहित वन्यजीवों पर पॉवर ट्रांसमिशन लाइनों (Power Transmission Lines) और अन्य पॉवर ट्रांसमिशन इन्फ्रास्ट्रक्चर (Power Transmission Infrastructures) के प्रभावों को कम करने के लिये पर्यावरण के अनुकूल उपायों का सुझाव देने हेतुटास्क फोर्स का गठन।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस