परिसंपत्ति मुद्रीकरण लक्ष्य में वृद्धि
प्रारंभिक परीक्षा के लिये:नीति आयोग, राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन, ब्राउनफील्ड संपत्ति, राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन, सार्वजनिक-निजी भागीदारी, इन्फ्रास्ट्रक्चर इंवेस्टमेंट ट्रस्ट, विनिवेश, एकाधिकार। मुख्य परीक्षा के लिये:बुनियादी ढाँचे का वित्तपोषण, राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (NMP) का प्रदर्शन। |
स्रोत: बिज़नेस स्टैण्डर्ड
चर्चा में क्यों?
हाल ही में नीति आयोग ने वर्ष 2024-25 (वित्त वर्ष 25) के लिये परिसंपत्ति मुद्रीकरण लक्ष्य को 23,000 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 1.9 ट्रिलियन कर दिया है।
- इसके साथ ही नीति आयोग चार साल की अवधि (वित्त वर्ष 2022-25) के लिये राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (NMP) के तहत निर्धारित कुल 6 ट्रिलियन (6 लाख करोड़ रुपए) के लक्ष्य के करीब पहुँच गया है।
परिसंपत्ति मुद्रीकरण क्या है?
- परिचय: किसी परिसंपत्ति का मुद्रीकरण करने का अर्थ है उसे ऐसे रूप में परिवर्तित करना जिससे राजस्व या मुद्रा अर्जित हो सके।
- मुद्रीकरण में लाभ उत्पन्न करने या इसे नकदी में बदलने के लिये किसी मूल्यवान वस्तु का उपयोग करना शामिल है। उदाहरण के लिये, सरकार राजकोषीय प्रतिभूतियों का अधिग्रहण करके अपने राष्ट्रीय ऋण का मुद्रीकरण कर सकती है, जिससे धन की आपूर्ति बढ़ती है।
- परिसंपत्ति मुद्रीकरण की आवश्यकता: इससे सरकारों और सार्वजनिक संस्थाओं के लिये नए राजस्व स्रोत के क्रम में अल्प उपयोगिता या अप्रयुक्त सार्वजनिक परिसंपत्तियों से लाभ मिलता है।
- इसका उद्देश्य इन परिसंपत्तियों की पहचान करना और उन्हें बेचे बिना वित्तीय लाभ अर्जित करना है।
- सार्वजनिक परिसंपत्तियों को महत्त्व: जिन सार्वजनिक परिसंपत्तियों का मुद्रीकरण किया जा सकता है, उनमें सार्वजनिक निकायों के स्वामित्व वाली संपत्तियां शामिल हैं जैसे सड़कें, हवाई अड्डे, रेलवे, पाइपलाइन और मोबाइल टावर जैसी बुनियादी संरचनाएँ।
- इसका बल ब्राउनफील्ड परिसंपत्तियों पर है जो मौजूदा परिसंपत्तियाँ हैं जिनमें सुधार किया जा सकता है या जिनका बेहतर उपयोग किया जा सकता है।
- ब्राउनफील्ड परिसंपत्तियों का आशय ऐसी परिसंपत्तियों से है जिन्हें कोई निजी कंपनी या निवेशक नई उत्पादन गतिविधि के लिये किसी मौजूदा बुनियादी ढाँचा परियोजना या उत्पादन सुविधा को खरीदता है या पट्टे पर लेता है।
- मुद्रीकरण बनाम निजीकरण: निजीकरण का आशय निजी क्षेत्र को स्वामित्व का पूर्ण हस्तांतरण करना है जबकि परिसंपत्ति मुद्रीकरण में निजी संस्थाओं के साथ संरचित साझेदारी शामिल है, जिससे सार्वजनिक प्राधिकरणों को निजी क्षेत्र की दक्षता एवं निवेश से लाभान्वित होते हुए स्वामित्व बनाए रखने की अनुमति मिलती है।
राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (NMP) क्या है?
- NMP: NMP, संचालित सार्वजनिक अवसंरचना परिसंपत्तियों के मुद्रीकरण के माध्यम से सतत् अवसंरचना वित्तपोषण को बढ़ावा देने की एक प्रमुख पहल है।
- इसमें केंद्र सरकार और सार्वजनिक क्षेत्र की संस्थाओं की प्रमुख परिसंपत्तियों को पट्टे पर देकर 6 लाख करोड़ रुपए की कुल मुद्रीकरण क्षमता की परिकल्पना की गई है।
- NMP की तैयारी: नीति आयोग द्वारा बुनियादी अवसंरचना मंत्रालयों के परामर्श से इसकी तैयारी की गई है।
- इसमें सड़क, परिवहन, राजमार्ग, रेलवे, विद्युत, नागरिक उड्डयन, दूरसंचार आदि मंत्रालय शामिल हैं।
- NMP का लक्ष्य ब्राउनफील्ड अवसंरचना परिसंपत्तियों पर है, जिससे सार्वजनिक परिसंपत्ति स्वामियों को रोडमैप मिलने के साथ निजी क्षेत्र को मुद्रीकरण अवसरों का लाभ मिलता है।
- शामिल क्षेत्र और परिसंपत्ति वर्ग: NMP के तहत सड़क, बंदरगाह, हवाई अड्डे, रेलवे, गैस और उत्पाद पाइपलाइनों, विद्युत उत्पादन के साथ ट्रांसमिशन, खनन, दूरसंचार, भंडारण आदि सहित कई क्षेत्रों को शामिल किया गया है।
- इसके शीर्ष 5 क्षेत्रों में सड़क (कुल पाइपलाइन मूल्य का 27%), रेलवे (25%), विद्युत (15%), तेल और गैस पाइपलाइन (8%) तथा दूरसंचार (6%) शामिल हैं।
- मुद्रीकरण ढाँचा: मुख्य परिसंपत्ति के मुद्रीकरण ढाँचे के संदर्भ में तीन प्रमुख अधिदेश हैं।
- 'स्वामित्व' नहीं बल्कि 'अधिकारों' का मुद्रीकरण: सरकार परिसंपत्तियों का प्राथमिक स्वामित्व अपने पास रखेगी और लेनदेन अवधि समाप्त होने के बाद परिसंपत्तियाँ सार्वजनिक प्राधिकरण को वापस हो जाएंगी।
- स्थिर राजस्व: इसमें स्थिर राजस्व वाली जोखिम मुक्त ब्राउनफील्ड परिसंपत्तियों का चयन करना शामिल है।
- परिभाषित साझेदारी: इसमें प्रमुख प्रदर्शन संकेतक (KPI) और प्रदर्शन मानक को ध्यान में रखते हुए संरचित साझेदारियों को सुपरिभाषित संविदात्मक ढाँचे के अंतर्गत स्थापित किया जाना शामिल है।
- NIP के साथ संरेखण: NMP को राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (NIP) के साथ संरेखित किया गया है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि मुद्रीकरण अवधि NIP के साथ समाप्त हो, जो वित्त वर्ष 2022 से वित्त वर्ष 2025 तक चलने वाली थी।
- NMP का उद्देश्य 111 ट्रिलियन रुपए की राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन में पूंजी का पुनर्निवेश करना है।
- NIP का उद्देश्य सभी आर्थिक और सामाजिक अवसंरचना उप-क्षेत्रों में प्रमुख ग्रीनफील्ड और ब्राउनफील्ड परियोजनाओं में निवेश आकर्षित करना है।
- मुद्रीकरण के लिये साधन: NMP परिसंपत्ति मुद्रीकरण के लिये विभिन्न प्रकार के साधनों का उपयोग करेगा, जिसमें शामिल हैं:
- प्रत्यक्ष अनुबंधों के लिये सार्वजनिक-निज़ी भागीदारी (PPP) संबंधी रियायतें।
- इन्फ्रास्ट्रक्चर इंवेस्टमेंट ट्रस्ट (इन्विट्स) और अन्य पूंजी बाज़ार संबंधी साधन।
- इनविट्स, बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में व्यक्तिगत और संस्थागत निवेशकों से धन का प्रत्यक्ष निवेश करने में सक्षम बनाता है, जिससे आय का एक हिस्सा प्रतिफल के रूप में अर्जित किया जा सके।
राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन की वर्तमान स्थिति क्या है?
- राजस्व सृजन: NMP ने पहले तीन वर्षों (वित्त वर्ष 24 तक) में 3.9 ट्रिलियन रुपए का राजस्व अर्जित किया है, जो इसके अधिकांश समायोजित लक्ष्यों को प्राप्त करता है। इस अवधि के लिये मूल लक्ष्य 4.3 ट्रिलियन रुपए था।
- सफल मुद्रीकरण: कोयला मंत्रालय ने 80,000 करोड़ रुपए के अपने चार वर्षीय लक्ष्य के सामने 1.54 ट्रिलियन रुपए एकत्रित किये हैं, जो उम्मीदों से कहीं अधिक है।
- इसके अतिरिक्त, खदानों का मुद्रीकरण 32,000 करोड़ रुपए तक किया गया है, जो 7,300 करोड़ रुपए के संशोधित लक्ष्य से अधिक है।
- पिछड़े क्षेत्र:
- रेलवे: प्रमुख क्षेत्र होने के बावज़ूद, रेल मंत्रालय ने पिछले तीन वर्षों में केवल 20,417 करोड़ रुपए मूल्य की परिसंपत्तियों का ही मुद्रीकरण किया है, जो अपने संशोधित लक्ष्य का केवल 30% ही पूर्ण कर पाया है।
- वेयरहाउसिंग: लक्ष्य का 38% प्राप्त हुआ, जो 8,000 करोड़ रुपए है।
- नागरिक उड्डयन: काफी पीछे, लक्षित 2,600 करोड़ रुपए की परिसंपत्ति आधार का केवल 14% ही मुद्रीकृत हो पाया है।
NMP के समक्ष चुनौतियाँ क्या हैं?
- कम मुद्रीकरण क्षमता: NMP का लक्ष्य 6 लाख करोड़ रुपए के मुद्रीकरण का है, जो राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (111 लाख करोड़ रुपए) के तहत समग्र पूंजीगत व्यय का केवल 5-6% है।
- विनिवेश में कमी: विमुद्रीकरण के लिये चुने गए 13 क्षेत्र हाल के वर्षों में लगातार अपने विनिवेश लक्ष्य से भटक रहे हैं। इससे वास्तविक विमुद्रीकरण लक्ष्य हासिल करने पर संदेह उत्पन्न होता है।
- दीर्घकालिक अधिकार: मुद्रीकरण से निजी अभिकर्त्ताओं को सार्वजनिक परिसंपत्तियों से संचालन और लाभ कमाने के लिये दीर्घकालिक अधिकार (60 वर्ष तक) मिल सकते हैं। इसे विभिन्न लोग निज़ीकरण के रूप में देख सकते हैं, जिससे सरकार के आशयों पर संदेह उत्पन्न होता है।
- बज़ट और आय का उपयोग: NMP में इस बात पर स्पष्टता का अभाव है कि मुद्रीकरण से प्राप्त आय को बज़ट में किस प्रकार शामिल किया जाएगा।
- इस संबंध में कोई विशिष्ट दिशा-निर्देश नहीं हैं कि क्या इन निधियों का उपयोग बुनियादी ढाँचे के वित्तपोषण के लिये किया जाएगा या वेतन या सब्सिडी जैसे राजस्व व्यय के लिये किया जाएगा।
- एकाधिकार: स्वामित्व के एकीकरण से एकाधिकार को बढ़ावा मिल सकता है, मूलतः राजमार्गों और रेलवे लाइनों के संदर्भ में। इससे मूल्यों में वृद्धि हो सकती है।
- करदाताओं का धन संबंधी मुद्दा: करदाता सार्वजनिक परिसंपत्तियों पर संभावित दोहरे शुल्क के बारे में चिंतित हैं, क्योंकि उन्होंने पहले उनके निर्माण के लिये धन मुहैया कराया था और अब मुद्रीकरण के बाद निज़ी संस्थाओं को भुगतान के माध्यम से उनका उपयोग करने के लिये अतिरिक्त लागत का सामना करना पड़ रहा है।
आगे की राह
- अनुबंध-आधारित मुद्रीकरण में तेजी लाना: सरकार को सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) रियायत समझौतों के माध्यम से अनुबंध-आधारित मुद्रीकरण में तेजी लाने को प्राथमिकता देनी चाहिये, विशेष रूप से रेलवे और हवाई अड्डों में, जहाँ निवेशकों की अधिक रुचि हो।
- भूमि मुद्रीकरण पहल को लागू करना: बहुमंजिला इमारतों के विकास में रियल एस्टेट और बुनियादी ढाँचा कंपनियों को शामिल करने से राजस्व उत्पन्न करने के साथ-साथ आवास संबंधी सुविधाओं में भी वृद्धि हो सकती है।
- स्पष्ट बज़ट दिशानिर्देश स्थापित करना: NMP को स्पष्ट दिशानिर्देश स्थापित करना चाहिये कि बज़ट में मुद्रीकरण आय को कैसे शामिल किया जाएगा, तथा यह निर्दिष्ट करना चाहिये कि क्या धनराशि बुनियादी ढाँचे के विकास या परिचालन व्यय के लिये आवंटित की जाएगी।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (NMP) के उद्देश्यों की जाँच कीजिये। NMP आर्थिक विकास के लिये सार्वजनिक परिसंपत्तियों का लाभ उठाने की योजना कैसे बनाता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)मेन्सप्रश्न: श्रम-प्रधान निर्यातों के लक्ष्य प्राप्त करने में विनिर्माण क्षेत्रक की विफलता का कारण बताइये। पूंजी-प्रधान निर्यातों की अपेक्षा अधिक श्रम-प्रधान निर्यातों के लिये, उपायों को सुझाइये। (2017) प्रश्न: हाल के समय में भारत में आर्थिक संवृद्धि की प्रकृति का वर्णन अक्सर नौकरीहीन संवृद्धि के तौर पर किया जाता है। क्या आप इस विचार से सहमत हैं? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क प्रस्तुत कीजिये। (2015) |
सती प्रथा और संबंधित कानून
प्रारंभिक परीक्षा के लिये:सती प्रथा (रोकथाम) अधिनियम, 1987, सती, भानुगुप्त, एरण स्तंभ लेख, अकबर, गुरु अमरदास, विलियम बेंटिक, शिशु हत्या, पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर, सम्मति आयु अधिनियम, 1891, बाल विवाह निरोधक अधिनियम, 1929 (शारदा अधिनियम, 1929), भूमि राजस्व बंदोबस्त, महालवाड़ी व्यवस्था, राजा राममोहन राय। मुख्य परीक्षा के लिये:सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलनों का उदय और विकास, सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलनों में विभिन्न अभिकर्त्ताओं की भूमिका। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
सती प्रथा को महिमामंडित करने के आरोप में गिरफ्तार किये गए 8 लोगों को हाल ही में रिहा किया गया है।
- सती प्रथा के संदर्भ में 4 सितम्बर 1987 को राजस्थान में रूप कंवर मामले में केंद्र सरकार द्वारा सती प्रथा (रोकथाम) अधिनियम, 1987 को अधिनियमित किया गया।
सती प्रथा (रोकथाम) अधिनियम, 1987 के तहत अपराधों के लिये दंड के संबंध में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- सती होने का प्रयास: इस अधिनियम की धारा 3 में कहा गया है कि सती होने का प्रयास करने पर एक वर्ष तक का कारावास, जुर्माना या दोनों हो सकता है।
- सती प्रथा के लिये प्रेरित करना: इस अधिनियम की धारा 4 में कहा गया है कि जो कोई भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सती प्रथा के लिये किसी को प्रेरित करता है, उसे आजीवन कारावास और जुर्माना भुगतना पड़ सकता है। उदाहरण के लिये, किसी विधवा महिला को यह समझाना कि सती होने से उसके या उसके मृत पति को आध्यात्मिक शांति मिलेगी या परिवार की खुशहाली बढ़ेगी।
- सती प्रथा का महिमामंडन: इस अधिनियम की धारा 5 में कहा गया है कि सती प्रथा का महिमामंडन करने पर एक से सात वर्ष की कैद और पाँच से तीस हजार रुपए तक का जुर्माना हो सकता है।
सती प्रथा:
- परिचय: इसका आशय किसी विधवा द्वारा अपने पति की चिता पर आत्मदाह करने से है।
- आत्मदाह के बाद उनके लिये एक स्मारक या कभी-कभी मंदिर बनाया जाता था और उनकी देवी के रूप में पूजा की जाती थी
- सती का पहला अभिलेखीय साक्ष्य 510 ई. के मध्य प्रदेश के भानुगुप्त के एरण स्तंभ लेख से मिलता है।
- सती प्रथा को समाप्त करने के लिये उठाए गए कदम:
- मुगल साम्राज्य: वर्ष 1582 में सम्राट अकबर ने अपने संपूर्ण साम्राज्य में अधिकारियों को आदेश दिया कि यदि वे देखें कि किसी महिला के साथ बलि चढाने के लिये जबरदस्ती की जा रही है तो उसे बलि चढ़ाने से रोका जाए।
- उन्होंने विधवा को यह प्रथा बंद करने के लिये पेंशन, उपहार और पुनर्वास की भी पेशकश की
- सिख साम्राज्य: सिख गुरु अमर दास ने 15वीं-16वीं शताब्दी में इस प्रथा की निंदा की।
- मराठा साम्राज्य: मराठों ने अपने क्षेत्र में सती प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया था।
- औपनिवेशिक शक्तियाँ: डच, पुर्तगाली और फ्राँसीसियों ने भी भारत में अपने उपनिवेशों में सती प्रथा पर प्रतिबंध लगाया।
- ब्रिटिश गवर्नर-जनरल विलियम बेंटिक ने बंगाल सती विनियमन, 1829 के तहत सती प्रथा को अवैध और आपराधिक न्यायालयों द्वारा दंडनीय घोषित किया।
- मुगल साम्राज्य: वर्ष 1582 में सम्राट अकबर ने अपने संपूर्ण साम्राज्य में अधिकारियों को आदेश दिया कि यदि वे देखें कि किसी महिला के साथ बलि चढाने के लिये जबरदस्ती की जा रही है तो उसे बलि चढ़ाने से रोका जाए।
- महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिये अन्य कानूनी पहल:
- कन्या शिशु हत्या: वर्ष 1795 और वर्ष 1804 के बंगाल विनियमों ने शिशु हत्या को अवैध घोषित कर दिया तथा इसे हत्या के समान माना।
- वर्ष 1870 के एक अधिनियम के तहत माता-पिता को सभी जन्मे शिशुओं का पंजीकरण कराना अनिवार्य कर दिया गया तथा उन क्षेत्रों में कई वर्षों तक कन्या शिशुओं का सत्यापन अनिवार्य कर दिया गया जहाँ गुप्त रूप से शिशु-हत्या की जाती थी।
- विधवा पुनर्विवाह: पंडित ईश्वर चंद्र विद्यासागर के प्रयासों से हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम, 1856 पारित किया गया।
- इसने विधवाओं के विवाह को वैधानिक बना दिया तथा ऐसे विवाहों से उत्पन्न बच्चों को भी वैधानिक मान्यता दी।
- बाल विवाह: सहमति आयु अधिनियम, 1891 के तहत 12 वर्ष से कम आयु की लड़कियों के विवाह पर रोक लगा दी गई।
- बाल विवाह निरोधक अधिनियम, 1929 (सारदा अधिनियम, 1929) ने लड़के और लड़कियों के लिये विवाह की आयु क्रमशः 18 और 14 वर्ष कर दी।
- बाल विवाह निरोधक (संशोधन) अधिनियम, 1978 के तहत लड़कियों की विवाह की आयु 15 से बढ़ाकर 18 वर्ष तथा लड़कों की विवाह की आयु 18 से बढ़ाकर 21 वर्ष कर दी गई।
- महिला शिक्षा: कलकत्ता महिला किशोर सोसायटी (Calcutta Female Juvenile Society) 1819 में महिला शिक्षा की दिशा में एक व्यापक आंदोलन की शुरुआत हुई।
- बेथ्यून स्कूल (Bethune School) 1849 महिला शिक्षा के लिये एक महत्त्वपूर्ण संस्थान बन गया।
- कन्या शिशु हत्या: वर्ष 1795 और वर्ष 1804 के बंगाल विनियमों ने शिशु हत्या को अवैध घोषित कर दिया तथा इसे हत्या के समान माना।
सती प्रथा उन्मूलन में राजा राममोहन राय की क्या भूमिका थी?
- सती प्रथा के विरुद्ध संघर्षरत: राजा राममोहन राय 19 वीं सदी के भारत के सामाजिक सुधार आंदोलन में एक प्रमुख व्यक्ति हैं, जो सती प्रथा को समाप्त करने के अपने सशक्त प्रयासों के लिये जाने जाते हैं।
- सक्रियता की शुरुआत: राजा राममोहन राय ने वर्ष 1818 में सती प्रथा विरोधी अभियान आरंभ किया, जो इस विश्वास से प्रेरित था कि यह प्रथा नैतिक रूप से गलत थी।
- पवित्र ग्रंथों का उपयोग: उन्होंने अपने इस तर्क को साबित करने के लिये पवित्र ग्रंथों का हवाला दिया कि कोई भी धर्म विधवाओं को जिंदा जलाने की अनुमति नहीं देता।
- तर्कसंगतता और मानवता: उन्होंने सती प्रथा के विरुद्ध अपने संघर्ष में धार्मिक और धर्मनिरपेक्ष दोनों समुदायों को शामिल करने के लिये मानवता, कारण और करुणा की व्यापक अवधारणाओं की भी अपील की।
- ज़मीनी स्तर पर सक्रियता: उन्होंने सती प्रथा के विरुद्ध संघर्ष के दौरान श्मशान घाटों का दौरा किया, सतर्कता समूहों का आयोजन किया और सरकार के समक्ष जवाबी याचिकाएँ भी दायर कीं।
- बंगाल सती विनियमन, 1829: राममोहन राय के अथक प्रयासों के परिणामस्वरूप बंगाल सती विनियमन, 1829 पारित हुआ, जिसमें सती प्रथा को अपराध घोषित किया गया।
विलियम बेंटिक (1828-1835) द्वारा किये गए अन्य सुधार क्या हैं?
- प्रशासनिक सुधार:
- प्रशासन का भारतीयकरण: बेंटिक ने भारतीयों को प्रशासनिक भूमिकाओं से बाहर रखने की कॉर्नवॉलिस की नीति को उलट दिया और शिक्षित भारतीयों को डिप्टी मजिस्ट्रेट एवं डिप्टी कलेक्टर के रूप में नियुक्त किया, जो सरकारी सेवा के भारतीयकरण की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम था।
- भूमि राजस्व निपटान: लॉर्ड विलियम बेंटिक ने वर्ष 1833 में भूमि राजस्व की महालवारी प्रथा की समीक्षा की और उसे अद्यतन किया। इसमें बड़े भूस्वामियों और ग्राम समुदायों के साथ विस्तृत सर्वेक्षण और संवाद शामिल था, जिससे राज्य के राजस्व में वृद्धि हुई।
- प्रशासनिक प्रभाग: बेंटिक ने बंगाल प्रेसीडेंसी को बीस प्रभागों में पुनर्गठित किया, जिसमें से प्रत्येक का पर्यवेक्षण एक आयुक्त करता था, जिससे प्रशासनिक दक्षता में वृद्धि हुई।
- न्यायिक सुधार:
- प्रांतीय न्यायालयों का उन्मूलन: बेंटिक ने प्रांतीय न्यायालयों को समाप्त कर दिया और न्यायिक प्रक्रियाओं में तेजी लाने के लिये न्यायालयों का एक नया पदानुक्रम स्थापित किया, जिसमें दीवानी और आपराधिक अपीलों के लिये आगरा में एक उच्चतम न्यायालय की स्थापना भी शामिल है।
- न्यायिक सशक्तीकरण: उन्होंने इलाहाबाद में अलग सदर दीवानी न्यायालय और सदर निजामत न्यायालय का निर्माण किया, जिससे जनता के लिये न्यायिक पहुँच में सुधार हुआ।
- दंड में कमी: बेंटिक ने दंड की कठोरता को कम कर दिया और कोड़े मारने जैसी अमानवीय प्रथाओं को समाप्त कर दिया।
- न्यायालयों की भाषा: बेंटिक ने स्थानीय न्यायालयों में स्थानीय भाषा के प्रयोग का आदेश दिया।
- उच्च न्यायालयों में फारसी के स्थान पर अंग्रेज़ी भाषा को अपनाया गया तथा योग्य भारतीयों को मुंसिफ और सदर अमीन के रूप में नियुक्त किया।
- वित्तीय सुधार:
- लागत में कटौती के उपाय: बेंटिक ने बढ़ते खर्चों की जाँच के लिये दो समितियाँ बनाईं, सैन्य और नागरिक। उनकी सिफारिशों के बाद, उन्होंने अधिकारियों के वेतन और भत्ते में काफी कटौती की साथ ही यात्रा व्यय में कटौती की, जिससे वार्षिक बचत में अधिक वृद्धि हुई।
- राजस्व वसूली: उन्होंने बंगाल में भूमि अनुदान की जाँच की, जहाँ कई लगान-मुक्त भूमिधारकों के पास जाली स्वामित्व संबंधी दस्तावेज़ पाए गए, इससे कंपनी के राजस्व में वृद्धि हुई।
- शैक्षिक सुधार: मैकाले से प्रभावित होकर बेंटिक ने शिक्षा के माध्यम के रूप में अंग्रेज़ी का समर्थन किया।
- वर्ष 1835 में अंग्रेज़ी शिक्षा अधिनियम द्वारा फारसी भाषा के स्थान पर अंग्रेज़ी को भारत सरकार की आधिकारिक भाषा बना दिया गया।
- समाज सुधार:
- ठगी का दमन: उन्होंने ठगी प्रथा के विरुद्ध निर्णायक कार्रवाई की, जो एक आपराधिक संगठन था, यह डकैती और हत्या जैसे मामलों में संलिप्त था।
- वर्ष 1834 के अंत तक बेंटिक ने इस प्रथा को सफलतापूर्वक दबा दिया, जिससे आमजन के बीच भय कम हो गया।
- सुधारकों से समर्थन: उनके सुधारों को राजा राममोहन राय जैसे उल्लेखनीय व्यक्तियों का समर्थन प्राप्त था, जिन्होंने सती प्रथा के उन्मूलन के लिये सक्रिय रूप से अभियान चलाया और भारत में सामाजिक सुधार की वकालत की।
- ठगी का दमन: उन्होंने ठगी प्रथा के विरुद्ध निर्णायक कार्रवाई की, जो एक आपराधिक संगठन था, यह डकैती और हत्या जैसे मामलों में संलिप्त था।
निष्कर्ष
भारत में सामाजिक सुधार को और आगे बढ़ाने के लिये महिलाओं के अधिकारों और शिक्षा से संबंधित जागरूकता बढ़ाना, सती जैसी प्रथाओं के विरुद्ध मौज़ूदा कानूनों को लागू करना और सामुदायिक सहभागिता को बढ़ावा देना महत्त्वपूर्ण है। ज़मीनी स्तर के संगठनों के साथ सहयोग करने से इन प्रयासों को और बढ़ाया जा सकता है, जिससे समाज में हाशिये पर पड़े समुदायों के लिये स्थायी परिवर्तन और सशक्तीकरण सुनिश्चित हो सकता है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: सती प्रथा के उन्मूलन में राजा राममोहन राय की भूमिका पर चर्चा कीजिये। विभिन्न शासकों और औपनिवेशिक शक्तियों ने इस प्रथा पर क्या प्रतिक्रिया दी? |
सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रारंभिक परीक्षाप्रश्न: निम्नलिखित में से किसने डेविड हेयर और अलेक्जेंडर डफ के सहयोग से कलकत्ता में हिंदू कॉलेज की स्थापना की? (2009) (a) हेनरी लुईस विवियन डेरोज़ियो उत्तर: (d) मेन्सQ. यंग बंगाल और ब्रह्म समाज के विशेष संदर्भ में सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलनों के उत्थान और विकास को रेखांकित कीजिये। (2021) Q. 19वीं सदी के सुधारों से लेकर वर्तमान समय तक भारत में महिलाओं के आंदोलन में हुए बदलावों को चिन्हित कीजिये। (2017) |
भारत के प्रति नेपोलियन की महत्त्वाकांक्षा और उसका शासन
प्रारंभिक परीक्षा के लिये:नेपोलियन बोनापार्ट, फारस और रूस, ओरिएंटल वर्ल्ड, सिकंदर महान, टीपू सुल्तान, रूसी ज़ार पॉल I, नेपोलियन सहिंता, महाद्वीपीय व्यवस्था, प्रायद्वीपीय युद्ध, राष्ट्रवाद और प्रतिरोध, मिस्र अभियान, लुइज़ियाना, ऑटोमन साम्राज्य, वाटरलू का युद्ध, सेंट हेलेना, मुख्य परीक्षा के लिये:नेपोलियन बोनापार्ट के बारे में मुख्य तथ्य, महाद्वीपीय व्यवस्था, पुनर्जागरण और उपनिवेशीकरण। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
भारत में नेपोलियन बोनापार्ट की गहरी रुचि से उपमहाद्वीप में ब्रिटिश प्रभुत्व को कमज़ोर करने की उसकी महत्त्वाकांक्षा को बल मिला। यूरोपीय, अमेरिकी और अफ्रीकी राजनीति पर उसका काफी प्रभाव था।
भारत (ओरिएंट) के प्रति नेपोलियन की महत्त्वाकांक्षा क्या थी?
- ओरिएंटल वर्ल्ड:
- यूरोपीय दृष्टिकोण से "ओरिएंटल" शब्द का आशय पूर्वी देशों (जिसमें यूरोप के पूर्व में स्थित क्षेत्र और संस्कृतियाँ शामिल हैं) से था।
- सामान्य तौर पर यह एशिया महाद्वीप को दर्शाता है जिसमें चीन, जापान, इंडोनेशिया, थाईलैंड, वियतनाम और अन्य पूर्वी एशियाई देश शामिल हैं।
- नेपोलियन की ओरिएंट के प्रति महत्त्वाकांक्षा:
- बचपन से ही नेपोलियन बोनापार्ट पूर्वी देशों के प्रति अत्यधिक आकर्षित होने के साथ एशिया में सिकंदर महान की विजयों से उसने प्रेरणा प्राप्त की, जिससे इस क्षेत्र में उसकी महत्त्वाकांक्षाओं को बढ़ावा मिला।
- भारत में उसकी विशेष रुचि वर्ष 1798 के आसपास उसके मिस्र अभियान के दौरान विकसित हुई, जिसका उद्देश्य फ्राँस के मुख्य प्रतिद्वंद्वी ब्रिटेन को धमकाना तथा भारत के साथ बढ़ते ब्रिटिश व्यापार को बाधित करना था।
- नेपोलियन को मिस्र में ब्रिटेन के हाथों हार का सामना करना पड़ा और वर्ष 1799 में टीपू सुल्तान की मृत्यु हो गई, फिर भी भारत में ब्रिटिश नियंत्रण को चुनौती देने की उसकी महत्त्वाकांक्षा आगे भी बनी रही। इस क्रम में ब्रिटेन, रूस और फ्राँस सहित प्रमुख यूरोपीय औपनिवेशिक शक्तियों के बीच क्षेत्रीय संघर्ष की पृष्ठभूमि में विभिन्न रणनीतियाँ विकसित हुईं।
भारत पर आक्रमण में नेपोलियन के साझेदार:
- रूस:
- मिस्र में हार के बाद नेपोलियन को रूसी ज़ार पॉल I ने "ग्रेट गेम" के चरम पर पहुँचने पर संपर्क किया, जो एशियाई क्षेत्रों पर नियंत्रण के लिये ब्रिटेन और रूस के बीच एक भू-राजनीतिक संघर्ष था।
- वर्ष 1801 में ज़ार ने गुप्त रूप से भारत में ब्रिटिश और ईस्ट इंडिया कंपनी को समाप्त करने के लिये एक संयुक्त फ्रेंको-रूसी आक्रमण का प्रस्ताव रखा, जिसमें रूस और फ्राँस के बीच विजित भूमि को विभाजित करने की योजना थी।
- यद्यपि नेपोलियन ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया, लेकिन ज़ार पॉल प्रथम ने उनकी हत्या के बाद मिशन को छोड़ने से पहले कुछ समय तक अकेले ही आगे बढ़ने का प्रयास किया।
- फारस (ईरान):
- यूरोप और भारत के बीच रणनीतिक रूप से स्थित फारस साम्राज्यवादी शक्तियों के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण था। वर्ष 1800 तक नेपोलियन ने फारस को भारत के संदर्भ में एक महत्त्वपूर्ण मार्ग के रूप में देखा तथा फ्राँसीसी एजेंटों से फारसी शाह फतह अली के साथ जुड़ने का आग्रह किया।
- इसकी प्रतिक्रिया में ब्रिटेन ने कैप्टन जॉन मैल्कम को बातचीत के लिये भेजा, जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 1801 में फारस के साथ एक वाणिज्यिक एवं राजनीतिक संधि हुई।
- इस संधि से फारस में फ्राँसीसी प्रभाव को समाप्त किया गया तथा फारस को यह अनुमति दी गई कि यदि अफगानिस्तान से भारत को खतरा हो तो वह उस पर युद्ध कर सकता है।
- ब्रिटेन ने इस संधि से रूस को बाहर रखा, भले ही उस दौरान रूस फारस के लिये सबसे बड़ा खतरा था।
- वर्ष 1801 में रूस ने जॉर्जिया (फारस द्वारा दावा किये गए क्षेत्र पर) पर कब्जा कर लिया तथा वर्ष 1804 तक एरिवान (आधुनिक आर्मेनिया) पर कब्जा करके इसने आगे की और रुख किया।
- इसके बदले में फारस ने ब्रिटेन के साथ संबंध तोड़ने और भविष्य में फ्राँस को युद्ध सहायता देने पर सहमति व्यक्त की।
- जब फारसी शाह ने रूसी हमले के भय से इस संधि के तहत ब्रिटिश सहायता मांगी तो उसके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया गया।
- इसके बाद नेपोलियन ने शाह फतह अली के साथ फिंकेस्टीन की संधि को औपचारिक रूप दिया, जिसमें फारस की क्षेत्रीय संप्रभुत्ता की गारंटी देने के साथ रूस के खिलाफ फ्राँसीसी सैन्य समर्थन का आश्वासन दिया गया।
- फारस के साथ फ्राँसीसी गठबंधन के बावजूद, नेपोलियन ने वर्ष 1807 में रूस के साथ गुप्त समझौते (तिलसिट की संधि पर हस्ताक्षर) किए, जिससे इसके वैश्विक प्रभाव पर असर पड़ा।
- यूरोप में फ्राँस प्रभावी था जबकि रूस का नियंत्रण एशिया पर था। इस गठबंधन से फारस कमज़ोर हुआ और उसने रूसी आक्रमण का मुकाबला करने के लिये फ्राँसीसी मदद मांगी थी।
- गुप्त समझौते के बाद फारसी शाह ने ब्रिटिशों के साथ एक नई संधि की मांग की, जिसके तहत ब्रिटेन ने फारस को सैन्य सहायता और वार्षिक सब्सिडी देने का वादा किया।
टीपू सुल्तान के फ्राँसीसियों से संबंध
- टीपू सुल्तान और उनके पिता हैदर अली ने भारत में अंग्रेज़ों से लड़ने के लिये फ्राँसीसियों के साथ संधि की थी।
- उन्होंने अपने सैनिकों को प्रशिक्षित करने के लिये फ्राँसीसी अधिकारियों का इस्तेमाल किया, लेकिन उन्हें दबाव समूह के निर्माण की अनुमति नहीं दी।
- टीपू सुल्तान फ्राँसीसी क्रांति के आदर्शों से प्रेरित थे। उन्होंने "नागरिक टीपू (Citizen Tipu)" नाम अपनाया और जैकोबिन नामक फ्राँसीसी क्लब के सदस्य बन गए, जो स्वतंत्रता और समान अधिकारों की वकालत करता था।
- उन्होंने अपनी राजधानी श्रीरंगपट्टनम में स्वतंत्रता का वृक्ष भी लगाया।
भारत में फ्राँसीसी
- भारत में प्रथम फ्राँसीसी कारखाना वर्ष 1667 में फ्रेंकोइस कैरन द्वारा सूरत में स्थापित किया गया था, जिसके पश्चात् वर्ष 1669 में मारकारा द्वारा मसूलीपट्टम में कारखाना स्थापित किया गया था।
- उन्होंने मालाबार में माहे, कोरोमंडल में यनम (दोनों वर्ष 1725 में) और तमिलनाडु में करिकल (1739) पर कब्ज़ा कर लिया।
- वर्ष 1742 में भारत में फ्राँसीसी गवर्नर के रूप में डूप्ले के आगमन के साथ ही एंग्लो-फ्रेंच संघर्ष (कर्नाटक युद्ध) की शुरुआत हुई, जिसके परिणामस्वरूप भारत में उनकी अंतिम हार हुई।
- जनवरी 1760 में तमिलनाडु के वांडिवाश (या वंदावसी) में तृतीय कर्नाटक युद्ध का निर्णायक संघर्ष अंग्रेज़ों ने जीत लिया। इसके बाद भारत में साम्राज्य निर्माण की फ्राँसीसी महत्त्वाकांक्षा समाप्त हो गई।
- 1 नवंबर 1954 को भारत में फ्राँसीसी क्षेत्रों को आधिकारिक तौर पर भारतीय संघ में शामिल कर लिया गया और पुदुचेरी एक केंद्र शासित प्रदेश बन गया। इसके साथ ही 280 वर्ष के फ्राँसीसी शासन का अंत हो गया।
- लेकिन वर्ष 1963 में पेरिस में फ्राँसीसी संसद द्वारा भारत के साथ संधि की पुष्टि के बाद ही पुदुचेरी आधिकारिक रूप से भारत का अभिन्न अंग बन पाया।
नेपोलियन बोनापार्ट से संबंधित प्रमुख तथ्य क्या हैं?
- व्यक्तिगत जीवन:
- नेपोलियन बोनापार्ट का जन्म वर्ष 1769 में भूमध्यसागरीय द्वीप कोर्सिका में हुआ था।
- वर्ष 1785 में 16 वर्ष की आयु में, वह तोपखाने में लेफ्टिनेंट बन गए।
- फ्राँसीसी क्रांति के आरंभ होने के बाद नेपोलियन नव स्थापित सरकार की सेना में शामिल हो गया।
- वर्ष 1804 में उन्होंने स्वयं को फ्राँस का सम्राट घोषित कर दिया।
नेपोलियन की भूमिका:
- फ्राँस:
- क्रांतिकारी युद्ध: नेपोलियन आरंभ में फ्राँसीसी क्रांतिकारी संघर्ष के दौरान एक सैन्य कमांडर के रूप में प्रमुखता से उभरे।
- उन्होंने विभिन्न यूरोपीय गठबंधनों के विरुद्ध अभियानों का नेतृत्व किया, विशेष रूप से इटली (वर्ष 1796) और मिस्र (वर्ष 1798) में, और स्वयं को फ्राँस के सबसे महान सैन्य रणनीतिकारों में से एक के रूप में स्थापित किया।
- क्रांतिकारी युद्ध: नेपोलियन आरंभ में फ्राँसीसी क्रांतिकारी संघर्ष के दौरान एक सैन्य कमांडर के रूप में प्रमुखता से उभरे।
- डायरेक्टरी का उन्मूलन: वर्ष 1799 में नेपोलियन ने तख्तापलट में एक केंद्रीय भूमिका निभाई, जिसने अप्रभावी डायरेक्टरी गवर्नमेंट को उखाड़ फेंका, जिससे फ्राँसीसी क्रांति का अंत हुआ और वाणिज्य दूतावास की शुरुआत हुई, जहाँ उन्होंने प्रथम वाणिज्यदूत के रूप में सत्ता संभाली।
- नेपोलियन के द्वारा किये गए युद्ध (वर्ष 1803-1815): सम्राट बनने के बाद (वर्ष 1804), नेपोलियन ने नेपोलियन संघर्ष के रूप में ज्ञात सैन्य अभियानों की एक शृंखला के माध्यम से यूरोप के अधिकांश भागों में फ्राँसीसी क्षेत्रीय नियंत्रण का विस्तार किया।
- उन्होंने सत्ता का केंद्रीकरण किया, प्रशासन का आधुनिकीकरण किया तथा शिक्षा, कराधान और बुनियादी ढाँचे में सुधार लागू किये।
- नेपोलियन संहिता की स्थापना: एक शासक के रूप में नेपोलियन ने वर्ष 1804 में नेपोलियन संहिता की शुरुआत की, जो एक विधिक ढाँचा था जिसने फ्राँसीसी विधिक प्रणाली में सुधार किया।
- इस संहिता में विधि के समक्ष समता, व्यक्तिगत अधिकार और धर्मनिरपेक्ष सरकार पर ज़ोर दिया गया। इससे विभिन्न देशों में विधिक प्रणालियों की बुनियाद रखी गई।
- महाद्वीपीय व्यवस्था: ब्रिटेन को आर्थिक रूप से कमज़ोर करने के लिये नेपोलियन ने महाद्वीपीय व्यवस्था लागू की, जो एक व्यापार नाकाबंदी थी, जिसका उद्देश्य मुख्य भूमि यूरोप के साथ ब्रिटिश वाणिज्य का उन्मूलन करना था। हालाँकि, इस नीति के मिश्रित परिणाम हुए और फ्राँस की अपनी अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचा।
- फ्राँस का आधुनिकीकरण: नेपोलियन ने शिक्षा प्रणाली, बैंकिंग और बुनियादी ढाँचे समेत फ्राँसीसी समाज के विभिन्न पहलुओं का आधुनिकीकरण किया।
- उनके द्वारा किये गए सुधारों ने फ्राँस और व्यापक यूरोपीय महाद्वीप पर स्थायी प्रभाव छोड़ा।
- यूरोप:
- महाद्वीपीय व्यवस्था की स्थापना (1806): नवंबर 1806 में नेपोलियन ने महाद्वीपीय व्यवस्था की स्थापना की, जो एक रणनीतिक नाकाबंदी थी जिसका उद्देश्य महाद्वीपीय यूरोप के साथ उसके व्यापार और संचार को काटकर ग्रेट ब्रिटेन को पृथक करना था।
- इसका प्राथमिक उद्देश्य यूरोप को आत्मनिर्भर बनाना, जिसमें ब्रिटेन के वाणिज्यिक और औद्योगिक सामर्थ्य को कमज़ोर करना था।
- यद्यपि उनके सहयोगी और परिवार के सदस्य महाद्वीपीय व्यवस्था का पालन नहीं करते थे।
- प्रायद्वीपीय युद्ध (वर्ष 1808): उन्होंने पुर्तगाल को महाद्वीपीय व्यवस्था का अनुपालन करने के लिये मज़बूर करने हेतु युद्ध छेड़ा।
- स्पेन में नेपोलियन ने स्पेन के राजा को पदच्युत करके अपने भाई जोसेफ को गद्दी पर बिठाया। स्पेन की जनता ने आक्रोश के साथ प्रतिक्रिया व्यक्त की, जिससे राष्ट्रवादी भावनाएँ भड़क उठीं।
- राष्ट्रवाद और विरोध का विकास: नेपोलियन के कार्यों ने, विशेष रूप से स्पेन में, संपूर्ण यूरोप में राष्ट्रवादी उत्साह को बढ़ावा दिया।
- विदेशी शासकों को थोपने और चर्च समेत स्थानीय संस्थाओं को कमज़ोर करने से व्यापक विरोध को बढ़ावा मिला, जिससे अंततः उनके साम्राज्य का पतन हो गया।
- महाद्वीपीय व्यवस्था की स्थापना (1806): नवंबर 1806 में नेपोलियन ने महाद्वीपीय व्यवस्था की स्थापना की, जो एक रणनीतिक नाकाबंदी थी जिसका उद्देश्य महाद्वीपीय यूरोप के साथ उसके व्यापार और संचार को काटकर ग्रेट ब्रिटेन को पृथक करना था।
- यूरोप से बाहर:
- मिस्र अभियान (वर्ष 1798-1801):
- रणनीतिक उद्देश्य: नेपोलियन के मिस्र अभियान का उद्देश्य मिस्र पर नियंत्रण प्राप्त करके मध्य पूर्व और भारत में ब्रिटिश प्रभाव को कमज़ोर करना था।
- मिस्र ब्रिटेन के उपनिवेशों, विशेषकर भारत, के लिये व्यापार मार्ग का एक महत्त्वपूर्ण माध्यम था, जिससे यह नेपोलियन के उद्देश्यों के लिये रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण बन गया।
- हार और पीछे हटना: पिरामिडों के संघर्ष जैसी प्रारंभिक जीत के बावजूद, अभियान अंततः विफल हो गया।
- नेपोलियन के बेड़े को नील नदी के युद्ध (1798) में अंग्रेज़ों द्वारा नष्ट कर दिया गया, उसे वर्ष 1799 में अपनी सेना छोड़कर फ्राँस लौटने के लिये मज़बूर होना पड़ा।
- मिस्र अभियान (वर्ष 1798-1801):
- अमेरिका में भूमिका:
- लुइसियाना परचेज (1803): एक प्रमुख भू-राजनीतिक निर्णय में, नेपोलियन ने 1803 में लुइसियाना क्षेत्र को 15 मिलियन अमेरिकी डॉलर में संयुक्त राज्य अमेरिका को बेच दिया ।
- लुइसियाना परचेज के नाम से प्रसिद्ध इस बिक्री से अमेरिका का भौगोलिक आकार दोगुना हो गया और यूरोप में नेपोलियन के सैन्य अभियानों के लिये धन एकत्रित करने में मदद मिली।
- इस बिक्री का प्राथमिक लक्ष्य इंग्लैंड के विरुद्ध अमेरिका को सुदृढ़ करना था, क्योंकि वह ब्रिटेन अमेरिका और फ्राँस दोनों का विरोधी था।
- हैती और कैरीबियाई: नेपोलियन ने कैरीबियाई उपनिवेशों, विशेष रूप से सेंट-डोमिंगु (हैती) पर फ्राँसीसी नियंत्रण पुनः स्थापित करने का प्रयास किया, जो अपने चीनी बागानों के कारण सबसे धनी फ्राँसीसी उपनिवेश था।
- हालाँकि टूसेंट लौवरचर के नेतृत्व में दास विद्रोह के बाद, हैती ने वर्ष 1804 में स्वतंत्रता की घोषणा की। नियंत्रण हासिल करने के नेपोलियन के प्रयास विफल हो गए, और हैती पहला स्वतंत्र अश्वेत गणराज्य बन गया।
नेपोलियन की नीतियाँ उसके पतन का कारण कैसे बनीं?
- साम्राज्य का पतन:
- असफल रूसी आक्रमण (1812): वर्ष 1812 में नेपोलियन ने रूस पर आक्रमण किया, झुलसती धरती और कठोर सर्दियों की परिस्थितियों की रूसी रणनीति ने नेपोलियन की ग्रैंड आर्मी को तबाह कर दिया, जिससे भारी क्षति हुई।
- छठवीं युद्ध संधि (1813-1814): असफल रूसी अभियान के बाद, यूरोपीय शक्तियों - ब्रिटेन, रूस, ऑस्ट्रिया और प्रशिया - ने छठवीं युद्ध संधि की और नेपोलियन पर नए आक्रमण किये।
- लीपज़िग का निर्णायक युद्ध (1813) में नेपोलियन को बड़ी हार का सामना करना पड़ा, जिससे मध्य यूरोप में फ्राँसीसी नियंत्रण समाप्त हो गया।
- प्रथम त्यागपत्र और एल्बा निर्वासन (1814):
- भारी पराजय का सामना करते हुए, उन्होंने अप्रैल 1814 में अपने बेटे के पक्ष में गद्दी छोड़ दी।
- पदत्याग के बाद नेपोलियन को इटली के तट से दूर एल्बा द्वीप पर निर्वासित कर दिया गया, जहाँ उसे संप्रभुता प्रदान की गई तथा उसने प्रशासन में सुधार का प्रयास किया।
- भारी पराजय का सामना करते हुए, उन्होंने अप्रैल 1814 में अपने बेटे के पक्ष में गद्दी छोड़ दी।
- वाटरलू के युद्ध में हार (1815):
- नेपोलियन की अपने साम्राज्य को बहाल करने की अंतिम कोशिश जून 1815 में वाटरलू के युद्ध में पराकाष्ठा पर पहुँची, जहाँ उसका सामना ब्रिटिश और प्रशिया की सेनाओं से हुआ। उसकी नवगठित सेना निर्णायक रूप से पराजित हुई, जिसने उसके शासन और नेपोलियन युद्ध के अंत को चिह्नित किया।
- दूसरा त्यागपत्र और सेंट हेलेना में निर्वासन:
- नेपोलियन को सत्ता में वापसी से रोकने के लिये यूरोप से दूर सेंट हेलेना के सुदूर द्वीप पर निर्वासित कर दिया गया था। नेपोलियन ब्रिटिश निगरानी में रहते थे, जिसे उन्होंने अपने संस्मरण में लिखा है और बिगड़ते स्वास्थ्य का सामना करते हुए अपनी विरासत पर विचार करते थे।
- इतिहासकारों का मानना है कि पेट के कैंसर के कारण ही उनकी मृत्यु हुई होगी।
- अपने पतन के बावज़ूद, नेपोलियन की विरासत उसके सुधारों, विशेष रूप से नेपोलियन संहिता के माध्यम से कायम है, जिसने वैश्विक विधिक प्रणालियों को प्रभावित किया।
- उनकी सैन्य रणनीतियाँ अध्ययन का विषय बनी हुई हैं, तथा यूरोपीय राजनीति और शासन पर उनके प्रभाव ने 19वीं शताब्दी को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया।
- नेपोलियन को सत्ता में वापसी से रोकने के लिये यूरोप से दूर सेंट हेलेना के सुदूर द्वीप पर निर्वासित कर दिया गया था। नेपोलियन ब्रिटिश निगरानी में रहते थे, जिसे उन्होंने अपने संस्मरण में लिखा है और बिगड़ते स्वास्थ्य का सामना करते हुए अपनी विरासत पर विचार करते थे।
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