विवाह के लिये समान न्यूनतम आयु
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने दिल्ली और राजस्थान उच्च न्यायालयों में विवाह के लिये "समान न्यूनतम उम्र" (Uniform Minimum Age) घोषित करने के लंबित मामलों को अपने यहाँ ट्रांसफर करने की एक याचिका की जाँच का फैसला किया है।
- केंद्र सरकार ने महिलाओं के विवाह की न्यूनतम आयु पर पुनर्विचार करने के लिये एक समिति भी बनाई है।
प्रमुख बिंदु
- भारत के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India) की अगुवाई वाली एक बेंच ने "सुरक्षित लैंगिक न्याय, लैंगिक समानता और महिलाओं की गरिमा" के लिये दायर याचिका पर सरकार को नोटिस जारी किया है।
- इस याचिका में विवाह की न्यूनतम आयु में विसंगतियों को दूर करने और इसको लिंग और धर्म से परे सभी नागरिकों के लिये एक समान बनाने के लिये केंद्र सरकार को निर्देश देने की मांग की गई है।
- शादी की न्यूनतम उम्र अभी तक महिलाओं के लिये 18 और पुरुषों के लिये 21 वर्ष निर्धारित है।
- इस याचिका में विवाह की न्यूनतम आयु में विसंगतियों को दूर करने और इसको लिंग और धर्म से परे सभी नागरिकों के लिये एक समान बनाने के लिये केंद्र सरकार को निर्देश देने की मांग की गई है।
- सर्वोच्च न्यायालय को अनुच्छेद 139A के तहत दो या दो से अधिक उच्च न्यायालयों के समक्ष लंबित समान या काफी हद तक समान कानून से जुड़े मामले को अपने यहाँ स्थानांतरित करने की शक्ति है।
- यह तर्क दिया गया है कि विवाह के लिये अलग-अलग उम्र मौलिक अधिकारों (अनुच्छेद 14, अनुच्छेद 15 और अनुच्छेद 21) तथा महिलाओं के प्रति सभी प्रकार के भेदभावों को समाप्त करने हेतु अभिसमय (Convention on the Elimination of All Forms of Discrimination Against Women–CEDAW) पर भारत की प्रतिबद्धता के खिलाफ है।
भारत में विवाह से संबंधित वर्तमान कानून:
- हिंदुओं के लिये हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act, 1955) लड़कियों हेतु विवाह की न्यूनतम आयु 18 वर्ष और लड़कों के लिये न्यूनतम आयु 21 वर्ष निर्धारित करता है।
- हालाँकि बाल विवाह गैर-कानूनी नहीं है। नाबालिग के अनुरोध पर विवाह के समय अपराध को शून्य घोषित किया जा सकता है।
- इस्लाम में यौवन (Puberty ) प्राप्त करने वाले नाबालिग का विवाह वैध माना जाता है।
- लड़कियों और लड़कों की शादी की न्यूनतम सम्मति आयु (Age of Consent) को विशेष विवाह अधिनियम (Special Marriage Act, 1954), 1954 और बाल विवाह निषेध अधिनियम (Prohibition of Child Marriage Act), 2006 द्वारा भी क्रमशः 18 और 21 वर्ष निर्धारित किया गया है।
लड़की और लड़का दोनों को एक सामना विवाह योग्य आयु का अधिकार:
- सामाजिक-आर्थिक दृष्टिकोण: लड़कियों की शादी की कानूनी उम्र बढ़ाना सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण से लाभदायक है:
- मातृ मृत्यु दर (Maternal Mortality Ratio) को कम करने में।
- पोषण स्तर को सुधारने में।
- इससे महिलाओं को आजीविका, उच्च शिक्षा और आर्थिक प्रगति के नए अवसर प्राप्त होंगे। इस प्रकार एक अधिक समतावादी समाज का निर्माण हो सकता है।
- शादी की उम्र बढ़ने से विवाह की उम्र अधिक हो जाएगी और इससे स्नातक करने वाली महिलाओं की संख्या में वृद्धि होगी जिससे महिला श्रम शक्ति भागीदारी अनुपात में सुधार होगा।
- स्नातक करने वाली महिलाओं का प्रतिशत 9.8% के मौजूदा स्तर से कम-से- कम 5-7 प्रतिशत और बढ़ जाएगा।
- शादी की कानूनी उम्र अधिक होने पर लड़का और लड़की दोनों आर्थिक तथा सामाजिक रूप से लाभान्वित होंगे। महिलाएँ आर्थिक रूप से सशक्त होकर अपने हित में निर्णय ले सकेंगी।
लड़कियों की विवाह योग्य आयु बढ़ाने और इसे एक समान करने की तार्किकता:
- न्यूनतम उम्र अनिवार्य नहीं है: शादी की न्यूनतम उम्र का मतलब अनिवार्य उम्र नहीं है।
- यह दर्शाता है कि न्यूनतम उम्र से नीचे बाल विवाह करने पर कानून के तहत आपराधिक मुकदमा चलाया जा सकता है।
- लड़कियों के अधिकारों को खतरा: लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 21 साल करने से इस उम्र तक उनके व्यक्तिगत मामलों में हस्तक्षेप रुकेगा।
- संयुक्त राष्ट्र के बाल अधिकारों पर अभिसमय (Conventions of Rights of Child) के अनुसार, बचपन बच्चों का एक विशेष और संरक्षित समय होता है, जिसमें प्रत्येक बच्चे को समान रूप से बढ़ने, सीखने, खेलने और सर्वांगीण विकास का वातावरण मिलना चाहिये।
- माता-पिता द्वारा कानून का दुरुपयोग: माता-पिता द्वारा बाल विवाह कानून का उपयोग बेटियों के खिलाफ किया गया है। यह माता-पिता द्वारा उन लड़कों को सज़ा देने का एक उपकरण बन गया है जिन्हें लड़कियाँ अपनी पसंद से पति चुनती हैं।
- अधिकांश स्व-व्यवस्थित (Self-Arranged) विवाह के मामलों को अदालत में ले जाया जाता है।
- जिनमें से केवल एक-तिहाई मामले अरेंज मैरिज (Arranged Marriage) से संबंधित होते हैं, जिन्हें कभी-कभी माता-पिता या पति द्वारा घरेलू हिंसा और दहेज जैसे मुद्दों के कारण विवाह विच्छेद कराने के लिये लाया जाता है।
- विवाहों की सामाजिक वैधता: भले ही कानून निर्दिष्ट आयु से पहले विवाह को शून्य घोषित कर दे, लेकिन अरेंज मैरिज की सामाजिक वैधता समुदाय की दृष्टि में बनी रहेगी।
- इससे उन लड़कियों की स्थिति खराब हो जाती है जो शादी के लिये निर्धारित कानूनी उम्र तक पहुँचने से पहले विधवा हो जाती हैं।
- कन्या भ्रूण हत्या में वृद्धि: लड़कियों के विवाह की उम्र बढ़ाने से पुत्रों को अधिक वरीयता देने और उच्च गरीबी वाले देशों में कन्या भ्रूण हत्या तथा लिंग-चयनात्मक गर्भपात को बढ़ावा मिल सकता है।
आगे की राह
- सोच को बदलना:
- इस कानून से लोगों के मानसिक परिवर्तन के बाद ही ज़मीनी स्तर पर प्रभावी बदलाव लाया जा सकता है। जब तक मानसिक परिवर्तन नहीं होगा तब तक इस दिशा में कोई भी कानूनी पहल सफल नहीं हो सकती।
- रूढ़िबद्ध धारणा को बदलना:
- शादी के लिये उम्र बढ़ाना कानूनी रूप से भी ज़रूरी है, क्योंकि हमें इस विकृत मानसिकता से बाहर निकलना होगा कि महिलाएँ समान उम्र के पुरुषों की तुलना में अधिक परिपक्व होती हैं और इसलिये उन्हें जल्द शादी करने की अनुमति दी जा सकती है।