भारतीय अर्थव्यवस्था
आत्मनिर्भर भारत 3.0
प्रिलिम्स के लियेआत्मनिर्भर भारत 3.0 मेन्स के लियेभारतीय अर्थव्यवस्था को गति देने के लिये आत्मनिर्भर भारत 3.0 की घोषणा |
चर्चा में क्यों?
12 नवंबर, 2020 केंद्रीय वित्त मंत्री ने नए आत्मनिर्भर भारत 3.0 (AtmaNirbhar Bharat 3.0) के तहत 12 नए उपायों की घोषणा की, जो मौजूदा COVID-19 महामारी के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था को गति देने के लिये 2.65 लाख करोड़ रुपए के प्रोत्साहन पैकेज के रूप में हैं।
प्रमुख बिंदु:
- भारतीय अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति:
- वर्ष-दर-वर्ष की तरह अक्तूबर 2020 में ऊर्जा खपत में 12% की वृद्धि हुई है।
- बैंक ऋण की वृद्धि दर 5.1 प्रतिशत है और शेयर बाज़ार रिकॉर्ड ऊँचाई पर है।
- RBI ने तीसरी तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था के सकारात्मक वृद्धि पर लौटने की संभावना का अनुमान लगाया।
- मूडीज द्वारा वर्ष 2021 के लिये भारत के जीडीपी पूर्वानुमान को संशोधित कर 8.1% से 8.6% कर दिया गया है।
- आत्मनिर्भर भारत 1.0 (Aatmanirbhar Bharat 1.0) के बारे में बताते हुए केंद्रीय वित्त मंत्री ने कहा कि 28 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों (UTs) को 1 सितंबर, 2020 से राशन कार्डों की राष्ट्रीय पोर्टेबिलिटी के तहत लाया गया है।
- स्ट्रीट वेंडर्स के लिये पीएम स्वनिधि (PM SVANIDI) योजना के तहत 26.2 लाख ऋण आवेदन प्राप्त हुए हैं।
- केंद्रीय वित्त मंत्री ने कहा कि किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से 2.5 करोड़ किसानों को ऋण प्रोत्साहन दिया गया है और 1.4 लाख करोड़ रुपए किसानों को वितरित किये गए हैं। अलग से 1700 करोड़ रुपए की लागत वाली प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (Pradhan Mantri Matsya Sampada Yojana) के लिये 21 राज्यों के प्रस्तावों को मंज़ूरी दी गई है।
- ‘इमरजेंसी क्रेडिट लिक्विडिटी गारंटी स्कीम’ (Emergency Credit Liquidity Guarantee Scheme) के तहत 61 लाख उधारकर्त्ताओं के लिये 2.05 लाख करोड़ रुपए की राशि मंज़ूर की गई है, जिसमें से 1.52 लाख करोड़ रुपए का वितरण किया गया है।
- 17 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के डिस्कॉम के लिये 1.18 लाख करोड़ रुपए मंजूर किये गए हैं।
‘आत्मनिर्भर भारत 3.0’ के तहत 12 नई घोषणाएँ:
- ‘आत्मनिर्भर भारत रोज़गार योजना’ (Aatmanirbhar Bharat Rozgar Yojana):
- यह योजना नई नौकरियों के सृजन के लिये प्रोत्साहित करेगी।
- EPFO-पंजीकृत संगठनों द्वारा नियुक्त नए कर्मचारियों को COVID-19 महामारी के दौरान लाभ मिलेगा।
- ‘आत्मनिर्भर भारत रोज़गार योजना’ 1 अक्तूबर, 2020 से लागू होगी।
- EPFO-पंजीकृत संगठन, यदि नए कर्मचारियों की भर्ती करते हैं या जो पहले नौकरी खो चुके हैं वे कर्मचारी कुछ लाभ प्राप्त करने के हकदार हैं। यदि 1 अक्तूबर, 2020 से 30 जून, 2021 तक नए कर्मचारियों की भर्ती की जाती है, तो अगले दो वर्षों के लिये प्रतिष्ठानों को कवर किया जाएगा।
- MSMEs, व्यवसायों, MUDRA उधारकर्त्ताओं और व्यक्तियों (व्यावसायिक उद्देश्यों के लिये ऋण) के लिये आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (Emergency Credit Line Guarantee Scheme- ECLGS) को 31 मार्च, 2021 तक बढ़ाया गया है। कामथ समिति द्वारा 50 करोड़ रुपए से अधिक के बकाया ऋण और 500 करोड़ रुपए तक के दायरे में आने वाले 26 संकटग्रस्त क्षेत्रों और स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के निकायों को इसके अंतर्गत शामिल किया जाएगा।
- 10 क्षेत्रों को 1.46 लाख करोड़ रुपए की ‘उत्पादन लिंक्ड प्रोत्साहन (Production Linked Incentive- PLI) योजना’ प्रदान की जा रही है। इससे घरेलू विनिर्माण की प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी। अगले पाँच वर्षों के लिये लगभग 1.5 लाख करोड़ रुपए की कुल राशि को इन क्षेत्रों के लिये आवंटित किया गया है।
- वित्त मंत्री ने पीएम आवास योजना (शहरी) के लिये 18,000 करोड़ रुपए के अतिरिक्त परिव्यय की घोषणा की जिसके तहत 12 लाख घरों को स्थापित किया जाएगा और 18 लाख घरों के निर्माण कार्य को पूरा किया जाएगा। इससे 78 लाख अतिरिक्त नौकरियाँ पैदा होंगी और इस्पात व सीमेंट के उत्पादन एवं बिक्री में सुधार होगा।
- निर्माण/अवसंरचना क्षेत्र में सरकार द्वारा अनुबंधों पर परफॉर्मेंस सिक्योरिटी को 5-10% से घटाकर 3% कर दिया गया है। इससे बिड टेंडरों (Bid Tenders) के लिये बयाना राशि (Earnest Money Deposit-EMD) की आवश्यकता नहीं होगी और इसे बिड सिक्योरिटी डिक्लेरेशन (Bid Security Declaration) द्वारा प्रतिस्थापित किया जाएगा। यह छूट 31 दिसंबर, 2021 तक लागू रहेगी।
- भारत सरकार ने डेवलपर्स एवं घर खरीदारों के लिये 2 करोड़ रुपए तक की कर राहत की घोषणा की। आवासीय इकाइयों की प्राथमिक बिक्री के लिये 2 करोड़ रुपए तक के दायरे में 12 नवंबर, 2020 से 30 जून, 2021 तक सर्कल रेट और रियल एस्टेट इनकम टैक्स में एग्रीमेंट वैल्यू के बीच अंतर 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत किया गया।
- भारत सरकार राष्ट्रीय निवेश एवं अवसंरचना कोष (National Investment and Infrastructure Fund- NIIF) में 6,000 करोड़ रुपए का इक्विटी निवेश करेगी, जो बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिये वर्ष 2025 तक 1.1 लाख करोड़ रुपए जुटाने में NIIF की मदद करेगा।
- किसानों को 65,000 करोड़ रुपए की उर्वरक सब्सिडी प्रदान की जाएगी।
- आगामी वित्त वर्ष 2021 में पीएम गरीब कल्याण रोज़गार योजना (PM Garib Kalyan Rozgar Yojana) के लिये 10,000 करोड़ रुपए के अतिरिक्त परिव्यय की व्यवस्था की जाएगी।
- वित्त मंत्री द्वारा 3,000 करोड़ रुपए की अतिरिक्त घोषणा की गई जिसे भारतीय विकास सहायता योजना (Indian Development Assistance Scheme- IDEAS Scheme) के माध्यम से निर्यात परियोजनाओं के लिये एक्जिम बैंक को जारी किया जाएगा।
- भारतीय विकास सहायता योजना (IDEAS), परियोजनाओं के लिये रियायती वित्तपोषण प्रदान करती है और प्राप्तकर्त्ता विकासशील देशों में बुनियादी ढाँचे के विकास और क्षमता निर्माण में योगदान देती है।
- रक्षा उपकरणों, औद्योगिक बुनियादी ढाँचे और हरित ऊर्जा पर पूंजी एवं औद्योगिक व्यय के लिये 10,200 करोड़ रुपए का अतिरिक्त बजट प्रोत्साहन दिया जाएगा।
- वित्त मंत्री ने COVID-19 के टीका विकास के लिये 900 करोड़ रुपए के R&D अनुदान की घोषणा की। इसमें वैक्सीन वितरण के लिये वैक्सीन या लॉजिस्टिक्स की लागत शामिल नहीं है।
निष्कर्ष:
- इस प्रकार ‘आत्मनिर्भर भारत 3.0’ में भारत सरकार द्वारा किया जाने वाला कुल खर्च 2.65 लाख करोड़ रुपए है। इसके साथ ही भारत सरकार द्वारा COVID-19 महामारी के लिये प्रोत्साहन उपायों पर किया जाने वाला कुल खर्च लगभग 17.16 लाख करोड़ रुपए है, जबकि भारत सरकार एवं RBI द्वारा कुल प्रोत्साहन राशि 29.87 लाख करोड़ रुपए है, जो कि भारत की जीडीपी का 15% है।
- गौरतलब है कि केंद्रीय वित्त मंत्री द्वारा ये घोषणाएँ कैबिनेट द्वारा एडवांस केमिस्ट्री सेल बैटरी, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं प्रौद्योगिकी उत्पादों, ऑटोमोबाइल एवं ऑटो घटकों के विनिर्माण सहित 10 क्षेत्रों के लिये उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन [Production-Linked Incentive (PLI)] योजना को मंज़ूरी देने के एक दिन बाद की गई हैं। इन 10 क्षेत्रों हेतु PLI योजना पाँच वर्षों के लिये क्रियान्वित होगी, जिसका कुल अनुमानित परिव्यय 1.46 लाख करोड़ रुपए होगा।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
विदेशी अंशदान से संबंधित नियमों में परिवर्तन
प्रिलिम्स के लियेविदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम, 2010 मेन्स के लियेविदेशी अंशदान के विनियमन की आवश्यकता, नियमों में किये गए परिवर्तन और उनकी आलोचना |
चर्चा में क्यों?
गृह मंत्रालय ने विदेशी अंशदान से संबंधित नियमों को और कठोर बनाने के उद्देश्य से विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम, 2010 के तहत नए नियम अधिसूचित किये हैं।
प्रमुख बिंदु
- नए नियम
- गृह मंत्रालय द्वारा अधिसूचित नए नियमों के अनुसार, किसी भी संगठन के लिये विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (FCRA) के तहत स्वयं को पंजीकृत कराने हेतु कम-से-कम तीन वर्ष के लिये अस्तित्त्व में होना आवश्यक है। साथ ही यह भी आवश्यक है कि उस संगठन ने समाज के लाभ के लिये गत तीन वर्षों के दौरान अपनी मुख्य गतिविधियों पर न्यूनतम 15 लाख रुपए खर्च किये हों।
- हालाँकि असाधारण मामलों में केंद्र सरकार को किसी संगठन को इन शर्तों से छूट देने का अधिकार है।
- विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (FCRA) के तहत पंजीकरण कराने वाले संगठनों के पदाधिकारियों को विदेशी योगदान की राशि और जिस उद्देश्य हेतु वह राशि दी गई है, के लिये दानकर्त्ता से एक विशिष्ट प्रतिबद्धता पत्र जमा कराना होगा।
- यदि भारतीय प्राप्तकर्त्ता संगठन और विदेशी दानकर्त्ता संगठन में कार्यरत लोग एक ही हैं तो भारतीय संस्था को अंशदान प्राप्त करने के लिये पूर्व अनुमति केवल तभी दी जाएगी जब-
- प्राप्तकर्त्ता संगठन का मुख्य अधिकारी दानकर्त्ता संगठन का हिस्सा नहीं है।
- प्राप्तकर्त्ता संगठन के पदाधिकारी अथवा शासी निकाय के सदस्यों में से 75 प्रतिशत लोग विदेशी दाता संगठन के सदस्य या कर्मचारी नहीं हैं।
- यदि विदेशी दानकर्त्ता एकल व्यक्ति है तो यह आवश्यक है कि-
- वह व्यक्ति प्राप्तकर्त्ता संगठन का पदाधिकारी न हो।
- प्राप्तकर्त्ता संगठन के पदाधिकारी अथवा शासी निकाय के सदस्यों में से 75 प्रतिशत लोग विदेशी दानकर्त्ता के रिश्तेदार न हों।
- विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (FCRA) के तहत पंजीकरण के लिये आवेदन शुल्क 3,000 रुपए से बढ़ाकर 5,000 रुपए कर दिया गया है।
- इसके अलावा संशोधन के माध्यम से FCRA नियम, 2011 में एक नया खंड शामिल किया गया है, जिसमें कहा गया है कि नियम के खंड V और VI में उल्लिखित समूह यदि किसी भी तरह से सक्रिय राजनीति में भाग लेते हैं तो उन्हें केंद्र सरकार द्वारा राजनीतिक समूह माना जाएगा।
- राजनीतिक संगठनों अथवा ‘सक्रिय राजनीति’ में हिस्सा लेने वाले संगठनों पर विदेशी अंशदान प्राप्त करने से रोक लगाई गई है।
- गृह मंत्रालय द्वारा अधिसूचित नए नियमों के अनुसार, किसी भी संगठन के लिये विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (FCRA) के तहत स्वयं को पंजीकृत कराने हेतु कम-से-कम तीन वर्ष के लिये अस्तित्त्व में होना आवश्यक है। साथ ही यह भी आवश्यक है कि उस संगठन ने समाज के लाभ के लिये गत तीन वर्षों के दौरान अपनी मुख्य गतिविधियों पर न्यूनतम 15 लाख रुपए खर्च किये हों।
ध्यातव्य है कि FCRA नियम, 2011 के नियम 3 के खंड V और खंड VI किसानों, श्रमिकों, छात्रों, युवाओं तथा जाति, समुदाय, धर्म अथवा भाषा के आधार पर बनने वाले ऐसे संगठनों से संबंधित है, जो प्रत्यक्ष तौर पर किसी भी राजनीतिक दल से नहीं जुड़े हैं, किंतु वे अपनी गतिविधियों के माध्यम से अपने हितों को बढ़ावा दे रहे हैं और साथ ही ऐसे समूह भी जो अपने हित के लिये राजनीतिक गतिविधियों जैसे कि बंद, हड़ताल और रास्ता रोको आदि में संलग्न होते हैं।
प्रभाव
- सरकार के इस निर्णय से गैर-सरकारी संगठनों के लिये विदेशों से अंशदान प्राप्त करना और भी चुनौतीपूर्ण हो जाएगा।
- ध्यातव्य है कि इससे पूर्व सितंबर माह में जब संसद ने विदेशी अंशदान विनियमन (संशोधन) विधेयक, 2020 पारित किया था, तब न्यायविदों के अंतर्राष्ट्रीय आयोग (ICJ) समेत कई अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने सरकार के इस कदम की आलोचना की थी।
- कई आलोचक मानते हैं कि सरकार द्वारा इन संशोधनों का उपयोग ऐसे संगठनों के विरुद्ध कार्यवाही करने के लिये किया जा रहा है, जो सरकार के विरुद्ध बोल रहे हैं।
विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम, 2010 में संशोधन
- संशोधन के माध्यम से गैर-सरकारी संगठन (NGOs) या विदेशी योगदान प्राप्त करने वाले लोगों और संगठनों के सभी पदाधिकारियों, निदेशकों एवं अन्य प्रमुख अधिकारियों के लिये आधार (Aadhaar) को एक अनिवार्य पहचान दस्तावेज़ बना दिया गया था।
- संशोधन के बाद अब कोई भी व्यक्ति, संगठन या रजिस्टर्ड कंपनी विदेशी अंशदान प्राप्त करने के पश्चात् किसी अन्य संगठन को उस विदेशी योगदान का ट्रांसफर नहीं कर सकती है।
- विदेशी अंशदान केवल स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI), नई दिल्ली की उस शाखा में ही प्राप्त किया जाएगा, जिसे केंद्र सरकार अधिसूचित करेगी।
- अब कोई भी गैर-सरकारी संगठन (NGO) विदेशी अंशदान की 20 प्रतिशत से अधिक राशि का इस्तेमाल प्रशासनिक खर्च पर नहीं कर सकता है।
- ध्यातव्य है कि सरकार द्वारा किये गए इन संशोधनों की राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काफी आलोचना की गई थी।
पृष्ठभूमि
- विदेशी अंशदान को नियंत्रित करने के उद्देश्य से विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम को सर्वप्रथम वर्ष 1976 में अधिनियमित किया गया, जिसके बाद वर्ष 2010 में विदेशी अंशदान को नियंत्रित करने से संबंधित नए उपाय अपनाए गए और विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम को संशोधित किया गया।
- इस अधिनियम का प्राथमिक उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अंशदान के कारण भारत की आंतरिक सुरक्षा पर कोई प्रतिकूल प्रभाव न पड़े।
- यह अधिनियम उन सभी संघों, समूहों और गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) पर लागू होता है जो किसी भी उद्देश्य के लिये विदेशों से अनुदान प्राप्त करते हैं।
- इस अधिनियम के तहत विधायिका और राजनीतिक दलों के सदस्य, सरकारी अधिकारी, न्यायाधीश तथा मीडियाकर्मी आदि को किसी भी प्रकार के विदेशी अंशदान प्राप्त करने से प्रतिबंधित किया गया है।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत में तकनीकी मंदी की आशंका
प्रिलिम्स के लियेभारतीय रिज़र्व बैंक, सकल घरेलू उत्पाद, तकनीकी मंदी, नाउकास्ट, व्यापार चक्र मेन्स के लियेतकनीकी मंदी का अर्थ और निहितार्थ, भारतीय अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति |
चर्चा में क्यों?
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा नवंबर माह के लिये जारी हालिया मासिक बुलेटिन के मुताबिक, वित्तीय वर्ष 2020-21 की दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में भारतीय अर्थव्यवस्था के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 8.6 प्रतिशत का संकुचन दर्ज किया जा सकता है।
- इस आधार पर रिज़र्व बैंक ने अपने मासिक बुलेटिन में कहा है कि भारत मौजूदा वित्तीय वर्ष की पहली छमाही में तकनीकी मंदी (Technical Recession) में प्रवेश कर सकता है।
प्रमुख बिंदु
- रिज़र्व बैंक ने नवंबर माह के अपने मासिक बुलेटिन में पहली बार ‘नाउकास्ट’ (Nowcast) जारी किया है, जिसके अनुमान के मुताबिक मौजूद वित्तीय वर्ष की दूसरी तिमाही में भी अर्थव्यवस्था में संकुचन हो सकता है।
- प्रायः भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) और इसी तरह के अन्य संस्थानों द्वारा पूर्वानुमान अथवा ‘फोरकास्ट’ (Forecast) जारी किया जाता है, किंतु रिज़र्व बैंक ने पहली बार आधुनिक प्रणाली का उपयोग कर ‘नाउकास्ट’ (Nowcast) जारी किया है, जिसमें एकदम निकट भविष्य में अर्थव्यवस्था की स्थिति की बात की गई है। इस तरह नाउकास्ट में एक प्रकार से वर्तमन की ही बात की जाती है।
- ध्यातव्य है कि मौजूदा वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल से जून) में भी भारतीय अर्थव्यवस्था के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में रिकॉर्ड 23.9 प्रतिशत का संकुचन दर्ज किया गया था, जो कि बीते एक दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था का सबसे खराब प्रदर्शन था।
क्या होती है ‘तकनीकी मंदी’?
- सरल शब्दों में ‘तकनीकी मंदी’ का अर्थ ऐसी स्थिति से होता है जब किसी देश की अर्थव्यवस्था में लगातार दो तिमाहियों तक संकुचन देखने को मिलता है।
- किसी भी अर्थव्यवस्था में जब वस्तुओं और सेवाओं का समग्र उत्पादन, जिसे आमतौर पर GDP के रूप में मापा जाता है- एक तिमाही से दूसरी तिमाही तक बढ़ता है, तो इसे अर्थव्यवस्था के विस्तार की अवधि (Expansionary Phase) कहा जाता है।
- वहीं इसके विपरीत जब वस्तुओं और सेवाओं का समग्र उत्पादन एक तिमाही से दूसरी तिमाही में कम हो जाता है तो इसे अर्थव्यवस्था में मंदी की अवधि (Recessionary Phase) कहा जाता है।
- इस तरह ये दोनों स्थितियाँ एक साथ मिलकर किसी अर्थव्यवस्था में ‘व्यापार चक्र’ (Business Cycle) का निर्माण करती हैं।
- यदि किसी अर्थव्यवस्था में मंदी की अवधि (Recessionary Phase) लंबे समय तक रहती है तो यह कहा जाता है कि अर्थव्यवस्था में मंदी (Recession) की स्थिति आ गई है। अन्य शब्दों में हम कह सकते हैं कि जब अर्थव्यवस्था में GDP एक लंबी अवधि तक संकुचित होती रहती है, तो माना जाता है कि अर्थव्यवस्था मंदी की स्थिति में पहुँच गई है।
- हालाँकि मंदी की अवधि की कोई सार्वभौमिक स्वीकृत समयावधि नहीं है, यानी यह तय नहीं है कि कितने समय तक अर्थव्यवस्था में संकुचन को मंदी कहा जाएगा।
- साथ ही यहाँ यह भी तय नहीं है कि क्या GDP को मंदी का निर्धारण करने का एकमात्र कारक माना जा सकता है।
- कई जानकार मानते हैं कि मंदी का निर्धारण करते समय अर्थव्यवस्था में वस्तुओं और सेवाओं के समग्र उत्पादन के साथ-साथ अन्य कारकों जैसे- बेरोज़गारी और निजी खपत आदि का ध्यान रखा जाना चाहिये।
- इन्हीं कुछ समस्याओं से बचने के लिये अर्थशास्त्री प्रायः लगातार दो तिमाहियों में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (Real GDP) में गिरावट आने को ‘तकनीकी मंदी’ के रूप में संबोधित करते हैं।
कितनी लंबी होती है मंदी की अवधि?
- आमतौर पर मंदी कुछ तिमाहियों तक ही रहती है और यदि इसकी अवधि एक वर्ष या उससे अधिक हो जाती है तो इसे अवसाद अथवा महामंदी (Depression) कहा जाता है।
- हालाँकि अवसाद अथवा महामंदी की स्थिति किसी भी अर्थव्यवस्था में काफी दुर्लभ होती है और कम ही देखी जाती है। ज्ञात हो कि आखिरी बार अमेरिका में 1930 के दशक में महामंदी (Depression) की स्थिति देखी गई।
- वर्तमान स्थिति को देखते हुए कहा जा सकता है कि यदि भारतीय अर्थव्यवस्था को अवसाद अथवा महामंदी (Depression) की स्थिति में जाने से बचना है और मंदी की स्थिति से बाहर निकलना है तो जल्द-से-जल्द महामारी के प्रयास को रोकना होगा।
भारत के संदर्भ
- रिज़र्व बैंक के अनुमान के अनुसार, मौजूदा वित्तीय वर्ष की दूसरी तिमाही में भी अर्थव्यवस्था में संकुचन देखने को मिल सकता है, जबकि वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था में रिकॉर्ड 23.9 प्रतिशत का संकुचन दर्ज किया गया था।
- इस तरह हम कह सकते हैं कि भारत अब आधिकारिक तौर पर ‘तकनीकी मंदी’ की स्थिति में प्रवेश करने वाला है, हालाँकि इस मंदी को अप्रत्याशित नहीं माना जाना चाहिये, क्योंकि कोरोना वायरस महामारी और देशव्यापी लॉकडाउन के कारण भारत आर्थिक मोर्चे पर काफी प्रभावित हुआ है।
- मार्च माह में देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा के साथ ही कई अर्थशास्त्रियों ने यह घोषणा कर दी थी कि भारत मंदी की चपेट में आ सकता है, हालाँकि यहाँ हमें यह भी नहीं भूलना चाहिये कि महामारी की शुरुआत से पूर्व भी भारतीय अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन कुछ संतोषजनक नहीं रहा था।
- अधिकांश अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि मौजूदा वित्तीय वर्ष की तीसरी तिमाही में भी भारतीय अर्थव्यवस्था में काफी अधिक संकुचन देखने को मिल सकता है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
17वाँ आसियान-भारत शिखर सम्मेलन
प्रिलिम्स के लिये:आसियान-भारत शिखर सम्मेलन, एक्ट ईस्ट नीति, क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी मेन्स के लिये:भारत-आसियान संबंध |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में 17वाँ आसियान-भारत शिखर सम्मेलन आभासी रूप से आयोजित किया गया, जिसमें भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा भागीदारी की गई।
प्रमुख बिंदु:
- वियतनाम की अध्यक्षता में सभी दस आसियान सदस्य देशों द्वारा शिखर सम्मेलन में भागीदारी की गई।
- सम्मेलन के दौरान दक्षिण चीन सागर और आतंकवाद सहित सामान्य हित एवं चिंता के क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा की गई।
पृष्ठभूमि:
- आसियान के साथ भारत का संबंध हमारी विदेश नीति की एक प्रमुख आधारशिला के रूप में उभरा है, जिसका विकास 1990 के दशक की शुरुआत में भारत द्वारा प्रारंभ 'लुक ईस्ट पॉलिसी’ से माना जा सकता है।
- वर्ष 1992 में भारत को आसियान का क्षेत्रीय भागीदार/सेक्टर पार्टनर तथा वर्ष 1996 में एक डायलॉग पार्टनर बनाया गया।
- वर्ष 2002 में आसियान-भारत शिखर सम्मेलन की शुरुआत हुई। 16वाँ भारत-आसियान शिखर सम्मेलन बैंकॉक, थाईलैंड में 03 नवंबर, 2019 को आयोजित किया गया था।
शिखर सम्मेलन में चर्चा के प्रमुख विषय:
भारत-प्रशांत क्षेत्र (Indo-Pacific Region):
- दोनों पक्षों द्वारा हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय कानूनों, विशेषकर 'संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि' (UNCLOS) के पालन के साथ-साथ इस क्षेत्र में एक नियम-आधारित व्यवस्था को बढ़ावा देने के महत्त्व को उजागर किया गया।
- दोनों पक्षों के नेताओं द्वारा दक्षिण चीन सागर में शांति, स्थिरता और सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिये नेविगेशन तथा ओवरफ्लाइट की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने पर बल दिया गया।
- सम्मेलन के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री ने कहा कि उत्तरदायीपूर्ण, संवेदनशील तथा समृद्ध आसियान, भारत के 'इंडो-पैसिफिक विज़न' तथा हिंद महासागर के लिये रणनीतिक विज़न ‘सागर’ (Security and Growth for All in the Region -SAGAR) के केंद्र में है।
आसियान केंद्रित ‘एक्ट ईस्ट’ नीति:
- शिखर सम्मेलन में बोलते हुए प्रधानमंत्री द्वारा भारत की ‘एक्ट ईस्ट नीति’ में आसियान की केंद्रीयता को रेखांकित किया गया।
- आसियान देशों द्वारा भी भारत-प्रशांत क्षेत्र में शांति और स्थिरता को बढ़ावा देने में भारत के योगदान को स्वीकार किया और आसियान केंद्रीयता आधारित भारत की ‘एक्ट ईस्ट नीति’ का स्वागत किया गया।
भारत-आसियान कनेक्टिविटी:
- प्रधानमंत्री द्वारा आसियान देशों और भारत के बीच अधिक-से-अधिक भौतिक एवं डिजिटल कनेक्टिविटी के महत्त्व को भी रेखांकित किया गया।
- सम्मेलन में भारत-आसियान कनेक्टिविटी का समर्थन करने के लिये 1 बिलियन डॉलर की क्रेडिट लाइन के भारत के प्रस्ताव को दोहराया गया।
'आसियान-भारत कार्ययोजना':
- सम्मेलन के भागीदार देशों द्वारा वर्ष 2021-2025 के लिये नवीन 'आसियान-भारत कार्ययोजना' (ASEAN-India Action Plan) को अपनाए जाने का भी स्वागत किया गया।
- आसियान-भारत कार्ययोजना शांति, प्रगति और साझा समृद्धि के लिये आसियान-भारत सामरिक भागीदारी के कार्यान्वयन हेतु मार्गदर्शन करती है।
COVID-19 आसियान रिस्पांस फंड:
- प्रधानमंत्री द्वारा COVID-19 महामारी के प्रति आसियान देशों द्वारा व्यक्त की गई प्रतिक्रिया की सराहना की गई तथा 'COVID-19 आसियान रिस्पांस फंड' में 1 मिलियन अमेरिकी डॉलर के योगदान की घोषणा भी की गई।
RCEP का मुद्दा:
- भारत के 'क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी' (RCEP) समझौते से बाहर होने के बावजूद आसियान-भारत द्वारा व्यापार बढ़ाने पर सहमति व्यक्त की गई है।
- यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि भारत सरकार द्वारा विगत वर्ष RCEP समूह में शामिल न होने का निर्णय लिया गया।
- RCEP एक ' मुक्त व्यापार समझौता' है जिस पर चीन, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया, जापान और दस आसियान देशों द्वारा 15 नवंबर, 2020 को हस्ताक्षर किये जाने की उम्मीद है।
आगे की राह:
- आसियान के साथ भारत का 23.88 बिलियन डॉलर का व्यापार घाटा है। 'आसियान-भारत वस्तु माल समझौते' ( ASEAN-India Trade in Goods Agreement- AITGA) की फिर से समीक्षा किये जाने की आवश्यकता है ताकि भारत अपनी आपूर्ति शृंखलाओं के विविधीकरण और लचीलेपन को बढ़ावा दे सके।
- दोनों पक्षों को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में व्यापक सहयोग के लिये‘हिंद-प्रशांत महासागरीय पहल’ (Indo-Pacific Oceans Initiative- IPOI) और 'आसियान आउटलुक ऑन इंडो-पैसिफिक' (ASEAN Outlook on Indo-Pacific) के बीच अभिसरण को मज़बूत करने की आवश्यकता है।
स्रोत: पीआईबी
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
स्वर्ण जयंती फैलोशिप योजना
प्रिलिम्स के लिये:स्वर्ण जयंती फैलोशिप योजना, रामानुजन फैलोशिप, वज्र योजना मेन्स के लिये:स्वर्ण जयंती फैलोशिप योजना |
चर्चा में क्यों?
हाल ही 21 वैज्ञानिकों का चयन 'स्वर्ण जयंती फैलोशिप' (Swarna Jayanti fellowship) के लिये किया गया है।
प्रमुख बिंदु:
- 'स्वर्ण जयंती फैलोशिप योजना' का उद्देश्य 'विज्ञान और प्रौद्योगिकी' के प्रमुख क्षेत्रों में बुनियादी अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिये वैज्ञानिकों को विशेष सहायता प्रदान करना है।
- 'स्वर्ण जयंती फैलोशिप योजना' को सरकार द्वारा भारत की स्वतंत्रता के 50वें वर्ष के उपलक्ष्य में शुरू किया गया था।
योजना संबंधी प्रावधान:
- योजना के तहत चयनित वैज्ञानिकों को विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार द्वारा 25,000 रुपए प्रतिमाह की फैलोशिप 5 वर्ष तक प्रदान की जाती है।
- फैलोशिप के अलावा योजना के तहत उपकरणों, कम्प्यूटेशनल सुविधाओं, उपभोग्य सामग्रियों, आकस्मिकताओं, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय यात्राओं तथा अन्य विशेष आवश्यकताओं के लिये अनुदान भी मेरिट के आधार पर प्रदान किया जाता है।
- इसके तहत 5 वर्षों के लिये 5 लाख रुपए का अनुसंधान अनुदान भी प्रदान किया जाता है। फैलोशिप उनके मूल संस्थान से मिलने वाले वेतन के अतिरिक्त प्रदान की जाती है।
- फैलोशिप के लिये चुने गए वैज्ञानिकों को अनुसंधान योजना में अनुमोदित व्यय के संदर्भ में स्वतंत्रता और लचीलेपन के साथ शोध को आगे बढ़ाने की अनुमति है।
अन्य प्रमुख अनुसंधान प्रोत्साहन योजनाएँ:
वज्र (Visiting Advanced Joint Research-VAJRA) योजना:
- यह योजना अनिवासी भारतीयों (NRIs) और विदेशी भारतीय नागरिकों (OCIs) सहित विदेशी वैज्ञानिकों और शिक्षाविदों को भारत के सार्वजनिक वित्तपोषित संस्थानों और विश्वविद्यालयों में एक विशिष्ट अवधि तक काम करने के लिये प्रोत्साहित करने हेतु प्रारंभ की गई है।
रामानुजन फैलोशिप (Ramanujan Fellowship):
- यह अध्येतावृत्ति विदेशों में रह रहे क्षमतावान भारतीय शोधकर्त्ताओं को भारतीय संस्थानों/विश्वविद्यालयों में काम करने के लिये विज्ञान, इंजीनियरिंग और चिकित्सा के सभी क्षेत्रों में आकर्षक विकल्प और अवसर प्रदान करती है।
रामालिंगस्वामी पुनः प्रवेश अध्येतावृत्ति/ फैलोशिप:
- यह योजना देश के बाहर काम कर रहे भारतीय मूल के वैज्ञानिकों को प्रोत्साहित करने के लिये निर्मित की गई है।
वरिष्ठ अनुसंधान एसोसिएटशिप (SRA)/(वैज्ञानिक पूल योजना):
- यह योजना मुख्य रूप से विदेशों से भारत लौट रहे उच्च योग्यता वाले उन भारतीय वैज्ञानिकों, इंजीनियरों, प्रौद्योगिकीविदों और चिकित्सा कार्मिकों को अस्थायी प्लेसमेंट प्रदान करने के उद्देश्य से निर्मित की गई है।