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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

एक्ट ईस्ट नीति में नई सम्भावनाएँ

  • 28 Feb 2017
  • 3 min read

समाचारों में क्यों?

  • हाल ही में केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि परिधान, कृषि उपकरण, औषधि और वाहन जैसे क्षेत्रों में भारतीय कंपनियों के लिये कंबोडिया, लाओस और म्यांमार जैसे दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में विनिर्माण इकाईयाँ स्थापित करने के काफी अवसर हैं। जिससे कि भारत के ‘एक्ट ईस्ट नीति’ को बल मिलेगा। 

विनिर्माण की संभावनाएँ क्यों?

  • गौरतलब है कि कंबोडिया, लाओस, म्यांमार और वियतनाम (सीएलएमवी) में भी अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसे विकसित देशों के जैसे ही तरजीही योजना के तहत शुल्क लाभ प्राप्त होता है और यह सीएलएमवी में विनिर्माण इकाईयों की स्थापना के लिये आकर्षण का बिंदु होगा।
  • भारत जहाँ विकासशील देश से एक विकसित राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर है, उसे अपने उत्पाद बेचने के लिये नये बाज़ारों की तलाश है वहीं इन देशों में विनिर्माण की सम्भावनाएँ भी पर्याप्त हैं।

क्या है एक्ट ईस्ट नीति?

  • विदित हो कि भारत की वर्तमान विदेश नीति के बारे में कहा जा रहा है कि भारत इस मोर्चे पर आज जितना मज़बूत है उतना कभी नहीं था। यूरोप, अमेरिका और खाड़ी देशों के साथ रिश्तों को मजबूत आधार देने के बाद भारत सरकार ने कूटनीति के अगले चरण में पूर्वी एशियाई देश में पहल करते हुए लुक ईस्ट नीति को एक्ट ईस्ट नीति में तब्दील कर दिया था।
  • लुक ईस्ट नीति का उद्देश्य आसियान देशों में निर्यात को बढ़ावा देने के लिये खास मुहिम चलाना है। गौरतलब है कि आसियान देशों का महत्त्व भारत के लिये सिर्फ भू-राजनीतिक वजहों से ही नहीं है बल्कि जिस रफ्तार से भारत आर्थिक प्रगति करना चाहता है, उसके लिहाज़ से आसियान देश भारत के विकास में अहम भूमिका निभा सकते हैं। खास तौर पर तब, जब भारत अपने निर्यात के लिये नए बाज़ारों की तलाश में है।
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