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डेली न्यूज़

  • 13 Oct, 2021
  • 47 min read
शासन व्यवस्था

भारतीय अंतरिक्ष संघ (ISpA)

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय अंतरिक्ष संघ

मेन्स के लिये:

भारतीय अंतरिक्ष संघ का महत्त्व और संबंधित मुद्दे 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से भारतीय अंतरिक्ष संघ (ISpA) का शुभारंभ किया। ISpA अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी से संबंधित मामलों पर एकल खिड़की और स्वतंत्र एजेंसी के रूप में कार्य करेगा।

  • पीएम ने यह भी टिप्पणी की कि अंतरिक्ष सुधारों के लिये सरकार का दृष्टिकोण 4 स्तंभों पर आधारित है।

प्रमुख बिंदु

  • ISpA के बारे में:
    • ISpA को भारतीय अंतरिक्ष उद्योग को एकीकृत करने के उद्देश्य से प्रारंभ किया गया है। ISpA का प्रतिनिधित्व प्रमुख घरेलू और वैश्विक निगमों द्वारा किया जाएगा जिनके पास अंतरिक्ष तथा उपग्रह प्रौद्योगिकियों में उन्नत क्षमताएँ हैं।
    • ISpA भारत को आत्मनिर्भर, तकनीकी रूप से उन्नत और अंतरिक्ष क्षेत्र में अग्रणी बनाने के लिये सरकार तथा उसकी एजेंसियों सहित भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र में सभी हितधारकों के साथ नीतिगत एकीकरण और परामर्श करेगा।
    • ISpA भारतीय अंतरिक्ष उद्योग के लिये वैश्विक संबंध बनाने की दिशा में भी काम करेगा ताकि देश में महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकी और निवेश लाया जा सके तथा अधिक उच्च कौशल वाली नौकरियाँ सृजित की जा सकें।
  • ISpA का महत्व:
    • संगठन के मुख्य लक्ष्यों में से एक भारत को वाणिज्यिक अंतरिक्ष-आधारित सेवा प्रदाता के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर अग्रणी बनाने की दिशा में सरकार के प्रयासों को पूरा करना है।
    • वर्तमान में इसरो के रॉकेट द्वारा विभिन्न देशों के पेलोड और संचार उपग्रहों को ले जाया जाता है; अब निजी भागीदार भी इस संगठन के साथ संलग्न होने की कोशिश करेंगे।
    • कई निजी क्षेत्र की कंपनियों ने भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में रुचि दिखाई है, जिसमें अंतरिक्ष आधारित संचार नेटवर्क प्रमुख हैं।
  • अन्य संबंधित संगठन:
    • इन-स्पेस: भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्द्धन और प्राधिकरण केंद्र (IN-SPACe) को वर्ष 2020 में निजी कंपनियों को भारतीय अंतरिक्ष बुनियादी ढाँचे का उपयोग करने के लिये एक समान अवसर प्रदान करने हेतु अनुमोदित किया गया था।
    • NSIL: 2019 के बजट में सरकार ने एक सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) की स्थापना की घोषणा की थी, जो ISRO (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) की विपणन शाखा के रूप में काम करेगी।
      • इसका मुख्य उद्देश्य इसरो द्वारा विकसित प्रौद्योगिकियों का विपणन करना और इसे अधिक ग्राहक देशों को खोजना है जिन्हें अंतरिक्ष-आधारित सेवाओं की आवश्यकता है।
      • यह भूमिका अंतरिक्ष विभाग के तहत काम कर रहे एक अन्य सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम एंट्रिक्स कॉर्पोरेशन द्वारा पहले से ही निभाई जा रही थी और जो अभी भी कार्यशील है।
  • अंतरिक्ष सुधार के चार स्तंभ:
    • निजी क्षेत्र को नवाचार की स्वतंत्रता की अनुमति देना।
    • सरकार की भूमिका प्रवर्तक के रूप में।
    • युवाओं को भविष्य के लिये तैयार करना।
      • हाल ही में कक्षा 6 से 12 तक के छात्रों को अनुसंधान के लिये एक खुला मंच प्रदान करने हेतु ATL स्पेस चैलेंज 2021 लॉन्च किया गया है। जहाँ वे डिजिटल युग की अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी समस्याओं को हल करने के लिये खुद नवाचार करने में सक्षम हो सकते हैं।
    • अंतरिक्ष क्षेत्र को आम आदमी की प्रगति के लिये एक संसाधन के रूप में देखना।
      • उपग्रह इमेजिंग द्वारा विकास परियोजनाओं की निगरानी की जा रही है, फसल बीमा योजना के दावों और आपदा प्रबंधन योजना के निपटान में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जा रहा है तथा नाविक प्रणाली मछुआरों की मदद कर रही है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

इंटरमीडिएट-मास ब्लैक होल

प्रिलिम्स के लिये:

ब्लैक होल

मेन्स के लिये:

ब्रह्मांड निर्माण संबंधी अध्ययन में ब्लैक होल की भूमिका  

चर्चा में क्यों?

चेन्नई गणितीय संस्थान के वैज्ञानिकों ने LIGO-VIRGO वेधशालाओं के डेटा का विश्लेषण किया है और अनुमान लगाया है कि अब तक के बाइनरी ब्लैक होल विलय के अंश का पता चला है जो इंटरमीडिएट-मास ब्लैक होल बनाने की क्षमता रखते हैं।

प्रमुख बिंदु

  • ब्लैक होल विलय के बारे में:
    • यह दो या दो से अधिक ब्लैक होल के विलय की घटना है।
    • भारतीय वैज्ञानिक द्वारा पहले ही तीन सुपरमैसिव ब्लैक होल के विलय को देखा जा चुका है।
    • दो या दो से अधिक ब्लैक होल के विलय से विभिन्न प्रकार के ब्लैक होल बनते हैं। उदाहरण के लिये इंटरमीडिएट-मास ब्लैक होल और बाइनरी ब्लैक होल
      • इंटरमीडिएट-मास ब्लैक होल (IMBH) ब्लैक होल का एक वर्ग है जिसका द्रव्यमान 102-105 सौर द्रव्यमान अर्थात् तारकीय ब्लैक होल से काफी अधिक लेकिन सुपरमैसिव ब्लैक होल से कम होता है।
      • इंटरमीडिएट-मास वाले ब्लैक होल के निर्माण के सिद्धांतों में से एक का संबंध 'पदानुक्रमित वृद्धि' से है।
      • यदि ब्लैक होल तारों के घने समूह के बीच मौजूद हैं, तो विलय के अवशेष (ब्लैक होल) एक बाइनरी बनाने के लिये पास के दूसरे ब्लैक होल के साथ जुड़ सकते हैं। यह अंततः अधिक विशाल दूसरे तारे के अवशेष के साथ विलीन हो सकता है। यह प्रक्रिया श्रेणीबद्ध तरीके से होती है, जो इंटरमीडिएट-मास ब्लैक होल के गठन की व्याख्या कर सकती है।
    • गुरुत्वाकर्षण तरंगें (GW) तब बनती हैं जब दो ब्लैक होल एक दूसरे की परिक्रमा करते हैं और विलीन हो जाते हैं।
  • विलय में किक्स:
    • "किक्स" विलय के दौरान अवशेष ब्लैक होल द्वारा प्राप्त विपरीत गति है। यह विलय के दौरान ऊर्जा और रैखिक गति को दूर ले जाने वाली गुरुत्वाकर्षण तरंगों की प्रतिक्रिया स्वरुप विकसित होती हैं।
    • ये किक्स आकार में काफी बड़ी हो सकती हैं, जो इसे 1000 किलोमीटर प्रति सेकेंड तक की गति प्रदान कर सकती हैं।
    • यदि यह किक वेग ब्लैक होल बनने वाले स्टार क्लस्टर के पलायन वेग से अधिक है तो यह पर्यावरण से बचकर बाहर निकल जाता है। यह आगे पदानुक्रमित विलय में बाधा डालता है।
    • अवशेष द्वारा प्राप्त किक की सीमा की गणना विलय करने वाले ब्लैक होल के द्रव्यमान और उनकी स्पिन से की जा सकती है। किक अनुमान यह समझने में मदद करते हैं कि किन विलयों में इंटरमीडिएट-मास ब्लैक होल बनने की संभावना है।

ब्लैक होल (Black Hole)

  • यह अंतरिक्ष में एक बिंदु को संदर्भित करता है जहाँ पदार्थ इतना संकुचित होता है कि एक गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र बनाता है जिससे प्रकाश भी नहीं बच सकता।
  • इस अवधारणा का सिद्धांत वर्ष 1915 में अल्बर्ट आइंस्टीन द्वारा दिया गया था और 'ब्लैक होल' शब्द जॉन आर्चीबाल्ड व्हीलर द्वारा दिया गया था।
  • ब्लैक होल तब बनते हैं जब एक विशाल तारा अपने जीवनकाल के अंत में एक सुपरनोवा विस्फोट से गुज़रता है। ब्लैक होल विस्फोट के अवशेषों से बनता है।
    • यह आवश्यक नहीं है कि कोई तारा अपने जीवनकाल के अंत में ब्लैक होल बन जाए। जैसे-जैसे तारे अपने जीवन के अंत तक पहुँचते हैं, अधिकांश का प्रसार होगा, द्रव्यमान खो देंगे, और फिर सफेद बौने बनाने के लिये ठंडे हो जाएंगे। लेकिन उनमें से सबसे बड़े जो सूर्य से कम-से-कम 10 से 20 गुना बड़े हैं, या तो सुपर-सघन न्यूट्रॉन तारे या तारकीय-द्रव्यमान वाले ब्लैक होल बनते हैं।
  • आमतौर पर ब्लैक होल दो श्रेणियों के होते हैं:
    • एक श्रेणी तारकीय ब्लैक होल की है जो कुछ सौर द्रव्यमानों से बनते हैं। ऐसा माना जाता है कि बड़े तारों के मृत होने से ब्लैक होल बनते हैं।
  • दूसरी श्रेणी सुपरमैसिव ब्लैक होल की है। ये सौरमंडल के सूर्य की संख्या की तुलना में हज़ारों गुना की संख्या में हैं। ऐसा माना जाता है कि जब दो या दो से अधिक ब्लैक होल आपस में मिल जाते हैं तो ये बनते हैं।
  • अप्रैल 2019 में इवेंट होराइज़न टेलीस्कोप प्रोजेक्ट के वैज्ञानिकों ने ब्लैक होल (अधिक सटीक रूप से इसकी छाया की) की पहली छवि जारी की।

Black-Hole

स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

क्वांटम की डिस्ट्रीब्यूशन

प्रिलिम्स के लिये:  

क्वांटम की डिस्ट्रीब्यूशन

मेन्स के लिये: 

क्वांटम की डिस्ट्रीब्यूशन की उपयोगिता 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सरकार ने सी-डॉट (सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ टेलीमैटिक्स) क्वांटम कम्युनिकेशन लैब का उद्घाटन किया और स्वदेशी रूप से विकसित क्वांटम की डिस्ट्रीब्यूशन (QKD) समाधान का अनावरण किया।

  • सरकार ने 8 वर्षों की अवधि के क्वांटम टेक्नोलॉजीज़ और अनुप्रयोगों पर राष्ट्रीय मिशन के लिये 1 बिलियन अमेरिकी डाॅलर का आवंटन भी किया है।

प्रमुख बिंदु 

  • QKD के बारे में:
    • QKD जिसे क्वांटम क्रिप्टोग्राफी भी कहा जाता है, सुरक्षित संचार विकसित करने का एक तंत्र है।
    • यह गुप्त कुंजियों (Secret Keys) को वितरित और साझा करने का एक तरीका प्रदान करता है जो क्रिप्टोग्राफिक प्रोटोकॉल के लिये आवश्यक हैं।
      • क्रिप्टोग्राफी सुरक्षित संचार तकनीकों का अध्ययन है जो केवल प्रेषक और संदेश के इच्छित प्राप्तकर्त्ता को इसकी सामग्री देखने की अनुमति देता है।
      • क्रिप्टोग्राफिक एल्गोरिदम और प्रोटोकॉल सिस्टम को सुरक्षित रखने के लिये आवश्यक हैं, खासकर जब इंटरनेट जैसे अविश्वसनीय नेटवर्क के माध्यम से संचार किया जाता है।
    • डेटा-एन्क्रिप्शन के लिये उपयोग किये जाने वाले पारंपरिक क्रिप्टोसिस्टम गणितीय एल्गोरिदम की जटिलता पर निर्भर करते हैं, जबकि क्वांटम संचार द्वारा दी जाने वाली सुरक्षा भौतिकी के नियमों पर आधारित होती है।
  • तंत्र (Mechanism):
    • QKD में एन्क्रिप्शन कुंजियों को ऑप्टिकल फाइबर में 'क्यूबिट्स ' या क्वांटम बिट्स के रूप में भेजा जाता है।
    • ऑप्टिकल फाइबर अन्य माध्यमों की तुलना में लंबी दूरी के लिये और तेज़ी से अधिक डेटा संचारित करने में सक्षम है। यह पूर्ण आंतरिक परावर्तन के सिद्धांत पर कार्य करता है।
    • QKD कार्यान्वयन के लिये वैध उपयोगकर्त्ताओं के बीच परस्पर क्रिया की आवश्यकता होती है  और इन इंटरैक्शन को प्रमाणित करने की आवश्यकता होती है। इसे विभिन्न क्रिप्टोग्राफिक माध्यमों से प्राप्त किया जा सकता है।
    • QKD दो दूर के उपयोगकर्त्ताओं को, जो शुरू में गुप्त कुंजी साझा नहीं करते हैं, गुप्त बिट्स की एक सामान्य, यादृच्छिक स्ट्रिंग उत्पन्न करने की अनुमति देता है, जिसे गुप्त कुंजी कहा जाता है।
    • अंतिम परिणाम यह है कि QKD एक प्रमाणित संचार चैनल का उपयोग कर सकता है और इसे एक सुरक्षित संचार चैनल में बदल सकता है।
    • इसे इस तरह से डिज़ाइन किया गया है कि यदि कोई अवैध इकाई ट्रांसमिशन को पढ़ने की कोशिश करती है, तो यह फोटॉन पर एन्कोडेड क्यूबिट्स को अस्पष्ट कर देगी।
    • इससे ट्रांसमिशन त्रुटियाँ उत्पन्न होंगी, जिससे वैध अंतिम-उपयोगकर्त्ताओं को तुरंत सूचित किया जाएगा।

Secret-Key

  • क्यूबिट्स (Qubits):
    • पारंपरिक कंप्यूटर क्लासिकल भौतिकी का अनुसरण करते हुए 'बिट्स' या 1s और 0s में जानकारी को प्रोसेस करते हैं, जिसके तहत हमारे कंप्यूटर एक बार में '1' या '0' को प्रोसेस कर सकते हैं।
    • क्वांटम कंप्यूटर क्यूबिट्स में गणना करते हैं। वे क्वांटम यांत्रिकी के गुणों का फायदा उठाते हैं और यह नियंत्रित करता है कि परमाणु पैमाने पर पदार्थ कैसे व्यवहार करता है।
      • इस व्यवस्था में प्रोसेसर में एक साथ 1 और 0 हो सकते हैं, इस अवस्था को क्वांटम सुपरपोज़िशन कहा जाता है।
      • क्वांटम सुपरपोज़िशन के कारण एक क्वांटम कंप्यूटर- अगर यह योजना के लिये काम करता है तो समानांतर में काम करने वाले कई क्लासिकल कंप्यूटरों की नकल कर सकता है।

Qubit

  • आवश्यकता:
    • QKD वर्तमान संचार नेटवर्क के माध्यम से विभिन्न महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में प्रयोग किये जा रहे, डेटा की सुरक्षा के लिये क्वांटम कंप्यूटिंग में बाह्य खतरे को दूर करने के लिये आवश्यक है।
  • लाभ:
    • यह प्रौद्योगिकी क्वांटम सूचना के क्षेत्र में विभिन्न स्टार्टअप और छोटे तथा मध्यम उद्यमों को सक्षम करने में उपयोगी होगी।
    • मानकों की परिभाषित करने और क्रिप्टो प्रौद्योगिकी से संबंधित नीतियों को तैयार करने में इससे सहायता मिलने की उम्मीद है।
  • महत्त्व:
    • डेटा लीक का पता लगाना:
      • यह डेटा लीक या हैकिंग का पता लगाने की अनुमति देता है क्योंकि यह ऐसे किसी भी प्रयास का पता लगा सकता है।
    • पूर्व निर्धारित त्रुटि स्तर:
      • यह इंटरसेप्ट किये गए डेटा के बीच त्रुटि स्तर सेट करने की प्रक्रिया की भी अनुमति देता है।
    • अनब्रेकेबल एन्क्रिप्शन:
      • फोटॉन के माध्यम से डेटा ले जाने का तरीका अनब्रेकेबल एन्क्रिप्शन होता है।
      • एक फोटॉन को पूरी तरह से कॉपी नहीं किया जा सकता है और इसे मापने का कोई भी प्रयास इसे डिस्टर्ब करेगा। इसका मतलब है कि डेटा को इंटरसेप्ट करने की कोशिश करते ही इसकी जानकारी उपभोक्ता को हो जायेगी।

स्रोत: इकॉनोमिक टाइम्स


शासन व्यवस्था

ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP)

प्रिलिम्स के लिये:

वायु गुणवत्ता सूचकांक, ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान, पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम और नियंत्रण) प्राधिकरण 

मेन्स के लिये:

ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान की विभिन्न श्रेणियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) ने बताया है कि ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP) की "बहुत खराब" एवं "गंभीर" श्रेणी के तहत शामिल उपाय 48 घंटे के दौरान वायु की गुणवत्ता और भी दूषित व निर्धारित स्तर से अधिक होने पर लागू होंगे। 

प्रमुख बिंदु

  • ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP):
    • परिचय: 
      • राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में वायु गुणवत्ता के संबंध में एमसी मेहता बनाम भारत संघ (2016) के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार, विभिन्न वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) के तहत कार्यान्वयन के लिये एक ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान तैयार किया गया है।इन्हें मुख्य  श्रेणियों में अर्थात् औसत से खराब, बहुत खराब और गंभीर  श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है।
        • इसमें "गंभीर + या आपातकाल" की एक नई श्रेणी जोड़ी गई है।
      • इस योजना को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा वर्ष 2017 में अधिसूचित किया गया था।
      • इसने वायु की गुणवत्ता खराब होने पर किये जाने वाले उपायों को संस्थागत रूप दिया।
        • यह योजना प्रकृति में वृद्धिशील है,  इसलिये जब वायु गुणवत्ता 'खराब' से 'बहुत खराब' की ओर बढ़ती है, तो दोनों वर्गों के तहत सूचीबद्ध उपायों का पालन किया जाना चाहिये।
        • यह PM10 और PM2.5 स्तरों को 'मध्यम' राष्ट्रीय AQI श्रेणी से आगे जाने से रोकता है।
    • कार्यान्वयन:
      • वर्ष 2020 तक सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम और नियंत्रण) प्राधिकरण (EPCA) राज्यों को GRAP उपायों को लागू करने का आदेश देता था।
      • EPCA को भंग कर वर्ष 2020 में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) द्वारा इसे प्रतिस्थापित किया गया था।
        • CAQM अंतर्निहित उपचारात्मक दृष्टिकोण के साथ दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में वायु गुणवत्ता में सुधार हेतु विविध प्रयासों के समन्वय और निगरानी के लिये एक वैधानिक तंत्र है।

श्रेणी

परिवेशी कण पदार्थ (PM)

मानक

औसत से खराब

  • PM2.5, 61-120 µg/घन मीटर 
  • PM10, 101-350µg/घन मीटर
  • थर्मल पावर प्लांट में प्रदूषण नियंत्रण नियमों को लागू करना।
  • सड़कों पर मशीन द्वारा सफाई।
  • पटाखों पर सख्ती से प्रतिबंध लागू करना।
  • कचरा जलाने पर प्रतिबंध।

बहुत खराब

  • PM2.5 ,121-250 µg/घन मीटर
  • PM10, 351-430 µg/घन मीटर
  • डीज़ल जनरेटर सेट का उपयोग बंद करना।
  • बस और मेट्रो सेवाओं में वृद्धि एवं मेट्रो सेवाओं की आवृत्ति में वृद्धि।
  • होटल और खुले में स्थित भोजनालयों में कोयले/जलाऊ लकड़ी का उपयोग बंद करना।

गंभीर

  • PM 2.5, 250 µg/घन मीटर से अधिक
  •  PM10, 430µg/घन मीटर से अधिक।
  • सड़क की लगातार मशीनीकृत सफाई और पानी का छिड़काव करना।
  • ईंट भट्टों, हॉट मिक्स प्लांट, स्टोन क्रशर को बंद करना।
  • बदरपुर पावर प्लांट बंद करना।
  • अलग-अलग दरों वाले सार्वजनिक परिवहन को प्रोत्साहित करना।

गंभीर+ या आपातकाल

  • PM2.5 ,300 µg/घन मीटर से अधिक 
  •  PM10, 500µg/घन मीटर से अधिक 

( 48 घंटे या उससे अधिक समय तक स्थिर स्थिति)

  • दिल्ली में ट्रकों का प्रवेश बंद (आवश्यक वस्तुओं को छोड़कर)।
  • निर्माण कार्य बंद।
  • निजी वाहनों के लिये विषम/सम योजना का प्रारंभ।
  • स्कूलों को बंद करना।
  • अन्य उपाय:
    • पर्यावरण संरक्षण शुल्क (EPC): 2016 में सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली और एनसीआर में 2000cc एवं उससे अधिक के डीज़ल कारों की बिक्री पर 1% का EPC लगाया।
    • पर्यावरण मुआवज़ा शुल्क (ECC): वर्ष 2015 में सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली में प्रवेश करने वाले ट्रकों पर ईसीसी लगाया।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

‘नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल’ के पास स्वतः संज्ञान की शक्तियाँ

प्रिलिम्स के लिये 

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल, अनुच्छेद-21

मेन्स के लिये 

पर्यावरणीय मुद्दों से निपटने में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की भूमिका

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने ‘नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल’ (NGT) को एक ‘विशिष्ट’ मंच के रूप में घोषित करते हुए कहा कि वह देश भर में पर्यावरणीय मुद्दों को उठाने हेतु ‘स्वत: संज्ञान’ (Suo Motu) लेने की शक्तियों से संपन्न है।

प्रमुख बिंदु 

  • निर्णय संबंधी मुख्य बिंदु: 
    • निर्णायक भूमिका तक सीमित नहीं: ‘नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल’ की भूमिका केवल न्यायनिर्णयन तक सीमित नहीं है, ट्रिब्यूनल को कई अन्य महत्त्वपूर्ण भूमिकाएँ भी निभानी होती हैं, जो प्रकृति में निवारक, सुधारात्मक या उपचारात्मक हो सकती हैं।
      • ‘नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल’ को कार्यात्मक क्षमता प्रदान करने का उद्देश्य पर्यावरणीय जनादेश में पूर्ण न्याय हेतु व्यापक शक्तियों का लाभ उठाना है।
      • न्यायालय के अनुसार, अनुच्छेद-21 के तहत सम्मिलित अधिकार, व्याख्या के संकीर्ण दायरे पर टिके नहीं रह सकते। ज्ञात हो कि संविधान का अनुच्छेद-21 जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा करता है।
    • बहु-विषयक भूमिका: ‘नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल’ के पास विशेष मंच के रूप में सभी पर्यावरण संबंधी बहु-विषयक मुद्दों से निपटने के लिये ‘मूल’ एवं ‘अपीलीय’ क्षेत्राधिकार मौजूद है।
    • अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धता: ‘नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल’ के क्षेत्राधिकार में पर्यावरण के प्रति भारत की तमाम अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को भी शामिल किया गया है।
      • न्यायालय ने ‘नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल’ को दुनिया के सबसे प्रगतिशील न्यायाधिकरणों में से एक के रूप में मान्यता दी है।
      • न्यायालय के इस निर्णय ने भारत को उन राष्ट्रों के एक विशिष्ट समूह में प्रवेश करने की अनुमति दी है, जिन्होंने व्यापक शक्तियों के साथ ऐसे संस्थान स्थापित किये हैं।
  • ‘नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल’ के विषय में
    • यह पर्यावरण संरक्षण और वनों एवं अन्य प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण से संबंधित मामलों के प्रभावी तथा शीघ्र निपटान हेतु ‘राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम’ (2010) के तहत स्थापित एक विशेष निकाय है।
    • ‘नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल’ की स्थापना के साथ भारत, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड के बाद एक विशेष पर्यावरण न्यायाधिकरण स्थापित करने वाला दुनिया का तीसरा देश बन गया और साथ ही वह ऐसा करने वाला पहला विकासशील देश भी है।
    • ‘राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम’ (2010) ने ट्रिब्यूनल को उन मुद्दों पर कार्रवाई करने हेतु एक विशेष भूमिका प्रदान की है, जहाँ सात निर्दिष्ट कानूनों (अधिनियम की अनुसूची I में उल्लिखित) के तहत विवाद उत्पन्न हुआ: जल अधिनियम, जल उपकर अधिनियम, वन संरक्षण अधिनियम, वायु अधिनियम, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, सार्वजनिक देयता बीमा अधिनियम और जैविक विविधता अधिनियम।
    • ‘नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल’ को आवेदनों या अपीलों के दाखिल होने के 6 महीने के भीतर अंतिम रूप से उनका निपटान करना अनिवार्य है।
    • NGT का मुख्यालय दिल्ली में है, जबकि अन्य चार क्षेत्रीय कार्यालय भोपाल, पुणे, कोलकाता एवं चेन्नई में स्थित हैं।
    • ट्रिब्यूनल में एक अध्यक्ष होता है, जो कि प्रधान पीठ में बैठता है और इसमें कम-से-कम दस न्यायिक सदस्य (बीस से अधिक नहीं) होते हैं और कम-से-कम दस विशेषज्ञ सदस्य (बीस से अधिक नहीं) होते हैं।
    • ट्रिब्यूनल का निर्णय बाध्यकारी होता है। ट्रिब्यूनल के पास अपने निर्णय की समीक्षा करने का अधिकार है। इस निर्णय को 90 दिनों के भीतर सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी जा सकती है।
  • संबद्ध चुनौतियाँ
    • रिक्तियाँ: पिछले 9 वर्षों के दौरान ट्रिब्यूनल में पर्यावरणीय मुकदमों की बढ़ती संख्या को संबोधित करने के लिये न्यूनतम 10 न्यायिक और 10 विशेषज्ञ सदस्यों की नियुक्ति भी नहीं की गई है।
    • आदेशों का क्रियान्वयन: ‘नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल’ के आदेशों के कार्यान्वयन के संबंध में भी गंभीर चुनौतियाँ मौजूद हैं।
      • ‘राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम निर्दिष्ट करता है कि ट्रिब्यूनल द्वारा आदेशित मुआवज़े की राशि आदेश की तारीख से 30 दिनों की अवधि के भीतर पर्यावरण राहत कोष के प्राधिकरण को प्रेषित की जानी चाहिये।
      • हालाँकि यह देखा गया है कि कई प्रदूषक इस नियम का पालन नहीं करते हैं।
      • इसके अलावा यह सुनिश्चित करने के लिये कोई संस्थागत तंत्र नहीं है कि पर्यावरण नियामक प्राधिकरण, ट्रिब्यूनल के आदेशों का पालन करें।
      • सर्वोच्च न्यायालय में अपील: ट्रिब्यूनल के कई आदेशों को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी जा रही है, इसमें कई ऐसे मामले भी शामिल हैं जिनमें ट्रिब्यूनल द्वारा भारी जुर्माना लगाया गया है।

आगे की राह

  • मानव विकास गतिविधियों के साथ संतुलन में पर्यावरण की प्रभावी सुरक्षा हेतु अधिक स्वायत्तता और ट्रिब्यूनल के दायरे को व्यापक बनाने की आवश्यकता है।
  • सरकार को ट्रिब्यूनल के अस्तित्त्व को बनाए रखने हेतु पर्याप्त वित्तीय एवं मानव संसाधन उपलब्ध कराने पर ज़ोर देना चाहिये।
  • नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल एक वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र स्थापित करके पर्यावरण न्यायशास्त्र के विकास के लिये मार्ग प्रदान करता है। यह पर्यावरणीय मामलों पर उच्च न्यायालयों में मुकदमों के बोझ को कम करने में भी मदद करता है।

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

ग्लोबल गर्लहुड रिपोर्ट 2021: गर्ल्स राइट इन क्राइसिस

प्रिलिम्स के लिये: 

अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस

मेन्स के लिये:

भारत में बाल विवाह की समस्या और कोविड-19 का प्रभाव, सरकार द्वारा इस संबंध में किये गए प्रयास

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘सेव द चिल्ड्रेन’ नामक एक गैर-सरकारी संगठन (NGO) ने ‘ग्लोबल गर्लहुड रिपोर्ट 2021: गर्ल्स राइट इन क्राइसिस’ जारी की है।

अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस

  • पृष्ठभूमि: 
    • यह प्रतिवर्ष 11 अक्तूबर को मनाया जाता है। इसकी घोषणा संयुक्त राष्ट्र (UN) द्वारा की गई थी और यह दिवस पहली बार वर्ष 2012 में मनाया गया था।
      • 19 दिसंबर, 2011 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 11 अक्तूबर को अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस घोषित करने का एक प्रस्ताव पारित किया गया था।
    • यह दिवस बालिकाओं के अधिकारों को सुनिश्चित करने और उनके लिये अवसरों में सुधार करते हुए लैंगिक समानता पर जागरूकता बढ़ाने हेतु समर्पित है।
  • वर्ष 2021 की थीम:
    • ‘डिजिटल जनरेशन, अवर जनरेशन’।

प्रमुख बिंदु

  • ‘बाल विवाह’ की दर:
    • पश्चिम और मध्य अफ्रीका में बाल विवाह की दर दुनिया में सबसे अधिक है।
  • बाल विवाह के कारण मृत्यु:
    • बाल विवाह के कारण वैश्विक स्तर पर प्रतिदिन 60 से अधिक लड़कियों की मृत्यु होती है, वहीं पश्चिम और मध्य अफ्रीका में यह आँकड़ा 26 तथा दक्षिण एशिया में 6 के आसपास है।
      • दक्षिण एशिया के बाद पूर्वी एशिया और प्रशांत तथा लैटिन अमेरिकी और एवं कैरिबिया का स्थान है।
    • मृत्यु का कारण मुख्यतः गर्भावस्था एवं बाल विवाह के परिणामस्वरूप होने वाले बच्चे का जन्म है।
  • बाल विवाह पर कोविड का प्रभाव:
    • स्कूल बंद होने, स्वास्थ्य सेवाओं पर दबाव व अधिक परिवारों के गरीबी में धकेले जाने के कारण महिलाओं और लड़कियों को लंबे लॉकडाउन के दौरान हिंसा के बढ़ते जोखिम का सामना करना पड़ा है।
      • वर्ष 2030 तक दस मिलियन लड़कियों का बाल विवाह होने की संभावना है, जिससे मृत्यु दर में भी बढ़ोतरी होने का खतरा है।
      • इससे पहले ‘चाइल्डलाइन इंडिया’ द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण मध्य प्रदेश में महामारी और उसके बाद के लॉकडाउन बाल विवाह के नए कारक साबित हुए हैं।
      • साथ ही कर्नाटक के कुछ कार्यकर्त्ताओं और संगठनों ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के समक्ष लॉकडाउन में बाल विवाह बढ़ने का मुद्दा उठाया है।
  • सुझाव: रिपोर्ट में सरकार के लिये निम्नलिखित सुझाव दिये गए हैं:
    • लड़कियों की आवाज़ को सशक्त बनाना:
      • सभी सार्वजनिक निर्णय लेने में सुरक्षित एवं सार्थक भागीदारी के अधिकार का समर्थन करके लड़कियों की आवाज़ को सशक्त बनाना आवश्यक है।
    • लैंगिक समानता पर ध्यान देना:
      • लड़कियों के अधिकारों और लैंगिक समानता को कोविड-19 के केंद्र में रखकर तथा मानवीय प्रतिक्रियाओं, विकास नीति एवं बेहतर तरीके से आगे बढ़ने के व्यापक प्रयासों के माध्यम से बाल विवाह सहित लिंग आधारित हिंसा के तत्काल व मौजूदा जोखिमों का समाधान करना आवश्यक है।
    • लड़कियों के अधिकारों की गारंटी:
      • समावेशी नीतियों और कार्यक्रमों को विकसित कर असमानता व भेदभाव के विभिन्न रूपों से प्रभावित लड़कियों के अधिकारों की गारंटी दी जानी चाहिये। मौजूदा आर्थिक, जलवायु और संघर्ष संबंधी संकटों पर कोविड-19 के प्रभाव को वास्तविक समय में बेहतर ढंग से समझने एवं प्रतिक्रिया देने हेतु सुरक्षित तथा नैतिक डेटा संग्रह में भी सुधार किया जाना चाहिये।
    • महिला कर्मचारियों की भागीदारी सुनिश्चित करना:
      • सभी मानवीय प्रतिक्रिया प्रयासों में महिला कर्मचारियों की सुरक्षित और अप्रतिबंधित भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिये, जिसमें प्रत्येक स्तर पर सभी मानवीय सेवाओं की आवश्यकताओं का आकलन एवं डिज़ाइन, कार्यान्वयन और निगरानी व मूल्यांकन करना शामिल है।
    • ‘जनरेशन इक्वलिटी मूवमेंट’ में शामिल होना:
      • यह आंदोलन ‘ग्लोबल एक्सेलेरेशन प्लान फॉर जेंडर इक्वलिटी’ को पूरा करने की दिशा में कार्य कर रहा है, जिसके तहत आगामी पाँच वर्षों में नौ मिलियन ‘बाल विवाह’ रोकने का लक्ष्य रखा गया है।
  • संबंधित भारतीय पहल:
    • वर्ष 1929 का बाल विवाह निरोधक अधिनियम भारत में बाल विवाह की कुप्रथा को प्रतिबंधित करता है।
    • विशेष विवाह अधिनियम, 1954 और बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 के तहत महिलाओं एवं पुरुषों के लिये विवाह की न्यूनतम आयु क्रमशः 18 वर्ष तथा 21 वर्ष निर्धारित की गई है।
      • बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 को बाल विवाह निरोधक अधिनियम (1929) की कमियों को दूर करने के लिये लागू किया गया था।
    • केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने मातृत्व की आयु, मातृ मृत्यु दर और महिलाओं के पोषण स्तर में सुधार से संबंधित मुद्दों की जाँच करने के लिये एक समिति का गठन किया है। यह समिति जया जेटली की अध्यक्षता में गठित की गई है।
    • बाल विवाह जैसी कुप्रथा का उन्मूलन सतत् विकास लक्ष्य-5 (SDG-5) का हिस्सा है।  यह लैंगिक समानता प्राप्त करने तथा सभी महिलाओं एवं लड़कियों को सशक्‍त बनाने से संबंधित है।

बाल विवाह के संदर्भ में भारत का डेटा

  • संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) का अनुमान है कि भारत में प्रतिवर्ष 18 वर्ष से कम उम्र की कम-से-कम 1.5 मिलियन लड़कियों का विवाह किया जाता है, यही कारण है कि भारत में विश्व की सबसे अधिक (तकरीबन एक-तिहाई) बाल वधू हैं।
    • वर्तमान में 15-19 आयु वर्ग की लगभग 16 प्रतिशत किशोरियों की शादी हो चुकी है।
  • जबकि वर्ष 2005-2006 में 18 वर्ष की उम्र से पहले लड़कियों की शादी का आँकड़ा 47% था जो 2015-2016 में घटकर 27% हो गया है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

ड्राफ्ट ईपीआर अधिसूचना: प्लास्टिक पैकेजिंग अपशिष्ट

प्रिलिम्स के लिये:

एकल-उपयोग प्लास्टिक, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016

मेन्स के लिये:

प्लास्टिक पैकेजिंग अपशिष्ट के लिये ईपीआर ड्राफ्ट 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016 के तहत विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (Extended Producer Responsibility-EPR) के नियमन के लिये एक मसौदा अधिसूचना जारी की है।

  • यह मसौदा अपशिष्ट की मात्रा को निर्दिष्ट करता है जिसे उन उत्पादकों, आयातकों और ब्रांड मालिकों द्वारा प्रबंधित किया जाना है जो भारत में प्लास्टिक पैकेजिंग अपशिष्ट उत्पन्न करते हैं।
  • इससे पहले मंत्रालय ने प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संशोधन नियम, 2021 को अधिसूचित किया था। इन नियमोन का उद्देश्य वर्ष 2022 तक विशिष्ट एकल-उपयोग वाली प्लास्टिक की उन वस्तुओं को प्रतिबंधित करना है जिनकी "कम उपयोगिता और उच्च अपशिष्ट क्षमता" है।

प्रमुख बिंदु

  • निर्माता का आदेश:
    • यह प्लास्टिक पैकेजिंग सामग्री के उत्पादकों के लिये वर्ष 2024 तक निर्मित सभी उत्पादों को एकत्र करना अनिवार्य बनाता है और यह सुनिश्चित करता है कि इसके न्यूनतम प्रतिशत के पुनर्नवीनीकरण के साथ-साथ बाद की आपूर्ति में भी उपयोग किया जाए।
    • प्लास्टिक के निर्माता केंद्रीकृत वेबसाइट के माध्यम से सरकार के समक्ष यह घोषणा करने के लिये बाध्य होंगे कि वे वार्षिक तौर पर कितना प्लास्टिक का उत्पादन करते हैं।
  • ईपीआर प्रमाणपत्र:
    • इसने एक ऐसी प्रणाली भी निर्दिष्ट की है जिससे प्लास्टिक पैकेजिंग के निर्माता और उपयोगकर्त्ता प्रमाणपत्र एकत्र कर सकते हैं- इसे ईपीआर प्रमाणपत्र कहा जाता है और वे इसके ज़रिये व्यापार कर सकते हैं।
      • ईपीआर का अर्थ है उत्पाद (प्लास्टिक पैकेजिंग) के पर्यावरण के अनुकूल प्रबंधन के लिये निर्माता की ज़िम्मेदारी उस उत्पाद की उपयोग अवधि तक होगी।
    • प्रमाणपत्र संगठनों के अन्दर व्याप्त कमियों को दूर करने के लिये उन संगठनों से मदद प्राप्त करेंगे जिन्होंने अपने दायित्व से अधिक पुनर्नवीनीकरण सामग्री का उपयोग किया है।
  • उत्पाद अवधि में निपटान:
    • प्लास्टिक का केवल एक अंश जिसका पुनर्नवीनीकरण नहीं किया जा सकता है, जैसे- बहु-स्तरित बहु-सामग्री वाले प्लास्टिक सड़क निर्माण, अपशिष्ट से ऊर्जा, अपशिष्ट से तेल और सीमेंट भट्टों आदि उत्पाद अवधि में निपटान के लिये भेजे जाने के योग्य होंगे।
    • उनके निपटान के लिये केवल केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा निर्धारित विधियों की अनुमति होगी।
  • प्लास्टिक पैकेजिंग का वर्गीकरण:
    • कठोर प्लास्टिक: 
      • इसमें ऐसे प्लास्टिक उत्पाद शामिल हैं जिनका निपटान करने पर वे आसानी से नष्ट नहीं होते हैं, कई बड़े व भारी सामान जैसे- लॉन चेयर, बाल्टी, टॉडलर खिलौने आदि।
    • लचीला प्लास्टिक:
      • इसमें सिंगल लेयर या मल्टीलेयर (विभिन्न प्रकार के प्लास्टिक के साथ एक से अधिक लेयर), प्लास्टिक शीट और प्लास्टिक शीट से बने कवर, कैरी बैग (कम्पोस्टेबल प्लास्टिक से बने कैरी बैग सहित), प्लास्टिक पाउच या पाउच की पैकेजिंग शामिल है।
    • बहुस्तरीय प्लास्टिक पैकेजिंग:
      • इसमें वे प्लास्टिक शामिल हैं जिनमें प्लास्टिक की कम-से-कम एक परत होती है और प्लास्टिक के अलावा अन्य सामग्री की कम-से-कम एक परत होती है।
  • लक्ष्य:
    • कंपनियों द्वारा प्लास्टिक अपशिष्ट एकत्र/संग्रह करने का लक्ष्य:
      • 2021-22 में लक्ष्य का 35 फीसदी।
      • 2022-23 तक लक्ष्य का 70%।
      • 2024 तक लक्ष्य का 100%।
    • वर्ष 2024 में उनके कठोर प्लास्टिक (श्रेणी 1) के न्यूनतम 50% को उनकी श्रेणी 2 और 3 के अंतर्गत प्लास्टिक के 30% का पुनर्नवीनीकरण करना होगा।
    • इस प्रकार प्रत्येक वर्ष उत्तरोत्तर उच्च लक्ष्य प्रदर्शित होंगे और 2026-27 के बाद उनकी श्रेणी 1 के 80% और अन्य दो श्रेणियों के 60% को पुनर्चक्रित करने की आवश्यकता होगी।
    • पैकेजिंग सामग्री का उपयोग करने के साथ-साथ उन्हें आयात करने वाली कंपनियों के लिये भी थोड़े बदलाव के साथ समान लक्ष्य हैं।
  • ईपीआर प्रमाणपत्र खरीदना:
    • यदि संस्थाएँ अपने दायित्वों को पूरा नहीं कर पाती हैं, तो उन्हें "मामले के आधार पर" प्रमाणपत्र खरीदने की अनुमति दी जाएगी।
    • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) एक केंद्रीकृत ऑनलाइन पोर्टल पर ऐसे एक्सचेंजों के लिये एक तंत्र विकसित करेगा।
  • गैर अनुपालन:
    • हालाँकि गैर-अनुपालन पारंपरिक जुर्माना नहीं लगाया जाएगा। इसके बजाय पर्यावरणीय मुआवज़ा देना होगा, हालाँकि नियम यह निर्दिष्ट नहीं करते हैं कि यह मुआवज़ा कितना होगा।
  • ज़ुर्माना:
    • जो संस्थाएँअपने लक्ष्यों को पूरा नहीं करती हैं या अपने वार्षिक लक्ष्य को पूरा करने के लिये पर्याप्त क्रेडिट नहीं खरीदती हैं, उन्हें ज़ुर्माना देना होगा
      • अगर वे तीन वर्ष के भीतर अपने लक्ष्यों को पूरा करते हैं, तो उन्हें 40% रिफंड मिलेगा, नहीं तो धनराशि ज़ब्त कर लिया जाएगा।
    • इस तरह से एकत्र की गई धनराशि को एस्क्रो खाते (Escrow Account) में डाल दिया जाएगा और उस प्लास्टिक पैकेजिंग अपशिष्ट के संग्रह एवं पुनर्चक्रण/निपटान में इस्तेमाल किया जा सकता है, जिससे पर्यावरण मुआवज़ा प्राप्त किया है।
  • प्लास्टिक पर प्रतिबंध :
    • जुलाई 2022 से प्लास्टिक उत्पादों की एक शृंखला के निर्माण पर प्रतिबंध लगा दिया जाएगा। इस सूची में प्लास्टिक स्टिक के साथ ईयरबड्स, गुब्बारों के लिये प्लास्टिक स्टिक, प्लास्टिक के झंडे, कैंडी स्टिक आदि शामिल हैं।

स्रोत: द हिंदू


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