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डेली न्यूज़

  • 13 Jan, 2022
  • 49 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

वैश्विक जोखिम रिपोर्ट 2022

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व आर्थिक मंच, ऊर्जा ट्रांज़िशन सूचकांक, वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता रिपोर्ट, ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट, वैश्विक जोखिम रिपोर्ट, ग्लोबल ट्रैवल एंड टूरिज़्म रिपोर्ट

मेन्स के लिये:

वैश्विक चुनौतियाँ, कोविड-19 का प्रभाव, पर्यावरणीय जोखिम, तकनीकी जोखिम, अंतर्राष्ट्रीय जोखिम।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व आर्थिक मंच द्वारा ‘वैश्विक जोखिम रिपोर्ट-2022’ जारी की गई। यह जोखिम विशेषज्ञों और व्यापार, सरकार एवं नागरिक समाज में विश्व प्रतिनिधियों के बीच वैश्विक जोखिम धारणाओं को ट्रैक करती है।

  • यह पाँच श्रेणियों में जोखिमों को ट्रैक करती है: आर्थिक, पर्यावरण, भू-राजनीतिक, सामाजिक और तकनीकी।

Global-Risk

प्रमुख बिंदु

  • कोविड-19 का प्रभाव: महामारी की शुरुआत के बाद से सामाजिक और पर्यावरणीय जोखिम सबसे अधिक बढ़ गए हैं।
    • ‘सामाजिक एकता में ह्रास’, ‘आजीविका संकट’ और ‘मानसिक स्वास्थ्य में गिरावट’ अगले दो वर्षों में दुनिया के लिये सबसे अधिक खतरे के रूप में देखे जाने वाले तीन प्रमुख जोखिमों हैं।
    • इसके अलावा इसने "ऋण संकट", "साइबर सुरक्षा विफलताओं", "डिजिटल असमानता" और "विज्ञान के खिलाफ प्रतिक्रिया" में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
  • वैश्विक आर्थिक आउटलुक: यह प्रमुख रूप से अल्पकालिक आर्थिक दृष्टिकोण को अस्थिर, खंडित, या तेज़ी से विनाशकारी मानता है। 
    • महामारी से बनी सबसे गंभीर चुनौती आर्थिक ठहराव है। 
  • पर्यावरणीय जोखिम: "अत्यधिक मौसम" और "जलवायु कार्रवाई विफलता" लघु, मध्यम और दीर्घकालिक दृष्टिकोणों में शीर्ष जोखिम के रूप में दिखाई देते हैं।
    • सरकारों, व्यवसायों और समाजों को नेट ज़ीरो अर्थव्यवस्थाओं में संक्रमण के लिये बढ़ते दबाव का सामना करना पड़ रहा है।
  • भू-राजनीतिक और तकनीकी जोखिम: लंबी अवधि में, भू-राजनीतिक और तकनीकी जोखिम भी चिंता का विषय हैं, जिनमें "भू-आर्थिक टकराव", "भू-राजनीतिक संसाधन प्रतियोगिता" और "साइबर सुरक्षा विफलता" शामिल हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय जोखिम: कृत्रिम बुद्धिमत्ता, अंतरिक्ष दोहन, सीमा पार साइबर हमले और गलत सूचना व प्रवास एवं शरणार्थियों की अंतर्राष्ट्रीय चिंताओं को शीर्ष रूप में दर्जा दिया गया था।
    • आर्थिक कठिनाई के रूप में बढ़ती असुरक्षा, जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभाव और राजनीतिक उत्पीड़न लाखों लोगों को बेहतर भविष्य की तलाश में अपना घर छोड़ने के लिये मजबूर करेंगे।
    • अंतरिक्ष पर्यटन के अलावा आने वाले दशकों में 70,000 उपग्रहों के प्रक्षेपण की संभावना, विनियमन की कमी के मध्य अंतरिक्ष में टकराव और बढ़ते अंतरिक्ष मलबे के जोखिम को बढ़ाएगी।

विश्व आर्थिक मंच 

  • विश्व आर्थिक मंच के बारे में:
    • विश्व आर्थिक मंच एक स्विस गैर-लाभकारी एवं अंतर्राष्ट्रीय संगठन है। इसकी स्थापना 1971 में हुई थी। इसका मुख्यालय स्विट्ज़रलैंड के जिनेवा में है।
    • स्विस/स्विट्ज़रलैंड अधिकारियों द्वारा सार्वजनिक-निजी सहयोग के लिये अंतर्राष्ट्रीय संस्था के रूप में मान्यता प्राप्त है।
  • मिशन:
    • फोरम वैश्विक, क्षेत्रीय और औद्योगिक एजेंडों को आकार देने के लिये राजनीतिक, व्यापारिक, सामाजिक व शैक्षणिक क्षेत्र के अग्रणी नेतृत्व को एक साझा मंच उपलब्ध कराता है। 
  • संस्थापक और कार्यकारी अध्यक्ष: क्लाउस श्वाब (Klaus Schwab)
  • विश्व आर्थिक मंच द्वारा जारी की जाने वाली अन्य रिपोर्ट्स:

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत और अमेरिका के बीच ‘होमलैंड सिक्योरिटी डायलॉग’

प्रिलिम्स के लिये:

होमलैंड सिक्योरिटी डायलॉग, QUAD, चार मूलभूत रक्षा समझौते, रक्षा अभ्यास, NISAR

मेन्स के लिये:

भारत-अमेरिका रक्षा और सुरक्षा सहयोग, भारत-अमेरिका संबंधों का महत्त्व, भारत-अमेरिका संबंधों के विभिन्न पहलू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत और अमेरिका के अधिकारियों के बीच होमलैंड सिक्योरिटी डायलॉग का आयोजन किया गया था।

  • अक्तूबर 2021 में रक्षा मंत्रालय ने विदेशी सैन्य बिक्री (FMS) के तहत भारतीय नौसेना के लिये एमके 54 टॉरपीडो और एक्सपेंडेबल (चफ एंड फ्लेयर्स) की खरीद के लिये अमेरिकी सरकार के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किये।
  • जुलाई 2021 में अमेरिकी विदेश मंत्री ने भारत का दौरा किया।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • भारत-अमेरिका मातृभूमि सुरक्षा वार्ता 2010 में भारत-अमेरिका की आतंकवाद विरोधी पहल पर हस्ताक्षर करने की अगली कड़ी के रूप में शुरू की गई थी।
      • पहली होमलैंड सुरक्षा वार्ता मई 2011 में आयोजित की गई थी।
    • नवीनतम आभासी बैठक मार्च 2021 के बाद हुई, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन प्रशासन ने होमलैंड सिक्योरिटी डायलॉग को  फिर से शरु करने की घोषणा की थी जिसे पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन ने बंद कर दिया था।
    • इंडो-यूएस होमलैंड सिक्योरिटी डायलॉग के तहत छह उप-समूह बनाए गए हैं, जो निम्नलिखित क्षेत्रों को कवर करते हैं:
      • अवैध वित्त, वित्तीय धोखाधड़ी और जालसाजी।
      • साइबर जानकारी।
      • मेगासिटी पुलिसिंग और संघीय, राज्य और स्थानीय भागीदारों के बीच सूचनाओं का आदान-प्रदान।
      • वैश्विक आपूर्ति शृंखला, परिवहन, बंदरगाह, सीमा और समुद्री सुरक्षा।
      • क्षमता निर्माण।
      • प्रौद्योगिकी उन्नयन।
  • भारत-अमेरिका संबंध:
    • परिचय:
      • भारत-अमेरिका द्विपक्षीय संबंध एक ‘वैश्विक रणनीतिक साझेदारी’ के रूप में विकसित हुए हैं, जो साझा लोकतांत्रिक मूल्यों और द्विपक्षीय, क्षेत्रीय तथा वैश्विक हितों के बढ़ते अभिसरण पर आधारित हैं।
      • वर्ष 2015 में दोनों देशों ने ‘दिल्ली डिक्लेरेशन ऑफ फ्रेंडशिप’ की घोषणा की और ‘जॉइंट स्ट्रेटेजिक विज़न फॉर एशिया-पैसिफिक एंड इंडियन ओसियन रीज़न’ को अपनाया।
    • असैन्य-परमाणु सौदा:
    • ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन:
      • PACE (पार्टनरशिप टू एडवांस क्लीन एनर्जी) के तहत एक प्राथमिकता पहल के रूप में अमेरिकी ऊर्जा विभाग (DOE) और भारत सरकार ने संयुक्त स्वच्छ ऊर्जा अनुसंधान एवं विकास केंद्र (JCERDC) की स्थापना की है, जिसे भारत तथा संयुक्त राज्य अमेरिका के वैज्ञानिकों द्वारा स्वच्छ ऊर्जा नवाचारों को बढ़ावा देने हेतु डिज़ाइन किया गया है।
      • लीडर्स क्लाइमेट समिट 2021 मेंभारत-अमेरिका स्वच्छ ऊर्जा एजेंडा 2030’ पार्टनरशिप की शुरुआत की गई। 
    • रक्षा समझौते:
      • वर्ष 2005 में 'भारत-अमेरिका रक्षा संबंधों के लिये नए ढाँचे' पर हस्ताक्षर के साथ रक्षा संबंध भारत-अमेरिका रणनीतिक साझेदारी के एक प्रमुख स्तंभ के रूप में उभरा है, जिसे वर्ष 2015 में और10 वर्षों के लिये  अद्यतन किया गया था।
      • भारत और अमेरिका ने पिछले कुछ वर्षों में महत्त्वपूर्ण रक्षा समझौते किये तथा क्वाड (भारत, अमेरिका, जापान एवं ऑस्ट्रेलिया) के चार देशों के गठबंधन को भी औपचारिक रूप दिया।
        • इस गठबंधन को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के लिये एक महत्त्वपूर्ण प्रतिकार के रूप में देखा जा रहा है।
      • नवंबर 2020 में मालाबार अभ्यास ने भारत-अमेरिका रणनीतिक संबंधों में एक उच्च बिंदु को स्पर्श किया, यह 13 वर्षों में पहली बार था कि ‘क्वाड’ के सभी चार देश एक साथ चीन का प्रतिरोध कर रहे थे।
      • भारत की पहुँच अब अफ्रीका में जिबूती से लेकर प्रशांत क्षेत्र के  गुआम में अमेरिकी सैन्य अड्डों तक है। भारत अमेरिकी रक्षा क्षेत्र में उपयोग की जाने वाली उन्नत संचार तकनीक का भी उपयोग कर सकता है।
      • भारत और अमेरिका के बीच चार मूलभूत रक्षा समझौते हैं:
      • वर्ष 2010 में आतंकवाद का विरोध करने, सूचना साझा करने और क्षमता निर्माण सहयोग का विस्तार करने के लिये भारत-अमेरिका आतंकवाद-रोधी सहयोग पहल पर हस्ताक्षर किये गए थे।
      • एक त्रि-सेवा अभ्यास- टाइगर ट्रायम्फ- नवंबर 2019 में आयोजित किया गया था।
      • द्विपक्षीय और क्षेत्रीय अभ्यासों में शामिल हैं: युद्ध अभ्यास (सेना); वज्र प्रहार (विशेष बल); रिमपैक; रेड फ्लैग।
    • व्यापार:
      • अमेरिका भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है तथा भारत की वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात के लिये एक प्रमुख गंतव्य है।
      • अमेरिका ने 2020-21 के दौरान भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के दूसरे सबसे बड़े स्रोत के रूप में मॉरीशस को पीछे छोड़ दिया है।
      • पिछली अमेरिकी सरकार ने भारत की विशेष व्यापार स्थिति (GSP निकासी) को समाप्त कर दिया और कई प्रतिबंध भी लगाए, भारत ने भी 28 अमेरिकी उत्पादों पर प्रतिबंध लगाए।
      • वर्तमान अमेरिकी सरकार ने पिछली सरकार द्वारा लगाए गए सभी प्रतिबंधों को हटाने  की अनुमति दी है।
    • विज्ञान प्रौद्योगिकी:
      • इसरो और नासा पृथ्वी अवलोकन के लिये एक संयुक्त माइक्रोवेव रिमोट सेंसिंग उपग्रह को स्थापित करने हेतु मिलकर काम कर रहे हैं, जिसका नाम NASA-ISRO सिंथेटिक एपर्चर रडार (NISAR) है।
    • भारतीय प्रवासी:
      • अमेरिका में सभी क्षेत्रों में भारतीय प्रवासियों की उपस्थिति बढ़ रही है। उदाहरण के लिये अमेरिका की वर्तमान उपराष्ट्रपति (कमला हैरिस) का भारत से गहरा संबंध है।

आगे की राह

  • अमेरिका के साथ भारत की साझेदारी में बदलाव के लिये मंच तैयार किया गया है। अफगानिस्तान भारत और अमेरिका दोनों के लिये निरंतर चिंता का एक प्रमुख क्षेत्र बना हुआ है तथा दोनों पक्षों की नज़र अब चीन के उदय एवं दावे से प्रेरित हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उभर रही बड़ी चुनौतियों पर है।
  • विशेष रूप से दोनों देशों में चीन विरोधी भावना बढ़ने के कारण देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देने की बहुत अधिक संभावना है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 


शासन व्यवस्था

कृष्णा जल विवाद

प्रिलिम्स के लिये:

नदी जल विवाद से संबंधित संवैधानिक प्रावधान, कृष्णा नदी और उसकी सहायक नदियाँ, नल्लामाला पहाड़िया।

मेन्स के लिये:

कृष्णा नदी जल विवाद चुनौतियाँ और आगे का रास्ता, न्यायाधीशों का खंडन।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के दो जजों ने आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच कृष्णा नदी जल  के बँटवारे के विवाद से जुड़े एक मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है।

  • उन्होंने इसका कारण बताया कि वे पक्षपात का निशाना नहीं बनना चाहते क्योंकि विवाद उनके गृह राज्यों से संबंधित है।

न्यायाधीशों का बहिष्कार

  • यह पीठासीन न्यायालय के अधिकारी या प्रशासनिक अधिकारी के हितों के टकराव के कारण कानूनी कार्यवाही जैसी आधिकारिक कार्रवाई में भाग लेने से अनुपस्थित रहने से संबंधित है।
  • जब हितों का टकराव होता है तो एक न्यायाधीश मामले की सुनवाई से पीछे हट सकता है ताकि यह धारणा पैदा न हो कि उसने मामले का निर्णय करते समय पक्षपात किया है।
  • पुनर्मूल्यांकन को नियंत्रित करने वाले कोई औपचारिक नियम नहीं हैं, हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय के कई निर्णयों में इस मुद्दे पर बात की गई है
    • रंजीत ठाकुर बनाम भारत संघ (1987) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि यह दूसरे पक्ष के मन में पक्षपात की संभावना की आशंका के प्रति तर्कों को बल प्रदान करती है।
    • न्यायालय को अपने सामने मोजूद पक्ष के तर्क को देखना चाहिये और तय करना चाहिये कि वह पक्षपाती है या नहीं।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • वर्ष 2021 में आंध्र प्रदेश ने आरोप लगाया कि तेलंगाना सरकार द्वारा उसे "असंवैधानिक और अवैध" तरीके से पीने एवं सिंचाई के लिये पानी के अपने वैध हिस्से से वंचित कर दिया गया।
    • श्रीशैलम जलाशय का पानी, जो कि दोनों राज्यों के बीच नदी के जल का मुख्य भंडारण है, संघर्ष का एक प्रमुख बिंदु बन गया है।
      • आंध्र प्रदेश ने तेलंगाना द्वारा बिजली उत्पादन हेतु श्रीशैलम जलाशय के पानी के उपयोग का विरोध किया।
      • श्रीशैलम जलाशय आंध्र प्रदेश में कृष्णा नदी पर बनाया गया है। यह नल्लामाला पहाड़ियों में स्थित है।
    • इसने आगे तर्क दिया कि तेलंगाना, आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014 के तहत गठित शीर्ष परिषद में लिये गए निर्णयों, इस अधिनियम के तहत गठित कृष्णा नदी प्रबंधन बोर्ड (केआरएमबी) के निर्देशों और केंद्र के निर्देशों का पालन करने से इनकार कर रहा है।
  • पृष्ठभूमि:
    • कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण:
      • वर्ष 1969 में ‘अंतर-राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956’ के तहत कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण (KWDT) को स्थापित किया गया था और इसने वर्ष 1973 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की थी।
      • साथ ही यह भी निर्धारित किया गया था कि ‘कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण’ आदेश की समीक्षा या संशोधन किसी सक्षम प्राधिकारी या न्यायाधिकरण द्वारा 31 मई, 2000 के बाद किसी भी समय किया जा सकता है।
    • दूसरा कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण
      • वर्ष 2004 में दूसरे कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण की स्थापना की गई जिसने वर्ष 2010 में अपनी अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत की। वर्ष 2010 में दिये गए निर्णय में अधिशेष जल का 81 TMC महाराष्ट्र को, 177 TMC कर्नाटक को तथा 190 TMC आंध्र प्रदेश के लिये आवंटित किया गया था।
    • KWDT की वर्ष 2010 की रिपोर्ट के बाद:
      • आंध्र प्रदेश ने वर्ष 2011 में सर्वोच्च न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका के माध्यम से इसे चुनौती दी थी।
      • वर्ष 2013 में कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण ने 'आगे की रिपोर्ट' जारी की, जिसे वर्ष 2014 में आंध्र प्रदेश ने फिर से सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी।
    • तेलंगाना का निर्माण:
      • तेलंगाना के निर्माण के बाद आंध्र प्रदेश ने कहा है कि तेलंगाना को KWDT में एक अलग पक्ष के रूप में शामिल किया जाए और कृष्णा जल के आवंटन को तीन के बजाय चार राज्यों के बीच फिर से वितरित किया जाए।
        • यह आंध्र प्रदेश राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 2014 की धारा 89 पर आधारित है।
        • इस खंड के प्रयोजनों हेतु, यह स्पष्ट किया जाता है कि नियत दिन को या उससे पहले ट्रिब्यूनल द्वारा पहले से किये गए परियोजना-विशिष्ट आवंटन संबंधित  राज्यों पर बाध्यकारी होंगे।
  • संवैधानिक प्रावधान:
    • अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद के निपटारे हेतु भारतीय संविधान के अनुच्छेद 262 में प्रावधान है।
      • इसके तहत संसद किसी भी अंतर्राज्यीय नदी और नदी घाटी के जल उपयोग, वितरण एवं नियंत्रण के संबंध में किसी भी विवाद या शिकायत के न्यायनिर्णयन का प्रावधान कर सकती है।
    • संसद ने दो कानून, नदी बोर्ड अधिनियम (1956) और अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिनियम (1956) अधिनियमित किये हैं।
      • नदी बोर्ड अधिनियम (River Boards Act) अंतर-राज्यीय नदी और नदी घाटियों के नियमन एवं विकास हेतु केंद्र सरकार द्वारा नदी बोर्डों की स्थापना का प्रावधान करता है।
      • अंतर-राज्यीय जल विवाद अधिनियम (Inter-State Water Disputes Act) केंद्र सरकार को एक अंतर-राज्यीय नदी या नदी घाटी के जल के संबंध में दो या दो से अधिक राज्यों के मध्य विवाद के निर्णय हेतु  एक तदर्थ न्यायाधिकरण स्थापित करने का अधिकार प्रदान करता है।
        • किसी भी जल विवाद के संबंध में न तो सर्वोच्च न्यायालय और न ही किसी अन्य न्यायालय के पास अधिकार क्षेत्र है, जिसे इस अधिनियम के तहत ऐसे न्यायाधिकरण को संदर्भित किया जा सकता है।

कृष्णा नदी:

  • स्रोत: इसका उद्गम महाराष्ट्र में महाबलेश्वर (सतारा) के निकट होता है। यह गोदावरी नदी के बाद प्रायद्वीपीय भारत की दूसरी सबसे बड़ी नदी है।
  • ड्रेनेज: यह बंगाल की खाड़ी में गिरने से पहले चार राज्यों महाराष्ट्र (303 किमी), उत्तरी कर्नाटक (480 किमी) और शेष 1300 किमी तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में प्रवाहित होती है।
  • सहायक नदियाँ: तुंगभद्रा, मल्लप्रभा, कोयना, भीमा, घटप्रभा, येरला, वर्ना, डिंडी, मुसी और दूधगंगा।

Krishna_River

आगे की राह

  • जल विवादों का समाधान या संतुलन तभी किया जा सकता है जब ट्रिब्यूनल द्वारा दिये गए निर्णयों पर सर्वोच्च न्यायालय के अपीलीय क्षेत्राधिकार के साथ एक स्थायी ट्रिब्यूनल स्थापित किया जाए।
  • किसी भी संवैधानिक सरकार का तात्कालिक लक्ष्य अनुच्छेद 262 में संशोधन और अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिनियम में संशोधन तथा उसका समान रूप से क्रियान्वयन होना चाहिये।
  • यह समय है कि हम सभी को जल प्रबंधन के बारे में अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करना चाहिये, न केवल राज्यों के भीतर, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर अगले 30 वर्षों में जल परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए आम सहमति के लिये संचार के चैनलों में सख्ती से सुधार करने की ज़रूरत है।
  • तंत्र को इस तरह से सुधारना चाहिये कि केंद्र द्वारा बनाए गए निकाय को राज्यों के हितों की रक्षा के लिये पर्याप्त रूप से प्रतिनिधित्व मिले।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

उत्तर कोरिया पर अमेरिकी प्रतिबंध

प्रिलिम्स के लिये:

उत्तर कोरियाई मिसाइल लॉन्च, कोरियाई युद्धविराम समझौता।

मेन्स के लिये:

कोरियाई युद्ध, कोरियाई युद्धविराम समझौता, शीत युद्ध, वर्ष 2003 में अप्रसार संधि (NPT), ‘थाड’ (टर्मिनल हाई एल्टीट्यूड एरिया डिफेंस), उत्तर कोरिया पर अमेरिकी प्रतिबंध।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अमेरिका ने उत्तर कोरिया के मिसाइल कार्यक्रमों की एक शृंखला के बाद उत्तर कोरिया के हथियार कार्यक्रमों पर अपना पहला प्रतिबंध लगाया है।

  • इन प्रतिबंधों का उद्देश्य उत्तर कोरिया के कार्यक्रमों की प्रगति को रोकना और हथियार प्रौद्योगिकियों के प्रसार के उसके प्रयासों को बाधित करना है।
  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के कई प्रस्तावों और कूटनीति एवं परमाणु निरस्त्रीकरण के लिये अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के आह्वान के बावजूद उत्तर कोरिया अपने मिसाइल कार्यक्रम को जारी रखे हुए है।

प्रमुख बिंदु

  • कोरियाई प्रायद्वीप में फूट की उत्पत्ति:
    • अमेरिका और उत्तर कोरिया के बीच वर्तमान संघर्ष का इतिहास सोवियत संघ व अमेरिका के बीच शीत युद्ध में खोजा जा सकता है।
    • द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की हार के बाद ‘याल्टा सम्मेलन’ (1945) में मित्र देशों की सेना ‘कोरिया पर फोर-पावर ट्रस्टीशिप’ स्थापित करने हेतु सहमत हुई।
    • ‘साम्यवाद’ (किसी देश के आर्थिक संसाधनों पर राज्य का स्वामित्व) के प्रसार के डर और सोवियत संघ व अमेरिका के बीच आपसी अविश्वास के कारण ट्रस्टीशिप योजना विफल हो गई।
      • इससे पहले कि कोई ठोस योजना तैयार की जा सके, सोवियत संघ ने कोरिया पर आक्रमण कर दिया।
      • इससे एक ऐसी स्थिति पैदा हो गई जहांँ कोरिया का उत्तर क्षेत्र यूएसएसआर के अधीन तथा दक्षिण क्षेत्र ओर उसके बाकी सहयोगी, मुख्य रूप से अमेरिका के अधीन थे।
      • 38वें समानांतर रेखा द्वारा कोरियाई प्रायद्वीप को दो क्षेत्रों में विभाजित किया गया था।
    • वर्ष 1948 में संयुक्त राष्ट्र ने पूरे कोरिया में स्वतंत्र चुनाव का प्रस्ताव रखा।
      • यूएसएसआर ने इस योजना को खारिज कर दिया और उत्तरी भाग को डेमोक्रेटिक पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ कोरिया (उत्तर कोरिया) के रूप में घोषित किया गया।
      • चुनाव अमेरिकी संरक्षण में हुआ जिसके परिणामस्वरूप कोरिया गणराज्य (दक्षिण कोरिया) की स्थापना हुई।
    • उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया दोनों ने क्षेत्रीय एवं वैचारिक रूप से अपनी पहुंँच बढ़ाने की कोशिश की, जिसने कोरियाई संघर्ष को जन्म दिया।

China-Manchuria

  • कोरियाई युद्ध:
    • उत्तर कोरिया ने USSR के समर्थन से 25 जून, 1950 को दक्षिण कोरिया पर हमला किया और अंततः उसके अधिकांश हिस्सों पर नियंत्रण कर लिया।
      • बदले में अमेरिका के नेतृत्व में संयुक्त राष्ट्र बल ने जवाबी कार्रवाई की।
    • वर्ष 1951 में डगलस मैकआर्थर के नेतृत्व में अमेरिकी सेना ने 38वें समानांतर रेखा को पार किया और उत्तर कोरिया के समर्थन से चीन में अपने प्रवेश को गति दी।
      • बाद में वर्ष 1951 में अमेरिका को आगे बढ़ने से रोकने के लिये शांति वार्ता शुरू हुई।
    • भारत सभी प्रमुख हितधारकों अमेरिका, यूएसएसआर और चीन को शामिल करके कोरियाई प्रायद्वीप में शांति वार्ता में सक्रिय रूप से शामिल था। 
      • वर्ष 1952 में कोरिया पर भारतीय के प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र (UN) में अपनाया गया था।
    • 27 जुलाई, 1953 को संयुक्त राष्ट्र कमान, कोरियाई पीपुल्स आर्मी और चीनी पीपुल्स वालंटियर आर्मी के मध्य कोरियाई युद्धविराम समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे।
      • इसने शांति संधि के बिना एक आधिकारिक युद्धविराम का नेतृत्व किया। इस प्रकार युद्ध आधिकारिक तौर पर कभी समाप्त नहीं हुआ।
    • इसने ‘कोरियाई डिमिलिटाइज़्ड ज़ोन’ (DMZ) की स्थापना का भी नेतृत्व किया जो कि उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया के बीच बफर ज़ोन के रूप में काम करने के लिये कोरियाई प्रायद्वीप में भूमि की एक पट्टी है।
    • दिसंबर 1991 में उत्तर और दक्षिण कोरिया ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किये, जिसमें आक्रामकता से बचने के लिये सहमति व्यक्त की गई थी।
  • अमेरिका-उत्तर कोरिया संघर्ष:
    • शीत युद्ध के दौर में (कथित रूप से रूस और चीन के समर्थन से) उत्तर कोरिया अपने परमाणु कार्यक्रम में तेज़ी लायी और परमाणु क्षमता विकसित की।
      • उसी दौरान अमेरिका ने अपने सहयोगियों यानी दक्षिण कोरिया और जापान के लिये अपने न्यूक्लियर अम्ब्रेला (परमाणु हमले के दौरान समर्थन की गारंटी) का विस्तार किया।
    • उत्तर कोरिया वर्ष 2003 में अप्रसार संधि (एनपीटी) से हट गया और बाद में वर्तमान नेता किम जोंग-उन के तहत उसने परमाणु मिसाइल परीक्षण में वृद्धि की।
      • उत्तर कोरिया को अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत बैलिस्टिक मिसाइलों और परमाणु हथियारों के परीक्षण से रोक दिया गया है।
    • इसके जवाब में अमेरिका ने मार्च 2017 में दक्षिण कोरिया में THAAD (टर्मिनल हाई एल्टीट्यूड एरिया डिफेंस) को तैनात किया।
    • उत्तर और दक्षिण कोरिया के बीच शुरू हुआ क्षेत्रीय संघर्ष अमेरिका और उत्तर कोरिया के बीच की तकरार में तब्दील हो गया है।
    • उत्तर कोरिया के साथ संबंध सुधारने के राजनयिक प्रयासों की विफलता के बाद अमेरिका ने प्रतिबंध लगाए हैं।
  • भारत का रुख:
    • भारत लगातार उत्तर कोरिया के परमाणु और मिसाइल परीक्षणों का विरोध करता रहा है। हालाँकि इसने प्रतिबंधों को लेकर तटस्थ रुख बनाए रखा है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय राजनीति

लोक अदालत

प्रिलिम्स के लिये:

लोक अदालत, नालसा, वैकल्पिक विवाद समाधान।

मेन्स के लिये:

लोक अदालत और संबंधित क्षेत्राधिकार तथा इसके महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

लोक अदालत वैकल्पिक विवाद समाधान के सबसे प्रभावशाली उपकरण के रूप में उभरी है।

  • वर्ष 2021 में कुल 1,27,87,329 मामलों का निपटारा किया गया। ई-लोक अदालतों जैसी तकनीकी प्रगति के कारण लोक अदालतें पार्टियों के दरवाज़े तक पहुँच गई हैं।

प्रमुख बिंदु:

  • परिचय:
    • 'लोक अदालत' शब्द का अर्थ 'पीपुल्स कोर्ट' है और यह गांधीवादी सिद्धांतों पर आधारित है।
    • सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, यह प्राचीन भारत में प्रचलित न्यायनिर्णयन प्रणाली का एक पुराना रूप है और वर्तमान में भी इसकी वैधता बरकरार है।
    • यह वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR) प्रणाली के घटकों में से एक है जो आम लोगों को अनौपचारिक, सस्ता और शीघ्र न्याय प्रदान करता है।
    • पहला लोक अदालत शिविर वर्ष 1982 में गुजरात में एक स्वैच्छिक और सुलह एजेंसी के रूप में बिना किसी वैधानिक समर्थन के निर्णयों हेतु आयोजित किया गया था।
    • समय के साथ इसकी बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए इसे कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के तहत वैधानिक दर्ज़ा दिया गया था। यह अधिनियम लोक अदालतों के संगठन और कामकाज से संबंधित प्रावधान करता है।
  • संगठन:
    • राज्य/ज़िला कानूनी सेवा प्राधिकरण या सर्वोच्च न्यायालय/उच्च न्यायालय/तालुका कानूनी सेवा समिति ऐसे अंतराल और स्थानों पर तथा ऐसे क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने व ऐसे क्षेत्रों के लिये लोक अदालतों का आयोजन कर सकती है जिन्हें वह उचित समझे।
    • किसी क्षेत्र के लिये आयोजित प्रत्येक लोक अदालत में उतनी संख्या में सेवारत या सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारी और क्षेत्र के अन्य व्यक्ति शामिल होंगे, जैसा कि आयोजन करने वाली एजेंसी द्वारा निर्दिष्ट किया जाएगा है।
      • सामान्यत: एक लोक अदालत में अध्यक्ष के रूप में एक न्यायिक अधिकारी, एक वकील (अधिवक्ता) और एक सामाजिक कार्यकर्त्ता सदस्य के रूप में शामिल होते हैं।
    • राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (National Legal Services Authority- NALSA) अन्य कानूनी सेवा संस्थानों के साथ लोक अदालतों का आयोजन करता है।
      • NALSA का गठन कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के तहत 9 नवंबर, 1995 को किया गया था जो समाज के कमजोर वर्गों को मुफ्त और सक्षम कानूनी सेवाएंँ प्रदान करने हेतु राष्ट्रव्यापी एक समान नेटवर्क स्थापित करने के लिये लागू हुआ था।
    • सार्वजनिक उपयोगिता सेवाओं से संबंधित मामलों से निपटने के लिये स्थायी लोक अदालतों की स्थापना हेतु वर्ष 2002 में कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 में संशोधन किया गया था।
  • क्षेत्राधिकार:
    • लोक अदालत के पास विवाद के समाधान के लिये पक्षों के बीच समझौता या समझौता करने और तय करने का अधिकार क्षेत्र होगा:
      • किसी भी न्यायालय के समक्ष लंबित कोई मामला, या
      • कोई भी मामला जो किसी न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में आता है और उसे न्यायालय के समक्ष नहीं लाया जाता है।
    • अदालत के समक्ष लंबित किसी भी मामले को निपटान के लिये लोक अदालत में भेजा जा सकता है यदि:
      • दोनों पक्ष लोक अदालत में विवाद को निपटाने के लिए सहमत हो या कोई एक पक्ष मामले को लोक अदालत में संदर्भित करने के लिये आवेदन करता है या अदालत संतुष्ट है कि मामला लोक अदालत द्वारा हल किया जा सकता है।
      • पूर्व-मुकदमेबाज़ी के मामले में विवाद के किसी भी एक पक्ष से आवेदन प्राप्त होने पर मामले को लोक अदालत में भेजा जा सकता है।
    • वैवाहिक/पारिवारिक विवाद, आपराधिक (शमनीय अपराध) मामले, भूमि अधिग्रहण के मामले, श्रम विवाद, कामगार मुआवज़े के मामले, बैंक वसूली से संबंधित आदि मामले लोक अदालतों में उठाए जा रहे हैं।
    • हालाँकि लोक अदालत के पास किसी ऐसे मामले के संबंध में कोई अधिकार क्षेत्र नहीं होगा जो किसी भी कानून के तहत कंपाउंडेबल अपराध से संबंधित नहीं है। दूसरे शब्दों में, जो अपराध किसी भी कानून के तहत गैर-कंपाउंडेबल हैं, वे लोक अदालत के दायरे से बाहर हैं।
  • शक्तियाँ:
    • लोक अदालत के पास वही शक्तियाँ होंगी जो सिविल प्रक्रिया संहिता (1908) के तहत एक सिविल कोर्ट में निहित होती हैं।
    • इसके अलावा एक लोक अदालत के पास अपने सामने आने वाले किसी भी विवाद के निर्धारण के लिये अपनी प्रक्रिया निर्दिष्ट करने की अपेक्षित शक्तियाँ होंगी।
    • लोक अदालत के समक्ष सभी कार्यवाही भारतीय दंड संहिता (1860) के तहत न्यायिक कार्यवाही मानी जाएगी और प्रत्येक लोक अदालत को दंड प्रक्रिया संहिता (1973) के उद्देश्य के लिये एक दीवानी न्यायालय माना जाएगा।
    • लोक अदालत का फैसला किसी दीवानी अदालत की डिक्री या किसी अन्य अदालत का आदेश माना जाएगा।
    • लोक अदालत द्वारा दिया गया प्रत्येक निर्णय विवाद के सभी पक्षों के लिये अंतिम और बाध्यकारी होगा। लोक अदालत के फैसले के खिलाफ किसी भी अदालत में कोई अपील नहीं होगी।
  • महत्त्व:
    • इसके तहत कोई न्यायालय शुल्क नहीं है और यदि न्यायालय शुल्क का भुगतान पहले ही कर दिया गया है तो लोक अदालत में विवाद का निपटारा होने पर राशि वापस कर दी जाएगी।
    • विवाद निपटन हेतु प्रक्रियात्मक लचीलापन और त्वरित सुनवाई होती है। लोक अदालत द्वारा दावे का मूल्यांकन करते समय प्रक्रियात्मक कानूनों को अत्यधिक सख्ती से लागू नहीं किया जाता है।
    • विवाद के पक्षकार सीधे अपने वकील के माध्यम से न्यायाधीश के साथ बातचीत कर सकते हैं जो कानून की नियमित अदालतों में संभव नहीं है।
    • लोक अदालत द्वारा दिया जाने वाला निर्णय सभी पक्षों के लिये बाध्यकारी होता है और इसे सिविल कोर्ट की डिक्री का दर्जा प्राप्त होता है तथा यह गैर-अपील योग्य होता है, जिससे अंततः विवादों के निपटारे में देरी नहीं होती है।

स्रोत: पी.आई.बी.


शासन व्यवस्था

भारत के रूफटॉप सोलर प्रोग्राम में चुनौतियाँ

प्रिलिम्स के लिये:

अक्षय ऊर्जा लक्ष्य प्राप्त करने के लिये योजनाएँ और कार्यक्रम

मेन्स के लिये: 

अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में भारत की उपलब्धियाँ, भारत के नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य, चुनौतियाँ और इसे प्राप्त करने के लिये शुरू की गई प्रमुख पहल।

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, भारत रूफटॉप सोलर योजना के तहत अक्तूबर 2021 के अंत तक सिर्फ 6GW रूफटॉप सोलर (RTS) बिजली स्थापित कर सका।

  • हालाँकि उपयोगिता-पैमाने पर सौर परियोजनाओं के लिये अग्रणी खिलाड़ियों के साथ जबरदस्त प्रगति देखी गई है और टैरिफ में गिरावट एवं मेगा परियोजनाओं को आगे बढ़ाने वाली सरकारी एजेंसियाँ ​​आरटीएस उपेक्षित बनी हुई हैं।

रूफटॉप सोलर

  • रूफटॉप सोलर एक फोटोवोल्टिक प्रणाली है जिसमें बिजली पैदा करने वाले सौर पैनल आवासीय या व्यावसायिक भवन या संरचना की छत पर लगे होते हैं।
  • रूफटॉप माउंटेड सिस्टम मेगावाट रेंज में क्षमता वाले ग्राउंड-माउंटेड फोटोवोल्टिक पावर स्टेशनों की तुलना में छोटे होते हैं।
  • आवासीय भवनों पर रूफटॉप पीवी सिस्टम में आमतौर पर लगभग 5 से 20 किलोवाट (kW) की क्षमता होती है, जबकि वाणिज्यिक भवनों पर 100 किलोवाट या उससे अधिक पहुँच जाती हैं।

प्रमुख बिंदु

  • रूफटॉप सोलर योजना:
    • योजना का मुख्य उद्देश्य घरों की छत पर सोलर पैनल लगाकर सौर ऊर्जा उत्पन्न करना है।
    • साथ ही नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने ग्रिड से जुड़ी रूफटॉप सोलर योजना के चरण 2 के कार्यान्वयन की घोषणा की है।
    • इस योजना का उद्देश्य वर्ष 2022 तक रूफटॉप सौर परियोजनाओं से 40 गीगावाट की अंतिम क्षमता हासिल करना है।
    • 40GW का लक्ष्य 175GW के नवीकरणीय ऊर्जा (RE) क्षमता प्राप्त करने के भारत के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य का हिस्सा है, जिसमें वर्ष 2022 तक 100GW सौर ऊर्जा शामिल है।
      • सितंबर 2021 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, लॉकडाउन ने देश में नवीकरणीय ऊर्जा प्रतिष्ठानों की गति को धीमा कर दिया और ऐसे प्रतिष्ठानों की गति भारत के वर्ष 2
      • 022 के लक्ष्य से पीछे है।
  • चुनौतियाँ
    • फ्लिप-फ्लॉपिंग नीतियाँ:
      • हालाँकि कई कंपनियों ने सौर ऊर्जा का उपयोग करना शुरू कर दिया है, किंतु ‘फ्लिप-फ्लॉपिंग’ नीतियाँ (नीतियों का अचानक परिवर्तन) इस संबंध में एक बड़ी बाधा बनी हुई हैं, खासकर जब बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) के संदर्भ में।
      • उद्योग के अधिकारियों का कहना है कि जब डिस्कॉम और राज्य सरकारों ने इस क्षेत्र के लिये नियमों को कड़ा करना शुरू किया तो RTS कई उपभोक्ता क्षेत्रों के लिये आकर्षक होता जा रहा था।
        • भारत के वस्तु और सेवा कर (GST) परिषद ने हाल ही में सौर प्रणाली के कई घटकों के GST को 5% से बढ़ाकर 12% कर दिया है।
        • इससे RTS की पूंजीगत लागत 4-5% बढ़ जाएगी।
    • नियामक ढाँचा:
      • RTS खंड का विकास नियामक ढाँचे पर अत्यधिक निर्भर है।
      • धीमी वृद्धि मुख्य रूप से RTS खंड हेतु राज्य-स्तरीय नीति समर्थन की अनुपस्थिति या वापसी के कारण हुई है, विशेष रूप से व्यापार और औद्योगिक खंड के लिये, जो लक्षित उपभोक्ताओं का बड़ा हिस्सा है।
    • नेट और ग्रॉस मीटरिंग पर असंगत नियम:
      • नेट मीटरिंग नियम इस क्षेत्र की प्रमुख बाधाओं में से एक हैं।
      • एक रिपोर्ट के अनुसार, बिजली मंत्रालय के नए नियम, जो 10 किलोवाट (kW) से ऊपर के रूफटॉप सोलर सिस्टम को नेट-मीटरिंग से बाहर रखते हैं, भारत में बड़े इंस्टॉलेशन को अपनाने से देश के रूफटॉप सोलर टारगेट को प्रभावित करेंगे।
        • नए नियमों में रूफटॉप सोलर प्रोजेक्ट्स के लिये 10 kW तक नेट-मीटरिंग और 10 kW से ऊपर के लोड वाले सिस्टम के लिये ग्रॉस मीटरिंग अनिवार्य है।
        • नेट मीटरिंग आरटीएस सिस्टम द्वारा उत्पादित अधिशेष बिजली को ग्रिड में वापस फीड करने की अनुमति देता है।
        • सकल मीटरिंग योजना के तहत, राज्य बिजली वितरण कंपनियां (DISCOMS) उपभोक्ताओं द्वारा ग्रिड को आपूर्ति की जाने वाली सौर ऊर्जा के लिये एक निश्चित फीड-इन-टैरिफ के साथ उपभोक्ताओं को मुआवज़ा देती हैं।
    • कम वित्तपोषण:
      • वाणिज्यिक संस्थान और आवासीय क्षेत्र बैंक ऋण प्राप्त करके ग्रिड से जुड़े आरटीएस स्थापित करने के इच्छुक हैं।
      • केंद्रीय नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) ने बैंकों को आरटीएस के लिये रियायती दरों पर ऋण देने की सलाह दी है। हालाँकि राष्ट्रीयकृत बैंक शायद ही RTS को ऋण देते हैं।
      • इस प्रकार कई निजी संस्थान बाज़ार में आ गए हैं जो आरटीएस के लिये 10-12% जैसी उच्च दरों पर ऋण प्रदान करते हैं।

सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिये योजनाएँ:   

  • अल्ट्रा मेगा रिन्यूएबल एनर्जी पावर पार्क के विकास के लिये योजना: यह मौजूदा सौर पार्क योजना के तहत अल्ट्रा मेगा रिन्यूएबल एनर्जी पावर पार्क (UMREPPs) विकसित करने की एक योजना है।
  • राष्ट्रीय पवन-सौर हाइब्रिड नीति 2018: इस नीति का मुख्य उद्देश्य पवन और सौर संसाधनों, बुनियादी ढांँचे और भूमि के इष्टतम व कुशल उपयोग के लिये ग्रिड कनेक्टेड विंड-सोलर पीवी सिस्टम (Wind-Solar PV Hybrid Systems) को बढ़ावा देने हेतु एक रूपरेखा प्रस्तुत करना है।
  • अटल ज्योति योजना (AJAY): AJAY योजना को सितंबर 2016 में ग्रिड पावर (2011 की जनगणना के अनुसार) में 50% से कम घरों वाले राज्यों में सौर स्ट्रीट लाइटिंग (Solar Street Lighting- SSL) सिस्टम की स्थापना के लिये शुरू किया गया था।
  • अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) : ISA, भारत की एक पहल है जिसे 30 नवंबर, 2015 को पेरिस, फ्रांँस में भारत के प्रधानमंत्री और फ्रांँस के राष्ट्रपति द्वारा पार्टियों के सम्मेलन (COP-21) में शुरू किया गया था। इस संगठन के सदस्य देशों में वे 121 सौर संसाधन संपन्न देश शामिल हैं जो पूर्ण या आंशिक रूप से कर्क और मकर रेखा के मध्य स्थित हैं।
  • वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड (OSOWOG): यह वैश्विक सहयोग को सुविधाजनक बनाने हेतु एक रूपरेखा पर केंद्रित है, जो परस्पर नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों (मुख्य रूप से सौर ऊर्जा) के वैश्विक पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण कर उसे साझा करता है।
  • राष्ट्रीय सौर मिशन (जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में राष्ट्रीय कार्ययोजना का एक हिस्सा)।
  • सूर्यमित्र कौशल विकास कार्यक्रम: इसका उद्देश्य सौर प्रतिष्ठानों की निगरानी हेतु ग्रामीण युवाओं को कौशल प्रशिक्षण प्रदान करना है।

आगे की राह 

  • RTS को आसान वित्तपोषण, अप्रतिबंधित नेट मीटरिंग और एक आसान नियामक प्रक्रिया की आवश्यकता है। सार्वजनिक वित्तीय संस्थानों व अन्य प्रमुख उधारदाताओं को खंड को उधार देने के लिये  निर्धारित किया जा सकता है।
  • भारतीय RTS खंड की चुनौतियों का सामना करने के लिये कुछ मौजूदा बैंक लाइन ऑफ क्रेडिट को अनुकूलित किया जा सकता है जिससे इस क्षेत्र को डेवलपर्स के लिये और अधिक आकर्षक बना दिया जा सकता है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


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