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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

पर्यावरणीय सूचकांक पर भारत का कमज़ोर प्रदर्शन

  • 29 Jan 2018
  • 7 min read

चर्चा में क्यों?
हाल ही में जारी पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक 2018 में भारत को 180 देशों की सूची में 177वाँ स्थान दिया गया है। जबकि वर्ष 2016 के पर्यावरणीय प्रदर्शन सूचकांक में भारत 141वें स्थान पर था।

पर्यावरणीय प्रदर्शन सूचकांक (Environmental Performance Index- EPI)

  • इस रिपोर्ट को हाल ही में विश्व आर्थिक मंच के सम्मलेन में जारी किया गया है। 
  • यह एक द्विवार्षिक (biennial) रिपोर्ट है। 24 प्रदर्शन संकेतकों पर आधारित EPI को विश्व आर्थिक मंच के सहयोग से येल विश्वविद्यालय और कोलंबिया विश्वविद्यालय द्वारा संयुक्त रूप से जारी किया जाता है।
  • इस सूची में समकक्ष उभरती अर्थव्यवस्थाओं, ब्राज़ील और चीन को क्रमशः 69वें और 120वें स्थान पर रखा गया है।

पर्यावरण संरक्षण के लिये सरकार द्वारा किये गए हालिया नीतिगत प्रयास 

  • कोयला-आधारित ऊर्जा संयत्रों के लिये दिसंबर 2015 में अधिसूचित सख्त और नवीन पर्यावरणीय मानकों को  जनवरी 2018 से लागू करना।
  • 1 अप्रैल, 2020 से भारत स्टेज-5 (BS-V) को छोड़ते हुए सीधे भारत स्टेज-6 (BS-VI) उत्सर्जन मानकों को लागू करने का निर्णय।
  • 2030 तक देश में विद्युत वाहनों के उत्पादन और बिक्री के लिये एक रूपरेखा निर्माणाधीन।
  • नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की ओर संक्रमण को तीव्र करने के लिये राष्ट्रीय सौर मिशन के तहत 2021-22 तक 20 गीगावाट की सौर क्षमता स्थापित करने के लक्ष्य को संशोधित करते हुए इसे 100 गीगावाट करना।
  • इसके अतिरिक्त केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय को आश्वासन दिया है कि उच्च प्रदूषित गंगा नदी को 2018 तक पूर्णतया साफ कर दिया जाएगा।

प्रयासों के बावजूद कमज़ोर प्रदर्शन का कारण

  • हालाँकि सौर क्षमता संबंधी लक्ष्यों के मामलें में प्रगति हुई है किंतु कई अन्य लक्ष्यों में विशेष प्रगति नहीं हुई है। नीतिगत लक्ष्यों और कार्रवाई के बीच एक बड़ा अंतर दिखाई देता है। 
  • सरकार द्वारा दिसंबर 2017 तक सख्त ऊर्जा-संयंत्र उत्सर्जन मानकों को लागू करने में ढिलाई बरती जा रही है और ऐसी चर्चा है कि इन मानकों को शिथिल भी किया जा सकता है।
  • ऑटोमोबाइल औद्योगिक समूहों ने भी यह स्पष्ट रूप से कहा है कि वर्तमान अनुमानों के आधार पर इलेक्ट्रिक वाहनों की ओर पूर्ण स्थानांतरण वास्तविक रूप से 2047 तक ही संभव हो सकेगा।
  • इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माताओं के स्थापित हो जाने के बाद बाज़ार में बेचे जाने वाले इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के अपशिष्ट संग्रहण के वार्षिक लक्ष्य को 30% से घटाकर 10% तक कम कर दिया गया है।
  • पिछले वर्ष नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की एक रिपोर्ट में गंगा नदी को साफ करने के लिये आवंटित धन का सही तरीके से उपयोग नहीं करने और कार्ययोजना विकसित नहीं करने पर सरकारी कार्यवाही पर नकारात्मक टिप्पणी की गई थी।
  • हालाँकि यह अव्यवस्था केवल हालिया नीतिगत विफलताओं का परिणाम नहीं हैं। यह मौजूदा पर्यावरण कानूनों और विनियमों को लागू करने में प्रशासनिक इच्छाशक्ति की कमी से भी जुड़ा हुआ है।

पर्यावरणीय निम्नीकरण की लागत पर विकास के दुष्परिणाम 

  • विश्व बैंक और इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन (वाशिंगटन विश्वविद्यालय, U.S.A.) के एक हालिया अध्ययन के मुताबिक़ भारत में अनुमानित 1.4 मिलियन समय से पहले मौतों (Premature Deaths) की एक प्रमुख वजह वायु प्रदूषण है।
  • इसके कारण कल्याणकारी गतिविधियों में भारत का 2013 में सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 8% के बराबर नुकसान हुआ है। श्रम उत्पादकता की लागत में 0.84% तक का नुकसान हुआ।
  • पर्यावरणीय निम्नीकरण के कारण गरीबों का आनुपातिक रूप से अधिक प्रभावित होना चिंता का विषय है। इसके अलावा, कई अन्य प्रमुख पारिस्थितिक प्रभावों के वैज्ञानिक समझ की कमी के कारण पर्यावरणीय निम्नीकरण के अन्य रूपों का आकंलन नहीं किया जा सका है।

आगे की राह

  • पर्यावरणीय समस्याओं का वास्तविक समाधान विकास की पर्यावरणीय लागतों को पहचानने और इन लागतों को तार्किक बनाने में है।
  • सौर ऊर्जा की ओर तीव्र संक्रमण के लिये सब्सिडी देने के साथ ही अधिक प्रदूषणकारी ईंधनों,जैसे-पेट्रोल और डीजल की कीमत के उचित निर्धारण से भी इसे पूरित किया जा सकता है।
  • कोयला-आधारित संयंत्रों द्वारा उत्पादित बिजली की लागत, आंशिक रूप से ही सही उपभोक्ताओं से वसूली जाने वाली कीमत में प्रतिबिंबित होनी चाहिये।
  • इसी तरह, इलेक्ट्रिक वाहनों के उपयोग की ओर संक्रमण में इन वाहनों के मूल्य निर्धारण में इनकी सामाजिक लागत का समावेशन किया जाना चाहिये। 
  • हालाँकि पर्यावरण की गुणवत्ता को रातोंरात बहाल करना संभव नहीं है। किंतु यह सुनिश्चित करना होगा कि पर्यावरणीय लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में हम आगे-पीछे नहीं बल्कि आगे की ओर बढ़ते रहें।
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