डेली न्यूज़ (12 Oct, 2021)



काटोल उल्कापिंड

प्रिलिम्स के लिये:

काटोल उल्कापिंड

मेन्स के लिये:

काटोल उल्कापिंड के अध्ययन के निष्कर्ष और पृथ्वी की संरचना के अध्ययन में इनकी भूमिका 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कुछ शोधकर्त्ताओं ने महाराष्ट्र के काटोल से प्राप्त एक उल्कापिंड का अध्ययन किया जो वर्ष 2012 की उल्का बौछार से संबंधित था।

  • उल्कापिंड अंतरिक्ष में परिभ्रमण कर रहे धूमकेतु या क्षुद्रग्रह के मलबे का एक ठोस टुकड़ा है, जो अंतरिक्ष से किसी ग्रह या चंद्रमा की सतह पर उनके वायुमंडल के माध्यम से प्रवेश करता है।

प्रमुख बिंदु 

  • निष्कर्ष:
    • ओलिवाइन (Olivine) की गहराई:
      • प्रारंभिक अध्ययनों से पता चला है कि यह उल्कापिंड मुख्य रूप से ओलिवाइन, एक जैतून-हरा रंग के खनिज से बना था।
      • पृथ्वी के ऊपरी मेंटल में ओलिवाइन पाए जाते हैं।
      • ऐसा माना जाता था कि अगर लगभग 410 किलोमीटर तक ड्रिल किया जाए तो ऊपरी मेंटल तक पहुँचा जा सकता है।
      • हालाँकि इन उल्कापिंडों के टुकड़ों की संरचना का अध्ययन करके शोधकर्त्ताओं ने पृथ्वी के निचले मेंटल में इस प्रकार के खनिजों के मौजूद होने की संभावना व्यक्त की है जो लगभग 660 किमी. गहरा है।
    • ब्रिजमेनाइट (Bridgmanite) का निर्माण:
      • विभिन्न कम्प्यूटेशनल और प्रायोगिक अध्ययनों से पता चला है कि पृथ्वी के आंतरिक  हिस्से का लगभग 80% हिस्सा ब्रिजमेनाइट से बना है। इस उल्कापिंड के नमूने का अध्ययन करके वैज्ञानिक यह समझ सकते हैं कि हमारी पृथ्वी के निर्माण के अंतिम चरणों के दौरान ब्रिजमेनाइट कैसे क्रिस्टलीकृत हुआ।
        • ब्रिजमेनाइट एक मैग्नीशियम-सिलिकेट खनिज, MgSiO3, पृथ्वी पर सबसे प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है।
        • खनिज का नाम 2014 में प्रोफेसर पर्सी डब्ल्यू ब्रिजमैन के नाम पर रखा गया था, जिसे भौतिकी में 1946 का नोबेल पुरस्कार मिला था।
      • जैसा कि काटोल उल्कापिंड के नमूने का ब्रिजमेनाइट पृथ्वी पर मौजूद ब्रिजमेनाइट के साथ निकटता से संबंधित हैं।
  • पृथ्वी पर ब्रिजमेनाइट बनाम उल्कापिंड:
    • उल्कापिंड में ब्रिजमेनाइट शॉक इवेंट से उत्पन्न लगभग 23 से 25 गीगापास्कल के दबाव में पाया गया था।
    • हमारी पृथ्वी के आंतरिक भाग में उच्च तापमान और दबाव अरबों वर्षों में बदल गया है, जिससे विभिन्न खनिजों के क्रिस्टलीकरण, पिघलने, वर्तमान स्थिति तक पहुंँचने से पहले ही उनका पिघलना शुरू हो गया है।
  • महत्त्व:
    • उल्कापिंड का अध्ययन हमें इस बारे में और जानकारी दे सकता है कि हमारी पृथ्वी मैग्मा महासागर से चट्टानी ग्रह तक कैसे विकसित हुई और शोधकर्त्ता पृथ्वी के गठन के बारे में अधिक जानकारी का पता लगा सकते हैं।
    • पृथ्वी की परतों का निर्माण कैसे और कब हुआ, इसका गहन विचार प्राप्त करने के लिये इन खनिजों का अध्ययन करना महत्त्वपूर्ण है।
    • वैज्ञानिक यह भी डिकोड कर सकते हैं कि हमारी पृथ्वी के निर्माण के अंतिम चरणों के दौरान ब्रिजमेनाइट कैसे क्रिस्टलीकृत हुआ।

आंतरिक ग्रहों का निर्माण (पृथ्वी) 

  • आंतरिक ग्रह या स्थलीय ग्रह या चट्टानी ग्रह बुध, शुक्र, पृथ्वी और मंगल का निर्माण अभिवृद्धि या चट्टानी टुकड़ों के एक साथ आने तथा रेडियोधर्मी तत्त्वों एवं गुरुत्वाकर्षण बलों के कारण बढ़े हुए दबाव और उच्च तापमान की वजह से होता है।
  • तत्त्वों के क्रिस्टलीकृत और स्थिर होने से पहले पृथ्वी मैग्मा का एक महासागर थी, तत्पश्चात् कोर, मेंटल एवं क्रस्ट जैसी विभिन्न परतों का निर्माण हुआ था।
    • ग्रहों के संरचना निर्माण की प्रक्रिया के दौरान लोहे जैसे भारी तत्त्व कोर में चले गए, जबकि हल्के सिलिकेट मेंटल में रहे।

Crust

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारत में ‘हीटवेव’ में स्थानिक परिवर्तन

प्रिलिम्स के लिये:

भारत मौसम विज्ञान विभाग, हीटवेव

मेन्स के लिये:

‘हीटवेव’ के कारण और परिणाम

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एक अध्ययन के दौरान भारत में ‘हीटवेव’ में स्थानिक परिवर्तन की स्थिति देखी गई है।

  • अध्ययन में कहा गया है कि पूर्वी एवं पश्चिमी तट, जो कि वर्तमान में हीटवेव से सुरक्षित हैं, भविष्य में गंभीर रूप से प्रभावित हो सकते हैं।
  • इस अध्ययन के दौरान वर्ष 1951-2016 तक देश में ‘हीटवेव’ में मासिक, मौसमी, दशकीय और दीर्घकालिक रुझानों का आकलन किया गया।

प्रमुख बिंदु

  • निष्कर्ष:
    • उत्तर-पश्चिमी एवं दक्षिणी भारत में एक ‘वार्मिंग पैटर्न’ देखा गया है, जबकि देश के उत्तर-पूर्वी एवं दक्षिण-पश्चिम क्षेत्रों में एक प्रगतिशील ‘कूलिंग पैटर्न’ पाया गया है।
    • ‘हीटवेव’ की घटनाओं में एक ‘स्थानिक-अस्थायी बदलाव’ प्रकट होता है, जिसमें तीन प्रमुख हीटवेव प्रवण क्षेत्रों- उत्तर-पश्चिमी, मध्य और दक्षिण-मध्य भारत में उल्लेखनीय रूप से बढ़ोतरी दर्ज की गई है, जो कि पश्चिमी मध्य प्रदेश में सबसे अधिक (0.80 घटनाएँ/वर्ष) है।
      • ‘हीटवेव’ की घटना पारंपरिक रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली और मध्य प्रदेश के उत्तरी हिस्सों से जुड़ी हुई है।
    • दक्षिणी मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु में हीटवेव की घटनाएँ पाई गईं, जहाँ वे परंपरागत रूप से नहीं पाई जाती थीं।
      • कर्नाटक और तमिलनाडु में ‘हीटवेव’ की घटनाओं में हो रही वृद्धि विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है, और भविष्य में इस प्रकार की घटनाओं में बढ़ोतरी को इंगित करती है।
    • पूर्वी क्षेत्र यानी पश्चिम बंगाल में गंगा के आसपास के हिस्सों में ‘हीटवेव’ में उल्लेखनीय कमी (−0.13 घटनाएँ/वर्ष) दर्ज की गई है।
    • पिछले दशकों में 2001–2010 के दशक में हीटवेव वाले दिनों और गंभीर हीटवेव वाले दिनों की बढ़ती प्रवृत्ति देखी गई है।
  • कारक
    • देश में हीटवेव की स्थिति को बढ़ाने में मुख्यतः दो तत्त्व उत्तरदायी हैं- रात के समय के तापमान में वृद्धि, जो रात में ऊष्मा के निर्वहन को बाधित करता है और आर्द्रता के स्तर में हो रही बढ़ोतरी।
  • हीटवेव 
    • परिचय
      • ‘हीटवेव’ का आशय असामान्य रूप से उच्च तापमान की अवधि से है, जब किसी क्षेत्र विशिष्ट का तापमान वहाँ के सामान्य तापमान से अधिक होता है।
      • ‘हीटवेव’ की स्थिति प्रायः मार्च और जून के बीच देखी जाती है तथा कुछ दुर्लभ मामलों में यह जुलाई माह तक विस्तृत हो सकती है।
      • ‘भारत मौसम विज्ञान विभाग’ (IMD) हीटवेव को क्षेत्रों और उनके तापमान रेंज के अनुसार वर्गीकृत करता है।
    • हीटवेव संबंधी मानदंड:
      • ‘हीटवेव’ की स्थिति प्रायः तब उत्पन्न होती है जब किसी स्टेशन का अधिकतम तापमान मैदानी इलाकों में कम-से-कम 40 डिग्री सेल्सियस और पहाड़ी क्षेत्रों में कम-से-कम 30 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच जाता है।
      • वहीं यदि किसी स्टेशन का सामान्य अधिकतम तापमान 40°C से कम या उसके बराबर है, तो सामान्य तापमान से 5°C से 6°C की वृद्धि को ‘हीटवेव’ स्थिति माना जाता है।
        • इसके अलावा सामान्य तापमान से 7°C या उससे अधिक की वृद्धि को भीषण ‘हीटवेव’ की स्थिति माना जाता है।
      • यदि किसी स्टेशन का सामान्य अधिकतम तापमान 40°C से अधिक है, तो सामान्य तापमान से 4°C-5°C की वृद्धि को ‘हीटवेव’ की स्थिति माना जाता है। 
        • इसके अलावा 6°C या उससे अधिक की वृद्धि को भीषण ‘हीटवेव’ की स्थिति माना जाता है।
      • इसके अतिरिक्त यदि वास्तविक अधिकतम तापमान, सामान्य अधिकतम तापमान के बावजूद 45 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक रहता है, तो एक गर्मी की लहर घोषित कर दी जाती है।
    • प्रभाव
      • हीट स्ट्रेस:
        • वातावरण में नमी की उपस्थिति पसीने के माध्यम से शरीर के बाष्पीकरणीय कूलिंग के थर्मोरेगुलेटरी तंत्र को बाधित करती है, जिससे ‘हीट स्ट्रेस’ की स्थिति पैदा हो सकती है।
      • ‘हीट’ संबंधी मृत्यु दर में वृद्धि
        • गर्मी के दौरान औसत तापमान में 0.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के कारण गर्मी से संबंधित मृत्यु दर में 2.5% से 32% तक की वृद्धि हो सकती है और यदि हीटवेव की अवधि में 6 से 8 दिनों तक की वृद्धि होती है, तो इसके परिणामस्वरूप मृत्यु दर में 78% तक की वृद्धि हो सकती है। 
      • हीट स्ट्रोक
        • बहुत अधिक तापमान या आर्द्र परिस्थितियाँ ‘हीट स्ट्रोक’ का एक बढ़ा जोखिम पैदा करती हैं।
        • वृद्ध लोग और पुरानी बीमारी जैसे हृदय रोग, श्वसन रोग और मधुमेह आदि से पीड़ित लोग हीटस्ट्रोक के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं, क्योंकि शरीर की गर्मी को नियंत्रित करने की क्षमता उम्र के साथ घटती जाती है।
      • ऊर्जा मांग में बढ़ोतरी
        • भीषण गर्मी के कारण प्रायः ऊर्जा की मांग में भी वृद्धि होती है, जिससे उसकी दरों में भी बढ़ोतरी होती है।
      • श्रमिकों की उत्पादकता में कमी:
        • भीषण गर्मी श्रमिक उत्पादकता को भी प्रभावित करती है, विशेष रूप से उन श्रमिकों को जो खुले क्षेत्रों में कार्य करते हैं।
        • कर्मचारी अक्सर ‘हीट स्ट्रेस’ के कारण कम उत्पादक हो जाते हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


इकोलॉजिकल थ्रेट रिपोर्ट

प्रिलिम्स के लिये:

इकोलॉजिकल थ्रेट रिपोर्ट

मेन्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन और विस्थापन से संबंधित मुद्दे  

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में एक अंतर्राष्ट्रीय थिंक टैंक इंस्टीट्यूट ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पीस (IEP) ने इकोलॉजिकल थ्रेट रिपोर्ट (ETR) 2021 : पारिस्थितिक खतरों, लचीलापन और शांति को समझना, जारी की।

  • यह ETR का दूसरा संस्करण है, जिसमें 178 देशों को शामिल किया गया है।
  • ETR में जनसंख्या वृद्धि, जल तनाव, खाद्य असुरक्षा, सूखा, बाढ़, चक्रवात और बढ़ते तापमान पर सबसे हालिया वैज्ञानिक अनुसंधान शामिल हैं।

प्रमुख बिंदु

  • संघर्ष और पारिस्थितिक खतरे:
    • 30 देशों में लगभग 1.26 बिलियन लोग अत्यधिक पारिस्थितिक जोखिम और निम्न स्तर के लचीलेपन से पीड़ित हैं।
      • इन देशों के नए पारिस्थितिक खतरों को कम करने और अनुकूल बनने की संभावना काफी कम है, जिससे बड़े पैमाने पर विस्थापन हो सकता है।
    • कम-से-कम 13 देशों को अत्यधिक उच्च और 34 अन्य देशों को उच्च पारिस्थितिक खतरों का सामना करना पड़ा।
    • सबसे कमज़ोर देश मध्य-पूर्व और उत्तरी अफ्रीका, उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिण एशिया में समूहबद्ध हैं।
    • जलवायु परिवर्तन का एक व्यापक प्रभाव प्रदर्शित होगा, जिसके कारण आगे चलकर पारिस्थितिक क्षरण होगा और कुछ देशों में हिंसक गतिविधियाँ  हो सकती हैं। 
  • खाद्य जोखिम:
    • वर्ष 2014 के बाद से वैश्विक खाद्य असुरक्षा में 44% की वृद्धि हुई है, जिसके कारण  वर्ष 2020 में दुनिया की आबादी के 30.4% लोग प्रभावित हुए तथा इसके और बढ़ने की संभावना है।
    • जल और खाद्य जोखिम में औसत ETR स्कोर के साथ दक्षिण एशिया सबसे खराब क्षेत्रों में से एक है।
    • कोविड-19 ने खाद्य असुरक्षा को और बढ़ा दिया है तथा स्थिर आर्थिक विकास के कारण विश्व में भुखमरी के साथ ही लंबे समय तक नकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना है।
  • जल जोखिम:
    • वर्ष 2040 तक 5.4 अरब से अधिक लोगों के अत्यधिक जल संकट का सामना करने की आशंका।
      • लेबनान और जॉर्डन सबसे अधिक जोखिम वाले देश हैं।
    • उप-सहारा अफ्रीका सबसे अधिक जनसंख्या वृद्धि के साथ संयुक्त रूप से सामाजिक लचीलेपन के निम्नतम स्तर वाला देश है।
      • इस क्षेत्र की 70% आबादी सुरक्षित और प्रबंधित जल की पहुँच से दूर है, यह स्थिति उच्च जनसंख्या वृद्धि के कारण और जटिल हो सकती है।
  • तीव्र जनसंख्या वृद्धि:
    • वर्ष 2021 और 2050 के बीच ग्यारह देशों की जनसंख्या दोगुनी होने का अनुमान है। ये सभी उप-सहारा अफ्रीका में हैं।
    • जनसंख्या में सबसे अधिक अनुमानित वृद्धि वाले तीन देश- नाइजर, अंगोला और सोमालिया हैं, जहाँ जनसंख्या में क्रमशः 161, 128 और 113% की वृद्धि होगी।
  • तापमान विसंगतियाँ और प्राकृतिक आपदाएँ:
    • 1990 से 2020 तक वैश्विक स्तर पर कुल 10,320 प्राकृतिक आपदाएँ घटित हुईं। बाढ़ सबसे आम प्राकृतिक आपदा रही है, जो कुल आपदा संख्या का 42% है।
    • वर्ष 2020 में 177 देशों और क्षेत्रों ने अपने ऐतिहासिक औसत तापमान की तुलना में अधिक औसत तापमान दर्ज किया।
  • सिफारिशें:
    • रिपोर्ट ने स्वास्थ्य, भोजन, पानी, शरणार्थी राहत, वित्त, कृषि और व्यवसाय विकास को उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में एक एकीकृत एजेंसी में संयोजित करने और स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाने की नीति की सिफारिश की।.

भारत में आंतरिक विस्थापन 

  • यूनाइटेड नेशन चिल्ड्रन फंड (यूनिसेफ) द्वारा पिछले वर्ष प्रकाशित 'लॉस्ट एट होम' शीर्षक नामक रिपोर्ट के अनुसार, 2019 में प्राकृतिक आपदाओं, संघर्ष और हिंसा के कारण भारत में पाँच मिलियन से अधिक लोग आंतरिक रूप से विस्थापित हुए थे, जो इस अवधि के दौरान दुनिया में फिलीपींस, बांग्लादेश और चीन के बाद सबसे अधिक थे। 
    • वर्ष 2019 में विस्थापन के लगभग 33 मिलियन नए मामले दर्ज किये गए- लगभग 25 मिलियन प्राकृतिक आपदाओं के कारण और 8.5 मिलियन संघर्ष और हिंसा के परिणामस्वरूप विस्थापित हुए।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


संयुक्त राज्य अमेरिका में टैक्स हैवन

प्रिलिम्स के लिये:

टैक्स हैवन, मनी लॉड्रिंग, पैंडोरा पेपर्स

मेन्स के लिये:

टैक्स हैवन का वैश्विक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, कर चोरी से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है कि कैसे दुनिया के नेता और दुनिया के कुछ सबसे अमीर लोग संयुक्त राज्य अमेरिका (US) में अपना धन छिपाते हैं।

  • रिपोर्ट की जानकारी ने टैक्स हैवन के विकास के लिये नई जाँच प्रणाली शुरू की है।
  • पैंडोरा पेपर्स के जारी होने से अभिजात वर्ग और भ्रष्ट लोगों के वित्तीय लेन-देन के मामले प्रकाश में आए हैं कि कैसे उन्होंने संपत्ति में खरबों डॉलर को टैक्स से बचाने के लिये बाहरी खातों और टैक्स हैवन का उपयोग किया है।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • रिपोर्ट ने संयुक्त राज्य अमेरिका में फैले ट्रस्टों (सामान्यत: अपतटीय देशों के साथ) में गुप्त खातों का भी खुलासा किया, जिसमें दक्षिण डकोटा में 81, फ्लोरिडा में 37 और डेलावेयर में 35 खाते शामिल हैं।
  • अमेरिका के राज्यों के टैक्स हैवन बनने का कारण:
    • शाश्वतता के खिलाफ कोई नियम नहीं:
      • इन राज्यों के सांसदों ने शाश्वतता के खिलाफ नियम को समाप्त कर दिया है जिसने तथाकथित राजवंश ट्रस्टों की स्थापना की अनुमति दी है, जिसमें संघीय संपत्ति करों से बचते हुए पीढ़ी-दर-पीढ़ी धन स्थानांतरित किया जा सकता है।
        • शाश्वतता एक प्रकार की वार्षिकी है जो हमेशा के लिये रहती है। नकदी प्रवाह की धारा अनंत काल तक जारी रहती है।
    • एसेस्ट प्रोटेक्शन ट्रस्ट:
      • कुछ राज्य संपत्ति संरक्षण ट्रस्टों को भी अनुमति देते हैं, जो लेनदारों के खिलाफ दावों से धन की रक्षा करते हैं। इस तरह के ट्रस्ट अमीर वकीलों और डॉक्टरों को अपनी संपत्ति को कदाचार के दावों से बचाने हेतु आकर्षित कर सकते हैं।
    • ट्रस्टों पर टैक्स का प्रावधान नहीं:
      • टैक्स से बचना एक और बड़ा गैप (ड्रा) है, जबकि अधिकांश राज्य ट्रस्ट की आय पर कर लगाते हैं, डेलावेयर में स्थापित ट्रस्ट उस स्थिति में राज्य आयकर के अधीन नहीं हैं यदि लाभार्थी डेलावेयर निवासी नहीं हैं। 
      • साउथ या दक्षिण डकोटा व्यक्तिगत आय, कॉर्पोरेट आय या पूंजीगत लाभ पर कर नहीं लगाता है।
    • गोपनीयता की सुरक्षा
      • साउथ डकोटा ट्रस्टों में रखी संपत्तियों के लिये व्यापक गोपनीयता सुरक्षा प्रदान करता है, जिसमें ट्रस्ट से संबंधित अदालती दस्तावेज़ों और अदालती कार्यवाही को प्रतिबंधित करना शामिल है।
      • डेलावेयर लिमिटेड लायबिलिटी कंपनियों (LLC) को पंजीकृत करने के लिये एक लोकप्रिय स्थान है, जिसमें विशेष रूप से संपत्ति या वित्तीय लेन-देन को छिपाने हेतु स्थापित शेल कंपनियाँ शामिल हो सकती हैं। डेलावेयर कानून को LLC मालिकों या सदस्यों के नामों के सार्वजनिक प्रकटीकरण की आवश्यकता नहीं है।
  • राज्यों को लाभ:
    • ट्रस्ट उद्योग न केवल धनी लोगों और उन कंपनियों के लिये लाभदायक हो सकता है जो उन्हें संपत्ति बचाने में मदद करते हैं, बल्कि सरकारी भंडार को भी आकर्षित कर सकता है। राज्य सरकारें ट्रस्ट कंपनियों द्वारा भुगतान किये गए उच्च मताधिकार कर अर्जित कर रही हैं।
      • एक मताधिकार कर एक कानूनी इकाई के रूप में अस्तित्व के अधिकार के लिये और एक विशेष क्षेत्राधिकार के भीतर व्यापार करने के लिये कुछ व्यवसायों पर लगाया जाने वाला राज्य कर है।
  • उठाए गए कदम:
    • जबकि अमेरिकी कॉन्ग्रेस कुछ विदेशी ग्राहकों के साथ काम करने वाली ट्रस्ट कंपनियों की कड़ी जाँच की मांग कर रही है, डेलावेयर में पेंडोरा पेपर्स की प्रतिक्रिया अब तक निष्क्रिय रही है।
    • इस बीच संघीय अधिकारियों ने कॉर्पोरेट पारदर्शिता अधिनियम के इस वर्ष की शुरुआत में अधिनियमित होने के साथ कुछ गोपनीयता सुरक्षा का लक्ष्य रखा है।
      • इसका उद्देश्य बेनाम मुखौटा कंपनियों पर प्रतिबंध लगाना है, जिनका उपयोग अपराधियों और विदेशी अधिकारियों ने वित्तीय लेन-देन को छिपाने और धन को कानूनी रूप  प्रदान करने के लिये किया है, लेकिन इसमें छूट एवं अपवाद शामिल हैं। 

टैक्स हैवन

  • परिचय:
    • टैक्स हैवन आमतौर पर एक अपतटीय देश होता है  जहाँ राजनीतिक और आर्थिक रूप से स्थिर वातावरण में विदेशी नागरिकों एवं व्यवसायों को बहुत कम या कोई कर नहीं देना पड़ता है।
    • टैक्स हैवन देशों की विशेषताओं में आमतौर पर कम आय कर, सूचना की न्यूनतम रिपोर्टिंग, पारदर्शिता दायित्वों की कमी, प्रत्यक्ष उपस्थिति की आवश्यकता नहीं और टैक्स हैवन वाहनों का विपणन शामिल है।
    • सामान्य तौर पर टैक्स हैवन देशों के नागरिकों और व्यवसायों को उनकी कर नीतियों से लाभ उठाने के लिये निवास या व्यावसायिक उपस्थिति की आवश्यकता नहीं होती है।
    • व्यक्तियों और निगमों को संभावित रूप से विदेशों में आय पर लगाए गए कम या बिना करों से लाभ हो सकता है जहाँ कानून के अनुसार कमियाँ, क्रेडिट या अन्य विशेष कर विचारों की अनुमति दी जा सकती है।
  • लोकप्रिय टैक्स हैवन: 
    • लोकप्रिय टैक्स हैवन: कुछ सबसे लोकप्रिय टैक्स हैवन देशों की सूची में अंडोरा, बहामास, बरमूडा, चैनल आइलैंड्स, कुक आइलैंड्स, हॉन्गकॉन्ग, मॉरीशस, लिचेंस्टीन, मोनाको, पनामा, ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड्स और केमैन आइलैंड्स शामिल हैं।
  • नियामकीय निरीक्षण:  
    • दुनिया भर में विदेशी/अपतटीय निवेश रिपोर्टिंग के प्रवर्तन को बढ़ाने के लिये कुछ कार्यक्रम हैं। 
    • वित्तीय सूचना का स्वचालित आदान-प्रदान इसका एक उदाहरण है, जिसकी निगरानी आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) द्वारा की जाती है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


वैश्विक न्यूनतम कर सौदा

प्रिलिम्स के लिये:

वैश्विक न्यूनतम कर सौदा

मेन्स के लिये:

वैश्विक स्तर पर कर संबंधित अनियमितता के कारण और समाधान हेतु किये गए प्रयास 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) ने घोषणा की है कि बड़ी कंपनियों को 15% की वैश्विक न्यूनतम कर (GMT) दर का भुगतान सुनिश्चित करने के लिये 136 देशों (भारत सहित) द्वारा सहमति व्यक्त की गई है।

  • समझौता करने वाले देश वैश्विक अर्थव्यवस्था का 90% से अधिक हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं।

New-Tax

प्रमुख बिंदु 

  • GMT के बारे में:
    • उद्देश्य: GMT को दुनिया के कुछ सबसे बड़े निगमों द्वारा कर की कम प्रभावी दरों को संबोधित करने के लिये तैयार किया गया है, जिसमें एप्पल, अल्फाबेट और फेसबुक जैसी बड़ी टेक कंपनियाँ शामिल हैं।
      • ये कंपनियाँ आमतौर पर प्रमुख बाज़ारों से कम कर वाले देशों या टैक्स हैवन जैसे- आयरलैंड, ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड्स, बहामास या पनामा आदि में मुनाफे को बढ़ाने के लिये सहायक कंपनियों की स्थापना करती हैं।
      • GMT का उद्देश्य बहुराष्ट्रीय उद्यमों (MNE) के लिये लाभ स्थानांतरण में शामिल होने के अवसरों पर रोक लगाना है, साथ ही यह सुनिश्चित करना है कि जहाँ वे व्यापार करते हैं वहाँ अपने कुछ करों का भुगतान करें।
    • प्रस्तावित दो स्तंभ समाधान: वैश्विक न्यूनतम कर की दर वैश्विक स्तर पर बिक्री में 868 मिलियन डॉलर के साथ बहुराष्ट्रीय कंपनियों के विदेशी मुनाफे पर लागू होगी।
      • स्तंभ 1 (न्यूनतम कर और कर नियमों के अधीन): सरकारें अभी जो भी स्थानीय कॉर्पोरेट कर की दर चाहती हैं, निर्धारित कर सकती हैं, लेकिन अगर कंपनियाँ किसी विशेष देश में कम दरों का भुगतान करती हैं, तो उनकी गृह सरकारें अपने करों को न्यूनतम 15% तक आरोपित कर सकती हैं। इसका उद्देश्य मुनाफे को स्थानांतरित करने से प्राप्त होने वाले लाभ को समाप्त करना है।
      • स्तंभ 2 (बाज़ार के अधिकार क्षेत्र में लाभ के अतिरिक्त हिस्से का पुन: आवंटन): यह उन देशों को, जहाँ लाभ अर्जित किया गया है बहुराष्ट्रीय कंपनियों की अतिरिक्त आय (राजस्व के 10% से अधिक लाभ) पर 25% कर लगाने की अनुमति देता है।
    • समयसीमा: यह समझौता हस्ताक्षर करने वाले देशों को वर्ष 2022 तक इस पर कानून बनाने का आह्वान करता है ताकि यह समझौता 2023 से प्रभावी हो सके।
      • हाल के वर्षों में जिन देशों ने राष्ट्रीय डिजिटल सेवा कर (उदाहरण के लिये भारत सरकार द्वारा लगाई जाने वाली इक्वलाइजेशन लेवी) लगाया है, उन्हें निरस्त करना होगा।
    • प्रभाव: न्यूनतम कर और अन्य प्रावधानों का उद्देश्य विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिये सरकारों के बीच दशकों से चल रही कर प्रतिस्पर्द्धा को समाप्त करना है।
      • अर्थशास्त्रियों को उम्मीद है कि यह सौदा बहुराष्ट्रीय कंपनियों को अपने देश स्थित मुख्यालय में पूंजी प्रत्यावर्तित करने के लिये प्रोत्साहित करेगा, जिससे उन अर्थव्यवस्थाओं को बढ़ावा मिलेगा।
  • GMT की आवश्यकता:
    • टैक्स हैवन के लिये वित्तीय डायवर्ज़न को रोकना: ड्रग पेटेंट, सॉफ्टवेयर और बौद्धिक संपदा पर रॉयल्टी जैसे अमूर्त स्रोतों से आय तेज़ी से टैक्स हैवन में चली गई है, जिससे कंपनियों कोअपने देशों में उच्च करों का भुगतान करने से बचने की अनुमति मिली है।
    • वित्तीय संसाधन जुटाना: कोविड-19 संकट के बाद बजट में तनाव के साथ कई सरकारें चाहती हैं कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मुनाफे को कर राजस्व कम कर अपने देशों में स्थानांतरण को हतोत्साहित किया जाए।
      • OECD ने अनुमान लगाया है कि न्यूनतम कर के माध्यम से सालाना अतिरिक्त वैश्विक कर राजस्व में $150 बिलियन का लाभ होगा।
    • वैश्विक कर सुधार: बेस इरोशन एंड प्रॉफिट शिफ्टिंग (BEPS) कार्यक्रम की स्थापना के बाद से GMT का प्रस्ताव वैश्विक कराधान सुधारों की दिशा में एक और सकारात्मक कदम है।
      • BEPS कर से बचने की रणनीतियों को संदर्भित करता है जो कर नियमों में अंतराल और बेमेल का फायदा उठाते हैं ताकि मुनाफे को कम या बिना कर वाले स्थानों पर कृत्रिम रूप से स्थानांतरित किया जा सके। OECD ने इससे निपटने के लिये 15 कार्य मदें जारी की हैं।
  • संबद्ध चुनौतियाँ:
    • आसन्न संप्रभुता: यह एक राष्ट्र की कर नीति तय करने के संप्रभु अधिकार को प्रभावित करता है।
      • एक वैश्विक न्यूनतम दर अनिवार्य रूप से एक ऐसे उपकरण से दूर ले जाएगी जिसका उपयोग देश उन नीतियों को आगे बढ़ाने के लिये करते हैं जो उनके अनुरूप हैं।
    • टाइट टाइमलाइन: समझौता करने वाले देशों में वर्ष 2022 में ही नया कानून बनाने का आह्वान किया गया है जिससे इस समझौते को वर्ष 2023 से प्रभावी किया जा सके, इतने सीमित समय में ही समझौता लागू करना एक कठिन काम है।
    • प्रभावशीलता का प्रश्न: 
      • ऑक्सफैम जैसे समूहों ने इस समझौते की आलोचना करते हुए कहा है कि इससे टैक्स हैवन का अंत नहीं हो सकेगा।

आर्थिक सहयोग और विकास संगठन

  • OECD एक अंतर-सरकारी आर्थिक संगठन है, जिसकी स्थापना आर्थिक प्रगति और विश्व व्यापार को प्रोत्साहित करने के लिये की गई है।
  • स्थापना: 1961
  • मुख्यालय: पेरिस, फ्राँस
  • कुल सदस्य: 36
  • भारत इसका सदस्य नहीं है, बल्कि एक प्रमुख आर्थिक भागीदार है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


6G प्रौद्योगिकी

प्रिलिम्स के लिये:

6G प्रौद्योगिकी, 5G प्रौद्योगिकी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस

मेन्स के लिये:

6G प्रौद्योगिकी : महत्त्व एवं चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सरकार ने सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ टेलीमैटिक्स (सी-डॉट) को समय के साथ वैश्विक बाजार में पकड़ बनाए रखने के लिये 6G और अन्य भविष्योन्मुख तकनीकों का विकास शुरू करने के लिये कहा है।

  • अगली पीढ़ी की दूरसंचार प्रौद्योगिकी (6G) को 5G की तुलना में 50 गुना अधिक तीव्र बनाया जाएगा और 2028-2030 के बीच इसे व्यावसायिक रूप से लॉन्च किये जाने की संभावना है।

6G-Technology

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • 6G (छठी पीढ़ी का वायरलेस), 5G सेलुलर तकनीक का उत्तराधिकारी है। 
    • यह 5G नेटवर्क की तुलना में उच्च आवृत्तियों का उपयोग करने में सक्षम होगा और काफी अधिक क्षमता और बहुत कम विलंबता (देरी) की स्थिति प्रदान करेगा।
    • 6G इंटरनेट का लक्ष्य एक माइक्रोसेकंड-लेटेंसी संचार (संचार में एक माइक्रोसेकंड की देरी) का समर्थन करना होगा।
      • यह एक मिलीसेकंड प्रवाह क्षमता की तुलना में 1,000 गुना तेज़ या 1/1000वाँ विलंबता (देरी) की स्थिति प्रदान करेगा।
    • यह आवृत्ति के टेराहर्ट्ज़ बैंड का उपयोग करेगा जो वर्तमान में अप्रयुक्त है।
      • टेराहर्ट्ज़ तरंगें विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम पर अवरक्त तरंगों और माइक्रोवेव के बीच गिरती हैं।
      • ये तरंगें बेहद छोटी और नाजुक होती हैं, लेकिन वहाँ पर सर्वाधिक मात्रा में स्पेक्ट्रम मुक्त होता है जो प्रभावशाली डेटा दरों की अनुमति देता है।

Key-Features

  • महत्त्व:
    • अधिक सुविधाजनक:
      • 6G प्रौद्योगिकी बाज़ार से इमेजिंग, मौज़ूदा प्रौद्योगिकी और स्थान का पता लगाने जैसे बड़े सुधारात्मक सुविधाओं की संभावना व्यक्त की गई है। 
      • बेहतर प्रवाह क्षमता और उच्च डेटा दर प्रदान करने के अतिरिक्त 6G की उच्च आवृत्तियाँ सर्वाधिक तेज़ी से नमूनाकरण दरों को सक्षम करेंगी। 
    • वायरलेस सेंसिंग तकनीक में उन्नति:
      • उप-मिमी तरंगों का संयोजन (जैसे एक मिलीमीटर से छोटी तरंगदैर्ध्य) और सापेक्ष विद्युत चुंबकीय अवशोषण दर निर्धारित करने के लिये आवृत्ति चयनात्मकता संभावित रूप से वायरलेस सेंसिंग तकनीक में महत्त्वपूर्ण प्रगति का कारण बन सकती है।
    • डिजिटल क्षमताओं का उदय:
      • यह डिजिटल क्षमताओं के विशाल सेट के साथ सरल, अनुप्रयोग में सुविधाजनक और ले जाने में आसान उपकरणों के उद्भव को प्रदर्शित करेगा।
      • इससे पैरामेडिक्स, शिक्षकों और कृषि-तकनीशियनों, डॉक्टरों, प्रोफेसरों और कृषि-विशेषज्ञों को उपस्थित स्थल पर उपकरणों की बहुत कम या सीमित आवश्यकता के साथ गाँव के पारिस्थितिकी तंत्र को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी।
    • बड़े पैमाने पर सार्वजनिक परिवहन का अनुकूलन:
      • भारत के लिये प्रौद्योगिकियों के इस तरह के एक सक्षम उपकरण को दुर्लभ क्षेत्रों जैसे- रेल, हवाई और सड़क नेटवर्क के क्षेत्र में कई गुना उपयोग में लाया जाएगा जो बड़े पैमाने पर परिवहन को और अधिक कुशल बना देगा; आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) एवं बड़े पैमाने पर समानांतर कंप्यूटिंग आर्किटेक्चर परिवहन तथा शेड्यूलिंग संचालन अनुसंधान समस्याओं को हल करने में मदद करेंगे।
  • चुनौतियाँ:
    • संरक्षण तंत्र बनाए रखना:
      • प्रमुख तकनीकी चुनौतियाँ हैं- ऊर्जा दक्षता, वायु प्रतिरोध और जल की बूँदों के कारण सिग्नल क्षीणता से बचना एवं निश्चित रूप से मज़बूत साइबर सुरक्षा एवं डेटा सुरक्षा तंत्र के माध्यम से एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन बनाए रखना।
    • नए मॉडलों को अपनाना:
      • एंटीना डिज़ाइन, लघुकरण, एज क्लाउड और वितरित आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मॉडल में नवाचारों की आवश्यकता है। इसके अतिरिक्त हमें भविष्योन्मुख डिजाइन द्वारा संपूर्ण सुरक्षा और गोपनीयता सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
    • सेमीकंडक्टर की उपलब्धता:
      • हमारे पास अर्द्धचालक/सेमीकंडक्टर सामग्री नहीं है जो मल्टी टेराहर्ट्ज़ आवृत्तियों का उपयोग कर सके। उन आवृत्तियों से किसी भी प्रकार की सीमा प्राप्त करने के लिये अत्यंत छोटे एंटीना के विशाल सरणियों की आवश्यकता हो सकती है। 
    •  वाहक तरंगों के लिये जटिल डिज़ाइन:
      • वायुमंडल में जलवाष्प टेराहर्ट्ज़ (THz) तरंगों को अवरुद्ध और प्रतिबिंबित करता है, इसलिये गणितज्ञों को ऐसे मॉडल तैयार करने होंगे जो डेटा को अपने गंतव्य तक बहुत जटिल मार्ग से भी ले जाने की अनुमति दें।

टेलीमैटिक्स के विकास के लिये केंद्र (C-DOT)

  • इसकी स्थापना वर्ष 1984 में हुई थी। यह भारत सरकार के DoT का एक स्वायत्त दूरसंचारअनुसंधान एवं विकास केंद्र है।
  • यह सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत एक पंजीकृत सोसायटी है।
  • यह भारत सरकार के वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान विभाग (DSIR) के साथ पंजीकृत सार्वजनिक वित्तपोषित अनुसंधान संस्थान है।
  • वर्तमान में सी-डॉट सरकार के विभिन्न प्रमुख कार्यक्रमों के उद्देश्य को साकार करने की दिशा में काम कर रहा है। जिसमें भारत के डिजिटल इंडिया, भारतनेट, स्मार्ट सिटी आदि शामिल हैं।

आगे की राह

  • सरकार को लंबी अवधि के दृष्टिकोण, बहु-वर्षीय (बहु-दशक) योजना, मज़बूत निवेश और न्यूनतम नौकरशाही की घोषणा करके 6G तकनीकी विचार पर ज़ोर देना चाहिये।
  • सरकार को इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के इंडिया ट्रिलियन डॉलर डिजिटल अपॉर्चुनिटी डॉक्यूमेंट (2019) के अनुसार नई इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण नीति को लागू करने की आवश्यकता है।
  • विश्व के गूगल और माइक्रोसॉफ्ट को न केवल नेतृत्व प्रदान करना बल्कि 'प्रतिभा, प्रौद्योगिकी और विश्वास (Talent, Technology and Trust)' की मज़बूत नींव पर आधारित भारतीय नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र में उनका निर्माण करना अनिवार्य है।
  • भारत को अंतरिक्ष और परमाणु प्रौद्योगिकी मिशन के अनुभव को दोहराने की ज़रूरत है जिसने आत्मनिर्भरता एवं आत्मविश्वास हासिल किया। यह प्रौद्योगिकी नेतृत्व बेहतर दुनिया, समाज और खुद के लिये एक उपहार होनी चाहिये। 6G के नेतृत्व में यह हमारी स्वतंत्रता की शताब्दी (2047) को मनाने का सबसे अच्छा तरीका हो सकता है।

स्रोत: इकॉनमिक टाइम