भूगोल
पृथ्वी की सतह के नीचे मिले विशालकाय पर्वत
- 18 Feb 2019
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हाल ही में वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के केंद्र में बड़े पैमाने पर पर्वतों जैसे ऊँचे-नीचे स्थानों की खोज की है। पृथ्वी की सतह अर्थात भूपर्पटी (Crust) से 660 किमी. नीचे स्थित परत मेंटल (Mantle) पर यह स्थलाकृति पाई गई है जो हमारे ग्रह की उत्पत्ति एवं विकास को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
- वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के मेंटल क्षेत्र (मध्य भाग) में बड़े पैमाने पर पर्वतों की खोज की है जो हमारे ग्रहों के प्रति समझ को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
- पृथ्वी की संरचना को मुख्यतः तीन भागों में बाँटा जाता है – क्रस्ट (Crust), मेंटल (Mantle) और कोर (Core)। क्रस्ट पृथ्वी का बाहरी क्षेत्र, मेंटल मध्य क्षेत्र और कोर आतंरिक क्षेत्र है। इन तीनों की संरचना में भिन्नता के आधार पर इनका वर्गीकरण किया गया है।
- वैज्ञानिकों ने पृथ्वी की आतंरिक संरचना के प्राप्त आँकड़ों के आधार पर ही इन पहाड़ों की जानकारी दी है।
- जर्नल साइंस पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, वैज्ञानिकों ने बोलीविया में एक बड़े भूकंप के दौरान लिये गए आँकड़े का उपयोग किया, जिससे पृथ्वी की सतह से 660 किमी. नीचे स्थित क्षेत्र में पहाड़ों एवं अन्य स्थलाकृतियों की जानकारी प्राप्त हुई।
- वैज्ञानिकों ने इस सीमा को जहाँ पर उबड़-खाबड़ एवं समतल भाग पाए गए हैं, को ‘660 किलोमीटर की सीमा’ नाम दिया है।
- उन्होने 660 किमी. की सीमा के इस भाग पर पृथ्वी की सतह से भी ज़्यादा ऊँचा-नीचा स्थान प्राप्त होने का अनुमान लगाया। इन ऊँचे-नीचे भागों को उन्होने रॉकी और अप्लेशियन पर्वत से भी मज़बूत एवं कठोर होने का अनुमान लगाया।
- हालाँकि शोधकर्ताओं ने मेंटल के मध्य भाग (410 किमी.) पर भी जानकारी एकत्र की लेकिन उन्हें वहाँ कोई भी उबड़-खाबड़ स्थान नहीं प्राप्त हुआ।
- 660 किलोमीटर की सीमा पर खुरदरेपन की उपस्थिति हमारे ग्रह की उत्पत्ति एवं विकास को समझने में वैज्ञानिकों के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
- अमेरिका में प्रिंसटन विश्वविद्यालय (Princeton University) और चीन में इंस्टीट्यूट ऑफ जियोडेसी एंड जियोफिजिक्स (Institute of Geodesy and Geophysics) के वैज्ञानिकों ने पृथ्वी की गहराई की विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिये ग्रह पर सबसे शक्तिशाली तरंगों का इस्तेमाल किया, जो बड़े पैमाने पर भूकंप से उत्पन्न होते हैं।
पृष्ठभूमि
- वैज्ञानिकों ने इस अध्ययन में आँकड़े प्राप्त करने हेतु 1994 में बोलीविया में आए भूकंप (8.2 तीव्रता) को आधार बनाया जो अब तक का रिकॉर्ड किया गया दूसरा सबसे बड़ा और गहरा भूकंप है।
- इस प्रयोग के अंतर्गत 7.0 या उससे अधिक की तीव्रता वाले भूकंपों के आँकड़े प्राप्त करने के लिये सभी दिशाओं में भेदी तरंगों को प्रेषित किया गया जिनकी क्षमता पृथ्वी के आतंरिक भागों से आगे तक जाने में सक्षम थी।
- वैज्ञानिकों ने अत्याधुनिक कंप्यूटरों के माध्यम से इन जटिल आँकड़ों का अध्ययन किया। इसमें बताया गया कि जैसे प्रकाश तरंगें किसी दर्पण या प्रिज़्म से टकराकर प्रकाश को परावर्तित करती हैं, ठीक उसी प्रकार भूकंपीय तरंगें समरूप चट्टानों में निर्बाध चलती हैं, लेकिन मार्ग में किसी भी उबड़-खाबड़ या खुरदरेपन के कारण ये तरंगे भी परावर्तित हो जाती हैं।
स्रोत – द हिंदू