अंतर्राष्ट्रीय संबंध
SCO- क्षेत्रीय आतंकवाद रोधी संरचना (RATS)
प्रिलिम्स के लिये:क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना परिषद, शंघाई सहयोग संगठन मेन्स के लिये:क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना परिषद, शंघाई सहयोग संगठन,SCO में भारत के लिये महत्त्व एवं चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत ने एक वर्ष की अवधि (28 अक्तूबर, 2021 से) के लिये शंघाई सहयोग संगठन के क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना (RATS-SCO) की अध्यक्षता ग्रहण की है।
- इसके अनुसरण में राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय (NSCS) ने भारतीय डेटा सुरक्षा परिषद (DSCI) के सहयोग से समकालीन खतरे के माहौल में साइबरस्पेस की सुरक्षा पर एक सेमिनार का आयोजन किया है।
प्रमुख बिंदु:
- SCO-क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना
- SCO-RATS शंघाई सहयोग संगठन का एक स्थायी निकाय है और इसका उद्देश्य आतंकवाद, उग्रवाद एवं अलगाववाद के खिलाफ लड़ाई में शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य देशों के बीच समन्वय तथा बातचीत की सुविधा प्रदान करना है।
- SCO-RATS का मुख्य कार्य समन्वय और सूचना साझा करना है।
- एक सदस्य के रूप में भारत ने SCO-RATS की गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लिया है।
- भारत की स्थायी सदस्यता इसे अपने परिप्रेक्ष्य के लिये सदस्यों के बीच अधिक समझ को सक्षम बनाएगी।
- शंघाई सहयोग संगठन (SCO):
- शंघाई सहयोग संगठन (SCO) को विशाल यूरेशियाई क्षेत्र में सुरक्षा सुनिश्चित करने और स्थिरता बनाए रखने के लिये एक बहुपक्षीय संघ के रूप में स्थापित किया गया था।
- यह उभरती चुनौतियों एवं खतरों का मुकाबला करने और व्यापार बढ़ाने के साथ-साथ सांस्कृतिक तथा मानवीय सहयोग के लिये सेनाओं के शामिल होने की परिकल्पना करता है। इसकी स्थापना 15 जून, 2001 को शंघाई में हुई थी।
- वर्ष 2001 में SCO की स्थापना से पूर्व कज़ाकिस्तान, चीन, किर्गिस्तान, रूस और ताजिकिस्तान ‘शंघाई-5’ नामक संगठन के सदस्य थे।
- वर्ष 1996 में ‘शंघाई-5’ का गठन विसैन्यीकरण वार्ता की शृंखलाओं के माध्यम से हुआ था, चीन के साथ ये वार्ताएँ चार पूर्व सोवियत गणराज्यों द्वारा सीमाओं पर स्थिरता के लिये की गई थीं।
- वर्ष 2001 में उज़्बेकिस्तान के संगठन में प्रवेश के बाद ‘शंघाई-5’ को शंघाई सहयोग संगठन (SCO) नाम दिया गया।
- SCO चार्टर पर वर्ष 2002 में हस्ताक्षर किये गए थे और यह वर्ष 2003 में लागू हआ।
- SCO की आधिकारिक भाषाएँ रूसी और चीनी हैं।
- SCO के दो स्थायी निकाय हैं:
- बीजिंग में स्थित SCO सचिवालय,
- ताशकंद में क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना (RATS) की कार्यकारी समिति।
- SCO की अध्यक्षता सदस्य देशों द्वारा रोटेशन के आधार पर एक वर्ष के लिये की जाती है।
- वर्ष 2017 में भारत तथा पाकिस्तान को इसके सदस्य का दर्जा मिला।
- वर्तमान में इसके सदस्य देशों में कज़ाकिस्तान, चीन, किर्गिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, भारत और पाकिस्तान शामिल हैं।
भारत और शंघाई सहयोग संगठन
- भारत के लिये लाभ:
- SCO की सदस्यता मिलने के साथ ही अब भारत को एक बड़ा वैश्विक मंच मिल गया है। SCO यूरेशिया का एक ऐसा राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा संगठन है जिसका केंद्र मध्य एशिया और इसका पड़ोस है। ऐसे में इस संगठन की सदस्यता भारत के लिये विभिन्न प्रकार के अवसर उपलब्ध करवाने वाली सिद्ध हो सकती है।
- क्षेत्रवाद को अपनाना: सार्क तथा बांग्लादेश, भूटान, भारत, नेपाल (BBIN) पहल के साथ भागीदारी में कमी को देखते हुए SCO उन कुछ क्षेत्रीय संरचनाओं में से एक है जिनमें भारत भी हिस्सेदारी रखता है।
- इससे भी महत्त्वपूर्ण है तीन प्रमुख क्षेत्रों- ऊर्जा, व्यापार, परिवहन लिंक के निर्माण में सहयोग करना तथा पारंपरिक एवं गैर-पारंपरिक सुरक्षा खतरों से निपटना।
- मध्य एशिया से संपर्क: ‘शंघाई सहयोग संगठन’ भारत को मध्य एशियाई देशों तक अपनी पहुँच बढ़ाने (व्यापार और रणनीतिक संबंधों के मामले में) हेतु एक सुविधाजनक चैनल प्रदान करता है।
- SCO भारत की ‘कनेक्ट सेंट्रल एशिया नीति’ (Connect Central Asia Policy) को आगे बढ़ाने के लिये एक महत्त्वपूर्ण मंच का कार्य कर सकता है।
- गौरतलब है कि मध्य एशिया के साथ आर्थिक संपर्क बढ़ाने की भारतीय नीति की नींव वर्ष 2012 की ‘कनेक्ट सेंट्रल एशिया पॉलिसी’ (Connect Central Asia Policy) पर आधारित है, जिसमें 4‘C’- वाणिज्य (Commerce), संपर्क (Connectivity), कांसुलर (Consular) और समुदाय (Community) पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
- ‘SECURE’ (सुरक्षा) के मूलभूत आयाम: ‘शंघाई सहयोग संगठन’ के रणनीतिक महत्त्व को स्वीकार करते हुए, भारतीय प्रधानमंत्री ने ‘SECURE’ (सुरक्षा) को यूरेशिया के मूलभूत आयाम के रूप में संदर्भित किया था। ‘SECURE’ शब्द का पूर्ण रूप है:
- S- नागरिकों की सुरक्षा,
- E- आर्थिक विकास,
- C- क्षेत्रीय संपर्क,
- U- लोगों के बीच एकजुटता,
- R- संप्रभुता और अखंडता का सम्मान
- E- पर्यावरण संरक्षण
- पाकिस्तान और चीन से निपटना: शंघाई सहयोग संगठन भारत को एक ऐसा मंच प्रदान करता है, जहाँ वह क्षेत्रीय मुद्दों पर चीन और पाकिस्तान के साथ रचनात्मक चर्चा में शामिल हो सकता है तथा अपने सुरक्षा हितों को उनके समक्ष रख सकता है।
- भारत के समक्ष मौजूद चुनौतियाँ
- प्रत्यक्ष स्थलीय संपर्क की बाधाएँ: पाकिस्तान द्वारा भारत और अफगानिस्तान (तथा इसके आगे भी) के बीच भू-संपर्क की अनुमति न देना, भारत के लिये यूरेशिया के साथ अपने विस्तारित संबंधों को मज़बूत करने में सबसे बड़ी बाधा रहा है।
- कनेक्टिविटी के अभाव ने हाइड्रोकार्बन समृद्ध- यूरेशिया और भारत के बीच ऊर्जा संबंधों के विकास में भी बाधा डाली है।
- रूस-चीन संबंधों में सुधार: ‘शंघाई सहयोग संगठन’ में भारत को शामिल करने के लिये रूस के प्रमुख कारकों में से एक चीन की शक्ति को संतुलित करना था।
- ‘बेल्ट एंड रोड’ इनिशिएटिव को लेकर मतभेद: जहाँ एक ओर भारत ने ‘बेल्ट एंड रोड’ (BRI) इनिशिएटिव का विरोध किया है, वहीं शंघाई सहयोग संगठन के अन्य सभी सदस्यों ने चीनी परियोजना को स्वीकार कर लिया है।
- भारत-पाकिस्तान प्रतिद्वंद्विता: ‘शंघाई सहयोग संगठन’ के सदस्यों ने अतीत में चिंता व्यक्त की है कि भारत एवं पाकिस्तान के प्रतिकूल संबंधों का प्रभाव संगठन पर पड़ सकता है और यह आशंका हाल के दिनों में और अधिक बढ़ गई है।
- प्रत्यक्ष स्थलीय संपर्क की बाधाएँ: पाकिस्तान द्वारा भारत और अफगानिस्तान (तथा इसके आगे भी) के बीच भू-संपर्क की अनुमति न देना, भारत के लिये यूरेशिया के साथ अपने विस्तारित संबंधों को मज़बूत करने में सबसे बड़ी बाधा रहा है।
आगे की राह
- मध्य एशिया के साथ संपर्क में सुधार: इस संदर्भ में यूरेशिया में एक मज़बूत पहुँच स्थापित करने के लिये चाबहार बंदरगाह के खुलने और अश्गाबात समझौते में भारत के शामिल होने का लाभ उठाया जाना चाहिये।
- इसके अलावा ‘अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे’ (INSTC) के संचालन पर भी विशेष ध्यान देना होगा।
- चीन के साथ संबंधों में सुधार: 21वीं सदी की वैश्विक राजनीति में एशियाई नेतृत्व को मज़बूती प्रदान करने के लिये यह बहुत ही आवश्यक है कि भारत और चीन द्वारा आपसी मतभेदों को शांति के साथ दूर करने के लिये एक व्यवस्थित प्रणाली को विकसित किया जाए।
- सैन्य सहयोग में वृद्धि: हाल के वषों में क्षेत्र में आतंकवाद संबंधी गतिविधियों में वृद्धि को देखते हुए यह बहुत ही आवश्यक हो गया है कि SCO द्वारा एक ‘सहकारी और टिकाऊ सुरक्षा ढाँचे’ का विकास किया जाए, साथ ही क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना को और अधिक प्रभावी बनाए जाने का भी प्रयास किया जाना चाहिये।
स्रोत: पी.आई.बी.
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
गगनयान मिशन
प्रिलिम्स के लिये:शुक्रयान मिशन, गगनयान मिशन, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन मेन्स के लिये:भारत के संदर्भ में गगनयान मिशन का महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष मंत्री ने जानकारी साझा की है कि चालक दल युक्त गगनयान मिशन (Gaganyaan Mission) को वर्ष 2023 में लॉन्च किया जाएगा।
- देश का पहला अंतरिक्ष स्टेशन 2030 तक स्थापित होने की संभावना है।
प्रमुख बिंदु
- गगनयान मिशन के बारे में:
- गगनयान भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation- ISRO) का एक मिशन है।
- इस मिशन के तहत:
- तीन अंतरिक्ष अभियानों को कक्षा में भेजा जाएगा।
- इन तीन अभियानों में से 2 मानवरहित होंगे, जबकि एक मानव युक्त मिशन होगा।
- मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम, जिसे ऑर्बिटल मॉड्यूल कहा जाता है, में एक महिला सहित तीन भारतीय अंतरिक्ष यात्री होंगे।
- यह मिशन 5-7 दिनों की अवधि में पृथ्वी से 300-400 किमी. की ऊँचाई पर लो अर्थ ऑर्बिट में पृथ्वी का चक्कर लगाएगा।
- उस लॉन्च के साथ भारत अमेरिका, चीन और रूस राष्ट्रों के क्लब में शामिल हो जाएगा।
- पेलोड:
- पेलोड में शामिल होंगे:
- क्रू मॉड्यूल- मानव को ले जाने वाला अंतरिक्षयान।
- सर्विस मॉड्यूल- दो तरल प्रणोदक इंजनों द्वारा संचालित।
- यह आपातकालीन निकास और आपातकालीन मिशन अबोर्ट व्यवस्था से लैस होगा।
- पेलोड में शामिल होंगे:
- प्रमोचन:
- गगनयान के प्रमोचन हेतु तीन चरणों वाले GSLV Mk III का उपयोग किया जाएगा जो भारी उपग्रहों के प्रमोचन में सक्षम है। उल्लेखनीय है कि GSLV Mk III को प्रमोचन वाहन मार्क-3 (Launch Vehicle Mark-3 or LVM 3) भी कहा जाता है।
- गगनयान के प्रमुख मिशन जैसे क्रू एस्केप सिस्टम प्रदर्शन के लिये टेस्ट वेहिकल फ्लाइट (Test Vehicle Flight) और गगनयान (G1) का पहला मानव रहित मिशन अगले वर्ष (2022) की दूसरी छमाही की शुरुआत के दौरान भेजने हेतु निर्धारित अवधि है।
- इसके बाद वर्ष 2022 के अंत में दूसरा मानव रहित मिशन 'व्योममित्र' को अंतरिक्ष में ले जाया जाएगा, जो इसरो द्वारा विकसित एक अंतरिक्ष यात्री मानव रोबोट है और अंतत: वर्ष 2023 में चालक दल युक्त गगनयान मिशन को लॉन्च किया जाएगा ।
- गगनयान के प्रमोचन हेतु तीन चरणों वाले GSLV Mk III का उपयोग किया जाएगा जो भारी उपग्रहों के प्रमोचन में सक्षम है। उल्लेखनीय है कि GSLV Mk III को प्रमोचन वाहन मार्क-3 (Launch Vehicle Mark-3 or LVM 3) भी कहा जाता है।
- महत्त्व:
- यह देश में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के स्तर को बढ़ाने तथा युवाओं को प्रेरित करने में मदद करेगा।
- गगनयान मिशन में विभिन्न एजेंसियों, प्रयोगशालाओं, उद्योगों और विभागों को शामिल किया जाएगा।
- यह औद्योगिक विकास में सुधार करने में मदद करेगा।
- हाल ही में सरकार ने अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी भागीदारी को बढ़ाने हेतु किये जा रहे सुधारों के क्रम में एक नए संगठन IN-SPACe के गठन की घोषणा की है।
- यह सामाजिक लाभों के लिये प्रौद्योगिकी के विकास में मदद करेगा।
- यह अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने में मदद करेगा।
- कई देशों के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (International Space Station-ISS) पर्याप्त नहीं हो सकता है क्योंकि क्षेत्रीय पारिस्थितिक तंत्र को भी ध्यान में रखना आवश्यक होता है, अतः गगनयान मिशन क्षेत्रीय ज़रूरतों- खाद्य, जल एवं ऊर्जा सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करेगा।
- यह देश में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के स्तर को बढ़ाने तथा युवाओं को प्रेरित करने में मदद करेगा।
- भारत की अन्य आगामी परियोजनाएँ:
- चंद्रयान- 3 मिशन: भारत ने एक नए चंद्र मिशन चंद्रयान-3 की योजना बनाई है जिसे वर्ष 2021 में लॉन्च किये जाने की संभावना है।
- एल-1 आदित्य सोलर (2022-23 के लिये): यह सूर्य का अध्ययन करने वाला भारत का पहला वैज्ञानिक अभियान है। यह एस्ट्रोसैट के बाद इसरो का दूसरा अंतरिक्ष-आधारित खगोल विज्ञान मिशन होगा, जिसे वर्ष 2015 में लॉन्च किया गया था।
- शुक्रयान मिशन (Shukrayaan Mission): इसरो शुक्र ग्रह हेतु भी एक मिशन की योजना बना रहा है, जिसे अस्थायी रूप से शुक्रयान नाम दिया गया है।
स्रोत- द हिंदू
शासन व्यवस्था
राष्ट्रीय औषधीय शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान संशोधन विधेयक, 2021
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय औषधीय शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान विधेयक, 2021, राज्यसभा मेन्स के लिये:राष्ट्रीय औषधीय शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान विधेयक, 2021 के विभिन्न प्रावधान एवं इनका महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राज्यसभा में राष्ट्रीय औषधीय शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान विधेयक, 2021 (NIPER) पारित किया।
- इसके माध्यम से ‘राष्ट्रीय औषधीय शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान अधिनियम, 1998’ में संशोधन किया जायेगा, जिसके तहत पंजाब के मोहाली में ‘राष्ट्रीय औषधीय शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान’ की स्थापना की गई और इसे राष्ट्रीय महत्त्व का संस्थान घोषित किया।
प्रमुख बिंदु
- विधेयक के संबंध में सामान्य तथ्य:
- राष्ट्रीय महत्त्व के संस्थान की स्थिति:
- यह अहमदाबाद, हाजीपुर, हैदराबाद, कोलकाता, गुवाहाटी तथा रायबरेली में स्थित औषधीय शिक्षा और अनुसंधान संस्थान के छह और संस्थानों को 'राष्ट्रीय महत्त्व के संस्थान' का दर्जा देने का प्रयास करता है।
- सलाहकार परिषद की स्थापना:
- परिषद एक केंद्रीय निकाय होगी, जो फार्मास्युटिकल शिक्षा और अनुसंधान तथा मानकों के रखरखाव के समन्वित विकास को सुनिश्चित करने के लिये सभी संस्थानों की गतिविधियों का समन्वय करेगी।
- परिषद के कार्यों में शामिल हैं:
- पाठ्यक्रम की अवधि से संबंधित मामलों पर सलाह देना, भर्ती के लिये नीतियाँ बनाना, संस्थानों की विकास योजनाओं की जाँच और अनुमोदन करना, केंद्र सरकार को धन आवंटन के लिये सिफारिशों हेतु संस्थानों के वार्षिक बजट अनुमानों की जाँच करना।
- बोर्ड ऑफ गवर्नर्स को युक्तिसंगत बनाना:
- यह विधेयक प्रत्येक NIPER के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स को 23 से 12 सदस्यों की मौजूदा संख्या से युक्तिसंगत बनाता है और संस्थानों द्वारा चलाए जा रहे पाठ्यक्रमों के दायरे और संख्या को बढ़ाता है।
- राष्ट्रीय महत्त्व के संस्थान की स्थिति:
- महत्त्व:
- NIPERs, IIT की तर्ज पर प्रशासित होंगे।
- NIPER अनुसंधान में मदद करेगा जिससे भारत में अधिक पेटेंट सृजन किया जा सकता है, जिसका अर्थ यह होगा कि राष्ट्र उच्च लागत वाली औषधि का उत्पादन कर सकता है।
- विधेयक से संबंधित मुद्दे:
- अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (एससी/एसटी अधिनियम), ओबीसी और महिलाओं के साथ राज्य सरकारों को NIPERs की शीर्ष परिषद में शामिल नहीं किया गया है।
- स्वायत्तता और सत्ता के अति-केंद्रीकरण जैसे मुद्दे भी चिंतनीय है।
- विधेयक में कहा गया है कि प्रस्तावित परिषद को इन संस्थानों के वित्तीय, प्रशासनिक और प्रबंधकीय मामलों के संबंध में अत्यधिक शक्तियों के साथ अधिकार दिया गया है, जिसे बहुत सावधानी से संचालित किया जाना है।
- विधेयक संभावित रूप से संस्थानों की स्वायत्तता से समझौता करता है क्योंकि परिषद ज़्यादातर केंद्र सरकार के नौकरशाहों और कुछ सांसदों से मिलकर निर्मित होगी, जिसमें कोई निर्णय किसी विशेष संस्थान के सर्वोत्तम हित हो प्रभावित कर सकता है।
राष्ट्रीय औषधीय शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (NIPERs)
- NIPER, रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय (Ministry of Chemicals and Fertilizers) के फार्मास्यूटिकल्स विभाग के अधीन राष्ट्रीय महत्त्व का संस्थान है।
- राष्ट्रीय महत्त्व का संस्थान एक ऐसा स्वायत्त निकाय/संस्थान है जिसके पास परीक्षा आयोजित करने और शैक्षिक प्रमाण पत्र/डिग्री प्रदान करने की शक्ति होती है।
- उन्हें केंद्र सरकार से वित्त सहायता प्राप्त होती है।
- राष्ट्रीय महत्त्व का संस्थान एक ऐसा स्वायत्त निकाय/संस्थान है जिसके पास परीक्षा आयोजित करने और शैक्षिक प्रमाण पत्र/डिग्री प्रदान करने की शक्ति होती है।
- इस संस्थान में न केवल देश के भीतर बल्कि दक्षिण-पूर्व एशिया, दक्षिण एशिया एवं अफ्रीकी देशों में भी औषधि विज्ञान एवं संबंधित क्षेत्रों में नेतृत्त्व प्रदान करने की क्षमता है।
- NIPER, मोहाली ‘एसोसिएशन ऑफ इंडियन यूनिवर्सिटीज़’ एवं ‘एसोसिएशन ऑफ कॉमनवेल्थ यूनिवर्सिटीज़’ का सदस्य है।
- वर्ष 1925 में इंटर-यूनिवर्सिटी बोर्ड (Inter-University Board- IUB) के रूप में गठित एसोसिएशन ऑफ इंडियन यूनिवर्सिटीज (Association of Indian Universities- AIU), भारत के सभी विश्वविद्यालयों का एक संघ है। यह सक्रिय रूप से उच्च शिक्षा के विकास और विकास में संलग्न है।
- राष्ट्रमंडल विश्वविद्यालयों का संघ राष्ट्रमंडल के 50 से अधिक देशों में उच्च शिक्षा के माध्यम से एक बेहतर दुनिया के निर्माण के लिये समर्पित एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
जैव विविधता और पर्यावरण
अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन को पर्यवेक्षक का दर्जा: संयुक्त राष्ट्र
प्रिलिम्स के लियेसंयुक्त राष्ट्र महासभा, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन मेन्स के लियेसौर ऊर्जा का महत्त्व और इस संदर्भ में सरकार द्वारा किये गए प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) ने अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) को पर्यवेक्षक का दर्जा प्रदान किया।
- यह अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन और संयुक्त राष्ट्र के बीच नियमित तथा बेहतर सहयोग सुनिश्चित करने में मदद करेगा, जिससे वैश्विक ऊर्जा विकास को लाभ होगा।
- इससे पहले, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन की चौथी महासभा आयोजित की गई थी, जहाँ कुल 108 देशों ने विधानसभा में भाग लिया, जिसमें 74 सदस्य देश, 34 पर्यवेक्षक, 23 भागीदार संगठन तथा 33 विशेष आमंत्रित संगठन शामिल थे।
संयुक्त राष्ट्र महासभा
- परिचय
- ‘संयुक्त राष्ट्र महासभा’ संयुक्त राष्ट्र का मुख्य विचार-विमर्श, नीति निर्धारण और प्रतिनिधि अंग है।
- महासभा में संयुक्त राष्ट्र के सभी 193 सदस्य राष्ट्रों का प्रतिनिधित्त्व है, जो इसे सार्वभौमिक प्रतिनिधित्व वाला एकमात्र संयुक्त राष्ट्र निकाय बनाता है।
- महासभा के अध्यक्ष को प्रत्येक वर्ष महासभा द्वारा एक वर्ष के कार्यकाल के लिये चुना जाता है।
- बैठक:
- प्रतिवर्ष सितंबर में संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्यों की वार्षिक महासभा का आयोजन न्यूयॉर्क के जनरल असेंबली में किया जाता है और इसमें सामान्य बहस होती है तथा कई राष्ट्र प्रमुखता से भाग लेते हैं।
- महासभा में महत्त्वपूर्ण प्रश्नों पर निर्णय लेने जैसे कि शांति एवं सुरक्षा, नए सदस्यों के प्रवेश तथा बजटीय मामलों के लिये दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है।
- अन्य प्रश्नों पर निर्णय साधारण बहुमत से लिया जाता है।
- प्रतिवर्ष सितंबर में संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्यों की वार्षिक महासभा का आयोजन न्यूयॉर्क के जनरल असेंबली में किया जाता है और इसमें सामान्य बहस होती है तथा कई राष्ट्र प्रमुखता से भाग लेते हैं।
प्रमुख बिंदु
- ISA के बारे में:
- ‘अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन’ संधि-आधारित एक अंतर-सरकारी संगठन है, जिसका प्राथमिक कार्य वित्तपोषण एवं प्रौद्योगिकी की लागत को कम करके सौर विकास को उत्प्रेरित करना है।
- ‘अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन’, ‘वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड’ ( One Sun One World One Grid - OSOWOG) को लागू करने हेतु नोडल एजेंसी है, जिसका उद्देश्य एक विशिष्ट क्षेत्र में उत्पन्न सौर ऊर्जा को किसी दूसरे क्षेत्र की बिजली की मांग को पूरा करने के लिये स्थानांतरित करना है।
- लॉन्च:
- यह एक भारतीय पहल है जिसे भारत के प्रधानमंत्री और फ्राँस के राष्ट्रपति द्वारा 30 नवंबर, 2015 को फ्राँस (पेरिस) में यूएनएफसीसीसी के पक्षकारों के सम्मेलन (COP-21) में 121 सौर संसाधन समृद्ध राष्ट्रों के साथ शुरू किया गया था जो पूर्ण रूप से या आंशिक रूप से कर्क और मकर रेखा के बीच स्थित हैं।
- सदस्य:
- अमेरिका के शामिल होने के बाद कुल 101 सदस्य।
- मुख्यालय:
- इसका मुख्यालय भारत में स्थित है और इसका अंतरिम सचिवालय गुरुग्राम में स्थापित किया जा रहा है।
- उद्देश्य:
- इसका उद्देश्य सदस्य देशों में सौर ऊर्जा के विस्तार हेतु प्रमुख चुनौतियों का सामूहिक रूप से समाधान करना है।
- नए ISA कार्यक्रम:
- सौर पीवी पैनलों और बैटरी उपयोग अपशिष्ट एवं सौर हाइड्रोजन कार्यक्रम के प्रबंधन पर नए ISA कार्यक्रम शुरू किये गए हैं।
- नई हाइड्रोजन पहल का उद्देश्य सौर बिजली के उपयोग को वर्तमान (USD 5 प्रति किलोग्राम) की तुलना में अधिक किफायती दर पर हाइड्रोजन के उत्पादन में सक्षम बनाना है तथा इसके तहत इसे USD 2 प्रति किलोग्राम तक लाना है।
- सौर पीवी पैनलों और बैटरी उपयोग अपशिष्ट एवं सौर हाइड्रोजन कार्यक्रम के प्रबंधन पर नए ISA कार्यक्रम शुरू किये गए हैं।
- भारत की कुछ सौर ऊर्जा पहलें:
- राष्ट्रीय सौर मिशन (जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना का एक हिस्सा): भारत को सौर ऊर्जा के क्षेत्र में वैश्विक नेता के रूप में स्थापित करने हेतु देश भर में सौर ऊर्जा के प्रसार की लिये पारिस्थितिक तंत्र का विकास करना।
- INDC लक्ष्य: इसके तहत वर्ष 2022 तक 100 GW ग्रिड से जुड़े सौर ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने की अभिकल्पना की गई है।
- यह गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा संसाधनों से लगभग 40% संचयी विद्युत शक्ति स्थापित क्षमता प्राप्त करने और वर्ष 2005 के स्तर से अपने सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता को 33% से 35% तक कम करने हेतु भारत के ‘राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान’ (INDCs) लक्ष्य के अनुरूप है।
- अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) और वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड (OSOWOG):
- सरकारी योजनाएँ: सोलर पार्क योजना, कैनाल बैंक और कैनाल टॉप योजना, बंडलिंग योजना, ग्रिड कनेक्टेड सोलर रूफटॉप योजना आदि।
- पहला ग्रीन हाइड्रोजन मोबिलिटी प्रोजेक्ट: ‘नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड- रिन्यूएबल एनर्जी लिमिटेड (NTPC-REL) ने देश का पहला ग्रीन हाइड्रोजन मोबिलिटी प्रोजेक्ट स्थापित करने हेतु केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये हैं।
- ग्रीन हाइड्रोजन का निर्माण अक्षय ऊर्जा (जैसे सौर, पवन) का उपयोग करके पानी के इलेक्ट्रोलिसिस द्वारा होता है और इसमें कार्बन फुटप्रिंट कम होता है।
सौर ऊर्जा
- परिचय:
- यह सूर्य से निकलने वाला विकिरण है जो ताप पैदा करने, रासायनिक प्रतिक्रिया करने या बिजली पैदा करने में सक्षम है।
- पृथ्वी पर होने वाली सौर ऊर्जा की कुल मात्रा विश्व की वर्तमान और प्रत्याशित ऊर्जा आवश्यकताओं से बहुत अधिक है। यदि उपयुक्त रूप से उपयोग किया जाता है, तो इस अत्यधिक विसरित स्रोत में भविष्य की सभी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने की क्षमता है।
- महत्त्व:
- सौर ऊर्जा की उपलब्धता पूरे दिन बनी रहती है विशेष रूप से उस समय भी जब विद्युत ऊर्जा की मांग सर्वाधिक होती है।
- सौर ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में रूपांतरित करने वाले उपकरणों की अवधि अधिक होती है और उनके रखरखाव की भी कम आवश्यकता होती है।
- कम चलने वाली लागत और ग्रिड टाई-अप कैपिटल रिटर्न (नेट मीटरिंग)।
- पारंपरिक ताप विद्युत उत्पादन (कोयले द्वारा) के विपरीत सौर ऊर्जा से प्रदूषण की समस्या भी उत्पन्न नहीं होती है तथा स्वच्छ विद्युत ऊर्जा के उत्पादन को बढ़ावा दिया जाता है।
- देश के लगभग सभी हिस्सों में मुफ्त सौर ऊर्जा की प्रचुरता है।
- सौर ऊर्जा के उपयोग में विद्युत के तार एवं ट्रांसमिशन का उपयोग करने की आवश्यकता नहीं होती है।
स्रोत: द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
बलूचिस्तान में विरोध प्रदर्शन
प्रिलिम्स के लिये:चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे, बलूचिस्तान, ईरान, अफगानिस्तान मेन्स के लिये:बलूचिस्तान में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे से संबंधित परियोजनाओं के विरोध का कारण |
चर्चा में क्यों?
पिछले कुछ हफ्तों में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के हिस्से के रूप में बंदरगाह शहर की मेगा विकास योजनाओं के खिलाफ ग्वादर, बलूचिस्तान में लगातार विरोध प्रदर्शन हुए हैं।
- प्रदर्शनकारियों ने बंदरगाह के विकास में स्थानीय लोगों के हाशिये पर जाने की ओर ध्यान आकर्षित करने की मांग की है।
- पाकिस्तान का दावा है कि भारत इन विरोध प्रदर्शनों का समर्थन करता रहा है।
प्रमुख बिंदु
- बलूचिस्तान:
- बलूचिस्तान पाकिस्तान के चार प्रांतों में से एक है।
- यह सबसे कम आबादी वाला प्रांत है, भले ही यह क्षेत्रफल के आधार पर सबसे बड़ा प्रांत है।
- यह जातीय बलूच लोग यहाँ के निवासी हैं जो आधुनिक ईरान और अफगानिस्तान में भी पाये जाते हैं, हालाँकि बलूच आबादी बलूचिस्तान में पाई जाती है।
- बलूचिस्तान प्राकृतिक गैस और तेल से समृद्ध है और पाकिस्तान के सबसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक है।
- बलूचिस्तान में विद्रोह:
- भारतीय उपमहाद्वीप से अंग्रेजों की वापसी के दौरान, बलूचिस्तान साम्राज्य को भारत में शामिल होने, पाकिस्तान में शामिल होने या स्वतंत्र रहने की पेशकश की गई थी।
- बलूचिस्तान के राजा ने स्वतंत्र रहना चुना और यह लगभग एक वर्ष तक स्वतंत्र रहा।
- वर्ष 1948 में पाकिस्तान सरकार ने सैन्य और कूटनीति के संयोजन के साथ इस क्षेत्र पर नियंत्रण कर लिया और इसे पाकिस्तान का हिस्सा बना दिया।
- पाकिस्तान सेना और आतंकवादी समूहों द्वारा किये गए क्षेत्र में विकास और मानवाधिकारों के उल्लंघन की कमी के कारण, बलूचिस्तान में यह विद्रोह वर्ष 1948 से सक्रिय है।
- पाकिस्तान का दावा है कि भारत इन विद्रोही लड़ाकों को हथियारों और खुफिया जानकारी के माध्यम से समर्थन प्रदान करता रहा है।
- बलूचिस्तान पर भारत का रुख:
- भारत ने लंबे समय से पाकिस्तान या किसी अन्य देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने का राजनीतिक रुख बनाए रखा है।
- वर्षों से पाकिस्तान द्वारा बार-बार कश्मीर मुद्दे को उठाने के बावजूद, भारत ने बलूचिस्तान पर चुप्पी बनाए रखी थी।
- हालाँकि, वर्ष 2016 में पाकिस्तान में स्वतंत्रता दिवस समारोह के तत्काल बाद बलूचिस्तान पर भारत की टिप्पणी आई, क्योंकि यह समारोह कश्मीर की स्वतंत्रता हेतु समर्पित था।
- भारत के प्रधानमंत्री ने वर्ष 2016 में अपने स्वतंत्रता भाषण में बलूच लोगों के अत्याचारों का ज़िक्र किया था।
‘चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा’ और भारत की चिंताएँ
- चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा
- ‘चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा’ पाकिस्तान और चीन के बीच एक द्विपक्षीय परियोजना है।
- इसका उद्देश्य चीन के पश्चिमी भाग (शिनजियांग प्रांत) को पाकिस्तान के उत्तरी भागों में खुंजेराब दर्रे के माध्यम से बलूचिस्तान, पाकिस्तान में ग्वादर बंदरगाह से जोड़ना है।
- इसका उद्देश्य ऊर्जा, औद्योगिक और अन्य बुनियादी ढाँचा विकास परियोजनाओं के साथ राजमार्गों, रेलवे और पाइपलाइनों के नेटवर्क के साथ पूरे पाकिस्तान में कनेक्टिविटी को बढ़ावा देना है।
- यह ग्वादर पोर्ट से चीन के लिये मध्य पूर्व और अफ्रीका तक पहुँचने का मार्ग प्रशस्त करेगा, जिससे चीन हिंद महासागर तक पहुँच सकेगा।
- CPEC ‘बेल्ट एंड रोड’ (BRI) इनिशिएटिव का एक हिस्सा है।
- वर्ष 2013 में शुरू किए गए BRI का उद्देश्य दक्षिण पूर्व एशिया, मध्य एशिया, खाड़ी क्षेत्र, अफ्रीका और यूरोप को भूमि तथा समुद्री मार्गों के नेटवर्क से जोड़ना है।
- भारत के लिये चिंता:
- संप्रभुता का मुद्दा: चीन द्वारा पाकिस्तान के लिये विकसित किये जा रहे कुछ प्रस्तावित बुनियादी ढाँचे में से पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (POK) के विवादित क्षेत्र रहे हैं।
- भारत इसे अपने क्षेत्र का हिस्सा मानता है।
- ग्वादर बंदरगाह का दोहरा उद्देश्य: भारत ग्वादर को लेकर चिंतित रहा है, जो चीन को अरब सागर और हिंद महासागर तक रणनीतिक पहुँच प्रदान करता है।
- इसे न केवल एक व्यापार गोदाम के रूप में बल्कि चीनी नौसेना द्वारा उपयोग के लिये दोहरे उद्देश्य वाले बंदरगाह के रूप में विकसित किया जा रहा है।
- यह स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स सिद्धांत का हिस्सा है, जिसके तहत चीन हिंद महासागर और उसके दक्षिण में ग्वादर (पाकिस्तान), चटगाँव (बांग्लादेश, क्याक फ्रू (म्याँमार) और हंबनटोटा (श्रीलंका) में अत्याधुनिक विशाल आधुनिक बंदरगाहों का निर्माण कर रहा है।
- स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स भारत के लिये एक रणनीतिक खतरा है, क्योंकि इसका उद्देश्य हिंद महासागर में चीनी प्रभुत्व स्थापित करने हेतु भारत को घेरना है।
- संप्रभुता का मुद्दा: चीन द्वारा पाकिस्तान के लिये विकसित किये जा रहे कुछ प्रस्तावित बुनियादी ढाँचे में से पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (POK) के विवादित क्षेत्र रहे हैं।