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राष्ट्रमंडल मानवाधिकार पहल

  • 04 May 2019
  • 3 min read

संदर्भ

हाल ही में राष्ट्रमंडल मानवाधिकार पहल (Commonwealth Human Rights Initiative- CHRI) ने कहा है कि असम में विदेशियों की नज़रबंदी पर सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी दुर्भाग्यापूर्ण है।

प्रमुख बिंदु

  • CHRI ने तर्क दिया है कि जेल में बंद लोग अमानवीय परिस्थितियों में रहते हैं एवं उनके मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है।
  • संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि भारत में कोई भी व्यक्ति बिना किसी प्रक्रिया के अपने जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार से वंचित नहीं हो सकता है।

पृष्ठभूमि

  • ज्ञातव्य है कि असम सरकार ने एक हलफनामे में पाँच साल से अधिक समय तक नज़रबंदी केंद्रों में रहने वाले घोषित विदेशियों की सशर्त रिहाई और निगरानी की बात कही थी।
  • इस हलफनामे में रिहाई के लिये 5 लाख की सुरक्षा राशि, पते का सत्यापन और उनके बायोमेट्रिक आँकड़ों को रखने के बात कही गई थी।
  • इस पर सर्वोच्च न्यायालय का कहना है कि भारत सरकार और असम राज्य सरकार का रुख विदेशियों को जल्द-से-जल्द निर्वासित करने का होना चाहिये।
  • पीठ ने कहा कि असम में लाखों अवैध विदेशियों की पहचान होने के बावजूद केवल 900 बंदी हैं। उनमें से ज़्यादातर पहले से ही स्थानीय आबादी में मिल चुके हैं और देश की राजनीति को प्रभावित कर रहे हैं।

अंतर्राष्ट्रीय कानून यह कहता है कि निर्वासन केवल मूल देश की सहमति से हो सकता है और भारत का बांग्लादेश के साथ ऐसा कोई समझौता नहीं है। साथ ही, बांग्लादेश ने यह मानने से इनकार कर दिया कि उसके नागरिक बड़ी संख्या में भारत में आते हैं।

राष्ट्रमंडल मानवाधिकार पहल (CHRI)

  • राष्ट्रमंडल मानवाधिकार पहल एक स्वतंत्र, गैर-पक्षपातपूर्ण, अंतर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठन है इसमें 53 स्वतंत्र और संप्रभु राज्य शामिल हैं।
  • इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है।
  • यह दुनिया के राज्यों के सबसे पुराने राजनीतिक संगठनों में से एक है इसकी जड़ें ब्रिटिश साम्राज्य में हैं जब कुछ देशों पर ब्रिटेन द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शासन किया गया।
  • 1949 में राष्ट्रमंडल अस्तित्व में आया और तब से अफ्रीका, अमेरिका, एशिया, यूरोप तथा प्रशांत महासागर क्षेत्र के स्वतंत्र देश राष्ट्रमंडल में शामिल होते गए।

स्रोत: द हिंदू

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