अंतर्राष्ट्रीय संबंध
CPEC का अफगानिस्तान तक विस्तार
- 30 Sep 2021
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प्रिलिम्स के लिये:चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा,बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव मेन्स के लिये:CPEC में अफगानिस्तान: भारत पर पड़ने वाले प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पाकिस्तान ने तालिबान के नेतृत्व वाले अफगानिस्तान को मल्टी-बिलियन डॉलर की लागत वाले चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) परियोजनाओं में शामिल होने पर चर्चा की है।
- चीन ने अफगानिस्तान में CPEC के रूप में पेशावर-काबुल मोटरवे के निर्माण का प्रस्ताव रखा है।
- अफगानिस्तान पर तालिबान के अधिग्रहण और ‘चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा’ परियोजना के विस्तार ने आर्थिक, राजनीतिक और सुरक्षा मोर्चों पर भारत की चिंताओं को बढ़ा दिया है।
प्रमुख बिंदु
- चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा:
- CPEC पाकिस्तान और चीन के बीच एक द्विपक्षीय परियोजना है।
- इसका उद्देश्य ऊर्जा, औद्योगिक और अन्य बुनियादी ढाँचागत विकास परियोजनाओं के साथ राजमार्गों, रेलवे और पाइपलाइनों के नेटवर्क के साथ संपूर्ण पाकिस्तान में कनेक्टिविटी को बढ़ावा देना है।
- इसका उद्देश्य चीन के पश्चिमी भाग (शिनजियांग प्रांत) को पाकिस्तान के उत्तरी भागों में खुंजेराब दर्रे के माध्यम से बलूचिस्तान, पाकिस्तान में ग्वादर बंदरगाह से जोड़ना है।
- यह चीन के लिये ग्वादर पोर्ट से मध्य पूर्व और अफ्रीका तक पहुँचने का मार्ग प्रशस्त करेगा, जिससे चीन हिंद महासागर तक पहुँच सकेगा।
- CPEC, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का एक हिस्सा है। वर्ष 2013 में शुरू किये गए ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ का उद्देश्य दक्षिण-पूर्व एशिया, मध्य एशिया, खाड़ी क्षेत्र, अफ्रीका और यूरोप को भूमि और समुद्री मार्गों के नेटवर्क से जोड़ना है।
- भारत CPEC की गंभीर रूप से आलोचना करता रहा है, क्योंकि यह पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरता है, जो भारत और पाकिस्तान के बीच एक विवादित क्षेत्र है।
- भारत के लिये CPEC के विस्तार के निहितार्थ:
- रिक्त स्थान की पूर्ति: अमेरिकी बलों द्वारा अफगानिस्तान को छोड़ने के बाद चीन, अफगानिस्तान में उत्पन्न हुई शून्य स्थिति को अपनी बेल्ट एंड रोड (Belt and Road- BRI) पहल द्वारा भरने की कोशिश कर रहा है।
- चाबहार बंदरगाह का मुद्दा: अफगानिस्तान के CPEC में शामिल होने से भारत, ईरान में चाबहार बंदरगाह में किये गये अपने निवेश को लेकर आशंकित है।
- भारत की चिंता भारत-ईरान-अफगानिस्तान के त्रिपक्ष के कमज़ोर होने को लेकर है, जो चाबहार बंदरगाह के माध्यम से अफगानिस्तान को समुद्र तक पहुंँच प्रदान करता है।
- भारत के आर्थिक प्रभाव का कमज़ोर होना: CPEC के विस्तार का प्रयास अफगानिस्तान के आर्थिक, सुरक्षा और रणनीतिक साझेदार के रूप में भारत की स्थिति को कमज़ोर कर सकता है।
- भारत, अफगानिस्तान में सबसे बड़ा क्षेत्रीय अनुदान सहायता देने वाला देश है, जिसने सड़कों, बिजली संयंत्रों, बाँधों, संसद भवन, ग्रामीण विकास, शिक्षा, बुनियादी अवसंराचना सहित विकास कार्यों के लिये 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की प्रतिबद्धता अफगानिस्तान के प्रति ज़ाहिर की है।
- CPEC के विस्तार के साथ चीन अफगानिस्तान में भारत के आर्थिक प्रभाव को नियंत्रित करने में अग्रणी भूमिका निभाएगा।
- आतंकवाद और सामरिक चिंताएंँ: अफगानिस्तान में भारत की सीमित रणनीतिक पहुँच को देखते हुए, चीन अफगानिस्तान में अपने रणनीतिक स्थिति का लाभ उठा सकता है।
- इसके अलावा, CPEC में अफगानिस्तान के शामिल होने से निश्चित रूप से उसे आर्थिक विकास में मदद मिलेगी, लेकिन साथ ही इससे पाकिस्तान को भारत के संदर्भ में एक बेहतर स्थिति हासिल करने में भी मदद मिलेगी।
- ऐसे स्थिति में पाकिस्तान भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा दे सकता है।
- सामरिक हवाई अड्डे का नियंत्रण: CPEC के साथ अपने मुद्दों के अलावा भारत इस संभावना से भी आशंकित रहेगा कि चीन, अफगानिस्तान में वायु सेना के बगराम हवाई अड्डे पर कब्ज़ा करने की कोशिश कर सकता है।
- बगराम हवाई अड्डा सबसे बड़ा हवाई अड्डा है और तकनीकी रूप से अच्छी तरह से सुसज्जित है, क्योंकि इसे अमेरिकी सेना द्वारा उपयोग किया गया था।
- दुर्लभ पृथ्वी खनिजों का दोहन: CPEC के विस्तार के साथ चीन, अफगानिस्तान के समृद्ध खनिजों और अत्यधिक आकर्षक दुर्लभ-पृथ्वी खानों का भी दोहन करना चाहता है।
- दुर्लभ-पृथ्वी धातुएँ, जो उन्नत इलेक्ट्रॉनिक प्रौद्योगिकियों और उच्च तकनीक मिसाइल मार्गदर्शन प्रणालियों के लिये प्रमुख घटक हैं।
आगे की राह
- अफगानिस्तान और काफी हद तक पाकिस्तान के अशांत क्षेत्रों में CPEC को सफल बनाने के लिये यह आवश्यक हो गया है कि चीन इस क्षेत्र में सुरक्षा स्थिति को स्थिर करे।
- अफगानिस्तान में बुनियादी ढाँचे और सुरक्षा की स्थिति बेहतर होने से भारत को अपनी आर्थिक एवं व्यापारिक गतिविधियों को सुचारू रूप से संचालित करने में मदद मिल सकती है।
- हालाँकि भारत के खिलाफ चीन, पाकिस्तान और तालिबान की शत्रुता को देखते हुए, अफगानिस्तान का CPEC में शामिल होना निश्चित रूप से चीन के लिये एक रणनीतिक लाभ और भारत के लिये नुकसान होगा।