RCEP को लेकर भारत करेगा पुनर्विचार
प्रिलिम्स के लिये:विश्व बैंक, क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP), वैश्विक मूल्य शृंखला (GVC), राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति- 2022, FDI, मुक्त व्यापार समझौते (FTA), राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स नीति-2019, उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना 2020, आसियान (ASEAN) मेन्स के लिये:क्षेत्रीय समूह और भारत पर इसका प्रभाव, RCEP को लेकर भारत की चिंताएँ |
स्रोत: इकॉनोमिक्स टाइम्स
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व बैंक के नवीनतम इंडिया डेवलपमेंट अपडेट: इंडियाज़ अपरच्युनिटी इन अ चेंजिंग ग्लोबल कॉन्टेक्स्ट में, भारत को क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) में शामिल होने पर पुनर्विचार करने का सुझाव दिया गया।
- एक भारतीय थिंक टैंक ने इस विचार को यह कहते हुए खारिज़ कर दिया कि यह त्रुटिपूर्ण मान्यताओं और पुराने अनुमानों पर आधारित है।
भारत के RCEP से हटने के बारे में विश्व बैंक का विश्लेषण क्या है?
- आय लाभ: विश्व बैंक के एक अध्ययन के अनुसार यदि भारत समझौते में फिर से शामिल होता है तो उसकी आय में सालाना 60 बिलियन अमरीकी डॉलर की वृद्धि होगी और यदि वह ऐसा नहीं करता है तो 6 बिलियन अमरीकी डॉलर की कमी आएगी।
- ये लाभ कच्चे माल, हल्के और उन्नत विनिर्माण एवं सेवाओं सहित विभिन्न क्षेत्रों में होंगे।
- निर्यात वृद्धि: RCEP में शामिल होने से विपणन, बैंकिंग और कंप्यूटर सहित सेवाओं के निर्यात में संभावित 17% की वृद्धि का अनुमान है।
- आर्थिक लाभ से इनकार: भारत के बिना RCEP (भारत के बिना) से वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में 186 बिलियन अमरीकी डॉलर की वृद्धि होगी और सदस्य देशों के सकल घरेलू उत्पाद में स्थायी आधार पर सालाना 0.2% की वृद्धि होगी।
- मुख्य लाभार्थी चीन (85 बिलियन अमरीकी डॉलर), जापान (48 बिलियन अमरीकी डॉलर) और दक्षिण कोरिया (23 बिलियन अमरीकी डॉलर) होंगे।
- भारत RCEP से होने वाले आर्थिक लाभ का एक बड़ा हिस्सा खो देगा।
- व्यापार विपथन/स्थानांतरण जोखिम: RCEP से बाहर रहने से भारत को व्यापार स्थानांतरण का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि व्यापार ब्लॉक के सदस्य आपूर्ति शृंखलाओं को स्थानांतरित कर सकते हैं और आपस में प्रतिस्पर्द्धा बढ़ा सकते हैं, जिससे संभावित रूप से RCEP राष्ट्रों में भारत द्वारा निर्यात को नुकसान पहुँच सकता है।
- संभावित नए सदस्य: बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे दक्षिण एशियाई देशों ने हाल ही में RCEP में शामिल होने में रुचि दिखाई है।
- वास्तव में भारत RCEP के प्रभावों से पूरी तरह मुक्त नहीं सकता, क्योंकि श्रीलंका जैसे देशों के साथ भारत के मुक्त व्यापार समझौते (FTA) है।
भारत की निर्यात रणनीति और व्यापार नीति के संदर्भ में विश्व बैंक का मूल्यांकन क्या है?
- निर्यात विविधीकरण की आवश्यकता: समय के साथ सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में भारत का वस्तु व्यापार कम हुआ है तथा वैश्विक मूल्य शृंखलाओं (GVC) में इसकी भागीदारी भी कम हुई है।
- GVC की भागीदारी में वृद्धि: GVC में एकीकरण करके भारत:
- उच्चतर मूल्यवर्धित वस्तुओं के उत्पादन में भाग लेकर अपने उत्पादन की विविधता का विस्तार करेगा।
- उन्नत प्रौद्योगिकियों और वैश्विक बाज़ारों तक पहुँच प्राप्त करके अपनी प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाएगा।
- भारत में उत्पादन करने की इच्छुक बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा FDI प्रवाह में वृद्धि करेगा।
- उदारीकरण और संरक्षणवाद में संतुलन: भारत की व्यापार नीति में उदारीकरण और संरक्षणवाद दोनों ही उपाय शामिल हैं। उदाहरण के लिये, राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति 2022 और डिजिटल सुधार जैसी पहलों का उद्देश्य लॉजिस्टिक्स लागत को कम करना तथा व्यापार सुगमता में सुधार करना है।
- इसके विपरीत संरक्षणवादी उपायों में पुनः वृद्धि हुई है, जैसे टैरिफ में वृद्धि और गैर-टैरिफ बाधाएँ, जो भारत के खुले व्यापार को प्रतिबंधित करती हैं।
- व्यापार समझौते: हाल ही में UAE और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ हुए मुक्त व्यापार समझौते (FTA) अधिमान्य व्यापार समझौतों की ओर बदलाव का संकेत देते हैं। हालाँकि भारत संभावित लाभों के बावजूद क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (RCEP) जैसे बड़े व्यापार ब्लॉकों में शामिल होने से बचता रहा है।
- भारत की टैरिफ और औद्योगिक नीतियों का पुनर्मूल्यांकन: भारत मोबाइल फोन का शुद्ध निर्यातक बन गया है क्योंकि राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स नीति 2019, उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना 2020 जैसी नीतियों के कारण आयात में गिरावट के बीच निर्यात में वृद्धि हुई है।
- हालाँकि प्रमुख मध्यवर्ती सुझावों पर आयात शुल्क में हाल ही में की गई वृद्धि, जिसने वर्ष 2018 और 2021 के बीच औसत शुल्क को 4% से 18% तक ला दिया है, इस क्षेत्र की प्रतिस्पर्द्धात्मकता को खतरे में डालती है।
- भारत के लिये अवसर: भू-राजनीतिक जोखिमों की बढ़ती धारणा ने कंपनियों को अपनी सोर्सिंग रणनीतियों में विविधता लाने हेतु प्रेरित किया है।
- यह भारत जैसे देशों के लिये एक अवसर प्रस्तुत करता है, जहाँ प्रचुर कार्यबल और बढ़ता हुआ विनिर्माण आधार है।
भारत RCEP में शामिल होने पर पुनर्विचार क्यों अनिश्चित रहा है?
- विश्व बैंक के सुझाव में त्रुटिपूर्ण धारणाएँ: विश्व बैंक के अध्ययन में वर्ष 2030 तक 60 बिलियन अमेरिकी डॉलर की आय वृद्धि का अनुमान लगाया गया है, लेकिन इसमें यह नहीं माना गया है कि इनमें से अधिकांश लाभ आयात में वृद्धि से आएगा, जिससे व्यापार असंतुलन उत्पन्न होगा।
- RCEP सदस्यों के बीच व्यापार घाटा: RCEP के चालू होने के बाद से चीन के साथ आसियान का व्यापार घाटा वर्ष 2020 में 81.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2023 में 135.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है।
- इसी तरह चीन के साथ जापान का व्यापार घाटा वर्ष 2020 में 22.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2023 में 41.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया था।
- दक्षिण कोरिया को वर्ष 2024 में पहली बार चीन के साथ व्यापार घाटे का भी सामना करना पड़ सकता है।
- चीन-केंद्रित आपूर्ति शृंखलाओं पर अत्यधिक निर्भरता: RCEP सदस्यों का बढ़ता व्यापार घाटा चीन-केंद्रित आपूर्ति शृंखलाओं पर बढ़ती निर्भरता को उजागर करता है।
- यह निर्भरता महत्त्वपूर्ण जोखिम प्रस्तुत करती है, विशेष रूप से वैश्विक आपूर्ति शृंखला व्यवधानों के संदर्भ में, जैसा कि कोविड-19 महामारी के दौरान अनुभव किया गया।
- अनुचित प्रतिस्पर्द्धा: RCEP में शामिल न होकर भारत ने अन्य व्यापार समझौतों की संभावनाओं को तलाशना जारी रखा, जो चीन के पक्ष में अनुचित रूप से न हों या उसके आर्थिक हितों के लिये खतरा न हों।
- चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा वर्ष 2023-24 में बढ़कर 85 बिलियन अमेरिकी डॉलर होगा।
- वैकल्पिक व्यापार समझौते: भारत के पास पहले से ही न्यूज़ीलैंड और चीन को छोड़कर 15 RCEP सदस्यों में से 13 के साथ कई कार्यात्मक मुक्त व्यापार समझौते (FTA) हैं।
- "चाइना+1" रणनीति: RCEP में शामिल न होने का भारत का निर्णय, चीन पर निर्भरता से जुड़े जोखिमों को कम करने के लिये “चाइना+1” रणनीति अपनाने की वैश्विक प्रवृत्ति के अनुरूप है।
क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) क्या है?
- RCEP 10 आसियान देशों और उनके पाँच मुक्त व्यापार समझौते (FTA) भागीदारों: चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड के बीच एक व्यापार समझौता है।
- RCEP को नवंबर 2011 में 19वें आसियान शिखर सम्मेलन के दौरान प्रस्तुत किया गया था और नवंबर 2012 में इस पर चर्चा शुरू हुई थी।
- RCEP 1 जनवरी, 2022 को लागू हुआ।
- संयुक्त GDP (26 ट्रिलियन डॉलर), जनसंख्या (2.27 बिलियन) और हस्ताक्षरकर्ता पक्षों के कुल निर्यात मूल्य (5.2 ट्रिलियन डॉलर) के अनुसार यह विश्व का सबसे बड़ा FTA है।
आगे की राह
- द्विपक्षीय मुक्त व्यापार समझौते (FTA): यूनाइटेड किंगडम और यूरोपीय संघ जैसे नए साझेदारों के साथ व्यापक FTA के लिये बातचीत जल्द से जल्द पूरी की जानी चाहिए।
- खाड़ी देशों और अफ्रीका के साथ व्यापार समझौते: भारत को ऊर्जा, बुनियादी ढाँचे और डिजिटल सहयोग पर ध्यान केंद्रित करते हुए खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) देशों तथा अफ्रीकी देशों के साथ व्यापार समझौतों पर सक्रिय रूप से बातचीत एवं विस्तार करना चाहिए।
- वर्तमान क्षेत्रीय समूहों को सुदृढ करना: भारत को सार्क के भीतर क्षेत्रीय व्यापार एकीकरण की वार्ता जारी रखनी चाहिये और बिम्सटेक को सुदृढ़ करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जो दक्षिण तथा दक्षिण पूर्व एशिया को जोड़ता है।
- भारत-प्रशांत आर्थिक रूपरेखा (IPEF): भारत को चार प्रमुख क्षेत्रों में क्षेत्रीय सहयोग बढ़ाने के लिये आईपीईएफ में सक्रिय रूप से भाग लेकर अपनी "एक्ट ईस्ट नीति" को पूरक बनाना चाहिये: व्यापार, आपूर्ति शृंखला लचीलापन, स्वच्छ ऊर्जा और निष्पक्ष अर्थव्यवस्था।
- आत्मनिर्भर भारत: सरकार को घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देकर घरेलू विनिर्माण क्षमताओं और निर्यात को बढ़ाना चाहिए। मेक इन इंडिया 2.0 तथा उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (PLI) जैसी योजनाओं को नए सिरे से बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) से बाहर निकलने के भारत के फैसले का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये: (2018) 1- ऑस्ट्रेलिया उपर्युक्त में से कौन-से देश “आसियान के मुक्त व्यापार साझेदारों” में से हैं? (a) 1, 2, 4 और 5 उत्तर: (C) प्रश्न. 'क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी' शब्द अक्सर समाचारों में देशों के एक समूह के मामलों के संदर्भ में प्रकट होता है: (वर्ष 2016) (A) जी20 उत्तर: (B) |
प्रथम कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय AI संधि
प्रिलिम्स के लिये:आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), यूरोपीय संघ, जैव विविधता पर अभिसमय मेन्स के लिये:यूरोप के AI अभिसमय के संदर्भ में मुख्य तथ्य। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
काउंसिल ऑफ यूरोप के अनुसार, संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और यूरोपीय संघ के सदस्य कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) पर प्रथम कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय AI संधि पर हस्ताक्षर करने में सक्षम होंगे।
काउंसिल ऑफ यूरोप (COE)
- काउंसिल ऑफ यूरोप (COE) एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है, जिसकी स्थापना वर्ष 1949 में हुई थी और इसका मुख्यालय स्ट्रासबर्ग, फ्राँस में स्थित है।
- यह यूरोपीय संघ (EU) से अलग है और इसमें अधिकांश यूरोपीय देशों सहित 46 सदस्य देश शामिल हैं।
- COE का प्राथमिक मिशन अपने सदस्य देशों में लोकतंत्र, मानवाधिकारों और विधि के शासन को बनाए रखना तथा उसे बढ़ावा देना है।
AI अभिसमय के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- परिचय:
- "आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मानवाधिकार, लोकतंत्र एवं कानून के शासन पर फ्रेमवर्क अभिसमय (The Framework Convention on Artificial Intelligence and Human Rights, Democracy, and the Rule of Law)", मुख्य रूप से AI प्रणालियों से प्रभावित व्यक्तियों के मानवाधिकारों के संरक्षण पर ज़ोर देता है तथा यूरोपीय संघ के AI अधिनियम से स्वतंत्र रूप से संचालित होता है।
- यूरोपीय संघ AI अधिनियम यूरोपीय संघ के आंतरिक बाज़ार में AI प्रणालियों के विकास, परिनियोजन और उपयोग को नियंत्रित करने वाले व्यापक नियम स्थापित करता है।
- AI अभिसमय पर कई वर्षों से कार्य चल रहा था और इसे 57 देशों के बीच विचार-विमर्श के बाद मई 2024 में अपनाया गया।
- इसका उद्देश्य नवाचार को बढ़ावा देते हुए कृत्रिम बुद्धिमत्ता से जुड़े जोखिमों को कम करना है।
- "आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मानवाधिकार, लोकतंत्र एवं कानून के शासन पर फ्रेमवर्क अभिसमय (The Framework Convention on Artificial Intelligence and Human Rights, Democracy, and the Rule of Law)", मुख्य रूप से AI प्रणालियों से प्रभावित व्यक्तियों के मानवाधिकारों के संरक्षण पर ज़ोर देता है तथा यूरोपीय संघ के AI अधिनियम से स्वतंत्र रूप से संचालित होता है।
- संधि की शर्तें:
- मानव-केंद्रित AI: संधि में यह अनिवार्य किया गया है कि AI प्रणालियों को मानवाधिकार सिद्धांतों के अनुरूप विकसित और संचालित किया जाना चाहिये ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे लोकतांत्रिक मूल्यों का समर्थन एवं संरक्षण करते हैं।
- पारदर्शिता और जवाबदेही: इस संधि में प्रावधान है कि AI प्रणालियों, विशेषकर मनुष्यों के साथ अंतःक्रिया करने वाली प्रणालियों को पारदर्शी रूप से संचालित किया जाना चाहिये।
- इसमें सरकारों से यह भी अपेक्षा की गई है कि वे AI प्रणालियों द्वारा मानव अधिकारों का उल्लंघन किये जाने पर कानूनी उपाय उपलब्ध कराएँ।
- जोखिम प्रबंधन और निरीक्षण: यह संधि AI से जुड़े जोखिमों का आकलन और प्रबंधन करने के लिये रूपरेखा स्थापित करती है, साथ ही सुरक्षा एवं नैतिक मानकों का पालन सुनिश्चित करने हेतु निरीक्षण तंत्र भी स्थापित करती है।
- दुरुपयोग के विरुद्ध संरक्षण: संधि में न्यायिक स्वतंत्रता के संरक्षण और न्याय तक जनता की पहुँच सुनिश्चित करने सहित लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को कमज़ोर करने हेतु AI के उपयोग को रोकने के लिये सुरक्षा उपाय शामिल किये गए हैं।
- प्रमुख प्रवर्तन तंत्र:
- कानूनी जवाबदेही: हस्ताक्षरकर्त्ता देशों को यह सुनिश्चित करने के लिये विधायी और प्रशासनिक उपाय करने की आवश्यकता है कि AI प्रणालियाँ संधि के सिद्धांतों जैसे मानव अधिकारों तथा AI परिनियोजन में जवाबदेही का पालन करें।
- निगरानी और निरीक्षण: संधि AI मानकों के अनुपालन की निगरानी के लिये निरीक्षण तंत्र स्थापित करती है।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: यह संधि AI मानकों में सामंजस्य स्थापित करने, सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने और AI प्रौद्योगिकियों की वैश्विक प्रकृति को मान्यता देते हुए अंतर्राष्ट्रीय AI मुद्दों को हल करने के लिये हस्ताक्षरकर्त्ताओं के बीच सहयोग को बढ़ावा देती है।
- अनुकूलनशीलता: इस ढाँचे को प्रौद्योगिकी-तटस्थ रहने हेतु विकसित किया गया है, जिससे यह AI में प्रगति के साथ-साथ विकसित हो सके तथा यह सुनिश्चित हो सके कि AI प्रौद्योगिकियों की तीव्र प्रगति के बावजूद मानक प्रासंगिक और लागू करने योग्य बने रहें।
- संधि में अपवाद: यह संधि राष्ट्रीय सुरक्षा या रक्षा में प्रयुक्त होने वाली प्रणालियों को छोड़कर सभी AI प्रणालियों पर लागू होती है, हालाँकि इसमें अभी भी यह अपेक्षा की गई है कि ये गतिविधियाँ अंतर्राष्ट्रीय कानूनों और लोकतांत्रिक सिद्धांतों का सम्मान करें।
AI अभिसमय का महत्त्व क्या है?
- व्यापक प्रारूपण: संधि का मसौदा सावधानीपूर्वक तैयार किया गया था, जिसमें AI प्रणालियों के संरचना, विकास, उपयोग और डीकमीशनिंग (decommissioning) के लिये जोखिम-आधारित दृष्टिकोण अपनाया गया था।
- व्यापक प्रयोज्यता: यह विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में प्रवर्तन के साथ सार्वजनिक क्षेत्र और निजी क्षेत्र दोनों में AI प्रणालियों पर लागू होता है।
- वैश्विक कानूनी मानक: कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर फ्रेमवर्क अभिसमय अपनी तरह की पहली वैश्विक रूप से बाध्यकारी संधि है, जिसे साझा मूल्यों वाले विभिन्न महाद्वीपों के देशों द्वारा समर्थित अंतर्राष्ट्रीय कानूनी मानक की आवश्यकता को पूरा करने हेतु तैयार किया गया है।
- नवाचार और जोखिम में संतुलन: संधि का उद्देश्य AI के लाभों का दोहन करते हुए इसके अनुकूल उपयोग को बढ़ावा देना है, साथ ही इससे जुड़े जोखिमों को प्रभावी ढंग से कम करना है तथा यह सुनिश्चित करना है कि AI का विकास मानव अधिकारों, विधि के शासन और लोकतांत्रिक सिद्धांतों के अनुरूप हो।
AI अभिसमय के मुद्दे और चिंताएँ क्या हैं?
- प्रवर्तन पर चिंताएँ: "कानूनी रूप से बाध्यकारी" घोषित कर दिये जाने के बावजूद, इस संधि ने दंडात्मक प्रतिबंधों, जैसे कि जुर्माना या दंड के प्रावधानों की कमी के कारण चिंताएँ उत्पन्न की हैं, जो प्रवर्तन के दृष्टिकोण से इसके निवारक प्रभाव को कमज़ोर करता है।
- निगरानी पर निर्भरता: संधि का अनुपालन मुख्य रूप से "निगरानी" तंत्र के माध्यम से सुनिश्चित किया जाता है, जो संधि के प्रावधानों को प्रभावी ढंग से लागू करने हेतु पर्याप्त नहीं हो सकता है।
- विनियमन और नवाचार को संतुलित करना: कड़े विनियमन और नवाचार को बढ़ावा देने के बीच सही संतुलन बनाना एक महत्त्वपूर्ण चिंता का विषय है। अत्यधिक विनियामक बोझ AI प्रौद्योगिकियों के विकास को बाधित कर सकता है, विशेष रूप से लघु एवं मध्यम उद्यमों (SME) और स्टार्ट-अप के लिये, जिससे वैश्विक AI बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धात्मकता प्रभावित हो सकती है।
- राष्ट्रीय संप्रभुता बनाम अंतर्राष्ट्रीय मानक: संधि के प्रावधान राष्ट्रीय कानूनों के साथ टकराव उत्पन्न कर सकते हैं, जिससे राज्य संप्रभुता के बीच तनाव उत्पन्न हो सकता है।
- राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं का समाधान: सम्मेलन राष्ट्रीय सुरक्षा हितों के साथ AI शासन को संतुलित करने का प्रयास करता है, जबकि रक्षा और खुफिया गतिविधियों के साथ AI का प्रतिच्छेदन चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है। यह सुनिश्चित करता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता नहीं किया जा रहा है, जबकि नैतिक AI प्रथाओं को बनाए रखने के लिये एक संतुलन अधिनियम की आवश्यकता है, जिसे हासिल करने के लिये इस संधि को समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
निष्कर्ष
“आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मानवाधिकार, लोकतंत्र तथा कानून के शासन पर फ्रेमवर्क अभिसमय” आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के वैश्विक शासन में एक महत्त्वपूर्ण प्रगति को चिह्नित करता है। AI, मानवाधिकार, लोकतंत्र और विधि के शासन के बीच महत्त्वपूर्ण अंतरसंबंधों को शामिल करके, यह वर्तमान नियामक संरचनाओं में एक महत्त्वपूर्ण कमी का समाधान करता है। राष्ट्रीय सुरक्षा विचारों के प्रावधानों सहित इसका व्यापक दायरा ज़िम्मेदार AI शासन के लिये एक बेंचमार्क स्थापित करता है, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देता है एवं ऐसे मानक निर्धारित करता है, जो क्षेत्रीय एवं वैश्विक दोनों स्तरों पर प्रतिध्वनित हो सकते हैं।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: ग्लोबल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस गवर्नेंस शासन के संदर्भ में यूरोप के AI अभिसमय से जुड़े प्रमुख मुद्दों और चिंताओं पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न. विकास की वर्तमान स्थिति के साथ कृत्रिम बुद्धिमत्ता निम्नलिखित में से क्या प्रभावी ढंग से कर सकता है? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2, 3 और 5 उत्तर: (b) |
ग्रामीण विद्युतीकरण के विभेदक लाभ
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जनगणना 2011 पर आधारित एक अध्ययन में 'राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना (RGGVY)' के प्रभावों की जाँच की गई, जिसका उद्देश्य पूरे भारत में 4,00,000 से अधिक गाँवों में विद्युत ऊर्जा की आपूर्ति सुनिश्चित करना था।
- RGGVY (प्रारंभ- वर्ष 2005) का नाम वर्ष 2014 में बदलकर दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना (DDUGJY) कर दिया गया।
अध्ययन के मुख्य तथ्य क्या हैं?
- बड़े गाँवों को असमानुपातिक लाभ: बड़े गाँवों (लगभग 2,000 लोग) को छोटे गाँवों (300 लोग) की तुलना में पूर्ण विद्युतीकरण से पर्याप्त आर्थिक लाभ हुआ।
- छोटे गाँवों में 20 वर्ष बाद भी विद्युतीकरण से कोई लाभ नहीं हुआ।
- बड़े गाँवों में 33% का बहुत अधिक रिटर्न दिखा, जिसमें 90% संभावना है कि आर्थिक लाभ विद्युतीकरण लागत से अधिक होगा।
- प्रति व्यक्ति मासिक व्यय पर प्रभाव: छोटे गाँवों में विद्युतीकरण के बाद प्रति व्यक्ति मासिक व्यय में न्यूनतम परिवर्तन दर्ज किया गया, जो सीमित आर्थिक लाभ का संकेत देता है।
- इसके विपरीत बड़े गाँवों में प्रति व्यक्ति मासिक व्यय में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई, जो पूर्ण विद्युतीकरण के कारण दोगुनी हो गई। यह वृद्धि लगभग 1,428 रुपए (लगभग 17 अमेरिकी डॉलर) प्रति माह थी।
दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना (DDUGJY) क्या है?
- परिचय: यह विद्युत मंत्रालय की एक ग्रामीण विद्युतीकरण योजना है, जिसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में निरंतर 24x7 विद्युत ऊर्जा की आपूर्ति प्रदान करना है, जो सार्वभौमिक ऊर्जा पहुँच के लिये सरकार के व्यापक दृष्टिकोण के अनुरूप है।
- DDUGJY के घटक:
- कृषि एवं गैर-कृषि उपभोक्ताओं को विद्युत ऊर्जा का विवेकपूर्ण वितरण सुनिश्चित करना।
- विद्युत ह्रास को कम करने और दक्षता में सुधार करने के लिये वितरण ट्रांसफॉर्मर, फीडर तथा उपभोक्ताओं की मीटरिंग।
- दूरस्थ एवं पृथक क्षेत्रों तक बिजली की पहुँच सुनिश्चित करने के लिये माइक्रोग्रिड एवं ऑफ-ग्रिड की स्थापना।
- नोडल एजेंसी: ग्रामीण विद्युतीकरण निगम लिमिटेड (REC) विद्युत मंत्रालय के समग्र मार्गदर्शन में DDUGJY के कार्यान्वयन के लिये जिम्मेदार नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करता है।
विद्युतीकरण के लिये अन्य पहल क्या हैं?
- सौभाग्य योजना
- एकीकृत विद्युत विकास योजना (IPDS)
- उज्जवल डिस्कॉम एश्योरेंस योजना (UDAY)
- GARV (ग्रामीण विद्युतीकरण) ऐप
और पढ़ें: सौभाग्य योजना
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: ग्रामीण विद्युतीकरण भारत में सामाजिक-आर्थिक विकास का एक महत्त्वपूर्ण घटक है। चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. कभी-कभी समाचारों में 'नेट मीटरिंग (Net metering)' निम्नलिखित में से किसको प्रोत्साहित करने के संदर्भ में देखा जाता है? (2016) (a) परिवारों/उपभोक्ताओं द्वारा सौर ऊर्जा का उत्पादन और उपयोग उत्तर: (a) मेन्सप्रश्न. "वहनीय (ऐफोर्डेबल), विश्वसनीय, धारणीय तथा आधुनिक ऊर्जा तक पहुँच संधारणीय (सस्टेनबल) विकास लक्ष्यों (एस.डी.जी.) को प्राप्त करने के लिये अनिवार्य है।" भारत में इस संबंध में हुई प्रगति पर टिप्पणी कीजिये। (2018) |
प्रधानमंत्री किसान मानधन योजना के 5 वर्ष
प्रिलिम्स के लिये:प्रधानमंत्री किसान मानधन योजना (PM-KMY), प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-KISAN), राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र, भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC), कॉमन सर्विस सेंटर (CSC), राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना (NeGP), मेन्स के लिये:प्रधानमंत्री किसान मानधन योजना (PM-KMY) के प्रभाव का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
12 सितंबर, 2019 को शुरू की गई प्रधानमंत्री किसान मानधन योजना (PM-KMY) ने हाल ही में सफलतापूर्वक पाँच वर्ष पूरे कर लिये।
प्रधानमंत्री किसान मानधन योजना (PM-KMY) क्या है?
- परिचय:
- पात्रता: यह योजना सभी जोतधारक लघु एवं सीमांत किसानों (देश में वे किसान जिनके पास दो हेक्टेयर तक भूमि है) को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिये शुरू की गई है।
- वर्तमान स्थिति:
- अगस्त, 2024 तक 23.38 लाख किसान इस योजना के तहत पंजीकृत हो चुके हैं, जिनमें बिहार और झारखंड पंजीकरण में अग्रणी हैं।
- उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओडिशा में क्रमशः 2.5 लाख, 2 लाख और 1.5 लाख से अधिक किसान पंजीकृत हो चुके हैं।
- यह व्यापक भागीदारी छोटे और सीमांत किसानों के बीच बढ़ती जागरूकता एवं योजना को अपनाने की बढ़ती प्रवृत्ति को दर्शाती है, जो इस कमज़ोर वर्ग के लिये वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने में इसके महत्त्व को दर्शाती है।
- अगस्त, 2024 तक 23.38 लाख किसान इस योजना के तहत पंजीकृत हो चुके हैं, जिनमें बिहार और झारखंड पंजीकरण में अग्रणी हैं।
- PM-KMY के अंतर्गत प्रमुख लाभ:
- मासिक अंशदान: नामांकन के दौरान अंशदाता की आयु के आधार पर अंशदान 55 रुपए से 200 रुपए तक किया जाता है।
- समान सरकारी अंशदान: केंद्र सरकार पेंशन निधि में अभिदाता/अंशदाता के बराबर राशि का अंशदान करती है।
- न्यूनतम सुनिश्चित पेंशन: 60 वर्ष की आयु पूरी करने पर प्रत्येक अंशदाता को 3,000 रुपए प्रति माह की गारंटीकृत न्यूनतम पेंशन दी जाती है।
- पारिवारिक पेंशन: अंशदाता की मृत्यु पर, उसके पति/पत्नी को 1,500 रुपए प्रति माह की पारिवारिक पेंशन मिलेगी, बशर्ते कि वे पहले से ही योजना के लाभार्थी न हों।
- PM-KISAN लाभ: छोटे एवं सीमांत किसान (SMF) स्वतः डेबिट हेतु आवश्यक स्वीकृति के साथ स्वैच्छिक योगदान के लिये अपने प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-KISAN) लाभ का उपयोग कर सकते हैं।
- निर्धारित अवधि से पूर्व पेंशन योजना से अलग होना:
- यदि अभिदाता 60 वर्ष की आयु से पूर्व योजना से अलग हो जाता है तो उसे उसके अंशदान के साथ-साथ संचित ब्याज भी मिलेगा।
- यदि किसी अभिदाता की पेंशन प्राप्ति के दौरान मृत्यु हो जाती है, तो उसके जीवनसाथी को अभिदाता को प्राप्त होने वाली राशि के 50% के बराबर पारिवारिक पेंशन अर्थात 1500 रुपए प्रति माह पारिवारिक पेंशन का हकदार माना जाएगा।
- अभिदाता या उसके पति/पत्नी की मृत्यु होने पर शेष धनराशि निधि में वापस कर दी जाएगी।
- योजना का प्रबंधन:
- पेंशन निधि का प्रबंधन भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) द्वारा तथा पंजीकरण कॉमन सर्विस सेंटर (CSC) और राज्य सरकारों के माध्यम से किया जाता है।
प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-KISAN)
- परिचय:
- इस योजना के अंतर्गत केंद्र सरकार सभी जोतधारक किसानों के बैंक खातों में तीन समान किस्तों में प्रति वर्ष 6,000 रुपए की राशि सीधे अंतरित करती है, चाहे उनकी जोत का आकार कुछ भी हो।
- इसे फरवरी 2019 में लॉन्च किया गया था।
- वित्तपोषण और कार्यान्वयन:
- यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है, जिसका 100% वित्तपोषण भारत सरकार द्वारा किया जाता है।
- इसका क्रियान्वयन कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा किया जा रहा है।
- लाभार्थियों का अभिनिर्धारण:
- लाभार्थी किसान परिवारों के अभिनिर्धारण की पूरी जिम्मेदारी राज्य/संघ राज्य क्षेत्र सरकारों की है।
- उद्देश्य:
- प्रत्येक फसल चक्र के अंत में प्रत्याशित कृषि आय के अनुरूप उचित फसल स्वास्थ्य और उपयुक्त उपज सुनिश्चित करने के लिये विभिन्न कृषि आदान प्राप्त करने में छोटे एवं सीमांत किसानों की वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करना।
- ऐसे खर्चों को वहन करने के लिये साहूकारों के चंगुल में फँसने से उन्हें बचाना तथा कृषि गतिविधियों में उनकी निरंतरता सुनिश्चित करना।
कृषि से संबंधित सरकार की प्रमुख पहल क्या हैं?
- प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY)
- मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना
- प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY)
- राष्ट्रीय कृषि ई-बाज़ार (e-NAM)
- परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY)
- डिजिटल कृषि मिशन
- एकीकृत किसान सेवा मंच (UFSP)
- कृषि में राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना (NeGP-A)
- पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिये जैविक मूल्य शृंखला विकास मिशन (MOVCDNER)
निष्कर्ष
अपने कार्यान्वयन के पाँच वर्षों में PM-KMY ने पूरे भारत में छोटे और सीमांत किसानों (SMF) को बहुत हद तक सशक्त बनाया है। इस योजना की प्रमुख उपलब्धियों में से एक किसानों को वित्तीय स्थिरता प्रदान करने में इसकी भूमिका है, जिनमें से कई को कृषि की मौसमी प्रकृति और आय में उतार-चढ़ाव के कारण अनिश्चित भविष्य का सामना करना पड़ता है। सेवानिवृत्ति के वर्षों के लिये पेंशन सुनिश्चित करके, इस योजना ने ग्रामीण आबादी के लिये सामाजिक सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण अंतर को दूर किया है। विगत पाँच वर्षों में इसकी सफलता देश के 'अन्नदाता' के जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाने में इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करती है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत में छोटे और सीमांत किसानों (SMF) की वित्तीय सुरक्षा पर प्रधानमंत्री किसान मानधन योजना (PM-KMY) के प्रभाव पर चर्चा कीजिये। |
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. ‘किसान क्रेडिट कार्ड’ योजना के अंतर्गत निम्नलिखित में से किन-किन उद्देश्यों के लिये कृषकों को अल्पकालीन ऋण सहायता उपलब्ध कराया जाता है? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2 और 5 उत्तर: (b) प्रश्न. भारत में निम्नलिखित में से किन्हें कृषि में सार्वजनिक निवेश माना जा सकता है। (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये- (a) केवल 1, 2 और 5 उत्तर: (c) मेन्सप्रश्न. न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से आप क्या समझते हैं? न्यूनतम समर्थन मूल्य कृषकों का निम्न आय के जाल से किस प्रकार बचाव करेगा? (2018) |
भारत विश्व का सबसे बड़ा प्लास्टिक प्रदूषक
प्रारंभिक परीक्षा के लिये:केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB), लोक लेखा समिति (PAC), प्लास्टिक अपशिष्ट, विस्तारित निर्माता ज़िम्मेदारी (EPR) नियम, प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 मुख्य परीक्षा के लिये:प्लास्टिक अपशिष्ट प्रदूषण और पर्यावरण एवं मानव स्वास्थ्य पर इसका प्रभाव। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
नेचर जर्नल में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन में यह बात सामने आई है कि वैश्विक प्लास्टिक प्रदूषण में भारत का योगदान सर्वाधिक है।
- विश्व भर में उत्पन्न कुल प्लास्टिक अपशिष्ट का लगभग 5वाँ हिस्सा भारत में उत्पन्न होता है।
अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?
- प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पादन: भारत में प्रतिवर्ष लगभग 9.3 मिलियन टन प्लास्टिक प्रदूषण उत्पन्न होता है। इसमें से 5.8 मिलियन टन (MT) अपशिष्ट का दहन कर दिया जाता है, जबकि 3.5 मिलियन टन मलबे के रूप में पर्यावरण में उत्सर्जित कर दिया जाता है।
- यह आँकड़ा नाइजीरिया (3.5 मिलियन mt), इंडोनेशिया (3.4 मिलियन टन) और चीन (2.8 मिलियन टन) की तुलना में काफी अधिक है।
- भारत में अपशिष्ट उत्पादन की दर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन लगभग 0.12 किलोग्राम है।
- वैश्विक उत्तर-दक्षिण विभाजन: प्लास्टिक अपशिष्ट उत्सर्जन दक्षिणी एशिया, उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिण-पूर्वी एशिया के देशों में सर्वाधिक है।
- ग्लोबल साउथ में भारत जैसे देश प्रायः अपशिष्ट प्रबंधन के लिये खुले में अपशिष्ट दहन पर निर्भर रहते हैं, जबकि ग्लोबल नॉर्थ नियंत्रित तंत्रों के तहत अपशिष्ट प्रबंधन करता है, जिसके परिणामस्वरूप अप्रबंधित अपशिष्ट तुलनात्मक रूप से कम होता है।
- उच्च और निम्न आय वाले देशों के बीच असमानता: वैश्विक स्तर पर प्रति वर्ष 69% या 35.7 मीट्रिक टन प्लास्टिक अपशिष्ट उत्सर्जन 20 देशों में होता है।
- ग्लोबल साउथ में प्लास्टिक प्रदूषण मुख्य रूप से निम्न स्तरीय अपशिष्ट प्रबंधन के कारण खुले में अपशिष्ट दहन से होता है, जबकि ग्लोबल नॉर्थ में यह अधिकतर अनियंत्रित मलबे से होता है।
- उच्च आय वाले देशों में प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पादन दर अधिक है, लेकिन 100% अपशिष्ट संग्रहण कवरेज और नियंत्रित निपटान के कारण वे शीर्ष 90 प्रदूषकों में शामिल नहीं हैं।
अनुसंधान की आलोचना:
- संकीर्ण फोकस: अध्ययन में अपशिष्ट प्रबंधन पर अत्यधिक ज़ोर दिया गया तथा प्लास्टिक उत्पादन को कम करने की आवश्यकता की उपेक्षा की गई।
- गलत प्राथमिकताएँ: यह एकल-उपयोग प्लास्टिक को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने जैसे समाधानों से ध्यान हटा सकता है।
- उद्योग समर्थन: प्लास्टिक उद्योग समूहों द्वारा समर्थन से व्यापक पर्यावरणीय लक्ष्यों के बजाय उद्योग हितों के साथ तालमेल स्थापित करने के संदर्भ में चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।
- व्यापक समाधानों को कमज़ोर करना: अपशिष्ट प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करके, अध्ययन ने उत्पादन और पुनर्चक्रण संबंधी मुद्दों को हल करना और भी कठिन बना दिया है।
भारत में उच्च प्लास्टिक प्रदूषण के क्या कारण हैं?
- तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या और शहरीकरण: भारत की बढ़ती जनसंख्या और संपन्नता के कारण खपत तथा अपशिष्ट उत्पादन में वृद्धि हो रही है। शहरीकरण प्लास्टिक उत्पादों एवं पैकेजिंग की मांग को बढ़ाकर समस्या को और बढ़ा रहा है।
- अपर्याप्त अपशिष्ट प्रबंधन अवसंरचना: भारत का अपशिष्ट प्रबंधन अवसंरचना अपशिष्ट की बड़ी मात्रा के प्रबंधन के लिये अपर्याप्त है, जिसमें सैनिटरी लैंडफिल की तुलना में अनियंत्रित डम्पिंग स्थल अधिक हैं, जो निम्न स्तरीय निपटान उपायों और प्रथाओं को दर्शाता है।
- अपशिष्ट संग्रहण आँकड़ों में विसंगतियाँ: भारत की आधिकारिक अपशिष्ट संग्रहण दर 95% बताई गई है, जबकि शोध से पता चलता है कि वास्तविक दर लगभग 81% है, जिससे प्रबंधन दक्षता में बहुत बड़े अंतर का पता चलता है।
- खुले में अपशिष्ट का दहन: भारत में प्रत्येक वर्ष लगभग 5.8 मिलियन टन प्लास्टिक अपशिष्ट को जलाया जाता है, जिससे प्रदूषण बढ़ता है तथा विषैले प्रदूषक उत्सर्जित होते हैं, जो स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिये खतरा उत्पन्न करते हैं।
- अनौपचारिक क्षेत्र पुनर्चक्रण: अनियमित अनौपचारिक पुनर्चक्रण क्षेत्र में बहुत अधिक प्लास्टिक अपशिष्ट का निपटान किया जाता है, जिसका आधिकारिक आँकड़ों में उल्लेख नहीं होता, जिससे प्लास्टिक प्रदूषण के स्तर का अध्ययन और भी जटिल हो जाता है।
भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट के प्रबंधन से जुड़े मुद्दे क्या हैं?
- पर्यावरण क्षरण: प्लास्टिक अपशिष्ट जलमार्गों को अवरुद्ध करता है, जिससे बाढ़ और समुद्री प्रदूषण होता है। यह समुद्री जीवन को नुकसान पहुँचाता है, जबकि इके दहन से जहरीले प्रदूषक मुक्त होते हैं, जिससे वायु की गुणवत्ता खराब होती है।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ: जल और भोजन में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक्स से दीर्घकालिक स्वास्थ्य जोखिम उत्पन्न होते हैं।
- प्लास्टिक अपशिष्ट रोगवाहकों के लिये प्रजनन आधार बनाता है, जिससे डेंगू और मलेरिया जैसी बीमारियों का प्रसार बढ़ता है।
- प्लास्टिक अपशिष्ट को जलाने से हानिकारक पदार्थ भी मुक्त होते हैं, जो श्वसन स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।
- आर्थिक चुनौतियाँ: FICCI की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत को वर्ष 2030 तक प्लास्टिक पैकेजिंग में प्रयुक्त 133 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक मूल्य की सामग्री का नुकसान हो सकता है, जिसमें अप्राप्य प्लास्टिक पैकेजिंग अपशिष्ट का योगदान 68 बिलियन अमेरिकी डॉलर होगा।
- ई-कॉमर्स और पैकेजिंग अपशिष्ट: ई-कॉमर्स के द्रुत विकास के कारण प्लास्टिक पैकेजिंग अपशिष्ट में वृद्धि हुई है, जिनमें से अधिकांश को पुनर्चक्रित करना कठिन है और वे कूड़े के रूप में या लैंडफिल में मुक्त कर दिये जाते हैं।
- विनियामक और प्रवर्तन चुनौतियाँ: प्लास्टिक अपशिष्ट विनियमों का असंगत प्रवर्तन और विस्तारित निर्माता ज़िम्मेदारी प्रणाली से संबंधित मुद्दे अपशिष्ट के प्रभावी प्रबंधन में बाधा डालते हैं।
- भारत वैश्विक प्लास्टिक अपशिष्ट में सबसे अधिक योगदान देने वाले देशों में से एक है।
- कृषि में माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण: कृषि में प्लास्टिक के प्रयोग और अपर्याप्त अपशिष्ट जल शोधन के कारण मृदा में माइक्रोप्लास्टिक संचित हो जाता है, जिससे मृदा स्वास्थ्य एवं खाद्य सुरक्षा प्रभावित होती है।
- तकनीकी और बुनियादी अवसंरचना की कमी: अपर्याप्त अपशिष्ट पृथक्करण और प्रसंस्करण सुविधाओं के साथ-साथ सीमित उन्नत रीसाइक्लिंग तकनीक, प्रभावी प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन में बाधा डालती है। अपशिष्ट ट्रैकिंग की व्यापक कमी प्रयासों को और जटिल बनाती है।
भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन से संबंधित नियम क्या हैं?
- प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016
- प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2018: बहुस्तरीय प्लास्टिक (MLP) को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने का प्रावधान उन सामग्रियों पर लागू होता है जिन्हें पुनर्चक्रित नहीं किया जा सकता, ऊर्जा में परिवर्तित नहीं किया जा सकता या जिनका कोई वैकल्पिक उपयोग नहीं है।
- उत्पादकों, आयातकों और ब्रांड मालिकों के लिये केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा एक केंद्रीय पंजीकरण प्रणाली स्थापित की गई है।
- प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संशोधन नियम, 2021: कम उपयोगिता और अधिक अपशिष्ट फैलाने की संभावना के कारण वर्ष 2022 तक एकल-उपयोग वाली विशिष्ट प्लास्टिक वस्तुओं/सामग्रियों पर प्रतिबंध लगाता है।
- EPR के माध्यम से प्लास्टिक पैकेजिंग अपशिष्ट के संग्रहण और पर्यावरण प्रबंधन को लागू करना।
- सितंबर 2021 तक प्लास्टिक कैरी बैग की मोटाई 50 माइक्रोन से बढ़ाकर 75 माइक्रोन और दिसंबर 2022 तक 120 माइक्रोन कर दी जाएगी।
- प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2022
- प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2024
- अन्य पहल:
- स्वच्छ भारत मिशन
- इंडिया प्लास्टिक पैक्ट
- प्रोजेक्ट रिप्लान
- अन-प्लास्टिक कलेक्टिव
- गोलिटर भागीदारी परियोजना
आगे की राह
- चक्रीय अर्थव्यवस्था: डिज़ाइन में RRR अर्थात न्यूनीकरण, पुनःउपयोग और पुनर्चक्रण को बढ़ावा देना, पुनर्प्राप्ति सुविधाएँ स्थापित करना, पुनर्चक्रित प्लास्टिक को प्रोत्साहन देना और उत्पादों में पुनर्चक्रित सामग्री को अनिवार्य बनाने की आवश्यकता है।
- स्मार्ट अपशिष्ट प्रबंधन: अपशिष्ट प्रबंधन में स्मार्ट प्रौद्योगिकी को IIoT-इनेबल बिन्स और AI सोर्टिंग तथा अवैध डंपिंग की रिपोर्टिंग और रीसाइक्लिंग केंद्रों का पता लगाने के लिये मोबाइल ऐप के साथ एकीकृत करने की आवश्यकता है।
- विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR): पुनर्चक्रण में कठिनाई वाले प्लास्टिक अपशिष्ट के लिये श्रेणीबद्ध शुल्क, प्लास्टिक क्रेडिट ट्रेडिंग प्रणाली लागू करके तथा कूड़ा बीनने वालों की बेहतर स्थिति के लिये अनौपचारिक क्षेत्र तक EPR का विस्तार करके EPR को सुदृढ़ करने की आवश्यकता है।
- जागरूकता अभियान: कई भाषाओं में राष्ट्रीय अभियान शुरू किये जाने चाहिये, स्कूलों में प्लास्टिक अपशिष्ट शिक्षा को एकीकृत किये जाने चाहिये, सामुदायिक कार्यशालाएँ आयोजित किये जाने चाहिये और प्लास्टिक मुक्त जीवन शैली को बढ़ावा देने के लिये प्रभावशाली लोगों की सहायता ली जानी चाहिये। युवाओं की भागीदारी के लिये एक राष्ट्रीय नवाचार चुनौती की स्थापना की जानी चाहिये।
- अपशिष्ट से ऊर्जा: गैर-पुनर्चक्रणीय प्लास्टिक के लिये पायरोलिसिस और गैसीकरण जैसी उन्नत अपशिष्ट-से-ऊर्जा प्रौद्योगिकियों में निवेश किये जाने की आवश्यकता है। सख्त उत्सर्जन नियंत्रण सुनिश्चित कर अपशिष्ट प्रबंधन सुविधाओं को संचालित करने के लिये उत्पादित ऊर्जा का उपयोग किये जाने की आवश्यकता है।
- हरित खरीद: सरकारी खरीद में प्लास्टिक अपशिष्ट न्यूनीकरण मानदंड लागू करने और सरकारी भवनों को मॉडल के रूप में उपयोग किये जाने की आवश्यकता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन से जुड़े मुद्दे और चुनौतियाँ क्या हैं? भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट से निपटने के लिये क्या कदम उठाए जाने चाहिये ? |
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. भारत में निम्नलिखित में से किसमें एक महत्त्वपूर्ण विशेषता के रूप में 'विस्तारित उत्पादक दायित्व' आरंभ किया गया था? (2019) (a) जैव चिकित्सा अपशिष्ट (प्रबंधन और हस्तन) नियम, 1998 उत्तर: (c) प्रश्न. राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) से किस प्रकार भिन्न है? (2018) राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एन.जी.टी.) किस प्रकार केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सी.पी.सी.बी.) से भिन्न है?
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) मेन्सप्रश्न. निरंतर उत्पन्न किये जा रहे फेंके गए ठोस कचरे की विशाल मात्राओं का निस्तारण करने में क्या-क्या बाधाएँ हैं? हम अपने रहने योग्य परिवेश में जमा होते जा रहे जहरीले अपशिष्टों को सुरक्षित रूप से किस प्रकार हटा सकते हैं? (2018) |