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क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP)

  • 28 Nov 2019
  • 17 min read

 Last Updated: July 2022 

क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (RCEP) एक व्यापक क्षेत्रीय आर्थिक समझौता है। इस समझौते की औपचारिक शुरुआत वर्ष 2012 से की गई, जिसका उद्देश्य आसियान और इसके मुक्त व्यापार समझौते (FTA) के भागीदार सदस्यों के बीच व्यापार नियमों को उदार एवं सरल बनाना है।

सदस्यता:

आसियान सदस्य      इसके FTA सदस्य

  • इंडोनेशिया             ऑस्ट्रेलिया
  • मलेशिया                चीन
  • फिलीपिंस               जापान
  • सिंगापुर                 न्यूज़ीलैंड
  • थाईलैंड                 दक्षिण कोरिया
  • ब्रूनेई
  • वियतनाम
  • लाओस
  • म्याँमार
  • कंबोडिया

लक्ष्य:

  • क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (RCEP) के माध्यम से आर्थिक वृद्धि एवं समान आर्थिक विकास, अग्रिम आर्थिक सहयोग और क्षेत्र में व्यापक एकीकरण को बढ़ावा देना।
  • इसका उद्देश्य वस्तु एवं सेवा व्यापार, निवेश, आर्थिक तथा तकनीकी सहयोग, बौद्धिक संपदा और विवाद समाधान हेतु कार्य करना है।
    • वर्ष 2017 में इसके 16 हस्ताक्षरकर्त्ता पक्षों (इसमें भारत भी शामिल था) ने 3.4 बिलियन जनसंख्या का प्रतिनिधित्व किया जो कि विश्व की लगभग आधी जनसंख्या के बराबर है, वहीं इनका कुल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 21.4 ट्रिलियन डॉलर था जो कि विश्व की जीडीपी का 39 प्रतिशत है।

पृष्ठभूमि

  • पूर्वी एशिया क्षेत्र के देशों ने मुक्त व्यापार समझौतों के माध्यम से एक-दूसरे के साथ व्यापार एवं आर्थिक संबंधों को मज़बूत किया है।
  • आसियान राष्ट्रों का निम्नलिखित 6 भागीदार देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौता है:
    • पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (ACFTA)
    • कोरिया गणराज्य (AKFTA)
    • जापान (AJCEP)
    • भारत (AIFTA)
    • ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड (AANZFTA)
  • सभी पक्षों के मध्य व्यापक एवं मज़बूत संबंध स्थापित करने तथा क्षेत्र के आर्थिक विकास में सभी सदस्यों की भागीदारी बढ़ाने हेतु 16 सदस्य देशों के प्रतिनिधियों ने क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी की स्थापना की।
  • RCEP, आसियान एवं इसके 6 FTA देशों से मिलकर बना है। इसका उद्देश्य आर्थिक संबंधों को मज़बूत करना, व्यापार एवं निवेश से संबंधित गतिविधियों को बढ़ाना तथा साथ ही सभी पक्षों के मध्य विकास के अंतराल को कम करना है।
  • RCEP वार्ता दस आसियान सदस्य राष्ट्रों एवं छह आसियान एफटीए भागीदारों के मध्य नवंबर 2012 में 21वें आसियान शिखर सम्मेलन एवं अन्य संबंधित सम्मेलनों के दौरान कंबोडिया के फ़्नोम पेन्ह में शुरू की गई थी।

उद्देश्य

  • आसियान सदस्य राष्ट्रों एवं आसियान के FTA भागीदारों के मध्य एक आधुनिक, व्यापक, उच्च-गुणवत्तापूर्ण तथा पारस्परिक रूप से लाभकारी आर्थिक साझेदारी समझौता करना।

भारत द्वारा हस्ताक्षर किये गए प्रमुख FTA

  • दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार समझौता (SAFTA)
  • भारत-आसियान व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता (CECA)
  • भारत-कोरिया व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता (CEPA)
  • भारत-जापान CEPA

भारत और RCEP

  • भारत नवंबर 2019 में आसियान + 3 शिखर सम्मेलन के दौरान आरसीईपी से बाहर हो गया है, जिसके निम्नलिखित कारण हैं:
    • व्यापार घाटे में वृद्धि : मुक्त व्यापार समझौते के बाद आसियान, कोरिया एवं जापान के साथ भारत के व्‍यापार घाटे में वृद्धि हुई है। हालाँकि भारत से निर्यात की तुलना में आयात तेजी से बढ़ा है।
      • नीति आयोग द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, RCEP के अधिकांश सदस्य देशों के साथ भारत का द्विपक्षीय व्यापार घाटे में रहा है।
    • चीनी के साथ व्यापर: भारत पहले ही चीन को छोड़कर आरसीईपी के सभी देशों के साथ एफटीए पर हस्ताक्षर कर चुका है। व्यापार के आँकड़ों से पता चलता है कि चीन के साथ भारत का घाटा, जिसके साथ उसका व्यापार समझौता नहीं है, आरसीईपी के शेष घटकों की तुलना में अधिक है।
      • यह व्यापार घाटा भारत के लिये प्राथमिक चिंता का विषय है, क्योंकि आरसीईपी पर हस्ताक्षर करने के बाद चीन से सस्ते उत्पादों की भारतीय बाज़ार में वृद्धि हो सकती है।
      • इसके अलावा, भू-राजनीतिक दृष्टिकोण से आरसीईपी का उद्देश्य एशिया में चीन के प्रभाव का विस्तार करना है।
    • ऑटो-ट्रिगर तंत्र की गैर-स्वीकृति: आयात में आसन्न वृद्धि से निपटने के लिये भारत द्वारा एक ऑटो-ट्रिगर तंत्र की मांग की जा रही है।
      • ऑटो-ट्रिगर तंत्र भारत को ऐसे मामलों में उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाने की अनुमति देता है जहाँ आयात एक निश्चित सीमा को पार कर जाता है।
      • हालाँकि आरसीईपी में शामिल अन्य देश इस प्रस्ताव के खिलाफ थे।
    • घरेलू उद्योग का संरक्षण: भारत द्वारा कथित तौर पर डेयरी, स्टील आदि जैसे कई उत्पादों पर शुल्क कम करने और समाप्त करने पर भी आशंका व्यक्त की गई थी।
      • उदाहरण के लिये डेयरी उद्योग को ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड से कड़ी प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ सकता है।
      • वर्तमान में, डेयरी उत्पादों के लिये भारत का औसतन बाध्य शुल्क 35% है।
      • आरसीईपी देशों को अगले 15 वर्षों के भीतर टैरिफ के मौजूदा स्तर को शून्य करने के लिये बाध्य करता है।
    • मूल देश के नियमों पर सहमति का अभाव: भारत मूल देश के नियमों के "संभावित उल्लंघन" के बारे में चिंतित था।
      • मूल के नियम किसी उत्पाद के राष्ट्रीय स्रोत को निर्धारित करने के लिये उपयोग किये जाने वाले मानदंड हैं।
      • कथित तौर पर सौदे में मौजूदा प्रावधान देशों को अन्य देशों के माध्यम से उन उत्पादों को स्थानांतरित करने से नहीं रोकते हैं जिन पर भारत उच्च टैरिफ बनाए रखेगा।

भारत द्वारा दर्ज की गई आपत्तियाँ:

  • टैरिफ का आधार वर्ष: RCEP के परिणामस्वरूप सभी सदस्य देशों के टैरिफ में कमी आएगी। चूँकि वार्ता वर्ष 2013 में शुरू हुई थी,अतः समझौते में प्रस्तावित है कि आयात प्रशुल्क को कम करने के लिये 2013 आधार वर्ष होगा। हालाँकि भारत आयात प्रशुल्क को कम करने का आधार बदलकर वर्ष 2019 करना चाहता था।
    • भारत ने वर्ष 2014 से कई उत्पादों के सीमा शुल्क में वृद्धि की है।
    • भारत ने वस्त्र, ऑटो उपकरणों एवं इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं जैसे क्षेत्रकों के टैरिफ में औसतन 13% से 17% तक की वृद्धि की है।
  • ऑटो-ट्रिगर तंत्र: आयात में अचानक उछाल आने पर ऑटो-ट्रिगर तंत्र का उपयोग किया जाता है।
    • यह निर्णय लेने की अनुमति देगा कि कोई देश किन उत्पादों पर समान रियायतें नहीं देना चाहता है।
  • रैचेट ऑब्लिगेशन: भारत रैचेट ऑब्लिगेशन से मुक्ति चाहता है।
    • रैचेट ऑब्लिगेशन का अर्थ है कि यदि कोई देश किसी अन्य देश के साथ व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करता है एवं टैरिफ हटाता या कम करता है तो वह इस फैसले से वापस नहीं हट सकता है और न ही अधिक प्रतिबंधात्मक उपाय अपना सकता है।
  • डेटा स्थानीयकरण: RCEP के हिस्से के रूप में भारत चाहता है कि सभी देशों को डेटा की सुरक्षा का अधिकार मिले।
    • सभी देश अन्य देशों में सूचना के हस्तांतरण को रोक सकें।
  • सेवा क्षेत्रक: भारत ने मांग की है कि आसियान देशों को अपने सेवा क्षेत्र को खोलना चाहिये ताकि भारतीय पेशेवर उनके बाज़ार में आसानी से प्रवेश कर सकें।
    • हालाँकि आसियान देश इस क्षेत्र के बारे में बहुत संवेदनशील हैं एवं उन्होंने एक-दूसरे के सामने भी उदारीकरण की पेशकश नहीं की है।
  • मूल देश का नियम: भारत चाहता है कि उन सदस्य देशों, जिन पर शुल्क कम हो अथवा लगता ही न हो, के माध्यम से चीन की वस्तुएँ देश में आने से रोकने हेतु मूल देश के सख्त नियम हों।
    • चीनी वस्त्र दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार समझौता एवं शुल्क मुक्त मार्ग के माध्यम से बांग्लादेश के ज़रिये भारत में आ रहे हैं।

प्रस्तावित क्षेत्रों में से निम्नलिखित क्षेत्र समझौते में रुकावट डालते हैं:

  • डेयरी: भारतीय घरों में दूध एवं डेयरी आश्रित अन्य उत्पादों की खपत को देखते हुए डेयरी भारत के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • न्यूज़ीलैंड डेयरी उत्पादों का एक निर्यातक है तथा दूध पाउडर एवं वसायुक्त उत्पाद बेचने के लिये इसकी नज़र भारत पर होगी। भारत, दूध एवं दुग्ध उत्पादों के सबसे बड़े उपभोक्ताओं में से एक है और अभी तक इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर रहा है तथा कभी-कभी अतिरिक्त उत्पादन करता है। न्यूज़ीलैंड का प्रवेश इस परिदृश्य में परिवर्तन ला सकता है।
    • वर्ष 2018 में न्यूजीलैंड के दूध पाउडर उत्पादन का 93.4%, मक्खन उत्पादन का 94.5%, एवं पनीर उत्पादन का 83.6% निर्यात किया गया। भारत दुग्ध उत्पादों के निर्यात की दृष्टि से ऐसी स्थिति में नहीं है।
    • बाहरी आयात से ग्रामीण क्षेत्रों में 50 मिलियन लोग रोज़गार विहीन हो सकते हैं, इससे आयात की आवश्यकता और अधिक बढ़ जाएगी।
  • ऑटोमोबाइल: RCEP के कारण चीन से ऑटोमोबाइल उपकरणों की "बैक-डोर एंट्री" हो सकती है।
  • वस्त्र: चीन, वियतनाम, बांग्लादेश एवं अन्य देशों से पॉलिएस्टर कपड़ों का शुल्क मुक्त आयात के कारण पहले ही परेशानी का सामना कर रहा है, इससे वस्त्र क्षेत्रक और अधिक प्रभावित हो सकता है।
    • वस्त्र उद्योग क्षेत्र में चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा बढ़ने की संभावना है जो भारत के घरेलू कपड़ा निर्माताओं के लिये हानिकारक हो सकता है।
  • इस्पात: इस्पात उद्योग को भी चीन से चुनौतियाँ है कि अत्यधिक आयात घरेलू बाज़ार को नुकसान पहुँचा सकता है।
    • इससे भारत की निर्यात प्रतिस्पर्द्धा को नुकसान होगा क्योंकि देश में व्यापार संतुलन पहले से ही असंतुलित है।
  • कृषि: चाय, कॉफी, रबर, इलायची एवं काली मिर्च के बागानों के एक शीर्ष निकाय ने कहा कि आरसीईपी से इस क्षेत्र की स्थिति को और अधिक नुकसान होगा जो पहले से ही मंदी का सामना कर रहा है।
    • उत्पादों में तीव्र प्रतिस्पर्द्धा होगी और देश में आयात की संभावना समय के साथ बढ़ेगी।

आगे की राह

  • मौज़ूदा समझौतों को सुदृढ़ करना: आसियान, जापान और कोरिया के साथ व्यापार एवं निवेश समझौते, साथ ही मलेशिया एवं सिंगापुर के साथ द्विपक्षीय व्यवस्था को मज़बूत किया जाना चाहिये।
  • उत्पादों की मार्केटिंग: भारतीय उत्पादों की मौज़ूदा बाजारों के साथ-साथ अन्य देशों जहाँ भारत का कम निर्यात है, वहाँ भी उत्पादों की मार्केटिंग की जानी चाहिये।
    • भारतीय उद्योग जिनका इन बाज़ारों में व्यवसाय है, को लक्षित प्रचार रणनीतियों से लाभ मिल सकता है यदि भारतीय उत्पाद प्रतिस्पर्द्धी हों एवं उन्हें वरीयता दी जाए।
  • निर्यात विविधता: अफ्रीका एक तेज़ी से विकसित होने वाला महाद्वीप जिसकी निर्यात में हिस्सेदारी लगभग 9% है तथा लैटिन अमेरिका का भी वर्तमान निर्यात मात्र 3% है, यहाँ निर्यात बढ़ाकर भारत लाभान्वित हो सकता है।
    • पश्चिम एशिया भी विस्तृत होता एक बाज़ार है जहाँ भारत निर्यात से लाभान्वित होता है।
    • भारत को निर्यात रणनीति के लिये दोतरफा दृष्टिकोण की आवश्यकता है, पहला घरेलू प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ाने एवं लक्षित प्रचार गतिविधियों को शुरू करना और दूसरा दोनों पर ध्यान केंद्रित करना।
  • व्यापक आर्थिक सुधार: विशेष रूप से भूमि, श्रम और पूंजी बाजारों में आर्थिक सुधार होने चाहिये।
    • यह समग्र विनिर्माण निवेशों को आवश्यक प्रोत्साहन प्रदान करेगा।
    • घरेलू विनिर्माण के लिये व्यापार की लागत कम करना, सही बुनियादी अवसंरचना का निर्माण करना, सीमाओं पर तेज़ी से और अधिक कुशल व्यापार सुविधाएँ सुनिश्चित करना आदि।
  • निर्यात लक्ष्य में वृद्धि: अपने निर्माताओं और निर्यातकों को बाज़ारों के बारे में जानकारी प्रदान करना, विशेष रूप से छोटे उद्यमों को विपणन प्रयासों के माध्यम से सहायता करना।
    • प्रतिबद्ध एजेंसियाँ बनाना एवं विदेशों में पेशेवर विपणन विशेषज्ञ युक्त कार्यालय स्थापित करना, जो निर्यात को बढ़ावा दें तथा संपूर्ण विश्व के प्रमुख बाज़ारों में भारतीय निर्यातकों के साथ खरीदारों को जोड़ने का काम करें।
  • बाहरी एकीकरण रणनीति: देश को विभिन्न मंचों पर अपने हितों को प्रस्तुत करने की आवश्यकता है।
    • देखा जाए तो RCEP के 12 सदस्यों के साथ भारत के पहले से ही व्यापार और निवेश समझौते हैं, अतः आरसीईपी सदस्यों के साथ निर्यात बढ़ाने का मार्ग अभी भी खुला हुआ है।
    • अन्य भौगोलिक क्षेत्रों में नए अवसरों की खोज करते हुए मौज़ूदा समझौतों का बेहतर ढंग से उपयोग हमारे बाज़ारों के साथ-साथ हमारे निर्यात में भी विविधता लाएगा।
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