कश्मीर में केसर उत्पादन में गिरावट
प्रिलिम्स के लिये:केसर, भौगोलिक संकेतक, नॉर्थ ईस्ट सेंटर फॉर टेक्नोलॉजी एप्लीकेशन एंड रीच। मेन्स के लिये:सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, केसर की खेती और इसका महत्त्व। |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
विश्व के सबसे महँगे मसाले के उत्पादन के लिये प्रसिद्ध कश्मीर में केसर के खेत सीमेंट कारखानों के अतिक्रमण के कारण गंभीर संकट का सामना कर रहे हैं।
- 11-12 टन के औसत वार्षिक उत्पादन के साथ, ईरान के बाद विश्व का दूसरा सबसे बड़ा केसर उत्पादक होने के बावजूद, क्षेत्र का केसर व्यवसाय घट रहा है, जिससे स्थानीय किसानों के लिये आर्थिक समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं।
केसर उत्पादन में गिरावट के लिये कौन-से कारक योगदान देते हैं?
- सीमेंट कारखानों से निकटता:
- केसर के खेतों के नज़दीक स्थित सीमेंट कारखाने बड़ी मात्रा में धूल उत्सर्जित करते हैं, जिससे केसर की उपज की गुणवत्ता और मात्रा दोनों को नुकसान पहुँचता है।
- पुलवामा में केसर के खेतों में सीमेंट प्रदूषण के कारण पिछले 20 वर्षों में केसर की खेती में 60% की गिरावट देखी गई है।
- केसर के खेतों के नज़दीक स्थित सीमेंट कारखाने बड़ी मात्रा में धूल उत्सर्जित करते हैं, जिससे केसर की उपज की गुणवत्ता और मात्रा दोनों को नुकसान पहुँचता है।
- सीमेंट की राख का प्रभाव:
- नाइट्रोज़न ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड जैसी हानिकारक गैसों वाली सीमेंट की राख से नाज़ुक केसर के फूलों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- बड़ी मात्रा में सीमेंट की राख के परिणामस्वरूप पत्तियों में क्लोरोफिल अवरुद्ध रंध्र (पौधे के ऊतकों में छोटे छिद्र जो गैस विनिमय की अनुमति देते हैं) में कमी आती है, प्रकाश अवशोषण और गैस प्रसार बाधित होता है, जिससे पत्तियाँ जल्दी गिर जाती हैं तथा परिणामस्वरूप विकास रुक जाता है।
- सीमेंट की राख केसर के रंग के लिये ज़िम्मेदार क्रोसिन सामग्री पर नकारात्मक प्रभाव डालती है, जिससे कश्मीरी केसर के रंग, औषधीय गुण और कॉस्मेटिक लाभ प्रभावित होते हैं।
- पर्यावरणीय कारक:
- जलवायु परिवर्तन, अप्रत्याशित वर्षा और आवास एवं उद्योगों के लिये भूमि परिवर्तन के कारण केसर का उत्पादन कम हो गया है।
- जुताई के लिये मशीनों का उपयोग भी केसर की खेती को प्रभावित करता है जो अनुकूल जलवायु पर अत्यधिक निर्भर है।
- जलवायु परिवर्तन, अप्रत्याशित वर्षा और आवास एवं उद्योगों के लिये भूमि परिवर्तन के कारण केसर का उत्पादन कम हो गया है।
- सरकारी हस्तक्षेप की कमी:
- किसानों ने पर्यावरण संबंधी चिंताओं का हवाला देते हुए वर्ष 2005 से केसर के खेतों के पास सीमेंट कारखानों की स्थापना का विरोध किया है।
- विरोध और अपील के बावजूद, अधिकारियों ने केसर की खेती के करीब सीमेंट उद्योगों को संचालित करने की अनुमति दे दी है।
- किसानों ने पर्यावरण संबंधी चिंताओं का हवाला देते हुए वर्ष 2005 से केसर के खेतों के पास सीमेंट कारखानों की स्थापना का विरोध किया है।
- बाज़ार की चुनौतियाँ:
- केसर किसानों को वित्तीय चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि इससे मसाला बाज़ार प्रभावित हो रहा है।
- किसान कीमतों, मात्रा और गुणवत्ता में गिरावट पर चिंता व्यक्त करते हैं, जिससे उद्योग का भविष्य अंधकारमय हो गया है।
- केसर किसानों को वित्तीय चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि इससे मसाला बाज़ार प्रभावित हो रहा है।
कश्मीरी केसर से संबंधित मुख्य तथ्य क्या हैं?
- केसर का उत्पादन तथा कीमत:
- केसर का उत्पादन लंबे समय से केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के एक निर्धारित भौगोलिक क्षेत्र तक ही सीमित रहा है।
- भारत में पंपोर क्षेत्र जिसे आमतौर पर कश्मीर के केसर के कटोरे के रूप में जाना जाता है, केसर उत्पादन में मुख्य योगदानकर्त्ता है।
- केसर फूल (क्रोकस सैटिवस L) के वर्तिकाग्र (Stigma) (नर जनन अंग) से निकाले गए केसर मसाले को कश्मीरी में कोंग, उर्दू में ज़ाफरान तथा हिंदी में केसर के रूप में जाना जाता है।
- कश्मीरी केसर की कीमत बहुत अधिक है जो 3 लाख रुपए प्रति किलोग्राम पर बेचा जाता है।
- एक ग्राम केसर लगभग 160-180 फूलों से प्राप्त होता है जिसके लिये व्यापक श्रम की आवश्यकता होती है।
- केसर का उत्पादन लंबे समय से केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के एक निर्धारित भौगोलिक क्षेत्र तक ही सीमित रहा है।
- सीज़न:
- भारत में केसर कॉर्म (बीज) की खेती जून तथा जुलाई के महीनों के दौरान एवं कुछ क्षेत्रों में अगस्त व सितंबर में की जाती है।
- इसमें अक्तूबर में फूल आना शुरू हो जाता है।
- कृषि की परिस्थितियाँ:
- ऊँचाई: समुद्र तल से 2000 मीटर की ऊँचाई केसर की खेती के लिये अनुकूल होती है। इसे 12 घंटे की फोटोपीरियड (सूर्य का प्रकाश) की आवश्यकता होती है।
- मृदा: इसे अलग-अलग प्रकार की मृदा में उगाया जा सकता है किंतु कैलकेरियस (वह मिट्टी जिसमें प्रचुर मात्रा में कैल्शियम कार्बोनेट होता है) एवं ह्यूमस युक्त तथा सु-अपवाहित मृदा, जिसका pH 6 और 8 के बीच हो, में केसर का अच्छा उत्पादन होता है।
- जलवायु: केसर की खेती के लिये एक उपयुक्त गर्मी और सर्दियों वाली जलवायु की आवश्यकता होती है, जिसमें गर्मियों में तापमान 35 या 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक न हो तथा सर्दियों में लगभग -15 या -20 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता हो।
- वर्षा: इसके लिये पर्याप्त वर्षा की आवश्यकता होती है यानी प्रतिवर्ष 1000-1500 मिमी. है।
- क्रोसिन की मात्रा तथा रंग:
- कश्मीरी केसर में 8% क्रोसिन होता है जबकि इसकी अन्य किस्मों में यह 5-6% होता है।
- कश्मीरी केसर के लाभ:
- यह रक्तचाप को कम करने, अरक्तता, माइग्रेन का इलाज करने तथा अनिद्रा में सहायता करने जैसे औषधीय गुणों के लिये जाना जाता है।
- इसमें सौदर्य प्रसाधन संबंधी लाभ भी होते हैं जिसके इस्तेमाल से त्वचा की गुणवत्ता बढ़ती है एवं रंजकता व धब्बे कम होते हैं।
- यह पारंपरिक व्यंजनों का अभिन्न अंग रहा है तथा इसका व्यापक रूप से पेय पदार्थों, मिष्टान्न, डेयरी उत्पादों एवं खाद्य रंगों में उपयोग किया जाता है।
- मान्यता:
- वर्ष 2020 में केंद्र सरकार ने कश्मीर घाटी में उगाए जाने वाले केसर को भौगोलिक संकेतक (Geographical Indication- GI) प्रमाणन प्रदान किया।
- कश्मीर की केसर विरासत विश्व स्तर पर महत्त्वपूर्ण कृषि विरासत प्रणालियों (Globally Important Agricultural Heritage systems- GIAHS) में से एक है।
- GIAHS कृषि पारिस्थितिकी तंत्र हैं जहाँ समुदाय अपने क्षेत्रों के साथ परस्पर संबंध बनाए रखते हैं। कृषि जैवविविधता, पारंपरिक ज्ञान तथा सतत् प्रबंधन द्वारा चिह्नित इन स्थिति-स्थापक क्षेत्रों में किसान, चरवाहे, मछुआरे तथा वन में जीवन व्यतीत कर रहे लोग शामिल होते हैं जो आजीविका व खाद्य सुरक्षा में योगदान करते हैं।
- संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन ने अपने GIAHS कार्यक्रम के माध्यम से विश्व भर में 60 से अधिक ऐसे क्षेत्रों को मान्यता प्रदान की है।
केसर उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये भारत में पहल
- राष्ट्रीय केसर मिशन (National Saffron Mission- NSM):
- NSM को जम्मू और कश्मीर में केसर की कृषि का समर्थन करने के लिये वर्ष 2010-11 में लॉन्च किया गया था। यह मिशन राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY) का हिस्सा था और इसका उद्देश्य कश्मीर में रहने वाले लोगों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार करना था।
- नॉर्थ ईस्ट सेंटर फॉर टेक्नोलॉजी एप्लीकेशन एंड रीच (NECTAR):
- यह भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के तहत एक स्वायत्त निकाय है, जिसने भारत के उत्तर पूर्व क्षेत्र में समान गुणवत्ता एवं उच्च मात्रा के साथ केसर के उपज की व्यवहार्यता का पता लगाने के लिये एक प्रमुख परियोजना का समर्थन किया है।
आगे की राह
- केसर के खेतों पर सीमेंट कारखानों के प्रभाव को कम करने के लिये सख्त पर्यावरण नियमों को पारित कर लागू करने की आवश्यकता है।
- केसर की खेती वाले क्षेत्रों के आस-पास प्रदूषण में योगदान देने वाले उद्योगों के लिये नियमित निगरानी और ज़ुर्माना सुनिश्चित की जानी चाहिये।
- चिंताओं को दूर करने और स्थायी समाधान खोजने के लिये सरकार तथा केसर उत्पादकों के बीच सहयोग को सुविधाजनक बनाने की आवश्यकता है।
- आय के वैकल्पिक स्रोतों की पेशकश करते हुए, केसर किसानों की आजीविका में विविधता लाने की पहल का समर्थन करने की आवश्यकता है।
- केसर की कृषि में अनुसंधान और विकास के लिये धन आवंटित किया जाना चाहिये, पर्यावरणीय चुनौतियों के प्रति केसर के संधारणीय किस्मों के विकास पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
- ऐसी तकनीक में निवेश किया जाना चाहिये जो केसर की फसलों पर प्रदूषकों के प्रभाव को कम करे, सतत् विकास सुनिश्चित करे और गुणवत्ता बनाए रखे।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:Q1. FAO, पारंपरिक कृषि प्रणालियों को सार्वभौम रूप से महत्त्वपूर्ण कृषि विरासत प्रणाली (Globally Important Agricultural Heritage System- GIAHS)' की हैसियत प्रदान करता है। इस पहल का संपूर्ण लक्ष्य क्या है? (2016)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 3 उत्तर: (b) |
स्वच्छ वायु लक्ष्य में विविध प्रगति
प्रिलिम्स के लिये:स्वच्छ वायु लक्ष्य में विविध प्रगति, राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP), इंडो-गैंगेटिक मैदान (IGP), मौसम विज्ञान, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) मेन्स के लिये:स्वच्छ वायु लक्ष्य में विविध प्रगति, पर्यावरण प्रदूषण एवं क्षरण |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में क्लाइमेट ट्रेंड्स (Climate Trends) तथा रेस्पायरर लिविंग साइंसेज़ (Respirer Living Sciences) ने एक अध्ययन किया जिसके अनुसार भारत के अधिकांश शहर राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (National Clean Air Campaign- NCAP) के स्वच्छ वायु लक्ष्यों को प्राप्त करने में विफल रहे हैं।
नोट: क्लाइमेट ट्रेंड्स तथा रेस्पिरर लिविंग साइंसेज़ दोनों NCAP ट्रैकर में शामिल हैं जो भारत की स्वच्छ वायु नीति पर अपडेट प्रदान करने के लिये एक ऑनलाइन केंद्र है।
- क्लाइमेट ट्रेंड्स एक शोध-आधारित परामर्श तथा क्षमता निर्माण पहल है जो पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और सतत् विकास पर केंद्रित है।
- रेस्पायरर लिविंग साइंसेज़ भारत सरकार का क्लाइमेट-टेक स्टार्टअप (Climate-Tech Startup) साझेदार है। इसने स्वच्छ वायु प्रौद्योगिकियों पर उत्कृष्टता केंद्र ATMAN का समर्थन किया, जिसे IIT कानपुर में स्थापित किया गया था।
अध्ययन से संबंधित मुख्य तथ्य क्या हैं?
- PM2.5 स्तर में कमी का अभाव:
- पाँच वर्षों में निरंतर PM2.5 डेटा वाले 49 शहरों में से केवल 27 शहरों में PM2.5 के स्तर में गिरावट देखी गई जबकि केवल चार शहर राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) लक्ष्यों के अनुसार लक्षित गिरावट को पूरा कर पाए अथवा उससे बेहतर कर पाए।
- NCAP का लक्ष्य 131 शहरों में वर्ष 2026 तक औसत पार्टिकुलेट मैटर (PM) सांद्रता को 40% तक कम करना है।
- प्रारंभ में वर्ष 2024 तक 20-40% की कटौती का लक्ष्य रखा गया था जिसे बाद में वर्ष 2026 तक विस्तारित कर दिया गया।
- पाँच वर्षों में निरंतर PM2.5 डेटा वाले 49 शहरों में से केवल 27 शहरों में PM2.5 के स्तर में गिरावट देखी गई जबकि केवल चार शहर राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) लक्ष्यों के अनुसार लक्षित गिरावट को पूरा कर पाए अथवा उससे बेहतर कर पाए।
- सभी शहरों में मिश्रित प्रगति:
- वाराणसी, आगरा तथा जोधपुर जैसे कुछ शहरों में PM2.5 के स्तर में उल्लेखनीय कमी देखी गई जबकि दिल्ली सहित अन्य शहरों में मानक स्तर में मामूली गिरावट (केवल 5.9%) दर्ज की गई और साथ ही कई शहरों में प्रदूषण भार में वृद्धि दर्ज की गई।
- वाराणसी में वर्ष 2019 से वर्ष 2023 तक PM2.5 के स्तर में 72% की औसत कमी तथा PM10 के स्तर में 69% की कमी के साथ सबसे बड़ा सुधार देखा गया।
- वाराणसी, आगरा तथा जोधपुर जैसे कुछ शहरों में PM2.5 के स्तर में उल्लेखनीय कमी देखी गई जबकि दिल्ली सहित अन्य शहरों में मानक स्तर में मामूली गिरावट (केवल 5.9%) दर्ज की गई और साथ ही कई शहरों में प्रदूषण भार में वृद्धि दर्ज की गई।
- क्षेत्रीय सुभेद्यता:
- इंडो-गैंगेटिक प्लेन (IGP) उच्च कणिका पदार्थ सांद्रता के प्रति अत्यधिक सुभेद्य/संवेदनशील बना हुआ है और PM2.5 वाले शीर्ष 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से लगभग 18 शहर इसी क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं।
- IGP के बाहर, केवल गुवाहाटी और राउरकेला, PM 2.5 के लिये 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से थे।
- इंडो-गैंगेटिक प्लेन (IGP) उच्च कणिका पदार्थ सांद्रता के प्रति अत्यधिक सुभेद्य/संवेदनशील बना हुआ है और PM2.5 वाले शीर्ष 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से लगभग 18 शहर इसी क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं।
- निगरानी चुनौतियाँ:
- निरंतर परिवेशी वायु गुणवत्ता मॉनिटर की उपलब्धता और वितरण वार्षिक प्रदूषक सांद्रता को गंभीर रूप से प्रभावित करते हैं।
- हालाँकि, कई भारतीय शहरों में पर्याप्त संख्या में ऐसे निगरानी स्टेशनों का अभाव है।
- जहाँ मुंबई और दिल्ली जैसे शहरों में ऐसे कई स्टेशन हैं, तो वहीं अधिकांश भारतीय शहरों में केवल कुछ ही हैं।
- 92 शहरों में से केवल चार में 10 से अधिक ऐसे स्टेशन हैं।
- प्रदूषण को प्रभावित करने वाले कारक:
- प्रदूषण के स्तर में भिन्नता के लिये भौगोलिक स्थान, विविध उत्सर्जन स्रोत, मौसम संबंधी प्रभाव और उत्सर्जन एवं मौसम विज्ञान के बीच अंतरसंबंध को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है, जिसके लिये आगामी जाँच की आवश्यकता है।
राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम क्या है?
- इसे जनवरी 2019 में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forests and Climate Change- MoEFCC) द्वारा लॉन्च किया गया था।
- समयबद्ध रूप से वायु प्रदुषण में कमी के लक्ष्य के साथ वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिये एक राष्ट्रीय फ्रेमवर्क तैयार करने का यह देश में पहला प्रयास है।
- NCAP का लक्ष्य 131 शहरों में वर्ष 2026 तक औसत कणिका पदार्थ/पार्टिकुलेट मैटर (PM) सांद्रता को 40% तक कम करना है। प्रारंभ में वर्ष 2024 तक 20-40% की कटौती का लक्ष्य रखा गया था, बाद में लक्ष्य को वर्ष 2026 तक बढ़ा दिया गया।
- इसमें 131 गैर-प्राप्ति वाले शहर शामिल हैं जिनकी केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board- CPCB) द्वारा पहचान की गई थी।
- गैर-प्राप्ति शहर वे हैं जिन्होंने 5 वर्षों से अधिक समय से राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों (National Ambient Air Quality Standards- NAAQS) को पूरा नही किया है।
- NAAQ वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के तहत CPCB द्वारा अधिसूचित चिह्नित किये गए प्रदूषकों के संदर्भ में परिवेशी वायु गुणवत्ता के मानक हैं।
- NAAQS के तहत प्रदूषकों की सूची: PM10, PM2.5, SO2, NO2, CO, NH3, ओज़ोन, सीसा, बेंज़ीन, बेंज़ो-पाइरीन, आर्सेनिक और निकल।
- गैर-प्राप्ति शहर वे हैं जिन्होंने 5 वर्षों से अधिक समय से राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों (National Ambient Air Quality Standards- NAAQS) को पूरा नही किया है।
- गैर-प्राप्ति शहरों में वायु-प्रदूषण के विनियमन के लिये पोर्टल PRANA (Portal for Regulation of Air-pollution in Non-Attainment cities), NCAP के कार्यान्वयन की निगरानी के लिये एक पोर्टल है।
वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिये क्या पहल की गई हैं?
- वायु गुणवत्ता और मौसम पूर्वानुमान एवं अनुसंधान (SAFAR)
- राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI): AQI को आठ प्रदूषकों, जैसे– PM2.5, PM10, अमोनिया, सीसा, नाइट्रोज़न ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, ओज़ोन और कार्बन मोनोऑक्साइड के लिये विकसित किया गया है।
- श्रेणीबद्ध प्रतिक्रिया कार्य योजना (दिल्ली)
- वाहन प्रदूषण कम करने के लिये:
- वायु गुणवत्ता प्रबंधन हेतु नया आयोग
- पराली जलाने को कम करने के लिये टर्बो हैप्पी सीडर (Turbo Happy Seeder -THS) मशीन खरीदने पर किसानों को सब्सिडी।
- राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP): NAMP के तहत, सभी स्थानों पर नियमित निगरानी के लिये चार वायु प्रदूषकों अर्थात् नाइट्रोज़न ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, PM10 और PM2.5 की पहचान की गई है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा,विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न1. हमारे देश के शहरों में वायु गुणवत्ता सूचकांक (Air Quality Index) का परिकलन करने में साधारणतया निम्नलिखित वायुमंडलीय गैसों में से किनको विचार में लिया जाता है? (2016)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2 और 3 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न1. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा हाल ही में जारी किये गए संशोधित वैश्विक वायु गुणवत्ता दिशा-निर्देशों (AQGs) के मुख्य बिंदुओं का वर्णन कीजिये। विगत 2005 के अद्यतन से, यह किस प्रकार भिन्न हैं? इन संशोधित मानकों को प्राप्त करने के लिये, भारत के राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम में किन परिवर्तनों की आवश्यकता है? (2021) |
दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता, 2016 पर चिंताएँ
प्रिलिम्स के लिये:दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (IBC) 2016, राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण, वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (FSR), भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI), भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता बोर्ड मेन्स के लिये:IBC के सामने आने वाली चुनौतियाँ, भारतीय अर्थव्यवस्था और योजना से संबंधित मुद्दे, संसाधन जुटाना, वृद्धि, विकास और रोज़गार । |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (IBC) कई उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये वर्ष 2016 में लागू हुई, जिसमें देनदार की संपत्ति के मूल्य को अधिकतम करना, उद्यमिता को बढ़ावा देना, मामलों का समय पर समाधान सुनिश्चित करना और हितधारकों के हितों को संतुलित किया जाता है।
- हालाँकि, हाल के घटनाक्रमों ने इस संहिता की प्रभावशीलता और समाधान प्रक्रिया के बारे में चिंताएँ बढ़ा दी हैं।
IBC के साथ प्रमुख मुद्दे क्या हैं?
- न्यून पुनर्भुगतान प्रतिशत:
- वर्ष 2023 में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा जारी वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (FSR) के अनुसार, रिज़ॉल्यूशन योजना अनुमोदन प्रक्रिया में आम तौर पर क्रेता द्वारा केवल 15% भुगतान शामिल होता है और पुनर्भुगतान में बैंकों द्वारा किसी भी अतिरिक्त ब्याज के बिना वर्षों लग सकते हैं।
- इससे पुनर्भुगतान प्रक्रिया की प्रभावशीलता पर सवाल खड़े हो गए हैं।
- वर्ष 2023 में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा जारी वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (FSR) के अनुसार, रिज़ॉल्यूशन योजना अनुमोदन प्रक्रिया में आम तौर पर क्रेता द्वारा केवल 15% भुगतान शामिल होता है और पुनर्भुगतान में बैंकों द्वारा किसी भी अतिरिक्त ब्याज के बिना वर्षों लग सकते हैं।
- निपटान और पुनर्प्राप्ति:
- हाल के निपटान और समाधान, जैसे कि रिलायंस कम्युनिकेशंस इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (RCIL) मामले ने कम निपटान राशि तथा विस्तारित समाधान अवधि के कारण चिंताएँ बढ़ा दी हैं।
- उदाहरण के लिये RCIL के निपटान की राशि ऋण का मात्र 0.92% थी और समाधान योजना को पूरा करने में चार वर्ष लग गए, जो निर्धारित अधिकतम 330 दिनों से कहीं अधिक था।
- वित्तीय ऋणदाताओं (FC) को आदर्श रूप से मूलधन और ब्याज मिलना चाहिये।
- चूक की पहचान करने और उसे स्वीकार करने में समय लेने वाली प्रक्रियाएँ पुनर्प्राप्ति दरों को कम करने में योगदान करती हैं। यह समाधान कार्यवाही को समय पर शुरू करने में बाधा उत्पन्न करता है, जिससे पुनर्प्राप्ति दर कम हो जाती है।
- हाल के निपटान और समाधान, जैसे कि रिलायंस कम्युनिकेशंस इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (RCIL) मामले ने कम निपटान राशि तथा विस्तारित समाधान अवधि के कारण चिंताएँ बढ़ा दी हैं।
- हेयर कट्स और पुनर्प्राप्ति दरें:
- "हेयरकट्स" की अवधारणा, जिसमें ऋण और अर्जित ब्याज को बट्टे खाते में डालना शामिल है, ने प्रमुखता प्राप्त कर ली है।
- प्रमोटर अपनी कंपनी को शोधन कर्मचारियों के पास ले जाकर और बैंकरों/राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (NCLT) से पर्याप्त छूट प्राप्त करके लाभ उठा रहे हैं।
- समाधान के बाद, उधारकर्त्ता और दिवाला पेशेवर (IP) अमीर/धनी बने रहते हैं, जबकि ऋणदाताओं को नुकसान होता है तथा बैंक देनदारी से मुक्त हो जाते हैं, क्योंकि केवल कंपनियों को दिवालिया घोषित किया जाता है, मालिकों को नहीं, जिससे जमाकर्त्ताओं को नुकसान होता है।
- इसके परिणामस्वरूप वित्तीय ऋणदाताओं को प्राप्त होने वाली वसूली दर कम हो गई है तथा कुछ मामलों में बकाया ऋण का केवल 5% ही प्राप्त हुआ है।
- "हेयरकट्स" की अवधारणा, जिसमें ऋण और अर्जित ब्याज को बट्टे खाते में डालना शामिल है, ने प्रमुखता प्राप्त कर ली है।
- वसूली योग्य मूल्य:
- वर्ष 2023 में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा जारी FSR लेनदारों के लिये कम वसूली योग्य मूल्य प्राप्त होने के मुद्दे को उजागर करता है जिसमें बैंक अथवा वित्तीय लेनदार बड़े कॉरपोरेट्स के NCLT द्वारा निपटाए गए मामलों में औसतन केवल 10-15% की वसूली करते हैं। हालाँकि RBI का कहना है कि लेनदारों को परिसमापन पर प्राप्य मूल्य (Liquidation Value) का 168.5% तथा उचित मूल्य का 86.3% मिलता है।
- FSR के अनुसार 597 परिसमापन में से ₹1,32,888 करोड़ के दावे की तुलना में वसूल हुई राशि स्वीकृत दावों का 3% थी।
- जबकि बैंक किसानों, छात्रों, MSME तथा आवासीय ऋण पर नवीनतम ब्याज़ लेते हैं, जिसमें देरी की स्थिति में ज़ुर्माना ब्याज भी शामिल है और साथ ही संबद्ध स्थिति कॉरपोरेट्स के साथ अलग तरह से व्यवहार किया जाता है।
- परिसमापन से प्राप्त राशि भी न्यूनतम रही है, जिससे पुनर्प्राप्ति प्रक्रिया संबंधी चिंताएँ बढ़ गई हैं।
- वर्ष 2023 में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा जारी FSR लेनदारों के लिये कम वसूली योग्य मूल्य प्राप्त होने के मुद्दे को उजागर करता है जिसमें बैंक अथवा वित्तीय लेनदार बड़े कॉरपोरेट्स के NCLT द्वारा निपटाए गए मामलों में औसतन केवल 10-15% की वसूली करते हैं। हालाँकि RBI का कहना है कि लेनदारों को परिसमापन पर प्राप्य मूल्य (Liquidation Value) का 168.5% तथा उचित मूल्य का 86.3% मिलता है।
- विनियामक चिंताएँ:
- विनियामक रिपोर्टें:
- वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (Financial Stability Report- FSR) में कॉरपोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (Corporate Insolvency Process- CIRP) संबंधी कई मुद्दे उजागर होते हैं।
- रिपोर्ट के अनुसार स्वीकृत दावे बकाया से कम हैं तथा बैंक अथवा वित्तीय ऋणदाता परिसमापन पर प्राप्य मूल्य व उचित मूल्य का केवल एक अंश ही वसूल कर पा रहे हैं।
- वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट (Financial Stability Report- FSR) में कॉरपोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (Corporate Insolvency Process- CIRP) संबंधी कई मुद्दे उजागर होते हैं।
- विनियामक रिपोर्टें:
- संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट:
- वित्त पर संसदीय स्थायी समिति (Parliamentary Standing Committee) की 32वीं रिपोर्ट में कम वसूली दर से संबंधित चिंता को उजागर किया गया है जिसमें 95% तक की कटौती एवं 180 दिनों से अधिक समय से लंबित 71% से अधिक मामलों के साथ समाधान प्रक्रिया में देरी स्पष्ट रूप से संसद द्वारा संहिता के मूल उद्देश्य तथा रिज़ॉल्यूशन प्रोफेशनल्स (RP) और इन्सॉल्वेंसी प्रोफेशनल्स (IP) से संबंधित मुद्दों से विचलन की ओर इशारा करती है। ।
- यह ऋणदाताओं की समिति (Committee of Creditors- COC) के लिये एक पेशेवर आचार संहिता की आवश्यकता और हेयरकट/मार्जिन की सीमा तय करने की भी सिफारिश करता है।
- वित्त पर संसदीय स्थायी समिति (Parliamentary Standing Committee) की 32वीं रिपोर्ट में कम वसूली दर से संबंधित चिंता को उजागर किया गया है जिसमें 95% तक की कटौती एवं 180 दिनों से अधिक समय से लंबित 71% से अधिक मामलों के साथ समाधान प्रक्रिया में देरी स्पष्ट रूप से संसद द्वारा संहिता के मूल उद्देश्य तथा रिज़ॉल्यूशन प्रोफेशनल्स (RP) और इन्सॉल्वेंसी प्रोफेशनल्स (IP) से संबंधित मुद्दों से विचलन की ओर इशारा करती है। ।
- सीमित न्यायिक बेंच क्षमता:
- न्यायाधीशों की कमी के कारण IBC समाधान प्रक्रिया बाधित होती है जिसके परिणामस्वरूप मामले के निपटान में देरी आती है। जिसके परिणामस्वरूप मामले के निपटान में देरी लगती है।
दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता, 2016 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- परिचय:
- दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (IBC), 2016 कंपनियों, व्यक्तियों एवं साझेदारियों के दिवालियेपन को समयबद्ध तरीके से हल करने के लिये एक रूपरेखा प्रदान करता है।
- दिवाला एक ऐसी स्थिति है जहाँ किसी व्यक्ति या संगठन की देनदारियाँ उसकी संपत्ति से अधिक हो जाती हैं और वह संस्था अपने दायित्वों या ऋणों को पूरा करने के लिये पर्याप्त नकदी जुटाने में असमर्थ होती है क्योंकि उनका भुगतान बकाया हो जाता है।
- दिवालियापन तब होता है जब किसी व्यक्ति या कंपनी को कानूनी तौर पर उनके देय और देय बिलों का भुगतान करने में असमर्थ घोषित कर दिया जाता है।
- दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (संशोधन) अधिनियम, 2021 दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता, 2016 में संशोधन करता है।
- इस संशोधन का उद्देश्य कूट के तहत सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) के रूप में वर्गीकृत कॉर्पोरेट व्यक्तियों के लिये एक कुशल वैकल्पिक दिवाला समाधान ढाँचा प्रदान करना है।
- इसका लक्ष्य सभी हितधारकों के लिये त्वरित, लागत प्रभावी और परिणाम सुनिश्चित करना है।
- दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (IBC), 2016 कंपनियों, व्यक्तियों एवं साझेदारियों के दिवालियेपन को समयबद्ध तरीके से हल करने के लिये एक रूपरेखा प्रदान करता है।
- उद्देश्य:
- देनदार की संपत्ति के मूल्य को अधिकतम करना।
- उद्यमिता को बढ़ावा देना।
- मामलों का समय पर एवं प्रभावी समाधान सुनिश्चित करना।
- सभी हितधारकों के हितों को संतुलित करना।
- प्रतिस्पर्द्धी बाज़ार और अर्थव्यवस्था को सुगम बनाना।
- सीमा पार दिवालियापन मामलों के लिये एक रूपरेखा प्रदान करना।
- IBC कार्यवाही:
- भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता बोर्ड (IBBI):
- IBBI भारत में दिवाला कार्यवाही की देखरेख करने वाले नियामक प्राधिकरण के रूप में कार्य करता है।
- इसमें पदेन सदस्य भी होते हैं।
- IBBI के अध्यक्ष एवं तीन पूर्णकालिक सदस्य सरकार द्वारा नियुक्त किये जाते हैं तथा वे वित्त, कानून और दिवालियापन के क्षेत्र में विशेषज्ञ होते हैं।
- इसमें पदेन सदस्य भी होते हैं।
- IBBI भारत में दिवाला कार्यवाही की देखरेख करने वाले नियामक प्राधिकरण के रूप में कार्य करता है।
- कार्यवाही का निर्णय:
- राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (NCLT) कंपनियों के लिये कार्यवाही का निर्णय करता है।
- ऋण वसूली न्यायाधिकरण (DRT) व्यक्तियों के लिये कार्यवाही संभालता है।
- समाधान प्रक्रिया की शुरुआत को मंज़ूरी देने, पेशेवरों की नियुक्ति करने और लेनदारों के अंतिम निर्णयों का समर्थन करने में अदालतें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
- संहिता के तहत दिवाला समाधान की प्रक्रिया:
- डिफॉल्ट पर देनदार या लेनदार द्वारा शुरू किया गया।
- दिवाला पेशेवर प्रक्रिया का प्रबंधन करते हैं, लेनदारों को वित्तीय जानकारी प्रदान करते हैं और देनदार परिसंपत्ति प्रबंधन की देखरेख करते हैं।
- 180 दिन की अवधि समाधान प्रक्रिया के दौरान देनदार के खिलाफ कानूनी कार्रवाई पर रोक लगाती है।
- ऋणदाताओं की समिति (CoC):
- दिवाला पेशेवरों द्वारा गठित, CoC में वित्तीय ऋणदाता शामिल हैं।
- CoC बकाया ऋणों के भाग्य का निर्धारण करती है, ऋण पुनरुद्धार, पुनर्भुगतान अनुसूची में बदलाव या परिसंपत्ति परिसमापन पर निर्णय लेती है।
- 180 दिनों के भीतर निर्णय न लेने पर देनदार की संपत्ति परिसमापन में चली जाती है।
- दिवाला पेशेवरों द्वारा गठित, CoC में वित्तीय ऋणदाता शामिल हैं।
- परिसमापन प्रक्रिया:
- देनदार की संपत्ति की बिक्री से प्राप्त आय को निम्नलिखित क्रम में वितरित किया जाता है:
- पहला दिवाला समाधान लागत, जिसमें दिवाला पेशेवर का पारिश्रमिक शामिल है, दूसरा सुरक्षित लेनदार, जिनके ऋण संपार्श्विक द्वारा समर्थित हैं और तीसरा श्रमिकों, अन्य कर्मचारियों का बकाया, अगला असुरक्षित लेनदार।
- देनदार की संपत्ति की बिक्री से प्राप्त आय को निम्नलिखित क्रम में वितरित किया जाता है:
- भारतीय दिवाला और शोधन अक्षमता बोर्ड (IBBI):
आगे की राह
- समाधान योजनाओं में उच्च पुनर्भुगतान प्रतिशत सुनिश्चित करने के उपाय लागू करें। इसमें योजनाओं को मंज़ूरी देने के लिये कठिन मूल्यांकन मानदंड, क्रेता द्वारा पर्याप्त अग्रिम भुगतान की आवश्यकता पर बल देना और समय पर भुगतान को प्रोत्साहित करना शामिल हो सकता है।
- किसी एक कॉरपोरेट घराने के लिये ऋण की अधिकतम सीमा 10,000 करोड़ रुपए लागू करने का RBI का निर्णय बट्टे खाते में डालने के दौरान बैंकों के बोझ को कम करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
- चूँकि मूल उद्देश्य पूरे नहीं हुए हैं इसलिये IBC और NCLT की पूर्ण समीक्षा की तत्त्काल आवश्यकता है।
- "हेयरकट्स" की अवधारणा का पुनर्मूल्यांकन करें और प्रमोटरों द्वारा दुरुपयोग को रोकने के लिये उपायों को लागू करें। ऐसे सुरक्षा उपाय पेश करें जो प्रमोटरों और वित्तीय ऋणदाताओं के बीच घाटे का उचित वितरण सुनिश्चित करें।
- मामलों की स्थिति और देरी के कारणों पर नियमित अपडेट सुनिश्चित करके समाधान प्रक्रिया में पारदर्शिता बढ़ाएँ।
सरकार द्वारा वेबसाइट ब्लॉक करना
प्रिलिस्म के लिये:सूचना प्रौद्योगिकी (Information Technology - IT) अधिनियम, 2000 की धारा 69A, सूचना का अधिकार (Right to Information - RTI), आतंकवाद, घृणास्पद भाषण (Hate Speech), अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of Expression)। मेन्स के लिये:सरकार द्वारा वेबसाइट ब्लॉक करना, विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप तथा उनके डिज़ाइन एवं कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
सूचना का अधिकार (Right to Information - RTI)आवेदन के जवाब से पता चलता है कि वेबसाइट ब्लॉक करने के आदेश 2013 से अक्टूबर 2023 तक 100 गुना से अधिक बढ़ गए हैं।
भारत में वेबसाइट ब्लॉकिंग ऑर्डर के रुझान क्या हैं?
- केंद्र सरकार ने 2013 में 62 और 2023 में अक्टूबर तक 6,954 वेबसाइट ब्लॉक करने के आदेश जारी किये।
- ये आदेश सूचना प्रौद्योगिकी (Information Technology - IT) अधिनियम, 2000 की धारा 69A के तहत जारी किये गए हैं।
- वेबसाइट ब्लॉकिंग ऑर्डर में वृद्धि इंटरनेट के उपयोग में उल्लेखनीय वृद्धि के साथ-साथ हुई है, खासकर 2016 में मोबाइल डेटा की कीमतों में पर्याप्त कमी के बाद से।
- ब्लॉक किये गए अधिकांश वेब पेज व्यक्तिगत पोस्ट, वीडियो या प्रोफ़ाइल होने की संभावना है।
- आवश्यकता पड़ने पर या यदि वे देश के कानूनों का अनुपालन नहीं कर रहे हैं या अदालत के आदेशों के अनुसार उन्हें ब्लॉक करने की आवश्यकता है, तो तत्काल वेब/एप्लिकेशन सर्वर के स्थान का पता लगाया जाता है।
वेबसाइटों या ऑनलाइन सामग्री को ब्लॉक करने के लिये सरकार के भीतर कानूनी ढाँचा क्या है?
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (IT Act), 2000:
- भारत में, IT अधिनियम, 2000, समय-समय पर संशोधित, कंप्यूटर संसाधनों के उपयोग से संबंधित सभी गतिविधियों को नियंत्रित करता है।
- इसमें वे सभी 'मध्यस्थ' शामिल हैं जो कंप्यूटर संसाधनों और इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड के उपयोग में भूमिका निभाते हैं।
- IT अधिनियम 2000 के तहत इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा जारी सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम 2021 (Information Technology (Intermediary Guidelines and Digital Media Ethics Code) Rules 2021) मध्यवर्ती संस्थाओं तथा डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्मों की सामग्री एवं आचरण को नियंत्रित करता है जिसके परिणामस्वरूप कथित तौर पर नियमों का उल्लंघन करने वाले चैनल व कई वेबसाइटें अवरुद्ध हो गई हैं।
- IT अधिनियम की धारा 69:
- यह केंद्र तथा राज्य सरकारों को "किसी भी कंप्यूटर संसाधन में उत्पन्न, प्रसारित, प्राप्त अथवा संग्रहीत किसी भी जानकारी को रोकने, निगरानी करने अथवा डिक्रिप्ट करने" के निर्देश जारी करने की शक्ति प्रदान करता है।
- जिन आधारों पर इन शक्तियों का प्रयोग किया जा सकता है वे हैं:
- भारत की संप्रभुता अथवा अखंडता, भारत की रक्षा, राज्य सुरक्षा हित।
- विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध।
- सार्वजनिक व्यवस्था अथवा इनसे संबंधित किसी संज्ञेय अपराध के लिये उद्दीपन को रोकना।
- किसी भी अपराध की जाँच हेतु।
सरकार वेबसाइटों को ब्लॉक क्यों करती है और उन्हें ब्लॉक करने में क्या चुनौतियाँ हैं?
- सरकारी वेबसाइट को अवरुद्ध करना मुख्य रूप से राष्ट्रीय सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था और कानूनी नियमों से संबंधित चिंताओं से प्रेरित है।
- इसका उद्देश्य आतंकवाद, घृणास्पद भाषण अथवा विधि-विरुद्ध सामग्री जैसे खतरों का मुकाबला करना है।
- हालाँकि इस अभ्यास को विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। उपयोगकर्त्ता VPN जैसे टूल का उपयोग करके आसानी से ब्लॉक्ड चैनल अथवा साइट पर पहुँच सरल बना लेते हैं जिससे प्रवर्तन मुश्किल हो जाता है।
- VPN का अर्थ "वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क" है तथा यह सार्वजनिक नेटवर्क का उपयोग करते समय एक संरक्षित नेटवर्क कनेक्शन उपयोग करने में सहायता प्रदान करता है।
- वेब ब्राउज़र तथा फर्मों द्वारा उपयोग की जाने वाली एन्क्रिप्शन तकनीकों में विकास के कारण वेबसाइट ब्लॉक करना बहुत कठिन हो गया है जिससे इंटरनेट प्रदाताओं की अपने उपयोगकर्त्ताओं की गतिविधि पर निगरानी रखने में बाधा बढ़ती जा रही है।
सरकार द्वारा वेबसाइटों को ब्लॉक करने के क्या निहितार्थ हैं?
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रभाव:
- वेबसाइट को अवरुद्ध करना, विशेषकर जब वह उचित न हो, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बारे में चिंताएँ उत्पन्न कर सकता है। राष्ट्रीय हितों की रक्षा और नागरिकों के अपनी राय व्यक्त करने के अधिकारों की सुरक्षा के बीच संतुलन बनाना महत्त्वपूर्ण है।
- सूचना पहुँच पर प्रभाव:
- वेबसाइटों को ब्लॉक करने से बहुमूल्य जानकारी और विविध दृष्टिकोणों तक पहुँच में बाधा आ सकती है। इससे जनता की विभिन्न मुद्दों के बारे में सूचित रहने और सही निर्णय लेने की क्षमता सीमित हो सकती है।
- यदि सरकार उचित परिश्रम के बिना वेबसाइटों को ब्लॉक कर देती है, तो यह अनजाने में ज्ञान के प्रसार को बाधित कर सकता है और जनता के सूचना तक पहुँचने के अधिकार में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
- आर्थिक परिणाम:
- वेबसाइटों को अवरुद्ध करने से हानिकारक आर्थिक परिणाम हो सकते हैं, विशेषकर यदि यह उन प्लेटफार्मों पर होस्ट किये गए वैध व्यवसायों के संचालन को बाधित करता है।
- यदि व्यवसायों और उद्यमियों की वेबसाइटें अवरुद्ध कर दी जाती हैं, तो उन्हें चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, जिससे न केवल उनके संप्राप्ति पर असर पड़ेगा, बल्कि संभावित रूप से नवाचार और आर्थिक विकास भी प्रभावित होगा।
- सार्वजनिक धारणा और विश्वास:
- वेबसाइटों को ब्लॉक करने के सरकार के निर्णय लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखने की क्षमता में जनता की धारणा और विश्वास को आकार दे सकते हैं।
- यदि जनता वेबसाइट ब्लॉकिंग को मनमाना या अनुचित मानती है, तो इससे सरकारी संस्थानों में विश्वास की हानि हो सकती है, जो संभावित रूप से समग्र नागरिक सहभागिता को प्रभावित कर सकती है।
आगे की राह
- वेबसाइट ब्लॉकिंग की दक्षता को बेहतर करने के लिये अमेज़ॅन वेब सर्विसेज़, गूगल क्लाउड और क्लाउडफ्लेयर जैसे प्रमुख कंटेंट डिलीवरी नेटवर्क (CDN) के साथ सहयोग का पता लगाया जा सकता है। CDN सामग्री वितरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और विशिष्ट सामग्री को अवरुद्ध करने हेतु अधिक प्रभावी तंत्र प्रदान कर सकते हैं।
- जबकि सरकारें वेबसाइट ब्लॉकिंग के माध्यम से वास्तविक खतरों को संबोधित करना चाहती हैं, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, व्यवसायों और सार्वजनिक विश्वास पर संभावित प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के लिये सावधानीपूर्वक विचार एवं पारदर्शी, जवाबदेह प्रक्रियाएँ आवश्यक हैं।