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डेली न्यूज़

  • 10 Aug, 2023
  • 47 min read
शासन व्यवस्था

भूमि पुनरुद्धार और वनीकरण

प्रिलिम्स के लिये:

नगर वन योजना, राष्ट्रीय वन नीति, 1988, हरित भारत के लिये राष्ट्रीय मिशन

मेन्स के लिये:

भारत के जलवायु सुनम्यता लक्ष्यों को प्राप्त करने में वनीकरण और धारणीय भूमि प्रबंधन की भूमिका, भूमि पुनरुद्धार एवं वनीकरण से संबंधित पहलें

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री ने लोकसभा में दिये एक लिखित जवाब में भू-क्षरण से निपटने एवं वनीकरण को बढ़ावा देने के लिये भारत द्वारा की गई महत्त्वपूर्ण पहलों पर प्रकाश डाला।

  • नगर वन योजना (शहरी वन योजना) पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की एक प्रगतिशील पहल है जिसका संचालन काफी तीव्र गति से हो रहा है एवं इसमें हुई प्रगति वाइब्रेंट शहरी हरित क्षेत्रों के निर्माण हेतु भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाती है।

नगर वन योजना (NVY):

  • परिचय:
    • इस योजना की शुरुआत वर्ष 2020 में एक दूरदर्शी उद्देश्य के साथ की गई थी, इसके अंतर्गत नगर निगमों, नगर परिषदों, नगर पालिकाओं और शहरी स्थानीय निकायों वाले शहरों में 1000 नगर वनों (शहरी वन) का निर्माण कार्य शामिल है।
    • यह महत्त्वाकांक्षी पहल न केवल शहरी निवासियों के लिये एक समग्र और स्वस्थ रहने योग्य वातावरण को बढ़ावा देने हेतु डिज़ाइन की गई है, बल्कि इसका उद्देश्य स्वच्छ, हरित तथा अधिक धारणीय शहरी केंद्रों के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देना भी है।
  • मुख्य विशेषताएँ:
    • शहरी क्षेत्र में हरित सौन्दर्यपरक वातावरण का निर्माण करना।
    • पादपों और जैव विविधता के विषय में जागरूकता बढ़ाना और पर्यावरण प्रबंधन सुनिश्चित करना।
    • संबद्ध क्षेत्र की महत्त्वपूर्ण वनस्पतियों के यथास्थान संरक्षण की सुविधा प्रदान करना
    • प्रदूषण में कमी लाना, स्वच्छ वायु प्रदान करना, शोर-कोलाहल में कमी लाना, जल संचयन और ताप द्वीपों/हीट आइलैंड के प्रभाव को कम करके शहरों के पर्यावरण के सुधार में योगदान देना।
    • शहरी निवासियों को स्वास्थ्य लाभ पहुँचाना तथा शहरों के जलवायु अनुकूलन में मदद करना।
  • योजना की प्रगति और प्रभाव:
    • इस योजना की शुरुआत के बाद से देश भर में 385 संबद्ध परियोजनाओं को मंज़ूरी देने में उल्लेखनीय प्रगति देखी गई है।
    • यह शहरों को संपन्न, पर्यावरण के प्रति जागरूक समुदायों में बदलने के भारत के समर्पण को रेखांकित करती है।

भू-क्षरण से निपटने और वनीकरण को बढ़ावा देने के लिये की गई पहलें:

  • वन क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये सरकारी पहल:
    • राष्ट्रीय वन नीति (National Forest Policy- NFP) 1988:
      • इसका राष्ट्रीय लक्ष्य कुल भूमि क्षेत्र के न्यूनतम एक-तिहाई हिस्से में वन अथवा वृक्ष आवरण बनाए रखना है।
      • इसका उद्देश्य पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखना, प्राकृतिक विरासत का संरक्षण करना तथा नदी, झील व जलाशय जलग्रहण क्षेत्रों में मृदा अपरदन को रोकना है।
    • हरित भारत के लिये राष्ट्रीय मिशन (Green India- GIM):
      • यह जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (National Action Plan on Climate Change- NAPCC) के अंतर्गत आता है और इसका उद्देश्य वन एवं वृक्ष आवरण में वृद्धि करना, निम्नीकृत पारिस्थितिकी तंत्र में सुधार करना तथा जैव विविधता को बढ़ाना है।
    • वनाग्नि सुरक्षा एवं प्रबंधन योजना (Forest Fire Protection & Management Scheme- FFPM):
      • यह योजना वनाग्नि को रोकने और प्रबंधित करने, वनों के समग्र स्वास्थ्य में योगदान देने पर केंद्रित है।
    • प्रतिपूरक वनीकरण निधि (Compensatory Afforestation Fund- CAF):
      • सरकारें कई प्रयोजनों से वन भूमि को गैर-वन उद्देश्यों के लिये आवंटित करती हैं, ऐसे में इससे प्राप्त धन का उपयोग वनीकरण और पुनर्वनीकरण परियोजनाओं के माध्यम से वन आवरण में वृद्धि करने हेतु किया जाता है।
        • इसका उपयोग राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा विकासात्मक परियोजनाओं के लिये प्रदान की गई वन भूमि के बदले प्रतिपूरक वनीकरण हेतु किया जाता है।
        • प्रतिपूरक वनीकरण निधि का 90% और 10% हिस्सा क्रमशः राज्यों एवं केंद्र में वितरित किया जाता है।
    • राष्ट्रीय तटीय मिशन कार्यक्रम:
      • 'मैंग्रोव और प्रवाल भित्तियों के संरक्षण एवं प्रबंधन' पर राष्ट्रीय तटीय मिशन कार्यक्रम के तहत सभी तटीय राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों में मैंग्रोव के संरक्षण और प्रबंधन के लिये वार्षिक प्रबंधन कार्य योजना तैयार एवं कार्यान्वित की जाती है।
    • राज्य विशिष्ट पहलें:
      • हरिता हरम मिशन:
        • यह राज्य के हरित आवरण को वर्तमान के 25.16% से बढ़ाकर कुल भौगोलिक क्षेत्र का 33% करने के लिये तेलंगाना सरकार द्वारा शुरू किया गया एक प्रमुख कार्यक्रम है।
      • ग्रीन वाॅल:
        • यह अरावली पर्वतमाला को पुनर्स्थापित और संरक्षित करने के लिये हरियाणा सरकार द्वारा शुरू की गई एक पहल है।
        • यह हरियाणा, राजस्थान, गुजरात और दिल्ली राज्यों को शामिल करते हुए अरावली पर्वत शृंखला के चारों ओर 1,400 किमी. लंबी एवं 5 किमी. चौड़ी हरित बेल्ट बनाने की एक महत्त्वाकांक्षी योजना है।
    • वनीकरण संबंधी उपलब्धियाँ:
      • बीस सूत्रीय कार्यक्रम रिपोर्टिंग (Twenty Point Programme Reporting): 
        • वर्ष 2011-12 से लेकर वर्ष 2021-22 की अवधि में वनीकरण प्रयासों के माध्यम से लगभग 18.94 मिलियन हेक्टेयर भूमि को वनावरित किया गया है।
        • ये उपलब्धियाँ राज्य सरकारों और केंद्र तथा राज्य-विशिष्ट योजनाओं के ठोस प्रयासों का परिणाम हैं।
      • बहु-क्षेत्रीय दृष्टिकोण:
        • वनीकरण गतिविधियाँ विभागों, गैर-सरकारी संगठनों (NGO), नागरिक समाज समूहों तथा कॉर्पोरेट संस्थाओं को शामिल करते हुए विभिन्न क्षेत्रों में सहयोगात्मक रूप से की जाती हैं। यह बहुआयामी दृष्टिकोण भूमि क्षरण की समस्या से निपटने हेतु एक समग्र प्रयास सुनिश्चित करता है।
    • भूमि क्षरण को रोकने हेतु उपाय:
    • ICFRE में उत्कृष्टता केंद्र: 
      • देहरादून में भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (Indian Council for Forestry Research and Education- ICFRE) में उत्कृष्टता केंद्र की स्थापना का उद्देश्य दक्षिण-दक्षिण सहयोग को बढ़ावा देना है।
        • यह स्थायी भूमि प्रबंधन के लिये ज्ञान के आदान-प्रदान, सर्वोत्तम अभ्यास साझा करने और क्षमता निर्माण की सुविधा प्रदान करता है।
    • बॉन चैलेंज प्रतिज्ञा: 
      • भारत स्वैच्छिक बॉन चैलेंज प्रतिज्ञा के हिस्से के रूप में वर्ष 2030 तक 26 मिलियन हेक्टेयर बंजर और वनों की कटाई वाली भूमि को बहाल करने के लिये प्रतिबद्ध है। यह वैश्विक पहल उन्नत पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं एवं जैव विविधता के लिये बंजर भूमि को बहाल करने पर केंद्रित है।
    • UNFCCC COP और UNCCD COP14: 

भूमि क्षरण और वनीकरण संबंधी चुनौतियाँ:

  • भूमि क्षरण संबंधी चुनौतियाँ:
    • मृदा अपरदन:
      • तेज़ वर्षा और वायु भूमि की ऊपरी मृदा को हटा देती है, जिससे मृदा की उर्वरता कम हो जाती है।
      • इस कटाव का कारण अनुचित कृषि पद्धतियाँ और वनों की कटाई है।
      • जलवायु परिवर्तन वर्षा पैटर्न में बदलाव और बढ़ते तापमान के माध्यम से मृदा की गुणवत्ता में गिरावट का कारण बनता है। बदली हुई मौसम की स्थितियाँ (जैसे कि मृदा की अवशोषण क्षमता से अधिक तीव्र वर्षा) कटाव को तेज़ करती हैं जिससे अपवाह व क्षरण होता है।
    • मरुस्थलीकरण:
      • शुष्क और अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में मृदा का क्षरण और वनस्पति आवरण का नुकसान होता है।
      • अत्यधिक चराई और अरक्षणीय भूमि उपयोग मरुस्थलीकरण को बढ़ाते हैं।
    • औद्योगीकरण और शहरीकरण:
      • शहरी विस्तार और औद्योगिक गतिविधियों के कारण मृदा के रंध्र बंद हो जाते है जिससे जल भूमि में प्रवेश नही कर पाता, परिणामस्वरूप पोषक तत्त्वों का चक्र बाधित होता है।
      • उद्योगों से होने वाला प्रदूषण मृदा और जल संसाधनों को दूषित कर सकता है।
    • भूमि प्रदूषण और संदूषण:
      • अपशिष्ट और खतरनाक सामग्रियों के अनुचित निपटान से मृदा प्रदूषित होती है तथा इसकी उत्पादकता कम हो जाती है।
      • भूमि भराव (Landfills) और अनुचित अपशिष्ट प्रबंधन भूमि क्षरण का कारण बनते हैं।
  • वनीकरण संबंधी चुनौतियाँ:
    • प्रजाति चयन:
      • स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र में भी विकसित हो सकने वाली उपयुक्त वृक्ष प्रजातियों का चयन।
      • आक्रामक प्रजातियाँ मूल वनस्पति से प्रतिस्पर्द्धा कर सकती हैं।
    • उत्तरजीविता और विकास:
      • रोपित पौधों का कठोर परिस्थितियों में बढ़ने और विकसित होने में कठिनाई।
      • जल की उपलब्धता, मृदा की गुणवत्ता और जलवायु मौजूद वृक्षों को प्रभावित करते हैं।
    • प्रतिस्पर्द्धी भूमि उपयोग:
      • वनीकरण कृषि, शहरीकरण या अन्य भूमि उपयोगों के साथ प्रतिस्पर्द्धा के चलते  संघर्ष की स्थिति उत्पन्न होती है।
      • संरक्षण लक्ष्यों को आर्थिक गतिविधियों के साथ संतुलित करना चुनौतीपूर्ण।
    • पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलन:
      • देशी प्रजातियों और पारिस्थितिक तंत्र पर विचार किये बिना तेज़ी से किया गया वनीकरण प्राकृतिक संतुलन को बाधित कर सकता है।
      • एकल कृषि रोपण से जैव विविधता का नुकसान हो सकता है।
    • सामाजिक सहभागिता:
      • दीर्घकालिक सफलता के लिये वनीकरण प्रयासों में स्थानीय समुदायों को शामिल करना आवश्यक है।
      • अपर्याप्त सामुदायिक भागीदारी प्रतिरोध या अस्थिर प्रथाओं का कारण बन सकती है।

आगे की राह

  • एकीकृत दृश्यभूमि प्रबंधन:
    • अन्य गतिविधियों के साथ वनीकरण को एकीकृत करते हुए समग्र भूमि-उपयोग योजनाएँ विकसित करना।
    • कटाव और मरुस्थलीकरण को रोकने के लिये स्थायी भूमि प्रबंधन प्रथाओं को लागू करना।
  • विज्ञान आधारित प्रजातियों का चयन और कृषि वानिकी:
    • स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र के लिये उपयुक्त वृक्ष प्रजातियों का चयन करने हेतु अनुसंधान करना।
    • उन्नत जैव विविधता और उत्पादकता के लिये कृषि वानिकी मॉडल को बढ़ावा देना।
  • जैव-इंजीनियरिंग समाधान:
    • भूमि के स्वास्थ्य को बहाल करने और कटाव को रोकने के लिये मृदा जैव-उपचार तथा बायो-फेंसिंग जैसी जैव-इंजीनियरिंग तकनीकों का उपयोग करना।
  • पारंपरिक पारिस्थितिक ज्ञान:
    • पारंपरिक कृषि वानिकी प्रथाओं को पुनर्जीवित करने, आधुनिक बहाली रणनीतियों में स्थानीय ज्ञान को एकीकृत करने के लिये स्वदेशी समुदायों के साथ सहयोग करना।
  • पर्यावरण-उद्यमिता:
    • समुदाय के नेतृत्व वाले वनीकरण उद्यमों को प्रोत्साहित करना, स्थायी आजीविका सुनिश्चित करना और स्वामित्व की भावना विकसित करना।
  • सतत् वित्तपोषण तंत्र:
    • बजट, अंतर्राष्ट्रीय स्रोतों और सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से धन एकत्र करना।
    • वनीकरण परियोजनाओं के लिये पारदर्शी आवंटन सुनिश्चित करना।
  • निगरानी, अनुसंधान एवं नवाचार:
    • प्रगति और प्रभाव के मूल्यांकन के लिये मज़बूत निगरानी प्रणाली विकसित करना।
    • जलवायु-अनुकूल वनीकरण तकनीकों के लिये अनुसंधान एवं नवाचार में निवेश करना।

स्रोत: पी.आई.बी.


शासन व्यवस्था

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत पहल

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020, परख, पीएम-श्री, नेशनल क्रेडिट फ्रेमवर्क, निपुण भारत मिशन, अकादमिक और अनुसंधान सहयोग संवर्द्धन योजना

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 की मुख्य विशेषताएँ

चर्चा में क्यों? 

  • हाल ही में शिक्षा राज्य मंत्री ने भारत में शिक्षा क्षेत्र में बदलाव के लिये राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy- NEP) 2020 के तहत की गई पहलों पर लोकसभा में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान की।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020:

  • परिचय: 
    • NEP 2020 का लक्ष्य "भारत को एक वैश्विक ज्ञान महाशक्ति (Global Knowledge Superpower)" बनाना है। स्वतंत्रता के बाद से यह भारत के शिक्षा ढाँचे में तीसरा बड़ा सुधार है।
      • पहले की दो शिक्षा नीतियाँ वर्ष 1968 और 1986 में लाई गई थीं।
  • मुख्य विशेषताएँ: 
    • प्री-प्राइमरी स्कूल से कक्षा 12 तक स्कूली शिक्षा के सभी स्तरों पर सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित करना।
    • 3-6 वर्ष के बीच के सभी बच्चों के लिये गुणवत्तापूर्ण प्रारंभिक बचपन की देखभाल और शिक्षा सुनिश्चित करना।
    • नई पाठ्यचर्या और शैक्षणिक संरचना (5+3+3+4) क्रमशः 3-8, 8-11, 11-14 एवं 14-18 वर्ष के आयु समूहों से सुमेलित है।
      • इसमें स्कूली शिक्षा के चार चरण शामिल हैं: मूलभूत चरण (5 वर्ष), प्रारंभिक चरण (3 वर्ष), मध्य चरण (3 वर्ष) और माध्यमिक चरण (4 वर्ष)।
    • कला तथा विज्ञान के बीच, पाठ्यचर्या व पाठ्येतर गतिविधियों के बीच, व्यावसायिक और शैक्षणिक धाराओं के बीच कोई सख्त अलगाव नहीं
    • बहुभाषावाद और भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने पर ज़ोर।
    • एक नए राष्ट्रीय मूल्यांकन केंद्र, परख (प्रदर्शन मूल्यांकन, समीक्षा एवं समग्र विकास के लिये ज्ञान का विश्लेषण) की स्थापना।
    • वंचित क्षेत्रों और समूहों के लिये एक भिन्न लैंगिक समावेशन निधि और विशेष शिक्षा क्षेत्र

NEP 2020 के तहत प्रमुख पहलें: 

  • उभरते भारत के लिये PM स्कूल (SHRI):  PM-SHRI योजना का उद्देश्य न्यायसंगत, समावेशी और मनोरंजक स्कूली वातावरण में उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान करना है।
    • यह देश भर में 14500 से अधिक स्कूलों के उन्नयन और विकास के लिये सितंबर 2022 में शुरू की गई एक केंद्र प्रायोजित योजना है।
    • पीएम-श्री पहल के तहत स्कूलों को अपग्रेड करने के लिये 630 करोड़ रुपए आवंटित किये गए हैं।
  • निपुण भारत: ‘बेहतर समझ और संख्यात्मक ज्ञान के साथ पढ़ाई में प्रवीणता के लिये राष्ट्रीय पहल- निपुण’ (National Initiative for Proficiency in Reading with Understanding and Numeracy- NIPUN) भारत मिशन का दृष्टिकोण मूलभूत साक्षरता तथा संख्यात्मकता के सार्वभौमिक अधिग्रहण को सुनिश्चित करने हेतु एक सक्षम वातावरण बनाना है ताकि प्रत्येक बच्चा वर्ष 2026-27 तक ग्रेड 3 के अंत तक पढ़ने, लिखने और संख्यात्मकता में वांछित सीखने की दक्षता हासिल कर सके।
  • पीएम ई-विद्या: इस पहल का उद्देश्य दीक्षा जैसे विभिन्न ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म प्रदान करके और देश भर के छात्रों को ई-पुस्तकें तथा ई-सामग्री प्रदान कर ऑनलाइन शिक्षा एवं डिजिटल शिक्षण को बढ़ावा देना है।
  • NCF FS और जादुई पिटारा:  3 से 8 वर्ष की आयु के बच्चों हेतु खेल-आधारित अध्ययन की शिक्षण सामग्री हेतु मूलभूत चरण के लिये राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (National Curriculum Framework for Foundational Stag- NCF FS) और जादुई पिटारा शुरू की गई है।
  • निष्ठा: 'नेशनल इनीसिएटिव फॉर स्कूल हेड्स एंड टीचर्स होलीस्टिक एडवांसमेंट’ अर्थात् निष्ठा (National Initiative for School Heads and Teachers Holistic Advancement- NISHTHA) भारत में शिक्षकों और स्कूल प्रधानाचार्यों के लिये एक क्षमता-निर्माण कार्यक्रम है।
  • नेशनल डिजिटल एजुकेशन आर्किटेक्चर (NDEAR): यह वास्तुशिल्प संबंधी ब्लूप्रिंट है, जो शिक्षा से संबंधित डिजिटल प्रौद्योगिकी-आधारित अनुप्रयोगों को सक्षम बनाने हेतु मार्गदर्शक सिद्धांतों का एक सेट तैयार करता है।
  • शैक्षणिक रूपरेखा: क्रेडिट हस्तांतरण और शैक्षणिक लचीलेपन की सुविधा के लिये राष्ट्रीय क्रेडिट फ्रेमवर्क (NCrF) तथा राष्ट्रीय उच्च शिक्षा योग्यता फ्रेमवर्क (NHEQF) की शुरुआत।
  • शिक्षा क्षेत्र में निवेश में वृद्धि: इस नीति के अनुसार, केंद्र सरकार और राज्य सरकारों दोनों को शिक्षा क्षेत्र के लिये सकल घरेलू उत्पाद का संयुक्त रूप से 6% आवंटित करना होगा।
    • इस विज़न को ध्यान में रखते हुए शिक्षा मंत्रालय ने वर्ष 2020-21 के बजट की तुलना में 13.68% की वृद्धि के साथ वर्ष 2023-24 के लिये 1,12,899 करोड़ रुपए का बजट रखा है।
  • अंतर्राष्ट्रीय परिसर/कैंपस और साझेदारी: राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 भारतीय विश्वविद्यालयों को विदेशों में परिसर स्थापित करने और विदेशी संस्थानों को भारत में संचालन के लिये आमंत्रित करने में सहायता करती है।
    • ज़ांज़ीबार और अबू धाबी में IIT परिसरों की स्थापना के लिये समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए हैं, जो भारत की वैश्विक शैक्षिक पहुँच को दर्शाता है।
  • गिफ्ट सिटी (GIFT City) में शैक्षिक नवाचार:
    • NEP 2020 का नवाचारी दृष्टिकोण गुजरात के गिफ्ट सिटी में लागू किया गया है, जहाँ विश्व स्तरीय विदेशी विश्वविद्यालयों और संस्थानों को विशेष पाठ्यक्रम प्रदान करने की अनुमति प्राप्त है।
      • घरेलू नियमों से मुक्त इस कदम का उद्देश्य वित्तीय सेवाओं और प्रौद्योगिकी के लिये उच्च-स्तरीय मानव संसाधनों का विकास करना है।

अन्य संबद्ध पहलें: 

  • विश्व स्तरीय संस्थान योजना: वर्ष 2017 में शुरू की गई विश्व स्तरीय संस्थान योजना का उद्देश्य किफायती, शीर्ष पायदान के शैक्षणिक और अनुसंधान केंद्रों का निर्माण करना है।
    • यह योजना अकादमिक उत्कृष्टता को बढ़ावा देने के लिये "प्रतिष्ठित संस्थानों" (Institutions of Eminence- IoEs) को नामित करती है।
    • अभी तक में आठ सार्वजनिक और चार निजी समेत 12 संस्थानों को चिह्नित किया गया है, जो विश्व स्तरीय शिक्षा प्रदान करने की भारत की प्रतिबद्धता का एक प्रमाण है।
  • अकादमिक नेटवर्क के लिये वैश्विक पहल (Global Initiative for Academic Network- GIAN) और SPARC: GIAN भारत के शैक्षणिक संसाधनों को बेहतर बनाने के लिये भारतीय मूल के वैज्ञानिकों एवं उद्यमियों सहित अन्य वैज्ञानिकों व उद्यमियों की विशेषज्ञता का उपयोग करने पर केंद्रित है।
    • अकादमिक और अनुसंधान सहयोग को बढ़ावा देने हेतु योजना (Scheme for Promotion of Academic and Research Collaboration- SPARC) भारतीय और विदेशी संस्थानों के बीच सहयोग को बढ़ावा देकर अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र को बेहतर बनाने का प्रयास करती है।
    • ये पहलें अनुसंधान की गुणवत्ता में वृद्धि करने और ज्ञान के आदान-प्रदान को बढ़ावा देने में  अहम भूमिका निभाती हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न. संविधान के निम्नलिखित में से किस प्रावधान का भारत की शिक्षा पर प्रभाव पड़ता है? (2012)

  1. राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत
  2. ग्रामीण एवं शहरी स्थानीय निकाय
  3. पाँचवीं अनुसूची
  4. छठी अनुसूची
  5. सातवीं अनुसूची

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2 
(b) केवल 3, 4 और  5 
(c) केवल 1, 2 और 5 
(d) 1, 2, 3, 4 और 5

उत्तर- (d)


मेन्स:

प्रश्न. भारत में डिजिटल पहल ने किस प्रकार से देश की शिक्षा व्यवस्था के संचालन में योगदान किया है? विस्तृत उत्तर दीजिये। (2020)

प्रश्न. जनसंख्या शिक्षा के मुख्य उद्देश्यों की विवेचना करते हुए भारत में इन्हें प्राप्त करने के उपायों पर विस्तृत प्रकाश डालिये। (2021)

स्रोतः पी.आई.बी.


शासन व्यवस्था

भारत में बाँध सुरक्षा और जल संसाधन प्रबंधन

प्रिलिम्स के लिये:

बाँध सुरक्षा अधिनियम, 2021, राष्ट्रीय जल विज्ञान परियोजना 

मेन्स के लिये:

बाँध सुरक्षा से संबंधित मुद्दे, बाँध निर्माण और पर्यावरणीय चुनौतियाँ, भारत में बाँधों की आयु, बाँध सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये संभावित उपाय

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में जल शक्ति राज्य मंत्री ने बाँध सुरक्षा और जल संसाधन प्रबंधन के क्षेत्र में भारत की महत्त्वपूर्ण प्रगति पर प्रकाश डाला।

भारत में बाँध सुरक्षा और जल संसाधन प्रबंधन से सबंधित प्रमुख पहलें:

  • बाँध सुरक्षा अधिनियम, 2021: एक नियामक ढाँचा:
    • यह केंद्र सरकार द्वारा अधिनियमित एक अधिनियम है।
    • इसके तहत निर्दिष्ट बाँध की उचित निगरानी, निरीक्षण, संचालन और रखरखाव का कार्य किया जाता है।
    • इसका उद्देश्य बाँध विफलता से संबंधित आपदाओं को रोकना और बाँध सुचारु रूप से कार्य कर सकें, इसके लिये संस्थागत तंत्र की स्थापना करना है।
  • संस्थागत तंत्र:
    • बाँध सुरक्षा पर राष्ट्रीय समिति (National Committee on Dam Safety-  NCDS):
      • इसका कार्य राष्ट्रीय स्तर पर बाँध सुरक्षा हेतु राष्ट्रीय समिति का गठन करना है।
      • यह बाँध सुरक्षा संबंधी नीतियों को विकसित करने और आवश्यक नियमों की सिफारिश करने के लिये उत्तरदायी है ।
      • यह समान सुरक्षा मानकों को सुनिश्चित करने के लिये एक रणनीतिक मंच प्रदान करता है।
    • राष्ट्रीय बाँध सुरक्षा प्राधिकरण (National Dam Safety Authority- NDSA):
      • इसका कार्य एक नियामक संस्था के रूप में राष्ट्रीय बाँध सुरक्षा प्राधिकरण का गठन करना है।
      • यह बाँध सुरक्षा पर राष्ट्रीय समिति की नीतियों को लागू करता है।
      • राज्य बाँध सुरक्षा संगठनों (State Dam Safety Organisations- SDSO) को तकनीकी सहायता प्रदान करने के साथ अंतर-राज्यीय विवादों का समाधान करता है।
    • राज्य स्तरीय बाँध सुरक्षा उपाय:
      • यह बाँध सुरक्षा पर राज्य समिति की स्थापना के लिये राज्य सरकारों को सशक्त बनाता है।
      • यह बाँध सुरक्षा मानकों को लागू करने के लिये ज़िम्मेदार राज्य बाँध सुरक्षा संगठनों का गठन करता है।
      • यह सुरक्षा प्रोटोकॉल और उपचारात्मक कार्रवाइयों के संबंध में बाँध प्रबंधकों को महत्त्वपूर्ण निर्देश प्रदान करता है।
  • राष्ट्रीय जल विज्ञान परियोजना (National Hydrology Project- NHP):
    • राष्ट्रीय जल विज्ञान परियोजना को चार प्रमुख घटकों; जल संसाधन निगरानी प्रणाली, जल संसाधन सूचना प्रणाली, जल संसाधन संचालन और योजना प्रणाली तथा संस्थागत क्षमता वृद्धि के साथ डिज़ाइन किया गया है।
    • इस परियोजना का लक्ष्य देश भर में जल संसाधन प्रबंधन क्षमता में वृद्धि करना है।
    • यह कार्यान्वयन एजेंसियों द्वारा किये गए बाढ़ संबंधी पूर्वानुमान अध्ययनों का समर्थन करती है।

भारतीय बाँधों की स्थिति:

  • भारत में कुल 5745 बाँध हैं जिनमें से 411 निर्माणाधीन हैं।
  • बड़े बाँधों के निर्माण के मामले में भारत विश्व में तीसरे स्थान पर है।
  • उत्तराखंड का टिहरी बाँध भागीरथी नदी पर बना भारत का सबसे ऊँचा बाँध है।
  • ओडिशा में महानदी पर बना हीराकुंड बाँध भारत का सबसे लंबा बाँध है।
  • तमिलनाडु में कल्लनई बाँध भारत का सबसे पुराना बाँध है। यह कावेरी नदी पर बना है और लगभग 2000 वर्ष पुराना है।

अन्य संबंधित जल संसाधन प्रबंधन पहल:

  • स्वच्छ भारत मिशन।
  • जल जीवन मिशन।
  • राष्ट्रीय जल नीति, 2012।
  • प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना।
  • जल शक्ति अभियान- कैच द रेन अभियान।
  • अटल भू-जल योजना।
  • सुजलाम 2.0।
  • अमृत सरोवर मिशन।
  • बाँध सुरक्षा और जल संसाधन प्रबंधन संबंधी चुनौतियाँ:
  • भू-वैज्ञानिक और भू-तकनीकी चुनौतियाँ:
    • भारत में कई क्षेत्र भूकंपीय रूप से सक्रिय हैं, जिससे भूकंप का खतरा उत्पन्न होता है जो बाँध की स्थिरता को प्रभावित कर सकता है।
    • कुछ क्षेत्रों में मिट्टी की खराब गुणवत्ता तथा अस्थिर भू-वैज्ञानिक स्थितियाँ भी बाँध सुरक्षा सुनिश्चित करने में चुनौतियों का कारण बनती हैं।
  • एजिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर (Ageing Infrastructure): 
    • भारत में कई बाँध पुराने हो चुके हैं और आधुनिक सुरक्षा मानकों को पूरा नहीं कर सकते हैं। संभावित विफलताओं को रोकने के लिये इन पुरानी संरचनाओं का रख-रखाव एवं पुनर्वास आवश्यक है।
  • जलवायु परिवर्तन और चरम मौसमी घटनाएँ: 
    • जलवायु पैटर्न में बदलाव तथा भारी वर्षा और बाढ़ जैसी बढ़ती चरम मौसमी घटनाओं से बाँधों एवं उनके जलाशयों पर दबाव पड़ सकता है, जिससे संभावित रूप से ओवरटॉपिंग (Overtopping) या बाँध (Dam) विफलता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
  • अंतर्राज्यीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: 
    • भारत में कई नदियाँ पड़ोसी राज्यों या देशों के साथ सीमा साझा करती हैं, जिससे बाँध सुरक्षा एवं जल प्रबंधन के लिये समन्वित प्रयासों की आवश्यकता होती है। विवाद और सहयोग की कमी प्रभावी बाँध प्रबंधन को प्रभावित कर सकती है
  • आपातकालीन प्रतिक्रिया अवसंरचना: 
    • संभावित आपदाओं का प्रबंधन करने के लिये बाँधों के आसपास प्रभावी संचार नेटवर्क, निकासी योजनाएँ तथा आपातकालीन आश्रयों का विकास और रखरखाव आवश्यक है।
  • सामुदायिक पुनर्स्थापन एवं पुनर्वास: 
    • ऐसे मामलों में जहाँ बाँध निर्माण और संचालन के लिये स्थानीय समुदायों के विस्थापन की आवश्यकता होती है, उनका उचित पुनर्वास सुनिश्चित करना चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है।

आगे की राह

  • एक गतिशील एवं अनुकूलनीय परियोजना विकसित करना जिसके माध्यम से दीर्घकालिक पर्यावरणीय एवं सामाजिक स्थिरता सुनिश्चित करते हुए वास्तविक समय निगरानी, ​​पर्यावरण-अनुकूल प्रौद्योगिकियों, आपदा तैयारियों तथा पारिस्थितिकी तंत्र की सुनिश्चितता को शामिल किया जाए।
  • बाँध के डिज़ाइन और प्रबंधन में जलवायु परिवर्तन संबंधी विचारों को एकीकृत करना, मौसम में हुए परिवर्तन का अनुमान लगाना, साथ ही चरम मौसमी घटनाओं का सामना करने के लिये अनुकूल उपायों को लागू करना।
  • बाँध सुरक्षा पेशेवरों के कौशल और ज्ञान में वृद्धि के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन जारी रखना
  • साझा नदी प्रणालियों के प्रभावी प्रबंधन को सुनिश्चित करने और विवादों को हल करने के लिये पड़ोसी देशों/राज्यों के साथ सहयोग को मज़बूत करना।
  • सामंजस्यपूर्ण परियोजना के माध्यम से सह-अस्तित्व को बढ़ावा और भलाई सुनिश्चित कर स्थानीय जातीय समुदायों के साथ सार्थक जुड़ाव को प्राथमिकता दी जानी चाहिये, साथ ही उनके इनपुट, सांस्कृतिक विरासत को महत्त्व देना चाहिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रश्न. मान लीजिये कि भारत सरकार एक ऐसी पर्वतीय घाटी में एक बाँध का निर्माण करने की सोच रही है, जो जंगलों से घिरी है और यहाँ नृजातीय समुदाय रहते हैं। अप्रत्याशित आकस्मिकताओं से निपटने के लिये सरकार को कौन-सी तर्कसंगत नीति का सहारा लेना चाहिये? (2018)

स्रोत: पी.आई.बी.


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

डायनासोर और पक्षियों के बीच संबंध

प्रिलिम्स के लिये:

डायनासोर और पक्षियों के बीच संबंध, कपाल विकास, एंडोथर्मिक एनिमल, थेरोपोड वंशावली

मेन्स के लिये:

डायनासोर और पक्षियों के बीच संबंध

चर्चा में क्यों?

हाल ही में रॉयल सोसाइटी ओपन साइंस जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में पक्षियों और डायनासोर के बीच संबंध के बारे में जानकारी दी गई है।

अनुसंधान की पद्धति:

  • शोधकर्त्ताओं ने 51 वर्तमान प्रजातियों की नाक की गुहाओं (Nasal Cavities) का विश्लेषण करने के लिये कंप्यूटेड टोमोग्राफी (Computed Tomography- CT) स्कैन और 3D पुनर्निर्माण सहित अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग किया।
    • इन प्रजातियों में पक्षी, स्तनधारी, सरीसृप (मगरमच्छ तथा कछुए सहित) और छिपकलियाँ शामिल हैं। इसके अतिरिक्त शोधकर्त्ताओं ने जीवाश्मों के आधार पर एक प्रकार के थेरोपोड डायनासोर, वेलोसिरैप्टर (Velociraptor) की नाक गुहा का डिजिटल रूप से पुनर्निर्माण किया।
  • डायनासोर से पक्षियों तक कपाल विकास (Cranial Evolution- समय के साथ जीव के कपाल में परिवर्तन) की समझ बढ़ाने के लिये उन्होंने मुख्य रूप से नाक गुहा पर ध्यान केंद्रित किया।
  • उन्होंने इस संभावना का पता लगाया कि नाक गुहा मस्तिष्क को ठंडा करने और नियमन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष:

  • नाक गुहा का आकार और नियततापीयता:
    • पक्षियों और स्तनधारियों सहित एंडोथर्मिक (नियततापी या गर्मरक्त वाले) जानवरों में शीतरक्त वाले जानवरों की तुलना में उनके सिर के आकार के सापेक्ष बड़ी नाक गुहाएँ थीं।
    • इस आकार के अंतर ने नियततापीयता (Warm-Bloodedness) और नाक गुहा के आयामों के बीच एक संभावित संबंध का संकेत दिया।
  • श्वसन/रेस्पिरेटरी टर्बिनेट्स और ब्रेन कूलिंग:
    • नियततापी जानवरों ने अपनी नाक गुहाओं के भीतर एक जटिल संरचना का प्रदर्शन किया जिसे रेस्पिरेटरी टर्बिनेट (Respiratory Turbinate) के रूप में जाना जाता है। इस संरचना का एक प्राथमिक कार्य मस्तिष्क को ठंडा करना था।
      • इस खोज ने पहले की धारणा को चुनौती दी कि बड़ी नाक गुहाएँ मुख्य रूप से पूरे शरीर के चयापचय को सुविधाजनक बनाती हैं।
  • डायनासोर तथा पक्षियों के लिये विकासवादी निहितार्थ: 
    • थर्मोरेग्यूलेशन से पक्षियों और स्तनधारियों सहित गर्म रक्त वाले प्राणियों को लाभ हुआ होगा, जिससे उनके विकास पर प्रभाव पड़ा होगा।
    • इसके विपरीत वेलोसिरैप्टर की पुनर्निर्मित नाक गुहा ने एक विकसित शीतलन प्रणाली की कमी का संकेत दिया, जो थेरोपोड डायनासोर और आधुनिक पक्षियों के बीच थर्मोरेग्यूलेशन में अंतर का सुझाव देता है।
  • नासिका मार्ग पर मैक्सिला का प्रभाव: 
    •  वेलोसिरैप्टर में नासिका मार्ग का आकार मैक्सिला, निचले जबड़े की हड्डी से प्रभावित होता था।
    • उन्होंने प्रस्तावित किया कि थेरोपोड वंश में मैक्सिला में कमी के कारण नाक गुहा उनकी थर्मल विनियमन रणनीति के लिये एक महत्त्वपूर्ण उपकरण बन गया।

अध्ययन का महत्त्व:

  • अध्ययन ने मस्तिष्क को ठंडा करने में श्वसन टर्बाइनेट्स के संभावित कार्य को लेकर नवीन अंतर्दृष्टि प्रदान की और साथ ही शोधकर्त्ताओं ने अपनी परिकल्पनाओं को मान्य करने के लिये अधिक व्यापक शोध की आवश्यकता पर बल दिया।
  • शारीरिक अनुकूलन और पर्यावरणीय कारकों के बीच जटिल परस्पर क्रिया को समझना भविष्य के अध्ययन का मुख्य केंद्र बिंदु बना हुआ है।

गर्म रक्त तथा ठंडे रक्त वाले जानवरों में अंतर:

स्वरूप

गर्म रक्त वाले पशु (एंडोथर्म)

शीत-रक्त वाले पशु (एक्टोथर्म)

चयापचय

उच्च चयापचय दर

निम्न चयापचय दर

शारीरिक तापमान

पर्यावरण से स्वतंत्र शरीर के तापमान को अपेक्षाकृत स्थिर बनाए रखना

शरीर का तापमान बाहरी वातावरण के अनुसार बदलता रहता है

ऊर्जा स्रोत

शरीर के तापमान को बनाए रखने के लिये आंतरिक ताप उत्पादन (चयापचय) पर निर्भर रहना

थर्मोरेग्यूलेशन के लिये ऊष्मा के बाहरी स्रोतों पर निर्भर रहना

गतिविधि का स्तर

विभिन्न पर्यावरणीय परिस्थितियों में सक्रिय हो सकते हैं

गतिविधि का स्तर तापमान से प्रभावित होता है; गर्म परिस्थितियों में प्राय: अधिक सक्रिय होते हैं

वातावरण के प्रति अनुकूलन क्षमता

शरीर के तापमान को नियंत्रित करने की अपनी क्षमता के कारण विविध वातावरण में रह सकते हैं

तापमान प्राथमिकताओं के आधार पर उनके आवास विकल्प सीमित हैं

प्रजनन दर

सामान्य रूप से उच्च ऊर्जा मांग के कारण प्रजनन दर कम होती है

कम ऊर्जा मांग के कारण प्रजनन दर अधिक हो सकती है

उदाहरण

स्तनधारी (मनुष्यों सहित), पक्षी

सरीसृप (जैसे साँप, छिपकली), उभयचर, अधिकांश मछलियाँ, अकशेरुकी (कुछ कीड़ों को छोड़कर)

चार्ल्स डार्विन का विकासवाद का सिद्धांत:

  • परिचय:
    • चार्ल्स डार्विन का विकासवाद का सिद्धांत जीव विज्ञान में एक मूलभूत अवधारणा है जो बताती है कि समय के साथ प्रजातियाँ कैसे बदलती हैं, साथ ही नई प्रजातियाँ कैसे उत्पन्न होती हैं।
    • डार्विन के विचारों ने पृथ्वी पर जीवन की समझ में क्रांति ला दी तथा प्रजातियों की विविधता को लेकर एक व्यापक स्पष्टीकरण प्रदान किया।
  • महत्त्वपूर्ण तत्त्व:
    • संशोधन के साथ वंश: डार्विन ने प्रस्तावित किया कि सभी प्रजातियों के पूर्वज समान हैं तथा प्रजातियाँ समय के साथ संशोधन के चलते वंश नामक प्रक्रिया के माध्यम से धीरे-धीरे बदलती हैं, जिसका अर्थ है कि मौजूदा प्रजातियों से नई प्रजातियाँ उत्पन्न होती हैं।
    • प्राकृतिक चयन: डार्विन के सिद्धांत का केंद्रीय तंत्र प्राकृतिक चयन है। उन्होंने देखा कि प्रत्येक पीढ़ी में सीमित संसाधनों के कारण जीवित रहने की क्षमता से अधिक संतानें जन्म लेती हैं, परिणामस्वरूप अस्तित्व के लिये संघर्ष करना पड़ता है।
    • विविधता: किसी भी आबादी के भीतर लक्षणों में भिन्नताएँ होती हैं। इनमें से कुछ विविधताएँ वंशानुगत होती हैं, जिसका अर्थ है कि ये लक्षण संतानों में स्थानांतरित किये जा सकते हैं। 
    • अनुकूलन: ऐसे लक्षण वाले जीव जो अपने पर्यावरण के साथ अधिक अनुकूलित होते हैं, उनमें जीवित रहने और प्रजनन करने की संभावना अधिक होती है।
    • विशिष्टता: लंबे समय तक और क्रमिक परिवर्तनों के कारण आबादी के भीतर एक-दूसरे से इतनी भिन्नता आ जाती है कि वे परस्पर प्रजनन करना बंद कर देते हैं। इस स्थिति में नई प्रजातियों का निर्माण होता है।
  • प्रजातिकरण: आबादी इस प्रकार भिन्न हो सकती है कि वे अब विस्तारित अवधि में और प्रगतिशील परिवर्तनों के संचय के माध्यम से परस्पर प्रजनन नहीं कर सकती हैं। परिणामस्वरूप नई प्रजातियाँ निर्मित होती हैं।

कंप्यूटेड टोमोग्राफी(CT):

  • यह एक मेडिकल इमेजिंग तकनीक है जो एक्स-रे और उन्नत कंप्यूटर प्रसंस्करण के उपयोग से शरीर की विस्तृत क्रॉस-सेक्शनल छवियाँ बनाती है।
  • एक्स-रे की ही तरह यह शरीर की अंदरूनी संरचनाओं को दिखाती है लेकिन यह 1D, 2D छवि बनाने के बजाय, CT स्कैन से शरीर की दर्जनों से सैकड़ों तक छवियाँ लेता है।
  • नियमित एक्स-रे के माध्यम से चीजें स्पष्ट नहीं होने की स्थिति में सेवा प्रदाता CT स्कैन का उपयोग करते हैं।
  • उदाहरण के लिये शरीर की संरचनाओं की बेहतर समझ से लिये नियमित एक्स-रे का उपयोग पर्याप्त नहीं है।
  • CT स्कैन अधिक स्पष्टता और सटीकता से यह जानकारी प्रदान करने में मदद करता है।

स्रोत: द हिंदू


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