एनडीपीएस (संशोधन) विधेयक, 2021
प्रिलिम्स के लिये:NDPS अधिनियम, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो, लोकसभा मेन्स के लिये:भारत में नशीली दवाओं के नियंत्रण से संबंधित प्रावधान और संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस’ (NDPS) संशोधन विधेयक, 2021 लोकसभा में पेश किया गया।
- यह विधेयक नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस अधिनियम,1985 (Narcotic Drugs and Psychotropic Substances Act, 1985) में संशोधन करेगा।
नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (NDPS) अधिनियम, 1985
- यह अधिनियम मादक औषधि और मनोदैहिक पदार्थों से संबंधित निर्माण, परिवहन और खपत जैसे कार्यों को नियंत्रित करता है।
- अधिनियम के तहत, कुछ अवैध गतिविधियों का वित्तपोषण जैसे कि भांग की खेती, मादक औषधि का निर्माण या उनसे जुड़े व्यक्तियों को शरण देना एक प्रकार का अपराध है।
- इस अपराध के दोषी पाए जाने वाले व्यक्तियों को 10 से 20 वर्ष का कठोर और कम-से-कम 1 लाख रुपए के जुर्माने से दंडित किया जाएगा।
- यह नशीले पदार्थों और मनोदैहिक पदार्थों के अवैध व्यापार से अर्जित या उपयोग की गई संपत्ति को ज़ब्त करने का भी प्रावधान करता है।
- यह कुछ मामलों में मृत्युदंड का भी प्रावधान करता है जब एक व्यक्ति बार-बार अपराधी पाया जाता है।
- इस अधिनियम के तहत वर्ष 1986 में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो का भी गठन किया गया था।
प्रमुख बिंदु
- विधेयक के बारे में:
- वर्ष 2014 के संशोधन अधिनियम में प्रारूपण त्रुटि को ठीक करने के लिये यह विधेयक इस वर्ष (2021) की शुरुआत में प्रख्यापित एक अध्यादेश का स्थान लेगा।
- वर्ष 2014 के संशोधन से पहले, अधिनियम की धारा 2 के खंड (viii-a) में उप-खंड (i) से (v) शामिल थे, जिसमें ‘अवैध यातायात’ शब्द को परिभाषित किया गया था।
- वर्ष 2014 में इस अधिनियम में संशोधन किया गया था और ऐसी अवैध गतिविधियों की परिभाषा के खंड संख्या को प्रतिस्थापित कर दिया गया था।
- हालाँकि इन अवैध गतिविधियों के वित्तपोषण के लिये दंड हेतु धारा (27A) में संशोधन नहीं किया गया था और परिभाषा के प्रारंभिक खंड संख्या को संदर्भित करना जारी रखा था।
- अध्यादेश द्वारा नए खंड संख्या के संदर्भ को प्रतिस्थापित करने के लिये दंड की धारा में संशोधन किया गया।
- हाल के एक फैसले में त्रिपुरा उच्च न्यायालय ने माना है कि 'जब तक एनडीपीएस अधिनियम की धारा 27 A में उचित रूप से संशोधन करके उचित विधायी परिवर्तन नहीं होता है, तब तक एनडीपीएस अधिनियम की धारा 2 के खंड (viii-a) के उप-खंड (i) से (v) को निष्क्रिय कर दिया गया है।
- वर्ष 2014 के संशोधन अधिनियम में प्रारूपण त्रुटि को ठीक करने के लिये यह विधेयक इस वर्ष (2021) की शुरुआत में प्रख्यापित एक अध्यादेश का स्थान लेगा।
NDPS अधिनियम की धारा 27A:
- धारा 27A के तहत शामिल प्रावधान के मुताबिक, धारा 2 के खंड (viiia) के उप-खंड (i) से (v) में निर्दिष्ट किसी भी गतिविधि में प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से शामिल कोई भी व्यक्ति अथवा उपरोक्त किसी भी गतिविधि में संलग्न किसी व्यक्ति को सुरक्षा प्रदान करने वाला कोई भी व्यक्ति अधिनियम के तहत दंड का पात्र होगा।
- ऐसे व्यक्ति को कठोर कारावास की सज़ा दी जाएगी, जिसकी अवधि दस वर्ष से कम नहीं होगी और जिसे बीस वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, साथ ही उस व्यक्ति पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है, जो कि एक लाख रुपए से कम नहीं होगा, किंतु यह दो लाख रुपए से अधिक भी नहीं होगा।
- हालाँकि निर्णय में दिये गए कारणों के आधार पर दो लाख रुपए से अधिक का जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
धारा 27A के निष्क्रिय होने का कारण
- इसके मुताबिक, धारा 2 (viii-a) के उप-खंड (i) से (v) के तहत उल्लिखित अपराध धारा 27A के माध्यम से दंडनीय होंगे।
- हालाँकि धारा 2 (viii-a) के उप-खंड (i) से (v), जिसे अपराधों की सूची माना जाता है, वर्ष 2014 के संशोधन के बाद मौजूद नहीं है।
- अतः यदि धारा 27A किसी रिक्त सूची या गैर-मौजूद प्रावधान को दंडनीय बनाती है, तो यह कहा जा सकता है कि यह वस्तुतः निष्क्रिय है।
- विधेयक के उद्देश्य:
- नशे के शिकार लोगों को नशे की लत से बाहर निकालने में मदद करना।
- मादक दवाओं और मनोदैहिक पदार्थों के निर्माण, परिवहन और खपत आदि को विनियमित करते हुए व्यक्तिगत उपयोग के लिये सीमित मात्रा में दवाओं के प्रयोग को अपराध की श्रेणी से हटाना।
- विधेयक से संबंधित चिंताएँ:
- नया प्रावधान 01 मई, 2014 से भूतलक्षी प्रभाव से लागू होगा।
- यह विधेयक अनुच्छेद-20 के तहत शामिल मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, क्योंकि इसके तहत किसी व्यक्ति को उस अपराध के लिये दंडित किया जा सकता है जिसके लिये अपराध किये जाने के समय कोई कानून मौजूद नहीं था।
- अनुच्छेद-20 किसी भी अभियुक्त या दोषी करार दिये गए व्यक्ति, चाहे वह देश का नागरिक हो या या विदेशी या कंपनी व परिषद का कानूनी व्यक्ति हो; को अपराध के लिये तब तक दोषी नहीं ठहराया जाएगा, जब तक कि ऐसे किसी कृत्य के समय, (जो व्यक्ति अपराध के रूप में आरोपित है) किसी प्रवृत्त विधि का अतिक्रमण नहीं किया हो।
नशीली दवाओं की लत से निपटने की संबंधी पहल
- नार्को-समन्वय केंद्र: नार्को-समन्वय केंद्र (NCORD) का गठन नवंबर 2016 में किया गया था और ‘नारकोटिक्स नियंत्रण के लिये राज्यों को वित्तीय सहायता’ योजना को पुनर्जीवित किया गया था।
- ज़ब्ती सूचना प्रबंधन प्रणाली: ‘नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो’ को एक नया सॉफ्टवेयर यानी ‘ज़ब्ती सूचना प्रबंधन प्रणाली’ (SIMS) विकसित करने के लिये धन उपलब्ध कराया गया है जो नशीली दवाओं के अपराध और अपराधियों का एक पूरा ऑनलाइन डेटाबेस तैयार करेगा।
- नेशनल ड्रग एब्यूज़ सर्वे: सरकार ‘एम्स’ के नेशनल ड्रग डिपेंडेंस ट्रीटमेंट सेंटर की मदद से सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के माध्यम से भारत में नशीली दवाओं के दुरुपयोग के रुझानों को मापने हेतु राष्ट्रीय नशीली दवाओं के दुरुपयोग संबंधी सर्वेक्षण भी कर रही है।
- प्रोजेक्ट सनराइज़: इसे स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा 2016 में भारत में उत्तर-पूर्वी राज्यों में बढ़ते एचआईवी प्रसार से निपटने के लिये शुरू किया गया था, खासकर ड्रग्स का इंजेक्शन लगाने वाले लोगों के बीच।
- NDPS अधिनियम: यह व्यक्ति को किसी भी मादक दवा या मनोदैहिक पदार्थ के उत्पादन, रखने, बेचने, खरीदने, परिवहन, भंडारण और/या उपभोग करने से रोकता है।
- NDPS अधिनियम में अब तक तीन बार 1988, 2001 और 2014 में संशोधन किया गया है।
- यह अधिनियम पूरे भारत के साथ-साथ भारत के बाहर के सभी भारतीय नागरिकों और भारत में पंजीकृत जहाज़ो एवं विमानों पर कार्यरत सभी व्यक्तियों पर भी लागू होता है।
- नशा मुक्त भारत: सरकार ने 'नशा मुक्त भारत' या ड्रग मुक्त भारत अभियान शुरू करने की भी घोषणा की है जो सामुदायिक आउटरीच कार्यक्रमों पर केंद्रित है।
स्रोत: द हिंदू
भारत-रूस शिखर सम्मेलन
प्रिलिम्स के लिये:S-400 वायु रक्षा मिसाइल, ‘चतुर्भुज सुरक्षा संवाद, हिंद महासागर क्षेत्र मेन्स के लिये:भारत-रूस संबंध और महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत दौरे पर आए। दोनों देशों के मध्य हुए बैठक में कई समझौतों पर हस्ताक्षर किये गए। यह बैठक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह दोनों देशों के विदेश मंत्रयों और रक्षा मंत्रियों के बीच पहली 2+2 (2+2 Meeting) बैठक थी।
- अप्रैल 2021 भारत और रूस के बीच एक आम सहमति विकसित करने के लिये दोनों देशों के विदेश मंत्रियों ने एक दूसरे की चिंताओं से संबंधित विभिन्न मुद्दों को संबोधित किया।
प्रमुख बिंदु
- पहली भारत-रूस 2+2 वार्ता: यह दोनों देशों के विदेश और रक्षा मंत्रियों के मध्य पहली 2+2 बैठक है।
- ‘चतुर्भुज सुरक्षा संवाद’ (Quadrilateral Security Dialogue) अर्थात् क्वाड के सदस्य देशों- अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ 2+2 प्रारूप बैठकों का आयोजित किया गया है।
- कलाश्निकोव राइफल्स पर समझौता: दोनों पक्षों के मध्य अमेठी, उत्तर प्रदेश में एक संयुक्त उद्यम के तहत लगभग 600,000 एके-203 (AK-203) राइफल्स के निर्माण के लिये दो अनुबंधों पर हस्ताक्षर किया गया।
- सैन्य सहयोग के लिये समझौता: दोनों देशों द्वारा अगले दशक वर्ष 2021 से 2031 तक के एक सैन्य प्रौद्योगिकी सहयोग के लिये एक समझौते पर भी हस्ताक्षर किया गया।
- भारत ने सिर्फ एक खरीदार के रूप में रूस का रक्षा विकास और उत्पादन भागीदार बनने के अपने लक्ष्य को रेखांकित किया।
- दोनों पक्ष अब सैन्यअभ्यासों के प्रारूप का विस्तार करने पर विचार कर रहे हैं ताकि उन्हें और अधिक प्रगाढ़ किया जा सके और साथ ही मध्य एशिया में भारत-रूस सहयोग के विस्तार पर भी विचार किया जा सकें।
- रसद समझौते के पारस्परिक आदान-प्रदान को आगे बढ़ाना: रक्षा बिक्री से परे, रसद समझौते का पारस्परिक आदान-प्रदान (Reciprocal Exchange of Logistics Agreement- RELOS) नौसेना से सैन्य सहयोग समझौता ज्ञापन निष्कर्ष के उन्नत चरणों में हैं।
- सैन्य प्रोटोकॉल: दोनों देशों द्वारा सैन्य और सैन्य तकनीकी सहयोग ((IRIGC-M&MTC) पर 20वें भारत-रूस अंतर-सरकारी आयोग के प्रोटोकॉल पर भी हस्ताक्षर किया गया।
- ‘IRIGC-M&MTC’ पिछले दो दशकों से एक अच्छी तरह से स्थापित तंत्र है, जो रक्षा सहयोग के लिये पारस्परिक रूप से सहमत एजेंडे पर चर्चा करने और लागू करने हेतु एक मंच प्रदान करता है।
- एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम डील: भारत ने ज़ोर देकर कहा कि वह एक "स्वतंत्र विदेश नीति" का पालन करता है, जो अमेरिका के काउंटरिंग अमेरिकाज एडवर्सरीज थ्रू सेंक्शंस एक्ट (Countering America’s Adversaries Through Sanctions Act- CAATSA) की ओर इशारा करता है।
- इसे S-400 वायु रक्षा मिसाइल (S-400 Air Defence Missile) प्रणालियों की आपूर्ति के संदर्भ में संदर्भित किया जाता है.
- भू-राजनीतिक हॉटस्पॉट पर चर्चा: अफगानिस्तान, मध्य पूर्व की स्थिति के साथ मध्य एशिया का व्यापक प्रभाव है।
- समुद्री सुरक्षा और इसकी हिफाजत पर दोनों देशों द्वारा साझा चिंता व्यक्त की गई।
- बैठक में चीन के आक्रामक रुख का मुद्दा भी उठाया गया।
- दोनों देशों द्वारा मध्य एशिया और हिंद महासागर क्षेत्र में अधिक से अधिक जुड़ाव का प्रस्ताव रखा गया।
भारत के लिये रूस का महत्त्व
- चीन को संतुलित करना: पूर्वी लद्दाख के सीमावर्ती क्षेत्रों में चीनी आक्रमण ने भारत-चीन संबंधों को एक मोड़ पर ला दिया, लेकिन यह भी प्रदर्शित किया कि रूस चीन के साथ तनाव को कम करने में योगदान देने में सक्षम है।
- लद्दाख के विवादित क्षेत्र में गलवान घाटी में घातक झड़पों के बाद रूस ने भारत और चीन के विदेश मंत्रियों के बीच एक त्रिपक्षीय बैठक आयोजित की।
- आर्थिक जुड़ाव के उभरते नए क्षेत्र: हथियारों, हाइड्रोकार्बन, परमाणु ऊर्जा और हीरे जैसे सहयोग के पारंपरिक क्षेत्रों के अलावा आर्थिक जुड़ाव के नए क्षेत्रों के उभरने की संभावना है। इनमें खनन, कृषि-औद्योगिक और उच्च प्रौद्योगिकी, जिसमें रोबोटिक्स, नैनोटेक तथा बायोटेक शामिल हैं।
- रूस के सुदूर पूर्व और आर्कटिक में भारत के पदचिन्हों का विस्तार होना तय है। कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट्स को भी बढ़ावा मिल सकता है।
- आतंकवाद का मुकाबला: भारत और रूस अफगानिस्तान के बीच की खाई को पाटने के लिये काम कर रहे हैं और अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक सम्मेलन को जल्द से जल्द अंतिम रूप देने का आह्वान कर रहे हैं।
- बहुपक्षीय मंचों का समर्थन: इसके अतिरिक्त रूस एक सुधारित संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह की स्थायी सदस्यता के लिये भारत की उम्मीदवारी का समर्थन करता है।
- रूस का सैन्य निर्यात: रूस भारत के लिये सबसे बड़े हथियार निर्यातकों में से एक रहा है। यहाँ तक कि वर्ष 2011 से 2015 की तुलना में पिछले पाँच वर्ष की अवधि में भारत को हथियारों के आयात में रूस की हिस्सेदारी 50% से अधिक गिर गई।
- वैश्विक हथियारों के व्यापार की निगरानी करने वाले ‘स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट’ के अनुसार, पिछले 20 वर्षों में भारत ने रूस से 35 बिलियन अमेरिकी डॉलर के हथियार और सैन्य सामग्री आयात की है।
आगे की राह
- समय पर रख-रखाव सहायता प्रदान करने के लिये रूस: भारतीय सेना के साथ सेवा में रूसी हार्डवेयर की बड़ी सूची के लिये पुर्जों की समय पर आपूर्ति और समर्थन भारत के संदर्भ में एक प्रमुख मुद्दा रहा है।
- इसे संबोधित करने के लिये रूस ने वर्ष 2019 में हस्ताक्षरित एक अंतर-सरकारी समझौते के बाद अपनी कंपनियों को भारत में संयुक्त उद्यम स्थापित करने की अनुमति देते हुए विधायी परिवर्तन किये हैं।
- इस समझौते को समयबद्ध तरीके से लागू करने की ज़रूरत है।
- एक दूसरे के महत्त्व को स्वीकार करना: रूस आने वाले दशकों तक भारत के लिये एक प्रमुख रक्षा भागीदार बना रहेगा।
- दूसरी ओर रूस और चीन वर्तमान में एक अर्द्ध-गठबंधन एलायंस में हैं। रूस बार-बार दोहराता है कि वह खुद को किसी के कनिष्ठ भागीदार के रूप में नहीं देखता है। इसलिये रूस चाहता है कि भारत उसके लिये एक संतुलक का काम करे।
- संयुक्त सैन्य उत्पादन: दोनों देश इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि वे तीसरे देशों को रूसी मूल के उपकरण और सेवाओं के निर्यात के लिये भारत को उत्पादन आधार के रूप में उपयोग करने में कैसे सहयोग कर सकते हैं।
स्रोत-इंडियन एक्सप्रेस
पश्चिमी घाट पर कस्तूरीरंगन समिति
प्रिलिम्स के लिये:कस्तूरीरंगन समिति, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 मेन्स के लिये:कस्तूरीरंगन समिति की रिपोर्ट की प्रमुख सिफारिशों और इसके विरोध के कारण |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कर्नाटक सरकार द्वारा केंद्र सरकार को सूचित किया गया है कि वह पश्चिमी घाट पर गठित कस्तूरीरंगन समिति (Kasturirangan Committee report) की रिपोर्ट के पक्ष में नहीं है।
- कस्तूरीरंगन समिति की रिपोर्ट ने पश्चिमी घाट के कुल क्षेत्रफल के 37 प्रतिशत को पारिस्थितिकीय दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र (Eco-Sensitive Area- ESA) घोषित करने का प्रस्ताव दिया है।
- कर्नाटक सरकार की राय है कि पश्चिमी घाट को ESA घोषित करने से इस क्षेत्र के लोगों की आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा
प्रमुख बिंदु
- पारिस्थितिकीय दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र के बारे में:
- यह संरक्षित क्षेत्रों, राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आसपास 10 किलोमीटर के भीतर स्थित क्षेत्र होता है।
- पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change- MoEFCC) द्वारा ESAs को अधिसूचित किया जाता है।
- इसका मूल उद्देश्य राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों के आसपास कुछ गतिविधियों को विनियमित करना है ताकि संरक्षित क्षेत्रों के संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र पर ऐसी गतिविधियों के नकारात्मक प्रभावों को कम किया जा सके।
- कस्तूरीरंगन समिति की रिपोर्ट की सिफारिशों के बारे में:
- शामिल क्षेत्र: कस्तूरीरंगन समिति की रिपोर्ट में लगभग 60,000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र (ESA) घोषित करने का प्रस्ताव किया गया है।
- इसमें से 20,668 वर्ग किमी क्षेत्र कर्नाटक राज्य में आता है, जिसमें 1,576 गाँव शामिल हैं।
- इस क्षेत्र में शामिल ज़्यादातर स्थलों की सीमा, कानूनी रूप से सीमांकित राष्ट्रीय उद्यानों, वन्यजीव अभयारण्यों, बाघ अभयारण्यों और वन प्रभागों की सीमाएंँ हैं इसलिये उन्हें पहले से ही उच्च स्तर की सुरक्षा प्रदान की गई है।
- वांछित और प्रतिबंधित गतिविधियाँ: रिपोर्ट में खनन, उत्खनन, रेड कैटेगरी उद्योगों (Red Category Industries) की स्थापना और ताप विद्युत परियोजनाओं पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की गई है।
- यह भी कहा गया है कि इन गतिविधियों के लिये अनुमति दिये जाने से पहले जंगल और वन्यजीवों पर ढांँचागत परियोजनाओं के प्रभाव का अध्ययन किया जाना चाहिये।
- यूनेस्को टैग: रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि पश्चिमी घाट के यूनेस्को हेरिटेज टैग (UNESCO Heritage tag) में शामिल होने से इसकी विशाल प्राकृतिक संपदा को वैश्विक और घरेलू स्तर पर मान्यता प्राप्त होती है।
- 39 स्थल पश्चिमी घाट में स्थित हैं जो (केरल 19), कर्नाटक (10), तमिलनाडु (6) और महाराष्ट्र (4) राज्यों में विस्तारित हैं।
- राज्य सरकारों की भूमिका: राज्य सरकारों को इस विकास को देखना चाहिये और क्षेत्र के संसाधनों और अवसरों के संरक्षण, बचाव और महत्त्व के लिये एक योजना तैयार करनी चाहिये।
- शामिल क्षेत्र: कस्तूरीरंगन समिति की रिपोर्ट में लगभग 60,000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र (ESA) घोषित करने का प्रस्ताव किया गया है।
कस्तूरीरंगन समिति द्वारा प्रस्तावित ESA
- कर्नाटक सरकार का विरोध:
- विकासात्मक प्रगति में बाधा: कर्नाटक में व्यापक वन क्षेत्र है और सरकार ने पश्चिमी घाट की जैव विविधता की रक्षा का ध्यान रखा है।
- राज्य सरकार का मानना है कि रिपोर्ट के लागू होने से क्षेत्र में विकास गतिविधियाँ ठप हो जाएँगी।
- जन-केंद्रित विकास मॉडल: उपग्रह आधारित चित्रों के आधार पर कस्तूरीरंगन रिपोर्ट तैयार की गई है, लेकिन ज़मीनी हकीकत अलग है।
- क्षेत्र के लोगों ने कृषि और बागवानी गतिविधियों को पर्यावरण अनुकूल तरीके से अपनाया है।
- वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के तहत पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता दी गई है।
- विकासात्मक प्रगति में बाधा: कर्नाटक में व्यापक वन क्षेत्र है और सरकार ने पश्चिमी घाट की जैव विविधता की रक्षा का ध्यान रखा है।
आगे की राह:
- निवारक दृष्टिकोण: जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए जो सभी लोगों की आजीविका को प्रभावित करेगा और देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचा सकता है ऐसे संवेदनशील पारिस्थितिक तंत्र का संरक्षण विवेकपूर्ण तरीके से ही किया जाना चाहिये।
- यह पुनर्स्थापन/पुनरुद्धार के लिये धन/संसाधनों को खर्च करने की तुलना में आपदाओं की संभावना वाली स्थिति की तुलना में कम खर्चीला होगा।
- इस प्रकार कार्यान्वयन में और देरी से देश के सबसे बेशकीमती प्राकृतिक संसाधन का क्षरण ही होगा।
- सभी हितधारकों के साथ जुड़ाव: वैज्ञानिक अध्ययन पर आधारित एक उचित विश्लेषण के बाद संबंधित चिंताओं को दूर करने के लिये विभिन्न हितधारकों के बीच आम सहमति की तत्काल आवश्यकता है।
- वन भूमि, उत्पादों और सेवाओं पर खतरों तथा मांगों के बारे में समग्र दृष्टिकोण, शामिल अधिकारियों के लिये स्पष्ट रूप से बताए गए उद्देश्यों के साथ इनसे निपटने हेतु रणनीति तैयार होनी चाहिये।
स्रोत-इंडियन एक्सप्रेस
विश्व असमानता रिपोर्ट 2022
प्रिलिम्स के लियेविश्व असमानता रिपोर्ट मेन्स के लियेभारत और विश्व में असमानता की स्थिति और इससे निपटने संबंधित उपाय |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जारी ‘विश्व असमानता रिपोर्ट 2022’ के अनुसार, भारत अब दुनिया के सबसे असमान देशों में से एक है।
- यह रिपोर्ट ‘वर्ल्ड इनइक्वलिटी लैब’ द्वारा जारी की गई है, जिसका उद्देश्य वैश्विक असमानता गतिशीलता पर अनुसंधान को बढ़ावा देना है।
- यह रिपोर्ट वैश्विक असमानताओं को ट्रैक करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान प्रयासों का सबसे अपडेटेड संश्लेषण प्रस्तुत करती है।
प्रमुख बिंदु
- प्रमुख निष्कर्ष
- संपत्ति का वितरण
- दुनिया की सबसे गरीब आधी आबादी के पास ‘मुश्किल से कोई संपत्ति है’ (कुल संपत्ति का मात्र 2%), जबकि दुनिया की सबसे अमीर 10% आबादी के पास कुल संपत्ति का 76% हिस्सा मौजूद है।
- मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका (MENA) दुनिया के सबसे असमान क्षेत्र हैं, जबकि यूरोप में असमानता का स्तर सबसे कम है।
- दुनिया की सबसे गरीब आधी आबादी के पास ‘मुश्किल से कोई संपत्ति है’ (कुल संपत्ति का मात्र 2%), जबकि दुनिया की सबसे अमीर 10% आबादी के पास कुल संपत्ति का 76% हिस्सा मौजूद है।
- लैंगिक असमानता
- श्रम/कार्य से होने वाली कुल आय (श्रम आय) में महिलाओं की हिस्सेदारी वर्ष 1990 में लगभग 30% थी, जो अब बढ़कर 35% तक पहुँच गई है।
- रिपोर्ट के मुताबिक, विभिन्न देशों के भीतर मौजूद असमानता, विभिन्न देशों के बीच देशों के बीच मौजूद असमानता से अधिक हैं।
- मौजूदा समय में देशों के भीतर शीर्ष 10% और निचले 50% व्यक्तियों की औसत आय के बीच का अंतर लगभग दोगुना हो गया है।
- अमीर देश गरीब सरकारें:
- पिछले 40 वर्षों में कई देश काफी अमीर हो गए हैं, लेकिन उनकी सरकारें काफी गरीब हो गई हैं।
- वर्तमान में सरकारों की कम संपत्ति का भविष्य में असमानता से निपटने के लिये राज्य की क्षमताओं के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन जैसी 21वीं सदी की प्रमुख चुनौतियों के लिये महत्त्वपूर्ण निहितार्थ हैं।
- असमानता पर कोविड संकट का प्रभाव:
- कोविड-19 महामारी और उसके बाद आए आर्थिक संकट ने सभी वैश्विक स्तर पर सभी देशों को प्रभावित किया, लेकिन इसके कारण सभी देश अलग-अलग स्तर पर प्रभवित हुए हैं।
- यूरोप, लैटिन अमेरिका और दक्षिण एवं दक्षिण पूर्व एशिया ने वर्ष 2020 में राष्ट्रीय आय में सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की (-6% और -7.6% के बीच) जबकि पूर्वी एशिया (जहाँ महामारी की शुरुआत हुई) वर्ष 2019 के स्तर पर अपनी वर्ष 2020 की आय को स्थिर करने में सफल रही।
- संपत्ति का वितरण
- भारत-विशिष्ट निष्कर्ष
- संपत्ति का वितरण
- भारत एक गरीब और अत्यधिक असमान देश है।
- शीर्ष 1% आबादी के पास वर्ष 2021 में कुल राष्ट्रीय आय का पाँचवाँ मौजूद था और नीचे के आधे हिस्से के पास मात्र 13% हिस्सा था।
- भारत द्वारा अपनाए गए आर्थिक सुधारों और उदारीकरण ने अधिकतर शीर्ष 1% को लाभान्वित किया है।
- भारत एक गरीब और अत्यधिक असमान देश है।
- औसत घरेलू संपत्ति
- भारत में औसत घरेलू संपत्ति 983,010 रुपए है। यह देखा गया है कि 1980 के दशक के मध्य से लागू की गई उदारीकरण नीतियों ने ‘दुनिया में देखी गई आय एवं धन असमानता में सबसे चरम वृद्धि में योगदान दिया है।
- लैंगिक असमानता
- महिला श्रम आय का हिस्सा 18% के बराबर है, जो एशिया में औसत [21%, चीन को छोड़कर] से काफी कम है और यह दुनिया में सबसे कम में से एक है।
- कार्बन इनिक्वेलिटी
- भारत एक न्यून कार्बन उत्सर्जक है। ग्रीनहाउस गैस की प्रति व्यक्ति औसत खपत सिर्फ 2-CO2e के बराबर है।
- "कार्बन डाइऑक्साइड समतुल्य" या ''CO2e" एक सामान्य इकाई में विभिन्न ग्रीनहाउस गैसों का वर्णन करने के लिये एक शब्द है।
- ये स्तर आमतौर पर उप-सहारा अफ्रीकी देशों में कार्बन पदचिह्नों के तुलनीय हैं।
- भारत में आबादी के निचले 50% में मौजूद एक व्यक्ति, यूरोपीय संघ में निचले 50% में मौजूद व्यक्ति की तुलना में 5 गुना कम और अमेरिका में निचले 50% की तुलना में 10 गुना कम उत्सर्जन करता है।
- भारत एक न्यून कार्बन उत्सर्जक है। ग्रीनहाउस गैस की प्रति व्यक्ति औसत खपत सिर्फ 2-CO2e के बराबर है।
- निजी संपत्ति में वृद्धि:
- चीन और भारत जैसे विकासशील देशों में निजी संपत्ति में वृद्धि हुई है।
- चीन में हाल के दशकों में निजी संपत्ति में सबसे अधिक वृद्धि हुई है। इस समय के दौरान भारत में देखी गई निजी संपत्ति में भी उल्लेखनीय वृद्धि (1980 के स्तर 290% से बढ़कर 2020 में 560%) हुई है।
- संपत्ति का वितरण
- सुझाव:
- रिपोर्ट में करोड़पतियों पर मामूली प्रगतिशील संपत्ति कर लगाने का सुझाव दिया गया है।
- बड़ी मात्रा में धन संकेंद्रण के मद्देनज़र प्रगतिशील कर सरकारों के लिये महत्त्वपूर्ण राजस्व उत्पन्न कर सकते हैं।
- संबंधित रिपोर्ट:
- इंडिया इनइक्क्वेलिटी रिपोर्ट 2021:
- हाल ही में ऑक्सफैम इंडिया (Oxfam India) द्वारा जारी "इंडिया इनइक्क्वेलिटी रिपोर्ट 2021: इंडियाज़ अनइक्वल हेल्थकेयर स्टोरी" (India Inequality Report 2021: India’s Unequal Healthcare Story) शीर्षक वाली रिपोर्ट से पता चलता है कि स्वास्थ्य क्षेत्र में सामाजिक-आर्थिक असमानताएँ व्याप्त हैं और सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (Universal Health Coverage) की अनुपस्थिति के कारण हाशिये पर रहने वाले समुदायों के स्वास्थ्य परिणामों पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं।
- बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI):
- नीति आयोग द्वारा हाल ही में जारी बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) के अनुसार, भारत में प्रत्येक चार में से एक व्यक्ति बहुआयामी गरीब था।
- इंडिया इनइक्क्वेलिटी रिपोर्ट 2021:
“वर्ल्ड इनिक्वेलिटी लैब' (World Inequality Lab)
- परिचय:
- यह दुनिया भर में असमानता के अध्ययन पर केंद्रित एक शोध प्रयोगशाला है। वर्ल्ड इनिक्वेलिटी लैब (WIL) ‘विश्व असमानता रिपोर्ट’ (World Inequality Report) को जारी करता है, जो वैश्विक असमानता की गतिशीलता पर सबसे व्यापक सार्वजनिक डेटाबेस है।
- यह साक्ष्य-आधारित शोध के माध्यम से दुनिया भर में असमानता की गतिशीलता को समझने में मदद करने हेतु प्रतिबद्ध सामाजिक वैज्ञानिकों को एक मंच प्रदान करता है।
- मिशन:
- विश्व असमानता डेटाबेस का विस्तार
- वर्किंग पेपर्स, रिपोर्ट्स और मेथडोलॉजिकल हैंडबुक्स का प्रकाशन
- अकादमिक परिक्षेत्र और सार्वजनिक संवाद में प्रसार
स्रोत: द हिंदू
विश्व मानवाधिकार दिवस
प्रिलिम्स के लिये:विश्व मानवाधिकार दिवस, विश्व मानवाधिकार दिवस, मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा, जन धन योजना रुपे कार्ड, उज्ज्वला गैस कनेक्शन, प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण मेन्स के लिये:विश्व मानवाधिकार दिवस और विश्व में मानवाधिकारों की स्थिति |
चर्चा में क्यों
विश्व भर में प्रतिवर्ष 10 दिसंबर को मानवाधिकार दिवस का आयोजन किया जाता है।
- इस वर्ष की शुरुआत में जारी ‘फ्रीडम इन द वर्ल्ड 2021’ की रिपोर्ट में भारत का दर्जा 'स्वतंत्र' से घटाकर 'आंशिक रूप से स्वतंत्र' कर दिया गया था।
प्रमुख बिंदु
- मानवाधिकार दिवस
- परिचय:
- 10 दिसंबर को ही संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 1948 में मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (UDHR) को अपनाया था।
- मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (UDHR) के तहत मानवीय दृष्टिकोण और राज्य तथा व्यक्ति के बीच संबंध को लेकर कुछ सामान्य बुनियादी मूल्यों का एक सेट स्थापित किया है।
- 10 दिसंबर को ही संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 1948 में मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (UDHR) को अपनाया था।
- वर्ष 2021 की थीम::
- "समानता - असमानताओं को कम करना, मानव अधिकारों को आगे बढ़ाना" (“EQUALITY–Reducing inequalities, advancing human rights”)।
- उद्देश्य:
- समानता, शांति, न्याय, स्वतंत्रता और मानव गरिमा की सुरक्षा को बढ़ावा देना। प्रत्येक व्यक्ति जाति, रंग, धर्म, लिंग, भाषा या सामाजिक स्थिति के भिन्न होने के बावजूद मानवाधिकारों का हकदार है।
- परिचय:
- मानवाधिकार:
- सरल शब्दों में कहें तो मानवाधिकारों का आशय ऐसे अधिकारों से है जो जाति, लिंग, राष्ट्रीयता, भाषा, धर्म या किसी अन्य आधार पर भेदभाव किये बिना सभी को प्राप्त होते हैं।
- मानवाधिकारों में मुख्यतः जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार, गुलामी और यातना से मुक्ति का अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार तथा काम एवं शिक्षा का अधिकार आदि शामिल हैं।
- मानवाधिकारों के संबंध में नेल्सन मंडेला ने कहा था, ‘लोगों को उनके मानवाधिकारों से वंचित करना उनकी मानवता को चुनौती देना है।’
- अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार अभिसमय और निकाय:
- मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (UDHR):
- इसके अंतर्गत अधिकारों और स्वतंत्रताओं से संबंधित कुल 30 अनुच्छेदों को सम्मिलित किया गया है, जिसमें जीवन, स्वतंत्रता और गोपनीयता जैसे नागरिक और राजनीतिक अधिकार तथा सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं शिक्षा जैसे आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार शामिल हैं।
- भारत ने मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (UDHR) के प्रारूपण में सक्रिय भूमिका निभाई थी।
- यह किसी भी प्रकार की संधि नहीं है, अतः यह प्रत्यक्ष तौर पर किसी भी देश के लिये कानूनी दायित्त्व निर्धारित नहीं करता है।
- मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (UDHR), इंटरनेशनल कान्वेंट ऑन सिविल एंड पॉलिटिकल राइट्स, इंटरनेशनल कान्वेंट ऑन इकोनॉमिक, सोशल एंड कल्चर राइट तथा इसके दो वैकल्पिक प्रोटोकॉल्स को संयुक्त रूप से ‘अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार विधेयक’ (International Bill of Human Rights) के रूप में जाना जाता है।
- इसके अंतर्गत अधिकारों और स्वतंत्रताओं से संबंधित कुल 30 अनुच्छेदों को सम्मिलित किया गया है, जिसमें जीवन, स्वतंत्रता और गोपनीयता जैसे नागरिक और राजनीतिक अधिकार तथा सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं शिक्षा जैसे आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार शामिल हैं।
- अन्य अभिसमय:
- इसमें शामिल हैं:
- कन्वेंशन ऑन द प्रिवेंशन एंड पनिशमेंट ऑफ़ द क्राइम ऑफ जेनोसाइड (वर्ष 1948)
- इंटरनेशनल कन्वेंशन ऑन द एलिमिनेशन ऑफ ऑल फॉर्म ऑफ रेसियल डिस्क्रिमिनेशन (वर्ष 1965)
- कन्वेंशन ऑन द एलिमिनेशन ऑफ ऑल फॉर्म ऑफ डिस्क्रिमिनेशन अगेन्सट विमेन (वर्ष 1979)
- बाल अधिकारों पर कन्वेंशन (वर्ष 1989)
- विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर कन्वेंशन (वर्ष 2006)
- ध्यातव्य है कि भारत इन सभी कन्वेंशन्स का हिस्सा है।
- इसमें शामिल हैं:
- मानवाधिकार परिषद:
- मानवाधिकार परिषद संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के भीतर एक अंतर-सरकारी निकाय है जो कि मानव अधिकारों के संवर्द्धन और संरक्षण की दिशा में कार्य करती है। यह संयुक्त राष्ट्र के 47 सदस्य देशों से मिलकर बनी है, जिनका चयन संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा किया जाता है।
- सार्वभौमिक आवधिक समीक्षा (UPR) प्रकिया को मानवाधिकार परिषद का सबसे अनूठा प्रयास माना जाता है। इस अनूठे तंत्र के अंतर्गत प्रत्येक चार वर्ष में एक बार संयुक्त राष्ट्र के सभी 192 सदस्य देशों के मानवाधिकार रिकॉर्ड की समीक्षा की जाती है।
- मानवाधिकार के लिए उच्चायुक्त का कार्यालय (OHCHR) मानवाधिकार परिषद के सचिवालय के रूप में कार्य करता है।
- एमनेस्टी इंटरनेशनल :
- यह मानवाधिकारों की वकालत करने वाले कुछ स्वयंसेवकों का अंतर्राष्ट्रीय संगठन है। यह संगठन पूरी दुनिया में मानवाधिकारों के उल्लंघन पर स्वतंत्र रिपोर्ट प्रस्तुत करता है।.
- मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (UDHR):
भारत में मानवाधिकार
- संवैधानिक प्रावधान:
- मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (UDHR) में उल्लिखित लगभग सभी अधिकारों को भारतीय संविधान में दो हिस्सों (मौलिक अधिकार और राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांत) में शामिल किया गया है।
- मौलिक अधिकार: संविधान के अनुच्छेद 12 से 35 तक। इसमें समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार तथा संवैधानिक उपचारों का अधिकार शामिल है।
- राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांत: संविधान के अनुच्छेद 36 से 51 तक। इसमें सामाजिक सुरक्षा का अधिकार, काम का अधिकार, रोज़गार चयन का अधिकार, बेरोज़गारी के विरुद्ध सुरक्षा, समान काम तथा समान वेतन का अधिकार, मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार तथा मुफ्त कानूनी सलाह का अधिकार आदि शामिल हैं।
- मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (UDHR) में उल्लिखित लगभग सभी अधिकारों को भारतीय संविधान में दो हिस्सों (मौलिक अधिकार और राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांत) में शामिल किया गया है।
- सांविधिक प्रावधान:
- मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 में केंद्रीय स्तर पर एक राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के गठन की बात कही गई है, जो कि संविधान में प्रदान किये गए मौलिक अधिकारों के संरक्षण और उससे संबंधित मुद्दों के लिये राज्य मानवाधिकार आयोगों और मानवाधिकार न्यायालयों का मार्गदर्शन करेगा।
- संबंधित पहलें:
- गरीबों के लिये:
- दिव्यांगजनों के लिये:
- प्रवासियों के लिये:
स्रोत: डाउन टू अर्थ