भारतीय अर्थव्यवस्था
श्रमिक उत्पादकता और आर्थिक विकास
प्रिलिम्स के लिये:श्रमिक उत्पादकता और आर्थिक विकास, श्रम उत्पादकता, द्वितीय विश्व युद्ध, मेक इन इंडिया, स्टार्टअप इंडिया। मेन्स के लिये:श्रमिक उत्पादकता और आर्थिक विकास, भारतीय अर्थव्यवस्था और योजना, संसाधनों को जुटाना, वृद्धि, विकास एवं रोज़गार से संबंधित मुद्दे। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उद्योग जगत के एक अभिकर्त्ता ने युवा भारतीयों से प्रति सप्ताह 70 घंटे काम करने का आग्रह करके श्रमिक उत्पादकता एवं आर्थिक विकास पर बहस छेड़ दी है।
- उन्होंने जापान और जर्मनी को उन देशों के उदाहरण के रूप में उद्धृत किया जो इसलिये विकसित हो सके क्योंकि उनके नागरिकों ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अपने राष्ट्रों के पुनर्निर्माण के लिये लंबी अवधि तक कार्य करते हुए कड़ी मेहनत की ।
श्रमिक उत्पादकता:
- परिचय:
- श्रमिक उत्पादकता और श्रम उत्पादकता के बीच एकमात्र वैचारिक अंतर यह है कि श्रमिक उत्पादकता में 'कार्य' मानसिक गतिविधियों का वर्णन करता है जबकि श्रम उत्पादकता में 'कार्य' ज्यादातर शारीरिक गतिविधियों से जुड़ा होता है।
- किसी गतिविधि की उत्पादकता को आमतौर पर सूक्ष्म स्तर पर श्रम (समय) लागत की प्रति इकाई आउटपुट मूल्य की मात्रा के रूप में मापा जाता है।
- व्यापक स्तर पर इसे श्रम-उत्पादन अनुपात या प्रत्येक क्षेत्र में प्रति कर्मचारी शुद्ध घरेलू उत्पाद (NDP) में परिवर्तन के संदर्भ में मापा जाता है (जहाँ काम के लिये प्रतिदिन 8 घंटे अनिवार्य माने जाते हैं)।
- बौद्धिक कार्यकर्त्ता उत्पादकता को मापना:
- कुछ क्षेत्रों, विशेष रूप से बौद्धिक श्रम से जुड़े, में उत्पादन के मूल्य का मूल्यांकन करना स्वाभाविक रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
- परिणामस्वरूप, श्रमिक उत्पादकता अक्सर श्रमिक आय के आधार पर अनुमानित की जाती है, जो उच्च उत्पादकता के साथ बढ़ते कार्य घंटों को सहसंबंधित करने के प्रयास में जटिलता उत्पन्न कर सकती है, विशेष रूप से ऐसी स्थिति में जब श्रमिकों को उनके अतिरिक्त प्रयासों के लिये उचित मुआवज़ा नहीं मिलता है।
- कुछ क्षेत्रों, विशेष रूप से बौद्धिक श्रम से जुड़े, में उत्पादन के मूल्य का मूल्यांकन करना स्वाभाविक रूप से चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
- उत्पादकता में कौशल की भूमिका:
- उत्पादकता सिर्फ समय के विषय में नहीं है, यह कौशल के विषय में भी है। शिक्षा, प्रशिक्षण, स्वास्थ्य और मानव पूंजी के अन्य पहलुओं में निवेश करके, श्रमिक अधिक कुशल बन सकते हैं तथा समान समय में अधिक उत्पादन कर सकते हैं।
- इसलिये, कम घंटे कार्य करने से आउटपुट का कम होना ज़रूरी नहीं; बल्कि इससे श्रमिकों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है।
- अर्थव्यवस्था अब भी बढ़ सकती है जब तक कि श्रमिक अधिक कुशल और उत्पादक बनते हैं तथा नाममात्र मज़दूरी समान रहती है।
श्रमिक उत्पादकता और आर्थिक विकास के बीच संबंध:
- किसी भी क्षेत्र के माध्यम से की गई उत्पादकता में वृद्धि से अर्थव्यवस्था में मूल्यवर्धित, संचय या वृद्धि पर प्रभाव पड़ने की संभावना है, दोनों के बीच संबंध काफी जटिल हैं।
- वर्ष 1980 से 2015 की अवधि के दौरान भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में उल्लेखनीय वृद्धि हुई, जो मज़बूत आर्थिक विकास का संकेत है। हालाँकि इस आर्थिक विकास से समाज के सभी वर्गों को समान रूप से लाभ नहीं हुआ है।
- वर्ष 1980 में भारत की GDP लगभग 200 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी, जो वर्ष 2015 तक 2,000 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक हो गई।
- हालाँकि जब आय वितरण को देखते हैं, तो वर्ष 1980-2015 के दौरान राष्ट्रीय आय में मध्यम-आय समूह की हिस्सेदारी 48% से घटकर 29% हो गई और निम्न-आय समूह की हिस्सेदारी 23% से घटकर 14% हो गई।
- इसके विपरीत, शीर्ष 10% आय अर्जित करने वाले समूह की हिस्सेदारी 30% से बढ़कर 58% हो गई, जो इस अवधि के दौरान देश में बढ़ते आय अंतर को दर्शाता है।
- विभिन्न आय समूहों के बीच इस आय असमानता और समृद्धि के विषम वितरण को उत्पादकता द्वारा नहीं बल्कि खराब श्रम कानूनों, धन के वंशानुगत हस्तांतरण एवं अत्यधिक वेतन पैकेज़ों द्वारा समझाया गया है।
भारत में उत्पादकता और दक्षता में सुधार के लिये सरकारी योजनाएँ:
- कौशल विकास पहल: सरकार ने कार्यबल की रोज़गार क्षमता को बढ़ाने के लिये प्रधान मंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY), राष्ट्रीय कौशल योग्यता फ्रेमवर्क (NSQF) और पूर्व शिक्षण की मान्यता (RPL) जैसे विभिन्न कौशल विकास कार्यक्रम शुरू किये हैं।
- डिजिटल इंडिया: डिजिटल इंडिया पहल का उद्देश्य डिजिटलीकरण के माध्यम से दक्षता को बढ़ावा देना और ऑनलाइन सेवाओं तक पहुँच बढ़ाना, नौकरशाही को कम करना तथा उत्पादकता को बढ़ाना है।
- मेक इन इंडिया: मेक इन इंडिया अभियान विनिर्माण में निवेश को प्रोत्साहित करता है और आर्थिक विकास को बढ़ावा देता है, रोज़गार के अवसर उत्पन्न करता है तथा उत्पादकता को बढ़ाता है।
- स्टार्टअप इंडिया: स्टार्टअप इंडिया उद्यमशीलता को बढ़ावा देता है, सरकार ने स्टार्टअप इंडिया की शुरुआत की, जो स्टार्टअप और छोटे व्यवसायों को समर्थन एवं प्रोत्साहन प्रदान करता है।
- व्यवसाय करने में आसानी सुधार: EoDB सुधारों का उद्देश्य नियमों को सरल बनाना, व्यावसायिक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना और व्यवसायों के संचालन को सरल बनाना है, जिससे उत्पादकता में वृद्धि होगी।
- राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास: देश भर में औद्योगिक गलियारा विकसित करने से निवेश आकर्षित करने, रोज़गार उत्पन्न करने और आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने में मदद मिलती है।
- अनुसंधान और नवाचार के लिये प्रोत्साहन: अटल इनोवेशन मिशन और जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (BIRAC) जैसे कार्यक्रम अनुसंधान एवं नवाचार के लिये सहायता व प्रोत्साहन प्रदान करते हैं।
- कर सुधार: वस्तु एवं सेवा कर (GST) का कार्यान्वयन कराधान को सरल बनाता है और व्यवसायों के लिये दक्षता को बढ़ाता है।
भारत में श्रमिक उत्पादकता:
- आय और श्रम में समानता के संबंध में प्रचलित धारणाओं के बावजूद, भारत में श्रमिक उत्पादकता कम नहीं हुई है। श्रम कानून, श्रमिकों के लिये प्रतिकूल नियम और अनौपचारिक रोज़गार जैसे कई मुद्दों ने 1980 के दशक से वेतन में कमी में योगदान दिया है।
- वैश्विक कार्यबल प्रबंधन कंपनी क्रोनोस ने भारतीय कर्मचारियों को विश्व के सबसे मेहनती कर्मचारियों में से एक के रूप में मान्यता दी है।
- इसके विपरीत, औसत मासिक वेतन के मामले में भारत काफी नीचे है।
आगे की राह
- भारत का परिदृश्य काफी अलग है तथा दूसरों देशों के साथ किसी भी तुलना से केवल भ्रामक नीतिगत सिफारिशें एवं संदिग्ध विश्लेषणात्मक निष्कर्ष सामने आएँगे।
- उदाहरण के लिये, जापान तथा जर्मनी न तो श्रम बल के आकार व गुणवत्ता के मामले में तुलनीय हैं और न ही उनके तकनीकी प्रक्षेप पथ की प्रकृति अथवा उनकी सामाजिक-सांस्कृतिक व राजनीतिक संरचनाओं में समानता है।
- अधिक सतत् और वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिये सामाजिक निवेश को बढ़ाना तथा विकास की सफलताओं के मानव-केंद्रित मूल्यांकन को बनाए रखते हुए अधिक उत्पादकता के लिये घरेलू उपभोग की संभावनाओं की जाँच को प्राथमिकता देना आवश्यक है।
भारतीय अर्थव्यवस्था
जलीय कृषि फसल बीमा
प्रिलिम्स के लिये:जलीय कृषि फसल बीमा, प्रधान मंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY), झींगा पालन, मत्स्य पालन एवं जलीय कृषि अवसंरचना विकास कोष (FIDF), नीली क्रांति मेन्स के लिये:जलीय कृषि फसल बीमा, इसकी आवश्यकता और चुनौतियाँ, देश के विभिन्न हिस्सों में प्रमुख फसल पैटर्न |
स्रोत: पी.आई.बी
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के मत्स्यपालन विभाग द्वारा वर्तमान में जारी प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) के तहत झींगा एवं मछली पालन के लिये जलीय कृषि फसल बीमा योजना के कार्यान्वयन में पेश आने वाली तकनीकी चुनौतियों पर चर्चा की गई।
- जलीय कृषकों के समक्ष आने वाले जोखिमों को कम करने के लिये, NFDB (राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड), जो PMMSY के कार्यान्वयन के लिये केंद्रक अभिकरण (नोडल एजेंसी) है, के द्वारा जलीय कृषि फसल बीमा को लागू करने का प्रस्ताव रखा गया है।
- इस योजना का लक्ष्य चयनित राज्यों आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, मध्य प्रदेश एवं ओडिशा में एक वर्ष के लिये प्रायोगिक आधार पर खारे पानी के झींगा और मछली के लिये बुनियादी संरक्षण प्रदान करना है।
जलीय कृषि (Aquaculture):
- परिचय:
- जलीय कृषि/एक्वाकल्चर शब्द मुख्य रूप से किसी व्यावसायिक, मनोरंजक अथवा सार्वजनिक उद्देश्य के लिये नियंत्रित जलीय वातावरण में जलीय जीवों के पालन को संदर्भित करता है।
- इसके तहत जलीय जीवों का प्रजनन एवं पालन और पौधों की कटाई भूमि पर मानव निर्मित "बंद" प्रणालियों सहित सभी प्रकार के जलीय वातावरण में होती है।
- उद्देश्य:
- मानव उपभोग हेतु खाद्य उत्पादन,
- संकटापन्न और संकटग्रस्त प्रजातियों की आबादी की पुनर्प्राप्ति
- पर्यावास पुनर्भरण,
- वन्य स्टॉक वृद्धि,
- बैटफिश का उत्पादन और
- चिड़ियाघरों एवं एक्वैरियमों के लिये मत्स्य पालन
नोट: झींगा पालन मानव उपभोग हेतु झींगा का उत्पादन करने के लिये समुद्री या अलवणीय जल परिवेश में एक जलीय कृषि-आधारित गतिविधि है।
- भारत में झींगा के उत्पादन हेतु उपयुक्त अनुमानित लवणीय जल क्षेत्र लगभग 11.91 लाख हेक्टेयर है जिसका 10 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों; पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, पुडुचेरी, केरल, कर्नाटक, गोवा, महाराष्ट्र और गुजरात तक विस्तार है।
- वर्तमान में इसमें से केवल लगभग 1.2 लाख हेक्टेयर भूमि पर झींगा पालन किया जाता है और इसलिये उद्यमियों के लिये जलीय कृषि-आधारित गतिविधि के इस क्षेत्र में उद्यम करने की काफी गुंज़ाइश मौजूद है।
एक्वाकल्चर बीमा की आवश्यकता:
- एक्वाकल्चर बीमा:
- एक्वाकल्चर बीमा एक प्रकार का बीमा है जो विशेष रूप से एक्वाकल्चर (जो व्यावसायिक उद्देश्यों के लिये मछली, झींगा तथा अन्य जलीय प्रजातियों का उत्पादन है) में शामिल व्यक्तियों या संस्थाओं को कवरेज और वित्तीय सुरक्षा प्रदान करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
- इस प्रकार का बीमा जलीय कृषि कार्यों के सामने आने वाले जोखिमों और चुनौतियों का समाधान करने के लिये जारी किया गया है।
- बीमा की आवश्यकता:
- जोखिम प्रबंधन:
- एक्वाकल्चर विभिन्न जोखिमों के प्रति संवेदनशील है, जिनमें बीमारियाँ, प्रतिकूल मौसम की स्थिति, जल की गुणवत्ता के मुद्दे और प्राकृतिक आपदाएँ शामिल हैं।
- इन जोखिमों से एक्वाकल्चर कृषकों को वृहत वित्तीय नुकसान हो सकता है। यह बीमा ऐसी प्रतिकूल घटनाओं की स्थिति में वित्तीय मुआवज़ा प्रदान करके इन जोखिमों को प्रबंधित करने और कम करने में सहायता करता है।
- निवेश सुरक्षा:
- बीमा, बुनियादी ढाँचे में किये गए संपूर्ण निवेश की सुरक्षा करता है तथा सुनिश्चित करता है कि संचालन में लगाए गए वित्तीय संसाधन अप्रत्याशित घटनाओं से सुरक्षित हैं।
- बाज़ार का विश्वास:
- जलीय कृषि बीमा की उपलब्धता उद्योग में निवेशकों और किसानों का विश्वास बढ़ा सकती है तथा व्यक्तियों को जलीय कृषि में निवेश करने एवं अपने परिचालन का विस्तार करने के लिये प्रोत्साहित कर सकती है।
- वहनीयता:
- बीमा अप्रत्याशित असफलताओं से उबरने का साधन प्रदान करके जलीय कृषि संचालन की स्थिरता को बढ़ावा दे सकता है, यह बदले में, जोखिम और बीमा प्रीमियम को कम करने के लिये जलीय कृषि में ज़िम्मेदार एवं टिकाऊ प्रथाओं को प्रोत्साहित कर सकता है।
- जोखिम प्रबंधन:
जलकृषि फसल बीमा योजना को लागू करने में चुनौतियाँ:
- डेटा संग्रह और मूल्यांकन:
- जोखिमों का आकलन करने और उचित बीमा प्रीमियम निर्धारित करने के लिये सटीक एवं नवीनतम डेटा की आवश्यकता होती है।
- जलीय कृषि के लिये ऐसा डेटा संग्रह करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, क्योंकि इसमें जटिल पर्यावरणीय और जैविक कारक शामिल होते हैं।
- जागरूकता और शिक्षा:
- कई मछुआरे और किसान बीमा की अवधारणा को पूर्ण रूप से नहीं समझ सकते हैं। बीमा योजना के लाभों और प्रक्रियाओं पर जागरूकता बढ़ाना तथा शिक्षा प्रदान करना योजना के सफल कार्यान्वयन के लिये आवश्यक है।
- प्रतिकूल चयन:
- इसमें प्रतिकूल चयन का जोखिम है जिसमें केवल उच्च जोखिम वाले लोग ही बीमा योजना में भाग लेने का विकल्प चुनते हैं, इससे स्थायी प्रीमियम स्तर प्राप्त नहीं होता। जोखिम स्तर की एक विविध शृंखला को शामिल करने के लिये प्रतिभागी पूल को संतुलित करना एक चुनौती है।
- दावों के समय पर प्रसंस्करण और प्रीमियम भुगतान सहित बीमा योजना का प्रशासन जटिल हो सकता है।
जलकृषि से संबंधित सरकारी पहल:
आगे की राह
- PMSSY के तहत जलीय कृषि फसल बीमा योजना का उद्देश्य मछुआरों और जलीय कृषि किसानों के लिये जोखिम को कम करना, निवेश तथा खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देना है। हालाँकि इसे डेटा, जागरूकता, प्रतिकूल चयन और प्रशासन से संबंधित चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- इसके सफल कार्यान्वयन और स्थिरता के लिये प्रमुख हितधारकों की भागीदारी तथा एक शासकीय संरचना की स्थापना महत्त्वपूर्ण है।
- झींगा और मछली पालन के लिये जलीय कृषि फसल बीमा योजना के सफल कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने हेतु एक शासकीय संरचना आवश्यक है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:प्रश्न. ‘नीली क्रांति’ को परिभाषित करते हुए भारत में मत्स्य पालन की समस्याओं और रणनीतियों को समझाइये। (2018) प्रश्न. सहायिकियाँ सस्यन प्रतिरूप, सस्य विविधता और कृषकों की आर्थिक स्थिति को किस प्रकार प्रभावित करती हैं? लघु और सीमांत कृषकों के लिये फसल बीमा, न्यूनतम समर्थन मूल्य एवं खाद्य प्रसंस्करण का क्या महत्त्व है? (2017) |
आंतरिक सुरक्षा
राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद् सचिवालय (NSCS), व्यापक राष्ट्रीय सुरक्षा, राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति, राष्ट्रीय सुरक्षा नीति 2022-2026 मेन्स के लिये:देश में बढ़ते आंतरिक व बाह्य सुरक्षा खतरों हेतु राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति की आवश्यकता |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
वर्षों के विचार-विमर्श के बाद भारत ने हाल ही में एक राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति लाने की प्रक्रिया की शुरुआत की है तथा इसके लिये राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय (NSCS) ने विभिन्न केंद्रीय मंत्रालयों व विभागों से इनपुट एकत्र करना शुरू कर दिया है।
राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति:
- राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति को समझना:
- राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति (NSS) एक व्यापक दस्तावेज़ है जो किसी देश के सुरक्षा उद्देश्यों एवं उन्हें प्राप्त करने के उपायों को बताता है।
- NSS एक गतिशील दस्तावेज़ है जिसे बदलती परिस्थितियों एवं उभरती चुनौतियों के अनुकूल होने के लिये समय-समय पर अद्यतित किया जाता है।
- राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति का दायरा:
- यह आधुनिक चुनौतियों एवं खतरों की एक विस्तृत शृंखला का समाधान करता है। इसमें न केवल पूर्ववर्ती खतरों के समाधान शामिल हैं, अपितु नए, आधुनिक युद्ध संबंधी मुद्दे भी शामिल हैं जो आज के परस्पर जुड़े विश्व में महत्त्वपूर्ण हो गए हैं।
- इसमें न केवल सैन्य तथा रक्षा-संबंधी मुद्दों जैसे पारंपरिक खतरे शामिल हैं, अपितु वित्तीय व आर्थिक सुरक्षा, खाद्य एवं ऊर्जा सुरक्षा, सूचना संबंधी खतरे, महत्त्वपूर्ण सूचना अवसंरचना (Critical Information Infrastructure) में सुनम्यता, आपूर्ति शृंखला व्यवधान एवं पर्यावरणीय चुनौतियाँ जैसे गैर-पारंपरिक खतरे भी शामिल हैं।
- भारत में राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति की भूमिका:
- भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा परिदृश्य के समग्र दृष्टिकोण और उपर्युक्त चुनौतियों से निपटने हेतु एक रोडमैप प्रदान करके, राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति महत्त्वपूर्ण रक्षा एवं सुरक्षा सुधारों का मार्गदर्शन करेगी, जिससे यह देश के हितों की रक्षा के लिये एक आवश्यक विकल्प बन सकेगी।
भारत में राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति की आवश्यकता:
- भारत में राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति की आवश्यकता:
- भारत के लिये राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति सैन्य चर्चाओं में बार-बार आने वाला विषय रही है। हालाँकि विभिन्न प्रयासों के बावजूद एक सामंजस्यपूर्ण, संपूर्ण सरकारी प्रयास की कमी के कारण इसे अभी तक तैयार एवं कार्यान्वित नहीं किया जा सका है, साथ ही सरकार ने जानबूझकर अपने राष्ट्रीय सुरक्षा उद्देश्यों को सार्वजनिक नहीं किया है।
- गंभीर खतरों और भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं के बीच तात्कालिकता:
- उभरते खतरों की बहुमुखी प्रकृति और वैश्विक भू-राजनीति में बढ़ती अनिश्चितताओं को देखते हुए भारत में एक राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति विकसित करने की तत्काल आवश्यकता है।
- मौजूदा निर्देशों और सैन्य सुधारों की भूमिका को संशोधित करने का आह्वान:
- पूर्व सेना प्रमुख जनरल ने सशस्त्र बलों के लिये वर्तमान राजनीतिक दिशा की पुरानी प्रकृति और इसे संशोधित करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है।
- रक्षा मंत्री का वर्ष 2009 का परिचालन निर्देश सशस्त्र बलों के लिये वर्तमान में लागू एकमात्र राजनीतिक निर्देश है।
- विशेषज्ञों ने इस बात पर ज़ोर दिया है कि सशस्त्र बलों का थिएटराइज़ेशन जैसे महत्त्वपूर्ण सैन्य सुधार एक व्यापक राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति से उत्पन्न होने चाहिये।
- ऐसी रणनीति की अनुपस्थिति की तुलना स्पष्ट रोडमैप या योजना के बिना सैन्य सुधारों के प्रयास से की गई है।
- पूर्व सेना प्रमुख जनरल ने सशस्त्र बलों के लिये वर्तमान राजनीतिक दिशा की पुरानी प्रकृति और इसे संशोधित करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है।
- राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति वाले देश:
- उन्नत सैन्य और सुरक्षा बुनियादी ढाँचे वाले अधिकांश विकसित देशों में एक राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति मौजूद है, जिसका समय-समय पर अद्यतन किया जाता है।
- अमेरिका, ब्रिटेन और रूस ने राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीतियाँ प्रकाशित की हैं।
- चीन के पास भी ऐसी रणनीति है, जिसे व्यापक राष्ट्रीय सुरक्षा कहा जाता है, जो इसकी शासन संरचना से गहनता से जुड़ी हुई है।
- पाकिस्तान ने भी अपने राष्ट्रीय सुरक्षा उद्देश्यों और प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को रेखांकित करते हुए एक राष्ट्रीय सुरक्षा नीति, 2022-2026 पेश की है।
- उन्नत सैन्य और सुरक्षा बुनियादी ढाँचे वाले अधिकांश विकसित देशों में एक राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति मौजूद है, जिसका समय-समय पर अद्यतन किया जाता है।
आगे की राह
- राष्ट्रीय सुरक्षा नीति में परिवर्तन:
- उद्देश्यों को स्पष्ट करना: 21वीं सदी में राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति यह परिभाषित करेगी कि किन परिसंपत्तियों की रक्षा और विरोधियों की पहचान की जानी चाहिये जो लोगों में भटकाव उत्पन्न करने के लिये अपरिचित कदमों से लक्षित राष्ट्रवासियों को भयभीत करना चाहते हैं।
- प्राथमिकताएँ निर्धारित करना: राष्ट्रीय सुरक्षा प्राथमिकताओं के लिये नवाचार और प्रौद्योगिकियों का कई मोर्चों पर समर्थन करने हेतु नए विभागों की आवश्यकता होगी, जैसे; हाइड्रोजन ईंधन सेल, समुद्री जल का अलवणीकरण, परमाणु प्रौद्योगिकी हेतु थोरियम, एंटी-कंप्यूटर वायरस और नई प्रतिरक्षा-निर्माण दवाएँ।
- रणनीति में बदलाव: नई राष्ट्रीय सुरक्षा नीति के लिये आवश्यक रणनीति कई आयामों में शत्रुओं का पूर्वानुमान लगाना और उनको निरस्त करने की रणनीति विकसित करके प्रदर्शनात्मक लेकिन सीमित प्री-एम्प्टीव स्ट्राइक द्वारा होगी।
- चीन की साइबर क्षमता का कारक भारत के लिये एक नई चुनौती पेश करता है, जिसके लिये एक नई रणनीति के विकास की आवश्यकता है।
- नीति निर्माताओं की भूमिका:
- सरकार को साइबर सुरक्षा के लिये अलग से बजट निर्धारित करना चाहिये।
- राज्य प्रायोजित हैकरों का मुकाबला करने के लिये साइबर योद्धाओं का एक केंद्रीय निकाय बनाना चाहिये।
- सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट में कैरियर के अवसर प्रदान करके भारत के प्रतिभा आधार का उपयोग किया जाना चाहिये।
- केंद्रीय वित्त पोषण के माध्यम से राज्यों में साइबर सुरक्षा क्षमता कार्यक्रम को बूटस्ट्रैप करने की आवश्यकता है।
- सरकार को साइबर सुरक्षा के लिये अलग से बजट निर्धारित करना चाहिये।
- रक्षा, निवारण और शोषण:
- खतरों से निपटने के लिये किसी भी राष्ट्रीय रणनीति के ये तीन मुख्य घटक हैं:
- क्रिटिकल इंफॉर्मेशन इंफ्रास्ट्रक्चर का बचाव किया जाना चाहिये और व्यक्तिगत मंत्रालयों एवं निजी कंपनियों को भी ईमानदारीपूर्वक उल्लंघनों की रिपोर्ट करने के लिये प्रक्रियाएँ तैयार करनी चाहिये।
- राष्ट्रीय सुरक्षा में प्रतिरोध एक अत्यंत जटिल मुद्दा है। उदाहरण के लिये- परमाणु निवारण सफल है क्योंकि विरोधियों की क्षमता पर स्पष्टता है लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति में ऐसी कोई स्पष्टता नहीं है।
- एक मज़बूत रणनीति की तैयारी भारतीय सेना को खुफिया जानकारी एकत्रित करने, लक्ष्यों का मूल्यांकन करने और लंबी अवधि में राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये विशिष्ट उपकरण तक पहुँच से शुरू करनी होगी।
- खतरों से निपटने के लिये किसी भी राष्ट्रीय रणनीति के ये तीन मुख्य घटक हैं:
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत के संविधान में अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की अभिवृद्धि का उल्लेख है? (2014) (a) संविधान की उद्देशिका में उत्तर: (b) |
भारतीय अर्थव्यवस्था
फॉरेन एक्सचेंज पर डायरेक्ट लिस्टिंग
प्रिलिम्स के लिये:डायरेक्ट लिस्टिंग, डिपॉज़िटरी रसीद, आरंभिक सार्वजनिक पेशकश (IPO) मेन्स के लिये:भारत में विदेशी मुद्रा विनिमय, पूंजी बाज़ार, वृद्धि एवं विकास |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
भारत सरकार ने कुछ भारतीय कंपनियों को वैश्विक पूंजी तक पहुँच के लिये प्रत्यक्ष विदेशी स्टॉक एक्सचेंजों में सूचीबद्ध होने की अनुमति दी है।
- 30 अक्तूबर, 2023 से प्रभावी यह प्रावधान कंपनी (संशोधन) अधिनियम, 2020 के माध्यम से पेश किया गया था।
- यह घरेलू सार्वजनिक कंपनियों के कुछ वर्गों को कुछ प्रक्रियात्मक आवश्यकताओं (जैसे प्रॉस्पेक्टस, शेयर पूंजी, लाभकारी स्वामित्व आवश्यकताओं और लाभांश वितरित करने में विफलता) से छूट के साथ अहमदाबाद, गुजरात में GIFT अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र (IFSC) सहित विदेशी स्टॉक एक्सचेंजों पर अपनी प्रतिभूतियों को सूचीबद्ध करने की अनुमति देता है।
नोट:
- IFSC एक वित्तीय केंद्र है जो घरेलू अर्थव्यवस्था के अधिकार क्षेत्र से बाहर के ग्राहकों को सेवाएँ प्रदान करता है।
- भारत में IFSC को अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण (IFSCA) द्वारा विनियमित किया जाता है, जो एक वैधानिक प्राधिकरण है जिसे अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र प्राधिकरण अधिनियम, 2019 के तहत स्थापित किया गया था।
- इसका मुख्यालय गुजरात में GIFT सिटी, गांधीनगर में है।
- वर्तमान में GIFT IFSC भारत में नवीन IFSC है।
- IFSC में, सभी लेनदेन विदेशी मुद्रा (INR को छोड़कर) में होने चाहिये। हालाँकि प्रशासनिक और वैधानिक खर्च INR में किये जा सकते हैं।
डायरेक्ट लिस्टिंग:
- डायरेक्ट लिस्टिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा कोई कंपनी नए शेयर जारी किये बिना या निवेशकों से पूंजी जुटाए बिना अपने शेयरों को विदेशी स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध कर सकती है।
- डायरेक्ट लिस्टिंग पारंपरिक प्रारंभिक सार्वजनिक पेशकश (IPO) से अलग है, जहाँ एक कंपनी अपने शेयरों का एक हिस्सा जनता को बेचती है और निवेशकों से धन जुटाती है।
- डायरेक्ट लिस्टिंग डिपॉज़िटरी रिसीट (Depositary Receipt- DR) रूट से भी अलग है, जहाँ एक कंपनी एक कस्टोडियन बैंक को अपने शेयर जारी करती है, जो फिर विदेशी निवेशकों को DR जारी करता है।
- DR परक्राम्य प्रमाणपत्र हैं जो कंपनी के अंतर्निहित शेयरों का प्रतिनिधित्व करते हैं और विदेशी मुद्रा पर व्यापार करते हैं।
- प्रत्यक्ष लिस्टिंग से कंपनी को निवेशकों के एक बड़े और अधिक विविध पूल तक पहुँचने, उसकी दृश्यता तथा ब्रांड मूल्य बढ़ाने एवं उसके कॉर्पोरेट प्रशासन व अनुपालन मानकों में सुधार करने की अनुमति मिलती है।
भारतीय कंपनियों का वर्तमान में विदेशी मुद्रा पर सूचीबद्ध होना:
- वर्तमान में भारतीय कंपनियाँ अमेरिकी डिपॉज़िटरी रसीदों (ADR) और ग्लोबल डिपॉज़िटरी रसीदों (GDR) सहित डिपॉजिटरी रसीदों का उपयोग करके विदेशी बाजारों में सूचीबद्ध होती हैं।
- विदेशी स्टॉक एक्सचेंजों पर सूचीबद्ध होने के लिये, भारतीय कंपनियाँ अपने शेयर एक भारतीय संरक्षक को सौंपती हैं, जो फिर विदेशी निवेशकों को डिपॉजिटरी रसीदें (DR) जारी करता है।
- वर्ष 2008 और वर्ष 2018 के बीच 109 कंपनियों ने ADR/GDR के माध्यम से 51,000 करोड़ रुपए से अधिक जुटाए।
- हालाँकि वर्ष 2018 के बाद किसी भी भारतीय कंपनी ने इस प्रकार से विदेशी लिस्टिंग को आगे नहीं बढ़ाया।
नोट:
- ADR एक अमेरिकी डिपॉज़िटरी बैंक द्वारा जारी किये गए एक परक्राम्य प्रमाणपत्र को संदर्भित करता है जो शेयरों की एक निर्दिष्ट संख्या का प्रतिनिधित्व करता है, आमतौर पर यह एक विदेशी कंपनी के स्टॉक का एक हिस्सा है।
- GDR डिपॉज़िटरी बैंक द्वारा जारी किया गया एक प्रमाणपत्र है जो एक विदेशी कंपनी में शेयरों का प्रतिनिधित्व करता है और उन्हें एक खाते में जमा करता है। GDR का कारोबार ज्यादातर यूरोपीय बाज़ारों में होता है।
- डायरेक्ट फॉरेन लिस्टिंग के लाभ:
- बड़े और अधिक तरल बाज़ार तक पहुँच, जिससे उनके शेयरों की मांग तथा मूल्यांकन बढ़ सकता है।
- व्यापक और अधिक परिष्कृत निवेशक आधार तक पहुँचने की क्षमता, जो उनकी प्रतिष्ठा एवं विश्वसनीयता को बढ़ा सकती है।
- फंड जुटाने और अपनी वैश्विक प्रोफाइल बढ़ाने के इस तरीके से स्टार्टअप और यूनिकॉर्न कंपनियों को लाभ हो सकता है।
- IPO या DR प्रक्रिया में समय और शामिल लागत, जैसे-अंडरराइटिंग शुल्क, लिस्टिंग शुल्क, कानूनी शुल्क इत्यादि की बचत।
- नए शेयर या DR जारी करने के साथ आने वाले स्वामित्व और नियंत्रण को कमज़ोर होने से बचाना।
- विदेशी क्षेत्राधिकार की सर्वोत्तम प्रथाओं और नियमों के संपर्क में आने से उनके प्रशासन तथा पारदर्शिता में सुधार हो सकता है।
- डायरेक्ट फॉरेन लिस्टिंग में शामिल चुनौतियाँ:
- विदेशी क्षेत्राधिकार के कानूनों और नियमों का अनुपालन, जो भारत से भिन्न या अधिक कठोर हो सकते हैं।
- डायरेक्ट फॉरेन लिस्टिंग में चुनौतियों में मूल्यांकन के मुद्दे शामिल हैं, क्योंकि वैश्विक निवेशक भारत के समान मूल्यांकन की पेशकश नहीं कर सकते हैं, जो संभावित रूप से कंपनी की बाज़ार धारणा और मूल्य निर्धारण को प्रभावित कर सकता है।
- मुद्रा में उतार-चढ़ाव और विदेशी मुद्रा की बाज़ार अस्थिरता के संपर्क में आने से उनके शेयर की कीमत तथा रिटर्न पर असर पड़ सकता है।
- भारत या विदेश में मौजूदा शेयरधारकों, नियामकों या कर अधिकारियों के साथ संभावित टकराव या विवाद।
- सार्वजनिक कंपनियों के वर्ग जो इस पद्धति का उपयोग कर सकते हैं, प्रतिभूतियाँ जिनको सूचीबद्ध किया जा सकता है, विदेशी क्षेत्राधिकार एवं लिस्टिंग के लिये अनुमोदित स्टॉक एक्सचेंज तथा प्रक्रियात्मक अनुपालन के संबंध में इन कंपनियों को प्रदान की जाने वाली छूट सभी को स्पष्ट करने की आवश्यकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. पंजीकृत विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा उन विदेशी निवेशकों को, जो स्वयं को सीधे पंजीकृत कराए बिना भारतीय स्टॉक बाज़ार का हिस्सा बनना चाहते हैं, निम्नलिखित में से क्या जारी किया जाता है? (2019) (a) जमा प्रमाण-पत्र उत्तर: (d) प्रश्न. भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (c) |
जैव विविधता और पर्यावरण
एलीफैंट कॉरिडोर रिपोर्ट 2023 का महत्त्वपूर्ण मूल्यांकन
प्रिलिम्स के लिये:एलीफैंट कॉरिडोर, विद्युत आघात, प्रोजेक्ट एलीफैंट, वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972, पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986, हाथी संरक्षण। मेन्स के लिये:विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप व उनके डिज़ाइन एवं कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे, भारत के एलीफैंट कॉरिडोरों से प्रमुख निष्कर्ष, 2023 रिपोर्ट। |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा प्रकाशित "एलीफैंट कॉरिडोर रिपोर्ट, 2023" में कई विसंगतियों की पहचान की गई है।
रिपोर्ट में देखी गई प्रमुख विसंगतियाँ:
- कॉरिडोर/गलियारे की परिभाषा में विसंगतियाँ: आलोचकों का तर्क है कि कॉरिडोर का प्रारंभिक महत्त्व कम कर दिया गया है, क्योंकि ऐसे किसी भी स्थान को जहाँ हाथी आवागमन करते हैं,कॉरिडोर के रूप में संदर्भित करना सामान्य प्रचलन हो गया है।
- इस रिपोर्ट में परिदृश्यों और आवासों को गलियारों के रूप में वर्गीकृत किया गया है तथा इसके बाद एलीफैंट कॉरिडोरों की संख्या में वृद्धि हुई है।
- उत्तर और पूर्वोत्तर कॉरिडोर में विसंगतियाँ: आलोचकों का तर्क है कि पश्चिम बंगाल में कुछ क्षेत्र छोटे वन क्षेत्र होने के कारण हाथियों के लिये उपयुक्त हैं, लेकिन दक्षिण बंगाल में हाथियों के प्रवास वाले अधिकांश क्षेत्रों में कृषि का प्रभुत्व है।
- रिपोर्ट में इन क्षेत्रों को अन्य हाथी परिदृश्यों से जोड़ने का प्रस्ताव है, जो कॉरिडोर के मूल लक्ष्य से भिन्न है।
- विस्तृत कॉरिडोर मानव-हाथी संघर्ष को बढ़ा सकते हैं।
- हाथियों के लिये खतरा: आलोचकों का तर्क है कि हाथियों के क्षेत्र के विस्तार के कारण विद्युत के झटकों और कुओं में गिरने से हाथियों की मौत की घटनाएँ भी बढ़ी हैं।
एलीफैंट कॉरिडोर पर प्रोजेक्ट एलीफैंट निर्देश:
- वर्ष 2005-06 में प्रोजेक्ट एलीफैंट ने एलीफैंट कॉरिडोर के संबंध में राज्यों को निर्देश जारी किये। इसमें कहा गया है कि वन क्षेत्रों में कॉरिडोर को वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में उल्लिखित नियमों का पालन करना चाहिये।
- इस बीच, राजस्व और निजी भूमि वाले क्षेत्रों को पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्रों के रूप में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 का अनुपालन करने का निर्देश दिया गया, संभावित रूप से लाल श्रेणी के उद्योगों पर प्रतिबंध लगाया गया।
हाथी गलियारा (एलीफैंट कॉरिडोर):
- परिचय:
- एलीफैंट कॉरिडोरों को भूमि के एक खंड के रूप में वर्णित किया जा सकता है जो हाथियों को दो अथवा दो से अधिक अनुकूल आवास स्थानों के बीच आवागमन में सुलभता प्रदान करता है।
- भारत के एलीफैंट कॉरिडोर से प्रमुख निष्कर्ष, 2023 रिपोर्ट:
- इस रिपोर्ट में 62 नए गलियारों की वृद्धि पर प्रकाश डाला गया है, जो वर्ष 2010 के बाद से बने गलियारों में 40% की वृद्धि दर्शाते हैं। वर्तमान में भारत में कुल 150 गलियारे मौजूद हैं।
- पश्चिम बंगाल में सबसे अधिक हाथी गलियारे हैं, जिनकी कुल संख्या 26 है, जो कुल गलियारों का 17% है।
- पूर्वी-मध्य क्षेत्र 35% (52 गलियारे) का योगदान देता है तथा उत्तर-पूर्वी क्षेत्र 32% (48 गलियारे) के साथ दूसरा सबसे बड़ा क्षेत्र है।
- दक्षिणी भारत में 32 हाथी गलियारे पंजीकृत हैं, जो कुल गलियारों का 21% है, जबकि उत्तरी भारत में सबसे कम 18 गलियारे हैं, जो कि कुल गलियारों का 12% हैं।
- महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र और कर्नाटक की सीमा से लगे दक्षिणी महाराष्ट्र में हाथियों की आवाजाही बढ़ गई है।
- उनकी उपस्थिति संजय टाइगर रिज़र्व और बांधवगढ़ के भीतर मध्य प्रदेश जैसे क्षेत्रों के साथ-साथ उत्तरी आंध्र प्रदेश में विस्तारित सीमाओं के साथ-साथ ओडिशा से आवाजाही की अनुमति में भी बढ़ी है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:भारतीय हाथियों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) |