डेली न्यूज़ (07 Jul, 2022)



शिक्षा क्षेत्र में सुधार

प्रिलिम्स के लिये:

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद, राष्ट्रीय शिक्षा नीति, संसदीय समितियाँ

मेन्स के लिये:

शिक्षा क्षेत्र में सुधार, राष्ट्रीय शिक्षा नीति की विशेषताएंँ, प्रत्यायन पर प्रभाव, आर्थिक विकास में शिक्षा का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

संसदीय स्थायी समिति ने भारत के उच्च शिक्षा संस्थानों में शिक्षा मानकों, मान्यता (प्रत्यायन) प्रक्रिया, अनुसंधान, परीक्षा सुधारों और शैक्षणिक वातावरण की समीक्षा की।

रिपोर्ट के निष्कर्ष:

  • केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के उच्च शिक्षा विभाग ने समिति को सूचित किया कि मात्र 30% विश्वविद्यालय और 20% कॉलेज प्रत्यायन प्रणाली में हैं।
    • कुल 50,000 कॉलेजों में से 9,000 से कम कॉलेज मान्यता प्राप्त हैं।
  • कई डीम्ड विश्वविद्यालयों ने तेज़ी से पैसा कमाने के लिये मुक्त दूरस्थ शिक्षा पाठ्यक्रम शुरू किया है जिससे शोध कार्य की गुणवत्ता में कमी आती हैै।
  • कई राज्य विश्वविद्यालय सुचारु रूप से मूल्यांकन करने में लगातार विफल रहे हैं, जिसकी वजह से अक्सर प्रश्नपत्र लीक और नकल जैसे बड़े मामले समाचारों में देखे जाते हैं।

प्रत्यायन प्रणाली:

  • परिचय:
    • प्रत्यायन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें इस बात का मानकीकरण होता है कि कौन से न्यूनतम बेंचमार्क बनाए जाने हैं।
    • यह एक औपचारिक, स्वतंत्र सत्यापन प्रक्रिया है जो यह निर्धारित करती है कि कोई कार्यक्रम या संस्थान परीक्षण, निरीक्षण या प्रमाणन के मामले में स्थापित गुणवत्ता मानकों को पूरा करता है या नहीं।
  • महत्त्व:
    • यह स्वास्थ्य, शिक्षा, भोजन के साथ-साथ अन्य क्षेत्रों में उत्पाद और सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार के लिये एक महत्त्वपूर्ण उपकरण है।
    • यह गुणवत्ता प्रबंधन प्रणाली, खाद्य सुरक्षा प्रबंधन प्रणाली और उत्पाद प्रमाणन से संबंधित गुणवत्ता मानकों को अपनाने पर भी जोर देता है।
    • यह भारतीय उत्पादों और सेवाओं की गुणवत्ता प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार के उद्देश्य को साकार करने में मदद करता है।
  • ग्रेडिंग प्रक्रिया:
    • वर्तमान में राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद (NAAC), विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के तहत एक स्वायत्त निकाय है, जो पठन-पाठन, अनुसंधान एवं बुनियादी ढांँचे सहित कई मापदंडों पर उच्च शिक्षा संस्थानों का मूल्यांकन करता तथा संस्थानों को A++ से लेकर C तक के ग्रेड प्रदान करता है।
      • यदि किसी संस्थान को D ग्रेड दिया जाता है, तो इसका अर्थ है कि वह मान्यता प्राप्त नहीं है।
    • ग्रेडिंग पांँच वर्ष के लिये वैध होती है।
  • अंतर्राष्ट्रीय प्रत्यायन मंच (International Accreditation Forum-IAF):
    • IAF अनुरूपता मूल्यांकन प्रत्यायन निकायों और प्रबंधन प्रणालियों, उत्पादों, सेवाओं, कर्मियों तथा अनुरूपता मूल्यांकन के अन्य समान कार्यक्रमों के क्षेत्र में रुचि रखने वाले अन्य निकायों का वैश्विक संघ है।
      • अनुरूपता मूल्यांकन निकाय: ये ऐसे निकाय हैं जो उत्पाद, प्रक्रिया या सेवाओ तथा प्रबंधन प्रणालियों को प्रमाणित करतें हैं।
        • उदाहरण के लिये अंतर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन (ISO)।
    • भारत भी इसका सदस्य है।

समिति की प्रमुख सिफारिशें:

  • मुद्दों का विश्लेषण:
    • NAAC और राष्ट्रीय प्रत्यायन बोर्ड (NBA), जो उच्च शिक्षा संस्थानों द्वारा पेश किये जाने वाले पाठ्यक्रमों को मान्यता देता है, के सामने आने वाले मुद्दों का विश्लेषण किया जाना चाहिये और उन पर काम किया जाना चाहिये।
  • लगातार प्रत्यायन:
    • प्रत्यायन की आवृत्ति और आवधिकता के मानदंडों को परिभाषित किया जाना चाहिये ताकि संस्थान समीक्षा के बिना वर्षों तक ग्रेड बनाए रखने की प्रवृत्ति विकसित न करें, क्योंकि यह प्रवृत्ति समीक्षा के बिना संस्थानों को आत्मसंतुष्टता की ओर ले जाती है और गुणवत्ता तंत्र को कमज़ोर करती है।
  • परीक्षा प्रबंधन:
    • समिति अनुशंसा करती है कि संस्थान की परीक्षा प्रबंधन योग्यता के मानदंड को भी मान्यता के विचार के लिये अनिवार्य मानदंड के रूप में माना जाए।
    • इसने कोचिंग सेंटरों के सहयोग से कदाचार में शामिल उच्च संस्थानों की मान्यता रद्द करने सहित सख्त कार्रवाई का भी सुझाव दिया।
    • सभी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को इस आधार पर ग्रेड प्रदान किया जाना चाहिये कि उनकी परीक्षाएंँ कितनी विश्वसनीय और आसान हैं।
  • डीम्ड विश्वविद्यालय:
    • तथाकथित "डीम्ड विश्वविद्यालयों" को भी 'विश्वविद्यालय' शब्द का उपयोग करने की अनुमति दी जानी चाहिये क्योंकि अन्य देशों में ऐसी कोई अवधारणा नहीं है।
  • संस्थानों का वित्तपोषण:
    • अधिक वित्तपोषण को प्रोत्साहित करने के लिये इसने सुझाव दिया कि "व्यक्तियों, पूर्व छात्रों और संस्थानों द्वारा दिया गया दान" 100% कर कटौती योग्य होना चाहिये।
  • डिजिटल पाठ्यक्रम मानदंड:
    • इसने यह भी सुझाव दिया कि ऑनलाइन पाठ्यक्रम शुरू करने के लिये मानदंडों पर फिर से विचार करने और संशोधित करने की तत्काल आवश्यकता है।
    • मुक्त दूरस्थ शिक्षा पाठ्यक्रमों के संबंध में विकल्पों की सावधानीपूर्वक जांँच करने के बाद समिति ने ऐसी प्रवृत्तियों को रोकने के लिये पर्याप्त उपाय करने की सिफारिश की।

भारत में शिक्षा क्षेत्र के लिये पहल: 

  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति:
    • NEP 2020 का उद्देश्य "भारत को एक वैश्विक ज्ञान महाशक्ति बनाना" है।
    • कैबिनेट ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय करने की भी मंज़ूरी दे दी है।
    • कैबिनेट द्वारा स्वीकृत NEP आज़ादी के बाद से भारत में शिक्षा के ढाँचे में तीसरा बड़ा सुधार है।
      • इससे पहले की दो शिक्षा नीतियाँ वर्ष 1968 और 1986 में लाई गई थीं।
  • मार्गदर्शन:
    • अच्छे प्रत्यायन रिकॉर्ड वाले संस्थानों या शीर्ष प्रदर्शन करने वाले संस्थानों को अपेक्षाकृत नए 10 से 12 संभावित संस्थानों को सलाह देने के लिये चुना जाता है।
    • संस्थानों में अपनाई जाने वाली सर्वोत्तम शिक्षण और सीखने की प्रथाओं का अनुकरण चिह्नित मेंटर संस्थान में किया जाएगा।
    • संस्थानों को प्रशिक्षण, कार्यशालाओं, सम्मेलनों आदि जैसी विभिन्न गतिविधियों के लिये तीन वर्ष की अवधि में 50 लाख रुपए (किश्तों में) तक प्रति संस्थान वित्तपोषण भी प्रदान किया जाएगा।
  • एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट:
    • यह एक डिजिटल बैंक के रूप में परिकल्पित है जो किसी भी पाठ्यक्रम में छात्र द्वारा अर्जित क्रेडिट को संग्रह है।
    • यह बहुविषयक और समग्र शिक्षा की सुविधा के लिये एक प्रमुख साधन है।
    • यह उच्च शिक्षा में छात्रों के लिये कई प्रवेश और निकास विकल्प प्रदान करेगा।
    • यह युवाओं को भविष्योन्मुखी बनाएगा और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) से संचालित अर्थव्यवस्था के लिये रास्ता खोलेगा।

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स


ग्लोबल फाइंडेक्स डेटाबेस 2021

प्रिलिम्स के लिये:

वित्तीय समावेशन, डिजिटल बैंकिंग, औपचारिक बैंकिंग।

मेन्स के लिये:

ग्लोबल फाइंडेक्स डेटाबेस 2021, विश्व बैंक।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व बैंक ने 'द ग्लोबल फाइंडेक्स रिपोर्ट 2021' जारी की है।

  • ग्लोबल फाइंडेक्स ने कोविड-19 के दौरान 123 अर्थव्यवस्थाओं में 125,000 से अधिक वयस्कों का सर्वेक्षण किया ताकि इस बात को बेहतर ढंग से समझा जा सके कि लोग औपचारिक और अनौपचारिक वित्तीय सेवाओं एवं डिजिटल भुगतान का उपयोग कैसे करते हैं।

निष्कर्ष:

  • खाता स्वामित्व:
    • विश्व भर में खातों के स्वामित्व में 50% की वृद्धि हुई है इसके साथ ही 76 प्रतिशत वयस्क आबादी के पास खातों की उपलब्धता है।
      • दर्जनों विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में व्यापक रूप से खाता स्वामित्व में वृद्धि हुई है और अधिकांश नए खाते भारत एवं चीन में खोले गए हैं।
  • औपचारिक बैंकिंग की पहुँच:
    • औपचारिक बैंकिंग के बिना वैश्विक आबादी का बड़ा हिस्सा (क्रमशः 130 मिलियन और 230 मिलियन) भारत और चीन में रहता है।
    • महिलाओं को अक्सर औपचारिक बैंकिंग सेवाओं से बाहर रखा जाता है क्योंकि उनके पास पहचान के आधिकारिक दस्तावेज़ों की कमी होती है, उनके पास मोबाइल फोन या अन्य प्रकार की तकनीक नहीं होती है और उनकी वित्तीय क्षमता कम होती है।
      • विकासशील देशों में 74% खाते पुरुषों के थे, जबकि 68% खातों के साथ महिलाएँ छह अंक पीछे हैं।
  • बैंक रहित (Unbanking):
    • विश्व स्तर पर 24% वयस्क बैंक रहित हैं, जिसमें विभिन्न कारणों में से एक, पैसे की कमी है, साथ ही 31% बैंक रहित वयस्कों के लिये दूरी एक बाधा है।
      • जिन लोगों का किसी वित्तीय संस्थान या मोबाइल मनी सेवा प्रदाता में खाता नहीं है, उन्हें बैंक रहित के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
    • विश्व स्तर पर 64% बैंक रहित वयस्क प्राथमिक स्तर या उससे कम शिक्षित हैं।
    • विश्व भर में 36% बैंक रहित वयस्कों का कहना है कि वित्तीय सेवाएंँ बहुत महंँगी हैं।
  • कोविड-19 और डिजिटल भुगतान:
    • कोविड-19 महामारी ने डिजिटल भुगतान के उपयोग में वृद्धि को उत्प्रेरित किया।
    • वर्ष 2021 में विकासशील देशों में 18% वयस्कों ने उपयोगिता बिलों का भुगतान सीधे खाते से किया। इनमें से लगभग एक-तिहाई बिलों का पहली बार ऑनलाइन भुगतान किया गया।
  • मोबाइल मनी:
    • मोबाइल मनी उप-सहारा अफ्रीका में विशेष रूप से महिलाओं के लिये वित्तीय समावेशन में सहयोग कर रहा है।
    • 11 अर्थव्यवस्थाएँ ऐसी हैं जहाँ वयस्कों के पास वित्तीय संस्थान खाते की तुलना में केवल मोबाइल मनी खाता ही है और ये सभी उप-सहारा अफ्रीका में स्थित हैं।
  • वित्तीय प्रदाताओं की वित्तीय पहुंँच के विस्तार में योगदान:
    • सरकारी, निजी नियोक्ताओं और वित्तीय प्रदाताओं ने बाधाओं को कम करके और बुनियादी ढांँचे में सुधार करके बैंक रहित लोगों के बीच वित्तीय पहुंँच एवं उपयोग का विस्तार करने में मदद की।
    • कोविड-19 महामारी के बाद से वित्तीय समावेश अल्पकालिक राहत और स्थायी पुनर्प्राप्ति दोनों प्रयासों के लिये आधारशिला बन गया है।
  • वित्तीय चिंताएंँ:
    • वित्त के संदर्भ में, विकासशील देशों के वयस्कों को उच्च आय वाले देशों के वयस्कों की तुलना में अधिक चिंतित होने की संभावना है । 
    • उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिण एशिया में चिकित्सा खर्चों के संबंध में सबसे अधिक चिंता देखी गई, जहांँ 64% वयस्क अधिक चिंतित हैं तथा पूर्वी एशिया एवं प्रशांत में सबसे कम 38% वयस्क अधिक चिंतित पे गए।

सिफारिशें:

  • महामारी से बाहर निकलने के लिये जैसे-जैसे सरकारें डिजिटल बैंकिंग सेवाओं की गति को तीव्र और पहुंँच का विस्तार करना चाहती हैं, नीतियों को महिलाओं, गरीबों और सीमित शैक्षिक योग्यता या वित्तीय साक्षरता वाले लोगों सहित सबसे कमजोर वर्गों के लिये सुरक्षा में कारक होना चाहिये।
  • वित्तीय समावेशन पर समान प्रगति सुनिश्चित करने के लिये गतिशीलता में लैंगिक अंतर को दूर किया जाना चाहिये।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


चावल का प्रत्यक्ष बीजारोपण

प्रिलिम्स के लिये:

चावल का प्रत्यक्ष बीजारोपण (डीएसआर), पानी की कमी, भूजल।

मेन्स के लिये:

चावल की प्रत्यक्ष बीजारोपण विधि के लाभ और मुद्दे।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पंजाब राज्य जल बचत विधि (चावल का प्रत्यक्ष बीजारोपण) में अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में असफल रहा।

चावल का प्रत्यक्ष बीजारोपण (DSR):

  • चावल का प्रत्यक्ष बीजारोपण (DSR) जिसे 'बीज बिखेरना तकनीक (Broadcasting Seed Technique)' के रूप में भी जाना जाता है, धान की बुवाई की एक जल बचत विधि है।
  • इस विधि में बीजों को सीधे खेतों में बुवा की जाती है। नर्सरी से जलभराव वाले खेतों में धान की रोपाई की पारंपरिक जल-गहन विधि के विपरीत यह विधि भूजल की बचत करती है।
  • इस पद्धति में कोई नर्सरी तैयारी या प्रत्यारोपण शामिल नहीं है।
  • किसानों को केवल अपनी ज़मीन को समतल करना होता है और बुवाई से पहले सिंचाई करनी होती है।

DSR के लाभ:

  • कम श्रमिकों की आवश्यकता:
    • DSR श्रम की कमी की समस्या को हल कर सकता है क्योंकि पारंपरिक पद्धति की तरह इसमें धान की नर्सरी की आवश्यकता नहीं होती है और 30 दिन पुरानी धान की नर्सरी का रोपण खेत में किया जा सकता है।
  • भूजल के लिये मार्ग:
    • यह भूजल पुनर्भरण के लिये मार्ग प्रदान करता है क्योंकि यह मृदा की परत के नीचे कठोर परत के विकास को रोकता है, जैसा कि पोखर प्रत्यारोपण विधि में होता है।
      • यह पोखर प्रतिरोपित फसल की तुलना में 7-10 दिन पहले पक जाती है, इसलिये धान की पराली के प्रबंधन के लिये अधिक समय मिल जाता है।
  • उपज में वृद्धि:
    • अनुसंधान परीक्षणों और किसानों के क्षेत्र सर्वेक्षण के परिणामों के अनुसार, इस तकनीक से प्रति एकड़ एक से दो क्विंटल अधिक पैदावार हो रही है।

DSR से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ:

  • चरम जलवायु:
    • उच्च तापमान और कम वर्षा मुख्य रूप से इसके लिये ज़िम्मेदार हैं।
    • कुछ दिनों पहले तापमान 47-48 डिग्री सेल्सियस के बीच था, जबकि इस अवधि के लिये आदर्श तापमान 42-43 डिग्री सेल्सियस है।
    • DSR को लेकर किसानों में अनिश्चितता की स्थिति देखी गई क्योंकि हीटवेव के कारण उनकी गेहूंँ की फसल पहले ही नष्ट हो चुकी थी।
  • किसानों में अनिच्छा:
    • अच्छी किस्म के खरपतवार (Weeds) उपलब्ध कराने में सरकार से समर्थन की कमी और DSR की बुवाई के मौसम के दौरान निर्बाध बिजली की आपूर्ति न होने के कारण इलेक्ट्रिक मोटर का उपयोग कर खेत की सिंचाई करना किसानों के लिये बहुत मुश्किल काम है।
  • शासन के मुद्दे:
    • जून के मध्य में शुरू होने वाले पोखर सीजन हेतु पंजाब सरकार की निर्बाध बिजली आपूर्ति DSR के लिये फायदेमंद नहीं है क्योंकि इसकी बुवाई का मौसम मई की शुरुआत से मध्य जून के बीच होता है और इसलिये यह पारंपरिक पद्धति के लिये फायदेमंद है।
  • अन्य:
    • इसमें बंद नहरें, सिंचाई हेतु नलकूपों के संचालन के लिये अनियमित बिजली की आपूर्ति, खरपतवार और चूहों के मुद्दे शामिल हैं।
    • मई के दौरान पंजाब राज्य के कई हिस्सों में कम बारिश होने के कारण पानी की उपलब्धता भी एक चुनौती थी।

आगे की राह

  • सरकार द्वारा उचित प्रतिक्रिया और शिकायत निवारण कार्यक्रम प्रदान करना समय की मांग है।
  • सरकार द्वारा वितरित खरपतवारनाशी की खराब गुणवत्ता के कारण DSR में फसल की कटाई को बढ़ाने के लिये खरपतवार प्रबंधन की आवश्यकता है।
  • DSR पद्धति को बढ़ावा देने के लिये प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना और नवीन समाधानों पर काम करना, क्योंकि इसमें पारंपरिक पद्धति की तुलना में कम पानी की आवश्यकता होती है, जो इस क्षेत्र में पानी के दबाव से निपटने में भी मदद कर सकता है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:

प्रश्न. कृषि में शून्य जुताई का/के क्या लाभ है/हैं? (2020)

  1. पिछली फसलों के अवशेषों को जलाए बिना गेहूँ की बुवाई संभव है।
  2. धान के पौधों की नर्सरी की आवश्यकता के बिना गीली मिट्टी में धान के बीज की सीधी बुवाई संभव है।
  3. मिट्टी में कार्बन पृथक्करण संभव है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: D 

  • शून्य जुताई (ज़ीरो टिलेज) वह प्रक्रिया है जहाँ बीज को बिना पूर्व तैयारी और बिना मिट्टी तैयार किये तथा जहांँ पिछली फसल के बुलबुले (स्टबल) मौजूद होते हैं, वहां ड्रिलर्स के माध्यम से बोया जाता है। एक अध्ययन के अनुसार, यदि किसान अपने फसल अवशेषों को जलाना बंद कर दें तथा इसके बजाय शून्य जुताई खेती की अवधारणा को अपनाएंँ तो उत्तर भारत में किसान न केवल वायु प्रदूषण को कम करने में मदद कर सकते हैं, बल्कि अपनी मृदा की उत्पादकता में भी सुधार कर सकते हैं और अधिक लाभ कमा सकते हैं। ज़ीरो टिलेज के तहत बिना जुताई वाली मिट्टी में गेहूंँ की सीधी बुवाई और चावल के अवशेषों को छोड़ देना बहुत फायदेमंद साबित हुआ है। इसने जल, श्रम व कृषि रसायनों के उपयोग में कमी, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी और मृदा के स्वास्थ्य एवं फसल की उपज में सुधार किया, इस तरह किसानों तथा समाज दोनों को बड़े पैमाने पर लाभ हुआ। अत: कथन 1 सही है।
  • चावल का प्रत्यक्ष बीजारोपण (DSR) जिसे 'बीज बिखेरना तकनीक (Broadcasting Seed Technique)' के रूप में भी जाना जाता है, धान की बुवाई की एक जल बचत विधि है। इस विधि में बीजों को सीधे खेतों में ड्रिल किया जाता है। नर्सरी से जलभराव वाले खेतों में धान की रोपाई की पारंपरिक जल-गहन विधि के विपरीत यह विधि भूजल की बचत करती है। इस पद्धति में कोई नर्सरी तैयारी या प्रत्यारोपण शामिल नहीं है। 
  • किसानों को केवल अपनी ज़मीन को समतल करना होता है और बुवाई से पहले सिंचाई करनी होती है। यह पाया गया है कि 1 किलो धान के उत्पादन के लिये 5000 लीटर तक पानी का उपयोग किया जाता है। हालांँकि पानी की बढ़ती कमी की स्थिति में न्यूनतम या शून्य जुताई के साथ DSR श्रम की बचत कर इस तकनीक के लाभों को और बढ़ाया जा सकता है। अत: कथन 2 सही है।
  • बिना जुताई वाली मृदा, जुताई वाली मृदा से आंशिक रूप में ठंडी होती है क्योंकि पौधे के अवशेषों की एक परत सतह पर मौज़ूद होती है। मिट्टी में कार्बन जमा हो जाता है तथा इसकी गुणवत्ता में वृद्धि होती है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग का खतरा कम होता है। अत: कथन 3 सही है। इसलिये विकल्प (d) सही उत्तर है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों की निकासी

प्रिलिम्स के लिये:

पूंजी बाज़ार, मुद्रास्फीति, एफपीआई, यूएस फेडरल रिज़र्व, भारतीय रिज़र्व बैंक, मौद्रिक नीति

मेन्स के लिये:

एफपीआई का महत्त्व, एफपीआई के बाहर निकलने का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, आरबीआई की मौद्रिक नीति, भारतीय अर्थव्यवस्था पर यूएस फेडरल रिज़र्व का प्रभाव

चर्चा में क्यों?

विदेशी निवेशक भारतीय बाज़ारों से लगातार धन की निकासी कर रहे हैं। जून 2022 में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने लगभग 50,203 हज़ार करोड़ रुपए के शेयर बेचे जो मार्च 2020 (जब देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की गई थी) से अब तक निकासी का सबसे उच्च स्तर है।

विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक:

  • परिचय:
    • विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक वे होते हैं जो अपनी घरेलू सीमा के बाहर के बाज़ारों में निवेश करते हैं।
    • FPI किसी देश के पूंजी खाते का हिस्सा होता है और इसे भुगतान संतुलन (BOP) पर दर्शाया जाता है
      • भुगतान संतुलन (Balance Of Payment-BoP) का अभिप्राय ऐसे सांख्यिकी विवरण से होता है, जो एक निश्चित अवधि के दौरान किसी देश के निवासियों के विश्व के साथ हुए मौद्रिक लेन-देनों के लेखांकन को रिकॉर्ड करता है।
    • वे आमतौर पर सक्रिय शेयरधारक नहीं होते हैं और उन कंपनियों पर कोई नियंत्रण नहीं रखते हैं जिनके शेयर उनके पास हैं।
    • भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने वर्ष 2014 के पूर्ववर्ती FPI विनियमों की जगह नया FPI विनियम, 2019 लागू किया।
    • FPI को अक्सर "हॉट मनी" के रूप में संदर्भित किया जाता है क्योंकि यह अर्थव्यवस्था में किसी भी प्रकार के संकट की स्थिति में सबसे पहले भागने वाले संकेतों की प्रवृत्ति को दर्शाता है। एफपीआई अधिक तरल और अस्थिर होता है, इसलिये यह FDI की तुलना में अधिक जोखिम भरा है।
  • FPI का महत्त्व:
    • अंतर्राष्ट्रीय ऋण तक पहुँच:
      • निवेशक विदेशों में ऋण की बढ़ी हुई राशि तक पहुँचने में सक्षम हो सकते हैं, जिससे निवेशक अधिक लाभ और अपने इक्विटी निवेश पर उच्च रिटर्न प्राप्त कर सकते हैं।
    • यह घरेलू पूंजी बाज़ारों की तरलता को बढ़ाता है:
      • जैसे-जैसे बाज़ार में तरलता बढ़ती जाती हैं, बाज़ार अधिक गहन और व्यापक होते जाते हैं, फलस्वरूप अधिक व्यापक श्रेणी के निवेशों को वित्तपोषित किया जा सकता है।
      • नतीजतन निवेशक यह जानकर विश्वास के साथ निवेश कर सकते हैं कि यदि आवश्यकता हो तो वे अपने पोर्टफोलियो का शीघ्र प्रबंधन कर सकते हैं या अपनी वित्तीय प्रतिभूतियों को बेच सकते हैं।
    • यह इक्विटी बाज़ारों के विकास को बढ़ावा देता है:
      • वित्तपोषण के लिये बढ़ी हुई प्रतिस्पर्द्धा बेहतर प्रदर्शन, संभावनाओं और कॉर्पोरेट प्रशासन में सुधार करती है।
      • जैसे-जैसे बाज़ार की तरलता और कार्यक्षमता विकसित होती है, इक्विटी की कीमतें निवेशकों के लिये उचित व प्रासंगिक बन जाती हैं, अंततः ये बाज़ार की दक्षता को बढ़ावा देती हैं।

भारत में FPI:

  • एफपीआई भारतीय बाजार में सबसे बड़े गैर-प्रवर्तक शेयरधारक हैं और उनके निवेश निर्णयों का शेयर की कीमतों व बाज़ार की समग्र दिशा पर भारी असर पड़ता है।
  • नेशनल स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध कंपनियों में FPI (मूल्य के संदर्भ में) की होल्डिंग 31 मार्च, 2022 को99 लाख करोड़ रुपए थी, जो अक्तूबर 2021 से निरंतर बिकवाली के कारण 31 दिसंबर, 2021 के 53.80 लाख करोड़ रुपए से 3.36% की कम थी।
  • एफपीआई की निजी बैंकों, टेक कंपनियों और रिलायंस इंडस्ट्रीज़ जैसी बड़ी कंपनियों में हिस्सेदारी है।
  • नेशनल सिक्योरिटीज़ डिपॉजिटरी लिमिटेड (NSDL) से उपलब्ध आंँकड़ों के अनुसार, अमेरिका में मई 2022 तक57 लाख करोड़ रुपए के FPI निवेश का एक बड़ा हिस्सा है, इसके बाद मॉरीशस में 5.24 लाख करोड़ रुपए, सिंगापुर में 4.25 लाख करोड़ रुपए और लक्ज़मबर्ग में 3.58 लाख करोड़ रुपए है।

FPI को प्रोत्साहित करने वाले कारक:

  • आर्थिक वृद्धि
    • आर्थिक वृद्धि से लाभ की अपेक्षा FPI सहित निवेशकों को देश के बाज़ारों के प्रति आकर्षित करता है।
    • नेशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरीज लिमिटेड (NDSL) के आंँकड़ों के अनुसार, FPI से वर्ष 2002 में लगभग 3,682 करोड़ रुपए आए।
      • वर्ष 2010 में यह बढ़कर79 लाख करोड़ रुपए हो गया। यह वर्ष 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बावजूद उस अवधि में आर्थिक उत्पादन के समवर्ती विस्तार से संबंधित है, जिसमें देश में उस समय-सीमा में FPI की बिक्री देखी गई थी।
    • जब भारत ने देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की तो आर्थिक विकास को लेकर चिंताएँ उत्पन्न हुई थीं, उस समय अकेले FPI ने (मार्च 2020 में) 1.18 लाख करोड़ रुपए निकाले।
  • यूएस फेडरल रिज़र्व:
    • फेडरल रिज़र्व द्वारा दरों में परिवर्तन या अन्य फैसलों से न केवल अमेरिकी अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है, बल्कि व्यापक आर्थिक दृष्टिकोण को भी आकार देती है और अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं में मौद्रिक नीतियों पर प्रभाव भी डालती है।
    • फेडरल रिज़र्व और भारतीय बाज़ारों का सह:संबंध:
      • भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं में विकसित देशों जैसे- अमेरिका और कई (मुख्य रूप से पश्चिमी) यूरोपीय देशों की तुलना में उच्च मुद्रास्फीति तथा उच्च ब्याज दरें होती हैं।
      • अत: वित्तीय संस्थान, विशेष रूप से विदेशी संस्थागत निवेशक (Foreign Institutional Investors- FIIs), कम ब्याज दरों पर अमेरिका से पैसा उधार लेकर उस पैसे को अधिक ब्याज दर वाले देशों के सरकारी बॉण्ड में निवेश करते हैं।
      • जब यूएस फेडरल अपनी घरेलू ब्याज दरों को बढ़ाता है, तो दोनों देशों की ब्याज दरों के बीच का अंतर कम हो जाता है।
        • यह भारत को करेंसी कैरी ट्रेड (Currency Carry Trade) हेतु कम आकर्षक बनाता है जिसके परिणामस्वरूप कुछ धन के भारतीय बाज़ारों से बाहर निकलने और अमेरिका में वापस आने की उम्मीद की जा सकती है।

FPI भारतीय होल्डिंग्स क्यों बेच रहे हैं?

  • महामारी के बाद के प्रभाव:
    • महामारी के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था में रिकवरी असमान रही है।
    • वर्ष 2021 में कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर ने जीवन और आजीविका को तबाह कर दिया।
      • अर्थव्यवस्था तब फिर से लड़खड़ा गई जब वर्ष 2021 की शुरुआत में ही तीसरी लहर के रूप में ओमिक्रॉन संस्करण के प्रसार को देखा गया था।
    • इसके साथ ही महामारी के थमने के बाद इसने दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं की मांग में कमी की समस्या पैदा कर दी।
      • पेंट-अप डिमांड आमतौर पर कम खर्च की अवधि के बाद सेवा या उत्पाद की मांग में तेज़ी से वृद्धि का वर्णन करती है।
  • रूस-यूक्रेन संघर्ष:
    • इसके कारण इन दोनों देशों से सूरजमुखी और गेहूँ की आपूर्ति प्रभावित हुई, जिससे इन फसलों की वैश्विक कीमतों में वृद्धि देखी गई।
      • जैसा कि सामान्य रूप से दुनिया भर में आपूर्ति में मज़बूती देखी गई, कमोडिटी की कीमतों में भी वृद्धि हुई और समग्र मुद्रास्फीति में तेज़ी आई।
      • भारत में मूल्य वृद्धि में तेज़ गति देखी गई जो पाँच महीनों के लिये रिज़र्व बैंक के 6% के स्तर से ऊपर रही, यह अप्रैल में8% थी, बाद के महीने में थोड़ा कम आक्रामक यानी 7.04% हो गई।
    • S&P ग्लोबल इंडिया मैन्युफैक्चरिंग परचेज़िंग मैनेजर्स इंडेक्स (PMI) जून में घटकर9 पर आ गया, जो पिछले महीने में 54.6 के साथ नौ महीने में सबसे निचला स्तर था। विशेषज्ञ इसका श्रेय मुद्रास्फीति के दबाव को देते हैं, जिसने सर्वेक्षण आधारित निष्कर्षों के अनुसार, जून में व्यावसायिक विश्वास की भावना को 27 महीने के निचले स्तर पर पहुँचा दिया।
  • यूएस फेडरल रिज़र्व:
    • हाल ही में यूएस फेडरल रिज़र्व ने लगभग 30 वर्षों में सबसे आक्रामक ब्याज दर वृद्धि की घोषणा की, बढ़ती मुद्रास्फीति के खिलाफ अपने संघर्ष में उधार दर को75% बढ़ा दिया।
      • जब यू.एस. और अन्य बाज़ारों में ब्याज दरों के बीच का अंतर कम हो जाता है और अगर ऐसी घटना डॉलर के मज़बूत होने के साथ होती है, तो निवेशकों की उचित रिटर्न प्राप्त करने की क्षमता प्रभावित होती है।
    • यदि डॉलर रुपए के मुकाबले मज़बूत होता है, तो निवेशक संपत्ति के परिसमापन के लिये एक निश्चित मात्रा में रुपए की तुलना में कम डॉलर चुकाने में सक्षम होता है।
    • निवेशक भारत, ब्राज़ील या दक्षिण अफ्रीका जैसे उभरते बाज़ारों जैसे 'जोखिम भरा' के रूप में देखी जाने वाली संपत्तियों से बाहर निकलते हैं।
      • दरअसल डॉलर के मुकाबले रुपए का अवमूल्यन हो रहा है।
      • जुलाई 2022 में रुपए ने ग्रीनबैक के मुकाबले अपने रिकॉर्ड निचले स्तर33 को छू लिया।

FPI सेलऑफ का प्रभाव:

  • स्थानीय मुद्रा:
    • जब FPI अपने शेयरों कों बेचते हैं और अपने घरेलू बाज़ारों में धन वापस भेजते हैं तो स्थानीय मुद्रा में कमी आती है।
      • निवेशक अपने घरेलू बाज़ार की मुद्रा के बदले रुपए बेचते हैं।
      • जैसे-जैसे बाज़ार में रुपए की आपूर्ति बढ़ती है इसकी कीमत घटती जाती है।
      • परिणामस्वरूप हमें सामान की एक ही इकाई को आयात करने के लिये और अधिक धन खर्च करना पड़ता है।
  • निर्यात और आयात पर:
    • भारत दुनिया के सबसे बड़े कच्चे तेल आयातकों में से एक है।
    • डॉलर की तुलना में कमज़ोर रुपए के परिणामस्वरूप कच्चे तेल का आयात अधिक महंगा होता है जो पूरी अर्थव्यवस्था और विशेष रूप से उन क्षेत्रों में लागत-संचालित मुद्रास्फीतिकारी दबाव डाल सकता है जो कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं।
    • दूसरी ओर भारत का निर्यात विशेष रूप से आईटी और आईटी-सक्षम सेवाएँ रुपए के संबंध में मज़बूत डॉलर के चलते कुछ हद तक लाभान्वित होंगे।
      • हालांँकि निर्यात बाज़ार में मज़बूत प्रति स्पर्द्धा के कारण निर्यातकों को समान लाभ नहीं मिल सकता है।
  • भंडार:
    • भारत का विदेशी मुद्रा भंडार पिछले नौ महीनों में 46 बिलियन अमेरिकी डॉलर गिरकर 10 जून 2022 तक45 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है, जिसका मुख्य कारण डॉलर का अधिमूल्यन और FPI निकासी है।
  • अन्य प्रभाव:
    • विदेशी निवेशकों के बाहर निकलने से स्टॉक और इक्विटी म्यूचुअल फंड निवेश में गिरावट आ सकती है।
    • डॉलर के मुकाबले रुपए का मूल्य कम होने से आयात बिल अधिक रहता है, जिससे मुद्रास्फीति और अधिक बढ़ जाती है।
      • उच्च मुद्रास्फीति समग्र बाज़ार के लिये हानिकारक है। अगर रुपया मज़बूत नहीं होता है, तो FPI का बहिर्वाह जारी रहेगा, जो एक और नकारात्मक प्रभाव है।
      • यात्रियों तथा विदेश में पढ़ने वाले छात्रों को बैंकों से डॉलर खरीदने के लिये अधिक रुपए खर्च करने होंगे।

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (पीवाईक्यू):

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन पंजीकृत विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा उन विदेशी निवेशकों को जारी किया जाता है जो खुद को सीधे पंजीकृत किये बिना भारतीय शेयर बाज़ार का हिस्सा बनना चाहते हैं?

(a) जमा प्रमाणपत्र
(b) वाणिज्यिक पत्र
(c) वचन पत्र
(d) पार्टिसिपेटरी नोट

उत्तर: (d)

व्याख्या:

  • पार्टिसिपेटरी नोट या P-नोट पंजीकृत विदेशी संस्थागत निवेशक (FII) द्वारा एक विदेशी निवेशक को जारी किया गया उपकरण है जो भारतीय शेयर बाज़ारों में खुद को बाज़ार नियामक, भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) के साथ पंजीकृत किये बिना निवेश करना चाहता है।
  • जमा प्रमाणपत्र एक निश्चित परिपक्वता तिथि और निर्दिष्ट निश्चित ब्याज़ दर वाला बचत प्रमाणपत्र है जिसे न्यूनतम निवेश आवश्यकताओं के अलावा किसी भी मूल्यवर्ग में जारी किया जा सकता है।
  • वाणिज्यिक पत्र असुरक्षित मुद्रा बाज़ार साधन है जो वचन पत्र के रूप में जारी किया जाता है। इसे 1990 में भारत में पेश किया गया था ताकि उच्च श्रेणी के कॉर्पोरेट उधारकर्त्ताओं को अपने अल्पकालिक उधार के स्रोतों में विविधता लाने और निवेशकों को अतिरिक्त साधन प्रदान करने में सक्षम बनाया जा सके।
  • वचन पत्र वित्तीय साधन है जिसमें पार्टी (नोट जारीकर्त्ता या निर्माता) द्वारा किसी अन्य पार्टी (नोट के प्राप्तकर्त्ता) को एक निश्चित राशि का भुगतान करने के लिये लिखित वादा होता है, या तो मांग पर या एक निर्दिष्ट भविष्य की तारीख में।

अतः विकल्प (d) सही है।

स्रोत: हिंदू


हैड्रॉन कोलाइडर रन 3

प्रिलिम्स के लिये:

हैड्रॉन कोलाइडर, पार्टिकल फिजिक्स, गॉड पार्टिकल, बिग बैंग थ्योरी, CERN

मेन्स के लिये:

पदार्थ का विकास, LHC का महत्त्व, कण भौतिकी का महत्त्व, भौतिकी के मानक मॉडल की अवधारणा

चर्चा में क्यों?

यूरोपियन ऑर्गनाइज़ेशन फॉर न्यूक्लियर रिसर्च (CERN) ने गॉड पार्टिकल कहे जाने वाले हिग्स बोसॉन की खोज के 10 साल बाद जुलाई 2022 में एक बार फिर से लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर को चालू किया हैै।

लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर               

  • परिचय:
    • लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर एक विशाल, जटिल मशीन है जिसे उन कणों का अध्ययन करने के लिये बनाया गया है जो सभी चीज़ों के सबसे छोटे ज्ञात मूलभूत अंग हैं।
    • अपनी परिचालन अवस्था में यह सुपरकंडक्टिंग इलेक्ट्रोमैग्नेट्स की एक रिंग के अंदर विपरीत दिशाओं में प्रकाश की गति से लगभग दो प्रोटॉनों को फायर करता है।
    • सुपरकंडक्टिंग इलेक्ट्रोमैग्नेट्स द्वारा बनाया गया चुंबकीय क्षेत्र प्रोटॉन को एक तंग बीम में रखता है और उन्हें रास्ते में मार्गदर्शन करता है ये बीम पाइप के माध्यम से यात्रा करते हैं और अंत में टकराते हैं।
    • चूँकि LHC के शक्तिशाली विद्युत चुंबकों में अत्याधिक मात्रा में विद्युत धारा प्रवाहित होती है, इसलिये इसे ठंडा रखा जाना आवश्यक है।
      • LHC में महत्त्वपूर्ण घटकों को 0 से 271.3 डिग्री सेल्सियस तापमान पर अल्ट्राकोल्ड रखने के लिये तरल हीलियम की वितरण प्रणाली का उपयोग होता है, जो इंटरस्टेलर स्पेस की तुलना में ठंडा है।
  • नवीनतम अपग्रेड:
    • यह LHC’s का तीसरा रन है, यह 13 टेरा इलेक्ट्रॉन वोल्ट (इलेक्ट्रॉन वोल्ट वह ऊर्जा है जो एक इलेक्ट्रॉन को विद्युत विभवांतर के 1 वोल्ट के माध्यम से त्वरित करके दी जाती है) के अभूतपूर्व ऊर्जा स्तरों पर चार साल के लिये चौबीसों घंटे काम करेगा।
    • ATLAS और CMS प्रयोगों के लिये वैज्ञानिक प्रति सेकंड 1.6 बिलियन प्रोटॉन-प्रोटॉन टकराव का लक्ष्य बना रहे हैं।
      • ATLAS: LHC पर सबसे बड़ा सामान्य प्रयोजन कण डिटेक्टर प्रयोग।
      • CMS: इतिहास में सबसे बड़े अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक सहयोगों में से एक है, जिसमें एटलस के समान लक्ष्य हैं, लेकिन जो एक अलग चुंबक-प्रणाली डिज़ाइन का उपयोग करता है।
  • महत्त्व:
    • भौतिक विज्ञानी छोटे पैमाने पर ब्रह्मांड के बारे में अधिक जानने हेतु और डार्क मैटर की प्रकृति जैसे रहस्यों को सुलझाने के लिये टकरावों का उपयोग करना चाहते हैं।
    • LHC का उद्देश्य भौतिकविदों को कण भौतिकी के विभिन्न सिद्धांतों की भविष्यवाणियों का परीक्षण करने की अनुमति देना है ,
      • कण त्वरक में पाई जाने वाली तकनीक का उपयोग पहले से ही कुछ प्रकार की कैंसर सर्जरी आदि के लिये किया जाता है।

LHC के पिछले चरणों का प्रदर्शन:

  • पहला चरण:
    • एक दशक पहले सर्न ने LHC के पहले चरण के दौरान दुनिया को हिग्स बोसॉन या 'गॉड पार्टिकल' की खोज की घोषणा की थी।
      • इस खोज ने 'बल-वाहक' उप-परमाणु कण के लिए दशकों से चली आ रही खोज के निष्कर्षों को गलत साबित कर दिया था और हिग्स तंत्र के अस्तित्व को साबित कर दिया था।
      • इसके कारण पीटर हिग्स और उनके सहयोगी फ्रांस्वा एंगलर्ट को 2013 में भौतिकी के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
      • माना जाता है कि हिग्स बोसोन और उससे संबंधित ऊर्जा क्षेत्र ने ब्रह्मांड के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • दूसरा चरण:
    • यह वर्ष 2015 में शुरू हुआ और वर्ष 2018 तक चला। डेटा प्राप्ति के दूसरे चरण ने पहले चरण की तुलना में पांँच गुना अधिक डेटा प्रदान किया।

गॉड पार्टिकल:

  • वर्ष 2012 में हिग्स बोसोन (जिसे 'गॉड पार्टिकल' के रूप में भी जाना जाता है) की नोबेल विजेता खोज ने भौतिकी के मानक मॉडल को मान्य किया, जो यह भी भविष्यवाणी करता है कि लगभग 60% हिग्स बोसोन पेयर बॉटम क्वार्क में क्षय हो जाएगा।
  • वर्ष 1960 के दशक में पीटर हिग्स यह सुझाव देने वाले पहले व्यक्ति थे कि यह कण मौजूद हो सकता है।
    • हिग्स क्षेत्र को वर्ष 1964 में नए प्रकार के क्षेत्र के रूप में प्रस्तावित किया गया था जो पूरे ब्रह्मांड को भरता है और सभी प्राथमिक कणों को द्रव्यमान प्रदान करता है। इसकी खोज हिग्स क्षेत्र के अस्तित्व की पुष्टि करती है।
  • भौतिकी का मानक मॉडल:
    • कण भौतिकी का मानक मॉडल वह सिद्धांत है जो ब्रह्मांड में चार ज्ञात मौलिक बलों (विद्युत चुंबकीय, कमज़ोर और मज़बूत अंतःक्रिया तथा गुरुत्वाकर्षण बल की अनुपस्थिति) में से तीन का वर्णन करता है, साथ ही सभी ज्ञात प्राथमिक कणों को वर्गीकृत करता है।
      • यह जानकारी देता है कि कैसे क्वार्क नामक कण (जो प्रोटॉन और न्यूट्रॉन बनाते हैं) तथा लेप्टान (जिसमें इलेक्ट्रॉन शामिल हैं) सभी ज्ञात पदार्थ का निर्माण करते हैं।
      • साथ ही यह भी जानकारी देता है कि कैसे बल कण को प्रभावित करता है, जो बोसॉन के एक व्यापक समूह से संबंधित हैं और क्वार्क तथा लेप्टॉन को प्रभावित करते हैं।
    • वैज्ञानिक अभी तक यह नहीं जानते हैं कि मानक मॉडल के साथ गुरुत्वाकर्षण को कैसे जोड़ा जाए।
  • हिग्स कण बोसॉन है।
    • बोसॉन को ऐसे कण माना जाता है जो सभी भौतिक बलों के लिये ज़िम्मेदार होते हैं।
      • अन्य ज्ञात बोसॉन फोटॉन, डब्ल्यू और जेड बोसॉन तथा ग्लूऑन हैं।

भारत और CERN

  • भारत 2016 में यूरोपियन ऑर्गनाइज़ेशन फॉर न्यूक्लियर रिसर्च (CERN) का सहयोगी सदस्य बना।
  • CERN के साथ भारत का जुड़ाव लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर (LHC) के निर्माण में सक्रिय भागीदारी के साथ दशकों पुराना है, हार्डवेयर एक्सेलेरेटर घटकों / प्रणालियों के डिज़ाइन, विकास व आपूर्ति एवं मशीन में इसकी कमीशनिंग और सॉफ्टवेयर विकास तथा तैनाती के क्षेत्रों में।
  • भारत को वर्ष 2004 में CERN में 'पर्यवेक्षक' के रूप में शामिल किया गया था। सहयोगी सदस्य के रूप में इसका उन्नयन भारतीय कंपनियों को आकर्षक इंजीनियरिंग अनुबंधों के लिये बोली लगाने की अनुमति देता है और भारतीय संगठन में स्टाफ पदों के लिये आवेदन कर सकते हैं।
  • सहयोगी सदस्यता पर भारत का सालाना लगभग 78 करोड़ रुपए का खर्च आएगा, हालांँकि अभी भी परिषद के निर्णयों पर मतदान का अधिकार नहीं होगा।
  • भारतीय वैज्ञानिकों ने ए लार्ज आयन कोलाइडर एक्सपेरिमेंट (ALICE) और कॉम्पैक्ट म्यूऑन सोलेनॉइड (CMS) प्रयोगों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिसके कारण हिग्स बोसोन की खोज हुई।

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न:

प्रश्न. निकट अतीत में हिग्स बोसॉन कण के अस्तिव के संसूचन के लिये किये गए प्रयत्न लगातार समाचारों में रहे हैं। इस कण की खोज का क्या महत्त्व है? (2013)

  • हमें यह समझने में मदद करेगा कि मूल कणों में संहति क्यों होती है।
  • यह निकट भविष्य में हमें दो बिंदुओं के बीच के भौतिक अंतराल को पार किये बिना एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक पदार्थ स्थानांतरित करने की प्रौद्योगिकी विकसित करने में मदद करेगा।
  • यह हमें नाभिकीय विखंडन के लिये बेहतर ईंधन उत्पन्न करने में मदद करेगा।

ीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: A

व्याख्या:

  • यूनिफाइड थ्योरी के बुनियादी समीकरणों ने इलेक्ट्रो-कमज़ोर बल और उससे जुड़े बल-वाहक कणों, अर्थात् फोटॉन एवं डब्ल्यू तथा ज़ेड बोसॉन का वर्णन किया। ये सभी कण बिना द्रव्यमान के निकले। प्रोटॉन का द्रव्यमान नगण्य होता है, लेकिन डब्ल्यू व ज़ेड का द्रव्यमान प्रोटॉन के द्रव्यमान का लगभग 100 गुना होता है।
  • सिद्धांतवादी रॉबर्ट ब्राउट, फ्रेंकोइस एंगलर्ट और पीटर हिग्स ने एक सिद्धांत दिया जिसे ब्राउट-एंगलर्टहिग्स तंत्र के रूप में जाना जाता है जो डब्ल्यू व ज़ेड को अदृश्य क्षेत्र के साथ अंतःक्रिया करते समय एक द्रव्यमान प्रदान करता है, जो ब्रह्मांड में व्याप्त है, जिसे "हिग्स क्षेत्र" कहा जाता है। हिग्स बोसाॅन हिग्स क्षेत्र की दृश्यमान अभिव्यक्ति है।
  • बिग बैंग के ठीक बाद हिग्स क्षेत्र शून्य था, लेकिन जैसे-जैसे ब्रह्मांड ठंडा होता गया और तापमान एक महत्त्वपूर्ण मान से नीचे गिर गया, यह क्षेत्र अनायास ही बढ़ गया ताकि इसके साथ अंतःक्रिया करने वाले किसी भी कण का द्रव्यमान प्राप्त हो जाए।
  • एक कण जितना अधिक इस क्षेत्र के साथ संपर्क करता है, वह उतना ही भारी होता है, जैसे कि फोटॉन जो इसके साथ अंतःक्रिया नहीं करता है, इसका द्रव्यमान नगण्य होता है।
  • सभी मूलभूत क्षेत्रों की तरह हिग्स क्षेत्र में एक संबद्ध कण हिग्स बोसॉन होता है। अतः कथन 1 सही है और हिग्स बोसाॅन कण का कथन 2 और 3 से कोई संबंध नहीं है।

अतः विकल्प (A) सही उत्तर है।

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस


ओबीसी उप-वर्गीकरण आयोग का विस्तार

प्रिलिम्स के लिये:

अन्य पिछड़ा वर्ग का आरक्षण, राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग।

मेन्स के लिये:

उप-वर्गीकरण आयोग और उसके उद्देश्य।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने न्यायमूर्ति रोहिणी आयोग को अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के उप-वर्गीकरण की जांँच करने और 31 जनवरी, 2023 तक अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिये 13वांँ विस्तार दिया है।

  • आयोग की रिपोर्ट प्रस्तुत करने की प्रारंभिक समय-सीमा 12 सप्ताह थी (2 जनवरी, 2018 तक)।

प्रमुख बिंदु

  • आयोग:
    • 2 अक्तूबर, 2017 को राष्ट्रपति के अनुमोदन के उपरांत संविधान के अनुच्छेद 340 के तहत गठित इस आयोग को रोहिणी आयोग (Rohini Commission) भी कहा जाता है।
    • इसे अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के उप-वर्गीकरण और उनके लिये आरक्षित लाभों के समान वितरण का काम सौंपा गया था।
      • वर्ष 2015 में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (National Commission for Backward Classes- NCBC) ने सिफारिश की थी कि OBC को अत्यंत पिछड़े वर्गों, अधिक पिछड़े वर्गों और पिछड़े वर्गों के रूप में वर्गीकृत किया जाना चाहिये।
        • NCBC के पास सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के संबंध में शिकायतों व कल्याणकारी उपायों की जाँच करने का अधिकार है।
  • आयोग के विचारार्थ विषय:
    • केंद्रीय OBC सूची में विभिन्न जातियों के बीच आरक्षण लाभों के असमान वितरण की जाँच करना।
    • अन्य पिछड़ा वर्गों के मध्य उप-वर्गीकरण के लिये वैज्ञानिक दृष्टिकोण में तंत्र, मानदंड  तैयार करना।
    • व्यापक डेटा कवरेज हेतु संबंधित जातियों/समुदायों/उप-जातियों/समानार्थक की पहचान करने का प्रयास करना।
    • किसी भी प्रकार के दोहराव, अस्पष्टता, विसंगतियों और वर्तनी या प्रतिलेखन की त्रुटियों का अध्ययन एवं सुधार की सिफारिश करना।
  • वर्तमान प्रगति:
    • आयोग राज्य सरकारों, राज्य पिछड़ा वर्ग आयोगों, सामुदायिक संघों आदि के प्रतिनिधियों के मध्य परस्पर समन्वय करता है। इसके अलावा उच्च शिक्षण संस्थानों और केंद्रीय विभागों, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों तथा वित्तीय संस्थानों में भर्ती होने वाले OBC के जाति-आधारित आँकड़ों का संकलन करता है।
    • वर्ष 2021 में आयोग ने ओबीसी को चार उपश्रेणियों संख्या 1, 2, 3 और 4 में विभाजित करने तथा 27% आरक्षण को क्रमशः 2, 6, 9 और 10% में विभाजित करने का प्रस्ताव दिया।
    • इसने सभी ओबीसी रिकॉर्ड के पूर्ण डिजिटलीकरण और ओबीसी प्रमाण पत्र जारी करने की एक मानकीकृत प्रणाली की भी सिफारिश की।

ओबीसी आरक्षण की स्थिति:

  • वर्ष 1953 में स्थापित कालेलकर आयोग, राष्ट्रीय स्तर पर अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के अलावा अन्य पिछड़े वर्गों की पहचान करने वाला पहला आयोग था।
  • मंडल आयोग की रिपोर्ट, 1980 में ओबीसी जनसंख्या 52% होने का अनुमान लगाया गया था और 1,257 समुदायों को पिछड़े के रूप में वर्गीकृत किया गया था।
    • इसने ओबीसी को शामिल करने के लिये मौज़ूदा कोटा, जो केवल एससी/एसटी के लिये था, को 22.5% से बढ़ाकर 49.5% करने की सिफारिश की।
  • केंद्र सरकार ने OBC [अनुच्छेद 16 (4)] के लिये यूनियन सिविल पदों और सेवाओं में 27% सीटें आरक्षित की हैं। कोटा बाद में केंद्र सरकार के शैक्षणिक संस्थानों [अनुच्छेद 15 (4)] में लागू किया गया।
    • वर्ष 2008 में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को OBC के बीच क्रीमी लेयर (उन्नत वर्ग) को बाहर करने का निर्देश दिया।
  • 102वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2018 ने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया, जो पहले सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के तहत एक वैधानिक निकाय था।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस