फिर से शुरू हुआ ‘लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर’
संदर्भ
विदित हो कि विश्व के सबसे बड़े और सर्वाधिक शक्तिशाली कण-त्वरक ‘लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर’ (LHC) ने 17 सप्ताह तक तकनीकी खामियों के चलते बंद पड़े रहने के पश्चात इस वर्ष प्रथम बार प्रोटोन पुंज (beams of protons) का पुनः चक्रण करना प्रारंभ कर दिया है।
प्रमुख बिंदु
- विगत वर्ष दिसम्बर में प्रारंभ हुए मरम्मत के कार्य के पिछले माह पूर्ण होने पर एक्सेलरेटर चैन(accelerator chain )में लगी सभी मशीनों को खोल दिया गया है तथा पिछले सप्ताह अंतिम मशीन ‘लार्ज हैड्रॉनकोलाइडर’ के शुरू होने तक इनकी जाँच भी की गई थी।
- प्रति वर्ष इन मशीनों को शीतकाल में बंद कर दिया जाता है ताकि तकनीशियन और इंजीनीयर उनमें आवश्यक सुधार कर सकें परन्तु इस वर्ष इसे अधिक समय के लिये बंद रखा जाएगा क्योंकि अभी भी इसमें कई जटिल कार्य शेष बचे हैं।
- इस वर्ष लार्ज हैड्रॉनकोलाइडर में अतिचालक चुम्बक का प्रतिस्थापन, सुपर प्रोटॉन सिंक्रोट्रॉन(Super Proton Synchrotron -SPS) में नए पुंज को स्थापित करना और एक भारी केबल(cable) को हटाने का कार्य किया जाएगा।
- अन्य चीजों के साथ ही इन नई चीजों को लगाने से कोलाइडर की चमक में वृद्धि होगी।
- विदित हो कि जितनी अधिक कोलाइडर की चमक होगी उतने ही अधिक इसके साथ प्रयोग तथा दुर्लभ प्रक्रियाओं का अवलोकन भी किया जा सकेगा।
क्या है लार्ज हैड्रॉनकोलाइडर?
- लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर अथवा वृहद हैड्रॉन संघट्टक विश्व का सबसे विशाल और शक्तिशाली कण त्वरक है।
- सर्वप्रथम इसकी शुरुआत 10 सितम्बर 2008 को की गई थी तथा यह सर्न के त्वरक कॉम्पलेक्स का अद्यतन रूप है।
- लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर में अतिचालक चुम्बकों की 27 किलोमीटर की रिंग होती है जिसमें कई त्वरक संरचनाएँ भी होती हैं जिनके कारण इसके मार्ग में आने वाले कणों की ऊर्जा में वृद्धि की जा सकती है।
क्या है सर्न (CERN)
- वस्तुतः ‘सर्न’ एक फ्रेंच शब्द ‘कौंसिइल इरोपिन पाउर ला रिचरचे न्यूक्लियर’ का संक्षेपण है, जिसका अंग्रेज़ी अर्थ होता है- यूरोपियन काउंसिल फॉर न्यूक्लियर रिसर्च और इसे हिंदी में यूरोपीय नाभिकीय अनुसंधान संगठन के नाम से जाना जाता है, लेकिन सर्वाधिक प्रचलित नाम ‘सर्न’ ही है।
- गौरतलब है कि ‘सर्न’ कण भौतिकी (Particle physics) की सबसे बड़ी प्रयोगशाला है जो फ्राँस एवं स्विट्ज़रलैंड की सीमा पर जेनेवा के उत्तरी-पश्चिमी नगरीय क्षेत्र में अवस्थित है।
- सर्न में 22 सदस्य देश शामिल हैं और वर्तमान में विश्व के 70 देशों के सैकड़ों विश्वविद्यालयों से लगभग 8 हज़ार वैज्ञानिक और अभियंता इसमें कार्यरत हैं। यह जानना दिलचस्प होगा कि वर्ष 2002 में भारत को ‘सर्न’ के पर्यवेक्षक सदस्य का दर्ज़ा दिया गया था।
- हालाँकि, भारत 1960 से ही सर्न में अपना योगदान देता आ रहा है। विदित हो कि सर्न के वैज्ञानिकों के नेतृत्व में ही हिग्स बोसॉन कण (जिन्हें आमतौर पर गॉड पार्टिकल्स भी कहा जाता है) की मौजूदगी के बेहद ठोस संकेत एक महाप्रयोग द्वारा हासिल किये गए थे।
- इस महाप्रयोग में भारत की भागीदारी को बहुत ही सम्मान के साथ देखा जाता रहा है। ध्यातव्य है कि भारत ने इस महाप्रयोग में 3 करोड़ डॉलर का उच्च स्तरीय साज़ो-सामान उपलब्ध कराया था, और साथ ही इसमें विशेषज्ञों की सेवाएँ भी प्रदान की थी।