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पैनल ने ओबीसी उप-वर्गीकरण की जाँच के लिये तीसरे विस्तार की मांग की

  • 01 Aug 2018
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जी रोहिणी की अध्यक्षता में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के उप-वर्गीकरण की जाँच करने के लिये गठित आयोग ने कोटे के भीतर कोटा निर्धारण हेतु राजनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिये तीसरे विस्तार हेतु नवंबर 2018 तक का समय मांगा है।

प्रमुख बिंदु 

  • सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के मुताबिक, आयोग ने चार महीने का समय मांगा है और कहा है कि इससे अधिक डेटा संकलित करने में मदद मिलेगी। इस विस्तार को मंत्रिमंडल द्वारा अनुमोदित किया जाना आवश्यक होगा|
  • अक्टूबर 2017 में गठित पाँच सदस्यीय इस पैनल को केंद्रीय ओबीसी सूची में शामिल 5000-विषम जातियों के उप-वर्गीकरण के कार्य को पूरा करना है ताकि केंद्र सरकार की नौकरियों तथा शैक्षिक संस्थानों में अवसरों के "अधिक न्यायसंगत वितरण" को सुनिश्चित किया जा सके।
  • इस पैनल की रिपोर्ट को तीन महीने के भीतर प्रस्तुत किया जाना था। पैनल के गठन के बाद इसने कार्य की 'विशाल' प्रकृति का हवाला देते हुए दो बार विस्तार की मांग की और इसे स्वीकृत किया गया है। मंत्रिमंडल द्वारा दिये गए 'अंतिम विस्तार' के अनुसार, इसकी रिपोर्ट 31 जुलाई, 2018 को प्रस्तुत की जानी थी।
  • पिछले कुछ वर्षों से आरक्षण के इन लाभों को ज़्यादातर प्रभावशाली ओबीसी समूहों द्वारा लिया जा रहा है, उप-वर्गीकरण पैनल रिपोर्ट से ओबीसी के भीतर अत्यंत पिछड़े वर्गों के लिये निर्धारित उप-कोटा की सिफारिश किये जाने की उम्मीद है।
  • पिछड़े वर्गों के संदर्भ में  राष्ट्रीय आयोग ने 2015 में कहा था कि "असमानता के साथ समान व्यवहार” नहीं किया जा सकता और अनुशंसा की जाती है कि ओबीसी को अत्यंत पिछड़े वर्गों, अधिक पिछड़े वर्गों और पिछड़े वर्गों में वर्गीकृत किया जाए”।

पृष्ठभूमि 

  • वर्तमान में 11 राज्य पहले ही अपनी ओबीसी सूची में उप-वर्ग बना चुके हैं| इनमें आंध्र प्रदेश, तेलगांना, पुद्दुचेरी, कर्नाटक, हरियाणा, झारखंड, पश्चिम बंगाल, बिहार, महाराष्ट्र , तमिलनाडु और जम्मू-कश्मीर शामिल  हैं।
  • नज़ीर बन चुके 1992 में दिये गए इंद्रा साहनी मामले में सर्वोच्च न्यायालय यह व्यवस्था दे चुका है कि ओबीसी को पिछड़ों एवं अति पिछड़ों में विभाजित करने पर कोई संवैधानिक रोक नहीं है और यदि सरकार चाहे तो ऐसा कर सकती है।
  • ओबीसी जातियों को तीन उप-वर्गों में विभाजित करने की सिफारिश राष्ट्रीय  पिछड़ा आयोग ने पहली बार 2011 में की थी। 2012, 2013 व 2014 में विभिन्न संसदीय समितियों ने भी इसकी सिफारिश  की थी।
  • आयोग के मुताबिक केंद्रीय ओबीसी सूची के लिये एक समान पद्धति तैयार की जानी चाहिये। आयोग ने इस प्रक्रिया के हिस्से के रूप में केंद्र सरकार की नौकरियों में पाँच लाख विषम ओबीसी से संबंधित डेटा की मांग की है|

पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन 

  • संविधान के अनुच्छेद 340 के तहत केंद्र सरकार ने एक पिछड़ा वर्ग आयोग गठित करने का फैसला किया था| इसके लिये राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के गठन और उसे संवैधानिक दर्जा दिये जाने के प्रावधान वाला एक विधेयक लोकसभा ने पारित कर दिया, लेकिन राज्यसभा ने इस 123वें संविधान संशोधन विधेयक, 2017 और राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग निरसन विधेयक, 2017 को कुछ संशोधनों के साथ पारित किया।
  • 123वें संविधान संशोधन विधेयक 2017 के उद्देश्यों और कारणों में कहा गया है कि पिछड़े वर्गों के हितों को और प्रभावी रूप में सुरक्षा प्रदान करने के लिये राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के समान संवैधानिक परिस्थिति के साथ राष्ट्रीय सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़ा वर्ग आयोग बनाने का प्रस्ताव है।
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