रबर उद्योग
प्रिलिम्स के लिये:रबर के विकास के लिये आवश्यक शर्तें, रबर, एफटीए, एमएसएमई के उत्पादन और वितरण। मेन्स के लिये:भारत में रबर उद्योग, उत्पादन और वितरण एवं संबंधित मुद्दे। |
चर्चा में क्यों?
ऑल इंडिया रबर इंडस्ट्रीज़ एसोसिएशन (AIRIA) के अनुसार, 2 अरब डॉलर के गैर-टायर रबर क्षेत्र ने वर्ष 2025 तक अपने निर्यात को दोगुना करने का लक्ष्य रखा है।
- वैश्विक बाज़ार में रबर उत्पादों की हिस्सेदारी वर्तमान में लगभग 212 बिलियन डॉलर की है, जिसके वर्ष 2025 तक बढ़ने की उम्मीद है।
- सरकार को यह सुनिश्चित काना चाहिये कि मुक्त व्यापार समझौता (FTA) की शर्तों के तहत सूक्ष्म, लघु और मध्यम आकार के उद्यम (MSME) को अंतर्राष्ट्रीयकरण का लाभ ंप्राप्त हो।
- चूंँकि MSME भारत की अर्थव्यवस्था और वाणिज्य के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण है, इसलिये विदेशी बाज़ारों में व्यापार करते समय MSME को जिन विशेष चिंताओं, मांगों और बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है, उन्हें दूर करने के लिये भारत को FTA प्रावधानों को शामिल करना चाहिये।
ऑल इंडिया रबर इंडस्ट्रीज़ एसोसिएशन (AIRIA):
- अखिल भारतीय रबर उद्योग संघ (AIRIA) उद्योग के हितों की रक्षा और उसे बढ़ावा देने के उद्देश्यों के साथ रबर उद्योग एवं व्यापार संबंधी सुविधा प्रदान करने वाला एक गैर-लाभकारी निकाय है।
रबर की प्रमुख विशेषताएंँ:
- परिचय:
- प्राकृतिक रबर आइसोप्रीन का बहुलक है, जो एक कार्बनिक यौगिक है।
- रबर एक सुसंगत लोचदार ठोस पदार्थ है जो उष्णकटिबंधीय क्षेत्रो में पाए जाने वाले पेड़ों के लेटेक्स से प्राप्त होता है, जिसमें हेवेया ब्रासीलिएन्सिस सबसे महत्त्वपूर्ण है।
- रबर के पेड़ों के रोपण के बाद लगभग 32 वर्षों तक ये आर्थिक लाभ प्रदान करते हैं।
- स्रोत:
- प्राकृतिक रबर विभिन्न स्रोतों से प्राप्त होता है, सबसे आम पारा रबर का पेड़ (हेवेया ब्रासीलिएन्सिस) है। यह अपने पूर्ण विकास के साथ कई वर्षों तक लेटेक्स उत्पन्न करता है।
- लैंडोल्फिया (Landolphia) वर्ग की लताओं से कांगो रबर का उत्पादन होता है। इन लताओं को खेतों में नहीं उगाया जा सकता जिसके परिणामस्वरूप कांगो में जंगली पौधों का बड़े पैमाने पर दोहन हुआ।
- सिंहपर्णी दूध में भी लेटेक्स मौजूद होता है जिसका उपयोग रबर के उत्पादन के लिये किया जा सकता है।
- रबर के पेड़ के लिये अनुकूल वातावरण:
- मृदा:
- ये पेड़ अच्छी जल-निकास प्रणाली वाले और मौसम के अनुकूल मृदा में विकास करते हैं।
- इन पेड़ों की वृद्धि के लिये लैटेराइट, जलोढ़, तलछटी और गैर-लैटेराइट लाल मिट्टी सबसे अच्छी होती है।
- वर्षा और तापमान:
- वर्ष में कम-से-कम 100 वर्षा वाले दिनों के साथ समान रूप से वितरित वर्षा और लगभग 20 से 34°C की तापमान सीमा हेविया रबर के पेड़ के विकास के लिये अनुकूल स्थितियाँ प्रदान करते हैं।
- सर्वोत्तम परिणामों के लिये लगभग 80% आर्द्रता, 2000 घंटे की धूप और तेज़ हवाओं की अनुपस्थिति भी आवश्यक है।
- मृदा:
- उपयोग:
- रबर का उपयोग पेंसिल के निशान मिटाने से लेकर टायर, ट्यूब और बड़ी संख्या में औद्योगिक उत्पादों के निर्माण तक विभिन्न उद्देश्यों के लिये किया जाता है।
- विदार प्रतिरोधी (Tear Resistance) होने के साथ-साथ इसकी उच्च तन्यता क्षमता व कंपन प्रतिरोधी गुणों के कारण सिंथेटिक रबर के स्थान पर प्राकृतिक रबर को प्राथमिकता दी जाती है।
- यह गुण निर्माण और ऑटोमोबाइल उद्योगों के लिये इसे और महत्त्वपूर्ण बनाता है।
- देशों में ऑटोमोबाइल बाज़ार की वृद्धि से प्राकृतिक रबर उत्पादन की मांग बढ़ने का अनुमन लगाया जा रहा है।
- लेटेक्स उत्पादों, जैसे- कैथेटर, दस्ताने और बेल्ट की मांग में वृद्धि भी एक ऐसा कारक है जो रबर बाज़ार के विकास को बढ़ावा दे सकता है।
- उत्पादन और वितरण:
- वर्ष 2019 के खाद्य और कृषि संगठन कॉर्पोरेट सांख्यिकीय डेटाबेस (FAOStat) के अनुसार, थाईलैंड दुनिया में रबर का सबसे बड़ा उत्पादक है, इसके बाद इंडोनेशिया, मलेशिया, भारत और चीन का स्थान है।
भारत में रबर उत्पादन की वर्तमान स्थिति:
- FAOStat 2019 के अनुसार, भारत दुनिया में रबर का चौथा सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता है
- खपत:
- रबर की अधिकांश खपत परिवहन क्षेत्र में होती है, इसके बाद फुटवियर उद्योग का स्थान आता है।
- निर्यात:
- वित्तीय वर्ष 2020 के दौरान भारत से निर्यात किये जाने वाले प्राकृतिक रबर की मात्रा 12 हज़ार मीट्रिक टन से अधिक थी।
- भारत से प्राकृतिक रबर का आयात करने वाले प्रमुख देशों में जर्मनी, ब्राज़ील, संयुक्त राज्य अमेरिका और इटली शामिल हैं।
- निर्यात उत्पादों में ऑटोमोटिव टायर और ट्यूब, जूते, चिकित्सा सामान, कोट और एप्रन शामिल हैं।
- वितरण:
- भारत में पहला रबर बागान वर्ष 1895 में केरल की पहाड़ी ढलानों पर स्थापित किया गया था।
- हालांँकि वाणिज्यिक पैमाने पर रबर की खेती वर्ष 1902 में शुरू की गई थी।
- केरल भारत में प्राकृतिक रबर का सबसे बड़ा उत्पादक है।
- प्रमुख क्षेत्र: इस राज्य के कोट्टायम, कोल्लम, एर्नाकुलम, कोझीकोड सभी ज़िले रबर का उत्पादन करते हैं।
- तमिलनाडु:
- नीलगिरि, मदुरै, कन्याकुमारी, कोयंबटूर और सलेम तमिलनाडु के मुख्य रबर उत्पादक ज़िले हैं।
- कर्नाटक:
- चिकमंगलूर और कोडागु मुख्य उत्पादक ज़िले हैं।
- त्रिपुरा, असम, अंडमान और निकोबार, गोवा आदि कुछ अन्य रबर उत्पादक राज्य हैं।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्नप्रश्न. सूची-I को सूची-II से सुमेलित कीजिये और सूचियों के नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (2008) सूची-I सूची-II (बोर्ड) (मुख्यालय) कूट: A B C D उत्तर: (B) व्याख्या:
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स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारी धातु प्रदूषण
प्रिलिम्स के लिये:भारी धातु, भारी धातु प्रदूषण, नमामि गंगे मिशन, केंद्रीय जल आयोग। मेन्स के लिये:नदी प्रदूषण में भारी धातुओं का योगदान, अपशिष्ट जल उपचार संयंत्र। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विज्ञान और पर्यावरण केंद्र (CSE) ने जानकारी दी है कि भारत की नदियाँ गंभीर धातु प्रदूषण का सामना कर रही हैं।
- भारत में प्रत्येक चार नदी निगरानी स्टेशनों में से तीन में सीसा, लोहा, निकल, कैडमियम, आर्सेनिक, क्रोमियम और तांबे जैसी भारी ज़हरीली धातुओं का खतरनाक स्तर पाया गया है।
भारी धातु प्रदूषण:
- भारी धातु:
- भारी धातुओं को उन तत्त्वों के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिनकी परमाणु संख्या 20 से अधिक और परमाणु घनत्व 5 ग्राम सेमी 3 से अधिक होता है तथा जिसमें धातु जैसी विशेषताएँ पाई जाती हैं। उदाहरण के लिये आर्सेनिक, कैडमियम, क्रोमियम, तांबा, सीसा, मैंगनीज़, पारा, निकल, यूरेनियम आदि।
- भारी धातु प्रदूषण का कारण:
- तेज़ी से बढ़ते कृषि और धातु उद्योगों, अनुचित अपशिष्ट प्रबंधन, उर्वरकों एवं कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग के परिणामस्वरूप हमारी नदियों, मिट्टी और पर्यावरण पर भारी धातु प्रदूषण का प्रभाव पड़ा है।
- भूजल में भारी धातुओं के प्राथमिक स्रोत कृषि और औद्योगिक संचालन, लैंडफिलिंग, खनन एवं परिवहन हैं।
- कृषि जल अपवाह के माध्यम से भारी धातुएँ नदी में पहुँच जाती हैं।
- उद्योगों से अपशिष्ट जल का निर्वहन (जैसे चर्मशोधन उद्योग जो क्रोमियम जैसे भारी धातुओं का एक बड़ा स्रोत है) नदी निकायों में भारी धातु प्रदूषण की गंभीरता को और बढ़ा देता है।
- भारी धातु पौधों, जानवरों और पर्यावरण में लंबे समय तक बने रहते हैं।
भारी धातुओं के स्रोत:
- मुख्यतः दो प्रकार के स्रोतों के माध्यम से भारी धातुएँ पर्यावरण में प्रवेश करती हैं।
- प्राकृतिक स्रोत:
- भारी धातुएँ पृथ्वी की क्रस्ट में प्राकृतिक रूप से मौजूद होती हैं। चट्टानें भारी धातुओं के प्राकृतिक स्रोत हैं। भारी धातुएँ चट्टानों में खनिजों के रूप में उपस्थित होती हैं। उदाहरण आर्सेनिक, तांबा, सीसा आदि।
- मानवजनित स्रोत:
- खनन, औद्योगिक और कृषि कार्य पर्यावरण में भारी धातुओं के सभी मानवजनित स्रोत हैं।
- इन भारी धातुओं का उत्पादन उनके संबंधित अयस्कों से विभिन्न तत्त्वों के खनन एवं निष्कर्षण के दौरान किया जाता है।
- खनन, गलाने और अन्य औद्योगिक गतिविधियों के दौरान वातावरण में उत्सर्जित भारी धातुएँ शुष्क एवं गीले निक्षेपण द्वारा भूमि पर जमा हो जाती हैं।
- औद्योगिक अपशिष्ट और घरेलू सीवेज जैसे अपशिष्ट जल का निष्कासन पर्यावरण में भारी धातुओं को बढ़ाता है।
- रासायनिक उर्वरकों के उपयोग और जीवाश्म ईंधन के दहन से पर्यावरण में भारी धातुओं का उत्सर्जन भी मानवजनित स्रोत है।
- प्राकृतिक स्रोत:
भारी धातु प्रदूषण निगरानी के निहितार्थ:
- भारत में 764 नदी गुणवत्ता निगरानी स्टेशन हैं, जो 28 राज्यों में फैले हुए हैं।
- केंद्रीय जल आयोग ने अगस्त 2018 और दिसंबर 2020 के बीच भारी धातुओं के लिये 688 साइटों से पानी के नमूनों की जांँच की।
- गंगा नदी के 33 निगरानी स्टेशनों में से 10 में भारी धातुओं के संदूषकों का उच्च स्तर था।
- 21 राज्यों में प्रदूषण की जांँच करने के बाद पाया गया कि 588 जल गुणवत्ता स्टेशनों में से कुल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया और जैव रासायनिक ऑक्सीजन मांग (BOD) क्रमशः 239 और 88 में अधिक थी।
- यह इंगित करता है कि उद्योग, कृषि और घरेलू अपशिष्ट जल उपचार की स्थिति अपर्याप्त है।
- सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरनमेंट की स्टेट ऑफ द एन्वायरनमेंट रिपोर्ट 2022 के अनुसार, नदी, जो कि नमामि गंगे मिशन का केंद्र बिंदु है, में सीसा, लोहा, निकल, कैडमियम और आर्सेनिक (सीएसई) उच्च स्तर है।
- यह रिपोर्ट सार्वजनिक स्रोतों से प्राप्त पर्यावरण विकास पर आंँकड़ों का वार्षिक संकलन है।
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, दस राज्य अपने सीवेज का उपचार नहीं करते हैं।
- भारत में 72% सीवेज अपशिष्ट अनुपचारित छोड़ दिया जाता है।
भारी धातु प्रदूषण के प्रभाव:
- पर्यावरण में प्रवेश करने वाली ये ज़हरीली भारी धातुएंँ जैव संचय और जैव आवर्द्धन का कारण बन सकती हैं।
- जैव संचय:
- जल, वायु और भोजन सहित सभी स्रोतों से किसी जीव में प्रदूषक का शुद्ध संचय जैव संचय कहलाता है।'
- जैव आवर्द्धन:
- जैव आवर्द्धन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा शिकारियों के भीतर ज़हरीले रसायन संचित होते हैं। यह प्रायः संपूर्ण खाद्य शृंखला में होता है और सभी जीवों को प्रभावित करता है परंतु शृंखला में शीर्ष पर रहने वाले जानवर अधिक प्रभावित होते हैं।
- जैव संचय:
- कुछ भारी धातुएंँ जैविक गतिविधियों और वृद्धि पर प्रभाव डालती हैं, जबकि अन्य एक या एक से अधिक अंगों में जमा हो जाती हैं, जिसके परिणामस्वरूप कई तरह के गंभीर रोग जैसे- कैंसर, त्वचा रोग, तंत्रिका तंत्र विकार आदि उत्पन्न होते हैं।
- धातु विषाक्तता के परिणामस्वरूप मुक्त कणों का उत्पादन होता है, जो DNA को नुकसान पहुंँचाते हैं।
- ये भारी धातुएंँ प्रकृति में आसानी से नष्ट नहीं होती हैं और जहर के रूप में जानवरों के साथ-साथ मानव शरीर में बहुत अधिक मात्रा में जमा हो जाती हैं।
- भारी धातु का सेवन विकासात्मक मंदता, गुर्दे की क्षति, विभिन्न प्रकार के कैंसर और यहांँ तक कि चरम मामलों में मृत्यु से संबंधित है।
नमामि गंगे मिशन :
- नमामि गंगे कार्यक्रम एक एकीकृत संरक्षण मिशन है, जिसे जून 2014 में केंद्र सरकार द्वारा ‘फ्लैगशिप कार्यक्रम' के रूप में अनुमोदित किया गया था, ताकि प्रदूषण के प्रभावी उन्मूलन और राष्ट्रीय नदी गंगा के संरक्षण एवं कायाकल्प के दोहरे उद्देश्यों को पूरा किया जा सके।
- यह जल संसाधन मंत्रालय, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग तथा जल शक्ति मंत्रालय के तहत संचालित किया जा रहा है।
- यह कार्यक्रम राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) और इसके राज्य समकक्ष संगठनों यानी राज्य कार्यक्रम प्रबंधन समूहों (SPMGs) द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
- NMCG राष्ट्रीय गंगा परिषद का कार्यान्वयन विंग है, यह वर्ष 2016 में स्थापित किया गया था जिसने राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण (NGRBA) को प्रस्थापित किया।
- कार्यक्रम के मुख्य स्तंभ हैं:
- सीवेज ट्रीटमेंट इंफ्रास्ट्रक्चर
- रिवर फ्रंट डेवलपमेंट
- नदी-सतह की सफाई
- जैव विविधता
- वनीकरण
- जन जागरण
- औद्योगिक प्रवाह निगरानी
- गंगा ग्राम
केंद्रीय जल आयोग :
- केंद्रीय जल आयोग जल संसाधन के क्षेत्र में भारत का एक प्रमुख तकनीकी संगठन है और वर्तमान में यह जल शक्ति मंत्रालय के अधीन कार्य कर रहा है।
- आयोग राज्य सरकारों के परामर्श से सिंचाई, बाढ़ प्रबंधन, बिजली उत्पादन, नौवहन आदि के उद्देश्य के लिए पूरे देश में जल संसाधनों के नियंत्रण, संरक्षण, विकास और उपयोग की योजनाओं को शुरू करने, समन्वय करने और आगे बढ़ाने के लिये ज़िम्मेदार है।
स्रोत : द हिंदू
सहकारी समितियों हेतु GeM पोर्टल
प्रिलिम्स के लिये:GeM पोर्टल, सहकारी समितियाँ मेन्स के लिये:GeM पोर्टल का महत्त्व और GeM प्लेटफॉर्म द्वारा प्रस्तुत चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सहकारी समितियों को गवर्नमेंट-ई-मार्केटप्लेस (GeM) प्लेटफॉर्म पर उत्पाद बेचने की अनुमति देने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी है।
- हालाँकि सहकारी समितियों से वृद्धिशील लागतों को कवर करने के लिये लेन-देन शुल्क लिया जा सकता है।
- सहकारिता मंत्रालय द्वारा GeM एसपीवी (स्पेशल पर्पज़ व्हीकल) के परामर्श से बाद स्केल अप के लिये GeM पर शामिल होने वाली सहकारी समितियों की मान्य सूची से संबंधित निर्णय लिया जाएगा।
गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस:
परिचय:
- GeM विभिन्न केंद्रीय और राज्य सरकारों के विभागों/संगठनों/सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSU) द्वारा आवश्यक सामान्य उपयोग की वस्तुओं एवं सेवाओं की ऑनलाइन खरीद की सुविधा के लिये वन-स्टॉप राष्ट्रीय सार्वजनिक खरीद पोर्टल है।
- GeM पर उपलब्ध वस्तुओं और सेवाओं के लिये मंत्रालयों व केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों (CPSEs) द्वारा वस्तुओं एवं सेवाओं की खरीद करना अनिवार्य है।
- यह सरकारी उपयोगकर्त्ताओं को उनके पैसे का सर्वोत्तम मूल्य प्राप्त करने की सुविधा के लिये ई-बोली और रिवर्स ई-नीलामी जैसे उपकरण भी प्रदान करता है।
- वर्तमान में GeM के पास 30 लाख से अधिक उत्पाद हैं, इसके पोर्टल पर अब तक 10 लाख करोड़ रुपए का लेन-देन हो चुका है।
लॉन्च:
- इसे वर्ष 2016 में सरकारी खरीद प्रक्रिया में पारदर्शिता और दक्षता लाने के लिये लॉन्च किया गया था।
नोडल मंत्रालय:
- वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय।
हालिया अद्यतन:
- उत्पादों का मूल देश का होना अनिवार्य: GeM ने सभी विक्रेताओं को ई-मार्केटप्लेस (Government e-Marketplace- GeM) पर नए उत्पादों को पंजीकृत करते समय ‘मूल देश’ को सूचीबद्ध करना अनिवार्य किया है।
- इसे पोर्टल पर सक्षम किया गया है ताकि खरीदार केवल उन्हीं उत्पादों को खरीदने के लिये चुन सकें जो न्यूनतम 50% स्थानीय सामग्री मानदंडों को पूरा करते हों।
महत्त्व:
- पारदर्शी और लागत प्रभावी खरीद: GeM त्वरित, कुशल, पारदर्शी और लागत प्रभावी खरीद को सक्षम बना रहा है, खासकर जब सरकारी संगठनों को कोविड-19 महामारी से लड़ने के लिये उत्पादों एव्बम सेवाओं की तत्काल आवश्यकता होती है।
- आत्मनिर्भर भारत का प्रचार: GeM आत्मनिर्भर भारत नीति को बढ़ावा दे रहा है, जिसे कोविड-19 महामारी के मद्देनज़र पेश किया गया है, जिसका उद्देश्य आत्मनिर्भरता को प्रोत्साहित करना और छोटे भारतीय विनिर्माताओं को बढ़ावा देना है।
- छोटे स्थानीय विक्रेताओं का प्रवेश: बाज़ार ने सरकार की 'मेक इन इंडिया' और एमएसएमई खरीद वरीयता नीतियों को सही मायने में लागू करते हुए सार्वजनिक खरीद में छोटे स्थानीय विक्रेताओं के प्रवेश की सुविधा प्रदान की है।
- एक ही स्थान पर कई संस्थाएँ: ऑनलाइन मार्केटप्लेस समान उत्पादों के लिये कई संस्थाओं से मांग कर सकता है और राज्य सरकारों द्वारा छोटे उद्यमों को प्रदान की गई प्राथमिकताओं के आधार पर निर्माण कर सकता है।
GeM से संबद्ध चुनौतियाँ:
- एकाधिक पोर्टल:
- केंद्र सरकार के विभागों में कई पोर्टल हैं, जैसे- रक्षा खरीद पोर्टल और भारतीय रेलवे ई-प्रोक्योरमेंट सिस्टम जो राष्ट्रीय सार्वजनिक खरीद पोर्टल के रूप में अपने अधिदेश को प्राप्त करने के लिये GeM के प्रयास को सीमित कर सकते हैं।
- अनुपालन की कमी:
- यह सभी केंद्रीय संगठनों हेतु सामान्य वित्तीय नियम (GFR) 2017 के नियम 149 का अनुपालन करने की एक चुनौती का भी सामना करता है, जिसमें यह अनिवार्य है कि सभी सामान्य उपयोग की वस्तुएँ और सेवाएँ जो कि GEM पोर्टल पर उपलब्ध हैं, मंच पर आवश्यक रूप से खरीदी जानी चाहिये।
आगे की राह
- एकल पोर्टल: कई पोर्टल किसानों के बीच भ्रम की स्थिति पैदा कर रहे हैं और सिंक्रनाइज़ेशन चुनौतियों का भी कारण बन रहे हैं। सभी सार्वजनिक खरीद के लिये एकल पोर्टल इस समस्या को हल करने में मदद कर सकता है तथा संबंधित समस्यायों से निपटने में सहायता करेगा।
- दंड का अधिरोपण: कृषि विपणन से संबंधित मामलों में कुशासन के लिये दंड का प्रावधान होना चाहिये और पहले से मौजूद दंड की प्रकृति में और कठोरता लाने की आवश्यकता है। ये प्रावधान इसके अनुपालन की कमी की समस्या से निपटने में मदद करेंगे।
- स्थानीय भाषा का प्रयोग: सार्वजनिक खरीद पोर्टलों के लिये यूज़र इंटरफेस स्थानीय भाषा में होना चाहिये ताकि भाषा विशेष के प्रभुत्त्व के मुद्दे से निपटा जा सके।
- अंतर-संचालनीयता: सार्वजनिक पोर्टलों को अपने सुचारु कामकाज़ के लिये एक मंच से दूसरे मंच पर सुगमता के साथ संचालन (smooth functioning) सुनिश्चित करना चाहिये।
- लागत प्रतिस्पर्द्धात्मकता: GeM पोर्टल किसानों और सहकारी समितियों को अपने उत्पादों के लिये आसानी से खरीदार खोजने में मदद करेगा और उन्हें बिक्री में कमी के कारण खराब होने वाले उत्पादों की वजह से होने वाले नुकसान से बचाएगा तथा उनके उत्पादों की लागत प्रतिस्पर्द्धात्मकता में भी वृद्धि करेगा क्योंकि राज्यों की कृषि उपज बाज़ार समितियों (APMC) द्वारा पूर्व में शुल्क में प्रशासनिक अक्षमता के कारण लागत में भारी वृद्धि की गई थी।
- यह अशोक दलवई समिति द्वारा अनुशंसित 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के दृष्टिकोण को साकार करने में मदद करेगा।
सहकारी समितियांँ
- अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के अनुसार, सहकारी समिति व्यक्तियों का एक स्वायत्त संघ है जो संयुक्त स्वामित्व वाले और लोकतांत्रिक रूप से नियंत्रित उद्यम के माध्यम से अपनी सामान्य आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक आवश्यकताओं एवं आकांक्षाओं को पूरा करने के लिये स्वेच्छा से एकजुट होते हैं।
- सहकारी समितियांँ कई प्रकार की होती हैं जैसे- उपभोक्ता सहकारी समिति, उत्पादक सहकारी समिति, ऋण सहकारी समिति, आवास सहकारी समिति और विपणन सहकारी समिति।
- संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2012 को सहकारिता के अंतर्राष्ट्रीय वर्ष के रूप में घोषित किया था।
- भारत एक कृषि प्रधान देश है और इसने विश्व में सबसे बड़े सहकारी आंदोलन की नींव रखी।
- भारत में एक सहकारी आधारित आर्थिक विकास मॉडल बहुत प्रासंगिक है जहांँ प्रत्येक सदस्य ज़िम्मेदारी की भावना के साथ काम करता है।
स्रोत: द हिंदू
भारत और खाड़ी देश
प्रिलिम्स के लिये:व्यापार समझौतों के प्रकार, भारत और खाड़ी देश। मेन्स के लिये:भारत और उसके पड़ोसी, द्विपक्षीय समूह और समझौते, भारत-खाड़ी संबंधों का महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के उपराष्ट्रपति ने कतर का दौरा किया, जो खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) देशों (बहरीन, कुवैत, कतर, ओमान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात) में से एक है, जहाँ उन्होंने भारत-कतर के बीच मज़बूत संबंधों पर प्रकाश डाला और एक सक्षम वातावरण के निर्माण एवं पारस्परिक लाभ के लिये सहयोग बनाए रखने की प्रतिबद्धता व्यक्त की।
उपराष्ट्रपति की कतर यात्रा की मुख्य विशेषताएँ:
- भारत-कतर स्टार्टअप ब्रिज:
- उपराष्ट्रपति ने "भारत-कतर स्टार्टअप ब्रिज" का शुभारंभ किया जिसका उद्देश्य दोनों देशों के स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र को जोड़ना है।
- 70,000 से अधिक पंजीकृत स्टार्टअप के साथ भारत वैश्विक स्तर पर स्टार्टअप के लिये तीसरे सबसे बड़े पारिस्थितिकी तंत्र के रूप में उभरा है।
- भारत में 100 यूनिकॉर्न हैं, जिनका कुल मूल्यांकन 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक है।
- उपराष्ट्रपति ने "भारत-कतर स्टार्टअप ब्रिज" का शुभारंभ किया जिसका उद्देश्य दोनों देशों के स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र को जोड़ना है।
- पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन:
- भारत पर्यावरण की सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिये निरंतर प्रयास कर रहा है।
- उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) की स्थापना और अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने में भारत के नेतृत्त्वकर्त्ता की भूमिका का भी उल्लेख किया।
- उन्होंने कतर को अपनी ऊर्जा सुरक्षा में भारत के विश्वसनीय भागीदार के रूप में स्थिरता के लिये इस यात्रा में भागीदार बनने और ISA में शामिल होने के लिये आमंत्रित किया।
- व्यापार मंडलों के बीच संयुक्त व्यापार परिषद:
- उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त की कि भारत और कतर के व्यापार मंडलों के बीच एक संयुक्त व्यापार परिषद की स्थापना की गई है जो निवेश पर एक संयुक्त कार्य बल के माध्यम से निवेश को बढ़ावा देगा।
- उन्होंने नए और उभरते अवसरों का दोहन करने के लिये दोनों पक्षों के व्यवसायों को मार्गदर्शन व सहायता हेतु साझेदारी करने के लिये इन्वेस्ट इंडिया एवं कतर इन्वेस्टमेंट प्रमोशन एजेंसी की भी सराहना की।
- बहुपक्षीय मंचों पर सहयोग:
- उन्होंने अंतर संसदीय संघ (IPU), एशियाई संसदीय सभा और अन्य बहुपक्षीय मंचों पर भारत और कतर के बीच अधिक सहयोग का आह्वान किया।
खाड़ी क्षेत्र का भारत के लिये महत्त्व:
- भारत के ईरान जैसे देशों के साथ सदियों से अच्छे संबंध रहे हैं, जबकि प्राकृतिक गैस समृद्ध राष्ट्र कतर इस क्षेत्र में भारत के सबसे करीबी सहयोगियों में से एक है।
- भारत के अधिकांश खाड़ी देशों के साथ अच्छे संबंध रहे हैं।
- संबंधों के दो सबसे महत्त्वपूर्ण कारण तेल और गैस तथा व्यापार हैं।
- दो अतिरिक्त कारण खाड़ी देशों में काम करने वाले भारतीयों की बड़ी संख्या और उनके द्वारा घर वापस भेजे जाने वाले प्रेषण हैं।
भारत का इस क्षेत्र के देशों के साथ व्यापार:
- संयुक्त अरब अमीरात:
- संयुक्त अरब अमीरात वर्ष 2021-2022 में भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार था, और यदि आयात और निर्यात को अलग-अलग देखा जाये तो, निर्यात (28 बिलियन अमेरीकी डाॅलर) तथा आयात (45 बिलियन अमेरीकी डाॅलर) दोनों के लिये दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार था।
- कुल व्यापार के संदर्भ में संयुक्त अरब अमीरात (72.9 बिलियन अमेरीकी डाँलर) संयुक्त राज्य अमेरिका (1.19 ट्रिलियन अमेरीकी डाॅलर) और चीन (1.15 ट्रिलियन अमेरीकी डाॅलर) के पीछे था।
- संयुक्त अरब अमीरात के साथ व्यापार पिछले वित्त वर्ष में भारत के कुल निर्यात का 6.6% और आयात का 7.3% था, जो पिछले वर्ष से 68.4% अधिक था जब अंतर्राष्ट्रीय व्यापार महामारी से प्रभावित हुआ था।
- सऊदी अरब:
- वर्ष 2021-22 में 42.9 अरब डॉलर के साथ, सऊदी अरब भारत का चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार था।
- सऊदी अरब के साथ भारत का निर्यात 8.76 बिलियन अमेरिकी डॉलर (भारत के कुल निर्यात का 2.07%) तक कम हो गया, वहीं चौथे सबसे बड़े देश के रूप में आयात 34.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जो पिछले वर्ष की तुलना में 50% अधिक था।
- इराक:
- यह वर्ष 2021-22 में 34.3 अरब डॉलर के साथ भारत का पांँचवांँ सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार था।
- कतर:
- कुल व्यापार 15 बिलियन अमेरिकी डाॅलर था, जो भारत के कुल व्यापार का मात्र 1.4% है, लेकिन देश प्राकृतिक गैस का भारत का सबसे महत्त्वपूर्ण आपूर्तिकर्ता है।
- भारत के कुल प्राकृतिक गैस आयात में कतर की हिस्सेदारी 41% है।
- जबकि अन्य में UAE का 11% योगदान है
- ओमान:
- ओमान, भारत के लिये अपने आयात का तीसरा सबसे बड़ा (यूएई और चीन के बाद) स्रोत था तथा वर्ष 2019 में अपने गैर-तेल निर्यात के लिये तीसरा सबसे बड़ा बाज़ार (UAEऔर सऊदी अरब के बाद) था।
- ओमान में प्रमुख भारतीय वित्तीय संस्थानों की उपस्थिति है। भारतीय कंपनियों ने ओमान में लोहा और इस्पात, सीमेंट, उर्वरक, कपड़ा आदि जैसे क्षेत्रों में निवेश किया है।
भारत द्वारा तेल आयात:
- 77 बिलियन डाॅलर की लागत के साथ 239 मिलियन टन पेट्रोलियम तेल आयात किया गया और यह वर्ष 2021 में देश के कुल आयात का लगभग पांँचवांँ हिस्सा था।
- भारत के कच्चे तेल के आयात में फारस की खाड़ी के देशों की हिस्सेदारी पिछले 15 वर्षों में लगभग 60% पर बनी हुई है।
- 2021-2022 में भारत को तेल का सबसे बड़ा निर्यातक इराक था, जिसका हिस्सा 2009-2010 के 9% से बढ़कर 22% हो गया है।
- एक दशक से अधिक समय से भारत के तेल आयात में सऊदी अरब का योगदान 17-18% है। कुवैत और संयुक्त अरब अमीरात भारत के लिये प्रमुख तेल निर्यातक बने हुए हैं। ईरान 2009-2010 में भारत के लिये दूसरा सबसे बड़ा तेल निर्यातक हुआ करता था, अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण 2020-21 में इसकी हिस्सेदारी घटकर 1% से भी कम हो गई।
खाड़ी और धन प्रेषण में भारतीयों का परिदृश्य:
- 13.46 मिलियन से अधिक भारतीय नागरिक विदेशों में काम करते हैं। यदि भारतीय मूल के व्यक्तियों (जिन्होंने अन्य देशों की नागरिकता ले ली है और उनके वंशज) को जोड़ दिया जाए तो यह संख्या 32 मिलियन से अधिक हो जाती है।
- 13.4 मिलियन अनिवासी भारतीयों (NRI) की खाड़ी में सबसे बड़ी संख्या है।
- अनिवासी भारतीय की आधे से अधिक संख्या संयुक्त अरब अमीरात (3.42 मिलियन), सऊदी अरब (2.6 मिलियन) और कुवैत (1.03 मिलियन) में निवास करती है।
- विश्व बैंक के आँंकड़ों के अनुसार, विदेशों से धन प्रेषण के मामले में भारत 2020 में 83.15 बिलियन अमेरिकी डाॅलर के साथ सबसे बड़ा प्राप्तकर्त्ता था।
- यह 42.9 बिलियन अमेरिकी डाॅलर के अगले उच्चतम प्राप्तकर्त्ता मेक्सिको के धन प्रेषण का लगभग दोगुना था।
- सबसे बड़ा योगदान खाड़ी में विशाल भारतीय डायस्पोरा का है।
- इसकी संयुक्त अरब अमीरात में 26.9%, सऊदी अरब में 11.6%, कतर में 6.4%, कुवैत में 5.5% और ओमान में 3% की हिस्सेदारी है। GCC से परे अमेरिका से 22.9% धन प्रेषण हुआ, जो संयुक्त अरब अमीरात के बाद दूसरा था।
हाल के घटनाक्रम:
- हाल ही में भारत और ओमान ने 2022-2025 की अवधि के लिये विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सहयोग कार्यक्रम (POC) पर हस्ताक्षर किये।
- ओमान सरकार तथा भारत सरकार के बीच 5 अक्तूबर, 1996 को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में सहयोग हेतु हुए समझौते के अनुरूप वर्ष 2022-2025 की अवधि के लिये विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सहयोग को लेकर पीओसी पर हस्ताक्षर किये गए।
- सितंबर 2021 में भारत और UAE ने औपचारिक रूप से भारत-UAE व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते (CEPA) पर बातचीत शुरू की।
- वर्ष 2021 में भारतीय विदेश मंत्री ने सऊदी अरब के विदेश मंत्री से मुलाकात की, जहाँ दोनों देशों ने संयुक्त राष्ट्र, जी-20 और खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) जैसे बहुपक्षीय मंचों में द्विपक्षीय सहयोग पर चर्चा की।
- वर्ष 2021 में भारत और बहरीन रक्षा और समुद्री सुरक्षा के क्षेत्रों सहित अपने ऐतिहासिक संबंधों को मज़बूत करने पर सहमत हुए।
- वर्ष 2020 में कुवैत की नेशनल असेंबली की कानूनी और विधायी समिति ने प्रवासी कोटा बिल के मसौदे को मंज़ूरी दी।
- बिल के अनुसार, भारतीयों की आबादी 15% से अधिक नहीं होनी चाहिये और अगर इसे कानून बना दिया जाता है तो 8 लाख से अधिक भारतीयों को कुवैत से बाहर निकाला जा सकता है।.
- बिल के अनुसार, भारतीयों की आबादी 15% से अधिक नहीं होनी चाहिये और अगर इसे कानून बना दिया जाता है तो 8 लाख से अधिक भारतीयों को कुवैत से बाहर निकाला जा सकता है।.
आगे की राह
- तेल के अलावा अन्य क्षेत्र की ओर देख रहे खाड़ी देशों के साथ आर्थिक सहयोग की नई और दीर्घकालिक संभावनाओं पर ध्यान देने की ज़रूरत है।
- खाड़ी देशों ने बड़े पैमाने पर आर्थिक विविधीकरण शुरू किया है और वे अक्षय ऊर्जा, उच्च शिक्षा, तकनीकी नवाचार, स्मार्ट शहरों तथा अंतरिक्ष वाणिज्य सहित कई नई परियोजनाओं में निवेश कर रहे हैं।
- खलीजी पूंजीवाद के उदय के साथ खाड़ी देश वर्तमान में मित्र देशों को आर्थिक और सुरक्षा सहायता प्रदान करते हैं, बंदरगाहों तथा बुनियादी ढाँचे का निर्माण करते हैं, सैन्य ठिकानों का अधिग्रहण करते हैं और युद्धरत दलों व राज्यों के बीच समन्वय स्थापित करते हैं।
- संयुक्त अरब अमीरात वर्तमान में हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA) की अध्यक्षता करता है और संयुक्त बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के विकास में भारत के साथ काम करने के लिये उत्सुक है।
- भारत को हिंद महासागर में कनेक्टिविटी और सुरक्षा पर अपनी क्षेत्रीय पहलों को व्यापकता के साथ मज़बूती प्रदान करने की ज़रूरत है।
विगत वर्षों के प्रश्न:प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन 'खाड़ी सहयोग परिषद' का सदस्य नहीं है? (2016) (a) ईरान उत्तर: (a)
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स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस
प्रिलिम्स के लिये:विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस, WHO, FAO, खाद्य सुरक्षा, SFSI, FSSAI, आयुष्मान भारत, पोषण अभियान, एनीमिया मुक्त भारत, स्वच्छ भारत मिशन मेन्स के लिये:खाद्य सुरक्षा और संबंधित चुनौतियों, सरकारी नीतियों और हस्तक्षेपों को सुनिश्चित करने की आवश्यकता |
चर्चा में क्यों?
प्रत्येक वर्ष 7 जून को विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस के रूप में मनाया जाता है।
विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस की मुख्य विशेषताएंँ:
- परिचय:
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) तथा संयुक्त राष्ट्र का खाद्य और कृषि संगठन (FAO) संयुक्त रूप से सदस्य राज्यों अन्य संबंधित संगठनों के सहयोग से विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस के पालन की सुविधा प्रदान करते हैं।
- यह पहली बार वर्ष 2019 में "द फ्यूचर ऑफ फूड सेफ्टी" के तहत अदीस अबाबा सम्मेलन और जिनेवा फोरम द्वारा 2019 में की गई खाद्य सुरक्षा को बढ़ाने की प्रतिबद्धता को मज़बूत करने के लिये मनाया गया था।
- लक्ष्य:
- खाद्य सुरक्षा, मानव स्वास्थ्य, आर्थिक समृद्धि, कृषि, बाज़ार पहुँच, पर्यटन और सतत् विकास में योगदान करने, खाद्य जनित जोखिमों को रोकने, पता लगाने तथा प्रबंधित करने में मदद हेतु ध्यान आकर्षित करने और कार्रवाई को प्रेरित करने हेतु।
- 2022 थीम:
- सुरक्षित भोजन, बेहतर स्वास्थ्य:
- आवश्यकता:
- खाद्य जनित बीमारियांँ:
- खाद्य जनित बीमारियों के सालाना अनुमानित 600 मिलियन मामलों केे साथ असुरक्षित भोजन मानव स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्थाओं के लिये एक खतरा है, जो कमज़ोर व हाशिये पर स्थित लोगों, विशेष रूप से महिलाओं तथा बच्चों, संघर्ष से प्रभावित आबादी और प्रवासियों को असमान रूप से प्रभावित कर रहा है।
- खाद्य जनित रोग का बोझ:
- दुनिया भर में अनुमानित 420000 लोग हर साल दूषित भोजन खाने से मर जाते हैं और 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के हर साल 125 000 मौतों के साथ खाद्य जनित बीमारी का 40% बोझ है।
- खाद्य जनित बीमारियांँ:
संबंधित पहल:
- वैश्विक:
- कोडेक्स एलेमेंट्रिस या "फूड कोड" कोडेक्स एलेमेंट्रिस कमीशन द्वारा अपनाए गए मानकों, दिशा-निर्देशों और अभ्यास के कोड का एक संग्रह है।
- कोडेक्स एलेमेंट्रिस कमीशन (Codex Alimentarius Commission) खाद्य और कृषि संगठन (Food and Agriculture Organisation) तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation) द्वारा संयुक्त रूप से स्थापित एक अंतर-सरकारी निकाय है
- वर्तमान में इस कमीशन के सदस्यों की संख्या 189 है और भारत इस कमीशन का सदस्य है।
- भारत:
- राज्य खाद्य सुरक्षा सूचकांक:
- FSSAI ने खाद्य सुरक्षा के पाँच मापदंडों पर राज्यों के प्रदर्शन को मापने के लिये राज्य खाद्य सुरक्षा सूचकांक (SFSI) विकसित किया है।.
- मापदंडों में मानव संसाधन और संस्थागत व्यवस्था, अनुपालन, खाद्य परीक्षण- बुनियादी ढाँचा व निगरानी, प्रशिक्षण तथा क्षमता निर्माण एवं उपभोक्ता अधिकारिता शामिल हैं।
- ईट राइट इंडिया मूवमेंट:
- यह भारत सरकार तथा भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) की एक पहल है जो सभी भारतीयों के लिये सुरक्षित, स्वस्थ तथा व टिकाऊ भोजन सुनिश्चित करने के लिये देश की खाद्य प्रणाली को बदलने के लिये है।
- ईट राइट इंडिया राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 से जुड़ा हुआ है, जिसमें आयुष्मान भारत, पोषण अभियान, एनीमिया मुक्त भारत और स्वच्छ भारत मिशन जैसे प्रमुख कार्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
- ईट राइट अवार्ड्स:
- FSSAI ने नागरिकों को सुरक्षित और स्वस्थ भोजन विकल्प चुनने के लिये खाद्य कंपनियों तथा व्यक्तियों के योगदान को मान्यता देने हेतु 'ईट राइट अवार्ड्स' की स्थापना की है, जो उनके स्वास्थ्य और कल्याण को बेहतर बनाने में मदद करेगा।
- ईट राइट मेला:
- FSSAI द्वारा आयोजित यह नागरिकों को उचित खाने के लिये प्रेरित करने हेतु एक गतिविधि है। यह विभिन्न प्रकार के भोजन के स्वास्थ्य और पोषण लाभों के बारे में नागरिकों को जागरूक करने के लिये आयोजित किया जाता है।
- राज्य खाद्य सुरक्षा सूचकांक:
विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: A व्याख्या:
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