दोहरी नागरिकता और भारत

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में दोहरी नागरिकता व श्रीलंकाई तमिल शरणार्थियों की स्थिति पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

किसी भी राज्य में व्यक्ति की पहचान का सशक्त माध्यम नागरिक पहचान है जिसे औपचारिक रूप से नागरिकता की संज्ञा दी जाती है। आधुनिक राज्य की संरचना में नागरिक पहचान सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक पहचान की तुलना में प्रभावशाली ढंग से स्थापित हुई है। नागरिकता राज्य और व्यक्ति के मध्य एक औपचारिक संबंध स्थापित करती है। यह औपचारिक संबंध ही राज्य और व्यक्ति दोनों को एक दूसरे के प्रति विधिक रूप से उत्तरदायी बनाता हैं।

अतः स्पष्ट है कि नागरिकता का मुख्य ज़ोर अधिकार और कर्त्तव्यों पर है। ऐसे में सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि जो लोग बिना नागरिकता के जीवनयापन कर रहे हैं उनके सम्मुख न केवल राज्यविहीनता (Stateless) बल्कि अस्तित्व का भी संकट विद्यमान है। नागरिकता और राज्यविहीनता के मुद्दे को संबोधित करते हुए अपनाए गए नागरिकता संशोधन अधिनियम-2019 के आलोक में भारत में नागरिकता संबंधी प्रावधान और श्रीलंकाई तमिल शरणार्थियों की समस्या का विश्लेषण करने का प्रयास किया जाएगा।

श्रीलंकाई तमिल शरणार्थियों का मुद्दा

  • भारत में श्रीलंकाई तमिलों को अनिवासी श्रीलंकाई तमिलों के रूप में जाना जाता है। 19वीं-20वीं शताब्दी में श्रीलंकाई तमिलों के पूर्वजों का व्यापार करने के उद्देश्य से भारत आगमन हुआ लेकिन बाद में जातीय दंगों और गृहयुद्ध की विभीषिका से बचने के लिये भी उन्होंने भारत में शरण ली।
  • बेहतर सामाजिक-आर्थिक अवसरों की उपलब्धता के कारण श्रीलंकाई तमिल भारत के तमिलनाडु राज्य में बसने लगे। तमिलनाडु में इन्हें आज भी सीलोन या जाफना तमिल के नाम से जाना जाता है।
  • वर्ष 1948 में श्रीलंका को स्वतंत्रता प्राप्त हुई, तत्पश्चात श्रीलंकाई संसद ने सीलोन नागरिकता अधिनियम नामक एक विवादास्पद कानून पारित किया जिसमें दक्षिण भारतीय मूल के तमिलों के साथ जानबूझकर भेदभाव किया गया।
  • इस अधिनियम ने उनके लिये नागरिकता प्राप्त करना लगभग असंभव बना दिया जिसके कारण तकरीबन 700,000 तमिल राज्यविहीन हो गए।
  • ऐसी परिस्थिति में वर्ष 1964 में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और श्रीलंकाई प्रधानमंत्री सिरिमावो भंडारनाईके के बीच तमिलों की वापसी को लेकर एक समझौता हुआ।
  • इस समझौते के तहत बड़ी संख्या में तमिल शरणार्थियों की श्रीलंका में वापसी हुई है परंतु बाद के वर्षों में दंगे और गृहयुद्ध जैसी परिस्थितियों के कारण इनका प्रत्यावर्तन रुक गया।
  • वर्ष 1980-90 के दशक में श्रीलंका से रोज़गार, शिक्षा, परिवार आदि के कारण बड़ी संख्या में श्रीलंकाई तमिलों ने वैधानिक मार्ग का पालन न करते हुए समुद्र के रास्ते भारत में प्रवेश करते हैं, जिन्हें भारत सरकार अवैध प्रवासी मानती है।

शरणार्थी एवं प्रवासी के मध्य अंतर

  • शरणार्थी अपने देश में उत्पीड़न अथवा उत्पीड़ित होने के भय के कारण वहाँ से भागने को मज़बूर होते हैं। जबकि प्रवासी का अपने देश से पलायन विभिन्न कारणों जैसे-रोज़गार, परिवार, शिक्षा आदि के कारण भी हो सकता है किंतु इसमें उत्पीड़न शामिल नहीं है। इसके अतिरिक्त प्रवासी (चाहे अपने देश में हो अथवा अन्य देश में) को उसके स्वयं के देश द्वारा विभिन्न प्रकार के संरक्षण का लाभ प्राप्त होता रहता है।
  • वर्ष 2019 में पारित नागरिकता संशोधन कानून से श्रीलंकाई शरणार्थियों को बाहर रखने तथा कुछ राजनीतिक दलों द्वारा उन्हें दोहरी नागरिकता देने संबंधी मांग ने एक बार फिर यह मुद्दा चर्चा के केंद्र में ला दिया है, अतः ऐसी स्थिति में भारतीय नागरिकता संबंधी प्रावधानों पर विमर्श करना अति आवश्यक हो जाता है।

भारतीय नागरिकता

  • संविधान के भाग-II में अनुच्छेद 5 से 11 तक नागरिकता संबंधी उपबंध किये गए हैं। इस संबंध में नागरिकता अधिनियम 1955 लागू किया गया जिसमें समय-समय पर संशोधन किया गया है।
  • नागरिकता अधिनियम, 1955 द्वारा नागरिकता अर्जन की निम्न शर्ते उपबंधित की गई-
    • जन्म के आधार पर,
    • वंशक्रम के आधार पर,
    • पंजीकरण के आधार पर,
    • देशीयकरण के आधार पर,
    • क्षेत्र समाविष्ट के आधार पर,

नागरिकता की समाप्ति

  • नागरिकता अधिनियम, 1955 के अनुसार नागरिकता से वंचित करने की तीन स्थितियाँ बताई गई हैं-
    • स्वैच्छिक त्याग द्वारा,
    • बर्खास्तगी द्वारा,
    • वंचन के आधार पर

नागरिकता का स्वरूप

  • यद्यपि भारतीय संविधान संघीय है और इसने दोहरी राजपद्धति (केंद्र एवं राज्य) को अपनाया है, लेकिन इसमें केवल एकल नागरिकता की व्यवस्था की गई है अर्थात भारतीय नागरिकता। यहाँ राज्यों के लिये कोई पृथक नागरिकता की व्यवस्था नहीं है। अन्य संघीय राज्यों, जैसे-अमेरिका एवं स्विट्ज़रलैंड में दोहरी नागरिकता की व्यवस्था को अपनाया गया है।
  • दोहरी नागरिकता की व्यवस्था भेदभाव की समस्या पैदा कर सकती है। यह भेदभाव मताधिकार, सार्वजनिक पदों पर नियुक्ति, व्यवसाय आदि को लेकर हो सकता है। वर्तमान में तमिल शरणार्थियों के लिये दोहरी नागरिकता की मांग की जा रही है, चूँकि भारत में दोहरी नागरिकता की अवधारणा का कोई संवैधानिक आधार नहीं है, इसलिये वर्ष 2000 में गठित एल.एम.सिंघवी समिति की सिफारिश पर आपातकालीन परिस्थितियों से निपटने के लिये भारतीय मूल के व्यक्तियों को दोहरी नागरिकता प्रदान करने का उपबंध किया गया।
  • समिति की अनुशंसाओं पर विचार करते हुए सरकार ने नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2003 में विदेशी भारतीय नागरिकता (Overseas Citizens of India-OCI) का प्रावधान किया। इसे दोहरी नागरिकता के सीमित संस्करण के रूप में देखा गया।

विदेशी भारतीय नागरिकता

  • नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2003 में प्रावधानित विदेशी भारतीय नागरिकता के अंतर्गत पाकिस्तान और बांग्लादेश को छोड़कर 16 निर्दिष्ट देशों के भारतीय मूल के व्यक्तियों को विदेशी भारतीय नागरिकता प्रदान की गई।
  • नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2005 में सभी देशों के भारतीय मूल के व्यक्तियों को विदेशी भारतीय नागरिकता प्रदान करने के (पाकिस्तान और बांग्लादेश को छोड़कर) प्रावधान शामिल किये गए।
  • पुनः नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2015 ने मुख्य अधिनियम में विदेशी भारतीय नागरिकता संबंधी प्रावधानों को संशोधित कर दिया। इसने ‘विदेशी भारतीय नागरिक कार्डधारक’ (Overseas Citizens of India Cardholder) के नाम से एक नई योजना शुरू की जिसमें भारतीय मूल के व्यक्ति (Persons of Indian Origin-PIO) और विदेशी भारतीय नागरिकता कार्ड संबंधी योजनाओं का आपस में विलय कर दिया।

विदेशी भारतीय नागरिक कार्डधारक

  • भारत सरकार आवेदन प्राप्त होने पर किसी विदेशी भारतीय नागरिक कार्डधारक को नागरिकता के लिये पंजीकृत कर सकती है। पंजीकरण की निम्नलिखित शर्तें निर्धारित की गई हैं-
    • पूर्ण आयु क्षमता वाला कोई व्यक्ति
      (I) किसी अन्य देश का नागरिक है, लेकिन संविधान लागू होने के समय अथवा उसके बाद भारत का नागरिक था, अथवा
      (II) किसी अन्य देश का नागरिक है लेकिन संविधान लागू होने के समय भारत का नागरिक होने के लिये अर्ह था, अथवा
      (III) किसी अन्य देश का नागरिक है लेकिन उस भू-भाग से संबंध रखता है जो 15 अगस्त 1947 से भारत का भाग हो गया, अथवा
      (IV) जो किसी नागरिक का पुत्र/पुत्री या पौत्र/पौत्री या प्रपौत्र/प्रपौत्री हो,
    • कोई व्यक्ति जो निर्दिष्ट व्यक्ति का नाबालिक बच्चा हो, अथवा
    • कोई नाबालिक बच्चा जिसके माता-पिता दोनों या दोनों में से कोई एक भारत का नागरिक हो, अथवा
    • भारतीय नागरिक की विदेशी मूल का/की पति/पत्नी किसका विवाह निबंधित है और आवेदन प्रस्तुत करने की तिथि के पूर्व कम-से-कम दो वर्ष तक लगातार रहा हो।
  • भारत सरकार उस आँकड़े/डाटा को उल्लिखित कर सकती है जिसमे से सूचीबद्ध भारतीय मूल के कार्डधारक व्यक्तियों को विदेशी भारतीय कार्डहोल्डर मान लिया जाएगा।

कार्डधारकों को प्राप्त सुविधाएँ

  • जीवनपर्यंत वीज़ा
  • अनिश्चित समय तक की यात्रा के दौरान भी पंजीकरण कराने की आवश्यकता नहीं।
  • ठहरने की किसी भी अवधि तक पुलिस प्राधिकारियों को रिपोर्ट करने से छूट।
  • पंजीकृत विदेशी भारतीय नागरिक कार्डधारकों को घरेलू उड़ानों के किराए के मामले में अप्रवासी भारतीय के बराबर समझा जाएगा।

कार्डधारकों का पंजीकरण रद्द होने की शर्तें

  • यदि OCI पंजीकरण में कोई धोखाधड़ी सामने आती है।
  • यदि पंजीकरण के पाँच साल के भीतर OCI कार्डधारक को दो साल या उससे अधिक समय के लिये कारावास की सज़ा सुनाई गई है।
  • यदि ऐसा करना भारत की संप्रभुता और सुरक्षा के लिये आवश्यक हो।
  • हाल ही में पारित नागरिकता संशोधन अधिनियम, (Citizenship Amendment Act, 2019) में OCI कार्डधारक के पंजीकरण को रद्द करने के लिये एक और आधार जोड़ा गया है, जिसके तहत यदि OCI कार्डधारक अधिनियम के प्रावधानों या केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित कोई अन्य कानून का उल्लंघन करता है तो भी केंद्र के पास उस OCI कार्डधारक के पंजीकरण को रद्द करने का अधिकार होगा।

शरणार्थियों की अपेक्षाएँ

  • तमिल शरणार्थी भारत से नागरिकता देने की अपेक्षा रखते हैं क्योंकि उन्हें ऐसा डर है कि यदि वे श्रीलंका वापस लौटते हैं तो सिंघली बौद्ध समुदाय के उत्पीड़न का शिकार हो सकते हैं।
  • अधिकांश भारतीय मूल के तमिलों की भारत में पैतृक जड़ें, रिश्तेदार और संपत्ति हैं।
  • शरणार्थी शिविरों को संकटग्रस्त लोगों के लिये अस्थायी व्यवस्था के रूप में बनाया गया था। श्रीलंका में स्थिति सामान्य होने पर इन शरणार्थियों को वापस लौटना था परंतु ऐसा संभव न हो सका, इसलिये इन्हें मानवीय आधार पर भारतीय नागरिकता दी जानी चाहिये।

तमिल शरणार्थियों की संख्या

  • तमिलनाडु के 107 कैंपों में लगभग 19,000 तमिल परिवारों के 60,000 शरणार्थी निवास कर रहे हैं।
  • अगस्त 2019 तक उपलब्ध आँकड़ों के अनुसार, शरणार्थी शिविरों में आठ वर्ष से कम आयु के 10,000 बच्चों की उपस्थिति पाई गई।

भारत के समक्ष चुनौतियाँ

  • भारतीय संविधान में दोहरी नागरिकता जैसी व्यवस्था नहीं है, इसलिये भारत तमिल शरणार्थियों को दोहरी नागरिकता नहीं दे सकता है।
  • भारत के पास सीमित आर्थिक संसाधन हैं जिनसे देश के नागरिकों की ही आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सकती है।
  • भारत के सम्मुख श्रीलंका से आए तमिल शरणार्थियों तथा अवैध प्रवासियों की पहचान सुनिश्चित करने का संकट है।
  • शरणार्थी शिविरों में रह रहे लोग आर्थिक रूप से विपन्न होते हैं इसलिये ये देश विरोधी तत्वों के झाँसे में आसानी से आ जाते हैं।
  • शरणार्थियों की उपस्थिति के कारण क्षेत्र विशेष में जनसांख्यिकी बदलाव होने की भी आशंका रहती है।

समाधान के उपाय

  • इस समस्या के समाधान के लिये प्रभावित देशों तथा अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को मिलकर कार्य करना चाहिये जिससे मानवीय गरिमा, मानवाधिकार तथा अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के अनुरूप नीति का विकास कर लोगों की मदद की जा सके।
  • भारत को शरणार्थियों और अवैध प्रवासियों को उनके मूल देश में वापस भेजने के लिये श्रीलंका के साथ प्रभावी प्रत्यावर्तन समझौते की कोशिश करनी चाहिये।
  • भारत सरकार को वैध यात्रा दस्तावेज़ों के साथ आए तमिल शरणार्थियों को सीमित रूप से नागरिकता देने के संबंध में विचार करना चाहिये।

आगे की राह

  • भारत वैश्विक आकांक्षाओं के साथ एक उभरती शक्ति है और शरणार्थियों की समस्या का पहले भी कई बार सामना कर चुका है। ऐसे में उसे उदारवादी नज़रिया अपनाने की ज़रूरत है।
  • अंत में यही कहा जा सकता है कि भारत शरणार्थियों सहित विश्व को प्रभावित करने वाले अन्य उभरते मुद्दों पर क्षेत्रीय और वैश्विक प्रयासों को आकार देने के लिये बेहतर स्थिति में हो सकता है।

प्रश्न: विदेशी भारतीय नागरिक कार्डधारक सुविधा से आप क्या समझते हैं? इसके प्रावधानों का उल्लेख करते हुए बताएँ कि यह सुविधा श्रीलंकाई तमिल शरणार्थी समस्या का समाधान करने में कहाँ तक सक्षम है। विश्लेषण करें।