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कृषि

उर्वरक चुनौती

  • 14 May 2022
  • 14 min read

प्रिलिम्स के लिये:

शून्य बजट खेती, नई यूरिया नीति (एनयूपी) 2015, डीबीटी, एनबीएस योजना

मेन्स के लिये:

उर्वरक चुनौती, उर्वरक आपूर्ति पर महामारी का प्रभाव

चर्चा में क्यों? 

भारत को अपनी उर्वरक आपूर्ति की आवश्यकता को पूरा करने के लिये चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जो कि रूस के यूक्रेन पर आक्रमण के मद्देनज़र खरीफ की बुवाई से पहले बाधित हो गई है। 

प्रमुख बिंदु 

भारत द्वारा कुल उर्वरक की खपत:

  • परिचय 
    • भारत ने पिछले 10 वर्षों में प्रतिवर्ष लगभग 500 एलएमटी (LMT) उर्वरक की खपत की है।
    • केंद्र का उर्वरक सब्सिडी बिल वित्त वर्ष 2011 में बजटीय राशि से 62% से बढ़कर 1.3 लाख करोड़ रुपए हो गया है।
      • चूंँकि गैर-यूरिया (MoP, DAP, कॉम्प्लेक्स) किस्मों की लागत अधिक होती है इसलिये कई किसान वास्तव में आवश्यकता से अधिक यूरिया का उपयोग करना पसंद करते हैं।
      • सरकार ने यूरिया की खपत को कम करने के लिये कई उपाय किये हैं। इसने गैर-कृषि उपयोग हेतु यूरिया के अवैध प्रयोग को कम करने के लिये नीम कोटेड यूरिया की शुरुआत की। जैविक और शून्य-बजट खेती को बढ़ावा दिया है।
    • वर्ष 2018-19 और वर्ष 2020-21 के बीच भारत का उर्वरक आयात 18.84 मिलियन टन से लगभग 8% बढ़कर 20.33 मिलियन टन हो गया।
      • वित्तीय वर्ष 2021 में यूरिया की आवश्यकता का एक-चौथाई से अधिक आयात किया गया था।
    • भारत, यूरिया का शीर्ष आयातक देश है तथा अपने विशाल कृषि क्षेत्र को पोषित करने हेतु  आवश्यक डायमोनियम फॉस्फेट (Diammonium Phosphate- DAP) का एक प्रमुख खरीदार भी है, जो देश के लगभग 60% कार्यबल को रोज़गार प्रदान करता है और 2.7 ट्रिलियन अमेरिकी डाॅलर की अर्थव्यवस्था का 15% हिस्सा है। 
  • अधिक मात्रा में उर्वरकों की आवश्यकता:
    • भारत के कृषि उत्पादन में प्रतिवर्ष वृद्धि हुई है और इसके साथ ही देश में उर्वरकों की मांग भी बढ़ी है। 
    • आयात के बावजूद स्वदेशी उत्पादन लक्ष्य पूरा न होने के कारण मांग और उपलब्धता के बीच अंतर बना हुआ है।

उर्वरक सब्सिडी:

  • उर्वरक सब्सिडी के बारे में: 
    • सरकार उर्वरक उत्पादकों को कृषि में इस महत्त्वपूर्ण घटक को किसानों के लिये वहनीय बनाने हेतु सब्सिडी का भुगतान करती है।
    • इससे किसान बाज़ार से कम कीमतों पर उर्वरकों या खाद की खरीद कर सकेंगे। 
      • उर्वरक के उत्पादन/आयात की लागत और किसानों द्वारा भुगतान की गई वास्तविक राशि के बीच का अंतर सरकार द्वारा वहन की जाने वाली सब्सिडी का हिस्सा होता है।
  • यूरिया पर सब्सिडी:
    • केंद्र सरकार प्रत्येक संयंत्र में उत्पादन लागत के आधार पर उर्वरक निर्माताओं को यूरिया पर सब्सिडी का भुगतान करती है और इकाइयों को सरकार द्वारा निर्धारित अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) पर उर्वरक बेचना आवश्यक है।
  • गैर-यूरिया उर्वरकों पर सब्सिडी:
    • गैर-यूरिया उर्वरकों के उदाहरण: डाई अमोनियम फॉस्फेट (DAP), म्यूरेट ऑफ पोटाश (एमओपी)।
      • सभी गैर-यूरिया आधारित उर्वरकों को पोषक तत्त्व आधारित सब्सिडी योजना के तहत विनियमित किया जाता है। 
      • गैर-यूरिया उर्वरकों की MRP कंपनियों द्वारा नियंत्रित या तय की जाती है। हालाँकि केंद्र इन पोषक तत्त्वों के लिये प्रति टन एक फ्लैट सब्सिडी का भुगतान करता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि उनकी कीमत "उचित स्तर" पर है।

उर्वरक आपूर्ति पर महामारी का प्रभाव :

  • महामारी ने पिछले दो वर्षों के दौरान दुनिया भर में उर्वरक उत्पादन, आयात और परिवहन को प्रभावित किया है।
  • चीन, जो कि प्रमुख उर्वरक निर्यातक है, ने उत्पादन में गिरावट को देखते हुए अपने निर्यात को धीरे-धीरे कम कर दिया है। 
    • इसका प्रभाव भारत जैसे देश पर देखा गया है, जो चीन से अपने फॉस्फेटिक उर्वरक आवश्यकता का 40-45% आयात करता है।
  • इसके अलावा, यूरोप, अमेरिका, ब्राज़ील और दक्षिण-पूर्व एशिया जैसे क्षेत्रों में मांग में वृद्धि हुई है।
  • मांग बढ़ी है, लेकिन आपूर्ति बाधित है।

सरकारी पहल और योजनाएँ:

  • नीम कोटेड यूरिया (Neem Coated Urea- NCU)
    • उर्वरक विभाग (DoF) ने सभी घरेलू उत्पादकों के लिये शत-प्रतिशत यूरिया का उत्पादन ‘नीम कोटेड यूरिया’ (NCU) के रूप में करना अनिवार्य कर दिया है।
    • ‘नीम कोटेड यूरिया’ के उपयोग के लाभ:
      • मृदा स्वास्थ्य में सुधार।
      • पौध संरक्षण रसायनों के उपयोग में कमी।
      • कीट और रोग के हमले में कमी।
      • धान, गन्ना, मक्का, सोयाबीन, अरहर आदि की उपज में वृद्धि।
      • गैर-कृषि उद्देश्यों के लिये उपयोग में कमी।
      • नाइट्रोजन के धीमे रिसाव के कारण ‘नीम कोटेड यूरिया’ की नाइट्रोजन उपयोग दक्षता (NUE) बढ़ जाती है, जिसके परिणामस्वरूप सामान्य यूरिया की तुलना में ‘नीम कोटेड यूरिया’ में नाइट्रोजन की खपत कम होती है।
  • नई यूरिया नीति 2015:
    • नीति के उद्देश्य हैं-
      • स्वदेशी यूरिया उत्पादन को बढ़ावा देना।
      • यूरिया इकाइयों में ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देना।
      • भारत सरकार पर सब्सिडी के भार को युक्तिसंगत बनाना।
  • नई निवेश नीति, 2012: 
    • सरकार ने जनवरी 2013 में नई निवेश नीति (New Investment Policy- NIP), 2012 की घोषणा की जिसे वर्ष 2014 में यूरिया क्षेत्र में नए निवेश की सुविधा तथा भारत को यूरिया क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिये संशोधित किया गया।
  • सिटी कम्पोस्ट के संवर्द्धन पर नीति:
    • भारत सरकार ने  सिटी कम्पोस्ट के उत्पादन और खपत को बढ़ाने के लिये 1500 रुपए की बाज़ार विकास सहायता (Market Development Assistance) प्रदान करने हेतु वर्ष 2016 में  डीओएफ द्वारा अधिसूचित सिटी कम्पोस्ट को बढ़ावा देने की नीति को मंज़ूरी दी।
    • बिक्री की मात्रा बढ़ाने के लिये सिटी कम्पोस्ट का विपणन करने के इच्छुक खाद निर्माताओं को सीधे किसानों को थोक में सिटी कम्पोस्ट बेचने की अनुमति दी गई थी।
    •  सिटी कम्पोस्ट का विपणन करने वाली उर्वरक कंपनियाँ उर्वरकों के लिये प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (Direct Benefit Transfer- DBT) के अंतर्गत आती हैं।
  • उर्वरक क्षेत्र में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग:
    • डीओएफ ने भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (Geological Survey of India) और परमाणु खनिज निदेशालय (Atomic Mineral Directorate) के सहयोग से इसरो के राष्ट्रीय रिमोट सेंसिंग सेंटर (National Remote Sensing Centre) द्वारा “परावर्तन स्पेक्ट्रोस्कोपी एवं पृथ्वी अवलोकन डेटा का उपयोग करके चट्टानी फॉस्फेट के संसाधन का मानचित्रण” (Resource Mapping of Rock Phosphate using Reflectance Spectroscopy and Earth Observations Data) पर तीन वर्ष का प्रारंभिक अध्ययन शुरू किया।
  • पोषक तत्त्व आधारित सब्सिडी योजना:
    • इसे डीओएफ द्वारा अप्रैल 2010 से लागू किया गया है।
    • इस योजना के अंतर्गत वार्षिक आधार पर तय की गई सब्सिडी की एक निश्चित राशि सब्सिडी वाले फॉस्फेटिक और पोटासिक ( Phosphatic & Potassic) उर्वरकों के प्रत्येक ग्रेड पर इसकी पोषक सामग्री के आधार पर प्रदान की जाती है।
    • इसका उद्देश्य उर्वरकों का संतुलित उपयोग सुनिश्चित करना, कृषि उत्पादकता में सुधार, स्वदेशी उर्वरक उद्योग के विकास को बढ़ावा देना और सब्सिडी के बोझ को कम करना है।

प्रश्न. भारत में रासायनिक उर्वरकों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)

  1. वर्तमान में रासायनिक उर्वरकों का खुदरा मूल्य बाज़ार संचालित है और यह सरकार द्वारा नियंत्रित नहीं है।
  2. अमोनिया, जो यूरिया बनाने में काम आता है, प्राकृतिक गैस से उत्पन्न होता है।
  3. सल्फर, जो फॉस्फोरिक अम्ल उर्वरक के लिये एक कच्चा माल है, तेलशोधन कारखानों का उपोत्पाद है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 2
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • भारत सरकार उर्वरकों पर सब्सिडी देती है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि किसानों को उर्वरक आसानी से उपलब्ध हो तथा देश कृषि उत्पादन में आत्मनिर्भर बना रहे। यह काफी हद तक उर्वरक की कीमत और उत्पादन की मात्रा को नियंत्रित करके प्राप्त किया जाता है। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • प्राकृतिक गैस से अमोनिया (NH3) का संश्लेषण किया जाता है। इस प्रक्रिया में प्राकृतिक गैस के अणु कार्बन और हाइड्रोजन में परिवर्तित हो जाते हैं। फिर हाइड्रोजन को शुद्ध किया जाता है तथा अमोनिया के उत्पादन के लिये नाइट्रोजन के साथ प्रतिक्रिया कराई जाती है। इस सिंथेटिक अमोनिया को यूरिया, अमोनियम नाइट्रेट तथा  मोनोअमोनियम या डायमोनियम फॉस्फेट के रूप में संश्लेषण के बाद प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उर्वरक के तौर पर प्रयोग किया जाता है। अत: कथन 2 सही है।
  • सल्फर तेलशोधन और गैस प्रसंस्करण का एक प्रमुख उप-उत्पाद है। अधिकांश कच्चे तेल ग्रेड में कुछ सल्फर होता है, जिनमें से अधिकांश को परिष्कृत उत्पादों में सल्फर सामग्री की सख्त सीमा को पूरा करने के लिये शोधन प्रक्रिया के दौरान हटाया जाना चाहिये। यह कार्य हाइड्रोट्रीटिंग के माध्यम से किया जाता है और इसके परिणामस्वरूप एच 2 एस (H2 S) गैस का उत्पादन होता है जो मौलिक सल्फर में परिवर्तित हो जाती है। सल्फर का खनन भूमिगत, प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले निक्षेपों से भी किया जा सकता है लेकिन यह तेल और गैस से प्राप्त करने की तुलना में अधिक महंगा है तथा  इसे काफी हद तक बंद कर दिया गया है। सल्फ्यूरिक एसिड का उपयोग मोनोअमोनियम फॉस्फेट (Monoammonium Phosphate- M A P) एवं डाइअमोनियम फॉस्फेट (Diammonium Phosphate- DAP) दोनों के उत्पादन में किया जाता है। अत: कथन 3 सही है। 

अतः विकल्प (b) सही है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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