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डेली न्यूज़

  • 07 Jan, 2022
  • 43 min read
शासन व्यवस्था

उजाला योजना के 7 वर्ष

प्रिलिम्स के लिये:

उजाला योजना, एनर्जी एफिशिएंसी सर्विसेज लिमिटेड (EESL) 

मेन्स के लिये:

उजाला योजना, ऊर्जा दक्षता से संबंधित अन्य पहल तथा इसकी उपलब्धियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विद्युत मंत्रालय ने अपने प्रमुख उजाला (Unnat Jyoti by Affordable LEDs for All) कार्यक्रम के तहत LED लाइटों के वितरण और बिक्री के सात वर्ष सफलतापूर्वक पूरे किये हैं।

  • देश भर में वितरित 36.78 करोड़ से अधिक LEDs के साथ यह पहल दुनिया के सबसे बड़े ज़ीरो सब्सिडी घरेलू प्रकाश कार्यक्रम के रूप में विकसित हुई है।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • इसे वर्ष 2015 में लॉन्च किया गया और इसे एलईडी-आधारित घरेलू कुशल प्रकाश कार्यक्रम (DELP) के रूप में भी जाना जाता है, इसका उद्देश्य सभी के लिये ऊर्जा के कुशल उपयोग (अर्थात् इसकी खपत, बचत और प्रकाश व्यवस्था) को बढ़ावा देना है।
    • ऊर्जा मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत एक सरकारी कंपनी एनर्जी एफिशिएंसी सर्विसेज लिमिटेड (EESL) को इस कार्यक्रम के लिये कार्यान्वयन एजेंसी के रूप में नामित किया गया है।
    • प्रत्येक परिवार जो संबंधित विद्युत वितरण कंपनी का घरेलू कनेक्शन रखता है, योजना के तहत LED बल्ब प्राप्त करने के लिये पात्र है।
  • उपलब्धियाँ:
    • उजाला योजना LED (लाइट-एमिटिंग डायोड) बल्बों के खुदरा मूल्य को 300-350 रुपए प्रति बल्ब से घटाकर 70-80 रुपए प्रति बल्ब करने में सफल रही है।
    • सस्ती ऊर्जा को सभी के लिये सुलभ बनाने के अलावा इस कार्यक्रम के परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर ऊर्जा की बचत भी हुई। आज तक 47,778 मिलियन kWh प्रतिवर्ष ऊर्जा की बचत की गई है।
    • इसके अलावा CO2 उत्सर्जन में 3.86 करोड़ टन की कमी आई है।
    • यह घरेलू प्रकाश उद्योग को गति प्रदान करता है एवं यह मेक इन इंडिया को प्रोत्साहित करता है क्योंकि एलईडी बल्बों का घरेलू विनिर्माण 1 लाख प्रतिमाह से बढ़कर 40 मिलियन प्रतिमाह हो गया है।

ऊर्जा दक्षता/संरक्षण से संबंधित अन्य पहल:

  • ग्राम उजाला: इस पहल के तहत पाँच राज्यों बिहार, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के 2,579 गाँवों में एलईडी बल्बों को अत्यधिक रियायती दर पर 10 रुपए में वितरित किया जाएगा। 
  • प्रदर्शन, उपलब्धि और व्यापार (PAT): यह ऊर्जा बचत के प्रमाणीकरण के माध्यम से ऊर्जा गहन उद्योगों में ऊर्जा दक्षता में सुधार हेतु लागत प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिये एक बाजार आधारित तंत्र है जिसका व्यापार किया जा सकता है।
  • मानक और लेबलिंग: यह योजना वर्ष 2006 में लॉन्च की गई थी और वर्तमान में रूम एयर कंडीशनर (फिक्स्ड/वेरिएबल स्पीड), सीलिंग फैन, रंगीन टेलीविज़न, कंप्यूटर, डायरेक्ट कूल रेफ्रिजरेटर, वितरण ट्रांसफार्मर, घरेलू गैस स्टोव, औद्योगिक मोटर, एलईडी लैंप तथा कृषि पम्पसेट जैसे उपकरणों पर लागू होती है।
  • ऊर्जा संरक्षण भवन कोड (ECBC): इसे वर्ष 2007 में नए वाणिज्यिक भवनों के लिये विकसित किया गया था। यह 100 kW (किलोवाट) के कनेक्टेड लोड या 120 KVA (किलोवोल्ट-एम्पीयर) और उससे अधिक की अनुबंध मांग वाले नए वाणिज्यिक भवनों के लिये न्यूनतम ऊर्जा मानक निर्धारित करता है।
  • राष्ट्रीय सड़क प्रकाश कार्यक्रम: इसके तहत  EESL अपने खर्च पर पारंपरिक स्ट्रीट लाइटों को ऊर्जा कुशल LED लाइट्स से बदलना है।

स्रोत: पी.आई.बी  


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

कज़ाखस्तान में अशांति

प्रिलिम्स के लिये:

कज़ाखस्तान और उसके निकटवर्ती देशों की भोगोलिक स्थिति, सोवियत संघ के देश।

मेन्स के लिये:

कज़ाखस्तान में वर्तमानअशांति के कारण, विश्व के संदर्भ में कज़ाखस्तान का महत्त्व , रूस की भूमिका और अशांति का प्रभाव।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ईंधन की कीमतों में तीव्र और अचानक वृद्धि ने कज़ाखस्तान में राष्ट्रीय संकट पैदा कर दिया, जिससे देश भर में हिंसक विरोध प्रदर्शन हुए तथा सरकार को त्यागपत्र देना पड़ा।

Unrest-in-Kazakhstan

प्रमुख बिंदु

  • अशांति का कारण:
    • तेल समृद्ध मध्य एशियाई राष्ट्र में ईंधन की कीमतों के दोगुने होने के बाद गुस्साए कज़ाखस्तान के लोग पहली बार सड़कों पर उस समय उतरे, जब सरकार ने सामान्यत: वाहनों में इस्तेमाल होने वाली तरल पेट्रोलियम गैस (LPG) के लिये प्राइस कैप (Price Caps) को हटा दिया।
    • आयल सिटी झानाओज़ेन में विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ, जहांँ 2011 में खराब काम करने की स्थिति का विरोध कर रहे कम-से-कम 16 तेल श्रमिकों को पुलिस ने मार डाला था।
    • देश भर के शहरों और कस्बों में प्रदर्शन शुरू हो गए और तेजी से हिंसक हो गए, जिसे कज़ाखस्तान के इतिहास में विरोध की सबसे बड़ी लहर कहा जा रहा है।
      • सोवियत संघ के पतन के बाद से कज़ाखस्तान में काफी हद तक स्थिर निरंकुशता (Stable Autocracy) रही है, जहाँ इस पैमाने का विद्रोह 1980 के दशक के बाद से नहीं देखा गया है।
      • निरंकुशता किसी देश की सरकार की एक प्रणाली है जिसमें एक व्यक्ति के पास पूरी शक्ति होती है।
    • प्रदर्शनकारियों ने सरकार के इस्तीफे की मांग की है।
    • उन्होंने तर्क दिया है कि कीमतों में उछाल खाद्य कीमतों में भारी वृद्धि का कारण बनेगा और आय असमानता को बढ़ाएगा, जिसने दशकों से देश को त्रस्त किया है।
      • अभी पिछले वर्ष (2021) ही देश में मुद्रास्फीति वर्ष-दर-वर्ष आधार पर 9% तक बढ़ गई थी, यह बीते पाँच वर्षों में सबसे अधिक थी।
  • लोकतंत्र की मांग:
    • यद्यपि देश में ईंधन काफी सस्ता है, किंतु बढ़ती आय असमानता को लेकर कज़ाखस्तान के आम लोगों के बीच असंतोष बढ़ रहा है, जो कि कोरोना वायरस महामारी तथा लोकतंत्र की कमी के कारण और भी गंभीर हो गया है।
    • जबकि देश राजनीतिक रूप से स्थिर होकर लाखों डॉलर के विदेशी निवेश को आकर्षित करने में सक्षम रहा है, मौलिक स्वतंत्रता के उल्लंघन के लिये वर्षों से इसकी सत्तावादी सरकार की व्यापक रूप से आलोचना की गई है।
  • विरोध का महत्त्व:
    • विश्व के लिये:
      • रूस और चीन के बीच स्थित कज़ाखस्तान दुनिया का सबसे बड़ा लैंडलॉक देश है, जो पूरे पश्चिमी यूरोप से भी बड़ा है, हालाँकि इसकी आबादी सिर्फ 19 मिलियन है।
        • इसके पास विशाल खनिज संसाधन मौजूद हैं, जिसमें 3% वैश्विक तेल भंडार और महत्त्वपूर्ण कोयला और गैस क्षेत्र हैं।
        • यह यूरेनियम का शीर्ष वैश्विक उत्पादक है, जिसकी कीमतों में अस्थिरता के बाद 8% की वृद्धि हुई है।
        • देश बिटकॉइन के मामले में दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा माइनर भी है।
      • बड़ी रूसी अल्पसंख्यक आबादी के साथ यह मुख्य रूप से मुस्लिम गणराज्य है, यह मध्य एशिया के अन्य हिस्सों में देखे गए नागरिक संघर्ष से अब तक काफी हद तक सुरक्षित रहा है।
      • नवीनतम प्रदर्शन इस लिहाज़ से महत्त्वपूर्ण हैं कि देश को अब तक एक अस्थिर क्षेत्र में राजनीतिक और आर्थिक स्थिरता के स्तंभ के रूप में माना जाता है, हालाँकि यहाँ यह स्थिरता एक दमनकारी सरकार की कीमत पर आई है जो असंतोष को दबाती है।
    • रूस के लिये:
      • विरोध इसलिये भी महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि कज़ाखस्तान को रूस के साथ जोड़ दिया गया है, जिसके राष्ट्रपति रूस के प्रभाव क्षेत्र के हिस्से के रूप में देश को अपनी आर्थिक और राजनीतिक प्रणालियों के मामले में रूस के लिये एक निकाय के रूप में देखते हैं।
        • सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन द्वारा हस्तक्षेप, उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) का एक रूसी संस्करण, पहली बार है कि इसके संरक्षण क्षेत्र को एक ऐसा कदम लागू किया गया है जो संभावित रूप से इस क्षेत्र में भू-राजनीति के लिये व्यापक परिणाम प्रदर्शित कर सकता है।
        • वर्ष 2014 में यूक्रेन में और वर्ष 2020 में बेलारूस में लोकतंत्र समर्थक विरोध प्रदर्शनों के बाद एक सत्तावादी रूस- गठबंधन राष्ट्र के खिलाफ तीसरा विद्रोह है।
        • अराजकता इस क्षेत्र में रूस की क्षमता को कम करने की धमकी देती है जब रूस, यूक्रेन और बेलारूस जैसे देशों में अपनी आर्थिक और भू-राजनीतिक शक्ति का दावा करने की कोशिश कर रहा है।
      • पूर्व सोवियत संघ के देश भी विरोध प्रदर्शनों को करीब से देख रहे हैं और कज़ाखस्तान की घटनाओं से कहीं और विपक्षी ताकतों को सक्रिय करने में मदद मिल सकती है।
    • अमेरिका के लिये:
      • कज़ाखस्तान अमेरिका के लिये भी मायने रखता है, क्योंकि यह अमेरिकी ऊर्जा चिंताओं के लिये एक महत्त्वपूर्ण देश बन गया है, एक्सॉन मोबिल और शेवरॉन ने पश्चिमी कज़ाखस्तान में अरबों डॉलर का निवेश किया है।
      • संयुक्त राज्य सरकार लंबे समय से रूस और बेलारूस की तुलना में कजाखस्तान में उत्तर सोवियत सत्तावाद की कम आलोचक रही है।
  • सरकार की प्रतिक्रिया:
    • कज़ाखस्तान पर हमले के संदर्भ में सरकार ने प्रदर्शनकारियों को "आतंकवादियों का एक समूह" घोषित किया और रूसी नेतृत्व वाले सैन्य गठबंधन को हस्तक्षेप करने के लिये कहा।
    • सरकार ने आपातकाल की स्थिति स्थापित करके और सोशल नेटवर्किंग साइटों तथा चैट ऐप्स को अवरुद्ध करके प्रदर्शनों को शांत करने का भी प्रयास किया है।
    • बिना परमिट के सार्वजनिक विरोध पहले से ही अवैध थे। इसने शुरू में प्रदर्शनकारियों की कुछ मांगों को स्वीकार कर लिया, कैबिनेट को खारिज़ कर दिया और संसद के संभावित विघटन की घोषणा की, जिसके परिणामस्वरूप नए चुनाव होंगे। लेकिन इसके अब तक के कदम असंतोष पर काबू पाने में विफल रहे हैं।
  • वैश्विक प्रतिक्रिया:
    • संयुक्त राष्ट्र (यूएन), अमेरिका, ब्रिटेन और फ्राँस ने सभी पक्षों से हिंसा से दूर रहने का आह्वान किया है।
    • भारत कज़ाखस्तान की स्थिति पर करीब से नजर रख रहा है और भारतीयों की वापसी में मदद करेगा।

आगे की राह

  • अमेरिका और दुनिया के अन्य प्रमुख देशों को कज़ाखस्तान के अधिकारियों को इंटरनेट बंद न करने और हिंसा से बचने के लिये प्रेरित करने की ज़रूरत है।
  • दीर्घावधि में संयुक्त राष्ट्र को कज़ाखस्तान पर वैध रूप से स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिये दबाव डालना चाहिये अन्यथा वहाँ अधिक से अधिक विरोधी गतिविधियाँ उत्पन्न होंगीं।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

यौन उत्पीड़न से महिलाओं का संरक्षण (POSH) अधिनियम, 2013

प्रिलिम्स के लिये:

अनुच्छेद 19, सूचना का अधिकार, ओपन कोर्ट

मेन्स के लिये:

यौन उत्पीड़न अधिनियम, 2013 के खिलाफ महिलाओं का संरक्षण और इसकी आलोचना।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई है जिसमें बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा यौन उत्पीड़न से महिलाओं के संरक्षण (POSH) अधिनियम, 2013 के तहत मामलों में जारी दिशा-निर्देशों को चुनौती दी गई है।

  • जिस प्रावधान को चुनौती दी गई, वह मीडिया के साथ आदेश और निर्णय सहित रिकॉर्ड साझा करने से पार्टियों और अधिवक्ताओं पर ‘ब्लैंकेट बार’ से संबंधित है।
  • POSH अधिनियम के तहत एक मामले में पक्षों की पहचान की रक्षा के लिये बॉम्बे हाईकोर्ट के न्यायाधीश जीएस पटेल द्वारा ये दिशा-निर्देश दिये गए थे।

प्रमुख बिंदु

  • याचिकाकर्त्ता की दलीलें:
    • अनुच्छेद 19 की भावना के खिलाफ: याचिकाकर्त्ता ने तर्क दिया कि ‘ब्लैंकेट बार’ अनुच्छेद-19 के तहत निहित भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ है।
      • याचिका में कहा गया है कि एक जागरूक नागरिक स्वयं को बेहतर तरीके से नियंत्रित करता है।
      • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर तभी अंकुश लगाया जा सकता है जब यह न्यायिक प्रशासन में हस्तक्षेप करे।
      • लोगों के सही और सटीक तथ्यों को जानने के अधिकार पर कोई भी निषेधाज्ञा उनके सूचना के अधिकार का अतिक्रमण है।
    • महिलाओं की आवाज़ का दमन: यह पुरुषों द्वारा महिलाओं का यौन उत्पीड़न जारी रखने और उसके बाद सोशल मीडिया व समाचार मीडिया में उनकी आवाज़ को दबाने के लिये एक उपकरण के रूप में काम कर सकता है।
      • सामाजिक न्याय और महिला सशक्तीकरण के मामलों में सार्वजनिक विमर्श महिलाओं को दिये जाने वाले कानूनी अधिकारों की प्रकृति को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
      • आदेश का "रिप्पल इफेक्ट" हो सकता है और बचे लोगों को अदालतों का दरवाज़ा खटखटाने के साथ-साथ मुकदमे के मामलों के लिये एक मिसाल कायम करने से रोक सकता है।
    • ओपन कोर्ट के सिद्धांत के खिलाफ: ओपन कोर्ट के सिद्धांतों और लोगों के मौलिक अधिकारों के घोर उल्लंघन के साथ यौन अपराधियों के अनुचित संरक्षण को वैध बनाना।
      • ओपन कोर्ट एक शैक्षिक उद्देश्य को पूरा करता है।
      • न्यायालय नागरिकों के लिये यह जानने का एक मंच बन जाता है कि कानून का व्यावहारिक अनुप्रयोग उनके अधिकारों पर कैसे प्रभाव डालता है।

यौन उत्पीड़न के खिलाफ महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2013

  • भूमिका: सर्वोच्च न्यायालय ने विशाखा और अन्य बनाम राजस्थान राज्य 1997 मामले के एक ऐतिहासिक फैसले में 'विशाखा दिशा निर्देश' दिये।
    • इन दिशा निर्देशों ने कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 ("यौन उत्पीड़न अधिनियम") का आधार बनाया।
  • तंत्र: अधिनियम कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को परिभाषित करता है और शिकायतों के निवारण के लिये एक तंत्र बनाता है।
    • प्रत्येक नियोक्ता को प्रत्येक कार्यालय या शाखा में 10 या अधिक कर्मचारियों के साथ एक आंतरिक शिकायत समिति का गठन करना आवश्यक है।
    • शिकायत समितियों को साक्ष्य एकत्र करने के लिये दीवानी न्यायालयों की शक्तियाँ प्रदान की गई है।
    • शिकायत समितियों को शिकायतकर्ता द्वारा अनुरोध किये जाने पर जाँच शुरू करने से पहले सुलह का प्रावधान करना होता है।
  • दंडात्मक प्रावधान: नियोक्ताओं के लिये दंड निर्धारित किया गया है। अधिनियम के प्रावधानों का पालन न करने पर जुर्माना देना होगा।
    • बार-बार उल्लंघन करने पर अधिक दंड और व्यवसाय संचालित करने के लिये लाइसेंस या पंजीकरण रद्द किया जा सकता है।
  • प्रशासन की ज़िम्मेदारी: राज्य सरकार हर ज़िले में जिला अधिकारी को अधिसूचित करेगी, जो एक स्थानीय शिकायत समिति ( Local Complaints Committee- LCC) का गठन करेगा ताकि असंगठित क्षेत्र या छोटे प्रतिष्ठानों में महिलाओं को यौन उत्पीड़न से मुक्त वातावरण में कार्य करने में सक्षम बनाया जा सके।

नोट:  SHe-Box

  • महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने यौन उत्पीड़न इलेक्ट्रॉनिक बॉक्स (Sexual Harassment electronic–Box - SHe-Box) लॉन्च किया है।
  • यह यौन उत्पीड़न से संबंधित शिकायत के पंजीकरण की सुविधा हेतु संगठित या असंगठित, निजी या सार्वजनिक क्षेत्र में कार्य कर रही हर महिला को पहुंँच प्रदान करने का प्रयास है।
  • कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न का सामना करने वाली कोई भी महिला इस पोर्टल के माध्यम से अपनी शिकायत दर्ज़ करा सकती है।
  • एक बार शिकायत ‘SHe-Box’,' में दर्ज़ हो जाने के बाद सीधे संबंधित प्राधिकारी को मामले में कार्रवाई करने हेतु अधिकार क्षेत्र में भेजा जाएगा।

आगे की राह 

  • कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न अधिनियम पर जे.एस. वर्मा समिति (J.S. Verma Committee) की सिफारिशों को लागू करने की आवश्यकता है:
    • रोज़गार न्यायाधिकरण: कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न अधिनियम में एक आंतरिक शिकायत समिति (ICC) के बजाय एक रोज़गार न्यायाधिकरण की स्थापना की जानी चाहिये।       
    • स्वयं की प्रक्रिया बनाने की शक्ति: शिकायतों के त्वरित निपटान को सुनिश्चित करने के लिये समिति ने प्रस्ताव दिया कि न्यायाधिकरण को एक दीवानी अदालत के रूप में कार्य नहीं करना चाहिये, लेकिन प्रत्येक शिकायत से निपटने हेतु उसे अपनी स्वयं की प्रक्रिया का चयन करने की शक्ति दी जानी चाहिये।
    • अधिनियम के दायरे का विस्तार: घरेलू कामगारों को अधिनियम के दायरे में शामिल किया जाना चाहिये।
      • समिति ने कहा कि किसी भी तरह के 'अवांछनीय व्यवहार' को शिकायतकर्त्ता की व्यक्तिपरक धारणा से देखा जाना चाहिये, जिससे यौन उत्पीड़न की परिभाषा का दायरा व्यापक हो सके।
    • नियोक्ता का दायित्त्व: वर्मा समिति ने कहा कि एक नियोक्ता को उत्तरदायी ठहराया जाना चाहिये यदि:
      • उसने यौन उत्पीड़न में उत्पीड़क की सहायता की हो।
      • एक ऐसे वातावरण के निर्माण में मदद की हो, जहाँ यौन दुराचार व्यापक एवं व्यवस्थित हो।
      • जहाँ नियोक्ता यौन उत्पीड़न पर कंपनी की नीति और कर्मचारियों द्वारा शिकायत दर्ज करने के तरीकों का खुलासा करने में विफल रहता है।
      • जब नियोक्ता ट्रिब्यूनल को शिकायत अग्रेषित करने में विफल रहता है।
      • कंपनी शिकायतकर्त्ता को मुआवज़े का भुगतान करने हेतु भी उत्तरदायी होगी।
      • समिति ने झूठी शिकायतों के लिये महिलाओं को दंडित करने का विरोध किया, क्योंकि यह संभावित रूप से कानून के उद्देश्य को समाप्त कर सकता है।
      • वर्मा समिति ने यह भी कहा कि शिकायत दर्ज करने के लिये तीन महीने की समय-सीमा समाप्त की जानी चाहिये और शिकायतकर्त्ता को उसकी सहमति के बिना स्थानांतरित नहीं किया जाना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

सीमा शुल्क में सहयोग और पारस्परिक सहायता: भारत-स्पेन

प्रिलिम्स के लिये:

सीमा शुल्क, यूरोपीय संघ, एफडीआई, स्पेन और इसके पड़ोसी, भारत-स्पेन पारस्परिक सहायता।

मेन्स के लिये:

यूरोपीय संघ में भारत-स्पेन संबंधों का महत्त्व और आगे का रास्ता।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सीमा शुल्क मामलों में सहयोग और पारस्परिक सहायता पर भारत एवं स्पेन के बीच एक समझौते को मंज़ूरी दी है।

spain

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • यह दोनों देशों के सीमा शुल्क अधिकारियों के बीच सूचना साझा करने के लिये एक कानूनी ढाँचा है।
    • यह सीमा शुल्क कानूनों के उचित प्रशासन और सीमा शुल्क अपराधों का पता लगाने तथा जाँच एवं वैध व्यापार की सुविधा में मदद करता है।
  • प्रावधान:
    • सीमा शुल्क का सही मूल्यांकन विशेष रूप से सीमा शुल्क, टैरिफ का वर्गीकरण और माल की उत्पत्ति के निर्धारण से संबंधित जानकारी।
    • निम्नलिखित के अवैध संचलन से संबंधित सीमा शुल्क अपराध:
      • हथियार, गोला-बारूद और विस्फोटक उपकरण।
      • कला और प्राचीन वस्तुएँ, जो ऐतिहासिक, सांस्कृतिक या पुरातात्विक मूल्य की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं।
      • पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिये खतरनाक विषाक्त और अन्य पदार्थ।
      • जो वस्तुएँ पर्याप्त सीमा शुल्क या करों के अधीन हैं।
      • सीमा शुल्क कानून के खिलाफ सीमा शुल्क अपराध करने हेतु नियोजित नए साधन और तरीके।
  • महत्त्व:
    • यह सीमा शुल्क अपराधों की रोकथाम, जाँच और सीमा शुल्क अपराधियों को पकड़ने के लिये उपलब्ध, विश्वसनीय, त्वरित तथा लागत प्रभावी व खुफिया जानकारी उपलब्ध कराने में मदद करेगा।

भारत स्पेन संबंध

  • परिचय:
    • वर्ष 1956 में राजनयिक संबंधों की स्थापना के बाद से भारत और स्पेन के बीच संबंध सौहार्दपूर्ण रहे हैं। भारत के पहले राजदूत को वर्ष 1965 में नियुक्त किया गया था।
    • किसी भारतीय राष्ट्राध्यक्ष द्वारा स्पेन की पहली राजकीय यात्रा तत्कालीन राष्ट्रपति द्वारा अप्रैल 2009 में की गई।
    • JCEC (आर्थिक सहयोग पर संयुक्त आयोग) की बैठक का 11वाँ दौर जनवरी 2018 में मैड्रिड में आयोजित किया गया था।
      • व्यापार और निवेश संबंधों को गति देने के लिये आर्थिक सहयोग पर भारत-स्पेन संयुक्त आयोग (JCEC) की स्थापना वर्ष 1972 के व्यापार और आर्थिक सहयोग समझौते के तहत की गई थी और तब से इसकी दस बार बैठक हो चुकी है।
  • आर्थिक और वाणिज्यिक संबंध:
    • स्पेन यूरोपीय संघ में भारत का 7वाँ सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है।
    • वर्ष 2018 (जनवरी-दिसंबर) में द्विपक्षीय व्यापार 6.31 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा, जो एक वर्ष पहले की समान अवधि की तुलना में 8.68% अधिक है।
      • भारत का निर्यात 8.49% बढ़ा और 4.74 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा, जबकि आयात 8.49% बढ़ा और 1.571.39 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा।
    • स्पेन को भारतीय निर्यात में जैविक रसायन, कपड़ा और वस्त्र, लोहा व इस्पात उत्पाद, मोटर वाहन घटक, समुद्री उत्पाद तथा चमड़े के सामान शामिल हैं।
    • स्पेन भारत में 1.43 बिलियन अमेरिकी डॉलर (जनवरी 2000 में) के संचयी एफडीआई (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) स्टॉक के साथ 15वाँ सबसे बड़ा निवेशक है, जो ज़्यादातर बुनियादी ढाँचे, नवीकरणीय ऊर्जा, ऑटोमोबाइल, पानी के विलवणीकरण और एकल ब्रांड खुदरा क्षेत्र में किया गया है।
  • सांस्कृतिक और शैक्षणिक संबंध:
    • सांस्कृतिक आदान-प्रदान भारत-स्पेन द्विपक्षीय संबंधों का एक महत्त्वपूर्ण घटक है। वर्ष 2003 में ‘कासा डे ला इंडिया’ (होमस्टेड) की स्थापना संस्कृति, शिक्षा, सहयोग और उद्यम के क्षेत्र में भारत व स्पेन के संबंधों को बढ़ावा देने हेतु एक मंच के रूप में की गई थी।
    • ‘भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद’ (ICCR) द्वारा प्रायोजित प्रदर्शनियाँ 'भारत के धर्म' और 'भारत की धाराएँ' भी वर्ष 2015 में विभिन्न स्पेनिश शहरों में आयोजित की गईं।
    • पहले अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस (21 जून, 2015) में प्रतिष्ठित ‘प्लाज़ा डे कोलन’ में एक मेगा मास्टर क्लास में 1200 से अधिक लोगों ने हिस्सा लिया था, जिसके बाद एक योग सम्मेलन भी आयोजित हुआ था।
    • ‘भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद’, ‘कासा डे ला इंडिया’ और भारत के दूतावास के समर्थन से 'फ्लेमेंको इंडिया' शीर्षक से एक इंडो-स्पैनिश थिएटर शुरू किया गया है।
  • भारतीय प्रवासी:
    • भारतीय समुदाय स्पेन की अप्रवासी आबादी का एक बहुत ही छोटा हिस्सा है।
    • एशियाई समुदायों में भारतीय प्रवासी चीन और पाकिस्तान के समुदायों के बाद तीसरा सबसे बड़ा समूह है।
    • स्पेन में सबसे पहले बसने वाले भारतीय सिंधी लोग थे, जो 19वीं शताब्दी के अंत में उपमहाद्वीप से आए थे और कैनरी द्वीप समूह में बस गए थे।
    • स्पेन के आँकड़ों के अनुसार, स्पेन में भारतीय जनसंख्या वर्ष 2001 के 9000 से बढ़कर वर्ष 2015 में 34,761 हो गई है।
  • द्विपक्षीय समझौते:
    • व्यापार और आर्थिक सहयोग पर समझौता (1972)
    • सांस्कृतिक सहयोग पर समझौता (1982)
    • नागरिक उड्डयन समझौता (1986)
    • दोहरा कराधान परिहार समझौता (1993)
    • द्विपक्षीय निवेश संरक्षण और सवर्द्धन समझौता (1997)
    • प्रत्यर्पण संधि (2002)
    • राजनीतिक संवाद के संस्थागतकरण पर समझौता ज्ञापन (2006)

आगे की राह

  • अधिक विश्वास और सहयोग के साथ संबंधों को जारी रखने के लिये जिसके आधार पर स्पेन और भारत अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ में घनिष्ठ सहयोगी बन सकते हैं, दोनों सरकारों को राजनीतिक, वाणिज्यिक और सांस्कृतिक संबंधों पर केंद्रित एक अधिक महत्त्वाकांक्षी और कल्पनाशील रणनीति हेतु प्रतिबद्ध होना चाहिये।
  • पहलू जो तुलनात्मक लाभ उत्पन्न करने की संभावना प्रदान करते हैं उनपर बल देने की आवश्यकता है।
  • स्पेन के साथ पर्यटन क्षेत्र में सहयोग भारतीय समकक्षों को अग्रणी विशेषज्ञता प्रदान करता है और दोनों देशों की प्रवासी लोगों की भूमिका को बढ़ाता है, विशेष रूप से स्पेन में अच्छी तरह से स्थापित भारतीय समुदाय, द्विपक्षीय साझेदारी के दो अतिरिक्त प्रमुख आयाम हैं।
  • दोनों देशों के मध्य संबंध को यूरोपीय संघ और भारत के मध्य द्विपक्षीय संबंधों के ढांँचे द्वारा भी समर्थित होना चाहिये।

स्रोत: पी.आई.बी


शासन व्यवस्था

चुनावी खर्च सीमा में बढ़ोतरी

प्रीलिम्स के लिये:

भारतीय चुनाव आयोग (ECI), लागत मुद्रास्फीति सूचकांक

मेन्स के लिये:

जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA), 1951, निजी सदस्य विधेयक

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय चुनाव आयोग (ECI) द्वारा लोकसभा क्षेत्रों के उम्मीदवारों के लिये खर्च की सीमा 54 लाख-70 लाख रुपए (राज्यों के आधार पर) से बढ़ाकर 70 लाख-95 लाख रुपए कर दी गई थी।

  • इसके अलावा विधानसभा क्षेत्रों के लिये खर्च की सीमा 20 लाख-28 लाख रुपए से बढ़ाकर 28 लाख- 40 लाख रुपए (राज्यों के आधार पर) कर दी गई थी।
  • वर्ष 2020 में चुनाव खर्च की सीमा का अध्ययन करने हेतु चुनाव आयोग ने एक समिति का गठन किया था।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय
    • 40 लाख रुपए की बढ़ी हुई राशि उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब में तथा 28 लाख रुपए की गोवा और मणिपुर में लागू होगी।
    • कोविड-19 महामारी के कारण वर्ष 2020 में 10% की वृद्धि के अलावा उम्मीदवारों के लिये खर्च सीमा में अंतिम बड़ा संशोधन वर्ष 2014 में किया गया था।
    • समिति ने पाया कि वर्ष 2014 के बाद से मतदाताओं की संख्या और लागत मुद्रास्फीति सूचकांक में काफी वृद्धि हुई है।

लागत मुद्रास्फीति सूचकांक:

  • इसका उपयोग मुद्रास्फीति के कारण वर्ष-दर-वर्ष वस्तुओं और संपत्ति की कीमतों में वृद्धि का अनुमान लगाने के लिये किया जाता है।
  • इसकी गणना कीमतों और मुद्रास्फीति दर के बीच संतुलन स्थापित करने हेतु की जाती है। सरल शब्दों में समय के साथ मुद्रास्फीति की दर में वृद्धि से कीमतों में वृद्धि होगी।
  • लागत मुद्रास्फीति सूचकांक= तत्काल पूर्ववर्ती वर्ष हेतु उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (शहरी) में औसत वृद्धि का 75%।
  • उपभोक्ता मूल्य सूचकांक, कीमतों में वृद्धि की गणना करने के लिये पिछले वर्ष में वस्तुओं और सेवाओं की एक ही बास्केट की लागत के साथ वस्तुओं व सेवाओं (जो अर्थव्यवस्था का प्रतिनिधित्व करता है) की वर्तमान कीमत की तुलना करता है।
  • केंद्र सरकार आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचित करके CII को निर्दिष्ट करती है।
  • चुनाव व्यय सीमा:
    • यह वह राशि है जो एक उम्मीदवार द्वारा अपने चुनाव अभियान के दौरान कानूनी रूप से खर्च की जा सकती है जिसमें सार्वजनिक बैठकों, रैलियों, विज्ञापनों, पोस्टर, बैनर, वाहनों और विज्ञापनों पर खर्च शामिल होता है।
    • जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम (Representation of the People Act-RPA), 1951 की धारा 77 के तहत प्रत्येक उम्मीदवार को नामांकन की तिथि से लेकर परिणाम घोषित होने की तिथि तक किये गए सभी व्यय का एक अलग और सही खाता रखना होता है।
    • चुनाव संपन्न होने के 30 दिनों के भीतर सभी उम्मीदवारों को ECI के समक्ष अपना व्यय विवरण प्रस्तुत करना होता है।
    • उम्मीदवार द्वारा सीमा से अधिक व्यय या खाते का गलत विवरण प्रस्तुत करने पर RPA, 1951 की धारा 10 के तहत ECI द्वारा उसे तीन साल के लिये अयोग्य घोषित किया जा सकता है।
    • ECI द्वारा निर्धारित व्यय सीमा चुनाव के दौरान किये जाने वाले वैध खर्च के लिये निर्धारित है क्योंकि चुनाव में बहुत सारा पैसा गलत एवं अवांछित कार्यों पर खर्च किया जाता है।
    • अक्सर यह तर्क दिया जाता है कि चुनावी खर्च की यह सीमा अवास्तविक है क्योंकि उम्मीदवार द्वारा किया गया खर्च वास्तविक व्यय से बहुत अधिक होता है।
    • उम्मीदवारों द्वारा चुनाव के दौरान अधिकतम खर्च की सीमा के निर्धारण के संदर्भ में दिसंबर 2019 में एक निजी सदस्य द्वारा संसद में बिल पेश किया गया-
    • यह कदम इस आधार पर उठाया गया कि प्रत्याशियों के चुनाव खर्च के संबंध में किसी भी राजनीतिक पार्टी द्वारा खर्च की कोई उच्चतम सीमा निर्धारित नहीं है, जिस कारण अक्सर राजनीतिक पार्टियों द्वारा उम्मीदवारों का शोषण किया जाता है।
    • हालाँकि सभी पंजीकृत राजनीतिक दलों को चुनाव पूरा होने के 90 दिनों के भीतर चुनाव आयोग को अपने चुनाव खर्च का ब्योरा प्रस्तुत करना होता है।

राज्य अनुदान पर सिफारिशें:

  • इंद्रजीत गुप्ता समिति (1998) द्वारा यह सुझाव दिया गया कि राज्य द्वारा वित्तपोषण आर्थिक रूप से कमज़ोर राजनीतिक दलों के लिये एक समान आधार को सुनिश्चित करेगा एवं ऐसा कदम सार्वजनिक हित में होगा।
  • यह भी सिफारिश की गई कि राज्य द्वारा यह धन केवल मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और राज्य दलों को दिया जाना चाहिये तथा यह आर्थिक सहायता उम्मीदवारों को प्रदान की जाने वाली मुफ्त सुविधाओं के रूप में दी जानी चाहिये।
  • विधि आयोग की रिपोर्ट (1999) के अनुसार, राजनीतिक दलों को चुनाव के लिये राज्य द्वारा वित्तीय सहायता देना वांछनीय/उचित (Desirable) है, बशर्ते राजनीतिक दल अन्य स्रोतों से आर्थिक सहायता प्राप्त न करे ।
  • संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिये गठित राष्ट्रीय आयोग (वर्ष 2000) द्वारा इस विचार का समर्थन नहीं किया गया लेकिन इसके द्वारा उल्लेख किया गया कि राजनीतिक दलों के नियमन के लिये एक उपयुक्त रूपरेखा को राज्य द्वारा वित्तपोषण से पहले लागू करने की आवश्यकता है।

आगे की राह

  • राज्यों द्वारा चुनाव की फंडिंग: इस प्रणाली में राज्य द्वारा चुनाव लड़ने वाले राजनीतिक दलों का चुनावी खर्च वहन किया जाता है।
    • यह प्रणाली वित्तपोषण प्रक्रिया में पारदर्शिता ला सकती है क्योंकि यह चुनावों में इच्छुक सार्वजनिक वित्तदाताओं के प्रभाव को सीमित कर सकती है तथा इससे भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी।

स्रोत- द हिंदू


शासन व्यवस्था

ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर (GEC)

प्रिलिम्स के लिये:

ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर योजना की विशेषताएँ, हरित ऊर्जा से संबंधित पहल।

मेन्स के लिये:

अक्षय ऊर्जा के लिये भारत की पहल, भारत के अक्षय ऊर्जा लक्ष्य और संबंधित चुनौतियाँ,

चर्चा में क्यों?

हाल ही में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने ‘इंट्रा-स्टेट ट्रांसमिशन सिस्टम’ (InSTS) के लिये ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर (GEC) चरण- II पर योजना को मंज़ूरी दी।

प्रमुख बिंदु

  • GEC-1:
    • ग्रीन एनर्जी कॉरिडोर का पहला चरण पहले से ही गुजरात, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु और राजस्थान में लागू किया जा रहा है।
    • यह लगभग 24 GW अक्षय ऊर्जा के ग्रिड एकीकरण और बिजली निकासी के लिये काम कर रहा है।
  • GEC-2:
    • यह सात राज्यों गुजरात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल, राजस्थान, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश में लगभग 20 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा (आरई) बिजली परियोजनाओं के ग्रिड एकीकरण और बिजली निकासी की सुविधा प्रदान करेगा।
    • ट्रांसमिशन सिस्टम वित्तीय वर्ष 2021-22 से 2025-26 तक पाँच वर्ष की अवधि में बनाए जाएंगे।
    • इसे 12, 031 करोड़ रुपए की कुल अनुमानित लागत के साथ स्थापित करने का लक्ष्य है जो केंद्रीय वित्त सहायता (CFA) परियोजना लागत का 33% होगा।
      • CFA इंट्रा-स्टेट ट्रांसमिशन शुल्क को पूरा करने में मदद करेगा और इस प्रकार बिजली की लागत को कम करेगा।
  • उद्देश्य:
    • इसका उद्देश्य ग्रिड में पारंपरिक बिजली स्टेशनों के साथ नवीनीकरण संसाधनों जैसे पवन व सौर से उत्पादित बिजली को एकीकृत करना है।
    • इसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक 450 GW स्थापित आरई क्षमता के लक्ष्य को प्राप्त करना है।
    • GEC का उद्देश्य लगभग 20,000 मेगावाट के साथ बड़े पैमाने पर अक्षय ऊर्जा की स्थापना करना और राज्य स्तर पर ग्रिड में सुधार करना है।
  • महत्त्व:
    • यह भारत की दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा में योगदान देगा और कार्बन फुटप्रिंट को कम करके पारिस्थितिक रूप से सतत् विकास को बढ़ावा देगा।
    • यह कुशल और अकुशल दोनों तरह के कर्मियों के लिये अधिक प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोज़गार के अवसर पैदा करेगा।

हरित ऊर्जा से संबंधित पहलें:

स्रोत: पी.आई.बी


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