जैव विविधता और पर्यावरण
नवीकरणीय ऊर्जा के लिये उभरते बाज़ार
- 16 Jul 2021
- 9 min read
प्रिलिम्स के लियेनवीकरणीय ऊर्जा मेन्स के लियेऊर्जा ट्रांज़िशन और इस संबंध में सरकार द्वारा किये गए प्रयास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, उभरते बाज़ारों द्वारा कम लागत वाले नवीकरणीय ऊर्जा के अवसरों पर अधिक ध्यान केंद्रित किये जाने से विश्व भर में जीवाश्म ईंधन से बिजली उत्पादन का स्तर अपने चरम पर पहुँच गया है और जल्द ही इसमें कमी देखने को मिलेगी।
- यह रिपोर्ट भारत की ‘ऊर्जा, पर्यावरण एवं जल परिषद’ (CEEW) और वित्तीय थिंक टैंक ‘कार्बन ट्रैकर’ (दोनों गैर-लाभकारी संगठन हैं) द्वारा प्रकाशित की गई थी।
प्रमुख बिंदु
निष्कर्ष
- उभरते बाज़ार वैश्विक ऊर्जा ट्रांज़िशन की कुंजी हैं:
- उभरते बाज़ार वैश्विक ऊर्जा ट्रांज़िशन के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, क्योंकि ये वर्ष 2019 से वर्ष 2040 के बीच कुल बिजली की मांग में सभी अपेक्षित वृद्धि के 88 के लिये उत्तरदायी होंगे।
- समग्र तौर पर मौजूदा उभरते बाज़ार में बिजली की मांग का 82% और अपेक्षित मांग वृद्धि का 86% उन देशों से आता है, जो कोयला एवं गैस का आयात करते हैं तथा इन देशों के पास सौर ऊर्जा एवं पवन ऊर्जा में स्विच करने हेतु महत्त्वपूर्ण प्रोत्साहन हैं।
- सही नीतियों के साथ इस परिवर्तन के लिये प्रौद्योगिकी और लागत बाधाओं को आसानी से पार किया जा सकता है।
- उभरते बाज़ारों में ट्रांज़िशन की स्थिति अलग है क्योंकि उन्हें करोड़ों लोगों को नवीकरणीय ऊर्जा तक पहुँच प्रदान करने के साथ-साथ निचले स्तर पर बिजली की मांग में वृद्धि को भी पूरा करना है।
- विकसित बाज़ारों में बिजली उत्पादन के लिये जीवाश्म ईंधन की मांग में 20% की गिरावट दर्ज की गई है, जो कि वर्ष 2007 में अपने चरम स्तर पर थी।
- उभरते बाज़ार वैश्विक ऊर्जा ट्रांज़िशन के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, क्योंकि ये वर्ष 2019 से वर्ष 2040 के बीच कुल बिजली की मांग में सभी अपेक्षित वृद्धि के 88 के लिये उत्तरदायी होंगे।
- उभरते बाज़ारों के चार प्रमुख समूह:
- चीन, बिजली की मांग के लगभग आधे हिस्से के लिये उत्तरदायी है और 39% अपेक्षित वृद्धि की भी उम्मीद है।
- भारत या वियतनाम जैसे कोयला और गैस के अन्य आयातक, मांग के तिहाई और वृद्धि के लगभग आधे हिस्से के लिये उत्तरदायी हैं।
- रूस या इंडोनेशिया जैसे कोयला और गैस निर्यातक मांग के 16% लेकिन वृद्धि के केवल 10% के लिये उत्तरदायी हैं।
- कोयला और गैस निर्यातक देशों में ऊर्जा ट्रांज़िशन का प्रतिरोध अधिक होने की संभावना है।
- नाइजीरिया या इराक जैसे ‘संवेदनशील’ देश मांग के 3% और वृद्धि के इतने ही हिस्से के लिये उत्तरदायी हैं।
- भारत एक मिसाल के तौर पर:
- भारत की उभरते बाज़ार में बिजली की मांग 9% और अपेक्षित मांग वृद्धि में 20% की हिस्सेदारी है जो परिवर्तन की गति और स्तर को दर्शाता है।
- वर्ष 2010 में 20GW से कम सौर ऊर्जा उत्पादन से यह मई 2021 में 96GW सौर, पवन बायोमास और छोटे हाइड्रो के स्तर तक बढ़ गया है।
- बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं के साथ नवीकरणीय ऊर्जा देश की बिजली उत्पादन क्षमता में 142GW या 37% हिस्सेदारी रखती है तथा वर्ष 2030 तक इसके तहत 450GW का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
- वर्ष 2018 में जीवाश्म ईंधन उत्पादन की मांग एक स्तर पर पहुँच गई तथा वर्ष 2019 और वर्ष 2020 में इसमें गिरावट देखी गई।
- जबकि जीवाश्म ईंधन की मांग निकट भविष्य में बिजली की मांग को पूरा करने हेतु फिर से बढ़ सकती है, किंतु भारत ने इस बात को साबित किया है कि किस प्रकार बाज़ार डिज़ाइन और नीतिगत प्राथमिकताओं के माध्यम से सभी घरों को बिजली से जोड़ने और नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने के दोहरे उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सकता है।
सुझाव:
- एक सहायक नीति वातावरण, नवीकरणीय ऊर्जा के विकास को गति देने की कुंजी है।
- यदि देश बाज़ारों को उदार और नीलामी को प्रतिस्पर्द्धी बनाते हैं, तो वे लागत में कटौती कर अंतर्राष्ट्रीय वित्त को आकर्षित कर सकते हैं क्योंकि ऐसा करने पर जीवाश्म ईंधन में निवेश को रोका जा सकता है।
- नीलामी से भारत को वैश्विक स्तर पर सौर ऊर्जा की लागत को कम करने में मदद मिलेगी।
- विकसित देश नीतिगत समर्थन, प्रौद्योगिकी विशेषज्ञता और पूंजी लागत को कम करके विकास वित्त का उपयोग उभरते बाजारों में अक्षय ऊर्जा के प्रसार में तीव्रता लाने हेतु कर सकते हैं।
अक्षय ऊर्जा के लिये भारतीय पहल
- केंद्रीय बजट 2021-22 के तहत एक राष्ट्रीय हाइड्रोजन ऊर्जा मिशन (National Hydrogen Energy Mission-NHM) की घोषणा की गई है, जो हाइड्रोजन को वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत के रूप में उपयोग करने के लिये एक रोडमैप तैयार करेगा।
- इस पहल में परिवहन क्षेत्र में बदलाव लाने की क्षमता है।
जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय सौर मिशन JNNSM):
- इस मिशन को वर्ष 2009 से वर्ष 2022 तक 20,000 मेगावाट ग्रिड से जुड़ी सौर ऊर्जा के उत्पादन का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य के साथ लॉन्च किया गया था।
- 2010-15 के दौरान स्थापित सौर क्षमता का 18 मेगावाट से लगभग 3800 मेगावाट के साथ इस क्षेत्र में तेज़ी से विकास हुआ है।
- यह भारत के प्रधानमंत्री और फ्राँस के राष्ट्रपति द्वारा 30 नवंबर, 2015 को फ्राँस की राजधानी पेरिस में आयोजित कॉन्फ्रेंस ऑफ़ पार्टीज़-21 (COP-21) के दौरान शुरू की गई पहल है जिसमें 121 संभावित सदस्य राष्ट्रों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया था, जो पूर्ण या आंशिक रूप से कर्क और मकर रेखा के बीच स्थित हैं।
- कुसुम का अभिप्राय किसान ऊर्जा सुरक्षा और उत्थान महाभियान से है।
- इसका उद्देश्य 2022 तक 25,750 मेगावाट की सौर ऊर्जा क्षमता का उपयोग करके किसानों को वित्तीय और जल सुरक्षा प्रदान करना है।
राष्ट्रीय पवन-सौर हाइब्रिड नीति:
- राष्ट्रीय पवन-सौर हाइब्रिड नीति, 2018 का मुख्य उद्देश्य पवन और सौर संसाधनों, बुनियादी ढांँचे तथा भूमि के इष्टतम एवं कुशल उपयोग के लिये ग्रिड कनेक्टेड विंड-सोलर पीवी सिस्टम (Wind-Solar PV Hybrid Systems) को बढ़ावा देने हेतु एक रूपरेखा प्रस्तुत करना है।
- पवन-सौर पीवी हाइब्रिड सिस्टम अक्षय ऊर्जा उत्पादन में परिवर्तनशीलता को कम करने तथा बेहतर ग्रिड स्थिरता प्राप्त करने में सहायक होगा।
- इसका उद्देश्य घरों की छत पर सौर पैनल स्थापित कर सौर ऊर्जा उत्पन्न करना है।
- नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ग्रिड से जुड़ी रूफटॉप सौर योजना (द्वितीय चरण) की कार्यान्वयन एजेंसी है।