आंतरिक सुरक्षा
सीमाओं के लिये स्मार्ट वॉल
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अमेरिका-मैक्सिको (USA-Mexico Border) सीमा पर भौतिक और सशस्त्र गश्त के विकल्प के तौर पर उन्नत निगरानी तकनीक वाली एक वैकल्पिक स्मार्ट वॉल (alternative Smart Wall) के निर्माण का प्रस्ताव रखा गया है।
- इससे पूर्व वर्ष 2019 में अमेरिका ने मैक्सिको से ड्रग्स और अपराधियों के "आक्रमण" का हवाला देते हुए अमेरिका-मैक्सिको बॉर्डर पर एक दीवार (बॉर्डर वॉल) का निर्माण करने के लिये राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की थी।
प्रमुख बिंदु
स्मार्ट वॉल के बारे में:
- स्मार्ट वॉल की कोई एक निश्चित परिभाषा नहीं है। यह अलग-अलग प्रौद्योगिकियों का संग्रह है जो अवैध प्रवेश, तस्करी और एक भेद्य सीमा पर उत्पन्न सभी प्रकार के खतरों को रोकने के लिये कार्य करती है।
- स्मार्ट वॉल तकनीक में ड्रोन, स्कैनर और सेंसर आदि के उपयोग से ऐसा तकनीकी अवरोध उत्पन्न जाएगा जिसकी सुरक्षा को तोड़ना अपेक्षाकृत काफी मुश्किल होगा।
- इन-ग्राउंड सेंसर, सुरक्षा कैमरे और सॉफ्टवेयर जैसी इंटरनेट-ऑफ-थिंग्स (Internet-of-Things- IoT) तकनीकों का उपयोग करते हुए तैयार की गई स्मार्ट वॉल अवैध गतिविधियों को रोकने में सहायक होगी जो स्थितिजन्य जागरूकता के साथ सीमा अधिकारियों को सशक्त बनाएगी।
स्मार्ट वॉल के लाभ:
- कम लागत :
- एक स्मार्ट वॉल की लागत भौतिक रूप से निर्मित दीवार से काफी कम होती है।
- परिनियोजन के समय में कमी:
- भौतिक सीमाओं (Physical Boundaries) को बनाने में वर्षों लग जाते हैं लेकिन स्मार्ट बॉर्डर तकनीक को शीघ्रता से लागू किया जा सकता है।
- रख-रखाव की कम लागत:
- भौतिक रूप से निर्मित दीवार के विपरीत स्मार्ट वॉल सीमा सुरक्षा अधिकारियों को बदलती परिस्थितियों हेतु रणनीति को लगातार समायोजित करने सक्षम बनाती है।
- यह वॉल ग्राउंड सेंसर और IoT डिवाइस को स्थानांतरित एवं अद्यतन करने में त्वरित और आसान है।
- स्मार्ट वॉल के निर्माण में आने वाली लागत भौतिक रूप से निर्मित दीवार का केवल एक हिस्सा होती है जिसे धीरे-धीरे और आवश्यकतानुसार उपयोग किया जा सकता है।
- पर्यावरणीय चिंताओं में कमी:
- एक स्मार्ट दीवार पर्यावरणीय चिंताओं को कम करती है, जिसे वन्यजीव और वर्षा जल क्षेत्र के माध्यम से स्वतंत्र रूप से निर्मित किया जा सकता है।
- स्मार्ट वॉल में लगे अधिकांश डिवाइस लोगों और जानवरों के मध्य अंतर बता सकते हैं, ये अधिकारियों को उस समय सतर्क करते है जब मनुष्य वन्यजीवों के साथ अवैध रूप से सीमा पार करने का प्रयास करता है।
- विशाल भूभाग की निगरानी:
- दीवार के कुछ हिस्सों के टूटने के कारण किसी भी इलाके में गश्त करना मुश्किल होता है।
- हालाँकि डिजिटल तकनीक विशाल भू-भाग में निगरानी करने में सक्षम है।
- कैमरे और इन-ग्राउंड सेंसर जैसे उपकरण एक साथ सैकड़ों मील की दूरी तक निगरानी करने में सक्षम होते हैं जिससे आवश्यकतानुसार उचित कार्रवाई की जा सकती है।
- रियल टाइम अलर्ट (Real-Time Alerts) सीमा पर पहुँचने वाले प्रवासियों और मार्ग भटक जाने वाले यात्रियों की गतिविधियों की सूचना देने की प्रक्रिया को आसान कर सकता है।
- भूमि आवश्यकता को कम करना:
- सीमा पार दीवार बनाने के लिये सरकार को स्थानीय भूस्वामियों से संपत्ति ज़ब्त करने की आवश्यकता होगी। वहीँ छोटे और अपेक्षाकृत गैर-आक्रामक, स्मार्ट वॉल प्रौद्योगिकियों के लिये बहुत कम भूमि ज़ब्ती की आवश्यकता होगी।
भारत में स्मार्ट वॉल की ज़रूरत:
- भारतीय सीमाओं का अधिकांश क्षेत्र बीहड़ है और स्पष्ट रूप से परिभाषित भी नहीं है। यह एक महत्त्वपूर्ण कारक है जिसे भारतीय सीमाओं के साथ इस तरह की प्रणाली के उपयोग करने पर विचार किया जाना चाहिये।
- यह प्रणाली भले ही भारत की लंबी सीमाओं के लिये संभव न हो, फिर भी इसे देश के उन महत्त्वपूर्ण सुरक्षा प्रतिष्ठानों में तैनात किया जा सकता है जहाँ पहले से ही भौतिक बाड़ (Physical Fencing) और दीवार पूरक के रूप में मौजूद हैं।
- इस प्रणाली से भारतीय सशस्त्र बलों का अच्छी तरह से सुसज्जित किया जाना चाहिये ताकि इस नवीनतम तकनीकी का लाभ शत्रु देशों के खिलाफ लिया जा सके।
- सीमा पार घुसपैठ की समस्या का प्रभावी ढंग से समाधान करने के लिये विशेषज्ञों को स्मार्ट वॉल के विचार पर अन्वेषण करना चाहिये।
भारत में स्मार्ट फेंसिंग:
- भारत-पाकिस्तान सीमा (10 किलोमीटर) और भारत-बांग्लादेश सीमा (61 किलोमीटर) पर व्यापक एकीकृत सीमा प्रबंधन प्रणाली (Comprehensive Integrated Border Management System- CIBMS) के तहत 71 किलोमीटर की दो पायलट परियोजनाएंँ पूरी हो चुकी हैं।
- CIBMS के तहत सीमाओं पर अत्याधुनिक निगरानी तकनीकों की एक शृंखला को तैनात किया जाना शामिल है- थर्मल इमेजर्स, इन्फ्रा-रेड और लेज़र-आधारित घुसपैठ अलार्म, हवाई निगरानी हेतु एयरोस्टेट, बिना सेंसर वाले ग्राउंड सेंसर जो रडार, सोनार सिस्टम का पता लगाने में मदद कर सकते हैं, फाइबर-ऑप्टिक सेंसर और एक कमांड और कंट्रोल सिस्टम जो वास्तविक समय (Real Time) में सभी निगरानी उपकरणों से डेटा प्राप्त करने में सक्षम है।
- बॉर्डर इलेक्ट्रॉनिकली डोमिनेटेड क्यूआरटी इंटरसेप्शन टेक्नीक (BOLD-QIT) CIBMS के तहत असम के धुबरी ज़िले में भारत-बांग्लादेश सीमा पर भी इस तकनीकी का इस्तेमाल किया जा रहा है।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
चौरी चौरा कांड के सौ साल
चर्चा में क्यों?
हाल ही में चौरी चौरा ( Chauri Chaura) कांड के सौ साल पूरे होने के अवसर पर प्रधानमंत्री द्वारा एक डाक टिकट जारी किया गया है।
- चौरी चौरा, उत्तर प्रदेश के गोरखपुर ज़िले में स्थित एक कस्बा है।
- इस कस्बे में 4 फरवरी, 1922 को एक हिंसक घटना घटित हुई थी। किसानों की भीड़ ने यहाँ के एक पुलिस स्टेशन में आग लगा दी जिसके कारण 22 पुलिस कर्मियों की मौत हो गई। इस घटना को देखकर महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) ने असहयोग आंदोलन (Non-Cooperation Movement- 1920-22) को वापस ले लिया।
प्रमुख बिंदु
पृष्ठभूमि (असहयोग आंदोलन की शुरुआत):
- गांधीजी ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ 1 अगस्त, 1920 को असहयोग आंदोलन शुरू किया था।
- इस आंदोलन के तहत गांधीजी ने उन सभी वस्तुओं (विशेष रूप से मशीन से बने कपड़े), संस्थाओं और व्यवस्थाओं का बहिष्कार करने का फैसला लिया था जिसके तहत अंग्रेज़ भारतीयों पर शासन कर रहे थे।
- वर्ष 1921-22 की सर्दियों में कॉन्ग्रेस के स्वयंसेवकों और खिलाफत आंदोलन (Khilafat Movement) के कार्यकर्त्ताओं को एक राष्ट्रीय स्वयंसेवक वाहिनी के रूप में संगठित किया गया।
- प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् मुसलमानों के धार्मिक स्थलों पर खलीफा के प्रभुत्व को पुनर्स्थापित करने तथा प्रदेशों की पुनर्व्यव्यस्था कर खलीफा को अधिक भू-क्षेत्र प्रदान करने के उद्देश्य से भारत में मोहम्मद अली, शौकत अली, मौलाना आज़ाद जैसे नेताओं ने खिलाफत कमेटी (1919 ई.) का गठन कर देशव्यापी आंदोलन की नींव रखी।
- कॉन्ग्रेस ने इस आंदोलन का समर्थन किया और महात्मा गांधी के प्रयास से इसे असहयोग आंदोलन में मिला दिया गया।
चौरी चौरा कांड का विवरण:
- चौरी चौरा कस्बे में 4 फरवरी को स्वयंसेवकों ने बैठक की और जुलूस निकालने के लिये पास के मुंडेरा बाज़ार को चुना गया।
- पुलिसकर्मियों ने उन्हें जुलूस निकालने से रोकने का प्रयास किया। इसी दौरान पुलिस और स्वयंसेवकों के बीच झड़प हो गई। पुलिस ने भीड़ पर गोली चला दी, जिसमें कुछ लोग मारे और कई घायल हो गए।
- गुस्साई भीड़ ने एक पुलिस स्टेशन में आग लगा दी, जिसमें 23 पुलिसकर्मी मारे गए।
- कुछ भागने की कोशिश कर रहे पुलिसकर्मियों को पीट-पीटकर मार डाला गया। हथियारों सहित पुलिस की काफी सारी संपत्ति नष्ट कर दी गई।
अंग्रेज़ों की प्रतिक्रिया:
- ब्रिटिश राज ने अभियुक्तों पर आक्रामक तरीके से मुकदमा चलाया। सत्र अदालत ने 225 अभियुक्तों में से 172 को मौत की सज़ा सुनाई। हालाँकि अंततः दोषी ठहराए गए लोगों में से केवल 19 को फाँसी दी गई थी।
महात्मा गांधी की प्रतिक्रिया:
- गांधीजी ने पुलिसकर्मियों की हत्या की निंदा की और आस-पास के गाँवों में स्वयंसेवक समूहों को भंग कर दिया गया। इस घटना पर सहानुभूति जताने तथा प्रायश्चित करने के लिये एक ‘चौरी चौरा सहायता कोष’ स्थापित किया गया था।
- गांधीजी ने असहयोग आंदोलन में हिंसा का प्रवेश देख इसे रोकने का फैसला किया। उन्होंने अपनी इच्छा ‘कॉन्ग्रेस वर्किंग कमेटी’ को बताई और 12 फरवरी, 1922 को यह आंदोलन औपचारिक रूप से वापस ले लिया गया।
अन्य राष्ट्रीय नेताओं की प्रतिक्रिया:
- असहयोग आंदोलन का नेतृत्व करने वाले जवाहरलाल नेहरू और अन्य नेता हैरान थे कि गांधीजी ने संघर्ष को उस समय रोक दिया जब नागरिक प्रतिरोध ने स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी स्थिति मज़बूत कर ली थी।
- मोतीलाल नेहरू और सी.आर. दास जैसे अन्य नेताओं ने गांधीजी के फैसले पर अपनी नाराज़गी व्यक्त की और स्वराज पार्टी की स्थापना का फैसला किया।
आंदोलन को वापस लेने का औचित्य:
- गांधीजी ने अहिंसा में अपने अटूट विश्वास के आधार आंदोलन को वापस लिया जाना उचित ठहराया।
- बिपिन चंद्र जैसे इतिहासकारों ने तर्क दिया है कि अहिंसा की गांधीवादी रणनीति का उद्देश्य यह प्रदर्शित करना था कि अहिंसक प्रदर्शनकारियों के खिलाफ दमनकारी बल का उपयोग औपनिवेशिक राज्य के वास्तविक चरित्र को उजागर करेगा और अंततः उन पर नैतिक दबाव पड़ेगा, लेकिन चौरी चौरा जैसी घटनाएँ इस रणनीति के विपरीत थीं।
- इसके अलावा बिपिन चंद्रा ने स्वीकार किया कि गांधीजी द्वारा आंदोलन को वापस लेना उनके “संघर्ष विराम संघर्ष” रणनीति का हिस्सा था।
तत्काल परिणाम:
- असहयोग आंदोलन की वापसी ने कई युवा भारतीय राष्ट्रवादियों को इस निष्कर्ष पर पहुँचाया कि भारत अहिंसा के माध्यम से औपनिवेशिक शासन से मुक्त नहीं हो पाएगा।
- इन क्रांतिकारियों में जोगेश चटर्जी, रामप्रसाद बिस्मिल, सचिन सान्याल, अशफाकुल्ला खान, जतिन दास, भगत सिंह, भगवती चरण वोहरा, मास्टर सूर्य सेन आदि शामिल थे।
- असहयोग आंदोलन की अचानक समाप्ति से खिलाफत आंदोलन के नेताओं का कॉन्ग्रेस के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय आंदोलनों से मोहभंग हो गया, फलतः कॉन्ग्रेस और मुस्लिम नेताओं के बीच दरार पैदा हो गई।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
आंतरिक सुरक्षा
सीसीटीएनएस हैकथॉन और साइबर चैलेंज
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau) के दूसरे CCTNS हैकथॉन और साइबर चैलेंज (CCTNS Hackathon & Cyber Challenge), 2020-21 का उद्घाटन समारोह का आयोजन नई दिल्ली में किया गया था।
प्रमुख बिंदु
पृष्ठभूमि:
- यह हैकथॉन मार्च 2020 में संपन्न हुए हैकथॉन एंड साइबर चैलेंज की निरंतरता में संपन्न हुआ।
- सीसीटीएनएस हैकथॉन और साइबर चैलेंज, 2020-21 का प्रमुख उद्देश्य पुलिसकर्मियों की विश्लेषणात्मक क्षमता तथा समझ को बढ़ाना है जिससे वे नए खतरों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिये स्मार्ट रणनीति बनाने में सक्षम हो सकें।
2 सीसीटीएनएस हैकथॉन और साइबर चैलेंज के विषय में:
- पुलिस अधिकारी, विशेष रूप से अत्याधुनिक शिक्षाविद, उद्योग, छात्रों और अन्य को इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिये आमंत्रित किया जा रहा है ताकि मौजूदा आईटी एप्लीकेशन्स में सुधार करने तथा सीसीटीएनएस पारितंत्र में सुधार के लिये नए आईटी एप्लीकेशन्स की पहचान करने में मदद मिल सके।
- इस समारोह के दौरान मोबाइल एप- "लॉकेट नियरेस्ट पुलिस स्टेशन" (Locate Nearest Police Station) भी लॉन्च किया गया था।
- यह विशेष रूप से किसी भी आपात स्थिति के दौरान महिला यात्रियों, अंतर्राज्यीय यात्रियों, घरेलू और विदेशी पर्यटकों आदि सहित विभिन्न उपयोगकर्त्ताओं को मदद करेगा। इस एप में 112 नंबर डायल करने की सुविधा दी गई है। यह नागरिकों तक पुलिस की पहुँच में सुधार की दिशा में एक अन्य महत्त्वपूर्ण कदम है।
- यह एनसीआरबी द्वारा प्रदान की जा रही अन्य केंद्रीय नागरिक सेवाओं जैसे- "मिसिंग पर्सन सर्च", "जनरेटेड व्हीकल एनओसी", "घोषित अपराधियों की जानकारी" और राज्य नागरिक पुलिस पोर्टल द्वारा उपलब्ध कराई जा रही विभिन्न अन्य सेवाओं को एकीकृत करेगा।
अपराध और आपराधिक ट्रैकिंग नेटवर्क और प्रणाली
पृष्ठभूमि:
- अपराध और आपराधिक ट्रैकिंग नेटवर्क और प्रणाली (CCTNS) की कल्पना कॉमन इंटीग्रेटेड पुलिस एप्लीकेशन (CIPA) के अनुभव से की गई है।
लॉन्च:
- अपराध और आपराधिक ट्रैकिंग नेटवर्क और प्रणाली (Crime & Criminals Tracking Network and Systems-CCTNS) वर्ष 2009 मे राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस प्लान के तहत स्थापित एक मिशन मोड प्रोजेक्ट है।
- इसे 6000 उच्च पुलिस कार्यालयों के अलावा पूरे देश में लगभग 14,000 पुलिस स्टेशनों में शुरू करने का प्रस्ताव दिया गया है।
उद्देश्य:
- पुलिस स्टेशनों और अन्य पुलिस कार्यालयों की कार्यवाहियों को नागरिक अनुकूल, पारदर्शी, जवाबदेह, कुशल और प्रभावी बनाना।
- सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के माध्यम से नागरिक केंद्रित सेवाओं के वितरण में सुधार करना।
- अपराध और अपराधियों की सटीक एवं तीव्रता से जाँच के लिये जाँच अधिकारियों को आधुनिक उपकरण, तकनीक और जानकारियाँ प्रदान करना।
हाल की कुछ पहलें:
- सीसीटीएनएस डेटाबेस के उपयोग के लिये राष्ट्रीय खुफिया ग्रिड (NATGRID) और राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के बीच एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किये गए हैं।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो
- NCRB की स्थापना केंद्रीय गृह मंत्रालय के अंतर्गत वर्ष 1986 में इस उद्देश्य से की गई थी कि भारतीय पुलिस में कानून व्यवस्था को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिये पुलिस तंत्र को सूचना प्रौद्योगिकी समाधान और आपराधिक गुप्त सूचनाएँ प्रदान करके समर्थ बनाया जा सके।
- NCRB नीति संबंधी मामलों और अनुसंधान हेतु अपराध, दुर्घटना, आत्महत्या और जेल संबंधी डेटा के प्रामाणिक स्रोत के लिये नोडल एजेंसी है।
- NCRB ‘भारत में अपराध’, ‘दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों और आत्महत्या’, ‘जेल सांख्यिकी’ तथा फिंगर प्रिंट पर 4 वार्षिक प्रकाशन जारी करता है।
- बाल यौन शोषण से संबंधित मामलों की अंडर-रिपोर्टिंग के चलते वर्ष 2017 से NCRB ने बाल यौन शोषण के आँकड़ों को भी एकत्रित करना प्रारंभ किया है।
- NCRB को वर्ष 2016 में इलेक्ट्रॉनिक और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा ‘डिजिटल इंडिया अवार्ड’ से भी सम्मानित किया गया था।
- भारत में पुलिस बलों का कंप्यूटरीकरण वर्ष 1971 में प्रारंभ हुआ। NCRB ने CCIS (Crime and Criminals Information System) को वर्ष 1995 में, CIPA (Common Integrated Police Application) को वर्ष 2004 में और अंतिम रूप में CCTNS को वर्ष 2009 में प्रारंभ किया।
स्रोत: पी.आई.बी.
भारतीय विरासत और संस्कृति
पंडित भीमसेन जोशी जयंती
हाल ही में प्रधानमंत्री ने शास्त्रीय संगीत गायक पंडित भीमसेन जोशी (Pandit Bhimsen Joshi) को उनकी जन्म शताब्दी पर श्रद्धांजलि अर्पित की।
प्रमुख बिंदु
पंडित भीमसेन जोशी:
- पंडित भीमसेन जोशी का जन्म 4 फरवरी, 1922 को हुआ था।
- महत्त्वपूर्ण उपलब्धि: इन्हें वर्ष 2008 में भारत रत्न प्रदान किया गया था।
- कार्य: इनके द्वारा गाए जाने वाले कल्याण, मियाँ की टोडी, पुरिया धनश्री और मुल्तान आदि प्रसिद्ध रागों के लिये इन्हें याद किया जाता है।
- ये किराना घराने से संबंध रखते थे।
- किराना घराने का नाम उत्तर प्रदेश के कैराना नामक एक छोटे शहर से पड़ा है। इसकी स्थापना उस्ताद अब्दुल करीम खान ने की थी। अब्दुल वाहिद खान, सुरेश बाबू माने, हीरा बाई बडोडकर और रोशनआरा बेगम जैसे प्रसिद्ध कलाकार इस घराने से संबंधित हैं।
- ये हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के घराने से ताल्लुक रखते थे।
हिन्दुस्तानी संगीत:
- उद्भव:
- हिंदुस्तानी संगीत मुख्य रूप से भारत में प्रचलित भारतीय शास्त्रीय संगीत के दो विशिष्ट शैलियों में से एक है। दूसरा भारतीय शास्त्रीय संगीत कर्नाटक संगीत है जो मुख्य रूप से दक्षिण भारत में प्रचलित है।
- दोनों प्रकार के संगीत शैलियों की ऐतिहासिक जड़ें भारत के नाट्यशास्त्र से संबंधित हैं।
- हिंदुस्तानी संगीत स्वर केंद्रित है। हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत से जुड़े प्रमुख स्वर ख्याल, गज़ल, ध्रुपद, धमर, तराना और ठुमरी हैं।
- अधिकांश हिंदुस्तानी संगीतकार तानसेन के वंश से संबंधित हैं।
- घराना:
- घराना एक सामाजिक संगठन प्रणाली है जो संगीतकारों या नर्तकियों को वंश परंपरा से जोड़ती है और एक विशेष संगीत शैली का पालन करती है।
- गुरु-शिष्य परंपरा का अर्थ शिष्यों को एक विशेष गुरु के अधीन सीखना तथा उनके संगीत ज्ञान और शैली को प्रसारित करना।
घराना |
संबंधित स्थान |
संस्थापक |
ग्वालियर |
ग्वालियर |
नत्थन खाँ |
आगरा |
आगरा |
हाजी सुजान खाँ |
रंगीला |
आगरा |
फैय्याज़ खान |
जयपुर |
जयपुर |
अल्लादिया खान |
किराना |
अवध |
अब्दुल वाहिद खान |
बनारस |
वाराणसी |
राम सहाई |
स्रोत: पी.आई.बी.
शासन व्यवस्था
प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना
चर्चा में क्यों?
भारत सरकार की मातृत्व लाभ योजना या प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (Pradhan Mantri Matru Vandana Yojana- PMMVY) में वित्त वर्ष 2020 तक 1.75 करोड़ से अधिक पात्र महिलाएँ शामिल हो चुकी हैं।
- वित्तीय वर्ष 2018 से 2020 के मध्य इस योजना के तहत 1.75 करोड़ पात्र लाभार्थियों को कुल 5,931.95 करोड़ रुपए का भुगतान किया गया है।
प्रमुख बिंदु:
योजना के बारे में:
- PMMVY एक मातृत्व लाभ योजना है जिसे 1 जनवरी, 2017 से देश के सभी ज़िलों में लागू है।
- यह महिला और बाल विकास मंत्रालय (Ministry of Women and Child Development) द्वारा संचालित एक केंद्र प्रायोजित योजना है।
प्रत्यक्ष लाभ अंतरण योजना:
- इसमें गर्भवती महिलाओं को दी जाने वाली नकद राशि का हस्तांतरण सीधे उनके बैंक खाते में किया जाता है ताकि वे अपनी पोषण संबंधी ज़रूरतों को पूरा कर सकें और आंशिक रूप से उनके वेतन के नुकसान की भरपाई की जा सके।
लक्षित लाभार्थी:
- वे महिलाएँ जो केंद्र सरकार या राज्य सरकारों या सार्वजनिक उपक्रमों में नियमित रोज़गार में संलग्न हैं तथा किसी भी कानून के तहत समान लाभ प्राप्त करती हैं, को छोड़कर सभी गर्भवती महिलाएंँ और स्तनपान कराने वाली माताएंँ (Pregnant Women and Lactating Mothers- PW&LM) इस योजना के लिये पात्र हैं।
- ऐसी सभी पात्र गर्भवती महिलाएँ और स्तनपान कराने वाली माताएँ जिन्होंने परिवार में पहली संतान के लिये 1 जनवरी, 2017 को या उसके बाद गर्भधारण किया हो ।
योजना के तहत प्राप्त लाभ:
- लाभार्थी को निम्नलिखित शर्तों को पूरा करने पर तीन किस्तों में 5,000 रुपए का नकद लाभ प्राप्त होता है:
- गर्भधारण का शीघ्र पंजीकरण करने पर।
- प्रसव-पूर्व जाँच करने पर।
- बच्चे के जन्म का पंजीकरण और परिवार के पहले जीवित बच्चे के टीकाकरण का पहला चक्र पूरा करने पर।
- पात्र लाभार्थियों को जननी सुरक्षा योजना (Janani Suraksha Yojana- JSY) के तहत भी नकद प्रोत्साहन राशि दी जाती है। इस प्रकार पात्र महिला को औसतन 6,000 रुपए की सहायता राशि प्राप्त होती है।
विशेष लक्षण: प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना कॉमन एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर ( Common Application Software- PMMVY-CAS) के माध्यम से केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा योजना के कार्यान्वयन की बारीकी से निगरानी की जाती है।
- PMMVY-CAS एक वेब आधारित सॉफ्टवेयर एप्लीकेशन है जो योजना के तहत प्रत्येक लाभार्थी की स्थिति को ट्रैक करने में सक्षम है, इसके परिणामस्वरूप लाभार्थी की किसी भी शिकायत का शीघ्र, जवाबदेही के साथ बेहतर तरीके से निवारण होता है।
जननी सुरक्षा योजना
जननी सुरक्षा योजना के बारे में:
- यह 100% केंद्र प्रायोजित योजना है जिसे गर्भवती महिलाओं के बीच संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देकर मातृ और शिशु मृत्यु दर को कम करने के उद्देश्य से लागू किया गया है।
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के आंँकड़ों के अनुसार:
- अधिकांश भारतीय राज्यों में नवजात/शिशु और बाल मृत्यु दर में गिरावट आई है।
- राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में किये गए 22 सर्वेक्षणों में नवजात मृत्यु दर (NMR-34), शिशु मृत्यु दर (IMR-47) और पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में मृत्यु दर (U5MR-56) के पंजीकरण का उच्चतम स्तर देखा गया, जबकि केरल में मृत्यु दर के सबसे कम मामले देखने को मिले।
- अधिकांश भारतीय राज्यों में नवजात/शिशु और बाल मृत्यु दर में गिरावट आई है।
- रजिस्ट्रार जनरल के सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (Sample Registration System- SRS) के कार्यालय द्वारा भारत में मातृ मृत्यु दर पर जारी विशेष बुलेटिन वर्ष 2016-18 (Special Bulletin on Maternal Mortality in India 2016-18) के अनुसार, भारत में मातृ मृत्यु दर (MMR) 2016-2018 के दौरान घटकर 113 (प्रति 1,00,000 जीवित जन्म) हो गया है जो वर्ष 2015-17 में 122 और वर्ष 2014-2016 में 130 था।
- संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals- SDGs) के तहत लक्ष्य 3.1 का उद्देश्य वैश्विक मातृ मृत्यु दर को कम करके 70/100,000 जीवित जन्मों तक करना है।
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के आंँकड़ों के अनुसार:
- मूल रूप से यह राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (National Health Mission- NHM) के तहत एक सुरक्षित मातृत्व हस्तक्षेप है।
लाभ:
- JSY के तहत पात्र गर्भवती महिलाओं द्वारा सरकारी या मान्यता प्राप्त निजी स्वास्थ्य सुविधा केंद्रों में प्रसव कराने पर उन्हें नकद सहायता सहायता राशि प्रदान की जाती हैं।(योजना का लाभ प्राप्त करने हेतु मांँ की उम्र और बच्चों की संख्या की कोई बाध्यता नहीं)।
- इस योजना में गर्भवती महिलाओं के बीच संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने हेतु मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता (Accredited Social Health Activist- ASHA) के रूप में जानी जाने वाली महिला स्वास्थ्य स्वयंसेवक को उसके बेहतर कार्य के लिये प्रोत्साहन राशि भी प्रदान की जाती है।
महिलाओं के पोषण और स्वास्थ्य पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करने से संबंधित अन्य योजनाएँ:
- इंदिरा गांधी मातृ सहयोग योजना (IGMSY):
- इस योजना का उद्देश्य गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं को बेहतर स्वास्थ्य और पोषण हेतु नकद प्रोत्साहन राशि प्रदान कर उन्हें एक अनुकूल वातावरण प्रदान करना है।
- इसे महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
- केरल की कुदुम्बश्री योजना:
- इस योजना को वर्ष 1998 में केरल में सामुदायिक कार्रवाई के माध्यम से गरीबी का पूर्ण उन्मूलन करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था। यह देश की सबसे बड़ी महिला सशक्तिकरण परियोजना है। इसके तीन घटक हैं- माइक्रोक्रेडिट (Microcredit) उद्यमिता (Entrepreneurship) और सशक्तीकरण (Empowerment)।
- पोषण अभियान:
- मार्च 2018 में शुरू किये गए पोषण अभियान (POSHAN Abhiyaan) का लक्ष्य बच्चों की पोषण स्थिति (0-6 वर्ष) और गर्भवती महिलाओं तथा स्तनपान कराने वाली माताओं की स्थिति में समयबद्ध तरीके से सुधार लाना है।
- एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS) योजना:
- यह योजना 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों और महिलाओं सहित कमज़ोर समूहों को लक्षित करती है।
- इसे महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
EPF के ब्याज पर कर अधिरोपण
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय बजट 2021-22 में कर्मचारियों द्वारा भविष्य निधि (Provident Fund- PF) में किये जाने वाले निवेश पर कर अधिरोपित करने का प्रस्ताव दिया गया है। यह कर अधिरोपण निवेश की राशि 2.5 लाख रुपए से अधिक होने की स्थिति में किया जाएगा।
- वित्त मंत्रालय द्वारा प्रत्येक माह भविष्य निधि में 1 करोड़ रुपए से अधिक के निवेश पर चिंता व्यक्त करते हुए कर्मचारियों को कर रियायत के साथ सुनिश्चित प्रतिफल की प्राप्ति को अनुचित बताया गया है।
- कर्मचारी भविष्य निधि (Employees’ Provident Fund- EPF) को कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (Employees’ Provident Fund Organisation- EPFO) के तहत व्यवस्थित किया जाता है।
- EPFO एक सरकारी संगठन है जो भारत में संगठित क्षेत्र में संलग्न कर्मचारियों हेतु भविष्य निधि (Provident Fund) और पेंशन खातों (Pension Accounts) का प्रबंधन करता है।
प्रमुख बिंदु:
कर्मचारी भविष्य निधि (EPF) योजना के बारे में:
- कर्मचारी भविष्य निधि योजना सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों के कर्मचारियों के लिये उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त कोई भी संगठन जिसमें कम-से-कम 20 व्यक्तियों को नियुक्ति हो, अपने कर्मचारियों को EPF का लाभ प्रदान करने हेतु अनिवार्य रूप से उत्तरदायी है।
- कर्मचारी भविष्य निधि (EPF) योजना में नियोक्ता (Employer) और कर्मचारी (Employee) दोनों कर्मचारी के मासिक वेतन (मूल वेतन और महँगाई भत्ता) से 12% का योगदान करते हैं।
- नियोक्ता की 12% की हिस्सेदारी में से 8.33% कर्मचारी पेंशन योजना (Employees Pension Scheme- EPS) में जमा किया जाता है।
- ईपीएफ योजना उन कर्मचारियों के लिये अनिवार्य है जिनका मूल वेतन प्रतिमाह15,000 रुपए तक है।
- EPFO द्वारा हर वर्ष EPF ब्याज दर घोषित की जाती है।
- EPFO कर्मचारी भविष्य निधि और विविध प्रावधान अधिनियम, 1952 (Miscellaneous Provisions Act, 1952) को लागू करता है।
- ईपीएफ अधिनियम, 1952 कारखानों और अन्य प्रतिष्ठानों में कार्य करने वाले कर्मचारियों को संस्थागत भविष्य निधि प्रदान करता है।
- यह बचत योजना आयकर अधिनियम की धारा 80(c) के तहत कर छूट प्रदान करती है।
आय पर प्रस्तावित कर:
- EPF और ग्रेच्युटी में वार्षिक योगदान तथा EPF में स्वैच्छिक योगदान को जोड़ा जाएगा। यदि इन सभी का कुल योगदान 2.5 लाख रुपए से अधिक है, तो उस पर मिलने वाली ब्याज आय पर सीमांत कर की दर से कर लगाया जाएगा जिससे व्यक्ति की आय में कमी आती है।
- महत्त्व पूर्ण रूप से केवल कर्मचारियों से प्राप्त होने वाली राशि/योगदान को कराधान प्रयोजनों की गणना में प्रयोग किया जाएगा। EPF की गणना प्रति नियोक्ता योगदान के आधार पर नही की जाएगी ।
- एक वर्ष के अतिरिक्त योगदान पर ब्याज आय पर हर वर्ष कर लगेगा।
- इसका अर्थ है कि यदि वित्त वर्ष 2022 में पीएफ में किसी व्यक्ति का वार्षिक योगदान 10 लाख रुपए है तो 7.5 लाख रुपए की ब्याज आय पर न केवल वित्त वर्ष 2022 में बल्कि बाद के सभी वर्षों में कर लगेगा।
- EPF योगदानकर्त्ताओं का औसत सामान्य इस नए प्रस्ताव से प्रभावित नहीं होगा।
PF अंशदान से प्राप्त होने वाली आय पर कर लगाने का कारण:
- योजना के दुरुपयोग को रोकना:
- सरकार के समक्ष ऐसे कई मामले आए हैं जहांँ कर्मचारियों द्वारा PF निधि में बड़ी मात्रा में योगदान दिया गया है और उन्हें सभी चरणों (योगदान, ब्याज संचय और निकासी) में कर छूट का लाभ मिल रहा है।
- चूंँकि करदाताओं को कई प्रकार की कर छूट प्रदान की जाती है। अत: हाई नेटवर्थ इंडिविजुअल्स (High Networth Individuals- HNI) को एक सुनिश्चित ब्याज (EPFO के तहत) और एक साथ कर-मुक्त आय अर्जित करने के लिये EPF में बड़ी रकम जमा करने की अनुमति देना अनुचित है।
- हाई नेटवर्थ इंडिविजुअल्स: इसमें उन लोगों को शामिल किया जाता है जिनके पास एक निश्चित आंँकड़े से ऊपर की निवेश योग्य संपत्ति होती है।
- इससे पहले सरकार ने कर्मचारी कल्याण योजनाओं जैसे कि EPF या नेशनल पेंशन स्कीम आदि में नियोक्ताओं के योगदान की सीमा को 7.5 लाख रुपए प्रतिवर्ष तक सीमित कर दिया था।
- हालाँकि सरकार के साथ-साथ निजी क्षेत्र के कर्मचारियों को भी सामान्य भविष्य निधि (सरकारी कर्मचारियों के लिये उपलब्ध) या EPF (सरकारी और निजी क्षेत्र के कर्मचारियों के लिये उपलब्ध) में वैधानिक कटौती के ऊपर स्वैच्छिक योगदान करने की अनुमति है।
- PF योगदानकर्त्ताओं के मध्य इक्विटी को बढ़ावा देना:
- एक अनुमान के अनुसार, 4.5 करोड़ ईपीएफ खातों में से लगभग 0.27% सदस्यों के पास औसत 5.92 करोड़ रुपए का कोष था। प्रतिवर्ष ‘कर मुक्त सुनिश्चित ब्याज’ (Tax-free Assured Interest) पर 50 लाख रुपए से अधिक की राशि प्राप्त की जाती थी।
- यह कल्याणकारी योजना का दुरुपयोग है, जिसका उद्देश्य बचत को बढ़ावा देना और निम्न एवं मध्यम आय वर्ग के कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना है।
- एक अनुमान के अनुसार, 4.5 करोड़ ईपीएफ खातों में से लगभग 0.27% सदस्यों के पास औसत 5.92 करोड़ रुपए का कोष था। प्रतिवर्ष ‘कर मुक्त सुनिश्चित ब्याज’ (Tax-free Assured Interest) पर 50 लाख रुपए से अधिक की राशि प्राप्त की जाती थी।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
कृषि निर्यात में बढ़ोतरी
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय (Ministry of Commerce and Industry) के अनुसार, कृषि निर्यात में अप्रैल-दिसंबर 2020 की अवधि के दौरान 9.8% की वृद्धि दर्ज की गई है।
- भारत सरकार द्वारा निर्यात में सुधार के लिये मर्चेंडाइज़ एक्सपोर्ट्स फ्रॉम इंडिया स्कीम (Merchandise Exports from India Scheme-MEIS) की जगह निर्यात किये जाने वाले उत्पादों को निर्यात शुल्क और कर में छूट (Remission of Duties or Taxes on Export Product-RoDTEP) स्कीम लॉन्च की गई थी।
प्रमुख बिंदु
अप्रैल-दिसंबर 2020 का डेटा:
- कुल माल निर्यात में 15.5% गिरावट दर्ज की गई।
- कृषि निर्यात में इसी अवधि के दौरान 9.8% की वृद्धि हुई है।
- भारत में निर्मित सभी सामानों को कुल व्यापारिक निर्यात में शामिल किया जाता है, जबकि कृषि निर्यात में केवल कृषि उत्पाद शामिल होते हैं।
कृषि निर्यात में वृद्धि के कारण:
- बढ़ती अंतर्राष्ट्रीय कीमतें:
- मांगों का सामान्यीकरण:
- अधिकांश देशों में मई 2020 के बाद अपनी अर्थव्यवस्थाओं को खोलने (कोविड-19 के समय लगे लॉकडाउन से) की मांग बढ़ने लगी और साथ ही अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में भी बढ़ोतरी हो रही थी। अर्थव्यवस्थाओं के खोलने के बाद उत्पादों की पूर्ति कम पड़ने लगी। इस स्थिति ने भारतीय कृषि उत्पादों के निर्यात को अवसर में बदल दिया।
- भारतीय कृषि उत्पादों में प्रमुखतः गैर-बासमती चावल, चीनी, तिलहन भोजन, कपास, गेहूँ और अन्य अनाज (मुख्य रूप से मक्का) आदि का निर्यात किया गया।
- खाद्य और कृषि संगठन (Agricultural Organization- FAO) ने जनवरी 2021 में अपना नवीनतम खाद्य मूल्य सूचकांक (Food Price Index- FPI) जारी किया, जिसमें दिखाया गया कि एफपीआई 78 महीनों के उच्चतम स्तर पर पहुँच गया है।
- चीन द्वारा वस्तुओं का भंडारण:
- चीन (China) के भंडारण से वस्तुओं की वैश्विक कीमतों में वृद्धि हुई।
- इसने भूराजनीतिक तनावों के बीच रणनीतिक खाद्य भंडार बनाने के लिये मक्का, गेहूँ, सोयाबीन, चीनी, दूध पाउडर जैसी वस्तुओं के आयात को बढ़ा दिया था।
- मांगों का सामान्यीकरण:
- अनेक देशों में शुष्क मौसम:
- वर्तमान निर्यात पुनरुद्धार (Revival) अर्जेंटीना, ब्राज़ील, यूक्रेन, थाईलैंड और वियतनाम जैसे प्रमुख उत्पादक देशों में शुष्क मौसम की स्थिति का परिणाम है।
- रूस (दुनिया का सबसे बड़ा गेहूँ निर्यातक) और अर्जेंटीना (विश्व का एक प्रमुख खाद्य उत्पादक और खाद्य निर्यातक देश) ने उच्च घरेलू खाद्य मुद्रास्फीति के जवाब में अनाज नौवहन (Shipment) पर करों का अस्थायी निलंबन कर दिया।
- भारत में अनुकूल मानसून स्थिति:
- दूसरी ओर भारत को मौसम संबंधी गंभीर समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ा था। वर्ष 2019 और वर्ष 2020 दोनों में सर्दियों की समय पर शुरुआत के साथ-साथ वर्षा हुई।
- कृषि कार्य को लॉकडाउन में छूट:
- किसानों की रबी की फसल अच्छी हुई क्योंकि सरकार द्वारा कृषि संबंधी गतिविधियों को लॉकडाउन प्रतिबंध से मुक्त रखा गया था।
- बढ़ रहे निर्यात का महत्त्व:
- कृषि निर्यात का बढ़ना जारी रहता है तो मार्च 2021 में होने वाली अगली रबी की फसल की कीमत बढ़ाने में मदद मिल सकती है जिससे कृषि अंसतोष को शांत करने में मदद मिलेगी।
- भारत को इसके द्वारा USD 5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था के लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
- यह किसानों की आय को वर्ष 2022 तक दोगुना करने के महत्त्वालक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करेगा।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
DNA विधेयक से जुड़ी चिंताएँ
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विज्ञान और प्रौद्योगिकी, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन पर संसदीय स्थायी समिति ने अपनी एक सिफारिश में कहा है कि सरकार को डीएनए प्रौद्योगिकी (उपयोग और अनुप्रयोग) विनियमन विधेयक, 2019 के संदर्भ में व्यक्त की गई चिंताओं को संबोधित करना चाहिये, जिसमें अपराध स्थल से प्राप्त डीएनए प्रोफाइल का एक राष्ट्रीय डेटा बैंक बनाने और समुदायों को लक्षित किये जाने जैसी चिंताएँ शामिल हैं।
- गौरतलब है कि यह विधेयक एक केंद्रीय डेटा बैंक के अलावा क्षेत्रीय डेटा बैंक की स्थापना की बात करता है, परंतु डेटा के दुरुपयोग की संभावनाओं को कम करने के लिये संसदीय स्थायी समिति ने केवल एक राष्ट्रीय डेटा बैंक को स्थापित किये जाने की सिफारिश की है।
प्रमुख बिंदु:
डीएनए प्रौद्योगिकी (उपयोग और अनुप्रयोग) विनियमन विधेयक, 2019 (मुख्य प्रावधान):
- यह विधेयक अपराध, पितृत्व विवाद, प्रवास या आव्रजन और मानव अंगों के प्रत्यारोपण के मामलों में व्यक्तियों की पहचान स्थापित करने के लिये डीएनए प्रौद्योगिकी के उपयोग की अनुमति देता है।
- यह राष्ट्रीय और क्षेत्रीय डीएनए (डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड) डेटा बैंकों की स्थापना की परिकल्पना करता है, साथ ही प्रत्येक डीएनए डेटा बैंक में अपराध स्थल सूचकांक, संदिग्धों या विचाराधीन कैदियों तथा अपराधियों के सूचकांक को अलग-अलग तैयार कर सुरक्षित रखा जाएगा।
- इस विधेयक में एक डीएनए नियामक बोर्ड की स्थापना की बात कही गई है, जो डीएनए प्रयोगशालाओं और डेटाबैंक की स्थापना तथा इनके लिये आवश्यक दिशा-निर्देशों, मानकों तथा प्रक्रियाओं के निर्धारण जैसे मुद्दों पर केंद्र एवं राज्य सरकारों को सलाह देगा।
समिति द्वारा उठाए गए मुद्दे:
- डीएनए डेटा बैंक से जुड़े मुद्दे: अपराध स्थल से प्राप्त डीएनए प्रोफाइल के एक राष्ट्रीय डीएनए डेटा बैंक का जोखिम यह है कि इसमें लगभग सभी लोगों को शामिल किया जाएगा क्योंकि किसी अपराध स्थल पर अपराध के पहले और अपराध के बाद भी कई लोगों के डीएनए जमा हो सकते हैं और यह भी संभव है कि प्राप्त डीएनए से जुड़े लोगों का उस अपराध से कोई भी संबंध न हो।
- डीएनए प्रोफाइलिंग से जुड़े मुद्दे: इस विधेयक के प्रावधानों के तहत की जाने वाली डीएनए प्रोफाइलिंग का दुरुपयोग धर्म, जाति या राजनीतिक विचारों आदि जैसे कारकों के आधार पर समाज के विभिन्न वर्गों को लक्षित करने के लिये किया जा सकता है।
- डीएनए प्रोफाइलिंग वह प्रक्रिया है जिसके तहत एक विशिष्ट डीएनए पैटर्न, जिसे एक प्रोफाइल कहा जाता है, को एक व्यक्ति या शारीरिक ऊतक के नमूने से प्राप्त किया जाता है।
- गैर-आपराधिक पृष्ठभूमि के व्यक्तियों के डीएनए प्रोफाइल का संग्रहण:
- इस विधेयक में भविष्य में किसी अपराध की जाँच के लिये संदिग्धों, अपराधियों, पीड़ितों और उनके रिश्तेदारों के डीएनए प्रोफाइल को संग्रहीत करने का प्रस्ताव किया गया है।.
- विधेयक यह भी प्रावधान करता है कि दीवानी मामलों के लिये भी डीएनए प्रोफाइल डेटा बैंकों में संग्रहीत की जाएगी, हालाँकि इसके लिये एक स्पष्ट और अलग सूचकांक नहीं दिया गया है।
- समिति ने ऐसे डीएनए प्रोफाइल के भंडारण की आवश्यकता पर सवाल उठाया है, साथ ही समिति ने यह भी रेखांकित किया है कि इस प्रकार का भंडारण निजता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है और यह किसी सार्वजनिक उद्देश्य की पूर्ति भी नहीं करता है।
- सहमति:
- विधेयक के कई प्रावधानों में ‘सहमति’ की बात कही गई है परंतु उनमें से प्रत्येक मामले में एक मजिस्ट्रेट आसानी से सहमति के अधिकार की अवहेलना कर सकता है।
- इस विधेयक में उस स्थिति या कारण को स्पष्ट नहीं किया गया है जब मजिस्ट्रेट सहमति की अवहेलना कर सकता है।
- मज़बूत डेटा संरक्षण का अभाव:
- समिति ने राष्ट्रीय डीएनए डेटा बैंक में इतनी भारी संख्या में डीएनए प्रोफाइल रखे जाने पर उनकी सुरक्षा पर सवाल उठाया है।
विधेयक की आवश्यकता:
- अधिक संख्या में परीक्षण किये जाने की मांग:
- वर्तमान में भारत में डीएनए परीक्षण अत्यंत सीमित पैमाने पर किये जा रहे हैं, इस क्षेत्र में लगभग 30-40 डीएनए विशेषज्ञ, 15-18 प्रयोगशालाओं में प्रतिवर्ष 3,000 से कम मामलों की जाँच करते हैं, जो देश की कुल आवश्यकता का 2-3% प्रतिनिधित्व करता है।
- वर्तमान में एक उचित विनियमन के अभाव में डीएनए परीक्षण प्रयोगशालाओं के मानकों की निगरानी या उनका विनियमन नहीं किया जा सक्ता है।
- गुमशुदा की पहचान में सहायक:
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, भारत में प्रतिवर्ष लगभग 1,00,000 बच्चे लापता हो जाते हैं।
- इस विधेयक से आपदा पीड़ितों के साथ-साथ अज्ञात मृतकों की पहचान करने में भी सहायता मिलेगी और यह बलात्कार तथा हत्या जैसे जघन्य अपराधों को बार-बार दोहराने वाले अपराधियों को गिरफ्तार करने में सहायक होगा।
वैश्विक स्तर पर डीएनए प्रोफाइलिंग की स्वीकार्यता की स्थिति:
- यूएसए इंटरपोल के ग्लोबल डीएनए प्रोफाइलिंग सर्वे रिज़ल्ट 2016 के अनुसार,संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और चीन सहित विश्व के 69 देशों में राष्ट्रीय डीएनए डेटाबेस है।
- इन देशों के पास कम-से-कम 35,413,155 व्यक्तियों की आनुवंशिक जानकारी सुरक्षित है।
- डीएनए नमूने के निष्कर्ष, संग्रह और इसे बनाए रखने के लिये विभिन्न देशों के अलग-अलग नियम हैं।
- मानव आनुवंशिक डेटा पर घोषणा (Declaration on Human Genetic Data,) जिसे वर्ष 2003 में यूनेस्को के 32वें आम सम्मेलन में सर्वसम्मति से अपनाया गया था, का उद्देश्य मानव गरिमा का सम्मान और मानव आनुवंशिक डेटा तथा जैविक नमूनों के संग्रहण, प्रसंस्करण, उपयोग एवं भंडारण में मानव अधिकारों व मौलिक स्वतंत्रता की सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
जीनोम इंडिया प्रोजेक्ट(GIP):
- हाल ही में केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने जीनोम इंडिया प्रोजेक्ट (GIP) नामक एक महत्वाकांक्षी जीन-मैपिंग परियोजना को भी मंज़री दी है, जिसका उद्देश्य पहले चरण में भारत भर से 10,000 जीनोम के नमूने एकत्र करना और उनका अनुक्रमण करना है।
- जीन मैपिंग डीएनए प्रोफाइलिंग से अलग है क्योंकि डीएनए प्रोफाइलिंग किसी व्यक्ति की पहचान करने के लिये डीएनए के छोटे हिस्सों का उपयोग करता है, जबकि जीन मैपिंग में पूरे जीनोम का अनुक्रमण शामिल होता है।
- जीन मैपिंग वैज्ञानिक और चिकित्सा उपयोगों के लिये की जाती है, जबकि डीएनए प्रोफाइलिंग मुख्य रूप से फोरेंसिक और आपराधिक जाँच के लिये की जाती है।
आगे की राह:
- समिति का सुझाव है कि देश में जल्द ही एक सक्षम पारिस्थितिकी तंत्र बनाया जाना चाहिये, ताकि उच्चतम न्यायालय के विभिन्न फैसलों और संविधान की भावना के अनुरूप डीएनए प्रोफाइलिंग सुनिश्चित हो सके।
- निजता या डेटा संरक्षण बिल शीघ्र ही अपनाए जाने से यह व्यक्तियों को उनके अधिकारों के संरक्षण के अभाव में भी कुछ राहत प्रदान करेगा। साथ ही यह विशेष रूप से उच्चतम न्यायालय के निजता के अधिकार से जुड़े फैसले के बाद और भी महत्त्वपूर्ण हो गया है।