सतत् कृषि
प्रिलिम्स के लिये:सतत् कृषि, स्वदेशी बीज़ महोत्सव, पर्यावरणीय प्रबंधन, आर्थिक लाभप्रदता और सामाजिक समानता। मेन्स के लिये:सतत् कृषि, विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, उनके प्रतिरूप व कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पश्चिम बंगाल में स्वदेशी बीज महोत्सव ने देशी बीज किस्मों को बचाने और पारंपरिक ज्ञान के आदान-प्रदान के लिये किसानों के उत्कृष्ट प्रयासों को प्रदर्शित किया, जो सतत् कृषि प्रथाओं की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण उदाहरण है।
- यह महोत्सव एक्शनएड (ActionAid’s) के जलवायु न्याय अभियान का एक हिस्सा है, जो जलवायु परिवर्तन, जैविक खेती और स्वदेशी बीज पहुँच पर किसानों के मध्य सामंजस्य स्थापित करने की सुविधा प्रदान करता है।
- एक्शनएड का फोकस 22 भारतीय राज्यों में जलवायु लचीलेपन और सतत् कृषि पर है। गैर सरकारी संगठनों का लक्ष्य पूरे पश्चिम बंगाल में बीज बैंक स्थापित करना है।
सतत् कृषि क्या है?
- परिचय:
- सतत् कृषि का तात्पर्य कृषि और खाद्य उत्पादन के लिये एक समग्र दृष्टिकोण से है जिसका उद्देश्य कृषि प्रणालियों की दीर्घकालिक व्यवहार्यता सुनिश्चित करते हुए तथा भविष्य की पीढ़ियों के लिये प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित करते हुए भोजन एवं फाइबर की वर्तमान ज़रूरतों को पूरा करना है।
- इसमें फसल प्रतिरूप, जैविक खेती, सामुदायिक सहायक कृषि आदि जैसी विभिन्न प्रथाओं और सिद्धांतों को शामिल किया गया है, जो पर्यावरणीय प्रबंधन, आर्थिक लाभप्रदता तथा सामाजिक समानता पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
- लाभ:
- पर्यावरण संरक्षण: ऐसी प्रथाएँ जो पारिस्थितिक तंत्र, मृदा, जल और जैवविविधता पर प्रभाव को कम करती हैं। इसमें ऐसी पद्धतियों का प्रयोग करना शामिल है जो मृदा-अपरदन को कम करते हैं, जल का संरक्षण करते हैं और रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों के प्रयोग से बचते हैं या कम करते हैं।
- मृदा की उर्वरता और स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिये फसल चक्र, कवर क्रॉपिंग और कृषि-वानिकी जैसी तकनीकों को नियोजित किया जाता है।
- आर्थिक व्यवहार्यता: यह सुनिश्चित करना कि कृषि पद्धतियाँ किसानों के लिये आर्थिक रूप से व्यवहार्य हों, जिससे वे अपनी आजीविका बनाए रखते हुए उचित आय अर्जित कर सकें।
- इसमें ऐसी रणनीतियाँ शामिल हैं जो उत्पादकता बढ़ाती हैं, उत्पादन लागत कम करती हैं और स्थायी रूप से उत्पादित वस्तुओं के लिये बाज़ार खोलती हैं।
- सामाजिक समता: किसानों, उपभोक्ताओं और खाद्य प्रणाली में अन्य हितधारकों के बीच निष्पक्ष एवं न्यायसंगत संबंधों को बढ़ावा देना।
- इसमें खेतिहर मज़दूरों के लिये उचित वेतन और काम करने की स्थिति सुनिश्चित करना, ग्रामीण समुदायों का समर्थन करना एवं सभी के लिये स्वस्थ व पौष्टिक भोजन तक पहुँच को बढ़ावा देना शामिल है।
- जलवायु परिवर्तन के प्रति समुत्थानशीलता: ऐसी कृषि प्रणालियों का निर्माण करना जो जलवायु परिवर्तनशीलता और परिवर्तन के प्रति समुत्थानशील हों। सतत् कृषि पद्धतियों का लक्ष्य बदलती जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल ढलना, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना और समग्र जलवायु समुत्थानशक्ति में योगदान करना है।
- जैवविविधता संरक्षण: फसलों और पशुओं में विविध पारिस्थितिक तंत्र तथा आनुवंशिक विविधता का समर्थन करना। कीटों, बीमारियों और पर्यावरणीय परिवर्तनों के प्रति समुत्थानशीलता के लिये जैवविविधता को बनाए रखना महत्त्वपूर्ण है। इसमें स्थानीय और स्वदेशी फसल किस्मों को संरक्षित करना, साथ ही वन्यजीवों व परागणकों का समर्थन करने वाले विविध परिदृश्यों को बढ़ावा देना शामिल है।
- पर्यावरण संरक्षण: ऐसी प्रथाएँ जो पारिस्थितिक तंत्र, मृदा, जल और जैवविविधता पर प्रभाव को कम करती हैं। इसमें ऐसी पद्धतियों का प्रयोग करना शामिल है जो मृदा-अपरदन को कम करते हैं, जल का संरक्षण करते हैं और रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों के प्रयोग से बचते हैं या कम करते हैं।
भारत में सतत् कृषि की सीमाएँ क्या हैं?
- उच्च श्रम मांग: सतत् कृषि के लिये प्रायः पारंपरिक कृषि की तुलना में अधिक शारीरिक श्रम की आवश्यकता होती है, क्योंकि इसमें फसल चक्र, अंतर-फसल, जैविक उर्वरक और कीट प्रबंधन जैसी प्रथाएँ शामिल होती हैं।
- इससे उत्पादन लागत बढ़ सकती है और किसानों की लाभप्रदता कम हो सकती है।
- समय की खपत: सतत् कृषि के कार्यान्वन में और उपज प्राप्त करने में पारंपरिक कृषि की तुलना में अधिक समय लगता है क्योंकि यह प्राकृतिक प्रक्रियाओं तथा क्रमिक प्रगति पर निर्भर करती है।
- यह उन किसानों को हतोत्साहित कर सकता है जिन्हें तत्काल उपज की आवश्यकता होती है तथा उन्हें मौसम, बाज़ार एवं नीति परिवर्तन जैसी अनिश्चितताओं का सामना करना पड़ता है।
- सीमित उत्पादन क्षमता: सतत् कृषि भारत में खाद्यान्न की बढ़ती मांग को पूरा करने में सक्षम नहीं हो सकती है क्योंकि विशेषकर अल्पावधि में इसमें पारंपरिक कृषि की तुलना में कम पैदावार होती है ।
- यह विशेषकर एक बड़े तथा बढ़ती आबादी वाले देश में खाद्य सुरक्षा तथा गरीबी उन्मूलन के लिये एक चुनौती उत्पन्न कर सकता है ।
- हाल ही में श्रीलंकाई संकट जैविक कृषि की ओर स्थानांतरित करने के प्रयास के कारण उत्पन्न हुआ था।
- इसके परिणामस्वरूप चावल, जो कि श्रीलंका का प्रमुख आहार है, की औसत पैदावार में लगभग 30% की कमी देखी गई।
- उच्च पूंजी लागत: सतत् कृषि के लिये बुनियादी ढाँचे, उपकरण व इनपुट जैसे सिंचाई प्रणाली, सूक्ष्म सिंचाई उपकरण, जैविक उर्वरक एवं बीज में उच्च निवेश की आवश्यकता हो सकती है।
- यह उन छोटे तथा सीमांत किसानों के लिये एक बाधा हो सकता है जिनके पास ऋण तथा सब्सिडी तक पहुँच नहीं है।
- भंडारण और विपणन चुनौतियाँ: भारत में सतत् कृषि को भंडारण तथा विपणन चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि यह खराब होने वाले तथा विविध उत्पादों का उत्पादन करती है जिनके लिये उचित प्रबंधन एवं पैकेजिंग की आवश्यकता होती है।
- इससे फसल कटाई के बाद का नुकसान बढ़ सकता है तथा उपज की विपणन क्षमता कम हो सकती है, विशेष रूप से पर्याप्त प्रामाणीकरण एवं लेबलिंग प्रणालियों के अभाव में जो गुणवत्ता व उत्तरदायित्व सुनिश्चित करती हैं।
सतत् कृषि से संबंधित हालिया सरकारी पहल क्या हैं?
- सतत् कृषि पर राष्ट्रीय मिशन
- परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY)
- कृषि वानिकी पर उप-मिशन (SMAF)
- राष्ट्रीय कृषि विकास योजना
- उत्तर पूर्वी क्षेत्र हेतु मिशन जैविक मूल्य शृंखला विकास (MOVCDNER)
आगे की राह
- किसानों को प्रत्यक्ष भुगतान, जैविक आदानों के लिये सब्सिडी और फसल बीमा जैसी स्थायी प्रथाओं को अपनाने हेतु वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करना।
- सतत् कृषि प्रौद्योगिकियों और प्रथाओं के अनुसंधान तथा विकास में निवेश करना।
- किसानों को टिकाऊ कृषि पर प्रशिक्षण और जानकारी प्रदान करने के लिये कृषि विस्तार सेवाओं को मज़बूत करना।
- बेहतर बुनियादी ढाँचे, विपणन सहायता और उपभोक्ता जागरूकता अभियानों के माध्यम से स्थायी रूप से उत्पादित भोजन के लिये बाज़ार पहुँच में सुधार करना।
- भूमि समेकन कार्यक्रमों के माध्यम से भूमि विखंडन को संबोधित करना और संयुक्त कृषि पहल को बढ़ावा देना।
- पर्यावरण नियमों और उनके कार्यान्वयन को मज़बूत करना।
- भूमि स्वामित्व अधिकार, ऋण और संसाधनों तक पहुँच तथा निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में भागीदारी के माध्यम से कृषि में महिलाओं को सशक्त बनाना।
सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न1. ‘गहन बाजरा संवर्द्धन के माध्यम से पोषण सुरक्षा हेतु पहल’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2016)
नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: C मेन्स:प्रश्न1. एकीकृत कृषि प्रणाली (IFS) किस सीमा तक कृषि उत्पादन को संधारित करने में सहायक है? (2019) |
भारतीय जेलों में जाति आधारित भेदभाव
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने हाल ही में एक जनहित याचिका (PIL) पर केंद्र और 11 राज्यों को नोटिस जारी किया, जिसमें कारागारों/जेलों में कैदियों के साथ जाति-आधारित भेदभाव एवं अलगाव का आरोप लगाया गया था तथा राज्य जेल मैनुअल के तहत उन प्रावधानों को निरस्त करने के निर्देश देने की मांग की गई थी जो इस तरह की प्रथाओं को अनिवार्य करते हैं।
PIL में उजागर किये गए जाति आधारित भेदभाव के कौन-से उदाहरण हैं?
- भेदभाव के उदाहरण:
- जनहित याचिका मध्य प्रदेश, दिल्ली और तमिलनाडु की जेलों के उदाहरणों को उजागर करती है, जहाँ खाना पकाने का काम प्रमुख जातियों को आवंटित किया जाता है, जबकि “विशिष्ट निचली जातियों” को झाड़ू लगाने और शौचालयों की सफाई जैसे छोटे काम सौंपे जाते हैं।
- भारत में जेल प्रणाली पर भेदभावपूर्ण प्रथाओं को कायम रखने का आरोप है, जिसमें जाति पदानुक्रम के आधार पर श्रम का विभाजन और बैरकों का जाति-आधारित अलगाव शामिल है।
- जाति-आधारित श्रम वितरण को औपनिवेशिक भारत का निशान/अवशेष माना जाता है और इसे अपमानजनक एवं कष्टकर माना जाता है, जो कैदियों के सम्मान के साथ जीवन के अधिकार का उल्लंघन करता है।
- जनहित याचिका मध्य प्रदेश, दिल्ली और तमिलनाडु की जेलों के उदाहरणों को उजागर करती है, जहाँ खाना पकाने का काम प्रमुख जातियों को आवंटित किया जाता है, जबकि “विशिष्ट निचली जातियों” को झाड़ू लगाने और शौचालयों की सफाई जैसे छोटे काम सौंपे जाते हैं।
- राज्य जेल मैनुअल मंज़ूरी:
- याचिका में दावा किया गया है कि विभिन्न राज्यों में जेल मैनुअल, जेल प्रणाली के भीतर जाति-आधारित भेदभाव और जबरन श्रम को मंज़ूरी देते हैं।
- राजस्थान कारागार नियम, 1951:
- इस नियम के तहत जाति के आधार पर मेहतरों को शौचालयों और ब्राह्मणों को रसोईयों की ज़िम्मेदारी सौंपी गई।
- तमिलनाडु में पलायमकोट्टई सेंट्रल जेल:
- याचिका में तमिलनाडु के पलायमकोट्टई सेंट्रल जेल में कैदियों के जाति-आधारित अलगाव को उजागर किया गया है, जो थेवर, नादर और पल्लार को अलग-अलग वर्गों में विभाजित करने का संकेत देते हैं।
- पश्चिम बंगाल जेल कोड:
- मेथर या हरि जाति, चांडाल और अन्य जातियों के कैदियों को झाड़ू-पोंछा लगाने जैसे छोटे-मोटे काम सौंपने के मामले।
- राजस्थान कारागार नियम, 1951:
- मॉडल जेल मैनुअल दिशानिर्देश, 2003:
- याचिका में वर्ष 2003 के मॉडल जेल मैनुअल का हवाला दिया गया है, जिसमें सुरक्षा, अनुशासन और संस्थागत कार्यक्रमों के आधार पर वर्गीकरण के लिये दिशानिर्देशों पर ज़ोर दिया गया है।
- यह सामाजिक-आर्थिक स्थिति, जाति या वर्ग के आधार पर किसी भी वर्गीकरण के खिलाफ तर्क देता है।
- याचिका में दावा किया गया है कि विभिन्न राज्यों में जेल मैनुअल, जेल प्रणाली के भीतर जाति-आधारित भेदभाव और जबरन श्रम को मंज़ूरी देते हैं।
- मौलिक अधिकार:
- याचिका में कैदियों के मौलिक अधिकारों पर सुनील बत्रा बनाम दिल्ली प्रशासन (1978) मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का हवाला देते हुए तर्क दिया गया है कि केवल कैदी होने से कोई व्यक्ति मौलिक अधिकार या समानता कोड नहीं खो देता है।
- भेदभावपूर्ण प्रावधानों को निरस्त करने का आह्वान:
- याचिका में कैदियों के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा और जेल प्रणाली के भीतर समानता का समर्थन करते हुए, राज्य जेल मैनुअल में भेदभावपूर्ण प्रावधानों को निरस्त करने की आवश्यकता पर बल दिया गया है।
जेलों में जातिगत भेदभाव पर सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या हैं?
- भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने पाया कि 10 से अधिक राज्य जेल मैनुअल जाति-आधारित भेदभाव और जबरन श्रम का समर्थन करते हैं।
- राज्यों में उत्तर प्रदेश, ओडिशा, झारखंड, केरल, पश्चिम बंगाल, मध्यप्रदेश, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना, पंजाब और तमिलनाडु शामिल हैं।
- जाति-आधारित भेदभाव, अलगाव और जेलों के अंदर विमुक्त जनजातियों के साथ “आदतन अपराधियों (habitual offenders)” के रूप में व्यवहार को SC द्वारा “बहुत महत्त्वपूर्ण मुद्दा” माना जाता है।
- SC ने कथित भेदभावपूर्ण प्रथाओं के त्वरित और व्यापक समाधान की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
- SC ने नोटिस भेजकर याचिका पर राज्यों और केंद्र से चार हफ्ते के भीतर जवाब मांगा।
कानून भारतीय जेलों के अंदर जातिगत भेदभाव की अनुमति कैसे देते हैं?
- औपनिवेशिक नीतियों की विरासत:
- औपनिवेशिक विरासत में निहित भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली मुख्य रूप से सुधार या पुनर्वास के बजाय सज़ा पर ध्यान केंद्रित करती है।
- लगभग 130 वर्ष पुराना ‘जेल अधिनियम,1894’, कानूनी ढाँचे की पुरानी प्रकृति को रेखांकित करता है।
- इस अधिनियम में कैदियों के सुधार और पुनर्वास के लिये प्रावधानों का अभाव है।
- मौजूदा कानूनों में कमियों को पहचानते हुए, गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs-MHA) ने ‘जेल अधिनियम, 1894’, ‘कैदी अधिनियम, 1900’ और ‘कैदी स्थानांतरण अधिनियम, 1950’ की समीक्षा की।
- इस समीक्षा से प्रासंगिक प्रावधानों को भविष्योन्मुखी ‘आदर्श कारागार अधिनियम, 2023’ में शामिल किया गया।
- आदर्श कारागार अधिनियम, 2023 के प्रभावी कार्यान्वयन, जिसे मई 2023 में गृह मंत्रालय द्वारा अंतिम रूप दिया गया था, से जेल की स्थितियों और प्रशासन में सुधार एवं कैदियों के मानवाधिकारों तथा गरिमा की रक्षा की उम्मीद है।
- इस समीक्षा से प्रासंगिक प्रावधानों को भविष्योन्मुखी ‘आदर्श कारागार अधिनियम, 2023’ में शामिल किया गया।
- जेल नियमावली:
- राज्य-स्तरीय जेल मैनुअल, आधुनिक जेल प्रणाली की स्थापना के बाद से काफी हद तक अपरिवर्तित, औपनिवेशिक और जातिगत दोनों मानसिकताओं को दर्शाते हैं।
- मौजूदा जेल मैनुअल जाति व्यवस्था के केंद्रीय आधार को लागू करते हैं, जिसमें शुद्धता और अशुद्धता की धारणा पर ज़ोर दिया जाता है।
- राज्य जेल मैनुअल में कहा गया है कि सफाई और झाडू लगाने जैसे कर्त्तव्यों को विशिष्ट जातियों के सदस्यों द्वारा किया जाना चाहिये, जिससे जाति-आधारित भेदभाव कायम रहता है।
- जेल मैनुअल, जैसे कि पश्चिम बंगाल में धारा 741 के तहत, सभी कैदियों के लिये भोजन पकाने और ले जाने पर “सवर्ण हिंदुओं” के एकाधिकार की रक्षा करते हैं।
- राज्य जेल मैनुअल में कहा गया है कि सफाई और झाडू लगाने जैसे कर्त्तव्यों को विशिष्ट जातियों के सदस्यों द्वारा किया जाना चाहिये, जिससे जाति-आधारित भेदभाव कायम रहता है।
- छुआछूत के खिलाफ संवैधानिक और कानूनी प्रावधानों के बावजूद, जेल प्रशासन में जाति-आधारित नियम कायम हैं।
- मैनुअल स्कैवेंजर्स के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013:
- 2013 के अधिनियम में मैनुअल स्कैवेंजर्स की प्रथा पर प्रतिबंध के बावजूद, यह स्पष्ट रूप से जेल प्रशासन को शामिल नहीं करता है; इस प्रकार, जेल मैनुअल जो जेलों में जातिगत भेदभाव और मैला ढोने की अनुमति देता है, अधिनियम का उल्लंघन नहीं हैं।
- मैनुअल स्कैवेंजिंग से आशय शुष्क शौचालयों, खुली नालियों और सीवरों से मानव मल और अन्य अपशिष्ट पदार्थों को मैन्युअल रूप से साफ करने, संभालने और निपटाने की प्रथा से है।
- 2013 के अधिनियम में मैनुअल स्कैवेंजर्स की प्रथा पर प्रतिबंध के बावजूद, यह स्पष्ट रूप से जेल प्रशासन को शामिल नहीं करता है; इस प्रकार, जेल मैनुअल जो जेलों में जातिगत भेदभाव और मैला ढोने की अनुमति देता है, अधिनियम का उल्लंघन नहीं हैं।
आगे की राह
- राज्यों को वर्ष 2015 में नेल्सन मंडेला नियमों के आधार पर गृह मंत्रालय द्वारा जारी मॉडल जेल मैनुअल, 2016 को अपनाना चाहिये।
- संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2015 में नेल्सन मंडेला नियमों को अपनाया, जिसमें सभी कैदियों के लिये सम्मान एवं गैर-भेदभाव पर बल दिया गया।
- न्यायालयों को भेदभावपूर्ण प्रावधानों को समाप्त करने, मौलिक अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने तथा जेल प्रणाली में समानता को बढ़ावा देने के लिये न्यायिक हस्तक्षेप पर विचार करना चाहिये।
- सुधारों के कार्यान्वयन पर नज़र रखने के लिये प्रभावी ट्रैकिंग उपकरण प्रदान करना साथ ही बेहतर न्यायपूर्ण जेल प्रणाली के निर्माण के लिये अधिकारियों को ज़िम्मेदार बनाया है।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष प्रश्नमेंस:प्रश्न1. “जाति व्यवस्था नई पहचान के साथ सहयोगी रूप धारण कर रही है। इसलिये भारत में जाति व्यवस्था को समाप्त नहीं किया जा सकता।” टिप्पणी कीजिये। (2018) प्रश्न2. स्वतंत्रता के बाद से अनुसूचित जनजातियों (ST) के खिलाफ भेदभाव को संबोधित करने के लिये राज्य द्वारा दो प्रमुख कानूनी पहल क्या हैं? (2017) |
सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय वर्षांत समीक्षा, 2023
प्रिलिम्स के लिये:विकलांग व्यक्तियों के सशक्तीकरण विभाग (DEPwD), सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा पहल मेन्स के लिये:सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की वर्षांत समीक्षा, विभाग की पहल और उपलब्धियाँ |
स्रोत:पी. आई. बी.
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वर्ष 2023 के लिये सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के दिव्यांगजन सशक्तीकरण विभाग (DEPwD) की वर्षांत समीक्षा जारी की गई।
पहल और उपलब्धियों की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- समावेश के लिये ऐतिहासिक सभाएँ और त्योहार:
- विभाग ने राष्ट्रपति भवन में एक विशेष सभा और गोवा में भारत के पहले समावेशन महोत्सव (Purple Fest) जैसे कार्यक्रमों की मेज़बानी की, जिसमें हज़ारों दिव्यांगजन और ट्रांसजेंडर शामिल हुए, विश्व रिकॉर्ड स्थापित किये गए तथा अपनेपन की भावना को बढ़ावा दिया गया।
- विकलांगता क्षेत्र में भारत-दक्षिण अफ्रीका सहयोग:
- केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारत सरकार और दक्षिण अफ्रीका सरकार के बीच दिव्यांगता क्षेत्र में सहयोग पर केंद्रित एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किये।
- दिव्य कला मेला:
- वर्ष भर विभिन्न शहरों में आयोजित होने वाला दिव्य कला मेला 2023, विकलांग व्यक्तियों के लिये समग्र विकास और सशक्तीकरण को बढ़ावा देने की सरकार की प्रतिबद्धता का प्रमाण है।
- प्रधानमंत्री की आत्मनिर्भर भारत पहल के अनुरूप दृष्टिकोण के साथ, सरकार का लक्ष्य भारत के समग्र विकास में दिव्यांग व्यक्तियों की समान भागीदारी सुनिश्चित करना है।
- विकलांगता जागरूकता दिवस:
- DEPwD ने 4 जनवरी को विश्व ब्रेल दिवस से लेकर 2023 में 3 दिसंबर, 2023 को दिव्यांगजन व्यक्तियों के अंतर्राष्ट्रीय दिवस जैसे विभिन्न विकलांगता जागरूकता के उपलक्ष्य में एक वर्ष तक चलने वाले उत्सव की शुरुआत की।
- उपलब्धियों की पहचान:
- सरकार ने एबिलिंपिक्स विजेताओं को सम्मानित किया, भारतीय बधिर क्रिकेट टीम और पैरा तैराक श्री सतेंद्र सिंह लोहिया को सम्मानित किया, विकलांगता के क्षेत्र में उत्कृष्टता का जश्न मनाया तथा उनके योगदान को मान्यता दी।
- पहल और सुधार:
- सरकार ने वास्तुशिल्प कार्यक्रमों में सार्वभौमिक पहुँच पाठ्यक्रमों को एकीकृत करने, UDID (यूनिक डिसेबिलिटी आईडी) पोर्टल के माध्यम से गुमनाम डेटा जारी करने और कौशल प्रशिक्षण, रोज़गार के अवसरों तथा ऑनलाइन मामले की निगरानी के लिये पोर्टल पेश करने जैसे परिवर्तनकारी कार्यक्रम शुरू किये।
- उद्यमिता के माध्यम से सशक्तीकरण:
- सरकार ने उद्यम पहल के माध्यम से 3,000 विकलांग व्यक्तियों को समर्थन और सशक्त बनाने, सरकार, कॉर्पोरेट तथा संस्थानों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने के लिये संस्थानों के साथ भागीदारी की।
- प्रौद्योगिकी और सुलभ संसाधन:
- सरकार ने सुगम्यपुस्तकालय के माध्यम से सुलभ पुस्तकों को सुनिश्चित करने के साथ-साथ भारतीय सांकेतिक भाषा (Indian Sign Language-ISL) शब्दकोश शब्द, वीडियो रिले सेवा और भारतीय सांकेतिक भाषा में ऑनलाइन पाठ्यक्रम शुरू किये।
- खेल और उच्च तकनीक प्रशिक्षण केंद्र:
- मध्य प्रदेश के ग्वालियर में दिव्यांगजनों के लिये भारत के पहले हाई-टेक खेल प्रशिक्षण केंद्र का उद्घाटन किया गया, जिसका नाम पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर रखा गया है, जिसमें खेल और प्रतिभा निखारने में समान अवसरों पर ज़ोर दिया गया है।
- कानूनी समर्थन और वित्तीय समावेशन:
- प्रभावशाली निर्णय दिये, दिव्यांगजन उधारकर्त्ताओं को ब्याज दर में छूट प्रदान की, एनडीएफडीसी ऋणों के माध्यम से वित्तीय समावेशन को बढ़ावा दिया और पढ़ने के लिये सार्वभौमिक डिज़ाइन केंद्रों के लिये सहयोग किया।
- दिव्यांगजन उधारकर्त्ताओं को ब्याज दर में छूट, NDFDC ऋण के माध्यम से वित्तीय समावेशन और सार्वभौमिक डिज़ाइन रीडिंग केंद्रों पर सहयोग सहित महत्त्वपूर्ण निर्णय दिये।
- DEPwD ने NDFDC ऋण के तहत दिव्यांगजन उधारकर्त्ताओं को 1% ब्याज दर में छूट की घोषणा की है।
- विकलांग व्यक्ति शिविर सहायता (ADIP) योजना:
- इस योजना में उल्लेखनीय उपलब्धियाँ हासिल हुई हैं, जिसमें कुल 368.05 करोड़ रुपए की सहायता अनुदान के साथ 2.91 लाख लाभार्थी लाभान्वित हुए हैं।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष प्रश्नQ. भारत लाखों विकलांग व्यक्तियों का घर है। कानून के तहत उन्हें क्या लाभ उपलब्ध हैं? (2011)
ऊपर दिये गए कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) |
ULFA के साथ शांति समझौता
प्रिलिम्स के लिये:यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम, असम समझौता, ऑपरेशन बजरंग, सशस्त्र बल विशेष शक्तियाँ अधिनियम, 1955 का नागरिकता अधिनियम, ULFA के साथ शांति समझौता मेन्स के लिये:ULFA के साथ शांति समझौते के प्रमुख प्रावधान, हालिया शांति समझौते को बढ़ाने के लिये अतिरिक्त विचार। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (ULFA) के वार्ता समर्थक गुट ने हाल ही में केंद्र और असम सरकार के साथ त्रिपक्षीय शांति समझौते पर हस्ताक्षर किये।
ULFA के साथ शांति समझौते के प्रमुख प्रावधान क्या हैं?
- प्रसंग और इतिहास:
- पृष्ठभूमि: 19वीं शताब्दी से, असम की समृद्ध संस्कृति को इसके समृद्ध चाय, कोयला और तेल उद्योगों द्वारा आए प्रवासियों की आमद के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ा है।
- विभाजन और फिर पूर्वी पाकिस्तान/बांग्लादेश से आए शरणार्थियों के कारण हुई इस आमद ने स्थानीय आबादी के बीच असुरक्षा को बढ़ा दिया।
- संसाधन प्रतिस्पर्द्धा छह वर्ष के जन आंदोलन का कारण बनी है, जिसकी परिणति वर्ष 1985 के असम समझौते में हुई, जिसका उद्देश्य राज्य में विदेशियों के मुद्दे को संबोधित करना था।
- ULFA की उत्पत्ति: ULFA का गठन वर्ष 1979 में भारत के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष के माध्यम से एक स्वतंत्र असम का समर्थन करते हुए किया गया था।
- एक दशक से अधिक समय में, ULFA ने म्याँमार, चीन एवं पाकिस्तान में सदस्यों की भर्ती की और उन्हें प्रशिक्षित किया, एक संप्रभु असम की स्थापना के लिये अपहरण व हत्याओं का सहारा लिया।
- वर्ष 1990 में सरकार के ऑपरेशन बजरंग के परिणामस्वरूप व्यापक संख्या में ULFA विद्रोही पकड़े गये। इस दौरान असम को 'अशांत क्षेत्र' घोषित किया गया, जिसके बाद राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा और सशस्त्र बल विशेष शक्तियाँ अधिनियम (Armed Forces Special Powers Act- AFSPA) लागू करना पड़ा।
- दीर्घकालिक शांति वार्ता: ULFA, भारत सरकार और असम राज्य सरकार के बीच वार्ता वर्ष 2011 में शुरू हुई।
- पृष्ठभूमि: 19वीं शताब्दी से, असम की समृद्ध संस्कृति को इसके समृद्ध चाय, कोयला और तेल उद्योगों द्वारा आए प्रवासियों की आमद के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ा है।
- हालिया शांति समझौता:
- महत्त्वपूर्ण पद:
- ULFA द्वारा:
- हिंसा समाप्त कर उनके संगठन को भंग कर देना।
- लोकतांत्रिक प्रक्रिया से जुड़ना।
- हथियार और शिविर समर्पण करना।
- सरकार द्वारा:
- असमिया पहचान, संस्कृति और भूमि अधिकारों के संबंध में ULFA की चिंताओं का समाधान करना।
- असम के समग्र विकास के लिये ₹1.5 लाख करोड़ का निवेश करना।
- असम में भविष्य के परिसीमन अभ्यास के लिये वर्ष 2023 परिसीमन अभ्यास के लागू सिद्धांतों का पालन करना।
- विधायी सुरक्षा उपाय: समझौते का उद्देश्य असम विधानसभा में गैर-स्वदेशी समुदायों के प्रतिनिधित्व को प्रतिबंधित करना है और नागरिकता अधिनियम 1955 की विशिष्ट धाराओं से छूट की मांग करना है।
- ULFA द्वारा:
- महत्त्वपूर्ण पद:
हालिया शांति समझौते को बढ़ाने के लिये अतिरिक्त विचार क्या होने चाहिये?
- पारदर्शिता और दायित्व: समझौते के प्रावधानों के पारदर्शी कार्यान्वयन के लिये तंत्र स्थापित करना और ज़िम्मेदार पक्षों को उनकी प्रतिबद्धताओं के लिये जवाबदेह बनाना।
- वार्ता-विरोधी गुट के साथ जुड़ाव: एकीकृत समाधान और शांति समझौते की व्यापक स्वीकृति की दिशा में कार्य करने के लिये ULFA के वार्ता-विरोधी गुट के साथ रणनीतिक रूप से जुड़ना।
- कानूनी सुरक्षा उपाय: यह सुनिश्चित करना कि विधायी परिवर्तन या सुधार संवैधानिक सिद्धांतों के अनुरूप हों तथा सभी नागरिकों के अधिकारों की रक्षा की जाए तथा जातीयता अथवा मूल के आधार पर कोई भेदभाव न हो।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: सीमा पार विद्रोह को रोकने और क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने के लिये पड़ोसी देशों के साथ सहयोग सुनिश्चित करना।
- दीर्घकालिक विकास योजनाएँ: क्षेत्र में समग्र विकास को बढ़ावा देने के लिये तत्काल निवेश से परे स्थायी और विस्तृत विकासात्मक रणनीतियाँ तैयार करना।
निष्कर्ष:
ULFA के साथ हालिया शांति समझौता, असम में शांति और विकास के लिये एक महत्त्वपूर्ण अवसर प्रस्तुत करता है। लेकिन केवल अंतर्निहित शिकायतों को दूर करके, आर्थिक विकास को बढ़ावा देकर और सामाजिक एकीकरण सुनिश्चित करके ही क्षेत्र में स्थायी शांति स्थापित की जा सकती है।
मनोविश्लेषण का सरलीकरण
प्रिलिम्स के लिये:मनोविश्लेषण मेन्स के लिये:मनोविश्लेषण, मनोविश्लेषण और आपराधिक पुनर्वास में शामिल नैतिक पहलू |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में दिल्ली पुलिस ने खुलासा किया कि संसद उल्लंघन की घटना में आरोपी छह व्यक्तियों को उनके उद्देश्यों को समझने के लिये मनोविश्लेषण (Psychoanalysis) प्रक्रिया से गुज़रना पड़ा।
मनोविश्लेषण क्या है?
- परिचय: मनोविश्लेषण सिद्धांतों तथा चिकित्सीय तकनीकों का एक समूह है जिसकी सहायता से मानसिक विकारों का इलाज किया जाता है।
- इसका उद्देश्य मनोवैज्ञानिक अनुभव के अचेतन तथा सचेत तत्त्वों के बीच संबंधों की जाँच कर मानसिक स्वास्थ्य संबंधी कई समस्याओं का इलाज करना है।
- इसकी शुरुआत 19वीं सदी के अंत तथा 20वीं सदी की शुरुआत में विनीज़ मनोचिकित्सक सिगमंड फ्रायड (Sigmund Freud) ने की थी।
- मनोविश्लेषण से संबंधित मुख्य पहलू:
- अचेतन मन: फ्रायड ने प्रस्तावित किया कि मानव व्यवहार का अधिकांश हिस्सा अचेतन इच्छाओं, भय, स्मृति तथा संघर्षों से प्रभावित होता है जो अमूमन बचपन के शुरुआती अनुभवों से उत्पन्न होते हैं।
- मनोविश्लेषण के माध्यम से अचेतन मन की जाँच की जाती है तथा पता लगाया जाता है कि यह कैसे विचारों, व्यवहारों, भावनाओं एवं व्यक्तित्व को आकार देता है।
- इड, ईगो, सुपरईगो: फ्रायड ने मन का एक संरचनात्मक मॉडल पेश किया जिसमें इड/Id (प्रवृत्ति तथा आनंद से जनित), अहम्/Ego (id व वास्तविकता के बीच मध्यस्थ) तथा सुपरईगो (सामाजिक मानदंडों व मूल्यों को आंतरिक बनाता है) शामिल है।
- यह मॉडल मानसिक समस्याओं को समझने में सहायता करता है।
- मनोविश्लेषणात्मक थेरेपी: इसमें रोगी तथा चिकित्सक के बीच मौखिक वार्ता शामिल होती है, जिसका उद्देश्य अचेतन संघर्षों को जानना तथा किसी की भावनाओं एवं व्यवहारों में अंतर्दृष्टि प्राप्त करना है।
- अचेतन मन: फ्रायड ने प्रस्तावित किया कि मानव व्यवहार का अधिकांश हिस्सा अचेतन इच्छाओं, भय, स्मृति तथा संघर्षों से प्रभावित होता है जो अमूमन बचपन के शुरुआती अनुभवों से उत्पन्न होते हैं।
मनोविश्लेषण में शामिल नैतिक पहलू क्या हैं?
- सूचित सहमति: उपचार शुरू करने से पहले रोगी को मनोविश्लेषण की प्रकृति, इसके संभावित लाभों, जोखिमों और विकल्पों के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिये।
- यह महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इस प्रक्रिया में अक्सर व्यक्तिगत और संवेदनशील विषयों पर चर्चा शामिल होती है।
- इसके अलावा सूचित सहमति प्राप्त करना अनुच्छेद 21 के संभावित उल्लंघनों के खिलाफ भी सुरक्षा प्रदान करता है, जैसा कि सेल्वी बनाम कर्नाटक राज्य और अन्य मामले (2010) में उजागर किया गया है।
- गोपनीयता: चिकित्सा में रोगी की गोपनीयता बनाए रखना सर्वोपरि है। हालाँकि कुछ स्थितियों में, चिकित्सकों को नैतिक दुविधाओं का सामना करना पड़ सकता है, जैसे कि जब कोई मरीज़ खुद के लिये या दूसरों के लिये खतरा पैदा करता है।
- चेतावनी देने या सुरक्षा करने के कर्त्तव्य के साथ गोपनीयता को संतुलित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
- स्थानांतरण और प्रतिसंक्रमण: पिछले अनुभवों या अनसुलझे मुद्दों के कारण रोगी और चिकित्सक दोनों एक-दूसरे के प्रति तीव्र भावनाओं या प्रतिक्रियाओं का अनुभव कर सकते हैं।
- इन भावनाओं को नैतिक रूप से प्रबंधित करना।
- सांस्कृतिक संवेदनशीलता: यह सुनिश्चित करने के लिये कि वे उचित देखभाल प्रदान करें और विविध दृष्टिकोणों का सम्मान करें, चिकित्सकों को सांस्कृतिक रूप से सक्षम तथा अपने पूर्वाग्रहों के बारे में जागरूक होने की आवश्यकता है।
मनोविश्लेषण आपराधिक पुनर्वास में कैसे मदद कर सकता है?
- सहानुभूति विकसित करना: मनोविश्लेषण व्यक्तियों को दूसरों पर उनके कार्यों के प्रभाव को समझने में मदद करके सहानुभूति को बढ़ावा दे सकता है।
- आत्म-चिंतन और चिकित्सा में प्राप्त अंतर्दृष्टि के माध्यम से, अपराधी अपने व्यवहार के परिणामों की अधिक समझ विकसित कर सकते हैं, जिससे सहानुभूति बढ़ सकती है।
- आवेग नियंत्रण: हिंसक या आवेगी व्यवहार के इतिहास वाले व्यक्तियों के लिये, मनोविश्लेषण इन प्रवृत्तियों को समझने और प्रबंधित करने में सहायता कर सकता है।
- गहरी भावनाओं और अनसुलझे संघर्षों की खोज करके, व्यक्ति अपनी भावनाओं तथा आवेगों को बेहतर ढंग से नियंत्रित करना सीख सकते हैं, जिससे दोबारा अपराध करने की संभावना कम हो जाती है।
- पुनरावृत्ति को रोकना: मूल प्रेरणाओं को संबोधित करके, व्यक्ति विनाशकारी पैटर्न से मुक्त होने और सार्थक तरीके से समाज में पुन: एकीकृत होने के लिये बेहतर ढंग से सुसज्जित होते हैं।