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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    "भारत की कुल भूमि का एक बड़ा प्रतिशत मरुस्थलीकरण के दौर से गुजर रहा है, जबकि उससे अधिक भाग भूमिक्षरण के रूप में एक बड़े खतरे के रूप में दृष्टिगोचर हो रहा है, जो लाखों लोगों की आजीविका और खाद्य सुरक्षा पर प्रश्नचिह्न लगा रहा है।" संबंधित समस्या पर प्रकाश डालें एवं इस संदर्भ में क्या करने की ज़रूरत है? चर्चा करें।

    30 Oct, 2017 सामान्य अध्ययन पेपर 3 अर्थव्यवस्था

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा-

    • मरुस्थलीकरण की परिभाषा लिखें।
    • भारत में मरुस्थलीकरण से जुड़ी समस्याओं का उल्लेख करें।
    • भूमिक्षरण के कारण लिखें।
    • भूमिक्षरण से होने वाली हानियाँ लिखें।
    • निवारण के उपाय लिखें।

    मरुस्थलीकरण एक ऐसी भौगोलिक घटना है, जिसमें हरे-भरे क्षेत्रों में भी मरूस्थल जैसी विशिष्टताएँ विकसित होने लगती हैं। मरुस्थलीकरण से प्राकृतिक वनस्पतियों का क्षरण तो होता ही है, कृषि उत्पादकता, पशुधन, यहाँ तक कि जलवायवीय घटनाएँ भी प्रभावित होती हैं। वर्तमान में भारत का लगभग 25% क्षेत्र मरुस्थलीकरण की समस्या का सामना कर रहा है। यद्यपि यह एक चुनौती है, तथापि भूमिक्षरण की समस्या इससे भी विकराल रूप लेती जा रही है। यह देश के लगभग 32% भाग को प्रभावित किये हुए है। 

    इस समस्या को निम्नलिखित रूप से समझा जा सकता है-

    • जहाँ देश की लगभग 105 मिलियन हेक्टेयर भूमि भूमिक्षरण की समस्या से जूझ रही है, वहीं लगभग 82 मिलियन हेक्टेयर भूमि मरुस्थलीकृत हो रही है।
    •  मृदा अपरदन, वायु अपरदन, जल संचयन और मृदा लवणीकरण एवं क्षारीयकरण इनमें मुख्य हैं।
    • मृदा अपरदन एवं मरुस्थलीकरण पर पाँचवी राष्ट्रीय रिपोर्ट में इस बात को प्रमुखता से स्वीकार किया गया है कि भूमिक्षरण देश में मरुस्थलीकरण की चुनौती से भी गंभीर है।
    •  पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश आदि राज्य भूमिक्षरण की समस्या से अधिक प्रभावित हैं।

    भूमिक्षरण के कारण

    • प्राकृतिक वनस्पति का ह्रास, निर्वनीकरण, अधारणीय तरीके से लकड़ियों का ईंधन के लिये प्रयोग करना, शिफ्टिंग कल्टिवेशन, दावानल (forest fires) अतिचारण आदि भूमिक्षरण के मुख्य कारण हैं।
    • इसके अतिरिक्त कृषि में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग, फसल चक्र का अभाव, सिंचाई का अव्यवस्थित होना आदि।

    भूमिक्षरण की हानियाँ

    • भूमि की उत्पादकता में कमी, जिसमें कृषि उत्पादन घट जाता है।
    • पशुधन आदि के लिये चारे का अभाव।
    • मौसमी घटनाओं में परिवर्तन। 

    निवारण के उपाय 

    • वनीकरण को प्रोत्साहन
    • कृषि में रासायनिक उर्वरकों के स्थान पर जैविक उर्वरकों का प्रयोग।
    • फसल चक्र को प्रभावी रूप से अपनाना।
    • सिंचाई के नवीन और वैज्ञानिक तरीकों को अपनाना। जैसे बूंद-बूंद सिंचाई, स्प्रिंकलर सिंचाई आदि।

    निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि भूमिक्षरण देश में मरुस्थलीकरण से भी बड़ी चुनौती है, तथापि यह दोनों ही एक-दूसरे से अंतर्संबंधित हैं। अतः दोनों ही समस्याओं को समान रूप से सुलझाए जाने की आवश्यकता है।

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