डेली न्यूज़ (04 Jan, 2022)



वित्तीय समाधान और जमा बीमा विधेयक

प्रिलिम्स के लिये:

FRDI बिल, दिवाला और दिवालियापन, त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई।

मेन्स के लिये:

FRDI बिल का महत्त्व और इससे जुड़े मुद्दे।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वित्त मंत्रालय ने वित्तीय क्षेत्र में फर्मों के दिवालियेपन से निपटने के लिये वित्तीय समाधान और जमा बीमा (FRDI) विधेयक के एक संशोधित संस्करण का मसौदा तैयार करने पर भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) से सुझाव मांगे हैं।

  • वर्ष 2018 में सरकार ने बैंक जमाओं की सुरक्षा को लेकर चिंताओं के बीच FRDI विधेयक 2017 को वापस ले लिया था।

प्रमुख बिंदु

  • पृष्ठभूमि:
    • FRDI विधेयक, 2017 वित्तीय क्षेत्र में फर्मों के दिवालियेपन के मुद्दे को संबोधित करने के लिये था।
    • यदि कोई बैंक, एनबीएफसी, बीमा कंपनी, पेंशन फंड या परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनी द्वारा संचालित म्यूचुअल फंड विफल हो जाता है, तो उस फर्म को बेचने, किसी अन्य फर्म के साथ विलय करने या इसे बंद करने के लिये यह एक त्वरित समाधान प्रदान करता है। 
    • इसका उद्देश्य बैंकों, बीमा कंपनियों, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों, पेंशन फंड और स्टॉक एक्सचेंज जैसे संस्थानों की विफलता के नतीजों को सीमित करना है।
    • केंद्र सरकार के आश्वासन के बावजूद जमा की सुरक्षा को लेकर जनता के बीच चिंताओं के कारण विधेयक को वापस ले लिया गया था।
    • आलोचना का एक प्रमुख बिंदु विधेयक में तथाकथित ‘बेल-इन क्लॉज़’ था जिसमें कहा गया था कि बैंक के दिवालिया होने की स्थिति में जमाकर्त्ताओं को अपने दावों में कमी करके समाधान की लागत का एक हिस्सा वहन करना होगा।
  • नए विधेयक के बारे में:
    • यह विधेयक एक समाधान प्राधिकरण स्थापित करने का प्रावधान करेगा, जिसके पास बैंकों, बीमा कंपनियों और व्यवस्थित रूप से महत्त्वपूर्ण वित्तीय फर्मों के लिये त्वरित समाधान करने की शक्ति होगी।
    • कानून बैंक जमाकर्त्ताओं के लिये 5 लाख रुपए तक का बीमा भी प्रदान करेगा, जिनके पास पहले से ही कानूनी समर्थन है।
  • विधायी समर्थन की आवश्यकता:
    • यहाँ तक ​​​​कि जब आरबीआई NBFC (गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों) के लिये एक त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई (PCA) ढाँचा लेकर आया है, इसके विपरीत पूरे वित्तीय क्षेत्र के लिये एक विधायी समर्थन की आवश्यकता महसूस की जा रही है।
    • इनमें से कई भारत में व्यवस्थित रूप से महत्त्वपूर्ण स्थिति प्राप्त करने के आलोक में वर्तमान समाधान व्यवस्था विशेष रूप से निजी क्षेत्र की वित्तीय फर्मों के लिये अनुपयुक्त है।
    • वित्तीय फर्मों के समाधान के लिये एकल एजेंसी का प्रावधान वित्तीय क्षेत्र विधायी सुधार आयोग (FSLRC), 2011 द्वारा न्यायमूर्ति बी एन श्रीकृष्ण की अध्यक्षता में की गई सिफारिशों के अनुरूप है।
    • FSLRC बिल के साथ दिवाला और दिवालियापन संहिता, 2021 ने रुग्ण वित्तीय क्षेत्र की फर्मों के समापन या पुनरुद्धार की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित किया।

दिवाला और दिवालियापन संहिता:

  • यह 2016 में अधिनियमित एक सुधार है। यह व्यावसायिक फर्मों के दिवाला समाधान से संबंधित विभिन्न कानूनों को समाहित करता है।
  • यह बैंकों जैसे लेनदारों की मदद करने, बकाया वसूलने और खराब ऋणों को रोकने के लिये स्पष्ट तथा तीव्र दिवालियेपन की कार्यवाही करता है, जो अर्थव्यवस्था पर एक प्रमुख दबाव है।

प्रमुख शब्द

  • दिवाला: यह एक ऐसी स्थिति है जहाँ व्यक्ति या कंपनियाँ अपना बकाया कर्ज चुकाने में असमर्थ होती हैं।
  • दिवालियापन: यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें सक्षम क्षेत्राधिकार के तहत न्यायालय ने किसी व्यक्ति या अन्य संस्था को दिवालिया घोषित कर दिया है, इसे हल करने और लेनदारों के अधिकारों की रक्षा के लिये उचित आदेश पारित कर दिया है। यह कर्ज चुकाने में असमर्थता की कानूनी घोषणा है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


‘स्वास्थ्य सेवा खंड’ हेतु एक अलग नियामक का प्रस्ताव: IRDAI

प्रिलिम्स के लिये:

IRDAI, भारत में स्वास्थ्य बीमा, आयुष्मान भारत

मेन्स के लिये:

अस्पतालों में अलग-अलग टैरिफ फ्रेमवर्क से जुड़े मुद्दे और इसके समाधान हेतु सुझाव।

चर्चा में क्यों?

अस्पतालों के लिये एक सामान्य टैरिफ संरचना विकसित करने के उद्देश्य से ‘भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण’ (IRDAI) ने ‘स्वास्थ्य सेवा खंड’ हेतु एक अलग नियामक का प्रस्ताव रखा है अथवा इस क्षेत्र को अस्पतालों को स्वयं विनियमित करने की अनुमति दी जानी चाहिये।

  • यह देखा गया है कि वर्तमान में अस्पताल शुल्क की मुद्रास्फीति दर लगभग 10-15% है और नियमित आधार पर टैरिफ में बदलाव किया जा रहा है।

प्रमुख बिंदु

  • अस्पतालों के वर्तमान टैरिफ फ्रेमवर्क से संबंधित मुद्दे
    • अलग-अलग टैरिफ:
      • अस्पताल नियमित आधार पर स्वयं टैरिफ बदलते रहते हैं। वर्तमान में टैरिफ संरचना और ग्रेडिंग पर उन्हें विनियमित करने हेतु कोई निकाय मौजूद नहीं है।
      • बीते वर्ष जब कोविड महामारी ने देश में प्रवेश किया था, तो कुछ अस्पतालों द्वारा मरीज़ों से अत्यधिक शुल्क लिया गया था।
    • स्वास्थ्य बीमा व्यवसायों की लागत:
      • यदि बीमाकर्त्ता इसी प्रकार अस्पतालों की मांग को पूरा करना जारी रखते हैं और अत्यधिक भुगतान करते रहते हैं, तो स्वास्थ्य बीमा व्यवसाय पर दीर्घावधि में इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। ज्ञात हो कि पहले से ही यह उद्योग बड़ी संख्या में दावों का सामना कर रहा है।
    • व्यक्तिगत ‘हॉस्पिटल एम्पैनल्मेंट’ प्रक्रिया
      • वर्तमान में स्वास्थ्य देखभाल योजनाओं और निजी बीमा के तहत व्यक्तिगत ‘हॉस्पिटल एम्पैनल्मेंट’ प्रक्रियाएँ शामिल हैं, जो विभिन्न गतिविधियों और प्रक्रियाओं के दोहराव एवं अक्षमता में योगदान करती हैं।
    • अस्पतालों को विनियमित करने हेतु बुनियादी ढाँचे का अभाव:
      • IRDAI के पास वर्तमान में अस्पतालों को विनियमित करने हेतु किसी भी प्रकार का बुनियादी ढाँचा मौजूद नहीं है। चूँकि स्वास्थ्य सेवा राज्य का विषय है, इसलिये IRDAI के लिये अस्पतालों को विनियमित करना काफी कठिन हो जाता है।
        • भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) भारत में बीमा क्षेत्र के समग्र पर्यवेक्षण एवं विकास हेतु संसद के एक अधिनियम- बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण अधिनियम, 1999 के तहत गठित वैधानिक निकाय है।
  • सिफारिशें
    • स्वास्थ्य बीमा की बढ़ती पहुँच के साथ सामान्य और चिकित्सा मुद्रास्फीति कारकों को अलग करने की आवश्यकता है तथा यह देखते हुए कि चिकित्सा मुद्रास्फीति प्रायः ‘उपभोक्ता मूल्य सूचकांक’ मुद्रास्फीति से काफी अधिक होती है, मूल्य निर्धारण के दृष्टिकोण में सुधार की भी आवश्यकता है।
    • IRDAI ने बीमा कार्यक्रम के तहत स्वास्थ्य देखभाल बुनियादी ढाँचे के मानकीकरण और प्रभावी उपयोग को बढ़ावा देने हेतु एक कॉमन अस्पताल रजिस्ट्री, एम्पैनल्मेंट’ प्रक्रिया, अस्पतालों की ग्रेडिंग और पैकेज लागत के बीच सामंजस्य का प्रस्ताव दिया है।
    • यह सिफारिश की गई है कि एक सामान्य पैनल पोर्टल स्थापित किया जाए, जिसका उपयोग सभी योजनाओं/बीमा कंपनियों द्वारा मानकीकृत पैनल मानदंड के लिये किया जा सकता है, जो सुरक्षा और गुणवत्ता मानकों पर विशेष ध्यान देने के साथ बेहद फायदेमंद होगा।

स्वास्थ्य बीमा (Health Insurance)

  • स्वास्थ्य देखभाल:
    • राजस्व और रोज़गार के मामले में स्वास्थ्य देखभाल भारत के सबसे बड़े क्षेत्रों में से एक बन गया है। बढ़ती आबादी, बढ़ता आय स्तर, बुनियादी ढाँचे में वृद्धि, जागरूकता में वृद्धि,बीमा पॉलिसियों और चिकित्सा पर्यटन तथा नैदानिक परीक्षणों के केंद्र के रूप में भारत के उदय ने भारत में स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र के विकास में योगदान दिया है।
    • चूँकि इस क्षेत्र की ज़रूरतें बढ़ रही हैं, इसलिये आधुनिक चिकित्सा सुविधाएँ प्रदान करना महत्त्वपूर्ण है। भारत सरकार द्वारा वित्तपोषित स्वास्थ्य बीमा गरीबों को बिना किसी खर्चे के समय पर देखभाल से लाभान्वित करने में सक्षम बनाता है।
  • स्वास्थ्य बीमा का महत्त्व:
    • स्वास्थ्य बीमा भारत में स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों के विरुद्ध वित्तीय सुरक्षा प्रदान करने हेतु ‘आउट-ऑफ पॉकेट’ (OOP) व्यय की व्यवस्था करने का एक तंत्र है।
    • यह स्वास्थ्य बीमा के माध्यम से पूर्व-भुगतान, जोखिम-पूलिंग और स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों के कारण  होने वाले व्यापक व्यय से बचाव के लिये एक महत्त्वपूर्ण उपकरण के रूप में सामने आया है।
    • इसके अलावा प्री-पेड पूल फंड भी स्वास्थ्य देखभाल प्रावधान की दक्षता में सुधार कर सकते हैं।
  • स्वास्थ्य बीमा से संबंधित मुद्दे:
    • जीवन की स्थिति असमान रूप से वितरित है:
      • स्वतंत्रता के बाद से लोगों की जीवन प्रत्याशा में 35 वर्ष से 65 वर्ष की उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, लेकिन जीवन की स्थिति देश के विभिन्न भागों में असमान रूप से वितरित है तथा भारत में स्वास्थ्य समस्याएँ अभी भी बड़ी चिंता का कारण हैं।
    • कम सरकारी खर्च :
      • स्वास्थ्य पर कम सरकारी व्यय ने सार्वजनिक क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाओं की क्षमता और गुणवत्ता को बाधित किया है।
      • यह अधिकांश व्यक्तियों- लगभग दो-तिहाई को महँगे निजी क्षेत्र में इलाज कराने को मज़बूर करता है।
    •  स्वास्थ्य संबंधी वित्तीय सुरक्षा का अभाव:
      • कम-से-कम 30% आबादी या 40 करोड़ व्यक्तियों के पास स्वास्थ्य संबंधी किसी भी प्रकार की वित्तीय सुरक्षा मौजूद नही है।
  • संबंधित सरकारी योजनाएँ:

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


नगालैंड में अफस्पा का विस्तार

प्रिलिम्स के लिये:

सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम 1958, कोन्याक जनजाति, विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह (PVTGs)

मेन्स के लिये:

सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम 1958 और इसकी आवश्यकता, भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिये चुनौतियां

चर्चा में क्यों?

कोन्याक संगठनों की संरक्षक संस्था ‘कोन्याक सिविल सोसाइटी संगठन’ ने सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम 1958 (AFSPA) के विस्तार की निंदा की है।

  • नगालैंड में सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम 1958 को 30 दिसंबर 2021 से छह महीने के लिये बढ़ा दिया गया है।

कोन्याक

  • परिचय:
    • नगालैंड में कोन्याक जनजाति एओ, तंगखुल, सेमा और अंगामी के बाद सबसे बड़ी जनजाति है।
    • अन्य नागा जनजातियों में लोथा, संगतम, फोम, चांग, ​​खिमनुंगम, यिमचुंगरे, जेलियांग, चाखेसांग (चोकरी) और रेंगमा शामिल हैं।
    • माना जाता है कि 'कोन्याक' शब्द 'व्हाओ' शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ है 'सिर' और 'न्याक' का अर्थ है 'काला'। इसका अनुवाद 'काले बालों वाला पुरुष' है।
    • उन्हें दो समूहों में बाँटा जा सकता है- 'थेंडु', जिसका अर्थ है 'टैटू वाला चेहरा' और 'थेंथो', जिसका अर्थ है 'सफेद चेहरा'।
  • परिवेश:
    • यह जनजाति ज्यादातर मोन ज़िले में निवास करती है, जिन्हें 'द लैंड ऑफ द एंग्स' के नाम से भी जाना जाता है, वे अरुणाचल प्रदेश, असम और म्याँमार के कुछ ज़िलों में भी पाए जाते हैं।
    • अरुणाचल प्रदेश में उन्हें वांचो के रूप में जाना जाता है ('वांचो' 'कोन्याक' का पर्यायवाची शब्द है)।
      • जातीय, सांस्कृतिक और भाषायी रूप से एक ही पड़ोसी राज्य अरुणाचल प्रदेश के नोक्टेस और तांगसा भी कोन्याक से निकटता से संबंधित हैं।
  • मनाए जाने वाले त्योहार :
    • तीन सबसे महत्त्वपूर्ण त्योहार एओलिंगमोन्यु, एओनिमो और लाउन-ओंगमो हैं।
      • एओलिंगमोन्यु अप्रैल के पहले सप्ताह में बीज बोने के बाद मनाया जाता है और यह नए साल की शुरुआत का प्रतीक है। इसका धार्मिक महत्त्व समृद्ध फसल के लिये भगवान को प्रसन्न करना है।
      • पहली फसल जैसे- मक्का और सब्जियों की कटाई के बाद जुलाई या अगस्त में एओनिमो मनाया जाता है।
      • लाउन-ओंगमो एक धन्यवाद देने वाला त्योहार है और सभी कृषि गतिविधियों के पूरा होने के बाद मनाया जाता है।

प्रमुख बिंदु

सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम, 1958: 

  • पृष्ठभूमि:
    • भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान विरोध प्रदर्शनों को दबाने के लिये बनाए गए ब्रिटिश-युग के कानून का पुनर्जन्म, AFSPA 1947 में चार अध्यादेशों के माध्यम से जारी किया गया था।
    • अध्यादेशों को 1948 में एक अधिनियम द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था और पूर्वोत्तर में वर्तमान कानून 1958 में तत्कालीन गृह मंत्री जी.बी. पंत द्वारा प्रभावी किया गया था।
    • इसे शुरू में सशस्त्र बल (असम और मणिपुर) विशेष अधिकार अधिनियम, 1958 के रूप में जाना जाता था।
    • अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मिज़ोरम और नगालैंड राज्यों के अस्तित्व में आने के बाद अधिनियम को इन राज्यों पर भी लागू करने के लिये अनुकूलित किया गया था।
  • परिचय:
    • AFSPA सशस्त्र बलों और "अशांत क्षेत्रों" में तैनात केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों को कानून का उल्लंघन करने वाले किसी भी व्यक्ति को मारने और बिना वारंट के किसी भी परिसर की तलाशी लेने तथा अभियोजन एवं कानूनी मुकदमों से सुरक्षा के साथ निरंकुश शक्तियाँ देता है।
    • नगा हिल्स में विद्रोह से निपटने के लिये कानून पहली बार 1958 में लागू हुआ, उसके बाद असम में विद्रोह हुआ। 
  • अशांत क्षेत्र:
    • 1972 में अधिनियम में संशोधन किया गया और एक क्षेत्र को "अशांत" घोषित करने की शक्तियाँ राज्यों के साथ-साथ केंद्र सरकार को भी प्रदान की गईं।
    • वर्तमान में केंद्रीय गृह मंत्रालय केवल नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश के लिये AFSPA का विस्तार करने हेतु  समय-समय पर "अशांत क्षेत्र" अधिसूचना जारी करता है।
    • मणिपुर और असम के लिये अधिसूचना राज्य सरकारों द्वारा जारी की जाती है।
    • त्रिपुरा ने 2015 में अधिनियम को निरस्त कर दिया और मेघालय में 27 वर्षों से AFSPA लागू था, जब तक कि इसे 1 अप्रैल, 2018 से केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा रद्द नहीं कर दिया गया।
    • यह अधिनियम असम की सीमा से लगे 20 किलोमीटर के क्षेत्र में लागू किया गया था।
    • जम्मू और कश्मीर में एक अलग जम्मू-कश्मीर सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम, 1990 है।
  • अधिनियम को लेकर विवाद:
    • मानवाधिकारों का उल्लंघन:
      • कानून गैर-कमीशन अधिकारियों तक, सुरक्षाकर्मियों को बल का उपयोग करने और "मृत्यु का कारण बनने तक" गोली मारने का अधिकार देता है, यदि वे आश्वस्त हैं कि "सार्वजनिक व्यवस्था के रखरखाव" के लिये ऐसा करना आवश्यक है।
      • यह सैनिकों को बिना वारंट के परिसर में प्रवेश करने, तलाशी लेने और गिरफ्तारी करने की कार्यकारी शक्तियाँ भी देता है।
      • सशस्त्र बलों द्वारा इन असाधारण शक्तियों के प्रयोग से अक्सर अशांत क्षेत्रों में सुरक्षा बलों पर फर्जी मुठभेड़ों और अन्य मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोप लगते रहे हैं, जबकि नगालैंड एवं जम्मू-कश्मीर जैसे कुछ राज्यों में AFSPA के अनिश्चितकालीन लागू होने पर सवाल उठाया गया है।
    • जीवन रेड्डी समिति की सिफारिशें: 
      • नवंबर 2004 में, केंद्र सरकार ने पूर्वोत्तर राज्यों में अधिनियम के प्रावधानों की समीक्षा के लिये न्यायमूर्ति बी पी जीवन रेड्डी की अध्यक्षता में पाँच सदस्यीय समिति नियुक्त की।
      • समिति की मुख्य सिफारिशें इस प्रकार थीं:
        • AFSPA को निरस्त किया जाना चाहिये और गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 में उचित प्रावधान शामिल किये जाने चाहिये
        • सशस्त्र बलों और अर्द्धसैनिक बलों की शक्तियों को स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट करने हेतु गैरकानूनी गतिविधि अधिनियम को संशोधित किया जाना चाहिये तथा प्रत्येक ज़िले में जहांँ सशस्त्र बल तैनात हैं, शिकायत प्रकोष्ठ स्थापित किये जाने चाहिये।
    • दूसरी ARC की सिफारिशें: सार्वजनिक व्यवस्था पर दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) की 5वीं रिपोर्ट में भी अफस्पा को निरस्त करने की सिफारिश की गई है। हालांँकि, इन सिफारिशों को लागू नहीं किया गया है।
  • अधिनियम पर सर्वोच्च न्यायालय के विचार:
    • वर्ष 1998 में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक निर्णय (नगा पीपुल्स मूवमेंट ऑफ ह्यूमन राइट्स बनाम यूनियन ऑफ इंडिया) में AFSPA की संवैधानिकता को बरकरार रखा है।
    • इस निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि
      • केंद्र सरकार द्वारा स्व-प्रेरणा से घोषणा की जा सकती है, हालांकि यह वांछनीय है कि घोषणा करने से पहले राज्य सरकार को केंद्र सरकार से परामर्श लेना चाहिये;
      • घोषणा एक सीमित अवधि के लिये होनी चाहिये और घोषणा की समय-समय पर समीक्षा हेतु 6 महीने की अवधि समाप्त हो गई है;
      • अफस्पा द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते समय, प्राधिकृत अधिकारी को प्रभावी कार्रवाई हेतु आवश्यक न्यूनतम बल का प्रयोग करना चाहिये ।

आगे की राह 

  • वर्षों से हुई कई मानवाधिकार उल्लंघन की घटनाओं के कारण अधिनियम की यथास्थिति अब स्वीकार्य समाधान नहीं है। AFSPA उन क्षेत्रों में उत्पीड़न का प्रतीक बन गया है जहांँ इसे लागू किया गया है इसलिये सरकार को प्रभावित लोगों को संबोधित करने और उन्हें अनुकूल कार्रवाई के लिये आश्वस्त करने की आवश्यकता है।
  • सरकार को मामले-दर-मामले आधार पर अफ्सपा को लागू करने और हटाने पर विचार करना चाहिये  और पूरे राज्य में इसे लागू करने के बजाय इसे केवल कुछ सवेदनशील ज़िलों तक सीमित करना चाहिये।
  • सरकार और सुरक्षा बलों को सर्वोच्च न्यायालय, जीवन रेड्डी आयोग और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देशों का भी पालन करना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू  


रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन

प्रिलिम्स के लिये:

DRDO और उसके प्रमुख कार्यक्रम।

मेन्स के लिये:

भारतीय रक्षा के लिये DRDO का महत्त्व,  DRDO से संबंधित विभिन्न कार्यक्रम और मुद्दे

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने 1 जनवरी 2022 को 64वां स्थापना दिवस मनाया है।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • DRDO रक्षा मंत्रालय का रक्षा अनुसंधान एवं विकास (Research and Development)  विंग है, जिसका लक्ष्य भारत को अत्याधुनिक रक्षा प्रौद्योगिकियों से सशक्त बनाना है।
    • आत्मनिर्भरता और सफल स्वदेशी विकास एवं सामरिक प्रणालियों तथा प्लेटफार्मों जैसे- अग्नि और पृथ्वी शृंखला मिसाइलों के उत्पादन की इसकी खोज जैसे- हल्का लड़ाकू विमान, तेजस: बहु बैरल रॉकेट लाॅन्चर, पिनाका: वायु रक्षा प्रणाली, आकाश: रडार और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणालियों की एक विस्तृत श्रृंखला आदि, ने भारत की सैन्य शक्ति को प्रभावशाली निरोध पैदा करने और महत्त्वपूर्ण लाभ प्रदान करने में प्रमुख योगदान दिया है।
  • गठन:
    • DRDO की स्थापना वर्ष 1958 में रक्षा विज्ञान संगठन (Defence Science Organisation- DSO) के साथ भारतीय सेना के तकनीकी विकास प्रतिष्ठान (Technical Development Establishment- TDEs) तथा तकनीकी विकास और उत्पादन निदेशालय (Directorate of Technical Development & Production- DTDP) के संयोजन के बाद की गई थी।
    • DRDO वर्तमान में 50 प्रयोगशालाओं का एक समूह है जो रक्षा प्रौद्योगिकी के विभिन्न क्षेत्रों  जैसे- वैमानिकी, शस्त्र, इलेक्ट्रॉनिक्स, लड़ाकू वाहन, इंजीनियरिंग प्रणालियाँ, इंस्ट्रूमेंटेशन, मिसाइलें, उन्नत कंप्यूटिंग और सिमुलेशन, विशेष सामग्री, नौसेना प्रणाली, लाईफ साइंस, प्रशिक्षण, सूचना प्रणाली तथा कृषि के क्षेत्र में कार्य कर रहा है।
  • मिशन:
    • हमारी रक्षा सेवाओं के लिये अत्याधुनिक सेंसरों, हथियार प्रणालियों, प्लेटफार्मों और संबद्ध उपकरणों के उत्पादन हेतु डिज़ाइन, विकास और नेतृत्व।
    • युद्ध की प्रभावशीलता को अनुकूलित करने और सैनिकों की सुरक्षा को बढ़ावा देने हेतु सेवाओं को तकनीकी समाधान प्रदान करना।
    • बुनियादी ढांँचे और प्रतिबद्ध गुणवत्ता जनशक्ति का विकास करना तथा एक मज़बूत स्वदेशी प्रौद्योगिकी आधार का निर्माण करना।
  • DRDO के विभिन्न कार्यक्रम:
    • एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम (IGMDP):
      • यह मिसाइल प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारतीय रक्षा बलों को आत्मनिर्भर बनाने हेतु  डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के प्रमुख कार्यों में से एक था।
      • IGMDP के तहत विकसित मिसाइलें हैं: पृथ्वी, अग्नि, त्रिशूल, आकाश, नाग।
    • मोबाइल ऑटोनोमस रोबोट सिस्टम:
      • MARS लैंड माइन्स और इनर्ट एक्सप्लोसिव डिवाइसेज (Inert Explosive Devices- IEDs) को संभालने के लिये एक स्मार्ट मजबूत रोबोट है जो भारतीय सशस्त्र बलों से शत्रुओं को दूर कर निष्क्रिय करने में मदद करता है।
      • कुछ ऐड-ऑन के साथ, इस प्रणाली का उपयोग वस्तु के लिये जमीन खोदने और विभिन्न तरीकों से इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस को डिफ्यूज़ करने के लिये भी किया जा सकता है।
    • लद्दाख में सबसे ऊंँचा स्थलीय केंद्र:
      • लद्दाख में DRDO का केंद्र पैंगोंग झील के पास चांगला में समुद्र तल से 17,600 फीट ऊपर है, जिसका उद्देश्य प्राकृतिक और औषधीय पौधों के संरक्षण के लिये एक प्राकृतिक कोल्ड स्टोरेज इकाई के रूप में कार्य करना है।
  • DRDO से संबंधित मुद्दे:
    • अपर्याप्त बजटीय सहायता:
      • 2016-17 के दौरान रक्षा संबंधी स्थायी समिति ने DRDO की चल रही परियोजनाओं के लिये अपर्याप्त बजटीय समर्थन पर चिंता व्यक्त की।
      • समिति ने नोट किया कि कुल रक्षा बजट में से 2011-12 में DRDO की हिस्सेदारी 5.79% थी, जो 2013-14 में घटकर 5.34 फीसदी रह गई।
    • अपर्याप्त जनशक्ति:
      • DRDO भी महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में अपर्याप्त जनशक्ति के कारण सशस्त्र बलों के साथ उचित तालमेल की कमी से ग्रस्त है।
      • लागत में वृद्धि और देरी ने DRDO की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाया है।
    • बड़े वादे और सीमित कार्य निष्पादन:
      • DRDO द्वारा बड़े वादे और सीमित कार्य निष्पादन की स्थिति देखी गई है। जवाबदेही का अभाव है। 
      • वर्ष 2011 में नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) ने DRDO की क्षमताओं पर एक गंभीर सवालिया निशान लगाया, यह हवाला देते हुए कि संगठन का अपनी परियोजनाओं का एक इतिहास है जो स्थानिक समय और लागत से अधिक पीड़ित है।
    • अप्रचलित उपकरण:
      • DRDO अत्याधुनिक तकनीक पर काम करने के बजाय द्वितीय विश्व युद्ध के उपकरणों के साथ सिर्फ छेड़छाड़ कर रहा है।
  • हाल ही के विकास:

आगे की राह

  • फरवरी 2007 में एजेंसी की बाहरी समीक्षा के लिये पी. रामा राव की अध्यक्षता वाली समिति द्वारा सुझाए गए सुझाव के अनुसार DRDO को एक सबल संगठन के रूप में पुनर्गठित किया जाना चाहिये।
    • समिति ने परियोजनाओं को पूरा करने में देरी को कम करने के अलावा इसे लाभदायक इकाई बनाने के लिये संगठन की एक वाणिज्यिक शाखा स्थापित करने की सिफारिश की।
  • DRDO के पूर्व प्रमुख वी.के. सारस्वत ने रक्षा प्रौद्योगिकी आयोग की स्थापना के साथ-साथ एजेंसी द्वारा विकसित उत्पादों के लिये उत्पादन भागीदारों को चुनने में DRDO के लिये एक बड़ी भूमिका का आह्वान किया है।
  • यदि आवश्यक हो तो DRDO को शुरू से ही निजी क्षेत्र से एक सक्षम भागीदार कंपनी का चयन करने में सक्षम होना चाहिये।
  • अपने दस्तावेज़ "DRDO इन 2021: एचआर पर्सपेक्टिव्स" में, DRDO ने एक एचआर नीति की परिकल्पना की है जिसमें स्वतंत्र, निष्पक्ष और निडरता के साथ ज्ञान साझा करने, खुले वातावरण और सहभागी प्रबंधन पर ज़ोर दिया गया है। यह सही दिशा में एक कदम है।

स्रोत-पी.आई.बी


भारत और मुक्त व्यापार समझौते

प्रिलिम्स के लिये:

मुक्त व्यापार समझौता (FTA), क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP), CECPA, SAFTA, APTA

मेन्स के लिये:

भारत के लिये मुक्त व्यापार समझौते (FTA) से संबंधित मुद्दे, भारत के विभिन्न व्यापार समझौते और आर्थिक विकास में इनकी भूमिका, भारत-इज़रायल संबंध, भारत की विदेशी व्यापार नीति।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने कहा कि भारत एक मुक्त व्यापार समझौते (FTA) के समापन हेतु इजरायल के साथ वार्ता कर रहा है।

  • यह घोषणा दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों की स्थापना की 30वीं वर्षगाँठ के साथ मेल खाती है।

प्रमुख बिंदु

  • मुक्त व्यापार समझौता (FTA)
    • यह दो या दो से अधिक देशों के बीच आयात और निर्यात में बाधाओं को कम करने हेतु किया गया एक समझौता है।
    • एक मुक्त व्यापार नीति के तहत वस्तुओं और सेवाओं को अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं के पार खरीदा एवं बेचा जा सकता है, जिसके लिये बहुत कम या न्यून सरकारी शुल्क, कोटा तथा सब्सिडी जैसे प्रावधान किये जाते हैं।
    • मुक्त व्यापार की अवधारणा व्यापार संरक्षणवाद या आर्थिक अलगाववाद (Economic Isolationism) के विपरीत है।
  • भारत तथा मुक्त व्यापार समझौते:
    • नवंबर 2019 में भारत के क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) से बाहर होने के बाद, 15 सदस्यीय FTA समूह जिसमें जापान, चीन और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं, भारत के लिये निष्क्रिय हो गया।
    • लेकिन मई 2021 में यह घोषणा हुई कि भारत-यूरोपीय संघ की वार्ता, जो 2013 से रुकी हुई थी, फिर से शुरू की जाएगी।
      • कार्य संबंधी इन विभिन्न पहलुओं को आगे बढ़ाने के लिये दोनों पक्ष अब आंतरिक तैयारियों में लगे हुए हैं।
    • भारत के द्विपक्षीय मुक्त व्यापार समझौतों को लेकर संयुक्त अरब अमीरात, यूनाइटेड किंगडम, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा के साथ बातचीत की जा रही है।
    • यूएई के साथ यह समझौता 'अंतिम रूप देने के करीब' था जबकि ऑस्ट्रेलिया के साथ एफटीए 'बहुत उन्नत चरण' में था।
  • भारत के अन्य महत्त्वपूर्ण व्यापार समझौते:
    • भारत और मॉरीशस के बीच व्यापक आर्थिक सहयोग और भागीदारी समझौता (सीईसीपीए)।
    • दक्षिण एशिया तरजीही व्यापार समझौता (SAPTA): यह सदस्य देशों के बीच व्यापार को बढ़ावा देने के लिये 1995 में लागू हुआ था।
    • दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र (साफ्टा): यह मुक्त व्यापार समझौता, सूचना प्रौद्योगिकी जैसी सभी सेवाओं को छोड़कर, सामान तक ही सीमित है। वर्ष 2016 तक सभी व्यापारिक वस्तुओं के सीमा शुल्क को शून्य करने के लिये समझौते पर हस्ताक्षर किये गए थे।
    • एशिया प्रशांत व्यापार समझौता (एपीटीए):
      • बैंकाक समझौता, यह एक तरजीही टैरिफ व्यवस्था है जिसका उद्देश्य सदस्य देशों द्वारा पारस्परिक रूप से सहमत रियायतों के आदान-प्रदान के माध्यम से अंतर-क्षेत्रीय व्यापार को बढ़ावा देना है।
  • भारत की विदेश व्यापार नीति संबंधी मुद्दे:
    • खराब विनिर्माण क्षेत्र: हाल की अवधि में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में विनिर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी 14% है।
    • जर्मनी, अमेरिका, दक्षिण कोरिया और जापान जैसे उन्नत और विकसित देशों के तुलनीय आँकड़े क्रमशः 19%, 11%, 25% और 21% हैं।
      • चीन, तुर्की, इंडोनेशिया, रूस, ब्राज़ील जैसे उभरते और विकासशील देशों के लिये संबंधित आंँकड़े क्रमशः 27%, 19%, 20%, 13%, 9% हैं तथा कम आय वाले देशों के लिये यह हिस्सा 8% है।
    • प्रतिकूल FTA’s: पिछले एक दशक में भारत ने दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ (आसियान), कोरिया गणराज्य, जापान और मलेशिया के साथ  FTA पर हस्ताक्षर किए।
      • हालाँकि काफी हद तक यह माना जाता है कि भारत के व्यापार भागीदारों को भारत की तुलना में इन समझौतों से अधिक लाभ हुआ है।
    • संरक्षणवाद: आत्मनिर्भर भारत अभियान ने इस विचार को और बढ़ा दिया है कि भारत तेज़ी से एक संरक्षणवादी बंद बाज़ार अर्थव्यवस्था बनता जा रहा है।

भारत-इज़रायल संबंध

  • ऐतिहासिक संबंध:
    • दोनों देशों के बीच सामरिक सहयोग 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान शुरू हुआ।
    • 1965 में इज़रायल ने पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में भारत को M-58 160-mm मोर्टार गोला बारूद की आपूर्ति की।
    • यह उन कुछ देशों में से एक था जिसने 1998 में भारत के पोखरण परमाणु परीक्षणों की निंदा नहीं करने का फैसला किया था।
  • आर्थिक:
    • भारत एशिया में इज़राइल का तीसरा सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है और विश्व स्तर पर सातवां सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है।
    • दोनों देशों के बीच वर्तमान में 4.14 बिलियन अमेरिकी डॉलर का व्यापार है (अप्रैल 2020 - फरवरी 2021), एक ऐसा आंँकड़ा जिसमें रक्षा व्यापार शामिल नहीं है जो बढ़ रहा है।
    • इजरायल की कंपनियों ने भारत में ऊर्जा, नवीकरणीय ऊर्जा, दूरसंचार, रियल एस्टेट, जल प्रौद्योगिकियों में निवेश किया है और भारत में अनुसंधान एवं विकास केंद्र या उत्पादन इकाइयां स्थापित करने पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं।
    • इज़रायल-भारत औद्योगिक अनुसंधान एवं विकास और तकनीकी नवाचार कोष (I4F) से पहले अनुदान प्राप्तकर्त्ता की घोषणा जुलाई 2018 में की गई थी, जिसमें कुशल जल उपयोग, संचार बुनियादी ढाँचे में सुधार, सौर ऊर्जा उपयोग के माध्यम से भारतीयों और इज़रायलियों के जीवन को बेहतर बनाने हेतु काम करने वाली कंपनियों को शामिल किया गया है। 
      • इस फंड का उद्देश्य इज़रायली उद्यमियों को भारतीय बाज़ार में प्रवेश कराने में मदद करना है।
  • रक्षा:
    • इज़रायल लगभग दो दशकों से भारत के शीर्ष चार हथियार आपूर्तिकर्त्ताओं में से एक है, हर वर्ष लगभग 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर की सैन्य बिक्री होती है।
    • भारतीय सशस्त्र बलों ने पिछले कुछ वर्षों में इज़रायली हथियार प्रणालियों की एक विस्तृत शृंखला को शामिल किया है, इसमें फाल्कन AWACS (हवाई चेतावनी और नियंत्रण प्रणाली) तथा हेरॉन, सर्चर-द्वितीय तथा हारोप ड्रोन से लेकर बराक एंटी मिसाइल रक्षा प्रणालियों और स्पाइडर विमान भेदी मिसाइल प्रणाली शामिल हैं।
    • अधिग्रहण में कई इज़रायली मिसाइलें और सटीक-निर्देशित युद्ध सामग्री भी शामिल है, जिसमें ‘पायथन’ और ‘डर्बी’ हवा-से-हवा में मार करने वाली मिसाइलों से लेकर ‘क्रिस्टल मैज़’ तथा स्पाइस-2000 बम शामिल हैं।
    • भारत और इज़रायल के बीच द्विपक्षीय रक्षा सहयोग पर संयुक्त कार्य समूह (JWG) की 15वीं बैठक में, दोनों देश सहयोग के नए क्षेत्रों की पहचान करने के लिये एक व्यापक दस-वर्षीय रोडमैप तैयार करने हेतु एक टास्क फोर्स बनाने पर सहमत हुए हैं।
  • कृषि:
  • कोविड-19 प्रतिक्रिया:
    • वर्ष 2020 में एक इज़रायली टीम बहु-आयामी मिशन के साथ भारत पहुँची, जिसका कोड नेम ‘ऑपरेशन ब्रीदिंग स्पेस’ था, इसे कोविड-19 प्रतिक्रिया पर भारतीय अधिकारियों के साथ काम करने हेतु बनाया गया था।

Israel

आगे की राह 

  • यह देखते हुए कि भारत किसी बड़े-व्यापार सौदे का पक्ष नहीं है, यह एक सकारात्मक व्यापार नीति एजेंडे का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा होगा।
  • भारत के व्यापार नीति ढांँचे को आर्थिक सुधारों द्वारा समर्थित होना चाहिये, जिसके परिणामस्वरूप यह एक खुली, प्रतिस्पर्द्धात्मक और तकनीकी रूप से नवीन भारतीय अर्थव्यवस्था हो।
  • राष्ट्रवाद, देशीवाद और संरक्षणवाद लोगों की इस भावना का फायदा उठाते हैं कि उन्हें पीछे छोड़ दिया जाता है और उन्हें व्यवस्था से बाहर कर दिया जाता है।
  • इसलिये हमें आर्थिक नेटवर्क में सार्वभौमिक समावेश सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है जो व्यक्तियों और परिवारों को वित्तीय सुरक्षा प्राप्त करने और बेहतरी के अवसरों को प्राप्त करने की अनुमति देता है।

स्रोत: द हिंदू  


ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर प्लेटफॉर्म

प्रिलिम्स के लिये:

कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस सिस्टम (सर्ट-इन), ओपन-सोर्स सॉफ्टवेयर, गिटहब, गॉवटेक 3.0।

मेन्स के लिये:

ओपन-सोर्स सॉफ्टवेयर पर सरकार की नीति, ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर्स के फायदे और नुकसान।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में गिटहब, एक ओपन-सोर्स सॉफ़्टवेयर रिपॉजिटरी सेवा का उपयोग भारत में एक महिला का यौन उत्पीड़न करने हेतु आपत्तिजनक नाम वाले एप को बनाने और साझा करने के लिये किया गया था।

  • एप ने उनके सोशल मीडिया हैंडल से चुराई गई महिलाओं की तस्वीरों का इस्तेमाल किया और "उपयोगकर्त्ताओं" को उनके लिये बोली लगाने के लिये आमंत्रित किया।
  • गिटहब ने उपयोगकर्त्ता को अवरुद्ध कर दिया है और भारतीय कंप्यूटर आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रणाली को "एक उच्च स्तरीय समिति" बनाने के लिये कहा गया है।

गिटहब: 

  • गिटहब दुनिया का सबसे बड़ा ओपन-सोर्स डेवलपर कम्युनिटी प्लेटफॉर्म है जहाँ उपयोगकर्त्ता अपनी परियोजनाओं और कोड को दूसरों को देखने और संपादित करने के लिये अपलोड करते हैं।
  • प्लेटफॉर्म सॉफ्टवेयर गिट का उपयोग करता है, जिसे वर्ष 2005 में ओपन-सोर्स ऑपरेटिंग सिस्टम लिनक्स के डेवलपर लिनुस ट्रोवाल्ड्स द्वारा बनाया गया था, ताकि फाइलों के एक सेट में परिवर्तन और सॉफ़्टवेयर में समन्वय के लिये ट्रैक किया जा सके।

प्रमुख बिंदु

  • ओपन-सोर्स का अर्थ: ओपन सोर्स शब्द का अर्थ कुछ ऐसा है जिसे लोग संशोधित और साझा कर सकते हैं क्योंकि इसका डिज़ाइन सार्वजनिक रूप से सुलभ है।
    • अंतर्निहित सिद्धांत: ओपन सोर्स प्रोजेक्ट, उत्पाद या पहल के सिद्धांतों को स्वीकार और उनका पालन करते हैं- 
      • खुला विनिमय,
      • सहयोगात्मक भागीदारी,
      • तीव्र प्रोटोटाइपिंग,
      • पारदर्शिता,
      • मेरिटोक्रेसी
      • समुदायोन्मुखी विकास।
  • ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर: ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर (ओएसएस) वह सॉफ्टवेयर है अपने सोर्स कोड के साथ वितरित किया जाता है, जो इसे अपने मूल अधिकारों के साथ उपयोग, संशोधन और वितरण के लिये उपलब्ध कराता है।
    • सोर्स कोड सॉफ्टवेयर का वह हिस्सा है जिसे अधिकांश कंप्यूटर उपयोगकर्त्ता कभी नहीं देखते हैं।
    • इस कोड का प्रयोग कंप्यूटर प्रोग्रामर प्रोग्राम या एप्लीकेशन के व्यवहार को नियंत्रित करने हेतु हेरफेर के लिये किया है।
    • ओएसएस में आमतौर पर एक लाइसेंस शामिल होता है जो प्रोग्रामर को उसकी आवश्यकताओं के अनुसार सबसे सुलभ तरीके से सॉफ्टवेयर को संशोधित करने की अनुमति देता है और यह नियंत्रित करता है कि सॉफ्टवेयर कैसे वितरित किया जा सकता है।
    • सोर्स कोड को स्वतंत्र रूप से उपलब्ध कराने का विचार वर्ष 1983 में MIT के एक प्रोग्रामर रिचर्ड स्टॉलमैन द्वारा अनौपचारिक रूप से स्थापित एक वैचारिक आंदोलन से उत्पन्न हुआ था।
    • लिनक्स, मोज़िला फायरफॉक्स, वीएलसी मीडिया प्लेयर, सुगर CRM आदि प्रमुख उदाहरण हैं।
  • क्लोज्ड सोर्स या प्रोपराइटरी सॉफ्टवेयर: क्लोज़्ड सोर्स सॉफ्टवेयर वह सॉफ्टवेयर होता है जो सोर्स कोड को सुरक्षित और एन्क्रिप्टेड रखता है।
    • अर्थात् उपयोगकर्त्ता किसी प्रकार के परिणाम के बिना कोड के कुछ हिस्सों को कॉपी, संशोधित या हटा नहीं सकता है।

नोट: 

  • जबकि एप्पल के आईफोन्स (iOS) का ऑपरेटिंग सिस्टम क्लोज्ड सोर्स (Closed Source) है, जिसका अर्थ है कि इसे कानूनी रूप से संशोधित या रिवर्स इंजीनियर नहीं किया जा सकता है, गूगल  का एंड्राॅइड ऑपरेटिंग सिस्टम ओपन-सोर्स (Open-Source)  है और इसलिये यह संभव है कि सैमसंग, Xiaomi, वनप्लस आदि जैसे स्मार्टफोन निर्माताओं द्वारा इन्हें संशोधित किया जा सके।
  • OSS पर सरकार की नीति
    • भारत सरकार ने 2015 में ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर को अपनाने पर एक नीति जारी की थी।
    • शिक्षा के लिये मुफ्त और मुक्त स्रोत सॉफ़्टवेयर (FOSSEE) परियोजना :  यह शैक्षिक संस्थानों में ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर के उपयोग को बढ़ावा देने वाली एक परियोजना है।
      • यह शिक्षण संस्थानों में ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर के उपयोग को बढ़ावा देने वाली परियोजना है। यह निर्देशात्मक सामग्री (स्पोकन ट्यूटोरियल), डॉक्यूमेंटेशन, (टेक्स्ट बुक सामग्री), जागरूकता कार्यक्रम (कॉन्फ्रेंस, ट्रेनिंग वर्कशॉप और इंटर्नशिप) के माध्यम से कराया जाता है।
    • सरकार ने आरोग्य सेतु ऐप के एंड्रॉयड वर्ज़न को भी ओपन सोर्स के माध्यम से बनाया है।
    • OSS को बढ़ावा देना GovTech 3.0 का एक हिस्सा है।
      • Gov Tech 3.0 मुक्त डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र (ODEs) पर केंद्रित है। यह सरकार को ‘डिजिटल कॉमन्स’ बनाने पर ध्यान केंद्रित करने के लिये प्रोत्साहित करता है। 

आगे की राह 

  • सरकार को अपराधियों के खिलाफ तत्काल, अनुकरणीय कार्रवाई करनी चाहिये। इस तरह के आपराधिक व्यवहार पर बिना लागत के बस एप को बंद करने से दंड से मुक्ति को बढ़ावा मिलेगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


परमाणु प्रसार रोकने का संकल्प: UNSC के पाँच स्थायी सदस्य

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, अप्रसार संधि, शीत युद्ध, IAEA, JCPOA, न्यू स्टार्ट, परमाणु हथियार।

मेन्स के लिये:

अप्रसार संधि इसका महत्त्व और इसे बेहतर बनाने के लिये किन परिवर्तनों की आवश्यकता है, एनपीटी पर भारत का स्टैंड, शीत युद्ध, आईएईए, जेसीपीओए, न्यू स्टार्ट 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पाँच स्थायी सदस्यों (चीन, फ्राँस, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका) ने परमाणु हथियारों के प्रसार को रोकने एवं परमाणु संघर्ष से बचने का संकल्प लिया है।

  • यह बयान ऐसे समय में आया है जब रूस और अमेरिका के बीच तनाव उस ऊँचाई पर पहुँच गया है जो शीत युद्ध के बाद से शायद ही कभी देखा गया हो।
  • यह बयान तब आया है जब विश्व शक्तियाँ ईरान के साथ अपने विवादास्पद परमाणु अभियान पर संयुक्त व्यापक कार्य योजना (JCPOA) 2015 को पुनर्जीवित करने के लिये समझौते पर पहुँचने की कोशिश कर रही हैं, जिसे अमेरिका द्वारा वर्ष 2018 में समझौते से बाहर होने के कारण समाप्त कर दिया गया था।

प्रमुख बिंदु

  • संकल्प:
    • ऐसे हथियारों के प्रसार को रोका जाना चाहिये, परमाणु युद्ध कभी जीता नहीं जा सकता है और ऐसा युद्ध कभी लड़ा भी नहीं जाना चाहिये।
    • रमाणु हथियार संपन्न देशों के बीच युद्ध को टालना और सामरिक ज़ोखिमों को कम करना हमारी प्रमुख ज़िम्मेदारियों के रूप में है।
    • जब तक परमाणु हथियार मौजूद हैं, इनसे रक्षात्मक उद्देश्यों की पूर्ति करनी चाहिये, आक्रमण रोकना तथा युद्ध को रोकना चाहिये।
    • ये परमाणु हथियारों के अनधिकृत या अनपेक्षित उपयोग को रोकने के लिये अपने राष्ट्रीय उपायों को बनाए रखने तथा मज़बूत करने का इरादा रखते हैं।
  • चीन का स्टैंड:
    • इसने चिंता जताई कि अमेरिका के साथ तनाव से ताइवान द्वीप पर संघर्ष हो सकता है।
      • चीन ताइवान को अपने क्षेत्र का हिस्सा मानता है और इस पर बलपूर्वक कब्ज़ा कर सकता है।
  • रूस का स्टैंड:
    • रूस ने परमाणु शक्तियों की घोषणा का स्वागत किया और उम्मीद जताई कि इससे वैश्विक तनाव कम होगा।

अप्रसार संधि:

  • परिचय:
    • NPT एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है जिसका उद्देश्य परमाणु हथियारों और हथियार प्रौद्योगिकी के प्रसार को रोकना, परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देना तथा निरस्त्रीकरण के लक्ष्य को आगे बढ़ाना है।
    • इस संधि पर वर्ष 1968 में हस्ताक्षर किये गए और यह 1970 में लागू हुई। वर्तमान में इसके 190 सदस्य देशों में लागू है।
      • भारत इसका सदस्य नहीं है।
    • इसके लिये देशों को परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग तक पहुँच के बदले में परमाणु हथियार बनाने की किसी भी वर्तमान या भविष्य की योजना को त्यागने की आवश्यकता होती है।
    • यह परमाणु-हथियार वाले राज्यों द्वारा निरस्त्रीकरण के लक्ष्य हेतु एक बहुपक्षीय संधि में एकमात्र बाध्यकारी प्रतिबद्धता का प्रतिनिधित्व करती है।
    • NPT के तहत ‘परमाणु-हथियार वाले पक्षों’ को 01 जनवरी, 1967 से पहले परमाणु हथियार या अन्य परमाणु विस्फोटक उपकरणों का निर्माण एवं विस्फोट करने वाले देशों के रूप में परिभाषित किया गया है।
  • भारत का पक्ष
    • भारत उन पाँच देशों में से एक है जिन्होंने या तो एनपीटी पर हस्ताक्षर नहीं किये या हस्ताक्षर किये किंतु बाद में अपनी सहमति वापस ले ली, इस सूची में पाकिस्तान, इज़रायल, उत्तर कोरिया और दक्षिण सूडान शामिल हैं।
    • भारत ने हमेशा NPT को भेदभावपूर्ण माना और इस पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया था।
    • भारत ने अप्रसार के उद्देश्य से अंतर्राष्ट्रीय संधियों का विरोध किया है, क्योंकि वे चुनिंदा रूप से गैर-परमाणु शक्तियों पर लागू होती हैं और पाँच परमाणु हथियार सम्पन्न शक्तियों के एकाधिकार को वैध बनाती हैं।
  • NPT से संबंधित मुद्दे:
    • निरस्त्रीकरण प्रक्रिया की विफलता:
      • NPT को मोटे तौर पर शीत युद्ध के दौर के एक उपकरण के रूप में देखा जाता है, जो एक विश्वसनीय निरस्त्रीकरण प्रक्रिया की दिशा में मार्ग बनाने के उद्देश्य को पूरा करने में विफल रहा है।
      • संधि में कोई ठोस निरस्त्रीकरण रोडमैप का प्रस्ताव नहीं दिया गया है, परीक्षण प्रतिबंध या विखंडनीय सामग्री या परमाणु हथियारों के उत्पादन को रोकने हेतु कोई संदर्भ नहीं है, और कटौती एवं उन्मूलन के प्रावधान भी मौजूद नहीं हैं।
      • इसके बजाय इसने NWS को निर्धारित करने हेतु जनवरी 1967 को कट-ऑफ तिथि के रूप में निर्धारित करके शस्त्रागार के निर्वाह और विस्तार की अनुमति दी।
    • परमाणु 'हैव्स' और 'हैव-नॉट्स':
      • गैर-परमाणु हथियार राज्य (NNWS) इस संधि की भेदभावपूर्ण होने की आलोचना करते हैं, क्योंकि यह केवल क्षैतिज प्रसार को रोकने पर केंद्रित है जबकि इसमें ऊर्ध्वाधर प्रसार की कोई सीमा नहीं है।
        • ऊर्ध्वाधर प्रसार को एक राष्ट्र के परमाणु शस्त्रागार की उन्नति या आधुनिकीकरण के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जबकि क्षैतिज प्रसार एक राष्ट्र से दूसरे में प्रौद्योगिकियों का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हस्तांतरण है, जो अंततः परमाणु हथियारों के अधिक उन्नत विकास और प्रसार को बढ़ावा देता है। .
        • चूँकि अपने शस्त्रागार को कम करने हेतु NWS पर कोई स्पष्ट दायित्व नहीं है, NWS ने बिना किसी बाधा के अपने संबंधित शस्त्रागार का विस्तार करना जारी रखा है।
      • इस संदर्भ में NNWS समूह मांग करते हैं कि परमाणु-हथियार राज्यों (NWS) को NNWS की प्रतिबद्धता के बदले में अपने शस्त्रागार और अतिरिक्त उत्पादन को त्याग देना चाहिये।
      • इस संघर्ष के कारण अधिकांश चतुष्कोणीय समीक्षा सम्मेलन (रेवकॉन), जो मंच इस संधि के कामकाज की समीक्षा करता है, वर्ष 1995 के बाद से काफी हद तक अनिर्णायक रहा है।
    • शीत युद्ध के बाद की चुनौतियाँ:
      • शीत युद्ध के बाद की व्यवस्था में संधि के अस्तित्व से संबंधित चुनौतियाँ तब शुरू हुईं, जब कुछ देशों द्वारा परमाणु विलंबता को तोड़ने या हासिल करने के प्रयासों के कारण गैर-अनुपालन, उल्लंघन और अवज्ञा के कई उदाहरण सामने आए।
        • उदाहरण के लिये अमेरिका, ईरान पर सामूहिक विनाश के परमाणु हथियार बनाने का आरोप लगाता है।
      • वर्ष 1995 में एनपीटी के अनिश्चितकालीन विस्तार ने इसकी अपरिवर्तनीयता का आह्वान करते हुए, निरस्त्रीकरण के उद्देश्य के लिये राज्यों की अक्षमता को भी रेखांकित किया, जैसा कि एनपीटी में निहित है।
      • सामूहिक विनाश के हथियारों तक पहुँचने और एक वैश्विक परमाणु काला बाज़ार का पता लगाने के घोषित इरादे के साथ गैर-राज्य अभिकर्त्ताओं के उद्भव ने नए रणनीतिक वातावरण द्वारा उत्पन्न चुनौतियों का समाधान करने के लिये संधि की सीमाओं को लेकर चिंता जताई है।

आगे की राह

  • बढ़ती ऊर्जा मांगों ने परमाणु ऊर्जा का अनुसरण करने वाले देशों की संख्या में वृद्धि की है, और कई देश एक स्थायी और भरोसेमंद घरेलू ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये ऊर्जा-स्वतंत्र होना चाहते हैं। स्वच्छ ऊर्जा, विकास और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व हर देश के लिये आवश्यक है।
  • इस प्रकार अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिये चुनौती यह होगी कि वे अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के सुरक्षा उपायों की घुसपैठ को कम करने और प्रसार की संभावना को कम करने के साथ राज्यों की ऊर्जा स्वतंत्रता की इच्छा को कम करें।
  • साथ ही NNWS, ‘NEW START’ और अन्य पहलों का स्वागत करते हैं, लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांतों में परमाणु हथियारों की भूमिका को कम करने, अलर्ट के स्तर को कम करने, पारदर्शिता बढ़ाने तथा और अधिक ठोस कार्रवाइयों को देखने के लिये उत्सुक हैं।
  • विश्व में अधिक क्षेत्रों (अधिमानतः एनडब्ल्यूएस शामिल) को परमाणु-हथियार मुक्त क्षेत्र स्थापित करने पर बल देना चाहिये।
  • इसके अलावा परमाणु हथियारों के निषेध पर संधि परमाणु निरस्त्रीकरण के लिये सही दिशा में एक कदम है।

स्रोत-द हिंदू


चीन ने पैंगोंग झील पर बनाया पुल

प्रिलिम्स के लिये:

भारत-चीन गतिरोध, पैंगोंग त्सो झील, वास्तविक नियंत्रण रेखा, कैलाश रेंज।

मेन्स के लिये:

पैंगोंग झील के पार चीन का बनाया गया पुल, भारत के लिये इसका निहितार्थ, भारत-चीन गतिरोध की पृष्ठभूमि।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, यह पाया गया कि चीन पैंगोंग त्सो पर एक नया पुल बना रहा है जो झील के उत्तर और दक्षिण किनारों के बीच तथा एलएसी (वास्तविक नियंत्रण रेखा) के करीब सैनिकों को तेजी से तैनात करने के लिये एक अतिरिक्त धुरी प्रदान करेगा।

  • इससे पहले, भूमि सीमाओं पर चीन का नया कानून 1 जनवरी, 2022 से ऐसे समय में लागू हुआ, जब पूर्वी लद्दाख में सीमा गतिरोध अनसुलझा है और अरुणाचल प्रदेश में कई स्थानों का नाम हाल ही में चीन ने भारतीय राज्य पर अपने दावे के हिस्से के रूप में बदल दिया है।
  • भारत भी सीमावर्ती क्षेत्रों में अपने बुनियादी ढांँचे में सुधार कर रहा है। 2021 में सीमा सड़क संगठन ने सीमावर्ती क्षेत्रों में 100 से अधिक परियोजनाओं को पूरा किया, जिनमें से अधिकांश चीन के साथ सीमा के करीब थीं।

प्रमुख बिंदु 

  • पृष्ठभूमि:
    • मई 2020 में सैन्य गतिरोध शुरू होने के बाद से भारत और चीन ने न केवल मौजूदा बुनियादी ढांँचे को बेहतर बनाने के लिये काम किया है, बल्कि पूरी सीमा पर कई नई सड़कों, पुलों, लैंडिंग स्ट्रिप्स का भी निर्माण किया है।
    • अगस्त 2020 के अंत में भारत ने पैंगोंग त्सो झील के दक्षिणी तट पर कैलाश रेंज की पहले से खाली पड़ी ऊँचाइयों पर कब्जा कर चीन को पछाड़ दिया।
    • भारतीय सैनिकों ने मागर हिल, गुरुंग हिल, रेजांग ला, रेचिन ला सहित वहाँ की चोटियों पर तैनात किया जिससे उन्हें रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण स्पैंगगुर गैप पर हावी होने की अनुमति दी जिसका उपयोग एक आक्रामक शुरू करने के लिये किया जा सकता है, जैसा कि चीन ने 1962 में किया था।
    • भारतीय सैनिकों ने भी उत्तरी तट पर फिंगर्स क्षेत्र में चीनी सैनिकों के ऊपर खुद को तैनात कर लिया था। 
    • कठोर सर्दियों के महीनों में दोनों देशों के सैनिक इन ऊँचाइयों पर बने रहे। जिससे चीन को बातचीत करने के लिये मज़बूर किया।
    • दोनों देश झील के उत्तरी तट से पीछे हटने और पैंगोंग त्सो के दक्षिण में चुशुल उप-क्षेत्र में कैलाश रेंज पर स्थिति पर सहमत हुए।

Aksai-Chin

  • पुल के बारे में:
    • झील के उत्तरी तट पर फिंगर  8 से 20 किमी पूर्व में पुल का निर्माण किया जा रहा है जिस पर भारत का कहना है कि फिंगर 8 एलएसी को दर्शाता है।.
      • फिंगर एरिया से झील दिखाई देती है सिरिजाप रेंज (झील के उत्तरी किनारे पर) से बाहर आठ चट्टानों का एक समूह है।
    • 135 किमी लंबी पैंगोंग त्सो एक एंडोरेइक झील है, जिसमें से दो-तिहाई से अधिक चीन के नियंत्रण में है।
      • झील के उत्तर और दक्षिण किनारे कई संवेदनशील बिंदुओं में से थे जो गतिरोध की शुरुआत के बाद सामने आए थे। फरवरी 2021 में भारत और चीन के उत्तर एवं दक्षिण तट से सैनिकों को वापस बुलाने से पहले, इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर लामबंदी देखी गई थी और दोनों पक्षों ने कुछ स्थानों पर बमुश्किल कुछ सौ मीटर की दूरी पर टैंक भी तैनात किये थे।
    • पुल साइट रुतोग काउंटी में खुर्नक किले के ठीक पूर्व में स्थित है जहांँ पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (People’s Liberation Army-PLA) के सीमावर्ती ठिकाने हैं।
      • ऐतिहासिक रूप से भारत का एक हिस्सा, खुर्नक फोर्ट वर्ष 1958 से चीन के नियंत्रण में है।
    • खुर्नक फोर्ट से LAC काफी पश्चिम है, जिसमें भारत फिंगर 8 पर दावा करता है और चीन फिंगर 4 पर दावा करता है।
  • चीन के लिये महत्त्व:
    • पुल रुडोक के माध्यम से खुर्नक से दक्षिण तट तक 180 किलोमीटर के लूप को काट देगा, जो खुर्नक और रुडोक के बीच की दूरी को लगभग 200 किलोमीटर के बजाय 40-50 किलोमीटर तक कम कर देगा।
    • अगस्त 2020 में जो हुआ उसे दोहराने से रोकने की उम्मीद में, पुल का निर्माण इस क्षेत्र में सैनिकों को तेज़ी से एकत्र करने में मदद करेगा।
  • भारत के लिये निहितार्थ:
    • पुल उनके क्षेत्र में निर्मित किया जा रहा है और भारतीय सेना को अपनी परिचालन योजनाओं में इसे शामिल करना होगा।
    • सड़कों का चौड़ीकरण, नई सड़कों और पुलों का निर्माण, नए बेस, हवाई पट्टी, अग्रिम लैंडिंग बेस आदि पूर्वी लद्दाख क्षेत्र तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि ये कार्य भारत-चीन सीमा (पूर्वी, मध्य और पश्चिमी) के तीन क्षेत्रों में हो रहे हैं। 

स्रोत: द हिंदू


भारत में बेरोज़गारी

प्रिलिम्स के लिये:

भारत में बेरोज़गारी के प्रकार, आजीविका और उद्यम हेतु सीमांत व्यक्तियों के लिये समर्थन (मुस्कान), पीएम-दक्ष (प्रधानमंत्री दक्ष और कुशल संपूर्ण हितग्राही), महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा), प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY), स्टार्टअप इंडिया योजना

मेन्स के लिये:

भारत में बेरोज़गारी के प्रकार, भारत में बेरोज़गारी के कारण और समाधान।

चर्चा में क्यों?

‘सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी’ (CMIE) के आँकड़ों के अनुसार, दिसंबर 2021 में भारत की बेरोज़गारी दर बीते  चार महीने के उच्चतम 7.9% पर पहुँच गई है।

  • ओमिक्रॉन वेरिएंट से उत्पन्न खतरे के बीच कोविड-19 के मामलों में हुई बढ़ोतरी और कई राज्यों में लागू नए प्रतिबंधों के कारण आर्थिक गतिविधि और खपत का स्तर प्रभावित हुआ है।
  • यह भविष्य में आर्थिक सुधार पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।

प्रमुख बिंदु

  • बेरोज़गारी के विषय में:
    • किसी व्यक्ति द्वारा सक्रियता से रोज़गार की तलाश किये जाने के बावजूद जब उसे काम नहीं मिल पाता तो यह अवस्था बेरोजगारी कहलाती है।
      • बेरोजगारी का प्रयोग प्रायः अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य के मापक के रूप में किया जाता है।
    • बेरोज़गारी को सामान्यत: बेरोज़गारी दर के रूप में मापा जाता है, जिसे श्रमबल में शामिल व्यक्तियों की संख्या में से बेरोज़गार व्यक्तियों की संख्या को भाग देकर प्राप्त किया जाता है।
    • राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (NSSO) किसी व्यक्ति की निम्नलिखित स्थितियों पर रोज़गार और बेरोज़गारी को परिभाषित करता है:
      • कार्यरत (आर्थिक गतिविधि में संलग्न) यानी 'रोज़गार'।
      • काम की तलाश में या काम के लिये उपलब्ध यानी 'बेरोज़गार'।
      • न तो काम की तलाश में है और न ही उपलब्ध।
      • पहले दो श्रम बल का गठन करते हैं और बेरोजगारी दर उस श्रम बल का प्रतिशत है जो बिना काम के है।
      • बेरोज़गारी दर = (बेरोज़गार श्रमिक/कुल श्रम शक्ति) × 100
  • बेरोज़गारी के प्रकार:
    • प्रच्छन्न बेरोजगारी: यह एक ऐसी घटना है जिसमें वास्तव में आवश्यकता से अधिक लोगों को रोज़गार दिया जाता है।
      • यह मुख्य रूप से भारत के कृषि और असंगठित क्षेत्रों में पाई जाती है।
    • मौसमी बेरोज़गारी: यह एक प्रकार की बेरोज़गारी है, जो वर्ष के कुछ निश्चित मौसमों के दौरान देखी जाती है।
      • भारत में खेतिहर मज़दूरों के पास वर्ष भर काफी कम काम होता है।
    • संरचनात्मक बेरोज़गारी: यह बाज़ार में उपलब्ध नौकरियों और श्रमिकों के कौशल के बीच असंतुलन होने से उत्पन्न बेरोज़गारी की एक श्रेणी है।
      • भारत में बहुत से लोगों को आवश्यक कौशल की कमी के कारण नौकरी नहीं मिलती है और शिक्षा के खराब स्तर के कारण उन्हें प्रशिक्षित करना मुश्किल हो जाता है।
    • चक्रीय बेरोज़गारी: यह व्यापार चक्र का परिणाम है, जहाँ मंदी के दौरान बेरोज़गारी बढ़ती है और आर्थिक विकास के साथ घटती है।
      • भारत में चक्रीय बेरोज़गारी के आँकड़े नगण्य हैं। यह एक ऐसी घटना है जो अधिकतर पूंजीवादी अर्थव्यवस्थाओं में पाई जाती है।
    • तकनीकी बेरोज़गारी: यह प्रौद्योगिकी में बदलाव के कारण नौकरियों का नुकसान है।
      • वर्ष 2016 में विश्व बैंक के आँकड़ों ने भविष्यवाणी की थी कि भारत में ऑटोमेशन से खतरे में पड़ी नौकरियों का अनुपात साल-दर-साल 69% है।
    • घर्षण बेरोज़गारी: घर्षण बेरोज़गारी का आशय ऐसी स्थिति से है, जब कोई व्यक्ति नई नौकरी की तलाश कर रहा होता है या नौकरियों के बीच स्विच कर रहा होता है, तो यह नौकरियों के बीच समय अंतराल को संदर्भित करता है।
      • दूसरे शब्दों में, एक कर्मचारी को एक नई नौकरी खोजने या एक नई नौकरी में स्थानांतरित करने के लिये समय की आवश्यकता होती है, यह अपरिहार्य समय की देरी घर्षण बेरोज़गारी का कारण बनती है।
      • इसे अक्सर स्वैच्छिक बेरोज़गारी के रूप में माना जाता है क्योंकि यह नौकरी की कमी के कारण नहीं होता है, बल्कि वास्तव में बेहतर अवसरों की तलाश में श्रमिक स्वयं अपनी नौकरी छोड़ देते हैं।
    • सुभेद्य रोज़गार: इसका मतलब है कि लोग बिना उचित नौकरी अनुबंध के अनौपचारिक रूप से काम कर रहे हैं और इस प्रकार इनके लिये कोई कानूनी सुरक्षा नहीं है।
      • इन व्यक्तियों को 'बेरोज़गार' माना जाता है क्योंकि उनके कार्य का रिकॉर्ड कभी भी बनाया नहीं जाता हैं।
      • यह भारत में बेरोज़गारी के मुख्य प्रकारों में से एक है।
  • भारत में बेरोज़गारी का कारण:
    • सामाजिक कारक: भारत में जाति व्यवस्था प्रचलित है कुछ क्षेत्रों में विशिष्ट जातियों के लिये कार्य निषिद्ध है।
      • बड़े व्यवसाय वाले बड़े संयुक्त परिवारों में बहुत से ऐसे व्यक्ति होंगे जो कोई काम नहीं करते हैं तथा परिवार की संयुक्त आय पर निर्भर रहते हैं।
    • जनसंख्या का तीव्र विकास: भारत में जनसंख्या में निरंतर वृद्धि एक बड़ी समस्या बन गई है।
      • यह बेरोज़गारी के प्रमुख कारणों में से एक है।
    • कृषि का प्रभुत्व: भारत में अभी भी लगभग आधा कार्यबल कृषि पर निर्भर है।
      • हालाँकि भारत में कृषि अविकसित है।
      • साथ ही यह मौसमी रोज़गार भी प्रदान करती है।
    • कुटीर और लघु उद्योगों का पतन: औद्योगिक विकास का कुटीर और लघु उद्योगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
      • कुटीर उद्योगों का उत्पादन गिरने से कई कारीगर बेरोज़गार हो गए।
    • श्रम की गतिहीनता: भारत में श्रम की गतिशीलता कम है। परिवार से लगाव के कारण लोग नौकरी के लिये दूर-दराज़ के इलाकों में नहीं जाते हैं।
      • कम गतिशीलता के लिये भाषा, धर्म और जलवायु जैसे कारक भी ज़िम्मेदार हैं।
    • शिक्षा प्रणाली में दोष: पूंजीवादी दुनिया में नौकरियाँ अत्यधिक विशिष्ट हो गई हैं लेकिन भारत की शिक्षा प्रणाली इन नौकरियों के लिये आवश्यक सही प्रशिक्षण और विशेषज्ञता प्रदान नहीं करती है।
      • इस प्रकार बहुत से लोग जो कार्य करने के इच्छुक हैं वे कौशल की कमी के कारण बेरोज़गार हो जाते हैं।

सरकार द्वारा हाल की पहल

आगे की राह

  • श्रम गहन उद्योगों को बढ़ावा देना: भारत में खाद्य प्रसंस्करण, चमड़ा और जूते, लकड़ी के निर्माता और फर्नीचर, कपड़ा तथा परिधान एवं वस्त्र जैसे कई श्रम गहन विनिर्माण क्षेत्र हैं।
    • रोज़गार सृजित करने हेतु प्रत्येक उद्योग के लिये व्यक्तिगत रूप से डिज़ाइन किये गए विशेष पैकेजों की आवश्यकता होती है।
  • उद्योगों का विकेंद्रीकरण: औद्योगिक गतिविधियों का विकेंद्रीकरण आवश्यक है ताकि हर क्षेत्र के लोगों को रोज़गार मिल सके।
    • ग्रामीण क्षेत्रों के विकास से शहरी क्षेत्रों में ग्रामीण लोगों के प्रवास को कम करने में मदद मिलेगी जिससे शहरी क्षेत्र की नौकरियों पर दबाव कम होगा।
  • राष्ट्रीय रोज़गार नीति का मसौदा तैयार करना: एक राष्ट्रीय रोज़गार नीति (एनईपी) की आवश्यकता है जिसमें बहुआयामी हस्तक्षेपों का एक समूह शामिल हो जिसमें कई नीति क्षेत्रों को प्रभावित करने वाले सामाजिक और आर्थिक मुद्दों की एक पूरी शृंखला शामिल हो, न कि केवल श्रम और रोज़गार के क्षेत्र।
    • राष्ट्रीय रोज़गार नीति के अंतर्निहित सिद्धांतों में शामिल हो सकते हैं:
      • कौशल विकास के माध्यम से मानव पूंजी में वृद्धि करना।
      • औपचारिक और अनौपचारिक क्षेत्रों में सभी नागरिकों के लिये पर्याप्त संख्या में अच्छी गुणवत्ता वाली नौकरियों का सृजन करना।
      • श्रम बाज़ार में सामाजिक एकता और समानता को मज़बूत करना।
      • सरकार द्वारा की गई विभिन्न पहलों में सुसंगतता और अभिसरण
      • उत्पादक उद्यमों में प्रमुख निवेशक बनने के लिये निजी क्षेत्र का समर्थन करना।
      • अपनी आय में सुधार करने के लिये अपनी क्षमताओं को मज़बूत करके स्वरोज़गार करने वाले व्यक्तियों का समर्थन करना।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस