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डेली न्यूज़

  • 03 Sep, 2019
  • 69 min read
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

मित्रा क्रेटर

चर्चा में क्यों?

चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर (Chandrayaan-2’s Orbiter) या मदर स्पेसक्राफ्ट (Mother Spacecraft) ने चंद्रमा पर उपस्थित एक गड्ढे ‘मित्रा क्रेटर’ (Mitra Crater) को लक्षित किया जिसका 20वीं शताब्दी में नामकरण किया गया था।

मित्रा क्रेटर (Mitra Crater) क्या है?

  • मित्रा चंद्रमा पर उपस्थित एक गड्ढा है जिसका नामकरण वर्ष 1970 के दशक में प्रसिद्ध भारतीय भौतिकशास्त्री और रेडियो विज्ञानी प्रोफेसर शिशिर कुमार मित्रा के नाम पर मित्रा क्रेटर के रूप में किया गया था।
  • ‘मित्रा क्रेटर’ को यह नाम प्रोफेसर मित्रा की मृत्यु के सात साल बाद वर्ष 1970 में ग्रहों की प्रणाली का नामकरण करने वाले इंटरनेशनल एस्ट्रोनॉमिकल यूनियन (International Astronomical Union- IAU) के प्लैनेटरी सिस्टम नामकरण के कार्य समूह (Working Group for Planetary System Nomenclature- WGPSN) द्वारा दिया गया था।
  • उल्लेखनीय है कि चंद्रमा पर भारतीय वैज्ञानिकों के नाम पर और भी क्रेटर हैं जो निम्नलिखित हैं:
    • भाभा क्रेटर
    • साराभाई क्रेटर
    • सी.वी. रमन क्रेटर
    • जे.सी. बोस क्रेटर
    • आर्यभट्ट क्रेटर
  • मित्रा क्रेटर’ का व्यास लगभग 92 किलोमीटर है लेकिन इसकी गहराई का पता अभी तक नहीं लगाया जा सका है।

क्रेटर (Crater)

  • खगोलीय पिंडों की सतह पर अंतरिक्ष से किसी उल्कापिंड के गिरने, ज्वालामुखी फटने, भूगर्भ में विस्फोट या फिर अन्य किसी विस्फोटक ढंग से बनने वाले लगभग गोल आकार के विशाल गड्ढे को क्रेटर कहते हैं।
  • क्रेटर कई प्रकार के होते हैं उदाहरण के लिये प्रहार क्रेटर, ज्वालामुखीय क्रेटर, धँसाव क्रेटर, विस्फोट क्रेटर, बिल क्रेटर और मार क्रेटर आदि।

Terrain maping camera

  • चंद्रमा के उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्र में चंद्रयान-2 के टरेन मैपिंग कैमरे में कैद किया गया ‘मित्रा’ एक प्रहार या इम्पैक्ट क्रेटर है।
  • 25 केल्विन/K (-248 डिग्री सेल्सियस) पर उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्र को सौरमंडल के सबसे ठंडे स्थानों में से एक माना जाता है।

चंद्र क्रेटरों का नामकरण

Lunar nomenclature

  • 17वीं शताब्दी में चंद्र क्रेटरों के नामकरण की पहली कोशिश के तहत के.बी. शिंगारेवा और जी.ए. बुर्बा द्वारा अपनी पुस्तक द लूनर नोमेंक्लेचर: द रिवर्स साइड ऑफ़ द मून (The Lunar Nomenclature: The Reverse Side of the Moon) वर्ष 1961-1973 के दौरान लिखी गई।
  • नामकरण में प्रमुख हस्तियों जैसे- वैज्ञानिकों, दार्शनिकों और यहाँ तक कि रॉयल्टी के सदस्यों के नाम का इस्तेमाल किया गया।
  • अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ द्वारा वर्ष 1973 में एक संकल्प के दौरान गड्ढा और गढ्ढे जैसी संरचनाओं को खगोलविदों या प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों के मरणोपरांत उनके नाम दिये गए हैं।
  • अन्य चंद्र विशेषताओं में पहाड़ों को पृथ्वी के पहाड़ों के भौगोलिक नामों के अनुरूप नाम दिया गया है, जबकि गहरी अंधेरी सतहों को मनुष्यों की मानसिक स्थिति के अनुरूप नाम दिया गया है।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-जापान सुरक्षा वार्ता

चर्चा में क्यों?

भारत तथा जापान के रक्षा मंत्रियों ने टोक्यो में भारत-जापान सुरक्षा वार्ता (India-Japan Defence dialogue) में भाग लिया। बैठक के दौरान परस्‍पर सरोकार के अनेक मुद्दों पर चर्चा की गई, जिनमें मौजूदा द्विपक्षीय सहयोग को सशक्‍त करना तथा क्षेत्र में शांति एवं सुरक्षा कायम करने की दिशा में नई पहलें शामिल हैं।

प्रमुख बिंदु

  • इस बैठक में हिंद-प्रशांत दृष्टिकोण के बारे में विस्‍तार से चर्चा की गई। भारत की ओर से आसियान देशों को केंद्र में रखते हुए एक नियम आधारित व्‍यवस्‍था, समावेशी विकास और सबके लिये सुरक्षा पर ज़ोर दिया गया। क्षेत्रीय शांति, सुरक्षा और स्‍थायित्‍व के संदर्भ में भारत और जापान के बीच विशेष रणनीतिक एवं वैश्विक साझेदारी के महत्त्व पर भी चर्चा की गई। इसके अलावा दोनों मंत्रियों ने उभरते क्षेत्रीय सुरक्षा परिदृश्‍य के बारे में विस्तृत चर्चा की।
  • उन्‍होंने जापानी कंपनियों और अन्‍य हितधारकों को लखनऊ में आयोजित होने वाले द्विवार्षिक डेफ-एक्‍सपो (Def-Expo) 2020 में भाग लेने के लिये आमंत्रित किया।
  • बैठक में इस बात पर सहमति व्यक्त की गई कि रक्षा उपकरण और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में और अधिक सहयोग किया जाना चाहिये।

भारत-जापान संबंधों में इस बैठक का महत्त्व

  • वर्तमान में चीन जो सैन्य शक्ति तथा क्षेत्रीय उत्कृष्टता प्रदर्शित कर रहा है उसको काउंटर करने के लिये भारत और जापान के बीच आपसी सहयोग ज़रूरी है और यह अच्छी बात है कि दोनों देश आपस में सहयोग की भावना से आगे बढ़ रहे है।
  • सामरिक स्तर पर गहन बातचीत के साथ-साथ रक्षा और आर्थिक क्षेत्र में सहयोग भी दुनिया में द्विपक्षीय संबंधों का एक प्रमुख और निर्णायक कारक है। इस संदर्भ में इन दो एशियाई ताकतों के बीच सामरिक रिश्ते बेहतर करने में सामुद्रिक क्षेत्र महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है।
  • दुनिया में इन दोनों देशों के इस क्षेत्र में सहयोग करने की सबसे ज़्यादा संभावना है। संबंधों में इस तरह का तालमेल हासिल करने के बाद दोनों देश अब सैन्य सहयोग बढ़ाने की दिशा में काम कर रहे हैं।
  • दोनों देश गहरे सामुद्रिक हित, सैन्य उपकरण तथा तकनीक के क्षेत्र में भावी सहयोग को लेकर विचार-विमर्श की प्रक्रिया को आगे बढ़ा रहे हैं।\
  • इस संदर्भ में जापान के समुद्री आत्म रक्षा बल (JMSDF) और भारतीय नौसेना (IN) के बीच द्विपक्षीय अभ्यास का उद्देश्य भी समझ में आता है।
  • भारत, अमेरिका और जापान के बीच मालाबार में वर्ष 2015 से आयोजित संयुक्त नौसैनिक अभ्यास भारत-प्रशांत क्षेत्र में वर्तमान सुरक्षा माहौल को लेकर भारत के बदलते दृष्टिकोण को दर्शाता है।
  • भारत-जापान प्रशांत क्षेत्र के दो प्रमुख सामुद्रिक देश होने के कारण सामुद्रिक सुरक्षा सहयोग का यह स्वाभाविक क्षेत्र है।
  • दोनों ही देश हिंद महासागर एवं प्रशांत महासागर के कुछ इलाकों और विवादित पूर्वी वियतनाम सागर में व्यापारिक और नौसैनिक जहाजों की आवाज़ाही को लेकर आँकड़ों को आपस में साझा करने के समर्थक रहे हैं।

निष्कर्ष : जापान आर्थिक और तकनीकी क्षेत्र में सहयोग के मामले में भारत का सबसे भरोसेमंद साझीदार रहा है। इन दिनों जिस प्रकार की वैश्विक अर्थव्यवस्था की स्थिति है, उसमें दोनों देशों का साथ होना बहुत ज़रूरी है। खासकर एशिया पैसिफिक क्षेत्र में ताकतवर बने रहने के लिये भी दोनों देशों की साझेदारी महत्त्वपूर्ण है।

स्रोत: PIB


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

WHO क्षेत्रीय समिति की 72वीं बैठक

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री ने नई दिल्‍ली में दक्षिण-पूर्व एशिया के लिये विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन की क्षेत्रीय समिति की 72वीं बैठक (72nd Session of the WHO Regional Committee for South-East Asia) का उद्घाटन किया।

प्रमुख बिंदु

  • केंद्रीय स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री डॉ. हर्षवर्द्धन को दक्षिण-पूर्व एशिया के लिये विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन की क्षेत्रीय समिति की 72वीं बैठक का सर्वसम्‍मति से अध्‍यक्ष चुना गया।
  • यह दूसरा मौका है जब भारत क्षेत्रीय समिति की बैठक का आयोजन कर रहा है।
  • स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री के अनुसार, सभी के लिये सार्वभौमिक स्‍वास्‍थ्‍य, रोगमुक्‍त भारत तथा स्‍वास्‍थ्‍य सेवा में उत्कृष्‍टता का वैश्विक मानक प्राप्त करना देश का लक्ष्‍य है।
  • नागरिकों का बेहतर स्‍वास्‍थ्‍य सरकार की सर्वोच्‍च प्राथमिकता है।
  • भारत के प्रधानमंत्री ने सार्वभौमिक स्‍वास्‍थ्‍य के कवरेज के सभी घटकों को हासिल करने के उद्देश्‍य से नीतिगत पहलों को तेज़ी प्रदान की है ताकि सभी के लिये किफायती और समावेशी स्‍वास्‍थ्‍य सेवा प्रदान की जा सके।
  • लोगों को स्‍वस्‍थ खान-पान के प्रति संवेदी बनाने, कुपोषण की समस्‍या से निपटने, मोटापे की समस्‍या दूर करने तथा कुपोषण मुक्‍त भारत अभियान को तेज़ करने के लिये भारत सरकार द्वारा सितंबर महीने को ‘पोषण माह’ के रूप में मनाया जा रहा है।

स्वास्थ्य के क्षेत्र में भारत के प्रयास

  • भारत महामारी के उस दौर से गुज़र रहा है जिसमें संक्रामक रोग से गैर-संक्रामक बीमारियाँ हो रही हैं और मधुमेह, उच्‍च रक्‍तचाप और मोटापा जैसी खान-पान से संबंधित बीमारियाँ तेज़ी से बढ़ रही हैं। इन सभी बीमारियों को नियंत्रित करने के लिये भारत ने निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण कदम उठाए हैं।
    • ‘खाद्य प्रणाली दृष्किोण’: भारतीय खाद्य सुरक्षा तथा मानक प्राधिकरण ने नागरिकों के सुरक्षित और स्‍वस्‍थ खान-पान को सुनिश्‍चित करने के लिये ‘खाद्य प्रणाली दृष्किोण’ को अपनाया है।
      • इस दृष्टिकोण में नियामक और क्षमता सृजन उपायों को उपभोक्‍ता सशक्तीकरण उपायों से जोड़ा गया है।
    • ‘सही खाओ भारत’: इसके अंतर्गत जन आंदोलन के माध्‍यम से नागरिकों को संवेदी बनाया जा रहा है। इसकी टैग लाइन है– सही भोजन बेहतर जीवन।
      • सही खान-पान से जीवन की गुणवत्‍ता बेहतर होती है। अतः स्‍वास्‍थ्‍य नीति का महत्त्वपूर्ण स्‍तंभ रोकथाम एवं संवर्द्धनकारी स्‍वास्‍थ्‍य सेवा ही भारत का संकल्‍प है।
      • ‘ईट राइट’ अभियान के साथ उच्‍च रक्‍तचाप, मोटापा तथा मधुमेह जैसी जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों से लड़ने में मदद मिलेगी।
    • ‘ईट राइट, स्‍टे फिट तभी इंडिया सुपर फिट’: ‘ईट राइट, स्‍टे फिट तभी इंडिया सुपर फिट’ (Eat Right, Stay Fit, Tabhi India Super Fit) अभियान विराट कोहली ने लॉन्‍च किया है।
    • फिट इंडिया आंदोलन: प्रधानमंत्री ने राष्‍ट्रीय खेल दिवस के अवसर पर फिट इंडिया आंदोलन लॉन्‍च किया।
      • इसका उद्देश्‍य लोगों को शारीरिक गतिविधि और खेल-कूद को अपने दैनिक जीवन में शामिल करने के लिये प्रोत्‍साहित करना है।
    • आयुष्‍मान भारत योजना: यह लोगों के स्वास्थ्य के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता के अंतर्गत सार्वभौमिक स्‍वास्‍थ्‍य के लिये लाई गई एक योजना है।
    • मिशन इंद्रधनुष: इसके तहत अभियान में तेजी लाकर 90 प्रतिशत लोगों के लिये टीकाकरण कवरेज योजना बनाई गई है।

स्रोत: PIB


शासन व्यवस्था

ई-सिगरेट निषेध अध्यादेश, 2019

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार ने एक मसौदा अध्यादेश प्रस्तुत किया है जिसमें ई-सिगरेट/इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट के उत्पादन, आयात, वितरण और बिक्री पर प्रतिबंध लगाने तथा उल्लंघन करने वालों के लिये एक साल तक की सजा प्रस्तावित है। उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री कार्यालय के निर्देशों के बाद इसे जाँच के लिये ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स (Group of Ministers- GoM) के पास भेजा गया है।

प्रमुख बिंदु

  • गौरतलब है कि ई-सिगरेट पर प्रतिबंध लगाना स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (Ministry of Health and Family Welfare) के 100-दिवसीय लक्ष्यों में से एक है।
  • मसौदा अध्यादेश के अनुसार, पहली बार नियमों का उल्लंघन करने वालों पर एक लाख रुपए का जुर्माना और साथ ही एक साल तक की अधिकतम सज़ा प्रस्तावित है, जबकि एक से अधिक बार अपराध करने वालों पर पाँच लाख रुपए का जुर्माना तथा अधिकतम तीन साल की सज़ा प्रस्तावित है।
  • यदि केंद्र सरकार ‘ई-सिगरेट निषेध अध्यादेश, 2019’ (E-cigarettes Ordinance, 2019) जारी करती है तो उसे संसद के अगले सत्र में एक विधेयक पारित कराना होगा। संसद से विधेयक को मंज़ूरी मिलने के बाद ई-सिगरेट जैसे उत्पादों पर केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित प्रतिबंधों को कानूनी समर्थन मिल जाएगा।
  • कई विशेषज्ञों का लंबे समय से यह तर्क रहा है कि ई-सिगरेट स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है, जबकि ई-सिगरेट का समर्थन करने वालों के बीच यह गलत धारणा हावी रही है कि ई-सिगरेट, निकोटिन युक्त पारंपरिक सिगरेट का अच्छा और स्वस्थ्यकर विकल्प है।
  • विशेषज्ञों के अनुसार, प्रस्तावित अध्यादेश ई-सिगरेट जैसे उपकरणों को रोकने में मददगार साबित होगा, लेकिन जब तक इस पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगाया जाता तब तक अपेक्षित परिणाम मिलना मुश्किल है।
  • दिल्ली के एक NGO ‘कंज़्यूमर वॉयस’ (Consumer Voice) के अनुसार, फिलहाल भारत में आधिकारिक अनुमति के बगैर ई-सिगरेट की 36 से अधिक कंपनियाँ काम कर रही हैं।
  • मुंबई स्थित NGO ‘नेशनल हेल्थ फोरम’ के अनुसार, युवाओं का एक बड़ा हिस्सा वेपिंग (ई-सिगरेट का सेवन) का आदी हो गया है।
  • विशेषज्ञों का कहना है कि पारंपरिक सिगरेट के समान स्वास्थ्य जोखिम से युक्त होने के बावजूद ई-सिगरेट तंबाकू का उत्पादन, वितरण और उपयोग मौजूदा राष्ट्रीय कानून के दायरे में नहीं आता है।
  • उल्लेखनीय है कि शीर्ष चिकित्सकीय शोध निकाय, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (Indian Council of Medical Research- ICMR) ने भी ई-सिगरेट जैसे उपकरणों पर पूर्ण प्रतिबंध की सिफारिश की है।

पृष्ठभूमि

  • स्वास्थ्य से संबंधित विषय राज्य सरकार के अंतर्गत आते हैं, इसलिये स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार को किसी उत्पाद के निर्माण और बिक्री पर प्रतिबंध लगाने जैसा कदम उठाना होगा।
  • फरवरी 2019 में केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (Central Drugs Standard Control Organization- CDSCO) ने सभी ‘राज्य औषधि नियंत्रकों’ को सर्कुलर जारी किया था कि वे इलेक्ट्रॉनिक निकोटिन डिलिवरी सिस्टम (Electronic Nicotine Delivery Systems- ENDS) की ऑनलाइन व ऑफलाइन बिक्री, निर्माण, वितरण, व्यापार, आयात या विज्ञापन की अनुमति न दें।
  • दिल्ली उच्च न्यायालय ने केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन के उक्त सर्कुलर पर यह कहते हुए रोक लगा दी कि ई-सिगरेट और ई-हुक्का जैसे इलेक्ट्रॉनिक निकोटिन डिलिवरी सिस्टम (Electronic Nicotine Delivery Systems- ENDS) ड्रग नहीं हैं। इन्हीं परिस्थितियों के मद्देनज़र यह अध्यादेश लाया जा रहा है ताकि ई-सिगरेट के खिलाफ शिकंजा कसा जा सके।

ई-सिगरेट क्या है?

  • ई-सिगरेट या इलेक्ट्रॉनिक निकोटिन डिलिवरी सिस्टम (ENDS) एक बैटरी संचालित डिवाइस है, जो तरल निकोटीन, प्रोपलीन, ग्लाइकॉल, पानी, ग्लिसरीन के मिश्रण को गर्म करके एक एयरोसोल बनाता है, जो एक असली सिगरेट जैसा अनुभव देता है।
  • यह डिवाइस पहली बार 2004 में चीनी बाज़ारों में ‘तंबाकू के स्वस्थ विकल्प’ के रूप में बेची गई थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, 2005 से ही ई-सिगरेट उद्योग एक वैश्विक व्यवसाय बन चुका है और आज इसका बाज़ार लगभग 3 अरब डॉलर का हो गया है।

E-cigarettes

  • ई-सिगरेट ने अधिक लोगों को धूम्रपान शुरू करने के लिये प्रेरित किया है, क्योंकि इसका प्रचार-प्रसार ‘हानिरहित उत्पाद’ के रूप में किया जा रहा है। किशोरों के लिये ई-सिगरेट धूम्रपान शुरू करने का एक प्रमुख साधन बन गया है।
  • भारत में 30-50% ई-सिगरेट्स ऑनलाइन बिकती हैं और चीन इसका सबसे बड़ा आपूर्तिकर्त्ता देश है। भारत में ई-सिगरेट की बिक्री को अभी तक उचित तरीके से विनियमित नहीं किया गया है। यही कारण है कि इसे बच्चे और किशोर इसे आसानी से ऑनलाइन खरीद सकते हैं।
  • पंजाब राज्य ने ई-सिगरेट को अवैध घोषित किया है। राज्य का कहना है कि इसमें तरल निकोटीन का प्रयोग किया जाता है, जो वर्तमान में भारत में अपंजीकृत ड्रग के रूप में वर्गीकृत है।
  • इसके चलते पंजाब सरकार ने ई-सिगरेट के विक्रेताओं के खिलाफ मामले भी दर्ज़ किये हैं।
  • अप्रैल 2016 में पंजाब की सत्र अदालत ने मोहाली के विक्रेता को अवैध ड्रग बेचने के ज़ुर्म में तीन साल की सज़ा सुनाई थी।यह भारत में अपनी तरह का पहला मामला था।
  • उल्लेखनीय है कि कर्नाटक राज्य ने भी ई-सिगरेट के उत्पादन और बिक्री पर प्रतिबंध को मज़बूती से लागू करने के लिये हाल ही में निकोटिन को ज़हरीले पदार्थों के वर्ग A के तहत एक खतरनाक पदार्थ के रूप में अधिसूचित किया है।

स्वास्थ्य पर प्रभाव

  • कई अध्ययनों से पता चला है कि ई-सिगरेट बच्चों, किशोरों और गर्भवती महिलाओं के लिये बहुत हानिकारक है। ई-सिगरेट पीने वाले लोगों में श्वसन और जठरांत्र संबंधी रोग पाए गए।

स्रोत- इकोनॉमिक टाइम्स


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

ह्यूमन जीनोम एडिटिंग

चर्चा में क्यों?

विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation-WHO) की एक विशेषज्ञ सलाहकार समिति (Expert Advisory Committee) ने ह्यूमन जीनोम एडिटिंग (Human Genome Editing) पर शोध की निगरानी करने के लिये वैश्विक पंजीकरण शुरू करने हेतु पहले चरण को मंज़ूरी दी है।

प्रमुख बिंदु

  • इस पहल का उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र की अंतर्राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य निगरानी व्यवस्था द्वारा जीन आधारित उपचारों से संबंधित नई प्रौद्योगिकियों की नैतिक और विनियामक चुनौतियों की पहचान करना है।
  • समिति की अनुशंसा को स्वीकार करते हुए WHO ने अंतर्राष्ट्रीय नैदानिक परीक्षण पंजीकरण मंच (International Clinical Trials Registry Platform-ICTRP) का उपयोग कर पंजीकरण के प्रारंभिक चरण की घोषणा की। इस चरण में शारीरिक और जर्मलाइन (Germline) संबंधी नैदानिक परीक्षणों को शामिल किया गया है।
  • इस पंजीकरण को उद्देश्यपूर्ण बनाने और पारदर्शिता को सुनिश्चित करने के लिये इसमें हितधारकों को भी शामिल किया जाएगा।
  • समिति ने सभी संबंधित अनुसंधान और विकास पहलों को अपने परीक्षणों को पंजीकृत करवाने के दिशा-निर्देश दिये हैं।
  • ह्यूमन जीनोम एडिटिंग के लिये एक वैश्विक शासन ढाँचे के विकास हेतु यह समिति ऑनलाइन और व्यक्तिगत दोनों प्रकार से परामर्श देने का कार्य करेगी।
  • नई जीनोम एडिटिंग तकनीक लाईलाज बीमारियों के उपचार में उपयोगी है, परंतु इस तकनीक से नैतिक, सामाजिक, नियामक और तकनीकी चुनौतियाँ भी जुड़ी हैं।

जर्मलाइन (Germline)

Gene Editing Process

  • यह रोगाणु कोशिकाओं की एक शृंखला होती है जो क्रमागत या पहले की कोशिकाओं से विकसित होती है और जीव की उतरोत्तर संतति के साथ जारी रहती है।

ह्यूमन जीनोम एडिटिंग

  • जीनोम एडिटिंग को आनुवंशिक संशोधन या आनुवंशिक इंजीनियरिंग भी कहा जाता है।
  • जीनोम एडिटिंग प्रौद्योगिकियों का एक समूह है जो वैज्ञानिकों को किसी जीव के DNA (Deoxyribonucleic Acid) को बदलने की क्षमता प्रदान करता है। ये प्रौद्योगिकियाँ जीनोम में विशेष स्थानों पर आनुवंशिक सामग्री को जोड़ने, हटाने या बदलने में सहायक होती हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) संयुक्त राष्ट्र संघ की एक विशेष एजेंसी है जिसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सार्वजनिक स्वास्थ्य (Public Health) को बढ़ावा देना है।
  • इसकी स्थापना 7 अप्रैल, 1948 को हुई थी।
  • इसका मुख्यालय जिनेवा (स्विट्ज़रलैंड) में अवस्थित है।

अंतर्राष्ट्रीय नैदानिक परीक्षण पंजीकरण मंच

(International Clinical Trials Registry Platform-ICTRP)

  • यह पंजीकरण अनुसंधान की पारदर्शिता में सुधार और वैज्ञानिक प्रमाण के आधार की वैधता एवं मूल्यों को मज़बूत करता है।
  • ICTRP का मुख्य उद्देश्य सभी नैदानिक परीक्षणों का पंजीकरण करना और उस जानकारी तक सार्वजनिक पहुँच की सुविधा प्रदान करना है।

देश देशांतर : जीनोम मैपिंग

जीन एडिटिंग से संबंधित नैतिक चिंताएँ

जीन एडिटिंग

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

खाद्यान्न बर्बादी की समस्या

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट (World Resources Institute-WRI) द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक स्तर पर प्रतिवर्ष जितना भी खाद्य उत्पादन किया जाता है उसका एक-तिहाई हिस्सा बर्बाद हो जाता है।

रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:

  • WRI द्वारा जारी इस रिपोर्ट में प्रतिवर्ष वैश्विक स्तर पर खाद्य पदार्थों की होने वाली बर्बादी के संदर्भ में आँकड़े जारी किये गए हैं।
  • यदि बर्बाद होने वाले खाद्य पदार्थों का मौद्रिक मूल्य देखें तो यह लगभग 940 बिलियन डॉलर है अर्थात् वैश्विक स्तर पर प्रतिवर्ष 940 बिलियन डॉलर के खाद्य पदार्थ बर्बाद हो जाते हैं।
  • खाद्य पदार्थों की बर्बादी से न सिर्फ वैश्विक अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ रहा है बल्कि यह वैश्विक पर्यावरण को भी नुकसान पहुँचा रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, खाद्य पदार्थों की बर्बादी से ग्रीनहाउस गैस में तकरीबन 8 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
  • कई अध्ययनों का हवाला देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि विश्व के निम्न आय वाले देशों में खाद्य पदार्थों की बर्बादी मुख्यतः ‘खेतों’ (Farms) के स्तर पर होती है अर्थात् इन देशों में खाद्यान्न की सबसे ज़्यादा बर्बादी उत्पादन से लेकर बाज़ार तक पहुँचने के चरण में होती है।
  • वहीं विश्व के अधिकतर उच्च आय वाले देशों में खाद्यान्न की बर्बादी ‘प्लेट’ (Plate) के स्तर पर होती है अर्थात् इन देशों में खाद्य की सबसे ज़्यादा बर्बादी तब होती है जब वह लोगों तक पहुँच जाता है, इन देशों में अधिकतर लोग प्लेट में खाना छोड़कर उसे बर्बाद कर देते हैं।

भारत में खाद्य पदार्थों की बर्बादी

  • भारत में खाद्य की बर्बादी के आँकड़े और अधिक चौकाने वाले हैं। 2017 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, हर साल यूनाइटेड किंगडम (United Kingdom) में जितना खाद्य प्रयोग में लाया जाता है, उतना खाना भारत में बर्बाद हो जाता है।
  • भारत में सबसे ज़्यादा खाद्य पदार्थों की बर्बादी सार्वजनिक समारोहों में होती है।
  • भारत के कुल गेहूँ उत्पादन में से करीब 2 करोड़ टन गेहूँ बर्बाद हो जाता है।
  • स्वयं कृषि मंत्रालय के आँकड़े बताते हैं कि भारत में लगभग 50 हज़ार करोड़ रुपए का अन्न बर्बाद हो जाता है।

खाद्यान्न की बर्बादी को कम करने के उपाय

  • खाद्य उत्पादन, प्रसंस्करण, संरक्षण और वितरण की अधिक कुशल एकीकृत प्रणालियों को विकसित किये जाने की ज़रूरत है जो देश की बदलती खाद्य ज़रूरतों को पूरा कर सके।
  • इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ रेफ्रिजरेशन (International Institute of Refrigeration) के अनुसार, यदि विकासशील देशों के पास विकसित देशों के समान ही शीत-गृहों (Cold Storage) की उपलब्धता हो तो वे अपने खाद्यान्न को बर्बाद होने से बचा सकेंगे।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में खुले में रखे अनाज की बर्बादी को रोकने के लिये पंचायत स्तर पर आकस्मिक भंडार की भी व्यवस्था की जानी चाहिये।
  • इसके साथ ही सरकार एक ऐसा कानून बना सकती है जिसके माध्यम से सार्वजनिक समारोहों में खाद्य की बर्बादी को रोका जा सके और बर्बादी करने वाले को दंडित किया जा सके।
  • आजकल शादियों सहित अन्य सामाजिक समारोहों में दिखावे के लिये फिज़ूलखर्ची एक आम परंपरा बन गई है जिसके कारण यहाँ काफी अन्न बर्बाद होता है, इस संदर्भ में हमें अपनी मानसिकता को परिवर्तित करने की ज़रूरत है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके की खाद्य पदार्थों का आवश्यकतानुसार ही उपयोग हो एवं उनकी बर्बादी न की जाए।

वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट

(World Resources Institute-WRI)

  • WRI एक वैश्विक शोध संगठन है जो ब्राज़ील, चीन, भारत और इंडोनेशिया जैसे विश्व के लगभग 60 देशों में कार्यरत है।
  • WRI की स्थापना वर्ष 1982 में मनुष्यों और प्रकृति के परस्पर-निर्भर हितों को साधने के लिये की गई थी।
  • इसका मुख्यालय अमेरिका के वॉशिंगटन डी.सी. (Washington D.C.) में स्थित है।
  • संगठन का उद्देश्य पर्यावरणीय स्थिरता, आर्थिक अवसर और मानव स्वास्थ्य तथा कल्याण को बढ़ावा देना है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

भारत में पुलिस की स्थिति रिपोर्ट 2019

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कॉमन कॉज़ एवं सेंटर फॉर द स्टडी डेवलपिंग सोसाइटीज़ ने “भारत में पुलिस की स्थिति रिपोर्ट 2019: पुलिस की पर्याप्तता और कार्य करने की स्थिति” शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है।

प्रमुख बिंदु

  • भारत में पुलिस की स्थिति रिपोर्ट 2019 (Status of Policing in India Report- SPIR 2019) उन कार्य-परिस्थितियों के बारे में बताती है जिन स्थितियों में भारतीय पुलिस कार्य करती है।
  • यह रिपोर्ट निम्न दो स्रोतों से प्राप्त आँकड़ों के विश्लेषण पर आधारित है। पहला सरकारी एजेंसियों द्वारा राज्य पुलिस की राज्यवार पर्याप्तता के स्तर को मापने के लिये ‘आधिकारिक समय-शृंखला आँकडें’ (Official Time-Series Data) एवं दूसरा, 21 प्रमुख भारतीय राज्यों में पुलिसकर्मियों के साक्षात्कार से प्राप्त आँकडें।
  • पुलिसकर्मियों की कार्य-परिस्थितियों, उनके परिवार के सदस्यों के विचार, सामाजिक विविधता के मामलों में उनके खराब रिकॉर्ड, अपराध की जाँच हेतु बुनियादी ढाँचा और दिन-प्रतिदिन के कार्यों पर ‘SPIR 2019’ भारत एवं दक्षिण एशिया में अपनी तरह का पहला अध्ययन है।
  • इस अध्ययन में पुलिस और आम जनता के बीच संबंध, पुलिस और हाशिये के समुदायों के बीच संबंध एवं पुलिस द्वारा हिंसा के प्रयोग के बारे में भी बताया गया है।
  • अध्ययन में भारत के 20 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेश दिल्ली के पुलिस स्टेशनों में कार्यरत 11,834 पुलिसकर्मियों के अलावा 10,535 पुलिसकर्मियों के परिवार के सदस्यों का साक्षात्कार शामिल है।
  • पहली बार कई मापदंडों पर पुलिस बलों के प्रदर्शन के संकेतकों में सुधार या गिरावट की दर दिखाने के लिये आधिकारिक आँकड़ों का विश्लेषण किया गया है।
  • सर्वेक्षण में पुलिस पदानुक्रम के सबसे निचले पायदान पर स्थित पुलिसकर्मी और विभिन्न सामाजिक पृष्ठभूमि से पुरुषों और महिलाओं को शामिल किया गया है।

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु:

  • एक-तिहाई पुलिस अफसरों ने यह माना है कि यदि उन्हें समान वेतन और सुविधाओं वाली कोई अन्य नौकरी दी जाए तो वे अपनी पुलिस की नौकरी छोड़ देंगे।
  • चार में से तीन पुलिसकर्मियों ने कहा कि कार्यभार के कारण उनके लिये अपने काम को अच्छी तरह से करना मुश्किल हो जाता है और इससे उनके शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर पड़ता है।
    • आँकड़ों के अनुसार, एक औसत पुलिस अधिकारी एक दिन में लगभग 14 घंटे कार्य करता है, जबकि मॉडल पुलिस अधिनियम (Model Police Act) सिर्फ 8 घंटों की ड्यूटी की सिफारिश करता है।
    • हर दूसरे पुलिसकर्मी ने सप्ताह में एक भी अवकाश न मिलने की बात कही है।

Police Hour

  • कार्य तथा निजी जीवन के बीच असंतुलन के अतिरिक्त पुलिसकर्मियों को संसाधनों की कमी की समस्या से भी जूझना पड़ता है।
    • कुछ पुलिस स्टेशनों में पीने का पानी, स्वच्छ शौचालय, परिवहन, पर्याप्त कर्मचारियों और नियमित खरीद के लिये धन जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है।
    • पुलिसकर्मियों ने बुनियादी तकनीकी सुविधाओं जैसे- कंप्यूटर और भंडारण सुविधा न होने की भी बात कही है।

Police basic facilities

  • सर्वेक्षण में न्यायिक प्रक्रियाओं के प्रति पुलिस बल में कई लोगों के आकस्मिक (Casual) रवैये पर प्रकाश डाला गया है।
    • लगभग पाँच में से तीन पुलिसकर्मियों का मानना ​​है कि प्राथमिक जाँच रिपोर्ट (First Investigation Report-FIR) दर्ज होने से पहले प्राथमिक जाँच होनी चाहिये, चाहे वह कितना भी गंभीर अपराध क्यों न हो।
      • यह 2013 के सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले के विपरीत है जिसमें कहा गया है कि यदि किसी पीड़ित द्वारा संज्ञेय अपराध के बारे में जानकारी का खुलासा किया जाता है तो पुलिस द्वारा FIR दर्ज करना अनिवार्य है।
    • सर्वेक्षण में शामिल हर तीसरे पुलिसकर्मी ने सहमति व्यक्त की है कि मामूली अपराधों के लिये पुलिस द्वारा अभियुक्तों को दी मामूली सज़ा कानूनी परीक्षण से बेहतर है।
    • सर्वेक्षण में भाग लेने वाले तीन-चौथाई लोगों का मानना है कि पुलिस का अपराधियों के प्रति हिंसक रवैया अपनाना ठीक है।
  • सर्वेक्षण में यह भी पाया गया कि पुलिसकर्मियों को शारीरिक मापदंडों, हथियारों और भीड़ नियंत्रण के लिये पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित किया गया है, तथापि अभी तक उन्हें साइबर अपराध या फोरेंसिक तकनीक के मॉड्यूल का प्रशिक्षण नहीं दिया गया है।
  • उपरोक्त तथ्यों के कारण ही वर्ल्ड जस्टिस प्रोजेक्ट (World Justice Project) द्वारा जारी रूल ऑफ लॉ इंडेक्स (Rule of Law Index) में भारत की रैंकिंग 126 देशों में से 68वीं है।

Centre for the Study of Developing Societies (CSDS)

CSDS

  • इसकी स्थापना वर्ष 1963 में हुई थी।
  • यह सामाजिक विज्ञान और मानविकी के लिये एक भारतीय, गैर-सरकारी अनुसंधान संस्थान है।
  • CSDS को वर्ष 1969 से भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय के तहत भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICSSR), नई दिल्ली द्वारा समर्थन प्राप्त है।

कॉमन कॉज़ (Common Cause)

कॉमन कॉज़ एक पंजीकृत ‘सोसायटी’ है, जिसके पूरे देश में 2500 से अधिक सदस्य फैले हुए हैं।

कॉमन कॉज़ जनहित से जुड़े मुद्दों को लोकतंत्र, सुशासन और सार्वजनिक नीति में सुधारों की वकालत करके नीति निर्माताओं के साथ औपचारिक एवं अनौपचारिक बातचीत से, विचारों के प्रसार तथा अभियानों के माध्यम से बढ़ावा देने का प्रयास करती है।

विज़न: एक ऐसे भारत के लिये प्रयास करना जहाँ हर नागरिक का सम्मान किया जाए और उसके साथ उचित व्यवहार किया जाए।

मिशन: महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक हितों की रक्षा करना।

लक्ष्य: सभी नागरिक-समूहों के अधिकारों के बचाव हेतु संघर्ष करना।

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स


सामाजिक न्याय

विश्व में लैंगिक असमानता की चुनौती

चर्चा में क्यों?

अमेरिकी पत्रिका ‘अमेरिकन साइकोलॉजिस्ट’ (American Psychologist) में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक, 86 प्रतिशत अमेरिकी वयस्कों ने माना है कि महिला एवं पुरुष का बौद्धिक (Intellectual) स्तर समान है।

प्रमुख बिंदु:

  • ज्ञातव्य है कि वर्ष 1946 में ऐसे ही एक अध्ययन में यह बात सामने आई थी कि मात्र 35 प्रतिशत अमेरिकी वयस्क ही ऐसा मानते हैं कि महिला एवं पुरुष का बौद्धिक स्तर समान होता है।
  • वर्तमान आँकड़े दर्शाते हैं कि 21वीं सदी में समाज का महिलाओं के प्रति दृष्टिकोण में भारी बदलाव आया है। पर क्या इसे इस रूप में लिया जा सकता है कि वैश्विक समाज लैंगिक समानता के अपने उद्देश्य को प्राप्त करने के करीब है?
  • वर्ल्ड एम्प्लॉयमेंट एंड सोशल आउटलुक ट्रेंड फॉर वीमेन (World Employment And Social Outlook Trends For Women) 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में पहले से ज्यादा महिलाएँ शिक्षित हैं एवं श्रम बाजार (Labour Market) में भाग ले रही हैं।
  • हालाँकि इन सभी के बीच विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum) द्वारा जारी ‘ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट’ (Global Gender Gap Report) 2018 में कहा गया है कि वैश्विक स्तर पर लिंग भेद को कम करने के लिये कम-से-कम 108 साल तथा कार्यबल में समानता हासिल करने के लिए कम-से-कम 202 साल लगेंगे।
  • यदि विश्व आर्थिक मंच की रिपोर्ट को मानें तो लैंगिक समानता के उद्देश्य को प्राप्त करने में हमें अभी काफी समय लगेगा। अतः इसमें कोई संदेह नहीं है कि लैंगिक असमानता के मुद्दे को हल करने के लिये हमें एक नए दृष्टिकोण की आवश्यकता है।

शिक्षित होने एवं कार्यबल में हिस्सेदारी के बावजूद भी महिलाओं को अब तक बराबरी के रूप में क्यों स्वीकार नहीं किया गया है?

  • लाखों वर्षों से कुछ मातृसत्तात्मक समाजों को छोड़कर पुरुष को सदैव ही परिवार का मुखिया माना जाता रहा है। परिवार के अंतर्गत पुरुषों की भूमिका सदैव ही महिलाओं की भूमिका से उच्चतर मानी गई है, जिसके कारण लिंग असमानता को परिवारों में कभी भी सामाजिक मूल्य के रूप में नहीं देखा गया।
  • शिकागो विश्वविद्यालय के शोधकर्त्ताओं ने वर्ष 1970 से 2000 तक के जनगणना आँकड़ों का उपयोग करते हुए कहा था कि उन शादियों में, जहाँ महिलाएँ पुरुषों से अधिक कमाती हैं, तलाक की संभावनाएँ अधिक रहती हैं।
  • विश्व की लगभग सभी धार्मिक मान्यताओं में पुरुषों को ही प्रधान माना जाता है। धर्म के सभी प्रमुख कार्य, जैसे-धार्मिक समारोह आयोजित करना और धार्मिक पदानुक्रम को बढ़ाना, पुरुषों के लिये आरक्षित हैं।

कैसे सुधरेगी स्थिति:

  • लैंगिक समानता के उद्देश्य को हासिल करना जागरूकता कार्यक्रमों के आयोजन और कार्यालयों में कुछ पोस्टर चिपकाने तक ही सीमित नहीं है। यह मूल रूप से किसी भी समाज के दो सबसे मजबूत संस्थानों - परिवार और धर्म की मान्यताओं को बदलने से संबंधित है।
  • लैंगिक समानता का सूत्र श्रम सुधारों और सामाजिक सुरक्षा कानूनों से भी जुड़ा है, फिर चाहे कामकाजी महिलाओं के लिये समान वेतन सुनिश्चित करना हो या उन्हें सुरक्षित नौकरी की गारंटी देना।

स्रोत: लाइव मिंट


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

4th साउथ एशियन स्पीकर्स समिट

चर्चा में क्यों?

हाल ही में मालदीव की राजधानी माले में चौथे ‘साउथ एशियन स्पीकर्स समिट’ (South Asian Speaker's Summit) का आयोजन किया गया।

प्रमुख बिंदु

  • इस सम्मेलन में ‘माले घोषणा-पत्र’ (Male Declaration) को अपनाया गया।
  • इस सम्मेलन के आयोजन का उद्देश्य सतत् विकास लक्ष्यों (Sustainable Development Goals-SDGs) को प्राप्त करना है।
  • इस सम्मेलन का आयोजन मालदीव की संसद ‘मजलिस’ (Majlis) में किया गया।
  • गौरतलब है कि पहले साउथ एशियन स्पीकर्स समिट का आयोजन बांग्लादेश (वर्ष 2016), दुसरे का भारत (वर्ष 2017), जबकि तीसरे समिट का आयोजन श्रीलंका (वर्ष 2018) में किया गया था।

माले घोषणा-पत्र की प्रतिबद्धताएँ

  • कार्यस्थल पर समानता, समान पारिश्रमिक, युवाओं के लिये रोज़गार का सृजन आदि को प्रोत्साहित करने के लिये सामूहिक रूप से कार्य करने हेतु प्रतिबद्धता।
  • एशिया-प्रशांत क्षेत्र में महिलाओं, बच्चों एवं किशोरों के स्वास्थ्य पर ध्यान देते हुए SDG-2 एवं SDG-3 के लक्ष्यों, कुपोषण व खाद्य सुरक्षा को प्राप्त करने में आने वाली चुनौतियों का सामूहिक रूप से सामना करने हेतु प्रतिबद्धता।
  • पेरिस समझौते के लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु क्षेत्रीय एजेंडा को मज़बूत कर अवसरों का समुचित उपयोग करना।

कश्मीर मुद्दा

  • इस सम्मेलन में पाकिस्तान ने जम्मू और कश्मीर एवं लद्दाख विभाजन का मुद्दा उठाने का प्रयास किया परंतु इस मांग को खारिज कर दिया गया।
  • इस सम्मेलन में कश्मीर मुद्दे को भारत का आंतरिक विषय माना गया तथा भारत द्वारा सम्मेलन का राजनीतिकरण किये जाने के पाकिस्तान के प्रयास का विरोध किया गया।

भारत का पक्ष

  • भारत का आर्थिक विकास पर्यावरण संरक्षण से संगतता रखते हुए हरित विकास को महत्त्व देता है।
  • भारतीय संसद SDGs से संबंधित नीतियों के कार्यान्वयन की निगरानी और इनसे उत्पन्न होने वाले मुद्दों तथा नीति निर्धारण प्रक्रिया का मार्गदर्शन कर आम सहमति के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

विद्युतघरों हेतु पॉवर पैकेज की जाँच

चर्चा में क्यों?

विद्युत मंत्रालय (Power Ministry) कोयला संचालित विद्युतघरों (Power Stations) को राहत देने हेतु जारी किये गए पैकेज के संभावित दुरुपयोग की जाँच कर रहा है।

प्रमुख बिंदु:

  • उल्लेखनीय है कि विद्युत मंत्रालय द्वारा कोयले पर निर्भर तनावग्रस्त विद्युतघरों ( लगभग 40,000 मेगावाट की क्षमता वाले) को कोयले की आपूर्ति हेतु यह राहत पैकेज उपलब्ध कराया गया था।
    • ऐसा करने का प्राथमिक उद्देश्य विद्युत उत्पादन कंपनियों को अन्य विद्युत वितरण समझौतों (Power Purchase Agreements-PPAs) की तलाश के लिये पर्याप्त समय देना था।
    • दो वर्ष की अवधि के पश्चात् यदि उत्पादन कंपनियाँ किसी भी PPA की तलाश करने में असफल रहती हैं तो यह राहत पैकेज समाप्त कर दिया जाएगा।

PPA दो पक्षों के मध्य एक अनुबंध होता है, जिसमें एक पक्ष विद्युत का उत्पादन करता है और दूसरा पक्ष विद्युत खरीदता है।

  • मंत्रिमंडल सचिव पी. के. मिश्र की अध्यक्षता वाली उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट के अनुसार 40,000 से अधिक मेगावाट क्षमता वाली कुल 34 परियोजनाओं को तनावग्रस्त के रूप में चिह्नित किया गया था।
  • विद्युत वितरण कंपनियों का बकाया देश के सबसे प्रमुख मुद्दों में से एक है।
    • इसी समस्या से निपटने व भुगतान सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिये सरकार ने 1 अगस्त, 2019 से PPA में राज्य वितरण कंपनियों के लिये उधार-पत्र (Letters of Credit-LC) को पेश करना अनिवार्य कर दिया है।

उधार-पत्र एक दस्तावेज़ है जो विक्रेताओं को खरीदार के भुगतान की गारंटी देता है।

  • राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और राज्य लोड डिस्पैच केंद्रों (Load Dispatch Centres) को सख्त हिदायत दी गई है कि जब तक वितरण कंपनियों द्वारा यह विश्वास न दिलाया जाए कि उधार-पत्र को तैयार कर उसकी प्रतियाँ संबंधित उत्पादन कंपनी को भेज दी गई हैं तब तक विद्युत की आपूर्ति न की जाए।
  • विद्युत वितरण समझौतों में दी गई 45 या 60 दिनों की रियायत अवधि (Grace Period) के बाद भी यदि वितरण कंपनियाँ, विद्युत उत्पादक कंपनियों का भुगतान नहीं करती हैं तो विद्युत उत्पादक कंपनियों को उधार-पत्र लागू करने का पूर्ण अधिकार होगा।

स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया


भारतीय अर्थव्यवस्था

CBDT के नए निर्देश

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (Central Board of Direct Taxes- CBDT) ने कहा कि पैन कार्ड न होने की स्थिति में आधार कार्ड के साथ आयकर जमा करने पर अब पैन कार्ड आवंटित किया जाएगा।

प्रमुख बिंदु:

  • आयकर विभाग स्वचालित रूप से उन करदाताओं को पैनकार्ड जारी करेगा जो आयकर जमा करते समय दो डेटाबेस को लिंक करने की नई व्यवस्था के लिये अपने आधार नंबर का उपयोग करेंगे।
  • केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड की अधिसूचना के अनुसार आयकर, जमाकर्त्ताओं के पास पैन कार्ड न होने की स्थिति में आधार कार्ड का प्रयोग करने वाले आयकरदाता को पैन कार्ड आवंटित किया जाएगा। यह नियम 1 सितंबर, 2019 से लागू हो गया है।
  • केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड पैन कार्ड बनाने हेतु आधार कार्ड की सूचनाओं का प्रयोग करेगा।
  • UIDAI (भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण-Unique Identification Authority of India) निवासियों को आधार कार्ड जारी करता है वहीं पैन एक 10 अक्षरांकीय (Alphanumeric) संख्या है जो कर विभाग द्वारा किसी व्यक्ति, कंपनी या इकाई को आवंटित की जाती है।
  • आधार कार्ड में किसी व्यक्ति की सभी महत्त्वपूर्ण जानकारी जैसे- नाम, जन्म तिथि, लिंग, फोटो और पता, साथ ही बायोमेट्रिक्स शामिल हैं। नया पैन कार्ड प्राप्त करने के लिये सूचना के एक ही सेट की आवश्यकता होती है।
  • ऑँकड़ों के अनुसार देश भर में 120 करोड़ से अधिक आधार कार्ड और लगभग 41 करोड़ पैन कार्ड जारी किये जा चुके हैं। इनमें से 22 करोड़ से ज़्यादा पैन कार्ड और आधार कार्ड आपस में जोड़े गए हैं।
  • आयकर अधिनियम की धारा 139 AA (2) के अनुसार 1 जुलाई, 2017 तक आधार कार्ड प्राप्त प्रत्येक व्यक्ति अपना को पैन कार्ड आधार से जोड़ना होगा। उच्चतम न्यायालय द्वारा आयकर अधिनियम की धारा 139 AA को मान्यता दी गई थी।
  • उच्चतम न्यायालय ने पिछले सितंबर में घोषित किया था कि केंद्र की आधार योजना संवैधानिक रूप से मान्य है और आयकर जमा करते समय पैन के आवंटन के लिये बायोमेट्रिक पहचानपत्र अनिवार्य है।

केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड

(Central Board of Direct Taxation)

  • वर्ष 1963 में केंद्रीय राजस्व बोर्ड अधिनियम,1963 (Central Board of Revenue Act, 1963) के माध्यम से केंद्रीय वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग के अधीन दो संस्थाओं का गठन किया गया था, जो निम्नलिखित हैं-
  1. केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (Central Board of Direct Taxation)
  2. केंद्रीय उत्पाद शुल्क और सीमा शुल्क बोर्ड (Central Board of Excise and Customs)
  • ये दोनों ही संस्थाएँ सांविधिक निकाय (Statutory Body) हैं।
  • इनमें से CBDT प्रत्यक्ष करों से संबंधित नीतियों एवं योजनाओं के संबंध में महत्त्वपूर्ण इनपुट प्रदान करने के साथ-साथ आयकर विभाग की सहायता से प्रत्यक्ष करों से संबंधित कानूनों को प्रशासित करता है। वहीं CBEC भारत में सीमा शुल्क (Custom Duty), केंद्रीय उत्पाद शुल्क (Central Excise Duty), सेवा कर (Service Tax) तथा नारकोटिक्स (Narcotics) के प्रशासन के लिये उत्तरदायी नोडल एजेंसी है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

चीन और अमेरिका

चर्चा में क्यों?

चीन ने आयात शुल्क के मुद्दे को लेकर विश्व व्यापार संगठन में अमेरिका के विरुद्ध मामला दर्ज कराया है।

प्रमुख बिंदु:

  • संयुक्त राज्य अमेरिका ने 1 सितंबर से विभिन्न चीनी वस्तुओं पर 15% आयात शुल्क लगा दिया है।
  • चीन ने आरोप लगाया कि अमेरिका द्वारा लगाए गए नए आयात शुल्क ने चीन और अमेरिका के राष्ट्रपतियों द्वारा G-20 की ओसाका बैठक के दौरान किये गए समझौते का भी उल्लंघन किया है।
  • चीन का कहना है कि वह विश्व व्यापार संगठन के नियमों के अनुसार अपने कानूनी अधिकारों की रक्षा करेगा।

विश्व व्यापार संगठन

(World Trade Organization)

  • विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization) विश्व में व्यापार संबंधी अवरोधों को दूर कर वैश्विक व्यापार को बढ़ावा देने वाला एक अंतर-सरकारी संगठन है, जिसकी स्थापना वर्ष 1995 में मराकेश संधि के तहत की गई थी।
  • इसका मुख्यालय ज़िनेवा में है। वर्तमान में विश्व के 164 देश इसके सदस्य हैं।
  • 29 जुलाई, 2016 को अफगानिस्तान इसका 164वाँ सदस्य बना था।
  • सदस्य देशों का मंत्रिस्तरीय सम्मलेन इसके निर्णयों के लिये सर्वोच्च निकाय है, जिसकी बैठक प्रत्येक दो वर्षों में आयोजित की जाती है।
  • अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन से बातचीत के बाद बताया कि अमेरिका चीन के विरुद्ध आयात शुल्क में और अधिक वृद्धि करने पर भी पुनर्विचार कर रहा है।
  • अमेरिका द्वारा चीनी वस्तुओं पर आयात शुल्क बढ़ाने की धमकियों के बाद चीन ने भी अमेरिका के 75 बिलियन अमेरिकी डाॅलर के उत्पादों पर अतिरिक्त शुल्क लगाने की अपनी योजना की घोषणा की है।
  • नए शुल्कों को दो बार; 1 सितंबर से और 15 दिसंबर से लागू किया जाएगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

दक्षिणी महासागर और वैश्विक जलवायु

चर्चा में क्यों?

साइंस एडवांसेज (Science Advances) में प्रकाशित एक अध्ययन में दक्षिणी महासागर और वैश्विक जलवायु के अंतर्संबंधों को स्पष्ट किया गया है।

प्रमुख बिंदु:

  • नए अध्ययन में दक्षिणी महासागर और अंटार्कटिका द्वारा वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर को प्रभावित करने संबंधी पुरानी अवधारणा को नए शोध द्वारा चुनौती दी गई है।
  • अध्ययन के अनुसार मौजूदा धारणाओं के विपरीत वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर को प्रभावित करने में समुद्र में होने वाली जैविक प्रक्रियाएंँ सबसे महत्त्वपूर्ण कारक हैं, जो निर्धारित करती हैं कि समुद्र कार्बन डाइऑक्साइड को किस प्रकार अवशोषित करता है।
  • कार्बन डाइऑक्साइड महासागरों की सतह और गहरे समुद्रों द्वारा लंबे समय के दौरान अवशोषित कर ली जाती है।
  • दक्षिणी महासागर द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड को वायुमंडल से अवशोषित करने की प्रक्रिया वैज्ञानिकों को अतीत के नाटकीय जलवायु संक्रमण, अंटार्कटिका में बर्फ की आयु की व्याख्या करने के साथ ही जलवायु परिवर्तन के वर्तमान स्तर और भविष्यगामी प्रभावों की सटीक भविष्यवाणी में भी मदद करती है।
  • अध्ययन में कहा गया है कि कार्बन के वायुमंडल या समुद्र में प्रवेश से समुद्री जल का घनत्व प्रभावित होता है, जिससे समुद्री सतह का तापमान प्रभावित होता है।
  • साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय (University of Southampton), ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वे (British Antarctic Survey), यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट एंज्लिया (University of East Anglia) और जर्मनी के अल्फ्रेड वेगेनर इंस्टीट्यूट (Alfred Wegener Institute) के वैज्ञानिकों ने अंटार्कटिक प्रायद्वीप के पूर्व में स्थित एक क्षेत्र वेडेल गाॅयर (Weddell Gyre) में महासागरीय परिसंचरण और कार्बन संकेंद्रण (Concentration) का अध्ययन किया है।
  • इस अध्ययन के दौरान वैज्ञानिकों ने ANDREX (Antarctic Deep water Rates of Export) परियोजना के तहत वेडेल गाॅयर (Weddell Gyre) क्षेत्र के वर्ष 2008 और 2010 के बीच जल के भौतिक, जैविक और रासायनिक गुणों के डेटा का भी प्रयोग किया है।
  • वैज्ञानिकों ने तर्क दिया कि वेडेल गाॅयर (Weddell Gyre) के केंद्र में फाइटोप्लैंकटन के बढ़ने और घटने से समुद्र में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन और अवशोषण प्रभावित होता है जिसके परिणामस्वरूप वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा प्रभावित होती है। इस प्रक्रिया को जैविक कार्बन पंप (Biological Carbon Pump) कहा जाता है।
  • वायुमंडल से कार्बन को ग्रहण करने की प्रक्रिया अंटार्कटिका के समीप के उथले समुद्रों के साथ ही खुले समुद्र से भी संबंधित है।
  • साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने बताया कि अंटार्कटिक महाद्वीप और दक्षिणी महासागर हज़ारों वर्षों से वायुमंडलीय कार्बन एवं वैश्विक जलवायु को प्रभावित कर रहे हैं।

निष्कर्षतः इस प्रकार के अध्ययन से पहले हुए जलवायु परिवर्तन की हमारी समझ और विकसित होगी साथ ही भविष्य के जलवायु परिवर्तन का अधिक सटीक अनुमान लगाया जा सकेगा।

स्रोत: द हिंदू


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स (03 September)

  • 1-2 सितंबर को मालदीव की राजधानी माले में दक्षिण एशिया की संसदों के अध्यक्षों का चौथा शिखर सम्मेलन आयोजित हुआ। सतत विकास लक्ष्यों ( SDG) की प्राप्ति विषय पर आयोजित इस सम्मेलन में भारत की ओर से लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला तथा राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह, लोकसभा की महासचिव स्नेहलता श्रीवास्तव और राज्यसभा के महासचिव देश दीपक वर्मा ने हिस्सा लिया। इस सम्मेलन में भारत के अलावा अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, मालदीव, म्यांमार, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका की संसद के अध्यक्ष/पीठासीन अधिकारी शामिल हुए। इस सम्मेलन में शिष्टमंडलों ने अन्य मुद्दों के अलावा सतत विकास लक्ष्यों संबंधी कार्य को आगे बढ़ाने के लिये उनकी संसदों द्वारा किए गए कार्यों और वर्ष 2018 में दक्षिण एशियाई देशों की संसदीय सदनों के अध्यक्षों द्वारा स्वीकृत की गई कोलंबो घोषणा पर चर्चा की। शिखर सम्मेलन के समापन पर एक संयुक्त घोषणापत्र भी जारी किया गया। विदित हो कि इस मंच की संकल्पना ढाका (बंगलादेश) में वर्ष 2016 में हुए पहले दक्षिण एशियाई देशों के अध्यक्षों के शिखर सम्मेलन में की गई थी। दूसरा और तीसरा शिखर सम्मेलन क्रमशः वर्ष 2017 भारत में इंदौर और वर्ष 2018 में श्रीलंका की राजधानी कोलंबो में हुआ था।
  • स्वच्छ भारत अभियान के लिये बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पुरस्कृत करने का फैसला किया है। इस महीने जब प्रधानमंत्री अमेरिका दौरे पर जाएंगे तब उन्हें यह पुरस्कार दिया जाएगा। गौरतलब है कि नरेंद्र मोदी ने 2 अक्टूबर, 2014 को स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की थी। इस अभियान का उद्देश्य अक्टूबर 2019 तक स्वच्छ भारत के लक्ष्य को हासिल करना है। विकासशील देशों में बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन का मुख्य लक्ष्य लोगों के स्वास्थ्य और जीवन को बेहतर करना और लोगों को भूख और अत्यधिक गरीबी से खुद को बाहर निकालने में मदद करना है। फाउंडेशन अपने साझेदारों के साथ मिल कर प्रभावी टीके, दवा और जाँच उपलब्ध करवाने के साथ ही उन लोगों तक स्वास्थ्य सेवा पहुँचाने के नए तरीके विकसित करने का काम करता है जिन्हें इनकी सर्वाधिक आवश्यकता है। इसके अलावा अपरिहार्य वैश्विक मुद्दों पर व्यापक जन जागरुकता के लिये फाउंडेशन सरकारों और सार्वजनिक व निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी करता है।
  • केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड यानी सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (Central Board of Film Certification-CBFC) को नया Logo मिल गया है। सेंसर बोर्ड अब नए Logo के साथ नए तरीके का फिल्म सर्टिफिकेट जारी करेगा। बता दें कि नए Logo के डिज़ाइन को नेशनल सि‍क्योरिटीज़ डिपोसिट्री लिमिटेड की टेक्निकल सपोर्ट टीम के साथ मिलकर डिज़ाइनर रोहित देवगन ने तैयार किया है। पहले जो सर्टिफिकेट जारी किया जाता था, उसमें कई जानकारियाँ दी जाती थीं और वह पूरी तरह भरा हुआ दिखाई देता था। नए सर्टिफिकेट में कुछ बदलाव किये गए हैं और जानकारी भी पहले के मुकाबल कम है। इसमें फिल्म का नाम, तारीख, अवधि, फिल्म किस प्रकार की है, पैनल सदस्यों के नाम और निर्माता का नाम लिखा जाएगा। इसमें एक QR कोड भी है, जिससे कई तरह की जानकारियाँ हासिल की जा सकती हैं। गौरतलब है कि किसी भी फिल्म को रिलीज़ करने से पहले सेंसर बोर्ड से सर्टिफिकेट लेना आवश्यक होता है। सेंसर बोर्ड फिल्म देखकर आपत्तिजनक सीन को हटा भी सकता है और उसके अलावा उसकी कैटेगरी तय करता है। सेंसर बोर्ड की ओर से UA, A आदि सर्टिफिकेट दिए जाते हैं। केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड की स्थापना सिनेमैटोग्राफ एक्ट, 1952 के तहत की गई तथा वर्तमान में प्रसून जोशी इसके चेयरपर्सन हैं।
  • आर्थिक संकट का सामना कर रहे अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस पावर को बांग्लादेश में एक बड़ा बिजली प्रोजेक्ट मिला है। बांग्लादेश ने रिलायंस पावर से अगले 22 साल तक 718 मेगावॉट बिजली खरीदने का फैसला किया है। इसके लिये कंपनी एक बिलियन डॉलर का निवेश करके बांग्लादेश में ही एक पावर प्लांट लगाने की योजना बना रही है। यह प्लांट मेघनाघाट के नारायणगंज में लगाया जाएगा। यह जगह राजधानी ढाका से दक्षिण-पूर्व में 20 किमी. की दूरी पर है। यह एक कंबाइंड साइकिल पावर प्लांट होगा, जिसका स्वामित्व रिलायंस के पास ही होगा। गौरतलब है कि बांग्लादेश ने पिछले ही सप्ताह चीन के साथ एक समझौता किया है, जिसके तहत नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं पर काम किया जाएगा। 400 मिलियन डॉलर के निवेश से तैयार होने वाली इन परियोजनाओं के ज़रिये वर्ष 2023 तक 500 मेगावॉट बिजली तैयार की जाएगी।
  • भारत ने नेपाल को 7-0 से हराकर सैफ अंडर-15 फुटबॉल चैंपियनशिप खिताब पर अपना कब्ज़ा बरकरार रखा। भारतीय टीम ने इस टूर्नामेंट के कुल पाँच मैचों में 28 गोल किये। इस जीत के साथ भारत टूर्नामेंट के इतिहास में अब सबसे सफल टीम बन गई है, क्योंकि यह खिताब उसने रिकॉर्ड तीसरी बार अपने नाम किया। इससे पहले 2013 और 2017 में भारतीय टीम ने यह खिताब जीता था। भारत ने पिछले दो खिताब नेपाल में जीते थे। विदित हि कि इसी वर्ष भारतीय महिला फुटबॉल टीम ने लगातार पाँचवीं बार सैफ फुटबॉल चैंपियनशिप का खिताब जीतकर रिकॉर्ड कायम किया था।

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