शासन व्यवस्था
देश देशांतर : मोदी की जापान यात्रा (Modi's japan visit)
- 01 Nov 2018
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संदर्भ
टोक्यो में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे के बीच शिखर वार्ता के दौरान कई अहम मामलों पर सहमति बनी। नौसेनाओं के बीच रिश्तों को और मज़बूती प्रदान करने के साथ ही दोनों देशों के विदेश और रक्षा मंत्रियों ने 2 + 2 वार्ता के लिये सहमति जताई। इस अवसर पर दोनों नेताओं ने क्षेत्रीय और वैश्विक मसलों पर आपसी सहयोग हेतु विस्तार से चर्चा की। साथ ही दोनों नेताओं के बीच वार्ता के बाद छह समझौतों पर हस्ताक्षर हुए और 75 अरब डॉलर का करेंसी स्वैप करार हुआ। बैठक के बाद भारतीय नौसेना और जापान मैरीटाइम सेल्फ डिफेंस फोर्स के बीच सहयोग बढ़ाने पर भी समझौता हुआ। जापान ने मुंबई-अहमदाबाद के बीच बुलेट ट्रेन के लिये दूसरे दौर के कर्ज़ को भी सहमति दे दी है। जापान ने अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन में शामिल होने का फैसला भी किया है। साथ ही वह भारतीय नागरिकों के लिये वीज़ा नियमों को उदार करने पर भी सहमत हुआ है। भारत और जापान के प्रधानमंत्रियों के बीच हिंद-प्रशांत क्षेत्र के मौजूदा हालात पर विस्तार से चर्चा हुई। प्रधानमंत्री ने बताया कि जापान की कंपनियों ने भारत में 2.5 अरब डॉलर के नए निवेश किये जाने की घोषणा की है। इससे भारत में 30 हज़ार नौकरियाँ सृजित होंगी।
पृष्ठभूमि
- कहा जाता है कि जापान और भारत के बीच विनिमय छठी शताब्दी में तब शुरू हुआ था जब जापान में बौद्ध धर्म का आगमन हुआ था।
- बौद्ध धर्म के माध्यम से भारतीय संस्कृति का जापानी संस्कृति पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ा है और यह जापानी लोगों के भारत के प्रति निकटता की भावना का प्रमुख स्रोत है।
- द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद 1949 में भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भारतीय हाथी को टोक्यो के यूनो चिड़ियाघर को दान दिया था। इससे जापानी लोगों के जीवन में एकआशा की किरण का संचार हुआ जो कि अभी युद्ध में हुई हार से उबर नहीं पाए थे।
- जापान और भारत ने शांति संधि पर हस्ताक्षर कर 28 अप्रैल, 1952 को राजनयिक संबंध स्थापित किये। यह संधि द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद जापान द्वारा की गई प्रारंभिक शांति संधियों में से एक थी।
- राजनयिक संबंधों की स्थापना के बाद से दोनों देशों ने सौहार्द्रपूर्ण संबंधों का आनंद लिया है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद भारत के लौह अयस्क ने विनाश की मार झेल रहे जापान को उबरने में काफी मदद की।
- 1957 में जापान के प्रधानमंत्री नोबसुक किशी की भारत यात्रा के बाद जापान ने 1958 में जापानी सरकार द्वारा विस्तारित पहली येन ऋण सहायता के रूप में भारत को येन ऋण प्रदान करना शुरू किया|
- अगस्त 2000 में प्रधानमंत्री योशिरो मोरी की भारत यात्रा ने जापान-भारत संबंधों को मजबूत करने की दिशा को गति प्रदान की।
भारत-जापान : प्रमुख समझौते
- भारत-जापान के बीच वार्षिक द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन जापान में 28, 29 अक्तूबर 2018 को आयोजित किया गया। इससे दोनों देशों के बीच साझेदारी में काफी बदलाव आया है और अब यह 'विशेष रणनीतिक और वैश्विक साझेदारी' बन गई है।
- दोनों पक्ष वैश्विक शांति के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिये विदेश मंत्रियों और रक्षा मंत्रियों के बीच 2 + 2 वार्ता के लिये सहमत हुए।
- दोनों देश योग और आयुर्वेद जैसे पारंपरिक औषधीय प्रणाली के क्षेत्र में पहली बार सहयोग करेंगे। इससे दोनों देशों में स्वास्थ्य देखभाल हेतु सुविधाओं में वृद्धि होगी।
- दोनों देश आयुष्मान भारत योजना और जापानी स्वास्थ्य सेवा कार्यक्रम के लाभ साझा करने पर सहमत हुए हैं।
- एक मिलिट्री लॉजिस्टिक पैक्ट अधिग्रहण और क्रॉस सर्विसिंग समझौते पर दोनों देशों के बीच वार्ता शुरू होगी जो एक-दूसरे के सैन्य अड्डों और नौसैनिक अड्डों तक पहुँच सुनिश्चित करेगा|
- पूर्वोत्तर में बुनियादी ढाँचे के उन्नयन में जापान अधिक महत्त्वपूर्ण निवेश करेगा जो भारत को दक्षिण-पूर्व एशिया से भी जोड़ देगा।
- दोनों देश अफ्रीका समेत भारत-प्रशांत क्षेत्र के लोगों को शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य सुविधाओं तक पहुँच प्रदान के लिये मिलकर काम करेंगे।
- जापान-भारत निवेश संवर्द्धन रोडमैप ने अहमदाबाद में बिज़नेस सपोर्ट सेंटर की स्थापना के साथ भारत की मेक इन इंडिया पहल में जापान के योगदान को बढ़ाया है।
भारत के जापान के साथ बढ़ते संबंध और उसका वैश्विक परिदृश्य पर असर
- भारत-जापान संबंधों में वृद्धि की संभावनाएँ बहुत अधिक हैं| दोनों देशों के बीच कार्यक्षेत्र काफी अधिक है| यह रणनीतिक और मूल्यों पर आधारित है| दोनों देशों ने लोकतंत्र और कानून के शासन का ज़िक्र किया है|
- यदि हम अंतर्राष्ट्रीय वातावरण, शक्ति संतुलन तथा मेरीटाइम सिक्योरिटी के नज़रिये से देखें तो पाते हैं कि भारत और जापान के संबंध मजबूती से आगे बढ़ रहे हैं| दोनों देश एक ऐसे मोड़ पर खड़े हैं जहाँ से वे संभावनाएँ तलाश कर उसे धरातल पर उतार सकते हैं|
- दोनों देशों के बीच 6 समझौतों पर हस्ताक्षर हुए हैं जिसमें एक समझौता हाई स्पीड ट्रेन संचालन के दूसरे चरण को लेकर है| इसके अलावा, डिजिटल पार्टनरशिप, स्वास्थ्य क्षेत्र, खाद्य, नौसेना के क्षेत्र में समझौते हुए हैं|
- जापान की 57 कंपनियाँ भारत में निवेश करने के लिये इच्छुक हैं|
- भारत और जापान के बीच कभी भी रणनीतिक तौर पर अंतर नहीं रहा है लेकिन पिछले चार वर्षों में दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने जिस तरीके से पारस्परिक मित्रता को प्रगाढ़ बनाया है उसका असर वैश्विक रूप से अवश्य पड़ने वाला है|
- अभी तक ऐसा लगता था कि जापान, भारत में निवेश के संबंध में थोड़ा संभलकर चलना चाहता है| हालाँकि वह सामरिक दृष्टि से आगे बढ़ना चाहता था लेकिन वैश्विक पटल पर दोनों देशों के बीच नई चीजें निकलकर आ रही हैं|
- अमेरिका की अमेरिका फर्स्ट नीति एशिया में उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम से है| इसके तहत वह सिर्फ चीन के ऊपर दबाव नहीं डाल रहा है बल्कि जापान के मित्र देशों जिसमें भारत भी शामिल है पर दबाव पड़ रहा है|
- इन देशों पर तरह-तरह के वीज़ा प्रतिबंध भी लगाए जा रहे हैं| टैरिफ आदि को भी हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है और अमेरिका द्वारा उन पर दबाव डाला जा रहा है कि किसी और देश से सामरिक संबंध न बनाएँ|
- ऐसे में यह आवश्यक है कि एशिया के मित्र देश आपस में मिलकर एशियाई भावना को जगाएँ तथा अमेरिका एवं अन्य देशों के दबाव में न आएँ|
- एशिया में अगर भारत को आगे बढ़ना है तो एशिया-पैसिफिक अवधारणा को व्यावहारिक तौर पर अमल में लाना बहुत ज़रूरी है|
भारत-जापान संबंध
- जापान-इंडिया एसोसिएशन की स्थापना 1903 में हुई थी और यह जापान में सबसे पुरानी अंतर्राष्ट्रीय फ्रेंडशिप संस्थाओं में से एक है।
- चूँकि 13वें भारत-जापान वार्षिक शिखर सम्मेलन में जापान ने 2014 में मोदी-एबे के बीच हुई बैठक के बाद सरकारी और निजी क्षेत्र में निवेश को 33,800 करोड़ रुपए करने का वचन दिया था।
- जापान, भारत में निवेश के सबसे बड़े स्रोतों में से एक रहा है| अप्रैल 2000 और जून 2018 के बीच एफडीआई में 28.16 बिलियन डॉलर का व्यापार काफी कम है। इसे बढाए जाने की आवश्यकता है|
- भारत द्वारा निर्यात किये जाने वाले देशों की सूची में जापान काफी नीचे अर्थात् 18वें स्थान पर है जबकि भारत में आयात करने वाले देशों की सूची में जापान 12वें स्थान पर है।
- व्यापार की यह स्थिति द्विपक्षीय व्यापार में वृद्धि को आसान बनाने के लिये 2011 में दोनों देशों द्वारा व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते (CEPA) पर हस्ताक्षर किये जाने बावजूद है।
- CEPA को भारत द्वारा किये गए सभी समझौतों में सबसे व्यापक रूप में वर्णित किया गया था जिसमें वस्तुओं और सेवाओं में व्यापार, व्यक्तियों का आवागमन, निवेश, बौद्धिक संपदा अधिकार, सीमा शुल्क प्रक्रियाएँ तथा अन्य व्यापार संबंधी मुद्दे शामिल थे।
- CEPA में 10 वर्षों की अवधि में भारत और जापान के बीच कारोबार किये जाने वाले 94% से अधिक वस्तुओं पर टैरिफ को खत्म करने की परिकल्पना की गई है।
- वित्त वर्ष 2018 में भारत द्वारा जापान को किया गया निर्यात वर्ष 2015 की तुलना में कम है| निर्यात की जाने वाली प्राथमिक वस्तुओं में पेट्रोलियम उत्पाद, रसायन, यौगिक, गैर-धातु खनिज के बर्तन, मछली, धातुकर्म अयस्क और स्क्रैप, कपड़े और सहायक उपकरण, लौह तथा इस्पात उत्पाद, कपड़ा, कपड़ा, धागा और मशीनरी शामिल हैं।
- जापान से भारत का प्राथमिक आयात जिसमें अभी सुस्ती दिखाई दे रही है उनमें मशीनरी, परिवहन उपकरण, लौह और इस्पात, इलेक्ट्रॉनिक सामान, जैविक रसायन, मशीन टूल्स इत्यादि शामिल हैं।
- अधिकांश जापानी एफडीआई प्रवाह ऑटोमोबाइल, विद्युत उपकरण, दूरसंचार, रसायन और फार्मा सेक्टर में केंद्रित हैं।
- औद्योगिक नीति और संवर्द्धन विभाग (DIPP) के आँकडों के अनुसार, अक्तूबर 2016 तक भारत में 1,305 जापानी कंपनियाँ पंजीकृत थीं जो अक्तूबर 2015 के 1,229 की तुलना में 76 कंपनियों की वृद्धि (6% की वृद्धि) को दर्शाता है|
- भारत की मज़बूती में जापान की अभिरुचि स्पष्ट दिखाई दे रही है| अतः इसे और मज़बूती प्रदान किये जाने की आवश्यकता है।
- जैसा कि भारत में रेलवे, साइबर कंपनियों, आर्टिफिसियल इंटेलिजेंस को लाने की बात की गई है और भारत चौथी औद्योगिक क्रांति की ओर अग्रसर है, उसे देखते हुए भारत और जापान को आपस में मिलकर कार्य करना चाहिये|
सामरिक नज़रिये से कितने अहम हैं समझौते?
- मोदी सरकार के आने के बाद दोनों देशों के संबंध लगातार बढ़ रहे हैं| लॉजिस्टिक मेंटेनेंस में बिल्कुल वैसा ही हुआ है जैसा भारत और अमेरिका के बीच हुआ| इसका अर्थ यह है कि हमारी नेवी और जापान की नेवी आपस में सुविधाओं का इस्तेमाल कर सकती हैं|
- आज जापान जो सैन्य शक्ति तथा क्षेत्रीय उत्कृष्टता दिखा रहा है उसको काउंटर करने के लिये भारत और जापान के बीच आपसी सहयोग ज़रूरी है और यह अच्छी बात है कि दोनों देश आपस में सहयोग की भावना से आगे बढ़ रहे हैं|
- सामरिक स्तर पर गहन बातचीत के साथ-साथ रक्षा और आर्थिक क्षेत्र में सहयोग भी आज की दुनिया में द्विपक्षीय संबंधों का एक प्रमुख और निर्णायक कारक है। इस संदर्भ में इन दो एशियाई ताकतों के बीच सामरिक रिश्ते बेहतर करने में सामुद्रिक क्षेत्र महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है।
- दोनों देशों के पास इस क्षेत्र में सहयोग करने की दुनिया में सबसे ज़्यादा संभावना है। संबंधों में इस तरह का तालमेल हासिल करने के बाद दोनों देश अब सैन्य सहयोग बढ़ाने की दिशा में काम कर रहे हैं।
- दोनों देश गहरे सामुद्रिक हित, सैन्य उपकरण तथा तकनीक के क्षेत्र में भावी सहयोग को लेकर विचार-विमर्श की प्रक्रिया को आगे बढ़ा रहे हैं।
- इस कारण जापान के समुद्री आत्म रक्षा बल (JMSDF) और भारतीय नौसेना (IN) के बीच द्विपक्षीय अभ्यास का उद्देश्य भी समझ में आता है।
- भारत, अमेरिका और जापान के बीच मालाबार में 2015 से संयुक्त नौसैनिक अभ्यास किया जा रहा है। यह भी भारत-प्रशांत क्षेत्र में वर्तमान सुरक्षा माहौल को लेकर भारत के बदलते दृष्टिकोण को दर्शाता है।
- जापान ने जून 2018 में त्रिपक्षीय मालाबार अभ्यास में हिस्सा लिया था जिसमें तीसरा देश अमेरिका है| मौजूदा सुरक्षा हालात में एक देश की सेना को दूसरे देश की सेना के साथ मिलकर काम करना होगा जो हिंद महासागर-पेसीफिक सागर की सामरिक स्थिति में सहयोग की नई दिशा को तय करेगा।
- भारत-जापान प्रशांत क्षेत्र के दो प्रमुख सामुद्रिक देश होने के कारण सामुद्रिक सुरक्षा सहयोग का स्वाभाविक क्षेत्र है।
- दोनों ही देश हिंद महासागर एवं प्रशांत महासागर के कुछ इलाकों और विवादित पूर्वी वियतनाम सागर में व्यापारिक और नौसैनिक जहाजों की आवाज़ाही को लेकर आँकड़ों को आपस में साझा करने के समर्थक रहे हैं।
- इस दिशा में अच्छी बात यह है कि दोनों देशों के बीच सैन्य अभ्यास दिसंबर 2018 में मिज़ोरम में होने वाला है| भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र को जापान ने हमेशा ही भारत और एशिया के लिये महत्त्वपूर्ण माना है| यह भारत की एक्ट ईस्ट पालिसी और जापान की इंडो-ओरिएंटेड पालिसी के लिये ज़बरदस्त पहल होगी|
- टेक्नोलॉजी में जापान का कोई मुकाबला नहीं है| भारत ने जापान के सबमरीन के बारे में रुचि दिखाई है तथा इस संबंध में दोनों देशों के बीच बातचीत भी हुई है| जापान का सबमरीन अत्याधुनिक है| भारत ने एम्फीबियन एयरक्राफ्ट में भी रुचि दिखाई है|
- दोनों देशों के बीच संबंधों में सुधार भारत के लिये बेहतर साबित होगा|
बिग-टिकट इंवेस्टमेंट
- जापान 1958 से द्विपक्षीय ऋण और भारत को सहायता प्रदान कर रहा है साथ ही यह सबसे बड़ा द्विपक्षीय दाता (Bilateral Donor) भी है।
- जापानी आधिकारिक विकास सहायता (Japan’s official development assistance-ODA) बिजली, परिवहन, पर्यावरण परियोजनाओं और बुनियादी मानव ज़रूरतों से संबंधित परियोजनाओं जैसे क्षेत्रों में भारत के विकास का समर्थन करता है।
- पिछले पाँच सालों में भारत में जापान द्वारा निवेश किये गए फंडों में से 90 अरब डॉलर का निवेश दिल्ली-मुंबई औद्योगिक कॉरीडोर के लिये किया गया है| यह कॉरीडोर 1,483 किलोमीटर उच्च गति वाली रेल और सड़क मार्ग के साथ नए कस्बों, औद्योगिक पार्कों, बंदरगाहों और हवाई अड्डों से होकर गुज़रेगा जो कि इन दोनों शहरों के बीच विकसित किया जा रहा है।
- जापान मुंबई-अहमदाबाद के बीच हाई स्पीड रेल (बुलेट ट्रेन) सेवा का भी समर्थन कर रहा है और इसके लिये उसने 5,500 करोड़ रुपए की पहली किश्त जारी की है।
- एक समर्पित फ्रेट कॉरीडोर पर भी चर्चा हुई है जो करीब 50,000 करोड़ रुपए की परियोजना है और जिसमें जापानी सहायता 38,000 करोड़ रुपए है।
- न्यू एटली से न्यू फुलेरा स्टेशनों तक 190 किमी. का पहला खंड पश्चिमी समर्पित फ्रेट कॉरीडोर पर खोला गया है, जबकि रेवाड़ी और मारवार के बीच 492 किलोमीटर का अगला खंड अगले वर्ष की शुरुआत में खुलने की संभावना है। मार्च 2020 तक इस कार्य को समाप्त करने का लक्ष्य रखा गया है।
भारत-जापान के बीच जुड़ाव के नए क्षेत्र
- मार्च 2018 में 'कूल ईएमएस सर्विस' (cool EMS service) शुरू की गई थी जिसके अंतर्गत भारतीय नियमों के तहत अनुमत जापानी खाद्य वस्तुओं को डाक चैनलों के माध्यम से जापान से भारत में ठंडे बक्से (cool boxes) में ले जाया जाता है। वर्तमान में यह सेवा केवल दिल्ली में उपलब्ध है|
- दोनों पक्ष डिजिटल साझेदारी को गति देने का प्रयास कर रहे हैं, नीति आयोग भारत की ओर से नोडल प्वाइंट और जापान की ओर से अर्थव्यवस्था, व्यापार और उद्योग मंत्रालय इसमें अपनी भूमिका निभा रहा है।
- संभावित सहयोग के क्षेत्रों में आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस (AI), इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) तथा बिग डेटा शामिल है।
- एक अन्य नया क्षेत्र जहाँ भारत के आगे बढ़ने की संभावना है वह है आयुष्मान भारत परियोजना और एशिया स्वास्थ्य और कल्याण पहल नामक जापानी कार्यक्रम जो एकजुटता या एकीकरण के लिये है जिसमें चिकित्सा उपकरण और अस्पतालों जैसे क्षेत्रों में जापान की ताकत का लाभ उठाना शामिल है।
चीन के लिये चुनौती
- डोकलाम विवाद के बाद से भारत के लिये जापान का निरंतर सहयोग बहुत महत्त्वपूर्ण हो गया है। शिंजो आबे पिछले हफ्ते ही चीन यात्रा से लौटे हैं।
- ऐसे में भारत और जापान के नेताओं के बीच यह मुलाकात चीन के रुख को भी समझने में सहायक होगी।
- अगर दोनों देश मिलकर चीन से बातचीत करें, तो यह अधिक प्रभावशाली कदम हो सकता है। यदि दोनों देश एशिया प्रशांत क्षेत्र में सामरिक सहयोग करते हैं तो यह चीन के लिये चुनौती पेश कर सकता है।
- चीन की बेल्ट रोड पहल से काफी देश बाहर निकल रहे हैं| उन्हें पता है कि यह बैड ट्रैप है और चीन अपने फायदे के लिये आता है, बिज़नेस मकसद से आता है| उसका मकसद दूसरे देशों का आर्थिक रूप से विकास करना कतई नहीं है|
- भारत और जापान दूसरे देशों को विकल्प दे रहे हैं| दोनों समावेशी विकास की बात कर रहे हैं| उनका कोई एजेंडा नहीं है जो एक साथ विकास करने हेतु महत्त्वपूर्ण है|
निष्कर्ष
आर्थिक और तकनीकी क्षेत्र में सहयोग के मामले में जापान भारत का सबसे भरोसेमंद साझीदार रहा है। इन दिनों जिस प्रकार की वैश्विक अर्थव्यवस्था की स्थिति है, उसमें दोनों देशों का साथ बहुत महत्त्वपूर्ण है। खासकर एशिया पैसिफिक क्षेत्र में ताकतवर बने रहने के लिये भी दोनों देशों की साझेदारी महत्त्वपूर्ण है। एशिया प्रशांत क्षेत्र में तीन देश महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं-भारत, जापान और चीन। चीन से भारत और जापान की दूरी है। वह अपनी विस्तारवादी नीतियों पर कायम है। ऐसे में एशिया प्रशांत क्षेत्र में अपनी ताकत बढ़ाने के लिये भारत और जापान के बीच आर्थिक सहयोग बहुत ज़रूरी है। इस शिखर वार्ता में दोनों देशों के नेताओं ने एशिया प्रशांत क्षेत्र में सहयोग पर ही प्रमुख रूप से ध्यान केंद्रित किया।
भारत अपने पड़ोसी देशों के साथ मिलकर एक मज़बूत आर्थिक क्षेत्र विकसित करने में जुटा हुआ है। पाकिस्तान की मनमानी के चलते उसे सार्क देशों से अलग-थलग कर दिया गया है, पर भारत अन्य देशों श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल में जापान के साथ मिलकर निवेश करने की रणनीति तैयार कर रहा है। इस यात्रा से उसे भी गति मिली है। दोनों देशों के नेताओं की ताज़ा मुलाकात से न सिर्फ आर्थिक और तकनीकी क्षेत्र में परस्पर सहयोग को गति मिलेगी, बल्कि वैश्विक रणनीति में भी मज़बूती आएगी।