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नीतिशास्त्र

जीन एडिटिंग

  • 12 Aug 2019
  • 6 min read

जीन एडिटिंग

  • चीनी शोधकर्त्ता द्वारा दावा किया गया कि उसने दुनिया के पहले जेनेटिकली एडिटेड बच्चों (जुड़वाँ लड़कियों) को उत्पन्न करने में सफलता हासिल की।
  • शोधकर्त्ता के अनुसार, उसने जुड़वाँ बच्चों के DNA को जीवन के महत्त्वपूर्ण लक्षणों को पुनर्संपादित करने में सक्षम, एक शक्तिशाली नए उपकरण के द्वारा परिवर्तित किया ।
  • हालाँकि, उसका यह दावा अभी भी सत्यापित नहीं है किन्तु इससे जीन पूल की विविधता के साथ किसी भी प्रकार के परिवर्तन के विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं।

जीन एडिटिंग क्या है ?

जीन एडिटिंग का उद्देश्य जीन थेरेपी है जिससे खराब जीन को निष्क्रिय किया जा सके या किसी अच्छे जीन के नष्ट होने की स्थिति में उसकी आपूर्ति की जा सके।

जीन एडिटिंग के अनुप्रयोग

(Applications of Gene Editing)

  • क्रिस्पर-कैस 9 ((Clustered Regualarly Interspaced Short Palindromic Repeats-9) जीन एडिटिंग हेतु तकनीक है जो DNA को काटने और जोड़ने की अनुमति देती है, जिससे रोग के आनुवंशिक सुधार की उम्मीद बढ़ जाती है।
  • क्रिस्पर-कैस 9 को HIV, कैंसर या सिकल सेल एनिमिया जैसी बीमारियों के लिये संभावित जीनोम एडिटिंग उपचार हेतु एक आशाजनक तरीके के रूप में भी देखा गया है।
  • इससे चिकित्सकीय रूप से बीमारी पैदा करने वाले जीन को निष्क्रिय किया जा सकता है या आनुवंशिक उत्परिवर्तन को सही कर सकते हैं।
  • यह तकनीक मूल बीमारी अनुसंधान, दवा जाँच और थेरेपी विकास, तेजी से निदान, इन-विवो एडिटिंग (In Vivo Editing) और ज़रूरी स्थितियों में सुधार के लिये बेहतर अनुवांशिक मॉडल प्रदान कर रही है।
  • इसका उपयोग शरीर की टी-कोशिकाओं (T-Cells) के कार्य को बढ़ावा देने के लिये किया जा सकता है ताकि प्रतिरक्षा प्रणाली के विकार और अन्य संभावित बीमारियों को लक्षित किया जा सके।
  • किसानों द्वारा भी फसलों को रोग प्रतिरोधी बनाने के लिये क्रिस्पर तकनीक का उपयोग किया जा रहा है।
  • चिकित्सकीय क्षेत्र में, जीन एडिटिंग द्वारा संभावित आनुवंशिक बीमारियों जैसे हृदय रोग और कैंसर के कुछ रूपों या एक दुर्लभ विकार जो दृष्टिबाधा या अंधेपन का कारण बन सकता है, का इलाज़ किया जा सकता है।
  • कृषि क्षेत्र में यह तकनीक उन पौधों को पैदा कर सकती है जो न केवल उच्च पैदावार में कारगर होंगे, जैसे कि लिप्पमैन के टमाटर, बल्कि यह सूखे और कीटों से बचाव के लिये फसलों में विभिन्न परिवर्तन कर सकती है ताकि आने वाले सालों में चरम मौसम के बदलावों में भी फसलों को हानि से बचाया जा सके।
  • क्रिस्पर DNA के हिस्से हैं, जबकि कैस-9 (CRISPR-ASSOCIATED PROTEIN9-Cas9) एक एंजाइम है। हालाँकि इसके साथ सुरक्षा और नैतिकता से संबंधित चिंताएँ जुड़ी हुई हैं।

जीन एडिटिंग से सम्बंधित नैतिक चिंताएँ -

  • इससे भविष्य में ‘डिज़ाइनर बेबी’ के जन्म की अवधारणा को और बल मिलेगा। यानी बच्चे की आँख, बाल और त्वचा का रंग ठीक वैसा ही होगा, जैसा उसके माता-पिता चाहेंगे।
  • इस तकनीक का संभावित दुरुपयोग आनुवंशिक भेदभाव पैदा करने के लिये भी हो सकता है।
  • चूँकि यह तकनीक अत्यंत महँगी है अतः इसका उपयोग केवल धनी वर्ग के लोग कर पाएंगे।
  • किसी एक भ्रूण में गलत जीन एडिटिंग से उसके बाद वाली सभी पीढ़ियों का नुकसान होगा।
  • किसी भी भ्रूण में जीन एडिटिंग एक अजन्मे बच्चे के अधिकार का हनन है।
  • मानव भ्रूण एडिटिंग अनुसंधान को पर्याप्त रूप से नियंत्रित नहीं किया जा सकता है, जिससे इसे जीन-एडिटेड बच्चों को बनाने के लिये विभिन्न प्रयोगशालाओं को बढ़ावा मिल सकता है।
  • कृषि के क्षेत्र में भी जीन एडिटिंग अत्यंत विवादास्पद बना हुआ है।

आगे की राह -

  • इसके दुरुपयोग को रोकने के लिये, इसे विश्व स्तर पर विनियमित करने की आवश्यकता है।
  • भारत में व्यापक जीन संपादन नीति नहीं है, हालाँकि जर्मेनलाइन जीन संपादन अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों के अनुरूप प्रतिबंधित है अतः जीन चिकित्सा से संबंधित प्रावधानों को विनियमित करने के लिये नीति होनी चाहिये।
  • जीन एडिटिंग अनुमेय होना चाहिये अथवा नहीं इसमें जनता की राय को महत्त्व देते हुए सार्वजानिक विचार विमर्श को बढ़ावा देना चाहिये।
  • डिज़ाइनर बेबी जैसे प्रयासों को हतोत्साहित किया जाना चाहिये।
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