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वैश्विक व्यापार युद्ध: संरक्षणवाद का एक बहाना

  • 27 May 2019
  • 18 min read

लेख में वैश्विक व्यापार युद्ध के निहितार्थों पर विचार किया गया है।

संदर्भ

पिछले कुछ समय से अमेरिका और चीन के बीच व्यापार वार्ताओं की विफलता ने व्यापार युद्ध को जन्म दिया है। जहाँ एक ओर अमेरिका और चीन एक-दूसरे के उत्पादों पर आयात शुल्क अधिरोपित कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर समस्त विश्व के समक्ष वैश्विक व्यापार युद्ध समस्या बनता जा रहा है। दोनों देशों के बीच बढ़ता तनाव चीन से 540 बिलियन डॉलर के अमेरिकी आयात के अतिरिक्त अन्य व्यापार को भी प्रभावित करेगा।

क्या है व्यापार युद्ध?

जब एक देश दूसरे देश के प्रति संरक्षणवादी रवैया अपनाता है यानी वहाँ से आयात होने वाली वस्तुओं और सेवाओं पर शुल्क बढ़ाता है तो दूसरा देश भी जवाबी कार्रवाई करता है। ऐसी संरक्षणवादी नीतियों के प्रभाव को व्यापार युद्ध (Trade War) कहते हैं। इसकी शुरुआत तब होती है, जब किसी देश को दूसरे देश की व्यापारिक नीतियाँ अपने हितों के विपरीत प्रतीत होती हैं या वह देश रोज़गार सृजन हेतु घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये आयातित वस्तुओं पर शुल्क बढ़ाता है। जब दो देशों के बीच व्यापार युद्ध छिड़ता है तो उसका असर अन्य देशों पर भी पड़ता है।

व्यापार युद्ध के संयुक्त राज्य अमेरिका और विश्व पर संभावित प्रभाव:

विनिर्माण पर प्रभाव

  • संयुक्त राज्य अमेरिका में श्रम शुल्क बहुत अधिक है जिसके कारण अमेरिका में विनिर्माण उद्योग की पुनर्वापसी नहीं हो सकेगी।
  • यद्यपि संयुक्त राज्य अमेरिका प्रौद्योगिकी में अग्रणी देश है, लेकिन वर्ष 1975 से संचालित आउटसोर्सिंग की उसकी नीति के कारण चीन अब अधिकांश उच्च-प्रौद्योगिकी उद्योगों में सर्वप्रमुख देश बन गया है।
  • इसमें कई बड़ी अमेरिकी कंपनियों की स्थिति अब कमजोर पड़ेगी क्योंकि वे अपने गृह देश की तुलना में चीन में अपने उत्पादों की अधिक बिक्री करते हैं।

वैश्विक मूल्य शृंखला पर

  • वैश्विक मूल्य शृंखला (Global Value Chains-GVCs) का पुनर्गठन होगा।
  • अमेरिका की कम मांग का अर्थ यह होगा कि चीन अब जापान, दक्षिण कोरिया, वियतनाम और थाईलैंड जैसे देशों से विभिन्न घटकों व उप-संयोजन उत्पादों की कम खरीद करेगा।
  • यह व्यापार के आकार को संकुचित करेगा और इससे वैश्विक जीवीसी मॉडल कमज़ोर पड़ेगा। एक वृहत घरेलू खपत की स्थिति वाला भारत उपयुक्त उपायों के साथ इस रूपांतरित परिदृश्य का लाभ उठा सकता है।

श्रम-गहन उत्पादन का चीन से बहिर्गमन

  • अमेरिका द्वारा आरोपित 25 प्रतिशत प्रशुल्क और चीन में बढ़ती मज़दूरी दर चीन को विनिर्माण क्षेत्र में कम प्रतिस्पर्द्धी बनाती है।
  • इस प्रकार विनिर्माण क्षेत्र के उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा वियतनाम, कंबोडिया, थाईलैंड, बांग्लादेश या भारत जैसे देशों में स्थानांतरित हो सकता है।
  • यह संभव है कि इन नए कारखानों के लिये अधिकांश निवेश चीन से प्राप्त हो।

अन्य देशों और बहुपक्षीय संस्थानों पर प्रभाव

  • प्रशुल्क के खतरों के कारण कई देश संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ द्विपक्षीय मुक्त व्यापार संधि (एफटीए) पर हस्ताक्षर कर रहे हैं।
  • यदि अमेरिका ‘नो चाइना डील पॉलिसी’ पर ज़ोर देता है तो इससे बहुपक्षता का अंत हो सकता है।
  • अमेरिका ने अपनी प्राथमिकता की सामान्यीकृत प्रणाली (Generalized System of Preferences) के अंतर्गत भारत को प्रदत्त व्यापार लाभ समाप्त कर दिया है; स्टील और एल्युमीनियम पर प्रशुल्क आरोपित किया है और विश्व व्यापार संगठन में भारत के विरुद्ध कई मामले दर्ज कराए हैं।
  • हालाँकि अब तक भारत ने कोई जवाबी कार्रवाई नहीं की है लेकिन दीर्घावधि में यह भारत के लिये गंभीर चुनौती बन सकती है।
  • इसके अलावा, संयुक्त राज्य अमेरिका ई-कॉमर्स जैसे मामलों को लेकर बहुपक्षीय सौदों पर ज़ोर दे रहा है क्योंकि ऐसा करना कुछ बड़ी अमेरिकी फर्मों के हित में होगा और यह उल्लेखनीय रूप से डब्ल्यूटीओ को कमज़ोर करेगा।

व्यापार युद्ध के सकारात्मक प्रभाव

  • जिन देशों को अमेरिका-चीन के बीच व्यापारिक तनाव के चलते सबसे अधिक लाभ होने की उम्मीद है, वे ऐसे देश हैं जो अधिक प्रतिस्पर्द्धी हैं और आर्थिक रूप से अमेरिकी और चीनी फर्मों को प्रतिस्थापित करने में सक्षम हैं।
  • अध्ययन के अनुसार, यूरोपीय संघ के निर्यात में सबसे अधिक वृद्धि होने की संभावना है। इसके बाद क्रमशः जापान, मेक्सिको, कनाडा, रिपब्लिक ऑफ़ कोरिया और भारत का स्थान आता है।
  • अमेरिका और चीन के बीच चल रहे व्यापार युद्ध के कारण लाभान्वित होने वाले देशों की सूची में शामिल अन्य देश हैं-
  • ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, ताइवान, वियतनाम, सिंगापुर, थाईलैंड, इंडोनेशिया, मलेशिया, तुर्की, फिलिपींस, चिली, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, अर्जेंटीना, पाकिस्तान, पेरू तथा ईरान।

अमेरीका के खिलाफ बढ़ता असंतोष

विश्व रिजर्व मुद्रा के रूप में डॉलर की स्थिति एक गंभीर चुनौती का सामना कर सकती है। उदाहरण के लिये, वर्तमान में ‘स्विफ्ट’ (Society for Worldwide Interbank Financial Telecommunication-SWIFT) यूरोपीय संघ एवं अन्य देशों (फ्राँस, जर्मनी और ब्रिटेन) द्वारा प्रस्तावित एक विकल्प ‘इंस्टेक्स’ (Instrument in Support of Trade Exchanges- INSTEX) से गंभीर चुनौती का सामना कर रहा है जो ईरान के साथ गैर-डॉलर व्यापार को अनुमति देगा और इसे खाद्य, दवा और चिकित्सा उपकरण सहित केवल मानवीय वस्तु-संबंधी लेनदेन सुविधा के रूप में वर्णित किया जा रहा है।

व्यापार युद्ध के कारण

व्यापार घाटा

  • संयुक्त राज्य अमेरिका वर्ष 1975 से ही विश्व में सबसे अधिक व्यापार घाटे की स्थिति का सामना कर रहा है। जहाँ वस्तु एवं सेवा क्षेत्र में उसका व्यापार घाटा 566 बिलियन डॉलर (वर्ष 2017) तक पहुँच गया है। अकेले चीन के साथ ही उसका यह व्यापार घाटा 63 प्रतिशत तक है।

राजनीतिक कारण

  • यह व्यापार युद्ध संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बीच आधिपत्य के लिये संघर्ष के आर्थिक आयाम को प्रकट करता है।
  • विभिन्न वैश्विक शक्तियों के बीच भू-राजनीति और सर्वोच्चता-संघर्ष के छोटे-छोटे पहलू भी गतिशील हैं।

बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR)

  • चीन ने अपने कुशल प्रौद्योगिकी हस्तांतरण नीति के माध्यम से अवैध रूप से ‘ट्रेड सीक्रेट्स’ की बड़ी  मात्रा का अधिग्रहण किया है।
  • अमेरिकी कंपनियों को प्रायः चीन में कारोबार की स्थापना के लिये चीनी कंपनियों के साथ साझेदारी करने हेतु विवश किया जाता है और ये चीनी भागीदार उस प्रौद्योगिकी से अवगत होने बाद उन्हीं अमेरिकी कंपनियों के प्रतिस्पर्द्धी के रूप में उभर आते हैं, इस प्रकार अमेरिका को भारी वित्तीय हानि उठानी पड़ती है।

मेड इन चाइना 2025

  • ‘मेड इन चाइना 2025’ चीन का एक आधिकारिक नीति वक्तव्य था जिसमें उसने स्वयं को एक उन्नत विनिर्माण केंद्र में रूपांतरित करने का लक्ष्य निर्धारित किया था।
  • इसे चीन की संरक्षणवादी नीतियों के साथ संयुक्त किया गया था जो जारी व्यापार युद्ध के माध्यम से अमेरिका पर लक्षित था।

इस्पात क्षेत्र

  • मांग-आपूर्ति बाधाओं के कारण चीन अपने स्वयं के इस्पात के उपभोग में सक्षम नहीं है और फलस्वरूप वह इसे अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में खपा रहा है।
  • चीनी इस्पात पर अमेरिका द्वारा 25 प्रतिशत प्रशुल्क का आरोपण अमेरिका के घरेलू इस्पात उद्योग की सुरक्षा का एक प्रयास है।

इतिहास से सबक: अमेरिकी लक्ष्यों की प्राप्ति में ये शुल्क कितने प्रभावी होंगे?

  • जून 1930 में ‘Dust Bowl’ से प्रभावित किसानों के समर्थन के लिये Smoot-Hawley टैरिफ (यू.एस. टैरिफ एक्ट, 1930) विदेशी कृषि आयात पर पहले से ही आरोपित उच्च शुल्क को और बढ़ा दिया। इसे ‘स्मूट-हॉली टैरिफ वॉर’ के नाम से जाना जाता है।
  • Dust Bowl : धूल भरी तेज़ आँधियों की एक अवधि को यह संज्ञा दी गई है जिसने 1930 के दशक में अमेरिका और कनाडा के प्रेयरी घास मैदानों की पारिस्थितिकी और कृषि को तबाह कर दिया था।
  • सहायता के बजाय इसने अमेरिकियों के लिये खाद्य मूल्यों में और वृद्धि कर दी, जबकि वे पहले से ही अमेरिकी ‘ग्रेट डिप्रेशन’ की मार झेल रहे थे।
  • इसने अन्य देशों को अपने स्वयं के शुल्क अधिरोपण के साथ जवाबी कार्रवाई के लिये विवश किया। इससे वैश्विक व्यापार में 65 प्रतिशत गिरावट आई।

क्या इस बार स्मूट-हॉली प्रभाव की उत्पत्ति संभव है?

  • इन दोनों देशों द्वारा एक-दूसरे के उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाने के बाद इन्हें भारत से होने वाले निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है। वर्तमान में निर्यात अमेरिकी सकल घरेलू उत्पाद में 13 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखता है। अमेरिका भारी मात्रा में तेल, वाणिज्यिक विमान, खाद्य पदार्थ और ऑटोमोबाइल का निर्यात करता है।
  • जारी व्यापार युद्ध द्वारा स्मूट-हॉली प्रभाव के पुनर्निर्माण से इन औद्योगिक क्षेत्रों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ेगा।
  • जून से नवंबर 2018 के बीच चीन को होने वाले निर्यात में 32% और अमेरिका को होने वाले निर्यात में 12% की बढ़ोतरी दर्ज की गई। जून-नवंबर 2017 की अवधि में भारत से चीन को 637.40 करोड़ डॉलर का निर्यात हुआ था। लेकिन अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध छिड़ने के बाद जून-नवंबर 2018 में चीन को होने वाला निर्यात बढ़कर 846.40 करोड़ डॉलर पर पहुँच गया।

भारत के लिये अवसर

निर्यात

  • वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार, भारत कम-से-कम 61 उत्पादों के मामले में अपने निर्यात को बढ़ा सकता है।
  • इनमें से अधिकांश उत्पाद कृषि (सोया, अंगूर, तंबाकू), औद्योगिक उत्पाद (बॉयलर) आदि से संबंधित हैं।

व्यापार घाटा

  • यह व्यापार युद्ध चीन के साथ भारत के व्यापार घाटे को कम करने में मदद कर सकता है जो दोनों देशों के बीच विवाद का कारण हड्डी बना हुआ है।
  • अमेरिका से संबंधों की अस्थिरता के कारण भारत का चीन में निर्यात बढ़ रहा है।
  • वर्ष 2017 में द्विपक्षीय व्यापार वर्ष-दर-वर्ष 18.63 प्रतिशत बढ़कर 84.44 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया।

निवेश

  • अमेरिका व चीन दोनों के व्यापार युद्ध में उलझने और यूरोपीय संघ के भी इसमें शामिल होने के बीच भारत एकमात्र प्रमुख उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्था बन गया है जहाँ कुशल सस्ता श्रम, आवश्यक अवसंरचना और सकारात्मक जनसांख्यिकीय लाभांश मौजूद है जो उन देशों की बाज़ार अस्थिरता के बीच वहाँ से पलायन कर रहे निवेश को आकर्षित कर सकता है।

पर्यटन

  • व्यापार युद्ध ने पर्यटन को भी नुकसान पहुँचाया है जहाँ अमेरिका की ओर चीनी हवाई यातायात में 42 प्रतिशत की कमी आई है।
  • वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार, व्यापार युद्ध चीनी पर्यटकों को भारत की ओर आकर्षित करने में मदद कर सकता है।

चीन के साथ निकटता

  • चीन एशिया प्रशांत व्यापार समझौते (APTA) द्वारा शुल्क पर रियायतें देकर भारत को अपनी तरफ लुभाने की कोशिश कर रहा है।

आगे की राह

निविष्टि और मध्यवर्ती वस्तुएँ

  • देशों के बीच व्यापार आजकल आपूर्ति शृंखलाओं (जो अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं में फैली हुई हैं) के माध्यम से मुख्य रूप से निविष्टि और मध्यवर्ती वस्तुओं पर निर्भर है।
  • भारत इन आपूर्ति शृंखलाओं का सक्रिय भागीदार बनने में अब तक असमर्थ रहा है।
  • इंडोनेशिया, वियतनाम और फिलीपींस में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) में हाल में आई उछाल अमेरिकी कंपनियों द्वारा चीन से अपना ध्यान दूसरी ओर स्थानांतरित करने का संकेत देती है। भारत निविष्टि या मध्यवर्ती वस्तुएँ प्रदान कर इस क्षेत्र में लाभ उठा सकता है।

बड़ी निवेश परियोजनाएं

  • भारत आयात शुल्क, निवेश नीति, व्यापार करने में आसानी और एक ऐसे जीएसटी के प्रवेश, जो निर्यात की शून्य रेटिंग द्वारा उन्हें प्रोत्साहित करता हो, पर एक व्यापक दृष्टिकोण का विकास कर बड़ी निवेश परियोजनाओं को आकर्षित कर सकता है।

कौशल विकास

  • आज चीन कारोबार को आकर्षित करने के लिये केवल सस्ते श्रम पर निर्भर नहीं है बल्कि इसके अपने श्रम बल के कौशल प्राप्त घटक पर अधिक निर्भर है जिसे आसानी से स्थानांतरित नहीं किया जा सकता।
  • इसलिये यदि भारत चीन से पलायन कर रहे निवेश को आकर्षित करना चाहता है तो उसे कौशल विकास पर उल्लेखनीय कार्य करना होगा।

संयुक्त राष्ट्र के एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि अमेरिका और चीन के बीच चल रहे व्यापार युद्ध से भारतीय अर्थव्यवस्था को फायदा होगा क्योंकि इससे देश के निर्यात में लगभग 3.5% की तेज़ी आएगी। यूएन कॉन्फ्रेंस ऑन ट्रेड एंड डेवलपमेंट (UNCTAD) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका और चीन के बीच चल रहे व्यापार युद्ध (एक-दूसरे के सामानों पर शुल्क लगाना) का फायदा कई देशों को मिल रहा है, जिसमें ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, भारत, फिलीपींस, पाकिस्तान और वियतनाम प्रमुख हैं। The Trade Wars: The Pain & Gain नामक इस रिपोर्ट में कहा गया है, ‘द्विपक्षीय टैरिफ उन देशों में काम कर रही फर्मों के लाभ के लिये वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बदल देते हैं, जो उनसे सीधे प्रभावित नहीं होते हैं।’

संभावित प्रश्न: “बहुपक्षीय (Multilateral) और बहुलपक्षीय (Plurilateral) व्यवस्थाओं की उपयोगिता पूरी हो चुकी है और अब समय द्विपक्षीय व्यवस्थाओं का है।” वैश्विक व्यापार युद्ध के संदर्भ में इस कथन की विवेचना करें।

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