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डेली न्यूज़

  • 03 Jan, 2022
  • 53 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

दलाई लामा

प्रिलिम्स के लिये:

निर्वासन में तिब्बती सरकार, बौद्ध धर्म, वास्तविक नियंत्रण रेखा, मैकमोहन रेखा।

मेन्स के लिये:

भारत-चीन संबंधों पर दलाई लामा और तिब्बत का प्रभाव।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय सैनिकों की एक छोटी टुकड़ी के अंतिम जीवित सदस्य, जो वर्ष 1959 में तिब्बत से भागते समय दलाई लामा को बचाकर ले गए थे, की मृत्यु हो गई है।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • दलाई लामा तिब्बती बौद्ध धर्म की गेलुग्पा परंपरा से संबंधित हैं, जो तिब्बत में सबसे बड़ी और सबसे प्रभावशाली परंपरा है।
    • तिब्बती बौद्ध धर्म के इतिहास में केवल 14 दलाई लामा हुए हैं और पहले तथा दूसरे दलाई लामाओं को मरणोपरांत यह उपाधि दी गई थी।
      • 14वें और वर्तमान दलाई लामा ‘तेनजिन ग्यात्सो’ हैं।
    • माना जाता है कि दलाई लामा अवलोकितेश्वर या चेनरेज़िग, करुणा के बोधिसत्व और तिब्बत के संरक्षक संत के प्रतीक हैं।
      • बोधिसत्व सभी संवेदनशील प्राणियों के लाभ के लिये बुद्धत्व प्राप्त करने की इच्छा से प्रेरित प्राणी हैं, जिन्होंने मानवता की मदद के लिये दुनिया में पुनर्जन्म लेने की प्रतिबद्धता जताई थी।
  • दलाई लामा का अनुरक्षण:
    • 1950 के दशक में चीन का राजनीतिक परिदृश्य बदलना शुरू हुआ।
    • तिब्बत को आधिकारिक रूप से चीनी नियंत्रण में लाने की योजनाएँ बनाई गईं लेकिन मार्च 1959 में तिब्बती, चीनी शासन को समाप्त करने की मांग को लेकर सड़कों पर उतर आए। चीनी पीपुल्स रिपब्लिक के सैनिकों ने विद्रोह को कुचल दिया और हजारों लोग मारे गए।
    • दलाई लामा 1959 के तिब्बती विद्रोह के दौरान हज़ारों अनुयायियों के साथ तिब्बत से भारत भाग आए, जहाँ उनका स्वागत पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री, जवाहरलाल नेहरू ने किया, जिन्होंने उन्हें धर्मशाला (हिमाचल प्रदेश) में 'निर्वासन में तिब्बती सरकार' बनाने की अनुमति दी।
  • दलाई लामा को चुनने की प्रक्रिया:
    • पुनर्जन्म के सिद्धांत में बौद्ध धर्म के बाद वर्तमान दलाई लामा को बौद्धों द्वारा उस शरीर को चुनने में सक्षम माना जाता है जिसमें उनका पुनर्जन्म होता है।
    • वह व्यक्ति जब मिल जाता है तो अगला दलाई लामा उसे बना दिया जाता है।
    • बौद्ध विद्वानों के अनुसार, यह गेलुग्पा परंपरा के उच्च लामाओं और तिब्बती सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वे पदाधिकारी की मृत्यु के बाद अगले दलाई लामा की तलाश करें और उन्हें खोजें।
    • यदि एक से अधिक उम्मीदवारों की पहचान की जाती है, तो वास्तविक उत्तराधिकारी एक सार्वजनिक समारोह में अधिकारियों और भिक्षुओं द्वारा बहुत से लोगों को आकर्षित करते हुए पाया जाता है।
    • एक बार पहचाने जाने के बाद सफल उम्मीदवार और उसके परिवार को ल्हासा (या धर्मशाला) ले जाया जाता है,जहाँ बच्चा आध्यात्मिक नेतृत्त्व की तैयारी के लिये बौद्ध धर्मग्रंथों का अध्ययन करता है।
    • इस प्रक्रिया में कई वर्ष लग सकते हैं, 14वें (वर्तमान) दलाई लामा को खोजने में चार वर्ष लग गए।
    • यह खोज आमतौर पर तिब्बत तक ही सीमित है, हालाँकि वर्तमान दलाई लामा ने कहा है कि उनका पुनर्जन्म नहीं होगा और यदि होगा तो यह चीनी शासन के तहत देश में नहीं होगा।

तिब्बत और दलाई लामा: भारत-चीन संबंधों पर प्रभाव

  • भूमिका:
    • सदियों से, तिब्बत भारत का वास्तविक पड़ोसी था, क्योंकि भारत की अधिकांश सीमाएँ और 3500 किमी LAC (वास्तविक नियंत्रण रेखा) तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र के साथ है न कि शेष चीन के साथ।
    • 1914 में चीनियों के साथ तिब्बती प्रतिनिधियों ने ब्रिटिश भारत के साथ शिमला सम्मेलन पर हस्ताक्षर किये जिसमें सीमाओं का निर्धारण किया गया था।
    • हालाँकि वर्ष 1950 में चीन द्वारा तिब्बत पर पूर्ण रूप से कब्ज़ा करने के बाद चीन ने उस कन्वेंशन और मैकमोहन लाइन को खारिज़ कर दिया, जिसने दोनों देशों को विभाजित किया था।
    • इसके अलावा वर्ष 1954 में भारत ने चीन के साथ तिब्बत को "चीन के तिब्बत क्षेत्र" के रूप में मान्यता देने के लिये एक समझौते पर हस्ताक्षर किये थे।
  • वर्तमान परिदृश्य:
    • दलाई लामा और तिब्बत भारत तथा चीन के संबंधों के बीच प्रमुख अड़चनों में से एक है।
    • चीन दलाई लामा को अलगाववादी मानता है, जिनका तिब्बतियों पर अधिक प्रभाव है।
    • भारत वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन की निरंतर आक्रामकता का मुकाबला करने के लिये तिब्बती कार्ड का उपयोग करना चाहता है।
    • भारत और चीन के बीच बढ़ते तनाव की स्थिति में भारत की तिब्बत नीति में बदलाव आया है। नीति में यह बदलाव, सार्वजनिक मंचों पर दलाई लामा के साथ सक्रिय रूप से प्रबंधन करने वाली भारत सरकार को चिह्नित करता है।
    • भारत की तिब्बत नीति में बदलाव मुख्य रूप से प्रतीकात्मक पहलुओं पर केंद्रित है, लेकिन तिब्बत नीति के प्रति भारत के दृष्टिकोण से संबंधित कई चुनौतियांँ हैं।

आगे की राह 

  •  वर्तमान में भारत में बसने वाले तिब्बतियों को लेकर  एक कार्यकारी नीति (कानून नहीं) है।
  • भारत की वर्तमान तिब्बती नीति भारत में बसने वाले तिब्बतियों के कल्याण एवं विकास हेतु महत्त्वपूर्ण है, परंतु यह तिब्बत के मुख्य मुद्दों का कानूनी समर्थन नहीं करती है। उदाहरण के लिये तिब्बत के विध्वंसकारकों द्वारा तिब्बत में स्वतंत्रता की मांग।
  • अत: अब समय आ गया है कि भारत को भी चीन से निपटने में तिब्बत के मुद्दे पर अधिक मुखर रुख अपनाना चाहिये।
  • इसके अलावा भारत में  तिब्बत की एक युवा और अशांत आबादी निवास करती  है, जो  दलाई लामा के गुज़रने के बाद अपने नेतृत्व और कमान संरचना हेतु भारत के नियंत्रण से बाहर है। अत: भारत को ऐसी स्थिति से बचने की भी ज़रुरत है।

स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया  


शासन व्यवस्था

जल जीवन मिशन

प्रिलिम्स के लिये:

जल जीवन मिशन (ग्रामीण और शहरी)

मेन्स के लिये:

ग्रामीण भारत के विकास में जल जीवन मिशन का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जल शक्ति मंत्रालय ने ‘जल जीवन मिशन’ (JJM) के तहत मध्य प्रदेश के लिये 15,381.72 करोड़ रुपए की पेयजल आपूर्ति योजनाओं को मंज़ूरी दी है।

  • ‘जल जीवन मिशन’ का लक्ष्य वर्ष 2024 तक सभी ग्रामीण घरों में सुनिश्चित नल जल आपूर्ति या 'हर घर जल' सुनिश्चित करना है।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय
    • वर्ष 2019 में लॉन्च किया गया यह मिशन वर्ष 2024 तक ‘कार्यात्मक घरेलू नल कनेक्शन’ (FHTC) के माध्यम से प्रत्येक ग्रामीण परिवार को प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 55 लीटर पानी की आपूर्ति की परिकल्पना करता है।
    • जल जीवन मिशन का उद्देश्य जल को आंदोलन के रूप में विकसित करना है, ताकि इसे लोगों की प्राथमिकता बनाया जा सके।
    • यह मिशन ‘जल शक्ति मंत्रालय’ के अंतर्गत आता है।
  • उद्देश्य
    • यह मिशन मौजूदा जल आपूर्ति प्रणालियों और पानी के कनेक्शन की कार्यक्षमता सुनिश्चित करता है; पानी की गुणवत्ता की निगरानी एवं परीक्षण के साथ-साथ सतत् कृषि को भी बढ़ावा देता है।
    • यह संरक्षित जल के संयुक्त उपयोग; पेयजल स्रोत में वृद्धि, पेयजल आपूर्ति प्रणाली, धूसर जल उपचार और इसके पुन: उपयोग को भी सुनिश्चित करता है।
  • विशेषताएँ:
    • जल जीवन मिशन (JJM) स्थानीय स्तर पर पानी की मांग और आपूर्ति पक्ष के एकीकृत प्रबंधन पर केंद्रित है।
    • वर्षा जल संचयन, भू-जल पुनर्भरण और पुन: उपयोग के लिये घरेलू अपशिष्ट जल के प्रबंधन जैसे अनिवार्य उपायों हेतु स्थानीय बुनियादी ढाँचे का निर्माण विभिन्न सरकारी कार्यक्रमों/योजनाओं के साथ अभिसरण में किया जाता है।
    • यह मिशन जल के सामुदायिक दृष्टिकोण पर आधारित है तथा मिशन के प्रमुख घटक के रूप में व्यापक सूचना, शिक्षा और संचार शामिल हैं।
  • कार्यान्वयन:
  • फंडिंग पैटर्न:
    • केंद्र और राज्यों के बीच फंड शेयरिंग पैटर्न हिमालय तथा उत्तर-पूर्वी राज्यों के लिये 90:10, अन्य राज्यों के लिये 50:50 और केंद्रशासित प्रदेशों के लिये 100% है।
  • अब तक की प्रगति:
    • जब मिशन शुरू किया गया था, देश के ग्रामीण परिवारों में से केवल 17% (32.3 मिलियन) के पास नल के पानी की आपूर्ति थी।
    • आज 7.80 करोड़ (41.14%) घरों में नल के पानी की आपूर्ति है। गोवा, तेलंगाना, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह तथा पुद्दूचेरी ने ग्रामीण क्षेत्रों में 100% घरेलू कनेक्शन हासिल कर लिया है।

स्रोत: पी.आई.बी


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

चीन का नया सीमा कानून

प्रिलिम्स के लिये:

चीन और उसके पड़ोसी देश, ब्रह्मपुत्र नदी, अरुणाचल प्रदेश तथा उसके सीमावर्ती देशों की स्थिति

मेन्स के लिये:

भारत-चीन संबंधों पर चीन के नए सीमा कानून का प्रभाव

चर्चा में क्यों? 

भूमि सीमाओं पर चीन का नया कानून 1 जनवरी, 2022 से लागू हुआ।

  • यह ऐसे समय में आया है जब पूर्वी लद्दाख में सीमा गतिरोध अनसुलझा है और हाल ही में चीन ने अरुणाचल प्रदेश के कई स्थानों का नाम बदलकर अपने अंतर्गत होने का दावा किया है।

प्रमुख बिंदु 

  • चीन के नए सीमा कानून के बारे में:
    • भूमि सीमाओं का परिसीमन और सर्वेक्षण:
      • नया कानून बताता है कि पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) सीमा को स्पष्ट रूप से चिह्नित करने के लिये अपनी सभी भूमि सीमाओं पर सीमा चिह्न स्थापित करेगा।
    • सीमावर्ती क्षेत्रों का प्रबंधन और रक्षा:
      • पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) और चीनी पीपुल्स आर्म्ड पुलिस फोर्स को सीमा पर सुरक्षा बनाए रखने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है।
        • इस ज़िम्मेदारी में अवैध सीमा पार की घटनाओं से निपटने में स्थानीय अधिकारियों के साथ सहयोग करना शामिल है।
        • कानून किसी भी ऐसे पक्ष को सीमा क्षेत्र में ऐसी गतिविधि में शामिल होने से रोकता है जो "राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालेगा या पड़ोसी देशों के साथ चीन के मैत्रीपूर्ण संबंधों को प्रभावित करेगा"।
        • यहाँ तक ​​​​कि नागरिकों और स्थानीय संगठनों को भी सीमा के बुनियादी ढाँचे की रक्षा करना अनिवार्य है।
        • अंत में कानून युद्ध, सशस्त्र संघर्ष, ऐसी घटनाएँ जो सीमावर्ती निवासियों की सुरक्षा को खतरा पैदा करती हैं, जैसे- जैविक और रासायनिक दुर्घटनाएँ प्राकृतिक आपदाएँ तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य घटनाओं की स्थिति में सीमा को सील करने का प्रावधान करता है।
    • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग:
      • अपने सीमा-साझा देशों के विषय पर कानून कहता है कि इन देशों के साथ संबंध "समानता और पारस्परिक लाभ" के सिद्धांतों पर आधारित होने चाहिये।
      • इसके अलावा, कानून भूमि सीमा प्रबंधन पर बातचीत करने और सीमा संबंधी मुद्दों को हल करने के लिये उक्त देशों के साथ नागरिक एवं सैन्य दोनों संयुक्त समितियों के गठन का प्रावधान करता है।
      • कानून यह भी निर्धारित करता है कि पीआरसी को भूमि सीमाओं पर संधियों का पालन करना चाहिये, जिस पर उसने संबंधित देशों के साथ हस्ताक्षर किये हैं और सभी सीमा मुद्दों को बातचीत के माध्यम से सुलझाया जाना चाहिये।
  • चिंताएँ:
    • चीनी सेना के अपराधों को औपचारिक रूप देना:
      • भूमि सीमा कानून का व्यापक उद्देश्य 2020 में एलएसी (वास्तविक नियंत्रण रेखा) के पार चीनी सेना के उल्लंघन को कानूनी कवर प्रदान करना और औपचारिक रूप देना है।
    • नागरिक एजेंसियों को प्रोत्साहन:
      • कानून नागरिक आबादी के समस्या निपटान और सीमा क्षेत्र के साथ बेहतर बुनियादी ढाँचे का आह्वान करता है।
        • चीन ने पहले अपनी "नागरिक" आबादी को एलएसी के विवादित हिस्से के साथ की रणनीति का इस्तेमाल किया है, जिसके आधार पर वह इसके सही स्वामित्व का दावा करता है।
      • नया कानून ऐसे मामलों को बढ़ा सकता है तथा दोनों देशों के बीच और समस्याएँ पैदा कर सकता है।
    • जल प्रवाह को सीमित करना:
      • ब्रह्मपुत्र या यारलुंग ज़ंगबो नदी में जल प्रवाह को सीमित किये जाने भी संभावना है जो चीन से भारत में बहती है क्योंकि कानून के अनुसार "सीमा पार नदियों और झीलों की स्थिरता की रक्षा के उपाय" करना ज़रूरी है।
      • चीन जलविद्युत परियोजनाओं के मामले में इस प्रावधान का हवाला दे सकता है जो भारत में पारिस्थितिक आपदा का कारण बन सकता है और इसे अपनी ओर से एक वैध कार्रवाई बता सकता है।
  • चीन के सीमा विवाद:
    • चीन की 14 देशों के साथ 22,100 किलोमीटर की भूमि सीमा लगती है।
    • इसने 12 पड़ोसियों के साथ सीमा विवाद सुलझा लिये हैं।
    • भारत और भूटान दो ऐसे देश हैं जिनके साथ चीन को अभी सीमा समझौतों को अंतिम रूप देना है।
    • चीन और भूटान ने सीमा वार्ता में तेज़ी लाने के लिये तीन चरणों का रोडमैप तैयार करने हेतु एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये है।
    • भारत-चीन सीमा वास्तविक नियंत्रण रेखा के साथ 3,488 किलोमीटर की हैं जिसमे से लगभग 400 किलोमीटर में चीन-भूटान विवाद है।

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आगे की राह:

  • चीन द्वारा अरुणाचल प्रदेश में 15 स्थानों का नामकरण अपने स्वयं के क्षेत्र के रूप में किया गया क्योंकि भारत और चीन LAC के साथ विवादों को सुलझाने के लिये राजनयिक और सैन्य दोनों स्तरों पर लगे हुए हैं।
  • संबंधों को बहाल करने के साथ-साथ सीमाओं पर यथास्थिति को बनाए रखने के लिये आपसी संवेदनशीलता और पिछले समझौतों के पालन की आवश्यकता होगी जो कि पहले से ही मतभेदों की लंबी सूची का विस्तार करने वाले अनावश्यक विवादों को उकसाने के बजाय शांति बनाए रखने में सहायक ।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

अर्द्धचालकों की कमी

प्रिलिम्स के लिये:

कंडक्टर, सेमीकंडक्टर्स, इंसुलेटर, सेमीकंडक्टर्स का उपयोग, सेमीकंडक्टर्स के उदाहरण।

मेन्स के लिये:

अर्द्धचालक संकट का कारण, इसका प्रभाव और संभावित समाधान।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में दुनिया भर में अर्द्धचालकों की अचानक व्यापक स्तर पर कमी देखी गई। 

प्रमुख बिंदु

अर्द्धचालक के बारे में

  • अर्द्धचालक एक ऐसी सामग्री है जिसमें सुचालक (आमतौर पर धातु) और कुचालक या ऊष्मारोधी (जैसे- अधिकांश सिरेमिक) के बीच चालन की क्षमता होती है। अर्द्धचालक शुद्ध तत्त्व हो सकते हैं, जैसे- सिलिकॉन या जर्मेनियम, या यौगिक जैसे गैलियम आर्सेनाइड या कैडमियम सेलेनाइड।
    • चालकता उस आदर्श स्थिति की माप है जिस पर विद्युत आवेश या ऊष्मा किसी सामग्री से होकर गुज़र सकती है।
  • सेमीकंडक्टर चिप एक विद्युत परिपथ है, जिसमें कई घटक होते हैं जैसे कि- ट्रांज़िस्टर और अर्द्धचालक वेफर पर बनने वाली वायरिंग। इन घटकों में से कई से युक्त एक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण को एकीकृत सर्किट (IC) कहा जाता है और इसे कंप्यूटर, स्मार्टफोन, उपकरण, गेमिंग हार्डवेयर और चिकित्सा उपकरण जैसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में पाया जा सकता है।

क्र. सं.

चालक

अर्द्धचालक

कुचालक/विद्युतरोधी

1.

विद्युत धारा को आसानी से प्रवाहित होने देते हैं।

विद्युत धारा का प्रवाह चालक की तुलना में कम तथा कुचालक की तुलना में अधिक सरलता से होता है।

विद्युत धारा का प्रवाह नहीं होता है।

2.

इनकी बाह्य कक्षा में केवल एक संयुग्मी इलेक्ट्रान होता है।

इनकी बाह्यतम कक्षा में 4 संयुग्मी इलेक्ट्रान होते हैं।

इनकी बाह्यतम कक्षा में 8 संयुग्मी इलेक्ट्रान होते हैं।

3.

सुचालक का निर्माण धात्विक बंध का उपयोग करते हुए होता है।

अर्द्धचालकों का निर्माण संयुग्मी बंध के कारण होता है।

कुचालकों का निर्माण आयनिक बंध के कारण होता है।

4.

संयुग्मी तथा संचलन बैंड ओवरलैप करते हैं।

संयुग्मी और संचलन/चालन बैंड 1.1 eV के निषिद्ध ऊर्जा अंतराल द्वारा अलग होते हैं।

संयुग्मी और संचलन/चालन बैंड 6 से 10 eV के निषिद्ध ऊर्जा अंतराल द्वारा अलग होते हैं।

5.

प्रतिरोध  बहुत कम होता है।

प्रतिरोध उच्च होता है।

प्रतिरोध अति उच्च होता है।

6.

इनका ताप नियतांक धनात्मक/सकारात्मक होता है।

इनका ताप नियतांक ऋणात्मक/नकारात्मक होता है।

इनका ताप नियतांक ऋणात्मक/नकारात्मक होता है।

7.

उदाहरण: तांबा, एल्युमीनियम आदि।

उदाहरण: सिलिकॉन, जर्मेनियम आदि।

उदाहरण: माइका, पेपर आदि।

  • यह एक विद्युत परिपथ है जिसमें अर्धचालक वेफर पर बने ट्रांजिस्टर और वायरिंग जैसे कई घटक होते हैं। इन घटकों में से कई से युक्त एक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण को एकीकृत सर्किट (आईसी) कहा जाता है और इसे कंप्यूटर, स्मार्टफोन, उपकरण, गेमिंग हार्डवेयर और चिकित्सा उपकरण जैसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में पाया जा सकता है।
    • इन उपकरणों को लगभग सभी उद्योगों में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है, खासकर ऑटोमोबाइल उद्योग में।
  • इलेक्ट्रॉनिक पुर्जे और कलपुर्जे आज एक नई आंतरिक दहन इंजन कार की लागत का 40% हिस्सा हैं, जो दो दशक पहले 20% से भी कम था।
    • इस वृद्धि का एक बड़ा हिस्सा सेमीकंडक्टर चिप्स का है।
  • कमी के कारण:
    • कोविड के कारण वर्क फ्रॉम होम: लॉकडाउन ने लैपटॉप की बिक्री में वृद्धि को एक दशक में सबसे अधिक बढ़ा दिया।
      • जैसे ही ऑफिस का काम ऑफिस से बाहर चला गया, होम नेटवर्किंग गियर, वेबकैम और मॉनिटर को बंद कर दिया गया तथा स्कूल बंद होने के कारण लैपटॉप की मांग कुछ समय के लिये बढ़ गई।
    • गलत पूर्वानुमान: महामारी में बहुत जल्दी कटौती करने वाले वाहन निर्माता इस बात को कम करके आँकते हैं कि कार की बिक्री कितनी जल्दी प्रतिकूल हो जाएगी। वाहन निर्माताओं ने वर्ष 2020 के अंत में फिर से ऑर्डर देने में जल्दीबाजी किये क्योंकि चिप मेकर्स कंप्यूटिंग और स्मार्टफोन की आपूर्ति में लगे हुए थे।
    • एकत्रीकरण:कंप्यूटर निर्माताओं ने वर्ष 2020 की शुरुआत में तंग आपूर्ति के बारे में चेतावनी देना शुरू किया। फिर उस वर्ष के मध्य के आसपास चीनी स्मार्टफोन निर्माता हुआवेई टेक्नोलॉजीज़ कंपनी, जो 5G नेटवर्किंग गियर के लिये वैश्विक बाज़ार पर भी हावी है, यह सुनिश्चित करने के लिये इन्वेंट्री का निर्माण शुरू किया ताकि यह अमेरिकी प्रतिबंधों से बच सके जो इसे अपने प्राथमिक आपूर्तिकर्त्ताओं के लिये निर्धारित किये गए थे।
      • अन्य कंपनियों ने हुआवेई से हिस्सेदारी हथियाने की उम्मीद में इन प्रतिबंधों का पालन किया जिससे चीन का चिप आयात वर्ष 2020 में लगभग 380 बिलियन अमेरिकी डाॅलर तक पहुँच गया, जो पिछले वर्ष लगभग 330 बिलियन अमेरिकी डाॅलर था।
    • आपदाएँ: अमेरिका में उत्पादन संयंत्र ठंड से और जापान में जंगल की आग से प्रभावित हुए है।
    • मुश्किल उत्पादन: उन्नत लॉजिक चिप के निर्माण के लिये असाधारण सटीकता की आवश्यकता होती है, साथ ही तेज़ी से परिवर्तन के अधीन क्षेत्र में लंबी अवधि के बड़े दांव लगाने की आवश्यकता होती है।
      • उद्योग को स्थापित करने में अरबों डॉलर का खर्च आता है और निवेश की भरपाई के लिये उन्हें चौबीसों घंटे पूरी तरह से तैयार रहना पड़ता है।
  • प्रभाव:
    • अनगिनत उद्योग प्रभावित हुए हैं क्योंकि सेमीकंडक्टर चिप की वैश्विक मांग, आपूर्ति से अधिक है।
    • चिप की कमी से इस वर्ष कार निर्माताओं के लिये 210 बिलियन अमेरिकी डालर की बिक्री प्रभावित हुई है, जिसमें 7.7 मिलियन वाहनों का उत्पादन कम हो गया है।
    • सेमीकंडक्टर की कमी आपूर्ति शृंखला को और कई प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के उत्पादन को गंभीर रूप बाधित करेगी।
    • चिप की कमी उपभोक्ताओं को सीधे तौर पर प्रभावित करती है क्योंकि वैश्विक आपूर्ति शृंखला व्यवधान के कारण टीवी से लेकर स्मार्टफोन तक रोज़मर्रा के उपकरणों और इलेक्ट्रॉनिक सामानों की कीमतें बढ़ गई हैं।

आगे की राह 

  • उभरती प्रौद्योगिकियाँ, विशेष रूप से इंटरनेट ऑफ थिंग्स, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और ब्लॉकचेन उद्योगों में प्रमुखता प्राप्त कर रही हैं। इन अनुप्रयोगों के सभी क्षेत्रों में कर्षण प्राप्त करने के साथ, विशेष सेंसर, एकीकृत सर्किट, बेहतर मेमोरी और उन्नत प्रोसेसर की आवश्यकता बढ़ रही है।
  • भारत अपनी 'मेक इन इंडिया' पहल के एक हिस्से के रूप में सेमीकंडक्टर चिप्स के निर्माण की योजना को बड़े पैमाने पर अंतिम रूप दे रहा है। देश में विनिर्माण इकाइयाँ स्थापित करने वाली प्रत्येक सेमीकंडक्टर कंपनी को राष्ट्र 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक राशि देने की पेशकश कर रहा है।
    • स्थानीय रूप से बने चिप्स को "विश्वसनीय स्रोत" के रूप में नामित किया जाएगा और सीसीटीवी कैमरों से लेकर 5G उपकरण तक के उत्पादों में उपयोग किया जा सकता है।
    • दिसंबर 2021 में भारत ने देश में निर्माण इकाइयों की स्थापना या ऐसी विनिर्माण इकाइयों के अधिग्रहण के लिये चिप निर्माताओं से उनकी रुचियाँ" आमंत्रित कीं।
  • यह सब अर्द्धचालकों के निर्माण में आत्मनिर्भरता हासिल करने, डेटा सुरक्षा पर बेहतर नियंत्रण सुनिश्चित करने और दुनिया के देशों को मौजूदा अर्द्धचालकों की आपूर्ति शृंखला पर विशिष्ट देशों का एकाधिकार होने से रोकने के लिये किया जा रहा है।
  • यह स्पष्ट है कि अर्द्धचालक हमारी आधुनिक तेज़ी से भागती दुनिया को बदल रहे हैं। इसलिये भारत को निकट भविष्य में अर्द्धचालकों को अधिकांश महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढांचे का दर्जा देना चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 


शासन व्यवस्था

राष्ट्रीय वायु खेल नीति मसौदा

प्रिलिम्स के लिये:

भारत में खेल से संबंधित पहलें, ASFI और FAI के विषय में।

मेन्स के लिये:

भारत में खेल विकास नीतियाँ, राष्ट्रीय वायु खेल नीति का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने एक राष्ट्रीय वायु खेल नीति मसौदा (NASP) जारी किया है, जिसके तहत संबंधित सेवाओं और उनके उपकरणों को प्रदान करने वाली संस्थाओं को पंजीकृत करने की आवश्यकता होगी और ऐसा नहीं होने पर दंड का भी प्रावधान किया गया है।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय
    • नीति में देश में हवाई खेलों के लिये दो स्तरीय शासन संरचना का प्रस्ताव दिया गया है, जिसमें ‘एयर स्पोर्ट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया’ (ASFI) नामक एक शीर्ष शासी निकाय और प्रत्येक हवाई खेल के लिये विशिष्ट संघ शामिल होंगे।
      • ‘एयर स्पोर्ट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया’ नागरिक उड्डयन मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त निकाय होगा और लॉज़ेन स्थित (स्विट्ज़रलैंड) ‘फेडरेशन एरोनॉटिक इंटरनेशनल (FAI) तथा हवाई खेलों से संबंधित अन्य वैश्विक प्लेटफार्मों में भारत का प्रतिनिधित्व करेगा।
      • यह हवाई खेलों के विभिन्न पहलुओं का विनियमन करेगा, जिसमें प्रमाणन, प्रतियोगिताएँ आयोजित करना, पुरस्कार और दंड आदि शामिल हैं।
    • प्रत्येक हवाई खेल संघ उपकरण, बुनियादी अवसंरचना, कर्मियों और प्रशिक्षण हेतु अपने सुरक्षा मानकों का निर्धारण करेगा तथा गैर-अनुपालन के मामले में अनुशासनात्मक कार्रवाई को निर्दिष्ट करेगा। ऐसा करने में असमर्थ होने पर ASFI द्वारा दंडात्मक कार्रवाई की जा सकती है।
    • यह प्रस्तावित है कि देश में लोकप्रिय हवाई खेल क्षेत्रों जैसे हिमाचल प्रदेश में बीर बिलिंग, सिक्किम में गंगटोक, महाराष्ट्र में हडपसर और केरल में वागामोन को लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु हवाई खेलों के लिये एक ‘नियंत्रण क्षेत्र’ घोषित किया जा सकता है। 
  • शामिल गतिविधियांँ:
    • इसमें एरोबेटिक्स, एरोमॉडलिंग, प्रायोगिक विमान, बैलूनिंग, ड्रोन, ग्लाइडिंग, हैंग ग्लाइडिंग, पैराग्लाइडिंग, माइक्रोलाइटिंग, पैरामोटरिंग, स्काईडाइविंग और विंटेज एयरक्राफ्ट जैसी गतिविधियां शामिल होंगी।
  • उद्देश्य:
    • इस नीति का दृष्टिकोण वर्ष 2030 तक भारत को शीर्ष एयर स्पोर्ट्स (Air Sports) राष्ट्रों में से एक बनाना है।
    • यह देश के एयर स्पोर्ट्स क्षेत्र को सुरक्षित, किफायती, सुलभ और टिकाऊ बनाकर इसे बढ़ावा देने की परिकल्पना करता है।
    • नीति  एयर स्पोर्ट्स के लिये भारत की क्षमता का लाभ उठाने का प्रयास करती है और सुरक्षा में अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम उपायों को सुनिश्चित करने पर मज़बूती से ध्यान केंद्रित करती है। 
    • इसका उद्देश्य आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत घरेलू डिज़ाइन, विकास और  एयर स्पोर्ट्स  उपकरणों के निर्माण को बढ़ावा देना है। कुछ वर्षों के लिये  उपकरणों पर आयात शुल्क माफ करना, साथ ही जीएसटी परिषद से  एयर स्पोर्ट्स  उपकरणों पर जीएसटी दर को 5% या उससे कम करने पर विचार करने का अनुरोध करना है।
  • महत्त्व:
    • स्कूलों और कॉलेजों को अपने पाठ्यक्रम में हवाई खेलों को शामिल करने हेतु प्रोत्साहित किया जाएगा जिससे छात्रों को एफएआई की अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लेने का अवसर मिलेगा।
    • भारत में एयर स्पोर्ट्स  की दुनिया में अग्रणी देशों में शामिल होने की क्षमता हैक्योकि यहाँ एक बड़ा भौगोलिक क्षेत्र, विविध स्थलाकृति और उचित मौसम की स्थिति विद्यमान है।
    • इसकी एक बड़ी आबादी में युवा शामिल हैं। इसमें साहसिक खेलों और विमानन को बढ़ावा दिया गया है।
    • हवाई खेल गतिविधियों से प्रत्यक्ष राजस्व के अलावा, विशेष रूप से देश के पहाड़ी क्षेत्रों में यात्रा, पर्यटन, बुनियादी ढाँचे और स्थानीय रोज़गार विकास के मामले में लाभ कई गुना अधिक हो सकता है।
    • देश भर में एयर स्पोर्ट्स हब बनाने से दुनिया भर से एयर स्पोर्ट्स प्रोफेशनल और पर्यटक भी यहाँ आएंगे।

खेल विकास के लिये सरकार की पहल

 स्रोत- द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

परमाणु प्रतिष्ठानों और सुविधाओं के विरुद्ध हमलों का निषेध: भारत-पाकिस्तान

प्रिलिम्स के लिये:

परमाणु प्रतिष्ठानों और सुविधाओं के विरुद्ध हमलों के निषेध पर समझौता

मेन्स के लिये:

परमाणु प्रतिष्ठानों और सुविधाओं के विरुद्ध हमलों के निषेध पर समझौता, इसका महत्त्व और आवश्यकता, भारत-पाकिस्तान संबंध।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत और पाकिस्तान ने अपने परमाणु प्रतिष्ठानों की सूची का आदान-प्रदान किया है।

  • यह आदान-प्रदान पाकिस्तान और भारत के बीच परमाणु प्रतिष्ठानों तथा सुविधाओं के खिलाफ हमलों के निषेध पर समझौते के अनुच्छेद- II के अनुसार था।
  • दोनों देशों ने मई 2008 में हस्ताक्षरित कांसुलर एक्सेस समझौते के प्रावधानों के तहत एक-दूसरे की जेलों में बंद कैदियों की सूची का आदान-प्रदान भी किया था।
    • इस समझौते के तहत दोनों देशों को हर वर्ष 1 जनवरी और 1 जुलाई को व्यापक सूचियों का आदान-प्रदान करना चाहिये।

प्रमुख बिंदु:

  • परमाणु प्रतिष्ठानों और सुविधाओं के खिलाफ हमलों का निषेध:
    • परिचय:
      • इस समझौते के तहत दोनों देशों को एक दूसरे की परमाणु सुविधाओं की जानकारी देनी होगी।
      • समझौते पर वर्ष 1988 में हस्ताक्षर किये गए और वर्ष 1991 में इसकी पुष्टि की गई।
      • यह दोनों पड़ोसी देशों के बीच सूची का लगातार 31वाँ आदान-प्रदान था।
    • कवरेज:
      • परमाणु ऊर्जा और अनुसंधान रिएक्टर, ईंधन निर्माण, यूरेनियम संवर्द्धन, आइसोटोप पृथक्करण तथा पुनर्संसाधन सुविधाओं के साथ-साथ किसी भी रूप में विकिरणित परमाणु ईंधन एवं सामग्री के साथ कोई अन्य प्रतिष्ठान व महत्त्वपूर्ण मात्रा में रेडियोधर्मी सामग्री का भंडारण करने वाले प्रतिष्ठान आदि सभी को “परमाणु प्रतिष्ठानों और सुविधाओं” के तहत शामिल किया गया है।
  • समझौते का महत्त्व:
    • इज़रायल द्वारा वर्ष 1981 में बगदाद के निकट इराक के ओसीराक रिएक्टर पर बमबारी के संदर्भ में समझौते की आवश्यकता महसूस की गई थी। इज़रायली लड़ाकू विमानों द्वारा शत्रुतापूर्ण हवाई क्षेत्र पर किये गए हमले ने इराक के परमाणु हथियार कार्यक्रम को महत्त्वपूर्ण रूप से निर्धारित किया था।
    • यह समझौता पाकिस्तान के संदर्भ में भी आया था।
      • इस्लामाबाद को वर्ष 1972 की उस हार की याद ने झकझोर दिया है जिसने देश को खंडित कर दिया था और भारत में सैन्य विकास जैसे कि वर्ष 1987 में ऑपरेशन ब्रासस्टैक्स, जो आक्रामक क्षमताओं हेतु तैयार करने के लिये एक युद्ध अभ्यास था। पाकिस्तान ने उस समय अपने परमाणु प्रतिष्ठानों और संपत्तियों को 'हाई अलर्ट' पर रखकर जवाब दिया था।

भारत-पाकिस्तान संबंध के वर्तमान मुद्दे

  • सीमा पार आतंकवाद:
    • पाकिस्तान के नियंत्रण वाले क्षेत्रों से उत्पन्न होने वाला आतंकवाद द्विपक्षीय संबंधों के लिये एक प्रमुख चिंता का विषय बना हुआ है।
    • भारत ने लगातार भारत के खिलाफ सीमा पार आतंकवाद को समाप्त करने के लिये पाकिस्तान को विश्वसनीय, अपरिवर्तनीय और सत्यापन योग्य कार्रवाई करने की आवश्यकता पर बल दिया है।
  • सिंधु जल समझौता:
    • पाकिस्तान के सीमा पार आतंकवाद की प्रतिक्रिया के रूप में सिंधु जल संधि को निरस्त करने के लिये भारत में समय-समय पर हंगामा होता रहता है।
      • यह विश्व बैंक के माध्यम से संपन्न कराई एक संधि है, जो यह प्रशासित करती है कि सिंधु और उसकी सहायक नदियों के पानी का उपयोग कैसे किया जाएगा जो कि दोनों देशों में बहती हैं।
  • सियाचिन ग्लेशियर
    • सियाचिन को दुनिया का सबसे ऊँचा और सबसे घातक युद्धक्षेत्र माना जाता है।
    • दशकों के सैन्य अभियानों ने ग्लेशियर और आसपास के वातावरण को नुकसान पहुँचाया है।
    • लेकिन भारत-पाक संबंधों की जटिल प्रकृति और दोनों देशों के बीच अविश्वास के कारण इस मामले पर अभी कोई फैसला नहीं हुआ है।
  • सरक्रीक:
    • यह कच्छ दलदली भूमि के रण में भारत और पाकिस्तान के बीच विवादित पानी की 96 किमी. लंबी पट्टी है।
    • विवाद कच्छ और सिंध के बीच समुद्री सीमा रेखा की व्याख्या में निहित है।
      • पाकिस्तान मुहानों के पूर्वी किनारे का अनुसरण करने के लिये रेखा का दावा करता है, जबकि भारत एक केंद्र रेखा का दावा करता है (सिंध की तत्कालीन सरकार और कच्छ के राव महाराज के बीच हस्ताक्षरित 1914 के बॉम्बे सरकार के प्रस्ताव के अनुच्छेद 9 और 10 की अलग-अलग व्याख्या)।
  • जम्मू और कश्मीर का पुनर्गठन:
    • इसने कश्मीर-केंद्रित पाकिस्तान में भी संकट पैदा कर दिया क्योंकि एक ही बार में लद्दाख का बड़ा क्षेत्र कश्मीर विवाद से अलग हो गया था।
      • पाकिस्तान की हताशा आतंकवाद को बढ़ावा देने के उसके हताश प्रयासों और भारत के इस कदम के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय समर्थन जुटाने के असफल प्रयासों में दिखाई देती है।

आगे की राह 

  • दोनों देश फरवरी 2021 में नियंत्रण रेखा और अन्य सभी क्षेत्रों के साथ समझौतें और युद्धविराम के सख्त पालन पर सहमत हुए।
  • लेकिन जब तक आपसी इच्छा, राजनीतिक इच्छाशक्ति और दोनों पक्षों में निर्णायक कठिन निर्णय लेने का साहस न हो, देशों के भविष्य में  जुड़ाव की कोई उम्मीद नहीं है।
  • खुद को भारत के बराबर या उससे बेहतर साबित करने के लिये पाकिस्तान के कभी न खत्म होने वाले संघर्ष ने कभी भी दोनों देशों के बीच संबंधों को सामान्य नहीं होने दिया।
  • वास्तविक-लोकतंत्र की कमी और लगातार दंतविहीन नागरिक सरकारों ने यह साबित कर दिया है कि पाक सेना की चालों से नागरिक सरकार के साथ द्विपक्षीय जुड़ाव बेकार हो जाएगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

सॉलिड-स्टेट बैटरी

प्रिलिम्स के लिये:

सॉलिड-स्टेट बैटरी, सॉलिड-स्टेट और ली-आयन बैटरी के बीच अंतर, बैटरी के प्रकार।

मेन्स के लिये:

सॉलिड-स्टेट बैटरी, सॉलिड-स्टेट और ली-आयन बैटरी के बीच अंतर, सॉलिड-स्टेट बैटरी के फायदे, जलवायु परिवर्तन से लड़ने में आधुनिक बैटरियों की भूमिका, आधुनिक बैटरी ऑटोमोबाइल उद्योग में कैसे क्रांति ला सकती है।

चर्चा में क्यों?

कार निर्माता वोक्सवैगन ने क्वांटमस्केप के साथ साझेदारी के माध्यम से वर्ष 2025 तक सॉलिड-स्टेट बैटरी के उत्पादन की योजना बनाई है।

  • क्वांटमस्केप की सॉलिड-स्टेट बैटरी को दो इलेक्ट्रोड को अलग करने वाले एक ठोस इलेक्ट्रोलाइट के साथ लिथियम धातु की एक संभावना के रूप में देखा जाता है।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • एक सॉलिड-स्टेट बैटरी में लिथियम-आयन बैटरी की तुलना में अधिक ऊर्जा घनत्व होता है जो इलेक्ट्रोलाइट समाधान का उपयोग करती है। इसमें विस्फोट या आग का खतरा नहीं है, इसलिये सुरक्षा हेतु विभिन्न घटकों की आवश्यकता नहीं होती है, इस प्रकार इससे अधिक स्थान की बचत होती है। तब हमारे पास अधिक सक्रिय सामग्री प्रयोग करने के लिये अधिक स्थान होता है जो बैटरी क्षमता को बढ़ाता है।
    • एक सॉलिड-स्टेट बैटरी प्रति यूनिट क्षेत्र में ऊर्जा घनत्व बढ़ा सकती है क्योंकि कम संख्या में बैटरियों की आवश्यकता होती है। इस कारण से एक सॉलिड-स्टेट बैटरी मॉड्यूल और इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) बैटरी सिस्टम बनाने हेतु एकदम सही है एवं इसके लिये उच्च क्षमता की आवश्यकता होती है।
    • आज के मोबाइल फोन और इलेक्ट्रिक वाहनों में उपयोग की जाने वाली लिथियम-आयन सेल्स का ऊर्जा घनत्व पुरानी पीढ़ी की निकल-कैडमियम बैटरी की तुलना में लगभग चार गुना अधिक है।
    • पिछले एक दशक में प्रौद्योगिकी में सुधार के बावजूद लंबे समय तक चार्जिंग समय और कमज़ोर ऊर्जा घनत्व जैसे मुद्दे बने रहते हैं। जबकि लिथियम-आयन बैटरी को फोन और लैपटॉप के लिये पर्याप्त रूप से कुशल बैटरी के रूप में देखा जाता है, फिर भी उनमें उस सीमा की कमी होती है जो ईवीएस को आंतरिक दहन इंजन के लिये एक व्यवहार्य विकल्प बनाती है।

लिथियम आयन बैटरी:

  • परिचय:
    • यह एक गैर-रिचार्जेबल लिथियम बैटरी में उपयोग किये जाने वाले धातु लिथियम की तुलना में एक इलेक्ट्रोड सामग्री के रूप में इंटरकलेटेड (इंटरकलेशन स्तरित संरचनाओं के साथ सामग्री में एक अणु का प्रतिवर्ती समावेश या सम्मिलन है) लिथियम यौगिक का उपयोग करता है।
    • बैटरी में इलेक्ट्रोलाइट होता है जो आयनिक गति की अनुमति देता है और लिथियम-आयन बैटरी सेल के घटक दो इलेक्ट्रोड होते हैं।
    • डिस्चार्ज के दौरान लिथियम आयन नकारात्मक इलेक्ट्रोड से सकारात्मक इलेक्ट्रोड में चले जाते हैं और चार्ज करते समय वापस आ जाते हैं।
    • बैटरी के डिस्चार्ज होने के दौरान लिथियम आयन नेगेटिव इलेक्ट्रोड से पॉज़िटिव इलेक्ट्रोड की ओर गति करते हैं , जबकि चार्ज होते समय विपरीत दिशा में।
  • लिथियम-आयन बैटरी का उपयोग:
    •  इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, टेली-कम्युनिकेशन, एयरोस्पेस, औद्योगिक अनुप्रयोग।
    • लिथियम-आयन बैटरी प्रौद्योगिकी इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड इलेक्ट्रिक वाहनों के लिये पसंदीदा ऊर्जा स्रोत बन गई है।
  • लिथियम-आयन बैटरी की कमियाँ:
    • लंबी चार्जिंग अवधि।
    • एक बड़ी समस्या यह है कि लिथियम धातु अत्यंत प्रतिक्रियाशील है। जिससे  कई बार इन बैटरियों में आग लगने की घटनाएँ सामने आने से इसे लेकर सुरक्षा चिंताएँ भी बनी रहती हैं।
    • खर्चीली निर्माण प्रक्रिया।
    • यद्यपि लिथियम-आयन बैटरी को फोन और लैपटॉप जैसे अनुप्रयोगों के लिये पर्याप्त रूप से कुशल माना जाता है, परंतु इलेक्ट्रिक वाहनों के मामले में इसकी बैटरी की रेंज (एक चार्जिंग में अधिकतम दूरी तय करने की क्षमता) के संदर्भ में प्रौद्योगिकी में इतना सुधार नहीं हुआ है जो इन्हें आतंरिक दहन इंजन वाले वाहनों की तुलना में एक वहनीय विकल्प बना सके। 
  • लिथियम-आयन के लाभ:
    • उच्च सेल ऊर्जा घनत्व:
      • सॉलिड-स्टेट बैटरी तकनीक के लाभों में उच्च सेल ऊर्जा घनत्व (कार्बन एनोड को समाप्त करके), चार्जिग का कम समय (पारंपरिक लिथियम-आयन कोशिकाओं में लिथियम को कार्बन कणों में फैलाने की आवश्यकता को समाप्त करके), कार्य करने की अधिक क्षमता शामिल है। चार्जिंग साइकिल,लंबी अवधि तक कार्य करने में सक्षम और बेहतर सुरक्षा।
    •  लागत प्रभावी:
      • कम लागत एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है, यह देखते हुए कि कुल लागत का 30% बैटरी खर्च वाहन की लागत का एक प्रमुख चालक है।
      • क्वांटमस्केप का दावा है कि वह कई वर्षों में लिथियम-आयन बैटरी की लागत के मुकाबले बैटरी की लागत को 15-20% तक कम करने का लक्ष्य बना रहा है।
  • सॉलिड-स्टेट बैटरियों के अन्य संभावित विकल्प:
    • ग्रैफीन बैटरी:लिथियम बैटरियों को बार-बार चार्ज करने की आवश्यकता इसकी वहनीयता को सीमित करती है, ऐसे में ग्रैफीन बैटरियाँ इसका एक महत्त्वपूर्ण विकल्प हो सकती हैं।  ग्रैफीन हाल ही में स्थिर और पृथक किया गया पदार्थ है।  
    • फ्लोराइड बैटरी: फ्लोराइड बैटरियों में लिथियम बैटरी की तुलना में आठ गुना अधिक समय तक चलने की क्षमता है।
    • सैंड बैटरी: लिथियम-आयन बैटरी के इस वैकल्पिक प्रकार में वर्तमान ग्रेफाइट लि-आयन बैटरी की तुलना में तीन गुना बेहतर प्रदर्शन करने के लिये सिलिकॉन का उपयोग किया जाता है। यह भी स्मार्टफोन में प्रयोग की जाने वाले लिथियम-आयन बैटरी के समान होती है परंतु इसमें एनोड के रूप में में ग्रेफाइट के बजाय सिलिकॉन का उपयोग किया जाता है। 
    • अमोनिया संचालित बैटरी: अमोनिया से चलने वाली बैटरी का शायद बाज़ार में शीघ्र उपलब्ध होना संभव न हो परंतु आमतौर पर घरेलू क्लीनर के रूप में उपयोग यह रसायन लिथियम का एक विकल्प हो सकता है, क्योंकि यह वाहनों और अन्य उपकरणों में लगे फ्यूल सेल को ऊर्जा प्रदान कर सकता है।
      • यदि वैज्ञानिकों द्वारा अमोनिया उत्पादन के एक ऐसे तरीके की खोज कर ली जाती है जिसमें उपोत्पाद के रूप में ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन न होता हो, तो इसे फ्यूल सेल को ऊर्जा प्रदान करने के लिये वहनीय विकल्प के रूप में प्रयोग किया जा सकता है ।
    • लिथियम सल्फर बैटरी: ऑस्ट्रेलिया के शोधकर्त्ताओं के अनुसार, उन्होंने लिथियम-सल्फर का उपयोग करके विश्व की सबसे शक्तिशाली रिचार्जेबल बैटरी विकसित की है, जो वर्तमान में उपलब्ध सबसे मज़बूत बैटरी से चार गुना बेहतर प्रदर्शन कर सकती है।
    • ऊर्ध्वाधर रूप से संरेखित कार्बन नैनोट्यूब इलेक्ट्रोड: यह लिथियम आयन बैटरी इलेक्ट्रोड हेतु अच्छा विकल्प हो सकती है जिसमें उच्च दर की क्षमता और योग्यता की आवश्यकता होती है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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