मध्य प्रदेश Switch to English
मध्य प्रदेश में बाघों को स्थानांतरित किया जाएगा
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) ने मध्य प्रदेश से 15 बाघों को राजस्थान, छत्तीसगढ़ और ओडिशा राज्यों में स्थानांतरित करने की मंज़ूरी प्रदान की है।
मुख्य बिंदु
- बाघों का सबसे बड़ा स्थानांतरण:
- यह पहल भारत में किसी एक राज्य से बड़ी बिल्लियों (बिग कैट्स) के सबसे बड़े स्थानांतरण का प्रतीक होगी।
- इसका उद्देश्य देश भर में बाघ संरक्षण प्रयासों को बढ़ावा देना है।
- स्थानांतरण के लिये कोई विशिष्ट समयसीमा अभी तक तय नहीं की गई है।
- तीन रिज़र्वों से बाघों को स्थानांतरित किया जाएगा: बाँधवगढ़, पेंच और कान्हा टाइगर रिज़र्व।
- कुल स्थानांतरित बाघों में से बारह बाघिन होंगी।
- यह पहल भारत में किसी एक राज्य से बड़ी बिल्लियों (बिग कैट्स) के सबसे बड़े स्थानांतरण का प्रतीक होगी।
- गंतव्य राज्य और वितरण:
- राजस्थान: चार बाघिन।
- छत्तीसगढ़: दो बाघ और छह बाघिन।
- ओडिशा: एक नर बाघ और दो बाघिन।
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA)
- यह पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अंतर्गत एक वैधानिक निकाय है।
- इसकी स्थापना वर्ष 2005 में टाइगर टास्क फोर्स की सिफारिशों के बाद की गई थी।
- इसका गठन वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 (जैसा कि वर्ष 2006 में संशोधित किया गया) के प्रावधानों के तहत किया गया था, ताकि इसे निर्दिष्ट की गई शक्तियों और कार्यों के अनुसार बाघ संरक्षण को सशक्त किया जा सके
बाँधवगढ़ टाइगर रिज़र्व
- यह मध्य प्रदेश के उमरिया ज़िले में स्थित है और विंध्य पहाड़ियों पर विस्तृत है।
- यह ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है, जिसका प्रमाण प्रसिद्ध बाँधवगढ़ किले के साथ-साथ संरक्षित क्षेत्र में मौजूद अनेक गुफाएँ, शैलचित्र और नक्काशी है।
- 1968 में इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया तथा 1993 में इसे बाघ अभयारण्य घोषित किया गया।
- यह रॉयल बंगाल टाइगर्स के लिये जाना जाता है।
- अन्य महत्त्वपूर्ण शिकार प्रजातियों में चीतल, सांभर, भौंकने वाला हिरण, नीलगाय, चिंकारा, जंगली सुअर, चौसिंघा, लंगूर और रीसस मकाॅक शामिल हैं।
- बाघ, तेंदुआ, जंगली कुत्ता, भेड़िया और सियार जैसे प्रमुख शिकारी इन पर निर्भर हैं।
पेंच टाइगर रिज़र्व (PTR)
- PTR मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र दोनों का संयुक्त गौरव है।
- यह अभ्यारण्य मध्य प्रदेश के सिवनी और छिंदवाड़ा ज़िलों में सतपुड़ा पहाड़ियों के दक्षिणी छोर पर स्थित है तथा महाराष्ट्र के नागपुर ज़िले में एक अलग अभयारण्य के रूप में विस्तृत है।
- इसे 1975 में महाराष्ट्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया तथा वर्ष 1992 में इसे बाघ अभयारण्य का दर्जा दिया गया।
- हालाँकि, 1992-1993 में PTR मध्य प्रदेश को भी यही दर्जा दिया गया था। यह सेंट्रल हाइलैंड्स के सतपुड़ा-मैकल पर्वतमाला के प्रमुख संरक्षित क्षेत्रों में से एक है।
- यह भारत के महत्त्वपूर्ण पक्षी क्षेत्रों (IBA) के रूप में अधिसूचित स्थलों में से एक है।
- कान्हा टाइगर रिज़र्व
- यह मध्य प्रदेश के दो ज़िलों- मंडला और बालाघाट- में 940 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत है।
- वर्तमान कान्हा क्षेत्र को दो अभयारण्यों, हालोन और बंजार में विभाजित किया गया था। 1955 में कान्हा राष्ट्रीय उद्यान बनाया गया और 1973 में इसे कान्हा टाइगर रिज़र्व बना दिया गया।
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मध्य प्रदेश विषाक्त अपशिष्ट का निपटान करेगा
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मध्य प्रदेश सरकार ने भोपाल गैस त्रासदी के 40 वर्ष पश्चात, भोपाल में यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (UCIL) से निकले 337 टन ज़हरीले अपशिष्ट का निपटान शुरू कर दिया है। वे इस अपशिष्ट को धार ज़िले के पीथमपुर ले जाने की योजना बना रहे हैं।
मुख्य बिंदु
- पर्यवेक्षित पैकिंग और स्टैकिंग:
- फैक्ट्री प्रशासन केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) और मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (MPPCB) की देख-रेख में अपशिष्ट की पैकिंग और स्टैकिंग का काम कर रहा है।
- पैकिंग और लोडिंग प्रक्रिया में विशेष रूप से प्रशिक्षित कर्मचारी शामिल होते हैं तथा आवश्यक सावधानियाँ बरतते हैं।
- अपशिष्ट के लिये बारह विशेष रूप से डिज़ाइन किये गए वायुरोधी कंटेनरों का उपयोग किया जा रहा है।
- लघु श्रमिक शिफ्ट:
- विषाक्त अपशिष्ट के संपर्क को न्यूनतम करने के लिये श्रमिक नियमित 8-9 घंटे की शिफ्ट के स्थान पर 30-45 मिनट की शिफ्ट में काम कर रहे हैं।
- भोपाल से पीथमपुर तक अपशिष्ट के सुरक्षित परिवहन के लिये 250 किलोमीटर का ग्रीन कॉरिडोर तैयार किया गया है।
- परीक्षण और सुरक्षा आश्वासन:
- वर्ष 2015 में, वैज्ञानिक देखरेख में पीथमपुर में 10 टन अपशिष्ट को जला दिया गया था, जिसके परिणाम उच्च न्यायालय को प्रस्तुत किये गये थे, जिसमें कोई हानिकारक प्रभाव नहीं दिखाया गया था।
- सुरक्षा उपायों में संदूषण को रोकने के लिये लैंडफिल स्थलों पर दो-परत वाली झिल्ली और चार-परत वाली वायु निस्पंदन प्रणाली लगाना शामिल है।
भोपाल गैस त्रासदी
- भोपाल गैस त्रासदी 2-3 दिसंबर 1984 को हुई थी, जब मिथाइल आइसोसाइनेट गैस लीक हुई थी, जिसमें 5,479 लोग मारे गए थे।
- पाँच लाख से अधिक लोगों को दीर्घकालिक स्वास्थ्य प्रभाव झेलना पड़ा तथा इस त्रासदी से संबंधित अनेक मामले अभी भी न्यायालयों में लंबित हैं।
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