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रीसस मकाॅक में समान-लिंग व्यवहार

  • 09 Aug 2023
  • 3 min read

इंपीरियल कॉलेज लंदन के शोधकर्त्ताओं द्वारा "जेनेटिक्स, सोशल एन्वायरनमेंट एंड इवोल्यूशन ऑफ मेल सेम-सेक्स बिहेवियर इन रीसस मकाॅक्स” (Genetics, Social Environment and Evolution of Male Same-Sex Behavior in Rhesus Macaques) शीर्षक से किये गए एक हालिया अध्ययन ने जंतुओं में समान-लिंग व्यवहार (Same-Sex Behavior- SSB) के बारे में पारंपरिक मान्यताओं को चुनौती दी है।

  • SSB में जंतुओं की भागीदारी को 'डार्विनियन पैराडॉक्स (Darwinian paradox)' माना गया है; यदि प्रजनन विकास के लिये महत्त्वपूर्ण है, तो SSB (जो गैर-प्रजनन है) का अस्तित्व समाप्त हो जाना चाहिये।
  • इस हालिया अध्ययन में पाया गया कि रीसस मकाॅक में नर में SSB बहुत आम है और इसके विकास में बाधा नहीं पहुँचाता है।

अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष:

  • नर बंदरों में समान-लिंग व्यवहार (SSB)।
    • यह अध्ययन प्यूर्टो रिको के पूर्व में एक द्वीप केयो सैंटियागो में रीसस मकाॅक, एक सामान्य बंदर मॉडल (A Common Monkey Model) में देखे गए नर समान लिंग व्यवहार पर केंद्रित है।
      • 72% नर रीसस मकाॅक सेम-सेक्स माउंटिंग (Same-Sex Mounting) में संलग्न पाए गए।
      • केवल 46% ने भिन्न-सेक्स माउंटिंग (Different-Sex Mounting) प्रदर्शित किया।
    • यह इस धारणा को चुनौती देता है कि SSB अपनी गैर-प्रजनन प्रकृति के कारण विकास के सिद्धांतों को खंडित करता है।
  • गैर-आनुवंशिक कारकों की भूमिका:
    • अध्ययन सामाजिक संपर्क और पर्यावरण जैसे बाहरी कारकों पर विचार करता है।
    • ये गैर-आनुवंशिक तत्त्व नर रीसस मकाॅक (Male Rhesus Macaques) में SSB की अभिव्यक्ति में योगदान करते हैं।
      • SSB वाले बंदर साझा दुश्मनों से लड़ने के लिये एकजुट होते हैं।
      • नर SSB भावनात्मक व्यवहार और विनियमन के रूप में काम कर सकता है।
  • प्रजनन स्वास्थ्य से कोई समझौता नहीं: 
    • अध्ययन इस धारणा को चुनौती देता है कि SSB गर्भधारण की संभावनाओं को कम कर देता है क्योंकि यौन रूप से सक्रिय SSB और DSB दोनों में संलग्न होते हैं।
    • SSB में संलग्नता और मकाॅक आबादी में संतानों की संख्या में कमी के बीच कोई सीधा संबंध नहीं है
  • भविष्य के अनुसंधान:
    • मादा SSB तथा अन्य बंदर प्रजातियों के बारे में जानने के लिये और अधिक शोध की आवश्यकता है।
    • सांस्कृतिक एवं सामाजिक-आर्थिक प्रभावों के कारण परिणामों को सीधे मनुष्यों तक नहीं बढ़ाया जा सकता है।

स्रोत: द हिंदू

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