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स्टेट पी.सी.एस.

  • 21 Aug 2024
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बिहार Switch to English

बिहार में खरीफ फसलों का नष्ट होना

चर्चा में क्यों?

सूत्रों के अनुसार, उत्तरी बिहार के किसानों को अप्रत्याशित बाढ़ के कारण गंभीर फसल क्षति का सामना करना पड़ रहा है, जिससे धान और सब्ज़ियों सहित हज़ारों एकड़ खड़ी फसलें जलमग्न हो गई हैं।

प्रमुख बिंदु

  • मधेपुरा, सुपौल, सहरसा, मधुबनी और भागलपुर जैसे ज़िलों के सैकड़ों गाँवों में बाढ़ का पानी फैल गया है, जिससे बड़े पैमाने पर कृषि भूमि जलमग्न हो गई है।
  • बाढ़ के कारण कई लोग विस्थापित हो गए हैं तथा उन्हें आस-पास के बाज़ारों और कार्यालयों से कटे हुए अलग-थलग गाँवों में रहने के लिये मजबूर होना पड़ा है।
    • इसके अतिरिक्त पशुओं के लिये हरे और सूखे चारे की भी कमी हो गई, जिससे प्रभावित समुदायों की कठिनाइयाँ और बढ़ गईं।
  • व्यापक विनाश के बावजूद बिहार आपदा प्रबंधन विभाग की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं की गई।
    • बिहार में बाढ़ कोई नई घटना नहीं है, इससे प्रतिवर्ष हज़ारों लोग विशेषकर गंगा, कोसी, गंडक, बागमती और महानंदा नदी घाटियों में, प्रभावित होते हैं, ।
  • बिहार भारत में सबसे अधिक बाढ़-प्रवण राज्य है, राज्य के कुल 9.41 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्रफल में से लगभग 6.88 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र बाढ़ के प्रति संवेदनशील माना जाता है।

बाढ़ 

  • यह पानी का उस ज़मीन पर बह जाना है जो आमतौर पर सूखी होती है। बाढ़ अधिक वर्षा के दौरान, जब समुद्र की लहरें किनारे पर आती हैं, जब बर्फ तेज़ी से पिघलती है या जब बाँध या तटबंध टूट जाते हैं, तब आ सकती है।
  • विनाशकारी बाढ़ केवल कुछ इंच पानी से भी आ सकती है या यह घर की छत तक को भी ढक सकती है। बाढ़ कुछ ही मिनटों में या लंबे समय में आ सकती है और कई दिनों, सप्ताह या उससे भी अधिक समय तक चल सकती है। बाढ़ सभी मौसम संबंधी प्राकृतिक आपदाओं में सबसे आम और व्यापक है।
  • फ्लैश फ्लड सबसे खतरनाक प्रकार की बाढ़ होती है, क्योंकि इसमें बाढ़ की विनाशकारी शक्ति के साथ अविश्वसनीय गति भी शामिल होती है।
    • फ्लैश फ्लड तब आती है जब अधिक वर्षा भूमि की उसे सोखने की क्षमता से अधिक हो जाती है।
    • वे तब भी होती हैं जब सामान्यतः सूखी खाड़ियों या धाराओं में पानी भर जाता है या इतना पानी जमा हो जाता है कि धाराएँ अपने किनारों को पार कर जाती हैं, जिससे थोड़े समय में पानी का स्तर तेज़ी से बढ़ जाता है।
    • ये घटनाएँ वर्षा के कुछ ही मिनटों के भीतर घटित हो सकती हैं, जिससे जनता को चेतावनी देने और उनकी सुरक्षा के लिये उपलब्ध समय सीमित हो जाता है।

मध्य प्रदेश Switch to English

मध्य प्रदेश में जापानी इंसेफेलाइटिस का प्रकोप

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) के अनुसार, वर्ष 2019 से मध्य प्रदेश में जापानी इंसेफेलाइटिस (JE) संक्रमण के बाद आठ लोगों की मृत्यु हो चुकी है।

प्रमुख बिंदु

  • मध्य प्रदेश में जापानी इंसेफेलाइटिस के मामलों में वृद्धि के कारण स्थिति पर कड़ी नज़र रखी जा रही है, क्योंकि इससे जन-स्वास्थ्य को सीधा खतरा हो रहा है।
    • पहले वर्ष 2024 में मध्य प्रदेश के 29 ज़िलों में जापानी इंसेफेलाइटिस की पहचान की गई थी।

जापानी इंसेफेलाइटिस

  • परिचय:
  • संचरण:
    • यह रोग क्यूलेक्स प्रजाति के संक्रमित मच्छरों के काटने से मनुष्यों में फैलता है।
    • ये मच्छर मुख्य रूप से धान के खेतों और जलीय वनस्पतियों से भरपूर बड़े जल निकायों में प्रजनन करते हैं।
  • उपचार:
    • जापानी इंसेफेलाइटिस के रोगियों के लिये कोई एंटीवायरल उपचार उपलब्ध नहीं है
      • मौजूद उपचार लक्षणों से छुटकारा पाने और रोगी को स्थिरता प्रदान करने में  सहायक है।
  • निवारण:
    • इस बीमारी को रोकने के लिये सुरक्षित और प्रभावी जापानी इंसेफेलाइटिस (JE) टीके उपलब्ध हैं।
    • JE टीकाकरण भारत सरकार के सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम के तहत भी शामिल है।

राजस्थान Switch to English

राजस्थान इन्वेस्टर्स समिट, 2024 के लिये सुझाव

चर्चा में क्यों?

सूत्रों के अनुसार, व्यापार संघों और उद्योग मंडलों ने 9 से 11 दिसंबर, 2024 तक जयपुर में आयोजित होने वाले राइज़िंग राजस्थान, एक इन्वेस्टर्स समिट के लिये सिफारिशें प्रदान की हैं।

प्रमुख बिंदु

  • समिट की औपचारिक घोषणा 1 अगस्त, 2024 को की गई थी और राज्य सरकार को 5.40 ट्रिलियन रुपए से अधिक के निवेश के लिये समझौता ज्ञापन (MoU) प्राप्त हुआ था।
  • राज्य के व्यापार क्षेत्र का मानना ​​है कि ऐसी घटनाओं के नियमित रूप से होने से उद्योग विभाग की अन्य ज़िम्मेदारियों से ध्यान, प्रयास और धन का विचलन हो सकता है, क्योंकि इन घटनाओं के आयोजन में वर्ष भर की व्यापक योजना एवं तैयारी शामिल होती है।

राजस्थान Switch to English

रणथंभौर टाइगर रिज़र्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वन विभाग ने एक साहसिक रैली के दौरान रणथंभौर टाइगर रिज़र्व (RTR) में अवैध रूप से प्रवेश करने वाले 14 SUV मालिकों पर 1-1 लाख रुपए का ज़ुर्माना लगाया।

प्रमुख बिंदु

  • यह ज़ुर्माना वन्यजीव अधिनियम, 1972 की धारा 27/51 के अनुसार लगाया गया।
  • परिचय:
    • रणथंभौर टाइगर रिज़र्व राजस्थान राज्य के पूर्वी भाग में करौली और सवाई माधोपुर ज़िलों में अरावली तथा विंध्य पर्वत शृंखलाओं के संगम पर स्थित है।

    • इसमें रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान के साथ-साथ सवाई मानसिंह और कैलादेवी अभयारण्य भी शामिल हैं।

    • रणथंभौर किला, जिसके नाम से जंगलों का नाम पड़ा है, के बारे में कहा जाता है कि इसका इतिहास 1000 वर्ष से भी ज़्यादा पुराना है। यह उद्यान के भीतर 700 फीट ऊँची पहाड़ी पर रणनीतिक रूप से स्थित है और माना जाता है कि इसका निर्माण 944 ई. में एक चौहान शासक ने करवाया था।

    • बाघों से आच्छादित यह पृथक क्षेत्र बंगाल बाघ के वितरण क्षेत्र की उत्तर-पश्चिमी सीमा का प्रतिनिधित्व करता है और यह देश में संरक्षण के लिये प्रोजेक्ट टाइगर के प्रयासों का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
  • विशेषताएँ:
    • इस रिज़र्व में अत्यधिक खंडित वन क्षेत्र, खड्ड, नदी-नाले और कृषि भूमि शामिल हैं। 
    • यह कैलादेवी वन्यजीव अभयारण्य के कुछ हिस्सों, चंबल के खड्डों वाले आवासों और श्योपुर के वन क्षेत्रों के माध्यम से मध्य प्रदेश के कुनो-पालपुर परिदृश्य से जुड़ा हुआ है। 
    • चंबल नदी की सहायक नदियाँ बाघों को कुनो राष्ट्रीय उद्यान की ओर जाने के लिये आसान मार्ग प्रदान करती हैं।
  • वनस्पति एवं वन्य जीवन:
    • वनस्पति में पठारों पर घास के मैदान और मौसमी नदियों के किनारे घने जंगल शामिल हैं।
      • यहाँ का जंगल मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती है, जिसमें 'ढाक' (ब्यूटिया मोनोस्पर्मा) नामक वृक्ष की प्रजाति सबसे आम है, जो लंबे समय तक सूखे को झेलने में सक्षम है। 
      • इस पेड़ को 'जंगल की आग' भी कहा जाता है और यह उन कई फूलों वाले पौधों में से एक है जो यहाँ की शुष्क गर्मियों में रंग भर देते हैं।
    • यह उद्यान वन्य जीवन से समृद्ध है, जिसमें स्तनधारियों में बाघ खाद्य शृंखला के शीर्ष पर हैं। 
    • यहाँ पाए जाने वाले अन्य जानवरों में तेंदुए, धारीदार लकड़बग्घा, सामान्य या हनुमान लंगूर, रीसस मकाक, सियार, जंगली बिल्लियाँ, कैराकल, काला हिरण, ब्लैकनेप्ड खरगोश और चिंकारा आदि शामिल हैं।
  • राजस्थान में अन्य संरक्षित क्षेत्र:

छत्तीसगढ़ Switch to English

वन महोत्सव कार्यक्रम

चर्चा में क्यों?

हाल ही में छत्तीसगढ़ वन विभाग ने मनेन्द्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर (MCB) ज़िले में मियावाकी पद्धति से पौधे लगाकर वन महोत्सव कार्यक्रम का आयोजन किया।

प्रमुख बिंदु

  • पाँच अलग-अलग स्थानों पर करीब 6,000 पौधे रोपे गए। मियावाकी तकनीक अपनाने के पीछे मुख्य उद्देश्य नगरीय ऊष्मा द्वीपों और प्रदूषण को कम करना है।
  • मियावाकी विधि:
    • इसका नाम जापानी वनस्पतिशास्त्री अकीरा मियावाकी के नाम पर रखा गया है, इस पद्धति में प्रत्येक वर्ग मीटर में दो से चार विभिन्न प्रकार के देशी पेड़ लगाए जाते हैं।
    • इस पद्धति का विकास 1970 के दशक में किया गया था, जिसका मूल उद्देश्य भूमि के एक छोटे से टुकड़े में हरित आवरण को सघन बनाना था।
    • इस पद्धति में पेड़ आत्मनिर्भर हो जाते हैं और तीन वर्ष के भीतर अपनी पूरी लंबाई तक बढ़ जाते हैं।
      • मियावाकी पद्धति में प्रयुक्त पौधे अधिकांशतः आत्मनिर्भर होते हैं तथा उन्हें खाद और पानी जैसी नियमित देखभाल की आवश्यकता नहीं होती।
    • महत्त्व:
      • देसी पेड़ों का घना हरा आवरण उस क्षेत्र के धूल कणों को सोखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है जहाँ उद्यान स्थापित किया गया है। पौधे सतह के तापमान को नियंत्रित करने में भी सहायता करते हैं।
        • इन वनों में प्रयुक्त होने वाले कुछ सामान्य देसी पौधों में अंजन, अमला, बेल, अर्जुन और गूँज शामिल हैं।
      • ये वन नई जैवविविधता और पारिस्थितिकी तंत्र को प्रोत्साहित करते हैं जिससे मृदा की उर्वरता बढ़ती है।


उत्तराखंड Switch to English

सरकारी नौकरियों में आंदोलनकारियों को आरक्षण

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उत्तराखंड आंदोलनकारियों और उनके आश्रितों ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री से मुलाकात की तथा सरकारी नौकरियों में 10% आरक्षण प्रदान करने वाले विधेयक के पारित होने पर आभार व्यक्त किया।

प्रमुख बिंदु

  • मुख्यमंत्री के अनुसार राज्य सरकार आंदोलनकारियों के संघर्ष और बलिदान को मान्यता देती है तथा उनके कल्याण को सर्वोच्च प्राथमिकता देती है।
    • सरकार ने राज्य आंदोलनकारियों की पेंशन बढ़ाने के साथ ही उनकी मृत्यु के बाद उनके आश्रितों को पेंशन देने का भी निर्णय लिया है।

उत्तराखंड आंदोलन

  • उत्तराखंड आंदोलन के परिणामस्वरूप अविभाजित उत्तर प्रदेश से अलग उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ।
  • उत्तराखंड को राज्य बनाने की मांग पहली बार वर्ष 1938 में भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस के एक विशेष अधिवेशन में उठाई गई थी।
  • आंदोलन ने ज़ोर पकड़ा और वर्ष 1994 तक पृथक राज्य की मांग ने अंततः एक जन आंदोलन का रूप ले लिया, जिसके परिणामस्वरूप 9 नवंबर, 2000 को भारत के 27वें राज्य का गठन हुआ।


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