नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 16 जनवरी से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

राजस्थान स्टेट पी.सी.एस.

  • 17 Jan 2025
  • 0 min read
  • Switch Date:  
राजस्थान Switch to English

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में पाया गया यूट्रीकुलेरिया

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राजस्थान के केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में एक दुर्लभ और अनोखा मांसाहारी पौधा 'यूट्रीकुलेरिया' खोजा गया है। 

  • सामान्यतः ब्लैडरवॉर्ट्स के नाम से जाना जाने वाला यह पौधा आमतौर पर मेघालय और दार्जिलिंग जैसे क्षेत्रों में पाया जाता है।

मुख्य बिंदु

  • जैव विविधता में भूमिका:
    • विशेषज्ञों का मानना ​​है कि उद्यान में ब्लैडरवॉर्ट की उपस्थिति जैव विविधता को बढ़ाती है और केवलादेव के पारिस्थितिकी तंत्र में सकारात्मक योगदान देती है।
    • यूट्रीकुलेरिया छोटे कीटों को पकड़कर पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
      • भारत में इसे आखिरी बार 36 वर्ष के अंतराल के बाद वर्ष 2021 में उत्तराखंड के चमोली की मंडल घाटी में खोजा गया था।
  • फीडिंग मैकेनिज़्म:
    • यह पौधा अपने मूत्राशय जैसे जाल में प्रोटोजोआ, कीट, लार्वा, मच्छर और टैडपोल जैसे जीवों को फँसा लेता है।
      • एक बार फँस जाने पर, जीव मूत्राशय के अंदर ही मर जाता है।
    • यूट्रीकुलेरिया की स्थलीय प्रजातियाँ पानी से भरी मिट्टी में पनपती हैं, जहां वे छोटे तैरने वाले जीवों को पकड़ती हैं।
  • आदर्श विकास स्थितियाँ:
    • यूट्रीकुलेरिया की वृद्धि पंचना बाँध से प्रचुर मात्रा में जल की आपूर्ति के कारण होती है, जो पौधे की वृद्धि के लिये आदर्श परिस्थितियाँ उत्पन्न करती है।

केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान

  • परिचय:
    • यह राजस्थान के भरतपुर  में स्थित एक आर्द्रभूमि और पक्षी अभयारण्य और UNESCO विश्व धरोहर स्थल है।
    • यह अपनी समृद्ध पक्षी विविधता और जलपक्षियों की प्रचुरता के लिये जाना जाता है और यहाँ 365 से अधिक पक्षी प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें साइबेरियाई सारस जैसी कई दुर्लभ और संकटग्रस्त प्रजातियाँ भी शामिल हैं।
  • जीव-जंतु:
  • वनस्पति: 
    • प्रमुख वनस्पति प्रकार उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन हैं, जिनमें बबूल नीलोटिका का प्रभुत्व है तथा शुष्क घास के मैदान भी इसमें शामिल हैं।
  • नदी:  
    • गंभीर और बाणगंगा दो नदियाँ हैं जो इस राष्ट्रीय उद्यान से होकर बहती हैं।




राजस्थान Switch to English

ग्रेट इंडियन बस्टर्ड

चर्चा में क्यों?

शोधकर्त्ताओं ने राजस्थान के डेजर्ट नेशनल पार्क (DNP) में 12 ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (GIB) देखे। इससे भारत की सबसे गंभीर रूप से संकटग्रस्त प्रजातियों में से एक को संरक्षित करने के प्रयासों को बढ़ावा मिला है।

मुख्य बिंदु

  • GIB जनसंख्या स्थिति:
    • GIB गंभीर रूप से संकटग्रस्त है तथा केवल 173 पक्षी ही बचे हैं।
    • इनमें से 128 प्रजातियाँ वनों में निवास करती हैं, जबकि अन्य पक्षियों को कैद में रखा जाता है।
    • राजस्थान के अलावा यह प्रजाति गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में भी पाई जाती है।
  • संरक्षण प्रयास:
    • शिकार, आवास की क्षति और विखंडन के कारण वर्ष 2011 में IUCN रेड लिस्ट में GIB को "गंभीर रूप से संकटग्रस्त" के रूप में सूचीबद्ध किया गया था।
    • इसके जवाब में, राजस्थान ने इस प्रजाति के संरक्षण के लिये वर्ष 2013 में 12.90 करोड़ रुपए की परियोजना शुरू की, जिसका उद्देश्य इसके आवास की सुरक्षा और प्रजनन की स्थिति में सुधार पर ध्यान केंद्रित करना था।
      • इस परियोजना के तहत दो स्थानों, सम और रामदेवरा में 45 बस्टर्ड का सफल प्रजनन किया गया।
  • आवास संरक्षण और प्रजनन:
    • देखे गए पक्षी जंगल में पैदा हुए थे, जिनमें से अधिकांश मादाएँ  तीन से चार वर्ष की थीं तथा कुछ नर एक वर्ष तक के थे।
    • उनके आवास की सुरक्षा के प्रयासों में घास के मैदानों में सुधार करना और पक्षियों को रेगिस्तानी लोमड़ियों, बिल्लियों और नेवलों जैसे शिकारियों से बचाने के लिये बाड़ लगाना शामिल है।
  • संरक्षण में मील का पत्थर:

ग्रेट इंडियन बस्टर्ड

मरुस्थल राष्ट्रीय उद्यान



close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2