नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली न्यूज़


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

अमीबायसिस की नई दवा

  • 15 Jun 2020
  • 5 min read

प्रीलिम्स के लिये:

अमीबायसिस के बारे में 

मेन्स के लिये:

चिकित्सीय क्षेत्र में इस खोज का महत्त्व 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय ( Jawaharlal Nehru University -JNU) के शोधकर्त्ताओं की एक टीम द्वारा एंटामोइबा हिस्टोलिटिका प्रोटोज़ोआ (Entamoeba Histolytica Protozoa) के कारण होने वाली अमीबायसिस बीमारी (Amoebiasis Disease) से बचाव के लिये एक नई दवा के अणु को विकसित किया गया हैं। 

प्रमुख बिंदु:

  • ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ (World Health Organization- WHO) के अनुसार, एंटामोइबा हिस्टोलिटिका प्रोटोज़ोआ ( Entamoeba Histolytica Protozoa) जो कि एक परजीवी (Parasitic) है, मनुष्यों में  रुग्णता (अस्वस्थता) तथा मृत्यु का तीसरा प्रमुख कारण है।
    • परजीवी वो जीव होते हैं जो भोजन एवं आवास के लिये किसी दूसरे जीव पर निर्भर/आश्रित होते हैं।
  • यह मनुष्यों में अमीबायसिस या अमीबा पेचिश बीमारी का प्रमुख कारण है जोकि  विकासशील देशों में एक सामान्य प्रचलित बीमारी है।
  • इस प्रोटोज़ोआ को प्रकृति में जीवित रहने के लिये कम हवा या ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। 
  • हालांकि, संक्रमण के दौरान इसे मानव शरीर के भीतर ऑक्सीजन की अधिक मात्रा का सामना करता पड़ता है। 
  • ऐसी स्थिति में यह जीव ऑक्सीजन की अधिकता से उत्पन्न तनाव का सामना करने के लिये बड़ी मात्रा में सिस्टीन (Cysteine ) जो कि एक अमीनो एसिड है, का निर्माण करता है।
  • यह प्रोटोजोआ सिस्टीन को ऑक्सीजन के उच्च स्तर के खिलाफ अपने रक्षा तंत्र में आवश्यक अणुओं के रूप में प्रयोग करता है। 
  • एंटामोइबा द्वारा सिस्टीन को संश्लेषित करने के लिये दो महत्वपूर्ण एंजाइमों का प्रयोग किया जाता है।
  • जेएनयू के शोधकर्त्ताओं  ने इन दोनों एंज़ाइमों की आणविक संरचनाओं की विशेषता बताई तथा उन्हें निर्धारित किया है।
  • शोधकर्त्ताओं द्वारा दोनों एंजाइमों में से एक ओ-एसिटाइल एल-सेरीन सल्फहाइड्रिलेज़  (O-acetyl L-serine sulfhydrylase- OASS) से संभावित अवरोधक क्षमता की सफलतापूर्वक जाँच की गई।
  •  तथा बताया गया कि  इस एंज़ाइम में विद्यमान  कुछ अवरोधक अपनी पूरी क्षमता के साथ मनुष्यों में इस जीव (एंटामोइबा) के विकास को रोकने में सक्षम हैं।   
  • सिस्टीन, का जैव संश्लेषण (biosynthesis) ई. हिस्टोलिटिका( E. histolytica) के अस्तित्त्व के लिये महत्त्वपूर्ण है । 
  • इस प्रकार पहचान किये गए अणुओं द्वारा  अमीबायसिस की नई दवा को विकसित किया जा सकता हैं।
  • इस शोध कार्य को ‘यूरोपियन जर्नल ऑफ मेडिसिनल केमिस्ट्री’ (European Journal of Medicinal Chemistry) पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।

अमीबायसिस (Amoebiasis):

  • यह एक प्रकार की संक्रामक बीमारी है, जो एक सूक्ष्म परजीवी एंटअमीबा हिस्टोलीटिका द्वारा फैलती है।
  • इस बीमारी के लक्षण आमतौर पर दो से चार हफ्तों के भीतर दिखाई देते हैं।
  • इसके होने पर पेट में ऐंठन व दर्द होता है तथा रोगी को डायरिया, डिसेंट्री की शिकायत, भूख कम लगना तथा उल्टी इत्यादि होती है। 
  • संक्रमण के गंभीर रूप धारण करने पर शौच के साथ खून आता है।  
  • जब अमीबा का जीवाणु या पैरासाइट यकृत में प्रवेश कर जाता है, तब पेट में दाहिनी तरफ ऊपर की ओर पसलियों के अंदर अत्यधिक दर्द होता है और रोगी को तेज़  बुखार भी हो जाता है। 

स्रोत: पीआइबी

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow