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स्टेट पी.सी.एस.

  • 08 Apr 2025
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उत्तराखंड Switch to English

अंतर दृष्टि

चर्चा में क्यों?

7 अप्रैल 2025 को राष्ट्रीय दृष्टि दिव्यांगजन सशक्तीकरण संस्थान, देहरादून और राष्ट्रीय दृष्टिहीन संघ (NAB), नई दिल्ली ने संयुक्त रूप से 'अंतर दृष्टि' का उद्घाटन किया।

मुख्य बिंदु

  • उद्देश्य एवं विशेषताएँ: 
    • 'अंतर दृष्टि' को दृष्टिबाधित व्यक्तियों के दैनिक अनुभवों का अनुकरण करने के लिये एक अद्वितीय संवेदी अंधेरे कमरे के रूप में डिज़ाइन किया गया है।
    • यह सुविधा दृष्टिहीन व्यक्तियों को पूर्ण अंधेरे में भी कार्य करने में सक्षम बनाती है, जिससे अंधेपन या कम दृष्टि वाले व्यक्तियों के सामने आने वाली चुनौतियों के प्रति सहानुभूति और समझ को बढ़ावा मिलता है। 
    • इस पहल का उद्देश्य सामान्य जनता और दृष्टिबाधित व्यक्तियों के जीवन अनुभवों के बीच अवधारणात्मक अंतर को पाटकर समावेशन को बढ़ावा देना है। 
  • अमर सेवा संगम के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर:
    • उद्घाटन के दिन, NIEPVD  ने विकलांगता पुनर्वास में अग्रणी संगठन अमर सेवा संगम के साथ एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किये।
  • 'सक्षम समावेशन' ऐप का कार्यान्वयन:
    • इस साझेदारी के माध्यम से, NIEPVD विकासात्मक विकलांगता वाले बच्चों की शीघ्र पहचान, हस्तक्षेप और ट्रैकिंग के लिये अमर सेवा संगम द्वारा विकसित 'सक्षम समावेशन' ऐप को लागू करेगा।
    •  NIEPVD दृष्टिबाधित उपयोगकर्त्ताओं के लिये ऐप की पहुँच और प्रतिक्रिया को बढ़ाने के लिये दृश्य विकलांगता में अपनी विशेषज्ञता को एकीकृत करेगा।
    • यह ऐप टेली-परामर्श, पुनर्वास योजना और शीघ्र हस्तक्षेप के माध्यम से अनुकूलित सहायता प्रदान करेगा, जिससे पहुँच और प्रभाव में उल्लेखनीय वृद्धि होगी।
    • यह पहल भारत भर में दिव्यांग व्यक्तियों के सशक्तीकरण और समग्र विकास के लिये सुलभ, समावेशी और प्रौद्योगिकी-सक्षम प्रणालियों को बढ़ावा देने के DEPwD के लक्ष्य के अनुरूप है।

विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016

  • इसका उद्देश्य विकलांग व्यक्तियों (PwDs) के अधिकारों की रक्षा करना और उन्हें बढ़ावा देना है। 
  • इसका उद्देश्य विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNCRPD) को प्रभावी बनाना है, जिसका भारत ने 2007 में अनुसमर्थन किया था। 
  • बेंचमार्क विकलांगता वाले व्यक्ति को उस व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया जाता है, जिसमें निर्दिष्ट विकलांगता का कम से कम 40% हिस्सा हो।


उत्तराखंड Switch to English

चिंतन शिविर 2025

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने उत्तराखंड के देहरादून में दो दिवसीय चिंतन शिविर 2025 का शुभारंभ किया। इस कार्यक्रम में भारत से प्रमुख हितधारकों को नीतियों को आकार देने, कल्याणकारी योजनाओं की समीक्षा करने और हाशिये पर पड़े समुदायों के लिये सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने हेतु केंद्र-राज्य भागीदारी को सशक्त करने के लिये संगठित किया जाता है। 

मुख्य बिंदु

  • प्रतिनिधित्व:
    • इस कार्यक्रम में 23 राज्यों के सामाजिक न्याय मंत्री शामिल हुए, जिससे राज्य स्तर पर सशक्त भागीदारी पर प्रकाश डाला गया।
    • इसमें 28 राज्यों और 8 केंद्रशासित प्रदेशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया, जिससे व्यापक राष्ट्रीय और क्षेत्रीय समावेशिता प्रदर्शित हुई।
  • दृष्टि:
    • केंद्रीय मंत्री ने इस बात पर ज़ोर दिया कि सामाजिक समानता के बिना राष्ट्रीय विकास अप्राप्य है।
    • उन्होंने चिंतन शिविर को विचारों के आदान-प्रदान, संवाद और विकसित भारत की दिशा में प्रगति के आकलन के लिये एक मिशन-संचालित मंच बताया। 
    • उन्होंने कल्याण से सशक्तीकरण की ओर बदलाव को रेखांकित करते हुए कहा कि प्रत्येक नागरिक को जाति, लिंग, योग्यता या पृष्ठभूमि के बावजूद सम्मान के साथ आगे बढ़ने के समान अवसर मिलने चाहिये।
  • प्रमुख लक्षित क्षेत्र:
    • विचार-विमर्श चार मुख्य स्तंभों - शिक्षा, आर्थिक विकास, सामाजिक संरक्षण और सुगम्यता पर आधारित था।
    • विभाग ने दिव्यांगजनों को सहायता (ADIP), दिव्यांगजनों के लिये छात्रवृत्ति, कौशल विकास और डिजिटल समावेशन जैसी योजनाओं में प्रगति प्रदर्शित की।
    • राज्यों ने मोबाइल मूल्यांकन शिविर, समावेशी स्कूल बुनियादी ढाँचे और सुलभ परिवहन मॉडल जैसे सर्वोत्तम तरीकों को साझा किया।
    • चर्चा में प्री-मैट्रिक और पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति और पीएम-यशस्वी पर भी चर्चा की गई, जिसमें हाशिये पर पड़े समूहों पर ध्यान केंद्रित किया गया।
      • राज्यों ने डिजिटल अनुप्रयोगों, सत्यापन प्रणालियों तथा ग्रामीण एवं जनजातीय समुदायों तक पहुँच से संबंधित समस्याओं पर प्रकाश डाला। 
    • मंत्रालय ने छात्रवृत्ति कार्यान्वयन में सुधार के लिये सक्रिय संचार और जमीनी स्तर पर लामबंदी अपनाने का आग्रह किया।
  • आजीविका और आर्थिक समावेशन:
    • मंत्रालय ने पीएम-अजय और SEED के प्रदर्शन का मूल्यांकन किया, जिसमें राज्यों ने परिसंपत्ति निर्माण, क्लस्टर विकास और उद्यमिता में सफल मॉडल प्रदर्शित किये।
    • चर्चा में स्वच्छता कार्य के आधुनिकीकरण, मैनुअल स्कैवेंजिंग को समाप्त करने तथा प्रौद्योगिकी और अंतर-एजेंसी समन्वय के माध्यम से सफाई कर्मचारियों - विशेषकर महिलाओं के सम्मान को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया गया।
  • कानूनी सुरक्षा और सामाजिक न्याय:
    • नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम और अत्याचार निवारण अधिनियम के कार्यान्वयन पर चर्चा की गई।
    • मंत्रालय ने तीव्र जाँच, कानून प्रवर्तन एजेंसियों को संवेदनशील बनाने तथा जाति आधारित भेदभाव के पीड़ितों के लिये मज़बूत कानूनी सहायता का आह्वान किया।
    • ज़िला स्तरीय जवाबदेही और न्याय प्रदान करने के लिये पीड़ित-केंद्रित दृष्टिकोण पर ज़ोर दिया गया।

पीएम-यशस्वी योजना

  • परिचय:
    • सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा शुरू की गई यह योजना हाशिये पर पड़े छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
  • पात्रता: 
  • उप-योजनाएँ: 
    • यह एक व्यापक योजना है, जिसमें निम्नलिखित उप-योजनाएँ शामिल हैं: 
    • प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति: 2.5 लाख रुपए से कम आय वाले परिवारों को 4,000 रुपए वार्षिक शैक्षणिक भत्ता।
    • पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति: पाठ्यक्रम श्रेणी के आधार पर 5,000 रुपए से 20,000 रुपए तक। 
    • कॉलेज शिक्षा: शीर्ष कॉलेज के छात्रों को ट्यूशन, रहने का खर्च और शिक्षा सामग्री सहित पूर्ण वित्तीय सहायता मिलती है।
    • छात्रावास: सरकारी स्कूलों और संस्थानों के पास आवास की सुविधा।

SEED

  • सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा फरवरी 2022 में विमुक्त/घुमंतू/अर्धघुमंतू (SEED) समुदायों के आर्थिक सशक्तीकरण की योजना शुरू की गई थी। 
  • इसका उद्देश्य इन छात्रों को निःशुल्क प्रतियोगी परीक्षा कोचिंग प्रदान करना, परिवारों को स्वास्थ्य बीमा प्रदान करना, आजीविका पहल के माध्यम से इन समुदायों के समूहों का उत्थान करना तथा आवास के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करना है।




हरियाणा Switch to English

हरियाणा में संरक्षित पुरातत्त्व स्थल

चर्चा में क्यों?

हरियाणा सरकार ने भिवानी ज़िले में 4,400 साल से भी ज़्यादा पुराने दो हड़प्पा सभ्यता स्थलों को संरक्षित स्मारक और पुरातात्विक स्थल घोषित किया है। ये स्थल तिघराना और मिताथल गाँव में स्थित हैं।

मुख्य बिंदु

  • अधिसूचना के बारे में:
    • हरियाणा के धरोहर एवं पर्यटन विभाग के प्रधान सचिव ने एक अधिसूचना जारी कर 10 एकड़ क्षेत्र में फैले मिताथल स्थल को हरियाणा प्राचीन एवं ऐतिहासिक स्मारक तथा पुरातत्त्व स्थल एवं अवशेष अधिनियम, 1964 के तहत संरक्षित घोषित किया है। 
    • हरियाणा विरासत एवं पर्यटन विभाग इस स्थल की सुरक्षा के लिये कदम उठाएगा, जिसमें बाड़ लगाना और गार्ड तैनात करना शामिल है।
  • मिताथल का ऐतिहासिक महत्त्व:
    • मिताथल में वर्ष 1968 से किये जा रहे उत्खनन से तीसरी-दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व की ताम्र-कांस्य युगीन संस्कृति के साक्ष्य सामने आए हैं।
    • इस जगह की पहचान सबसे पहले वर्ष 1913 में हुई थी जब समुद्रगुप्त के सिक्कों का एक भंडार मिला था। वर्ष 1965 और 1968 के बीच की अन्य खोजों में मोती, ताँबे के औज़ार और प्रोटो-ऐतिहासिक सामग्री शामिल थी।
    • मिताथल में खुदाई से शहरी नियोजन, वास्तुकला और शिल्पकला में हड़प्पा परंपराओं का पता चलता है। इस स्थल से अच्छी तरह से जले हुए मिट्टी के बर्तन, ज्यामितीय डिज़ाइन और मोतियों, चूड़ियों और टेराकोटा वस्तुओं सहित विभिन्न पुरावशेष मिले हैं।
  • चिंताएँ: 
    • अधिकारियों के अनुसार, ग्रामीणों ने इस क्षेत्र को पहले कृषि भूमि समझते हुए वहाँ व्यवधान उत्पन्न किया था। आगे और नुकसान को रोकने के लिये आधिकारिक सुरक्षा की तत्काल आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया है।
    • हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय की एक टीम द्वारा इस स्थल की चार बार खुदाई की गई है (2016, 2020, 2021 और 2024), जिसमें प्राचीन सभ्यता से संबंधित महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष सामने आए हैं।
  • तिघराना का पुरातात्विक महत्त्व:
    • तिघराना स्थल हड़प्पा काल के बाद मानव बस्ती के विकास के बारे में जानकारी प्रदान करता है। 
    • सोथियन, जैसा कि शुरुआती बसने वालों को जाना जाता था, छोटे मिट्टी-ईंट के घरों में रहते थे जिनकी छतें फूस की थीं। वे कृषि में लगे हुए थे और काले और सफेद डिज़ाइनों के साथ चाक से बने मिट्टी के बर्तनों का इस्तेमाल करते थे।
    • तिघराना से प्राप्त अवशेषों में मनके बनाने और आभूषण उत्पादन के साक्ष्य मिले हैं, जिनमें मोतियों और हरी कार्नेलियन चूड़ियों की खोज भी शामिल है।
    • अधिकारियों ने पुष्टि की है कि चल रही खोजें क्षेत्र में सिसवाल-पूर्व, हड़प्पा-पूर्व और हड़प्पा-पश्चात की बस्तियों के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्रदान करती हैं।

हड़प्पा सभ्यता

  • हड़प्पा सभ्यता, जिसे सिंधु घाटी सभ्यता (IVC) के रूप में भी जाना जाता है, सिंधु नदी के किनारे लगभग 2500 ईसा पूर्व में विकसित हुई थी। 
  • यह मिस्र, मेसोपोटामिया और चीन के साथ चार प्राचीन शहरी सभ्यताओं में सबसे बड़ी थी।
  • ताँबा आधारित मिश्रधातुओं से बनी अनेक कलाकृतियों की खोज के कारण सिंधु घाटी सभ्यता को कांस्य युगीन सभ्यता के रूप में वर्गीकृत किया गया है। 
  • दया राम साहनी ने सबसे पहले वर्ष 1921-22 में हड़प्पा की खुदाई की और राखल दास बनर्जी ने 1922 में मोहनजो-दारो की खुदाई शुरू की।
    • ASI के महानिदेशक सर जॉन मार्शल उस उत्खनन के लिये ज़िम्मेदार थे जिसके परिणामस्वरूप सिंधु घाटी सभ्यता के हड़प्पा और मोहनजोदड़ो स्थलों की खोज हुई। 


राजस्थान Switch to English

108 कुंडीय रुद्र महामृत्युंजय महायज्ञ

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय गृह मंत्री ने राजस्थान के कोटपुतली में 108 कुंडीय रुद्र महामृत्युंजय महायज्ञ की महापूर्णाहुति एवं सनातन सम्मेलन में भाग लिया।

मुख्य बिंदु

  • महायज्ञ के बारे में:
    • बाबा नस्तीनाथ द्वारा एक साल तक चलाए गए महायज्ञ का मुख्य उद्देश्य समाज के हर वर्ग को जोड़ना और समाज में धार्मिक जागरूकता फैलाना था। 
    • आध्यात्मिक और जीवनदृष्टि के सिद्धांत:
    • केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने बाबा नस्तीनाथ द्वारा अपनाए गए चार सिद्धांतों—सत्य, तपस्या, वैराग्य और सेवा की सराहना की। इन सिद्धांतों को जीवन का आधार बनाने के लिये प्रोत्साहित किया गया।
    • ये किसी व्यक्ति के आत्मा की शुद्धि, अपने जीवन को धर्ममय बनाने और संसार की सेवा करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण सिद्धांत हैं।
    • इसके अलावा, बाबा नस्तीनाथ द्वारा प्रकृति की सेवा और पशु-पक्षियों की देखभाल पर भी ज़ोर दिया गया।
  • नाथ संप्रदाय का महत्त्व:
    • केंद्रीय गृह मंत्री ने सनातन धर्म को सशक्त करने  में नाथ संप्रदाय  के योगदान का उल्लेख करते हुए बताया कि महाप्रभु आदिनाथ से लेकर 9 गुरुओं और उनके बाद आने वाले ऊर्जा के वाहकों ने सनातन धर्म को शक्ति दी। 
    • उन्होंने यह भी कहा कि नाथ संप्रदाय में धूनि को आत्मज्ञान प्राप्त करने का एक महत्त्वपूर्ण माध्यम माना गया है, जो पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वायु के तत्त्वों को मिलाकर संतुलन और ऊर्जा प्राप्त करने की प्रक्रिया है।

नाथ संप्रदाय

  • नाथ संप्रदाय एक प्रमुख हिंदू धार्मिक पंथ है, जो मध्यकाल में उत्पन्न हुआ और जिसमें शैव, बौद्ध तथा योग की परंपराओं का अद्वितीय समन्वय देखने को मिलता है। 
  • यह पंथ विशेष रूप से हठयोग की साधना पद्धति पर आधारित है, जो आत्मा के उच्चतम अनुभव और शारीरिक नियंत्रण की दिशा में मार्गदर्शन प्रदान करता है।
  • इस पंथ के प्रवर्तक मत्स्येंद्रनाथ माने जाते हैं, जो 9वीं सदी के एक महान भारतीय योगी और ऋषि थे। 
  • मत्स्येंद्रनाथ ने नाथ पंथ की नींव रखी और इसे शैव परंपरा के भीतर एक महत्त्वपूर्ण स्थान दिलवाया। 
  • उनके योगदान के कारण ही नाथ पंथ को व्यापक पहचान मिली और यह भारत और नेपाल में एक महत्त्वपूर्ण धार्मिक परंपरा बन गया। 
  • इसके अतिरिक्त, मत्स्येंद्रनाथ को तिब्बती बौद्ध धर्म में भी एक महासिद्ध के रूप में सम्मानित किया गया।
  • गोरखनाथ, जो 10वीं सदी के एक महान गुरु थे, मत्स्येंद्रनाथ के शिष्य थे।
  • गोरखनाथ ने नाथ पंथ को और अधिक विकसित किया और इसे भारत के विभिन्न हिस्सों में लोकप्रिय बनाया। गोरखनाथ को हठयोग का संस्थापक भी माना जाता है।

उत्तर प्रदेश Switch to English

अनंत नगर आवास योजना

चर्चा में क्यों?

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने लखनऊ विकास प्राधिकरण की अनंत नगर आवासीय योजना का शुभारंभ किया। 

मुख्य बिंदु

  • योजना के बारे में:
    • इस योजना की लागत 6500 करोड़ रुपए है जो कि 785 एकड़ में प्रस्तावित है।

    • इसके तहत डेढ़ लाख लोगों को आवासीय सुविधा मिलेगी।
    • 60 प्लॉट्स पर 10 हज़ार फ्लैट्स का निर्माण किया जाएगा।
    • EWS (आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग) और LIG (निम्न आय वर्ग) श्रेणी के 5 हज़ार भवनों में 25 हज़ार से अधिक लोगों के लिये आवास का प्रावधान किया गया है।
    • प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत 3 हज़ार आवासों का निर्माण भी यहाँ किया जाएगा।
    • इसके अलावा 102 एकड़ के क्षेत्रफल में एजुकेशन सिटी विकसित की जाएगी।

प्रधानमंत्री आवास योजना- शहरी (PMAY-U): 

  • लॉन्च: 
    • 25 जून, 2015 को प्रधानमंत्री आवास योजना शहरी (PMAY-U) का शुभारंभ किया गया जिसका मुख्य उद्देश्य शहरी क्षेत्रों के लोगों को वर्ष 2022 तक आवास उपलब्ध कराना है। 
  • कार्यान्वयन: 
    • आवास और शहरी मामलों का मंत्रालय। 
  • विशेषताएँ: 
    • यह शहरी गरीबों (झुग्गीवासी सहित) के बीच शहरी आवास की कमी को संबोधित करते हुए पात्र शहरी गरीबों के लिये पक्के घर सुनिश्चित करता है। 
    • PMAY(U) के अंतर्गत सभी घरों में शौचालय, पानी की आपूर्ति, बिजली और रसोईघर जैसी बुनियादी सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं। 
    • यह योजना महिला सदस्य के नाम पर या संयुक्त नाम से घरों का स्वामित्व प्रदान कर महिला सशक्तीकरण को बढ़ावा देती है। 
    • विकलांग व्यक्तियों, वरिष्ठ नागरिकों, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक, एकल महिलाओं, ट्रांसजेंडर और समाज के कमज़ोर वर्गों को इसमें प्राथमिकता दी जाती है। 


उत्तर प्रदेश Switch to English

उत्तर प्रदेश में बाल मृत्यु दर

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी वार्षिक स्वास्थ्य रिपोर्ट (2024-25) के अनुसार, विगत वर्षों में सुधार के बावजूद, उत्तर प्रदेश भारत में सबसे अधिक बाल मृत्यु दर वाले राज्यों में शामिल है। 

मुख्य बिंदु

  • बाल मृत्यु दर के बारे में:
    • रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में प्रत्येक 1,000 बच्चों में से 43 बच्चे अपने पाँचवें जन्मदिन से पहले मर जाते हैं। 
    • वर्तमान शिशु मृत्यु दर (IMR) 1,000 जीवित जन्मों पर 38 है, जबकि नवजात मृत्यु दर (NMR) 28 है।
    • यूनिसेफ इंडिया रिपोर्ट 2020 के अनुसार लगभग 46% मातृ मृत्यु और 40% नवजात मृत्यु प्रसव के दौरान या जन्म के बाद पहले 24 घंटों के भीतर हो जाती हैं।
    • नवजात शिशुओं की मृत्यु के प्रमुख कारणों में समय से पहले जन्म (35%), नवजात संक्रमण (33%), जन्म के समय श्वासावरोध (20%) और जन्मजात विकृतियाँ (9%) शामिल हैं।
    • हालाँकि, वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर में सबसे अधिक गिरावट देखी गई।
    • उत्तर प्रदेश ने अपने विज़न 2030 योजना के तहत वर्ष 2020 तक अपनी मातृ मृत्यु दर (MMR) को 140 प्रति लाख जीवित जन्म तक कम करने का लक्ष्य रखा था। 
    • हालांकि, नवंबर 2022 में भारत के रजिस्ट्रार जनरल द्वारा प्रकाशित नमूना पंजीकरण प्रणाली (SRS) रिपोर्ट 2018-20 से पता चला है कि MMR 167 प्रति लाख जीवित जन्म था, जो राष्ट्रीय औसत 97 प्रति लाख जीवित जन्म से अधिक है।
    • भारत का नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (CAG) रिपोर्ट में कहा गया है कि NFHS 4 (2015-16) से NFHS 5 (2019-21) तक संस्थागत प्रसव, नवजात मृत्यु दर, शिशु मृत्यु दर और 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर जैसे संकेतकों में सुधार हुआ है।
  • बाल मृत्यु दर के कारण:
    • सेप्टीसीमिया (Sepsis) यह एक गंभीर रक्त संक्रमण है, जो सेप्सिस नामक जानलेवा स्थिति और अंग क्षति का कारण बन सकता है।
    • राज्य में घर पर प्रसव की दर अधिक है, जो एक बड़ा खतरा है। घर पर प्रसव में प्रशिक्षित दाइयों की कमी, स्वच्छता की कमी, और चिकित्सा पेशेवरों की अनुपस्थिति संक्रमण के जोखिम को बढ़ाती है। 
    •  उत्तर प्रदेश में दूरदराज और कम सेवा वाले क्षेत्रों में स्वास्थ्य देखभाल की कमी है। स्वास्थ्य सेवा का अभाव, जैसे प्रसवपूर्व और प्रसवोत्तर देखभाल का अभाव, शिशु मृत्यु दर को बढ़ाता है।
    • सरकार ने कई योजनाएँ शुरू की हैं, जैसे जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम (JSSK) और घर-आधारित नवजात शिशु देखभाल (HBNC), लेकिन इन योजनाओं का लाभ सभी परिवारों तक समान रूप से नहीं पहुँच पा रहा है। इसके कारण, विशेषकर दूरदराज के क्षेत्रों में शिशुओं की मृत्यु दर अधिक है।
    • कुपोषण और जलवायु परिवर्तन के कारण बच्चों के स्वास्थ्य पर असर पड़ता है। जिससे शिशु मृत्यु दर में वृद्धि होती है। 
    • बहुत से परिवारों में प्रसव के दौरान संक्रमण और शिशु देखभाल के बारे में जागरूकता की कमी है। 


उत्तराखंड Switch to English

इक्विन इन्फ्लूएंजा

चर्चा में क्यों?

रुद्रप्रयाग के दो गाँवों में घोड़ों और खच्चरों में इक्विन इन्फ्लूएंजा का पता चलने के बाद, उत्तराखंड सरकार ने चार धाम यात्रा से पहले इसके प्रसार को रोकने के लिये कदम उठाने शुरू कर दिये हैं।

मुख्य बिंदु

  • इक्विन इन्फ्लूएंजा: जिसे आमतौर पर "हॉर्स फ्लू" के नाम से जाना जाता है, घोड़ों को प्रभावित करने वाली एक तेज़ी से फैलने वाली श्वसन संबंधी बीमारी है।
    • यह रोग मुख्यतः इन्फ्लूएंजा ए वायरस के दो उपप्रकारों H3N8 और H7N7 के कारण होता है।
      • यह वायरस संक्रमित पशुओं या दूषित वातावरण के सीधे संपर्क से तेज़ी से फैलता है।
    • यद्यपि इक्विन इन्फ्लूएंजा कभी- कभी ही घातक होता है, फिर भी यह गंभीर जटिलताओं को जन्म दे सकता है, विशेष रूप से युवा घोड़ों में, जिसमें द्वितीयक जीवाणु संक्रमण और दीर्घकालिक श्वसन संबंधी समस्याएं शामिल हैं।
  • सरकारी प्रतिक्रिया और कार्य योजना:
    • उत्तराखंड सरकार ने तीर्थयात्रा सीजन के दौरान बीमारी को फैलने से रोकने के लिये रोकथाम के उपाय शुरू किये हैं।
    • राज्य के पशुपालन मंत्री ने स्थिति का आकलन करने और प्रतिक्रिया हेतु मार्गदर्शन हेतु एक समीक्षा बैठक की अध्यक्षता की।
      • मंत्री ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि यात्रा में भाग लेने की अनुमति देने से पहले सभी घोड़ों और खच्चरों की जाँच को प्राथमिकता दी जाए।
    • अन्य राज्यों से उत्तराखंड में प्रवेश करने वाले घोड़ों और खच्चरों को वैध स्वास्थ्य प्रमाण-पत्र और नकारात्मक इक्विन इन्फ्लूएंजा परीक्षण रिपोर्ट साथ लानी होगी।
  • चार धाम यात्रा कार्यक्रम 2025:

चार धाम यात्रा

  • यमुनोत्री धाम:
    • स्थान: उत्तरकाशी जिला।
    • समर्पित: देवी यमुना को।
    • यमुना नदी भारत में गंगा नदी के बाद दूसरी सबसे पवित्र नदी मानी जाती है।
  • गंगोत्री धाम:
    • स्थान: उत्तरकाशी जिला।
    • समर्पित: देवी गंगा को।
    • सभी भारतीय नदियों में सबसे पवित्र मानी जाती है।
  • केदारनाथ धाम:
    • स्थान: रुद्रप्रयाग जिला।
    • समर्पित: भगवान शिव को।
    • मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित है।
    • भारत में स्थित 12 ज्योतिर्लिंगों (भगवान शिव के दिव्य स्वरूप) में से एक।
  • बद्रीनाथ धाम:
    • स्थान: चमोली जिला।
    • पवित्र बद्रीनारायण मंदिर का घर।
    • समर्पित: भगवान विष्णु को।
    • वैष्णवों के लिये पवित्र तीर्थस्थलों में से एक।


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