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इतिहास प्रैक्टिस प्रश्न

  • “गुप्तकालीन सिक्का शास्त्रीय कला की उत्कृष्टता का स्तर बाद के समय में नितांत दर्शनीय नहीं है” इस कथन को आप किस प्रकार सही सिद्ध करेंगे?

    11 Jun, 2020

    उत्तर :

    अधिक मात्रा में सोने के सिक्के जारी करने के साथ-साथ गुप्तकालीन सिक्कों पर विविध प्रकार के रूपांकनों और अभिलेखों के उत्कीर्णन के कारण गुप्तकाल में सिक्का शास्त्रीय कला का उत्कृष्ट स्तर दिखाई देता है।

    गुप्तकालीन सिक्कों पर कलात्मक उत्कृष्टता के उदाहरण:

    • कुषाणकाल के पश्चात् सर्वाधिक मात्रा में सोने के सिक्के इसी समय देखने को मिलते हैं।
    • इन सिक्कों पर विभिन्न आकृतियों का उत्कीर्णन सिक्का शास्त्रीय कला की श्रेष्ठता का महत्त्वपूर्ण उदाहरण है।
    • सिक्कों पर एक तरफ शासक और दूसरी ओर देवी की प्रतिमा का उत्कीर्णन इनकी प्रमुख विशेषता है।
    • सिक्कों पर राजाओं की आकृतियों को विभिन्न मुद्राओं में अंकित किया गया है, जैसे- समुद्रगुप्त को वीणा बजाते हुए और कुमारगुप्त को हाथी की सवारी करते हुए दिखाना।
    • सिक्कों को राजा और रानी द्वारा संयुक्त रूप से जारी करना भी इनकी प्रमुख विलक्षणता है, चंद्रगुप्त प्रथम, कुमारगुप्त प्रथम और स्कंदगुप्त द्वारा ‘राजा-रानी प्रकार’ के सिक्के जारी किये गए, जिसमें राजा और रानी को खड़ी मुद्रा में उत्कीर्णित किया गया है। चंद्रगुप्त के सिक्कों से उनकी रानी कुमारदेवी के नाम का भी पता चलता है।
    • लक्ष्मी, गंगा और दुर्गा आदि विभिन्न देवियों की आकृतियों के उत्कीर्णन द्वारा सिक्कों पर विविधता लाई गई है।
    • पश्चिमी भारत में मिले गुप्तकालीन सिक्कों पर हिंदू पौराणिक पक्षी गरुड़ का चित्रण है, ये सिक्के अधिकतर चाँदी के हैं।
    • समुद्रगुप्त और कुमारगुप्त प्रथम के ‘अश्वमेघ’ या ‘घोड़ों के बलिदान’ वाले सिक्के भी गुप्तकालीन विशिष्टता के उदाहरण हैं। 

    इस प्रकार गुप्तकालीन सिक्के अपनी कलात्मक उत्कृष्टता के कारण महत्त्वपूर्ण है। उत्कृष्टता का यह स्तर बाद के समय में लगातार दिखाई नहीं देता, जैसे-

    • गुप्तकाल के पश्चात् आर्थिक उननति का इस प्रकार का उच्च स्तर नहीं मिलता, जिसके कारण परवर्ती कालों में चाँदी, ताँबे जैसी अन्य धातुओं के सिक्के ही अधिक मिलते हैं।
    • गुप्तोत्तर काल के विभिन्न राजाओं के कम शासन अवधि व तख्तापलट के कारण सिक्कों पर आकृतियों के उत्कीर्णन में कल्पनाओं का इस प्रकार का स्तर नहीं दिखाई देता।
    • दक्षिण भारत के राजाओं ने अपने सिक्कों में केवल अपने शासकीय चिह्नों को ही स्थान दिया, जैसे- चोल राजाओं द्वारा बाघ एवं चालुक्यों द्वारा जंगली सुअर आदि।
    • मुस्लिम धर्म में मानवीय प्रतिरूपों के चित्रण की मनाही के कारण मुगल शासकों द्वारा अपने सिक्कों पर मानवीय प्रतिमाओं के उत्कीर्णन से बचा गया। इसके कारण सिक्कों पर रूपांकन में विविधता नहीं आ सकी।
    • ब्रिटिश भारत के सिक्के नीरस प्रकृति के थे, जिन पर एक तरफ ब्रिटिश महारानी एवं दूसरी ओर सिक्का जारी करने का वर्ष अंकित रहता था।
    • स्वतंत्रता के पश्चात् ब्रिटिश महारानी की प्रतिमा को अशोक स्तंभ और अन्य स्वदेशी चिह्नों से प्रतिस्थापित किया गया, जिससे इनमें गुप्तकालीन सिक्कों जैसी विविधता नहीं आ पाई, जहाँ विभिन्न मुद्राओं में विभिन्न आकृतियों का अंकन किया जाता था।

    अंत में, गुप्तकालीन सिक्का शास्त्रीय कला अपनी उत्कृष्टता के उच्च स्तर के कारण भारतीय सिक्का शास्त्र के इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। इस प्रकार की कलात्मक उत्कृष्टता का स्तर आज के समय में भी बहुत कम दिखाई देता है।

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