नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 16 जनवरी से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

स्टेट पी.सी.एस.

  • 08 Jan 2025
  • 0 min read
  • Switch Date:  
हरियाणा Switch to English

मुख्य सचिव का राखीगढ़ी दौरा

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, हरियाणा के मुख्य सचिव ने प्रतिष्ठित हड़प्पा स्थल राखीगढ़ी का दौरा किया और ज़िले में चल रही खुदाई में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI) का अवलोकन किया।

प्रमुख बिंदु

  • राखीगढ़ी पर निर्देश और टिप्पणियां:
    • परिवारों का स्थानांतरण:
      • मुख्य सचिव ने ज़िला अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे संरक्षित क्षेत्रों में रहने वाले परिवारों को पुनर्वास के लिये सरकारी निर्मित आवासों में सुचारू रूप से स्थानांतरित करना सुनिश्चित करें।
      • अधिकारियों को इसकी अखंडता बनाए रखने के लिये स्थल पर से सभी अतिक्रमण हटाने का भी निर्देश दिया गया।
    • स्थल का अन्वेषण और निरीक्षण:
      • उन्होंने उत्खनन स्थलों का अन्वेषण किया, जिनमें माउंट संख्या एक, तीन और चार शामिल हैं, जिन्हें ASI ने सात खंडों में विभाजित किया है।
      • निर्माणाधीन संग्रहालय का निरीक्षण किया तथा हाल के वर्षों में उत्खनित प्राचीन कलाकृतियों एवं संरचनाओं की समीक्षा की।
    • विरासत का संवर्द्धन:
      • इस स्थल को संरक्षित रखने तथा राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसे बढ़ावा देने के महत्त्व पर बल दिया गया।
      • इस बात पर प्रकाश डाला गया कि यह स्थल भारत की समृद्ध विरासत को दर्शाता है, जिसमें संग्रहालय की कलाकृतियाँ प्राचीन भारत की संस्कृति, परंपराओं और जीवन शैली को प्रदर्शित करती हैं।
      • संग्रहालय में खुदाई के दौरान प्राप्त मिट्टी के बर्तन, टेराकोटा वस्तुएँ, औजार और मानव कंकाल जैसी कलाकृतियाँ प्रदर्शित की जाएँगी।
    • निष्कर्षों से अंतर्दृष्टि:
      • हड़प्पा सभ्यता की उन्नत वास्तुकला और शहरी नियोजन पर प्रकाश डाला गया, जिसमें राखीगढ़ी चंडीगढ़ जैसे आधुनिक शहरों से मिलती जुलती है।
    • प्रमुख वास्तुशिल्पीय विशेषताएँ:
      • इस स्थल में एक सुनियोजित जल निकासी प्रणाली, अपशिष्ट निपटान के लिये बड़े भंडारण पात्र, तथा वेंटिलेशन प्रणाली वाले दो मंजिला मकान हैं।
      • टीला संख्या तीन पर एक स्टेडियम जैसी आकृति मिली है, जो हड़प्पा लोगों की स्थापत्य कला की कुशलता को प्रदर्शित करती है।
    • जल स्रोत साक्ष्य:
      • स्थल के निकट नदी के अवशेष इस बात का संकेत देते हैं कि इस बस्ती के लिये एक प्राचीन जल स्रोत आवश्यक था।

राखीगढ़ी

  • राखीगढ़ी भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा हड़प्पा स्थल है। यह स्थल घग्गर नदी से लगभग 27 किमी दूर सरस्वती नदी के मैदान में स्थित है।
    • भारतीय उपमहाद्वीप में सिंधु घाटी सभ्यता (हड़प्पा सभ्यता) के अन्य बड़े स्थल पाकिस्तान में हड़प्पा, मोहनजोदड़ो और गनवेरीवाला तथा भारत में धोलावीरा (गुजरात) हैं।
  • राखीगढ़ी में इसकी शुरुआत का पता लगाने और 6000 ईसा पूर्व (पूर्व-हड़प्पा चरण) से 2500 ईसा पूर्व तक इसके क्रमिक विकास का अध्ययन करने के लिये खुदाई की जा रही है। 
  • इस स्थल की खुदाई ASI के अमरेंद्र नाथ द्वारा की गई थी। 

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI)

  • संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत ASI, राष्ट्र की सांस्कृतिक विरासत के पुरातात्त्विक अनुसंधान और संरक्षण के लिये प्रमुख संगठन है।
  • यह राष्ट्रीय महत्त्व के 3650 से अधिक प्राचीन स्मारकों, पुरातात्त्विक स्थलों और अवशेषों का प्रबंधन करता है।
  • इसकी गतिविधियों में पुरातात्त्विक अवशेषों का सर्वेक्षण, पुरातात्त्विक स्थलों की खोज और उत्खनन, संरक्षित स्मारकों का संरक्षण और रखरखाव आदि शामिल हैं।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1861 में ASI के पहले महानिदेशक अलेक्जेंडर कनिंघम ने की थी। अलेक्जेंडर कनिंघम को "भारतीय पुरातत्व के जनक" के रूप में भी जाना जाता है।


राजस्थान Switch to English

भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड द्वारा जल भंडारण के प्रति सावधानी

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (BBMB) ने अपने सदस्य राज्यों को कम जल भंडारण स्तर और सामान्य से कम वर्षा के पूर्वानुमान का हवाला देते हुए अपनी जल मांग का सावधानीपूर्वक अनुमान लगाने की सलाह दी। 

प्रमुख बिंदु

  • भाखड़ा और पोंग बाँध का स्तर:
  • सतलुज नदी पर बना भाखड़ा बाँध अपनी कुल क्षमता का 43% भर चुका है।
  • ब्यास नदी पर स्थित पोंग बाँध अपनी कुल क्षमता के 30% पर है।
  • केंद्रीय जल आयोग (CWC) के अनुसार, दोनों स्तर 10 वर्ष के औसत से नीचे हैं।
  • सदस्य राज्यों के लिये सलाह:
  • भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (BBMB) ने हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान को कम जल उपलब्धता के बारे में सूचित किया।
  • BBMB ने इन राज्यों को स्थिति से निपटने के लिये अपनी जल मांग को तदनुसार समायोजित करने की सलाह दी।

भाखड़ा नांगल बाँध

  • भाखड़ा बांँध सतलुज नदी पर निर्मित एक ठोस गुरुत्वाकर्षण बांँध है और उत्तरी भारत में पंजाब एवं हिमाचल प्रदेश राज्यों की सीमा पर निर्मित है।
  • यह टिहरी बांँध (261 मीटर) के पास 225.55 मीटर ऊंँचा भारत का दूसरा सबसे ऊंँचा बाँध है।
  • इसका जलाशय, जिसे “गोबिंद सागर” के नाम से जाना जाता है, में 9.34 बिलियन क्यूबिक मीटर जल संग्रहित है।
  • नांगल बांँध भाखड़ा बांँध के नीचे निर्मित एक और बांँध है। कभी-कभी दोनों बांँधों को एक साथ भाखड़ा-नांगल बांँध कहा जाता है, हालांँकि ये दो अलग-अलग बांँध हैं।

पोंग बाँध

  • वर्ष 1975 में ब्यास नदी पर पोंग बाँध बनाया गया था। इसे पोंग जलाशय या महाराणा प्रताप सागर भी कहा जाता है। 
  • वर्ष 1983 में हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा पूरे जलाशय को वन्यजीव अभयारण्य घोषित कर दिया गया।
  • वर्ष 1994 में भारत सरकार ने इसे “राष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्रभूमि” घोषित किया। नवंबर 2002 में पोंग डैम झील को रामसर साइट घोषित किया गया।



मध्य प्रदेश Switch to English

मध्य प्रदेश में वन अधिकार अधिनियम का उल्लंघन

चर्चा में क्यों?

जनजातीय कार्य मंत्रालय (MoTA) ने मध्य प्रदेश में रानी दुर्गावती टाइगर रिज़र्व के आसपास वन अधिकारों की गैर-मान्यता और बलपूर्वक स्थानांतरण के प्रयासों के संबंध में 52 गाँवों की याचिकाओं और शिकायतों का संज्ञान लिया।

प्रमुख बिंदु

  • प्रतिबंध और MoTA के निर्देश:
  • ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि सितंबर 2023 में वीरांगना दुर्गावती टाइगर रिज़र्व की अधिसूचना के बाद वन अधिकार दावों को अस्वीकार कर दिया गया और जबरन स्थानांतरण किया गया, जो वन अधिकार अधिनियम (FRA) 2006 और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (WLPA) 1972 का उल्लंघन है।
  • ग्रामीणों ने वन संसाधनों, उपज और खेतों तक पहुँच पर प्रतिबंध लगाने का आरोप लगाया।
  • जनजातीय कार्य मंत्रालय के पत्र में इस बात पर ज़ोर दिया गया कि समुदायों को उनके अधिकारों से वंचित करना उल्लंघन है तथा सलाह दी गई कि राज्य वन विभागों और ज़िला कलेक्टरों के परामर्श से मुद्दों का समाधान किया जाना चाहिये।
  • पत्र में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग, ज़िला कलेक्टरों और राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण को भी उचित कार्यवाही और सामुदायिक हितों की सुरक्षा के लिये निर्देशित किया गया।
  • स्थानांतरण के लिये कानूनी ढाँचा:
  • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम बाघ संरक्षण के लिये 'अछूते' क्षेत्रों के निर्माण की अनुमति देता है, लेकिन ऐसा केवल जनजातीय और वन-निवास समुदायों के अधिकारों को मान्यता देने और उनका समाधान करने के बाद ही किया जा सकता है।
  • ग्रामीणों का पुनर्वास स्वैच्छिक रूप से तभी हो सकता है जब FRA और WLPA दोनों के अनुसार उनके अधिकारों को मान्यता दे दी जाए।
  • जनजातीय कार्य मंत्रालय ने महत्त्वपूर्ण वन्यजीव आवासों के स्थानांतरण संबंधी निर्णयों में ग्राम सभा की सहमति और सामुदायिक भागीदारी के महत्त्व पर बल दिया।

वन अधिकार अधिनियम, 2006

  • इसे वनों में रहने वाले अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक जनजातियों को वन भूमि पर औपचारिक रूप से वन अधिकारों और कब्जे को मान्यता देने और प्रदान करने के लिये पेश किया गया था, जो पीढ़ियों से इन वनों में रह रहे हैं, भले ही उनके अधिकारों को आधिकारिक तौर पर अभिलिखित नहीं किया गया हो।
  • इसका उद्देश्य औपनिवेशिक और उत्तर-औपनिवेशिक भारत की वन प्रबंधन नीतियों के कारण वन-निवासी समुदायों द्वारा सामना किये गए ऐतिहासिक अन्याय को संबोधित करना था, जो वनों के साथ उनके दीर्घकालिक सहजीवी संबंधों को स्वीकार करने में विफल रहे।
  • इसके अतिरिक्त, अधिनियम का उद्देश्य जनजातिययों को वन संसाधनों तक पहुँच और उनका स्थायी उपयोग करने, जैवविविधता और पारिस्थितिकी संतुलन को बढ़ावा देने तथा उन्हें गैरकानूनी स्थानांतरण और विस्थापन से बचाने के लिये उन्हें सशक्त बनाना था।

वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972

  • यह वन्यजीवों और पादपों की विभिन्न प्रजातियों के संरक्षण, उनके आवासों के प्रबंधन, वन्यजीवों, पादपों और उनसे बने उत्पादों के व्यापार के विनियमन और नियंत्रण के लिये एक कानूनी ढाँचा प्रदान करता है।
  • अधिनियम में उन पादपों और वन्यजीवों की अनुसूचियाँ भी सूचीबद्ध की गई हैं जिन्हें सरकार द्वारा अलग-अलग स्तर पर संरक्षण और निगरानी प्रदान की जाती है।
  • वन्यजीव अधिनियम द्वारा CITES (वन्य जीव और वनस्पति की लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय) में भारत का प्रवेश आसान बना दिया गया।


उत्तराखंड Switch to English

उत्तराखंड में लैंडस्लाइड डैम

चर्चा में क्यों?

IIT रुड़की द्वारा हाल ही में किये गए एक अध्ययन में गढ़वाल क्षेत्र से होकर बहने वाली अलकनंदा नदी को भूस्खलन से प्रेरित प्राकृतिक बाँधों के लिये सबसे अधिक संवेदनशील बताया गया है। इस अध्ययन का शीर्षक है ‘भारत के उत्तराखंड में भूस्खलन बांध अध्ययन: अतीत, वर्तमान और भविष्य’ और इसे स्प्रिंगर द्वारा प्रकाशित किया गया है।

  • इसमें रेखांकित किया गया है कि इस तरह के बाँधों के प्रति संवेदनशीलता के मामले में अलकनंदा के बाद मंदाकिनी, धौलीगंगा और भागीरथी नदियाँ हैं।

प्रमुख बिंदु

  • अध्ययन के निष्कर्ष:
    • उत्तराखंड का भूभाग:
      • उत्तराखंड की संकरी घाटियाँ इसे भूस्खलन-प्रेरित प्राकृतिक बाँधों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील बनाती हैं, जो नदियों को अवरुद्ध करते हैं और ऊपरी भाग झीलें बनाते हैं।
      • इन अवरोधों के कारण भूस्खलन झील के फटने से बाढ़ (LLOF) का बड़ा खतरा उत्पन्न हो सकता है, जिसके परिणाम भयावह हो सकते हैं।
    • सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्र:
      • भूस्खलन से सबसे अधिक प्रभावित बाँधों में चमोली, रुद्रप्रयाग और उत्तरकाशी शामिल हैं।
      • चमोली में गोहना ताल का टूटना क्षेत्र की सबसे गंभीर लैंडस्लाइड डैम की घटना है, जिसका असर हरिद्वार तक के निचले इलाकों पर पड़ा था।
    • लैंडस्लाइड डैम का ऐतिहासिक संदर्भ:
      • उत्तराखंड में लैंडस्लाइड डैम का इतिहास 29,000 से 19,000 वर्ष पूर्व के लास्ट ग्लेशियल मैक्सिमम (LGM) काल से जुड़ा है।
      • 19वीं शताब्दी में लैंडस्लाइड डैम महत्त्वपूर्ण घटनाएँ दर्ज की गई हैं, जिनमें सबसे उल्लेखनीय 1970 में गोहना झील का टूटना है, जिसके दीर्घकालिक प्रभाव हुए।
    • वर्तमान प्रवृत्ति और चिंताएँ:
    • जोखिम न्यूनीकरण और तैयारी:
      • यद्यपि वर्ष 2018 के बाद से बड़ी घटनाएँ कम हुई हैं, फिर भी अध्ययन में भविष्य के जोखिमों को कम करने के लिये तैयारी की आवश्यकता पर बल दिया गया है।
      • भूस्खलन बाँधों की अस्थिरता, विशेषकर संकीर्ण घाटियों में, आपदा प्रबंधन के लिये महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ उत्पन्न करती है।
    • भूस्खलन के प्रमुख कारण:
      • अत्यधिक वर्षा और बादल फटने को भूस्खलन के प्रमुख कारणों के रूप में पहचाना गया है।
      • मलबे का प्रवाह भूस्खलन का सबसे आम प्रकार है, जो उत्तराखंड की पहाड़ियों में नदियों के प्रवाह को अवरुद्ध करने के लिये ज़िम्मेदार है।

अलकनंदा नदी

  • यह गंगा की मुख्य धाराओं में से एक है।
  • यह उत्तराखंड में सतोपंथ और भागीरथ ग्लेशियरों के संगम और तलहटी से निकलती है।
  • यह देवप्रयाग में भागीरथी नदी से मिलती है जिसके बाद इसे गंगा कहा जाता है।
  • इसकी मुख्य सहायक नदियाँ मंदाकिनी, नंदाकिनी और पिंडर हैं।
  • अलकनंदा प्रणाली चमोली, टिहरी और पौड़ी ज़िलों के कुछ हिस्सों को जल प्रदान करती है।
  • हिन्दू तीर्थस्थल बद्रीनाथ और प्राकृतिक झरना तप्त कुंड अलकनंदा नदी के तट पर स्थित हैं।

भागीरथी नदी

  • यह उत्तराखंड की एक अशांत हिमालयी नदी है, और गंगा की दो मुख्य धाराओं में से एक है।
  • भागीरथी नदी 3892 मीटर की ऊँचाई पर, गौमुख में गंगोत्री ग्लेशियर के तल से निकलती है और 350 किलोमीटर चौड़े गंगा डेल्टा में विस्तृत होके अंततः बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
  • भागीरथी और अलकनंदा गढ़वाल में देवप्रयाग में मिलती हैं और उसके बाद गंगा के नाम से जानी जाती हैं।

धौलीगंगा

  • इसका उद्गम वसुधारा ताल से होता है, जो संभवतः उत्तराखंड की सबसे बड़ी हिमनद झील है।
  • धौलीगंगा अलकनंदा की महत्त्वपूर्ण सहायक नदियों में से एक है, दूसरी नंदाकिनी, पिंडर, मंदाकिनी और भागीरथी हैं।
  • धौलीगंगा रैणी में ऋषिगंगा नदी से मिलती है।


 Switch to English
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2