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केंद्रीय बजट 2025: बिहार के लिये प्रमुख आवंटन
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय वित्त मंत्री ने बजट भाषण 2025 में बिहार के लिये कई परियोजनाओं की घोषणा की।
मुख्य बिंदु
- मखाने की खेती करने वाले किसानों को बढ़ावा:
- नव घोषित मखाना बोर्ड मखाना के उत्पादन, प्रसंस्करण, मूल्य संवर्धन और विपणन को बढ़ाएगा।
- मिथिला मखाना को 2022 में भौगोलिक संकेत (GI) टैग प्राप्त हुआ, जिसमें बिहार भारत के कुल उत्पादन में 80% का योगदान देता है।
- इस पहल से पाँच लाख से अधिक किसानों को लाभ होने की उम्मीद है, खासकर दरभंगा, मधुबनी, सीतामढी, सहरसा, कटिहार, पूर्णिया, किशनगंज, अररिया, सुपौल और मधेपुरा में।
- विमानन अवसंरचना का विस्तार:
- बिहार में नए ग्रीनफील्ड हवाई अड्डे भविष्य की मांगों को पूरा करेंगे।
- पटना हवाई अड्डे की क्षमता विस्तार और बिहटा में ब्राउनफील्ड हवाई अड्डे के विकास की भी योजना बनाई गई है।
- शिक्षा और बुनियादी ढाँचे में निवेश:
- पूंजी निवेश के लिये अतिरिक्त धनराशि आवंटित की जाएगी तथा बहुपक्षीय विकास बैंकों से बाह्य सहायता के लिये बिहार के अनुरोध पर तेज़ी से कार्रवाई की जाएगी।
- पूर्वी भारत के विकास के लिये पूर्वोदय पहल के अंतर्गत राष्ट्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी, उद्यमिता एवं प्रबंधन संस्थान की स्थापना की जाएगी।
- भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) पटना के लिये छात्रावास सहित बुनियादी ढाँचे के विस्तार की योजना बनाई गई है।
- मंदिर एवं पर्यटन विकास:
- बजट में विष्णुपद और महाबोधि मंदिर कॉरिडोर के समग्र विकास के लिये काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर के समान समर्थन प्रदान करने का आश्वासन दिया गया है।
- नालंदा को एक प्रमुख पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित किया जाएगा तथा नालंदा विश्वविद्यालय को उसके ऐतिहासिक महत्त्व को पुनः स्थापित करने का प्रयास किया जाएगा।
विष्णुपद मंदिर और महाबोधि मंदिर
- गया स्थित विष्णुपद मंदिर:
- यह मंदिर बिहार के गया ज़िले में फल्गु नदी के तट पर स्थित है। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है।
- पौराणिक मान्यता:
- स्थानीय पौराणिक कथाओं के अनुसार, गयासुर नामक एक राक्षस ने देवताओं से प्रार्थना की थी कि वे उसे दूसरों को मोक्ष (पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति) प्राप्त करने में सहायता करने की शक्ति प्रदान करें।
- हालाँकि, इस शक्ति का दुरुपयोग करने पर भगवान विष्णु ने उसे वश में कर लिया और मंदिर में एक पदचिह्न छोड़ दिया, जिसे उस घटना का निशान माना जाता है।
- वास्तुकला विशेषताएँ:
- यह मंदिर लगभग 100 फीट ऊँचा है और इसमें 44 स्तंभ हैं जो बड़े ग्रे ग्रेनाइट ब्लॉकों (मुंगेर काले पत्थर) से बने हैं और लोहे की पट्टियों से जोड़े गए हैं।
- अष्टकोणीय मंदिर पूर्व दिशा की ओर उन्मुख है।
- निर्माण:
- इसका निर्माण 1787 में महारानी अहिल्याबाई होल्कर के आदेश पर किया गया था।
- सांस्कृतिक प्रथाएँ:
- यह मंदिर पितृ पक्ष के दौरान विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण होता है, जो पूर्वजों के सम्मान के लिये समर्पित अवधि है तथा बड़ी संख्या में भक्तों को आकर्षित करता है।
- ब्रह्म कल्पित ब्राह्मण, जिन्हें गयावाल ब्राह्मण भी कहा जाता है, प्राचीन काल से ही मंदिर के पारंपरिक पुजारी रहे हैं।
- बोधगया में महाबोधि मंदिर:
- ऐसा माना जाता है कि यह वह स्थान है जहाँ गौतम बुद्ध को महाबोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
- मंदिर का निर्माण:
- मूल मंदिर का निर्माण सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में करवाया था, जबकि वर्तमान संरचना 5वीं-6वीं शताब्दी की है।
- वास्तुकला विशेषताएँ:
- इसमें 50 मीटर ऊँचा भव्य मंदिर (वज्रासन), पवित्र बोधि वृक्ष और बुद्ध के ज्ञान प्राप्ति के अन्य 6 पवित्र स्थल शामिल हैं।
- यह कई प्राचीन स्तूपों से घिरा हुआ है, जो अच्छी तरह से अनुरक्षित हैं तथा आंतरिक, मध्य और बाहरी गोलाकार सीमाओं द्वारा संरक्षित हैं।
- यह गुप्त काल के सबसे प्रारंभिक ईंट मंदिरों में से एक है, जिसने बाद की ईंट वास्तुकला को प्रभावित किया है।
- वज्रासन (हीरा सिंहासन) मूलतः सम्राट अशोक द्वारा उस स्थान को चिह्नित करने के लिये स्थापित किया गया था जहाँ बुद्ध बैठते थे और ध्यान करते थे।
उत्तर प्रदेश Switch to English
सूरजपुर आर्द्रभूमि
चर्चा में क्यों?
ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण ने सूरजपुर आर्द्रभूमि की सुरक्षा एवं संरक्षण के लिये एक परियोजना विकसित की है।
मुख्य बिंदु
- प्रदूषित अपशिष्ट जल से खतरा:
- इस आर्द्रभूमि को अत्यधिक प्रदूषित अपशिष्ट जल के अंधाधुंध तरीके से इसके नालों में छोड़े जाने के कारण गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है, जिससे इसका पारिस्थितिकी तंत्र खतरे में पड़ गया है।
- तकनीकी सहायता की आवश्यकता:
- प्राधिकरण के अनुसार, अनुसंधान संस्थान, गैर-सरकारी संगठन (NGO) और पर्यावरण विशेषज्ञ आर्द्रभूमि की सुरक्षा और पुनर्स्थापना के लिये तकनीकी सहायता प्रदान कर सकते हैं।
- पारिस्थितिक महत्त्व:
- औद्योगिक शहर ग्रेटर नोएडा के हृदय में स्थित सूरजपुर आर्द्रभूमि एक महत्त्वपूर्ण वन्यजीव आवास के रूप में कार्य करती है, जिससे इसका संरक्षण अत्यंत आवश्यक हो जाता है।
- भौगोलिक विस्तार और विशेषताएँ:
- यह अभयारण्य 325 हेक्टेयर में फैला हुआ है, जिसमें 60 हेक्टेयर की प्राकृतिक झील भी शामिल है, जो नोएडा से लगभग 20 किमी. दूर दादरी-सूरजपुर-छलेरा (DSC) सड़क पर स्थित है।
- प्रवासी पक्षियों के लिये स्वर्ग:
- सर्दियों के मौसम में, यह आर्द्रभूमि विभिन्न प्रकार के प्रवासी पक्षियों को आकर्षित करती है, जिससे इसका पारिस्थितिकी और पर्यावरणीय मूल्य बढ़ जाता है।
सूरजपुर आर्द्रभूमि
- स्थान और प्रशासनिक क्षेत्राधिकार:
- यह आर्द्रभूमि गौतमबुद्ध नगर ज़िले की दादरी तहसील के सूरजपुर गाँव के पास स्थित है।
- यह ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण, उत्तर प्रदेश के अधिकार क्षेत्र में आता है।
- यमुना बेसिन में शहरी आर्द्रभूमि:
- यह आर्द्रभूमि यमुना नदी बेसिन के भीतर शहरी आर्द्रभूमि का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
- पारिस्थितिक महत्त्व और हरित आवरण:
- यह ग्रेटर नोएडा के लिये हरित फेफड़े के रूप में कार्य करता है, जो 308 हेक्टेयर जलग्रहण क्षेत्र को कवर करता है, जिसमें से 60 हेक्टेयर जलाशय के लिये समर्पित है।
- महत्त्वपूर्ण पक्षी क्षेत्र के रूप में मान्यता (IBA):
- पक्षी संरक्षण में इसके महत्त्व के कारण बर्डलाइफ इंटरनेशनल ने इस आर्द्रभूमि को एक महत्त्वपूर्ण पक्षी क्षेत्र (IBA) के रूप में वर्गीकृत किया है।
- जलपक्षियों के लिये प्रजनन एवं शीतकालीन आवास:
- यह आर्द्रभूमि स्पॉट-बिल्ड डक, लेसर-व्हिसलिंग डक, कॉटन पिग्मी गूज और कॉम्ब डक जैसे जलपक्षियों के लिये प्रजनन स्थल प्रदान करती है।
- यह रेड-क्रेस्टेड पोचर्ड, फेरुजिनस पोचर्ड, बार-हेडेड गूज़, ग्रेलैग गूज, कॉमन टील, नॉर्दर्न शॉवलर और गैडवॉल सहित शीतकालीन जलपक्षियों का भी आश्रय है।
- विविध वन्यजीव उपस्थिति:
- समृद्ध पक्षी संख्या के अलावा, यह आर्द्रभूमि छह स्तनपायी प्रजातियों का भी आवास है, जिनमें नीलगाय, भारतीय ग्रे नेवला, भारतीय खरगोश, सुनहरा सियार और पाँच धारी वाली गिलहरी शामिल हैं।
- पर्यावरणीय खतरे:
- इस आर्द्रभूमि को अत्यधिक प्रदूषित अपशिष्ट जल के अँधाधुंध बहाव के कारण गंभीर खतरों का सामना करना पड़ रहा है, जिससे इसके पारिस्थितिकी तंत्र को खतरा उत्पन्न हो रहा है।
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उत्तर प्रदेश में क्षुद्रग्रह की खोज
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन (National Aeronautics and Space Administration- NASA) ने नोएडा के कक्षा 9 के छात्र दक्ष मलिक को एक क्षुद्रग्रह की अनंतिम खोज के लिये मान्यता प्रदान की गई है, जिसे वर्तमान में '2023 OG40' के रूप में लेबल किया गया है।
मुख्य बिंदु
- अंतर्राष्ट्रीय क्षुद्रग्रह खोज परियोजना (IADP) में भागीदारी:
- दो स्कूली मित्रों के साथ, छात्र ने IADP में सक्रिय रूप से भाग लिया, जिसने उन्हें अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय खोज सहयोग (IASC) से परिचित कराया।
- IASC, एक NASA-संबद्ध नागरिक विज्ञान पहल है, जो क्षुद्रग्रह खोज में वैश्विक भागीदारी को सक्षम बनाती है।
- यह विश्वभर के छात्रों और खगोल विज्ञान के प्रति उत्साही लोगों को आकाशीय डेटा का विश्लेषण करने और वैज्ञानिक अनुसंधान में योगदान करने का अवसर प्रदान करता है।
- एक दुर्लभ उपलब्धि:
- प्रतिवर्ष 6,000 से अधिक प्रतिभागियों के IADP में शामिल होने के बावजूद, केवल कुछ ही नए क्षुद्रग्रहों की पहचान करने में सफल होते हैं।
- इस खोज से पहले, देश के केवल पाँच छात्रों ने कभी नामित क्षुद्रग्रह की खोज की थी।
- क्षुद्रग्रह का नामकरण:
- इस उपलब्धि से खगोलीय पिंड का सत्यापन प्रक्रिया के पश्चात नामकरण करने का विशेषाधिकार भी प्राप्त होता है, जिसमें लगभग चार से पाँच वर्ष का समय लग सकता है।
क्षुद्रग्रह
- क्षुद्रग्रह, जिन्हें लघु ग्रह भी कहा जाता है, लगभग 4.6 अरब वर्ष पहले हमारे सौरमंडल के निर्माण के प्रारंभिक चरण के अवशेष हैं।
- वे मुख्यतः अनियमित आकार प्रदर्शित करते हैं, हालाँकि कुछ लगभग गोलाकार रूप भी प्रदर्शित करते हैं।
- कई क्षुद्रग्रहों के साथ छोटे चंद्रमा भी होते हैं, यहाँ तक कि कुछ के तो दो चंद्रमा भी होते हैं।
- इसके अतिरिक्त, द्वि-क्षुद्रग्रहों में एक दूसरे की परिक्रमा करने वाले दो समान आकार के चट्टानी पिंड शामिल होते हैं तथा त्रि-क्षुद्रग्रह प्रणालियाँ भी होती हैं।
उत्तर प्रदेश Switch to English
विश्व आर्द्रभूमि दिवस 2025
चर्चा में क्यों?
केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने 2 फरवरी 2025 को पार्वती अरगा रामसर साइट, गोंडा, उत्तर प्रदेश (UP) में विश्व आर्द्रभूमि दिवस 2025 समारोह का आयोजन किया।
मुख्य बिंदु
- परिचय:
- यह दिवस आर्द्रभूमि के महत्त्व के संबंध में जागरूकता बढ़ाने के लिये प्रतिवर्ष मनाया जाता है तथा यह दिवस 1971 में ईरान के रामसर में आर्द्रभूमि पर रामसर अभिसमय को अपनाए जाने की स्मृति को दर्शाता है।
- 2025 का विषय/ थीम: Protecting Wetlands for our Common Future अर्थात् हमारे सामान्य भविष्य के लिये आर्द्रभूमि की रक्षा।
- नया गलियारा:
- सरकार ने घोषणा की कि उत्तर प्रदेश में अयोध्या और देवीपाटन के बीच एक नया प्रकृति-संस्कृति पर्यटन गलियारा विकसित किया जाएगा।
- अमृत धरोहर पहल:
- अमृत धरोहर को जून 2023 में रामसर साइटों के संरक्षण के लिये लॉन्च किया गया था, जो चार प्रमुख घटकों अर्थात प्रजातियों और आवास संरक्षण, प्रकृति पर्यटन, आर्द्रभूमि आजीविका और आर्द्रभूमि कार्बन पर केंद्रित है।
- खतरा:
- आर्द्रभूमियों के लिये सबसे बड़ा खतरा औद्योगिक और मानवीय अपशिष्टों से होने वाला प्रदूषण है, जो इन पारिस्थितिकी प्रणालियों को नष्ट कर देता है।
पार्वती अरगा रामसर साइट
- परिचय : यह एक स्थायी स्वच्छ जल का वातावरण है, जिसमें दो झीलें अर्थात् पार्वती और अरगा शामिल हैं, जो वर्षा आधारित हैं और तराई क्षेत्र (गंगा के मैदान) में स्थित हैं।
- निकटवर्ती टिकरी वन को भी इको-पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है।
- ऑक्सबो झीलें यू आकार की झीलें हैं, जो तब बनती हैं जब किसी नदी का घुमावदार मार्ग कट जाता है, जिससे एक अलग जल निकाय का निर्माण होता है।
- पारिस्थितिक महत्त्व: यह गंभीर रूप से लुप्तप्राय सफेद पूँछ वाले गिद्ध (White-rumped Vulture), भारतीय गिद्ध और लुप्तप्राय मिस्र के गिद्धों के लिये एक शरणस्थली है।
- यूरेशियन कूट्स, मैलार्ड्स, ग्रेलैग गीज़, नॉर्दर्न पिनटेल्स और रेड-क्रेस्टेड पोचर्ड्स जैसे प्रवासी पक्षी सर्दियों के महीनों में इस स्थल पर आते हैं।
- आक्रामक प्रजातियाँ: इसे आक्रामक प्रजातियों, विशेष रूप से सामान्य जलकुंभी से खतरा है।
- सांस्कृतिक स्थल: यह क्षेत्र महर्षि पतंजलि और गोस्वामी तुलसीदास की जन्मस्थली जैसे सांस्कृतिक स्थलों का आवास है, जिससे धार्मिक और सांस्कृतिक पर्यटन को बढ़ावा मिलता है।
राजस्थान Switch to English
धर्मांतरण विरोधी विधेयक
चर्चा में क्यों?
राजस्थान सरकार ने गैरकानूनी धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध विधेयक, 2025 पेश किया, जिसका उद्देश्य बल, धोखाधड़ी या प्रलोभन के माध्यम द्वारा धर्मांतरण को रोकना है।
- विधेयक में विभिन्न अपराधों के लिये 10 वर्ष तक के कारावास और 50,000 रुपए तक के ज़ुर्माने का प्रावधान है।
मुख्य बिंदु
- अनुमोदन और उद्देश्य:
- नवंबर 2024 में, राज्य मंत्रिमंडल ने विधेयक के मसौदे को मंज़ूरी दी, जिसका उद्देश्य राज्य के कुछ क्षेत्रों में "लव जिहाद की बढ़ती घटनाओं" को रोकना था।
- 'लव जिहाद' शब्द का तात्पर्य मुस्लिम पुरुषों द्वारा हिंदू महिलाओं से विवाह कर उन्हें इस्लाम में परिवर्तित करने से है।
- नवंबर 2024 में, राज्य मंत्रिमंडल ने विधेयक के मसौदे को मंज़ूरी दी, जिसका उद्देश्य राज्य के कुछ क्षेत्रों में "लव जिहाद की बढ़ती घटनाओं" को रोकना था।
- विधेयक के प्रावधान:
- राज्य के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री ने विधेयक पेश किया, जो अपराधों को संज्ञेय, गैर-जमानती और अदालत में सुनवाई योग्य बनाता है।
- विधेयक गलत बयानी, बल, दबाव, प्रलोभन, धोखाधड़ी या विवाह के माध्यम से धर्मांतरण को अपराध मानता है।
- धर्म परिवर्तन के इच्छुक व्यक्तियों को कम से कम 60 दिन पहले ज़िला मजिस्ट्रेट को घोषणा-पत्र देना होगा।
- विधेयक के पीछे तर्क:
- विधेयक के अनुसार, जहाँ अन्य राज्यों में धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार पर कानून हैं, वहीं राजस्थान में ऐसा कोई कानून नहीं है।
- विधेयक का उद्देश्य धार्मिक स्वतंत्रता के व्यक्तिगत अधिकार को धर्मांतरण को रोकने की आवश्यकता के साथ संतुलित करना है, जो धर्मनिरपेक्षता को दुर्बल कर सकता है।
धार्मिक रूपांतरण
- धार्मिक रूपांतरण एक विशेष धार्मिक संप्रदाय से संबंधी मान्यताओं को अपनाना है, जिसमें अन्य को शामिल नहीं किया जाता।
- इस प्रकार "धार्मिक रूपांतरण" से तात्पर्य एक संप्रदाय के प्रति निष्ठा को त्यागकर दूसरे संप्रदाय से सम्बद्ध होना होगा।
- उदाहरण के लिये, ईसाई बैपटिस्ट से मेथोडिस्ट या कैथोलिक, मुस्लिम शिया से सुन्नी।
- कुछ मामलों में, धार्मिक रूपांतरण "धार्मिक पहचान में परिवर्तन का प्रतीक है और विशेष अनुष्ठानों द्वारा इसका प्रतीक है"।