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उत्तर प्रदेश

उत्तर प्रदेश विधानसभा ने पारित किया 'लव जिहाद' विधेयक

  • 01 Aug 2024
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उत्तर प्रदेश विधानसभा ने उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध (संशोधन) विधेयक, 2024 पारित किया, जिसके तहत विशिष्ट परिस्थितियों में दोषी सिद्ध किये गए अपराधियों के लिये अधिकतम आजीवन कारावास की सज़ा का प्रावधान किया गया है।

मुख्य बिंदु

  • इस विधेयक में धोखाधड़ी या जबरन धर्म परिवर्तन के संबंध में कड़े प्रावधान निहित हैं।
  • यदि यह पाया जाता है कि धर्म परिवर्तन धमकी, विवाह का वचन या साजिश के तहत कराया गया है तो 20 वर्ष का कारावास अथवा आजीवन कारावास की सज़ा का प्रावधान किया गया है। विधेयक के तहत इसे सबसे गंभीर अपराध की श्रेणी में रखा गया है।
  • इस विधेयक के अनुसार न केवल पीड़ित और उसके माता-पिता अथवा भाई-बहन अपितु किसी भी व्यक्ति को धर्म परिवर्तन से संबंधित मामलों में प्रथम इत्तिला रिपोर्ट (FIR) दर्ज कराने की अनुमति है।
  • इन मामलों की सुनवाई सत्र न्यायालय से अवर किसी न्यायालय में नहीं होगी। विधेयक में इस अपराध को अज़मानतीय भी बनाया गया है।
  • जो कोई भी व्यक्ति अपनी इच्छा से विवाह के उद्देश्य से धर्म परिवर्तन करना चाहता है, उसे दो माह पहले संबंधित ज़िला मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन प्रस्तुत करना होगा।

राज्य स्तरीय धर्मांतरण विरोधी कानून:

  • ओडिशा (1967): ओडिशा, धार्मिक रूपांतरण को प्रतिबंधित करने, बलपूर्वक धर्मांतरण और धोखाधड़ी के तरीकों पर रोक लगाने वाला कानून अधिनियमित करने वाला पहला राज्य है।
  • मध्य प्रदेश (1968): राज्य में मध्य प्रदेश धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम क्रियान्वित किया गया, जिसमें कानून के तहत किसी भी धर्मांतरण गतिविधि के लिये ज़िला मजिस्ट्रेट को अधिसूचना देना आवश्यक कर दिया गया।
  • अरुणाचल प्रदेश (1978), गुजरात (2003), छत्तीसगढ़ (2000 और 2006), राजस्थान (2006 तथा 2008), हिमाचल प्रदेश (2006 एवं 2019), तमिलनाडु (2002-2004), झारखंड (2017), उत्तराखंड (2018), उत्तर प्रदेश (2021) व हरियाणा (2022)
    • इन राज्यों ने विभिन्न प्रकार के धर्मांतरण पर रोक लगाने के लिये कानून बनाए हैं, जिनमें अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, नाबालिगों और महिलाओं के धर्मांतरण के लिये दंड को बढ़ाया गया है।
  • केंद्र का मत: केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सर्वोच्च न्यायालय को दिये एक शपथ-पत्र में कहा कि धर्म के अधिकार में दूसरों को, विशेष रूप से धोखाधड़ी या बलपूर्वक माध्यम से धर्मांतरित करने का अधिकार शामिल नहीं है।
    • उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनुच्छेद 25 की व्याख्या का उल्लेख करते हुए बल दिया कि धोखाधड़ी से धर्म परिवर्तन व्यक्ति की अंतःकरण की स्वतंत्रता को प्रभावित करता है और लोक व्यवस्था को बाधित कर सकता है।
    • केंद्र ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि क्या वह याचिका में किये गए अनुरोध के अनुसार धार्मिक धर्मांतरण पर कोई विशेष कानून पेश करेगा।
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