न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर का शीघ्र पता लगाना | 10 Jul 2024
चर्चा में क्यों?
सूत्रों के अनुसार, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) वाराणसी के शोधकर्त्ताओं ने एक अभूतपूर्व 'लैब-ऑन-चिप' उपकरण विकसित किया है, जो उल्लेखनीय सटीकता के साथ प्रारंभिक चरण की बीमारियों का पता लगा सकता है।
मुख्य बिंदु
- यह नवोन्मेषी सफलता पार्किंसंस रोग, अवसाद और सिज़ोफ्रेनिया जैसी तंत्रिका (Neurological) संबंधी स्थितियों की तीव्र तथा अधिक विश्वसनीय पहचान को सक्षम करके स्वास्थ्य सेवा में बदलाव लाने की क्षमता रखती है।
- IIT-BHU स्थित इलेक्ट्रॉनिक्स एवं ऊर्जा उपकरणों के लिये नैनोमटेरियल (Nanomaterials for Electronics and Energy Devices- NEED) प्रयोगशाला के वैज्ञानिकों द्वारा किये गए इस नवाचार में मस्तिष्क की कार्यप्रणाली को समझने में क्रांतिकारी बदलाव लाने तथा प्रारंभिक अवस्था में ही तंत्रिका संबंधी विकारों (न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर) के लिये नए उपचार का मार्ग प्रशस्त करने की क्षमता है।
- नव विकसित उपकरण में धातु के नैनोकणों से सुसज्जित, परमाण्विक रूप से पतले, द्वि-आयामी (2D) अर्द्धचालक को शामिल किया गया है, जो उन्नत सर्फेस-एन्हांस्ड रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी (SERS) प्रौद्योगिकी का लाभ उठाता है।
- इससे डोपामाइन जैसे न्यूरोट्रांसमीटर की सूक्ष्म सांद्रता का पता अद्वितीय परिशुद्धता और गति से लगाया जा सकता है।
- इस तरह के नवाचार के निहितार्थ बहुत गहन हैं, जहाँ नवीन सामग्रियों का विकास करना और उन्हें उपकरण में परिवर्तित करना, भारत सरकार द्वारा प्रस्तावित उपकरण निर्माण के विभिन्न राष्ट्रीय मिशनों को संभावित रूप से सहायता प्रदान कर सकता है।
सर्फेस-एन्हांस्ड रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी (SERS)
- SERS आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली एक सेंसिंग तकनीक है, जिसमें अणुओं द्वारा बिखरे हुए इनलेस्टिक लाइट (Aelastic Light) की तीव्रता को तब बढ़ाया जाता है, जब तक अणुओं को सिल्वर या गोल्ड नैनोपार्टिकल्स (NPs) जैसी नालीदार धातु की सतहों पर अवशोषित किया जाता है।
- यह अणुओं में रमन प्रकीर्णन प्रकाश (Raman Scattering Light) की तीव्रता को तेज़ करता है, जिससे अणुओं का प्रभावी विश्लेषण होता है।
पार्किंसंस रोग
- पार्किंसंस रोग एक प्रोग्रेसिव न्यूरोडीजेनेरेटिव डिसऑर्डर है जो गतिशीलता को बाधित करता है और समय के साथ गतिहीनता एवं मनोभ्रंश का कारण बन सकता है।
- यह बीमारी आमतौर पर वृद्ध लोगों को होती है, लेकिन युवा लोग भी इससे प्रभावित हो सकते हैं। महिलाओं की तुलना में पुरुष इससे अधिक प्रभावित होते हैं।
- पिछले 25 वर्षों में पार्किंसन की व्यापकता दोगुनी हो गई है। पार्किंसन रोग के वैश्विक बोझ में भारत का हिस्सा लगभग 10% है।
सिज़ोफ्रेनिया
- यह एक गंभीर मानसिक विकार है, जिसमें सोचने-समझने में बहुत ज़्यादा व्यवधान होता है, जिससे भाषा, धारणा और आत्म-बोध प्रभावित होता है। यह दुनिया भर में 21 मिलियन से ज़्यादा लोगों को प्रभावित करता है।
- शोधकर्त्ताओं का मानना है कि आनुवंशिक और पर्यावरणीय कारक, जैसे वायरस के संपर्क में आना, इसके कारण-कार्य में योगदान करते हैं तथा जीवन के तनाव भी इस विकार की शुरुआत एवं प्रगति में भूमिका निभा सकते हैं।